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JAWAHAR LAL SINGH's Blog (52)

हुकूमत

हुकूमत हाथ में आते, नशा तो छा ही जाता है,

अगर भाषा नहीं बदली, तो कैसे याद रक्खोगे.

किये थे वादे हमने जो, मुझे भी याद है वो सब,

मनाया जश्न जो कुछ दिन, उसे तो याद रक्खोगे.

मुझे दिल्ली नहीं दिखती, समूचा देश दिखता है,   

बिके हैं लोग…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on December 22, 2014 at 1:30pm — 17 Comments

हम याद तुम्ही को करते थे

हम याद तुम्ही को करते थे,

छुप छुप के आहें भरते थे,

मदहोश हुआ जब देख लिया

सपनों में अब तक मरते थे.

रूमानी चेहरा, सुर्ख अधर,

शरमाई आँखे, झुकी नजर,

पल भर में हुए सचेत मगर,

संकोच सदा हम करते थे.

कलियाँ खिलकर अब फूल हुई,

अब कहो कि मुझसे भूल हुई,

कंटिया चुभकर अब शूल हुई,

हम इसी लिए तो डरते थे.

अब होंगे हम ना कभी जुदा,

बंधन बाँधा है स्वयं खुदा,

हम रहें प्रफुल्लित युग्म सदा,

नित आश इसी की करते…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on November 30, 2014 at 8:58pm — 22 Comments

अच्छा नहीं होता गुस्सा - जवाहर

अच्छा नहीं होता गुस्सा

पर हो जाता है

मन में गुस्सा

जब कभी

मन माफिक नहीं होता

कोई भी काम

नहीं मानते

अपने ही कोई बात

फिर क्या करें ?

हो जाएँ मौन ?

फिर समझ पायेगा कौन?

आप सहमत हैं या असहमत

क्योंकि

लोग तो यही कहेंगे

मौनं स्वीकृति लक्षणं

मन में रखने से कोई बात

हो जाता नहीं तनाव ?

तनाव और गुस्सा

दोनों है हानिकारक

तनाव खुद का करता नुक्सान

गुस्सा खुद के…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on November 27, 2014 at 10:20am — 18 Comments

अब भी चेतो मानव मन तू!

कल कल कल कल नदियाँ बहती, झरने गीत सुनाते हैं,

तरु शाखाओं पर छिपकर खग, पंचम सुर में गाते हैं.

गिरि, नद, जंगल, अवनि, पशु सब, सृष्टि के अनमोल रतन,

मानव सबसे बुद्धि शील बन, अपनी राह बनाते हैं.

नदियों की धारा को रोकी, शिखरों को भी ध्वस्त किया,

काटके जंगल, भवन बनाते, अब क्यों वे पछताते हैं.

सीख नहीं कुछ लेते मानव, प्रकृति सब कुछ देख रही,

कभी केदार, कभी कश्मीर में, मानव ही दुःख पाते हैं.  

सेना सीमा की रक्षक है, आपद में करती…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on September 11, 2014 at 5:27pm — 10 Comments

कुछ सामयिक दोहे / जवाहर

मानसून की देर से, खेतहि फटे दरार,

ताके किसना मेघ को, आपस में हो रार.

मानसून की अधिकता, बारिश हो घनघोर

उजड़ा घर अरु खेत अब, देखत सब चहु ओर

तीव्र पानी प्रवाह से,  वन गिरि भी थर्राय

नर पशु पानी में बहे, किसको कौन बचाय .

उथल पुथल भइ जिंदगी, कहते जिसे विकास.

जलवायु दूषित हुई,  आम हो गया ख़ास

राग द्वेष का जोर है, प्रीती नहीं सुहाय,

भाई से भाई लड़े, संचित धन भी जाय..

फैशन की अब होड़ है, फैशन…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on August 18, 2014 at 9:30am — 19 Comments

दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,// जवाहर

दूब का चरित्र

दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,

सुख दुःख से विरक्त, संत मन जैसा है.

झुलसे न ग्रीष्म में भी, ओस को सम्हाल रही  

ढांक ले मही को मुदित, पहली बौछार में ही

दूब अग्र तुंड को, चढ़ावे विप्र पूजा में,

जैसे हो नर बलि, स्वांग यह कैसा है ! दूब का चरित्र देखो, आम जन जैसा है,

गाय चढ़े, चरे इसे, बकरियों भी खाती है,

खरगोश के बच्चे को, मृदुल दूब भाती है.

क्रीडा क्षेत्र में भी, बड़े श्रम से पाली जाती है

देशी या…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on July 11, 2014 at 10:30am — 13 Comments

बरसाती बादल आ ही गए

बरसाती बादल आ ही गए, ठंढक थोड़ी पहुंचा ही गए.

तपती धरती, झुलसाते पवन, ऊमस की थी घनघोर घुटन,

खाने पीने का होश नहीं, 'बिजली कट' और बढ़ाते चुभन

अब अम्बर को देख जरा, बिजली की चमक दिखला ही गए... बरसाती बादल आ ही गए,

सरकारें आती जाती है, बिजली भी आती जाती है,

वादों और सपनों की झोली,जनता को ही दिखलाती है

पर एक नियंता ऐसा भी, बस चमत्कार दिखला ही गए... बरसाती बादल आ ही गए,

अंकुरे अवनि से सस्य सुंड, खेतों में दिखते कृषक…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on June 19, 2014 at 3:30pm — 12 Comments

मेरा ब्लड ग्रुप?... याद नहीं है! (लघुकथा)

एक अस्पताल में भर्ती बुजुर्ग की आप बीती---उनके ही मुख से-

"मेरे दो लडके हैं, दोनों एक्सपोर्ट इम्पोर्ट का कारोबार करते हैं.

दो लड़कियां विदेश में हैं, दामाद वहीं सेटल हो गए हैं.

मेरा एक भगीना बड़े अस्पताल में डॉक्टर है ...मुझे उसका टेलीफोन नंबर नहीं मिल रहा ..आप पताकर बताएँगे क्या?

आज मेरे घाव का ओपेरेसन होनेवाला है. मेरा लड़का आयेगा ...ओपेरेसन के कागजात पर हस्ताक्षर करने."

लड़का आया भी और हस्ताक्षर कर चुपचाप चला गया. मैंने महसूस किया दोनों में कोई विशेष बात…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on June 6, 2014 at 8:00pm — 21 Comments

कुछ दोहे (जवाहर लाल सिंह)

माली ऐसा चाहिए, किसलय को दे प्यार

खरपतवारहि छांटके, कलियन देहि निखार.

नित उठ देखे बाग़ को, नैना रहे निहार 

सिंचन, खुरपी चाहिए, मन में करे विचार

हवा ताजी तन में लगे, करे भ्रमर गुंजार,

दिल में यूं खुशियाँ भरे, होवे जग से प्यार

कर्म सबहि तो करत हैं, गर न करे प्रचार

लोग न जानहि पात हैं, जाने बस करतार     

दीपक ऐसा चाहिए, घर में करे प्रकाश

तन मन जारे आपनो, किन्तु नेह की आश.

उजियारा लेते…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on May 6, 2014 at 11:00am — 20 Comments

कुछ दोहे !

1.बीता हिन्दी दिवस भी, मना लिए सब जश्न!

   न्याय लेख भी हो हिंदी, कौन करेगा प्रश्न!

2.नियम सरलता से बने, सब कुछ हो स्पष्ट

   तर्क कुतर्क न बन जाय, बने वकील न भ्रष्ट.

3.मूल्य कर्म अनुरूप हो, हो न कोइ कंगाल.

   दोउ हाथ दो पैर सम, अलग क्यों हो भाल!

4.मिहनत से धन आत है, बिन मिहनत धन जात.

   मिहनत कर ले रे मना, काहे नहीं बुझात!

5.अहंकार को त्याग कर, करिए सदा सत्कर्म,

   सोने की लंका गयी, बूझ न रावण मर्म.

6.नारी को सम्मान कर, नारी शक्ति महान

 …

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on September 15, 2013 at 8:32pm — 12 Comments

फूल जैसा ये है जीवन

मुंह अँधेरे सुबह में तुम मुस्कुरा रहे थे,

धूप जैसे ही खिली तुम खिलखिला रहे थे.

दोपहर के ज्वाल में तुम बल खा रहे थे.

शाम को फिर क्या हुआ जो मुंह छिपा रहे थे.

फूल जैसा ये है जीवन बाल यौवन अरु जरा.

फूल की खुशबू कभी तो कील से यह पथ भरा.

पाल मत प्यारे अहम तू एक दिन तू जायेगा.

सारी दौलत संगी साथी काम न कोई आयेगा.

गर किया सद्कर्म वह तू साथ लेकर जायेगा 

तेरे जाने पर भी निशदिन तेरे ही गुण गायेगा 

(मौलिक व…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on September 8, 2013 at 5:00pm — 14 Comments

कुण्डलियाँ

कुण्डलियाँ लिखने का प्रयास! (कृपया गुण दोष निकालें)

1.

मनमोहन को देखिये, बोल रहे हैं बैन

सोना नाहि खरीदिये, जाए दिल का चैन

जाए दिल का चैन, लम्पट लूट ले जाए

पैदल चलिए खूब, राखिये तेल बचाए.

विकट घड़ी में देश, पूरे विश्व में मन्दन

मन में रखिये धैर्य, स्वयम कहते मनमोहन!

2.

मेरा उनका आपका, भेद नहीं मिट पाय.

मन में संशय ही रहे, दूरी नित्य बढ़ाय..

दूरी नित्य बढ़ाय, मनुज मन अंतर लाये

झगड़ा रगडा होय,चैन मानव नहि पाए

कहे जवाहर…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on September 4, 2013 at 9:08am — 13 Comments

शिव बाबा की महिमा!

शिव बाबा की महिमा

शिव बाबा की कृपा से, सब काम हो रहा है

हम माने या न माने, कल्याण हो रहा है!

खुद विष का पान करके, अमृत किया हवाले,

आशीष सबको देते, विषधर गले में डाले.

तन में भभूत लिपटे, तिरसूल को सम्हाले

आये शरण में कोई, उसको गले लगा ले. 

हम भक्त हैं उन्ही के, ये भान हो रहा है! हम माने या न माने कल्याण हो रहा…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on August 7, 2013 at 7:17am — 18 Comments

बरसात से बर्बादी/ चौपाई एवं दोहों में/ जवाहर

प्रस्तुत रचना केदारनाथ के जलप्रलय को अधार मानकर लिखी गयी है.

चौपाई - सूरज ताप जलधि पर परहीं, जल बन भाप गगन पर चढही.

भाप गगन में बादल बन के, भार बढ़ावहि बूंदन बन के.

पवन उड़ावहीं मेघन भारी, गिरि से मिले जु नर से नारी.

बादल गरजा दामिनि दमके, बंद नयन भे झपकी पलके!

रिमझिम बूँदें वर्षा लाई, जल धारा गिरि मध्य सुहाई

अति बृष्टि बलवती जल धारा, प्रबल देवनदि आफत सारा

पंथ बीच जो कोई आवे. जल धारा सह वो बह जावे.

छिटके पर्वत रेतहि माही,…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on June 23, 2013 at 6:00pm — 28 Comments

राम सिया की भक्ति/ चौपाई एवं दोहों में (जवाहर)

रामसिया का रूप

राम सिया की जोड़ी कैसी, काम रती की जोड़ी जैसी.

राम सिया को जो नर ध्यावे, सब सुख आनंद वो पा जावे.

राम सिया जग के सुख दाता, जो मांगे वर वो पा जाता.

शुबह शाम नर नाम सुमीर तू, अपना काम समय पर कर तू.

कष्ट न दूजे को दे देना, सम्भव हो तो दुःख हर लेना.

परमारथ सा धरम न दूजा, नहीं जरूरत कोई पूजा.

वेद्ब्यास मुनि सब समझावे, गाथा बहु विधि कहहि सुनावे.

अन्तकाल में कष्ट जो पावे, सकल अतीत समझ में आवे.

कहत जवाहर हे रघुराई, मूरख मन से करौं बराई.

मरा मरा…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on June 13, 2013 at 7:30am — 12 Comments

रवि महिमा चौपाई एवं दोहों में / जवाहर

रवि महिमा

रवि की महिमा सब जग जानी, बिनू रवि संकट अधिक बखानी.

शुबह सवेरे प्रगट गगन में, फूर्ति जगावत जन मन तन में!

दूर अँधेरा भागा फिरता, सूरज नहीं किसी से डरता.

आभा इनका सब पर भारी, रोग जनित कीटन को मारी

ग्रीष्म कठिन अति जन अकुलानी, शरद ऋतू में दुर्लभ जानी

ग्रीष्महि जन सब घर छुप जावें, शरद ऋतू में बाहर आवें.

गर्मी अधिक पसीना आवे, मेघ दरस न गगन में पावे.

पावस मासहि छिप छिप जावें. बादल बीच नजर नहीं आवे.

हल्की बारिश में दिख जावें, इन्द्रधनुष अति सुन्दर…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on June 13, 2013 at 7:26am — 8 Comments

पहली बरसात में! (दोहे -जवाहर)

पुष्प वाटिका बीच मुदित, बाला मन को मोह 

सुमन पंखुरी सुघर मृदुल , श्यामा तन यूँ सोह!

पनघट पर सखिया सभी, करत किलोल ठठाहि ,

छलकत जल से गागरी, यौवन छलकत ताहि!

पुष्प बीच गूंजत अली, झन्न वीणा के तार .

तितली बलखाती चली, कली ज्यों करे श्रृंगार!

पीपल की पत्तियां भली, मधुर समीरण साथ,

देखत लोगन सुघर छवी, हिय हिलोर ले साथ.

पवन चले जब पुरवाई, ले बदरा को साथ 

मन विचलित गोरी भई, आंचल ढंके न माथ…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on June 4, 2013 at 9:30pm — 11 Comments

ग्रीष्म और वर्षा का संगम -दोहों के माध्यम से

ग्रीष्म शुष्क लागत बदन, जागत तन में पीर.

मनुज, पशु, खगवृन्द सभी, खोजत शीतल नीर.

अरुण अनल अति उग्र हैं, तपस लगत चहुओर.

श्वेद बूँद भींगे बदन, अगन लगे अति घोर.

पल-पल बिजली जात हैं, बिजली घर में शोर.

दूरभाष की घंटिका,     बजन लगे घनघोर.

कोकिल कूके आम्र तरु, शीतल पवन न शोर.

वृन्द खगन के देखि के, नाचत मन में मोर.

वरुण,इंद्र, विनती सुनौ, बरस घटा घनघोर.

उमरि घुमरि मेघन परखी, नाचत वन में मोर.

मेघ घिरे नभ…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on May 26, 2013 at 5:56am — 8 Comments

बिजली मिस्त्री की कहानी / जवाहर

मई का महीना, जेठ की दुपहरी

पारा जब चालीस से पैन्तालीश के बीच रहता है 

धरती जलती और सूरज तपता है.

एक दिहारी मजदूर बिजली के टावर पर 

जूते दस्ताने और हेलमेट पहन 

क्या खटाखट चढ़ता है. 

सेफ्टी बेल्ट के एक हुक को

ऊपर के पट्टी में फंसाता 

दूसरे हुक को खोलता,

ऊपर और ऊपर चढ़ता है

 

"अरे क्या सूर्य से टकराएगा?

सम्पाती की तरह खुद को झुलसायेगा ?" 

वह मुस्कुराता

अपने साथियों को इशारे से…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on May 22, 2013 at 4:30am — 10 Comments

गजोधर भाई, आप तो शराब नहीं पीते थे!/ जवाहर

मैं शाम को अपने घर पर बैठा टी वी देख रहा था. टी वी के एक न्यूज़ चैनल पर सामयिक विषयों पर गरमा गरम बहस चल रही थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो गजोधर भाई थे.

मैने कहा – "आइये !"

उन्होंने कहा – "आज यहाँ नहीं बैठूंगा. चलिए कहीं बाहर चलते हैं."

मैंने कहा- "ठीक है चलेंगे. आइये पहले चाय तो पी लें. फिर चलते हैं."

उन्होंने कहा – "चलिए न बाहर ही चाय पीते हैं."

मैं उनके साथ हो लिया. चाय के दुकान जिसमे अक्सर हमलोग बैठकर चाय पीते थे, वहाँ न रुक कर गजोधर भाई के साथ और…

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Added by JAWAHAR LAL SINGH on May 10, 2013 at 4:30am — 10 Comments

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