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Nilesh Shevgaonkar's Blog – September 2017 Archive (3)

ग़ज़ल नूर की-मुझ को कोई ख़रीद ले सस्ता किए बग़ैर

२२१/ २१२१/ १२२१/ २१२ (अरकान सही क्रम में हैं या नहीं ये मुझे नहीं पता)



मुझ को कोई ख़रीद ले सस्ता किए बग़ैर

रुसवाई यानी हो भी तो रुसवा किए बग़ैर. 

.

रुख्सत किया है ज़ह’न से यादें लपेट कर, 

तन्हा किया है आप ने तन्हा किए बग़ैर.

.

झुकिए अना को छोड़ के गर इल्म चाहिए,

मिलता नहीं सवाब भी सजदा किए बग़ैर.

.

जिस दर पे पूरी होतीं मुरादें तमाम-तर  

हम वाँ से लौट आये तमन्ना किए बग़ैर.

.

मुझ को न हो गुरूर मेरे नूर का कभी  

रौशन…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on September 26, 2017 at 11:30am — 27 Comments

ग़ज़ल नूर की -जैसे धुल कर आईना फ़िर चमकीला हो जाता है,

22/ 22/ 22/ 22/ 22/ 22/ 22/ 2 

.

जैसे धुल कर आईना फ़िर चमकीला हो जाता है,

रो लेता हूँ, रो लेने से मन हल्का हो जाता है.

.

मुश्किल से इक सोच बराबर की दूरी है दोनों में,

लेकिन ख़ुद से मिले हुए को इक अरसा हो जाता है.

.

फोकस पास का हो तो मंज़र दूर का साफ़ नहीं रहता,

मंजिल दुनिया रहती है तो रब धुँधला हो जाता है.

.

मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे में कोई काम नहीं मेरा

अना कुचल लेता हूँ अपनी तो सजदा हो जाता…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on September 16, 2017 at 2:30pm — 55 Comments

ग़ज़ल नूर की -दिल ने थोड़ा मलाल रक्खा है

२१२२,१२१२,२२ (११२)

.

दिल ने थोड़ा मलाल रक्खा है

तेरी यादों को पाल रक्खा है.

.

रोज़ मरता हूँ..और मरता हूँ 

फिर भी ख़ुद को सँभाल रक्खा है. 

.

यूँ तो अंजाम जानता हूँ मगर

एक सिक्का उछाल रक्खा है.

.

मैं तेरी शोख़ियाँ पकड़ लूँगा

मैंने आँखों में जाल रक्खा है.

.

तेरे मिलने तलक जुदाई का

फ़ैसला मैंने टाल रक्खा है. 

.

ख़ूब पीता हूँ..छक के पीता हूँ

ख़ुद का कितना ख़याल रक्खा है.

.

और सारा कुसूर अँधेरे का…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on September 1, 2017 at 11:36am — 30 Comments

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