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Nilesh Shevgaonkar's Blog – February 2016 Archive (2)

ग़ज़ल-नूर ख़ुशबुओं का सफ़र

२१२२/१२१२/२२/

ख़ुशबुओं का सफ़र नहीं आया,
खत लिए नाम:बर नहीं आया.
.
सुब’ह, राहें भटक गया... कोई,
शाम तक उस का घर नहीं आया.
.
देर तुम से न देर मुझ से हुई,
वक़्त ही वक़्त पर नहीं आया.
.  
चलते चलते गुज़ार दी सदियाँ,
अब भी मौला का दर नहीं आया.   
.
जिस्म की छाँव में रखा जिन को,
उन पे मेरा असर नहीं आया.
.
‘नूर’ ऐसा!! निगाहें क्या उठती,
हश्र पर कुछ नज़र नही आया.
.
मौलिक / अप्रकाशित 
निलेश "नूर"

Added by Nilesh Shevgaonkar on February 11, 2016 at 6:40pm — 4 Comments

ग़ज़ल- निलेश "नूर"

ग़ज़ल 

गा गा लगा लगा/ लल/ गा गा लगा लगा

.

झीलों में ऐसे..... चाँद डिबोता हूँ आज भी,

आँखों में रख के आप को रोता हूँ आज भी.  

.

अब तक दरख्त जितने उगाए, बबूल हैं,

दिल में मगर मैं यादों को बोता हूँ आज भी.

.

आदत में था शुमार तेरे साथ जागना,

तेरे बगैर देर से सोता हूँ आज भी.

.

नमकीन पानियों से जो रंगत निखरती है,

रुख़सार आँसुओं से मैं धोता हूँ आज भी.

.

काँधे पे इक सलीब उठाए फिरा करूँ,

नाकामियों का बोझ मैं ढ़ोता हूँ आज…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on February 7, 2016 at 9:30pm — 16 Comments

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