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Dr.Prachi Singh's Blog – August 2013 Archive (4)

हे धर्मराज!.............डॉ० प्राची

हे धर्मराज! स्वीकार मुझे, प्रति क्षण तेरा संप्रेष रहे

यह जीवन यज्ञ चले अविरल, निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

 

लोभ-मोह के छद्माकर्षण, प्रज्ञा से नित कर विश्लेषण,

इप्सा तर्पण हो प्रतिपूरित, मन में तृष्णा निःशेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल, निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

 

कर्तव्यों का प्रतिपालन कर,निष्काम कर्म प्रतिपादन कर,

फल से हो सर्वस मुक्त मनस,बस नेह हृदय मधु-शेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष…

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Added by Dr.Prachi Singh on August 31, 2013 at 8:30pm — 37 Comments

हमसफ़र ....... डॉ० प्राची

सितार के

सुरमई तारों की झंकार से

गूँज उठी

स्वप्न नगरी..

समय के धुँधलके आवरण से

शनैः शनैः

प्रस्फुटित हो उठी

एक आकृति

अजनबी

अनजान..

स्वप्नीली पलकें

संतृप्त मुस्कान

प्राण-प्राण अर्थ

निःशब्द..

निःस्पर्श स्पंदन

कण-कण नर्तन

क्षण विलक्षण

मन प्राण समर्पण

सखा-साथी-प्रिय-प्रियतम-प्रियवर

अनकहे वायदे, गठबंध परस्पर - हमसफ़र !

 

Added by Dr.Prachi Singh on August 27, 2013 at 7:00pm — 23 Comments

एक कदम ( लघु कथा )

बोलो नेहा ! इतनी उदास क्यों हो ?

पर सूनी आँखों में कोई ज़वाब न देख, अपने हक के लिए कभी एक शब्द भी न कह पाने वाली दिव्या,  अचानक हाथ में प्रोस्पेक्टस के ऊपर एडमीशन फॉर्म के कटे-फटे टुकड़े लिए, बिना किसी से इजाज़त मांगे और दरवाजा खटखटाए बगैर, सीधे ऑफिस में घुसी और डीन की आँखों में आँखे डाल गरजते हुए बोली “देखिये और बताइये– क्या है ये? आपकी शोधार्थी नें एडमीशन फॉर्म के इतने टुकड़े क्यों कर डाले? दो साल से सिनॉप्सिस तक प्रेसेंट नहीं हुई, क्यों ? इतना कम्युनिकेशन गैप? आखिर समय क्यों नहीं…

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Added by Dr.Prachi Singh on August 22, 2013 at 6:30pm — 31 Comments

चंद शब्द ................डॉ० प्राची

फासलों की 

हर पर्त को चीरते 

चंद शब्द...

जिनका चेहरा,

कभी दिखाई ही नहीं देता..

आखिर देखूँ भी तो क्यों ?

लुका छिपी में उलझाते मुखौटे  !

जिनकी आवाज,

कभी सुनायी ही नहीं देती..

आखिर सुनूँ भी तो क्यों ?

कृत्रिमता में गुँथे बंधित अल्फाज़  !

जिनके अर्थ,

कभी बूझने नहीं होते..

आखिर बूझूँ भी तो क्यों ?

सिर्फ भ्रमित करते से दृश्य तात्पर्य !

जबकि,

हृदय गुहा…

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Added by Dr.Prachi Singh on August 18, 2013 at 12:00am — 39 Comments

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