221 1222 221 1222
उसकी ये अदा आदत इन्कार पुराना है
बेचैन नहीं करता ये प्यार पुराना है ।
ये हुस्न नया पाया उसने है सताने को
ये जिस्म तमन्नाएं इसरार पुराना है ।…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on June 4, 2020 at 10:30pm — 11 Comments
उठाओ नजर रहगुज़र देख लो ।
यहाँ जिन्दगी का सफ़र देख लो ।
नियम कायदे तो बने हैं कई
मगर भंग हैं सब जिधर देख लो ।
न भय है न चिंता न है शर्म ही
बना है बशर जानवर देख लो ।
कहीं लूट है तो कहीं क़त्ल है
किसी भी नगर की ख़बर देख लो ।
गले मिल रहे दोस्त खंजर लिए
बदलते समय का असर देख लो ।
करें फ़िक्र उनकी जो हैं नापसंद
सियासत का है ये हुनर देख लो ।
बिछा हर तरफ सिर्फ कंक्रीट…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on October 2, 2019 at 10:00pm — 7 Comments
22-22-22-22
मैं कुछ और कहाँ कहता हूँ।।
गैरों से लिपटा - अपना हूँ।।
वैमनष्यता न सर उठा पाए।
दुश्मन की तरहा रहता हूँ।।
दरपण भी छू सकता है क्या।
बस ये ऐसे ही - पूछा हूँ।
कलियाँ खुशबू बिखरायेंगी।
मैं वक़्त कहाँ कब रुकता हूँ।।
आमोद रखो, बिश्वास रखो।
पग पग जीवन में अच्छा हूँ।।
..अमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 10, 2019 at 11:30am — 5 Comments
1222-1222-1222-1222
जो नजरें अब तलक बेख़ौफ़ दौड़ी जा रहीं हैं यूँ।।
कई आशाएं तपती रेत को खंघला रहीं हैं यूँ।।
कोई उम्मीद का सूरज , कहीं पर है खड़ा सायद।
पहल की किरने ये पैग़ाम लेकर आ रहीं हैं यूँ।।
ये सन्नाटा जो पसरा चीख़ के कुछ अंश बांकी हैं।
दिशाएँ इंतक़ाम-ए-जंग को दुहरा रहीं हैं यूँ।।
विषमता में खड़ी हो लोकधर्मी जंग लड़कर अब।
रिसाल ए रौशनाई हौसले उमड़ा रहीं हैं यूँ।।
कोई तो लिख रहा बेशक नया भारत किताबों में।…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 6, 2019 at 7:39pm — 1 Comment
अहसास होगा याद अगर करते हैं।।
आती है क्यूँ चाहत, के क्यूँ घर करते हैं।।
इस आस से की कल कुछ अच्छा होगा।
हम लोग इक दिन और सफर करते हैं।।
मैंने भी अक्सर नाम लिये बिन लिख्खा।
जज्बात ए दिल बेनाम सफर करते हैं।।
ये आपकी आहट ही कुरेदेगी घर को।
जो छोड़ जाना आप नज़र करतें हैं।।(पेश करना)…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 4, 2019 at 12:30pm — 4 Comments
121-22-121-22
नये ज़माने का खून हूँ मैं।।
पुराने स्वेटर का ऊन हूँ मैं।।
मुझे न पढ़ना न पढ़ सकोगे।
मैं अहदे उल्फ़त* जुनून हूँ मैं। time of love
अजब! सिफारिश मेरी करोगे।
अभी भी शक है कि कौन हूं मैं।।
करोगे क्या मेरे ज़ख्म सी कर।
यूँ इश्क का इक सुकून हूँ मैं।।
मकान मेरा नहीं है गुम सा।
पुराने घर से दरून* हूँ मैं।। (दिल,मध्य कोर)
के हिज्र हो या विसाल तेरा।
हूँ दोनों शय में…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on February 13, 2019 at 11:52pm — 3 Comments
इस नज़र से उस नज़र की बात लम्बी हो गई
मेज़ पे रक्खी हुई ये चाय ठंडी हो गई
आसमानी शाल ने जब उड़ के सूरज को ढका
गर्मियों की दो-पहर भी कुछ उनींदी हो गई
कुछ अधूरे लफ्ज़ टूटे और भटके राह में
अधलिखे ख़त की कहानी और गहरी हो गई
रात के तूफ़ान से हम डर गए थे इस कदर
दिन सलीके से उगा दिल को तसल्ली हो गई
माह दो हफ्ते निरंतर, हाज़री देता रहा
पन्द्रहवें दिन आसमाँ से यूँ ही कुट्टी हो…
ContinueAdded by दिगंबर नासवा on February 8, 2019 at 1:30pm — 8 Comments
मखमली से फूल नाज़ुक पत्तियों को रख दिया
शाम होते ही दरीचे पर दियों को रख दिया
लौट के आया तो टूटी चूड़ियों को रख दिया
वक़्त ने कुछ अनकही मजबूरियों को रख दिया
आंसुओं से तर-बतर तकिये रहे चुप देर तक
सलवटों ने चीखती खामोशियों को रख दिया
छोड़ना था गाँव जब रोज़ी कमाने के लिए
माँ ने बचपन में सुनाई लोरियों को रख दिया
भीड़ में लोगों की दिन भर हँस के बतियाती रही
रास्ते पर कब न जाने सिसकियों को रख…
ContinueAdded by दिगंबर नासवा on January 23, 2019 at 9:30am — 13 Comments
बह्र -1212-1122-1212-22
बड़ा शह्र है ये अपना पता नहीं मिलता।।
यहाँ बजूद भी हँसता हुआ नहीं मिलता।।
दरख़्त देख के लगता तो आज भी ऐसा ।
के ईदगाह में अब भी खुदा नहीं मिलता।।
समाज ढेरों किताबी वसूल गढ़ता है।
वसूल गढ़ता ,कभी रास्ता नहीं मिलता।।
मैं पढ़ लिया हूँ कुरां,गीता बाइबिल लेकिन ।
किसी भी ग्रन्थ में , नफरत लिखा नहीं मिलता।।
मुझे भी दर्द ओ तन्हाई से गिला है पर।
करें भी क्या कोई हमपर फ़िदा नहीं…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 30, 2018 at 11:11am — 6 Comments
बह्र:-221-2121-2221-212
आधा है तेरा साथ ओर आधी जुदाई है।।
कुछ इस तरह चिरागे दिल की रौशनाई है ।।
चहरे में मुस्कुराहटें आई हैं लौट कर ।
जब जब भी मैंने याद की ओढ़ी रजाई है।।
विस्मित नहीं हुई अभी,अपनी हो आज भी।
रिश्ता जरूर बदला है अब तू पराई है।।
कितना भी पढ़ लो जिंदगी की इस किताब को ।
मासूस हो यही अभी,आधी पढाई है।।
नजरों से हूबहू अभी वो ही गुजर गया।
जिसकी है जुस्तजू मुझे, तन पे सिलाई है…
Added by amod shrivastav (bindouri) on March 22, 2018 at 7:10pm — 12 Comments
बह्र:-2122-2122-2122-212
बढ़ गई जिस दौर रिश्तों की नमीं और दूरियां ।।
खुद-ब-खुद लेनी पड़ी खुद को खुद की सेल्फियां।।
जिसको समझा शान आखिर अब वो आ कर के खड़ा ।।
मुँह चिढ़ाता दौर मेरा ,खुद -जनी नाकामियां।।
नाम अब है गर्व का ,खुदग़रज ओऱ बे अदब।
झुकना अब न चाहता हैं नवजवां कोई मियां।।
देश के होने लगे जब मज़हबी हालात यूँ।।
राजनीतिक सेंकने लगते हैं अपनी रोटियां।।
रास्ता सबका अलग, अब बँट ही जाना है…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on March 16, 2018 at 11:56am — 5 Comments
बह्र:- 2122-2122-2122-212
होश खोकर मैं न पल्लू में सिमट जाऊं कहीं।।
'इस तरह बहकूँ न होटों से लिपट जाऊँ कहीं'।।
'डरते डरते आज अपनी उम्र के इस खेल में ।
इश्क़ के दो बोल सुनकर ही न पट जाऊँ कहीं'।।
'ये फ़ज़ाएँ शौख़ कमसिन छेड़ती हैं जिस्म को।
कांपते हैं ये क़दम मैं न रपट जाऊँ कहीं'।।
एक जर्रा चाहता हूँ प्यास से झुलसा हुआ।
कि समंदर बावला ले कर उलट…
Added by amod shrivastav (bindouri) on February 24, 2018 at 2:00pm — 4 Comments
बह्र:-2122-1221-22
वक्त बे वक्त का आसरा है।।
घर का टुटा हुआ जो घड़ा है ।।1
जो मुहब्बत में अपनी बिका है।
उसको दौलत ओ शुहरत से क्या है ।।2
जब समझलो की क्या माजरा है।
बोल बोलो नही कुछ बुरा है।।3…
Added by amod shrivastav (bindouri) on February 11, 2018 at 8:30pm — 2 Comments
मापनी :-
1212-1122-1212-112
शुरू कहाँ से करूँ ओऱ कहाँ से बात करूँ।।
नजर से वार करूँ या जुबाँ से बात करूँ।।
मुझे तो इतना तज्ज्रिबा नहीं मुहब्बत की।
फ़िसल वो जाएं शुरू मैं जहां से बात करूँ।।
कोई हसीन सा किरदार जिंदगी से जुड़े।
यही है चाह की उल्फत की हाँ से बात करूँ ।।
समझ समझ के समझ को समझ न पाए हमीं।
की किससे कौन अदा से जुबाँ से बात करुं।।
मेरे हबीब मेरे रब मेरी अना में अभी।
है इतनी चाह जमीं आसमाँ से बात…
Added by amod shrivastav (bindouri) on February 9, 2018 at 6:22pm — 3 Comments
वो कहते हैं मेरी पहचान को मिटटी में मिला डाला
बह्र-1222-1222-1222-1222
वो कहतें हैं मेरी पहचान को मिटटी में मिला डाला।।
मैं कहता हूँ पुरानी थी नया रिश्ता बना डाला।।
न भूला कर की रिश्ते में मैं तेरा बाप हूँ बेटा।
कहाँ भूला यही तो सोंच उल्फत को भुना डाला।।
मैं कहता हूँ मेरी पहचान इक दिन आप की होगी।
वो बोले तुझ से कितने बीज बो कर के उगा डाला ।।
मुझे अब तक यकीं होता न उल्फत की मिसालों पर।
मुहब्बत नाम है किसका उसे किसका बना…
Added by amod shrivastav (bindouri) on January 19, 2018 at 7:29pm — 2 Comments
बह्र- 122-122-122-122
मुझे है भला क्या कमी जिंदगी से।।
है रिश्ता मेरा तीरगी ,रौशनी से।।
मुझे बज्म इतना न पहचां रही है।
है पहचान मेरी-तेरी माशुकी से।।
कई बार गुजरे हैं तेरे शह्र से।
तेरी आशिक़ी से तेरी बेरुख़ी से।।
मुहब्बत के कुछ ऐसे क़िस्से सुने हैं।
की डर लगता है आज की आशिक़ी से।।
दिये की जरुरत किसे अब नही है?
बता किसकी कब है बनी तीरगी से??
पता मुझको उस शख्स का भी जरा…
ContinueAdded by amod shrivastav (bindouri) on January 19, 2018 at 5:24pm — 5 Comments
22 22 22 22 22 2
तू पर उगा, मैं आसमाँ तलाश रहा हूँ
हम रह सकें ऐसा जहाँ तलाश रहा हूँ
ज़र्रों में माहताब का हो अक्स नुमाया
पगडंडियों में कहकशाँ तलाश रहा हूँ
खामोशियाँ देतीं है घुटन सच ही कहा है
मैं इसलिये तो हमज़बाँ तलाश रहा हूँ
जलती हुई बस्ती की गुनहगार हवा अब
थम जाये वहीं,.. वो बयाँ तलाश रहा हूँ
मैं खो चुका हूँ शह’र तेरी भीड़ में ऐसे
हालात ये, कि ज़िस्म ओ जाँ तलाश रहा…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on November 7, 2017 at 8:22am — 35 Comments
22 22 22 22 22 22 22 2
वो जितना गिरता है उतना ही कोई गिर जाये तो
उसकी ही भाषा में उसको सच कोई समझाये तो
सूरज से कहना, मत निकले या बदली में छिप जाये
जुगनू जल के अर्थ उजाले का सबको समझाये तो
मैं मानूँगा ईद, दीवाली, और मना लूँ होली भी
ग़लती करके यार मेरा इक दिन ख़ुद पे शरमाये तो
तेरी ख़ातिर ख़ामोशी की मैं तो क़समें खा लूँ, पर
कोई सियासी ओछी बातों से मुझको उकसाये तो
कहा तुम्हारा मैनें माना,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on October 29, 2017 at 6:11pm — 25 Comments
2122/1122 1122 1122 22 /112
जीभ ख़ुद की है तो दांतों से दबा भी न सकूँ
कैसे खामोश रहे इस को सिखा भी न सकूँ
उनका वादा है कि ख़्वाबों में मिलेंगे मुझसे
मुंतज़िर चश्म को अफसोस सुला भी न सकूँ
तश्नगी देख मेरी आज समन्दर ने कहा
कितना बदबख़्त हूँ मैं प्यास बुझा भी न सकूँ
मेरे रस्ते में जो रखना तो यूँ पत्थर रखना
कोशिशें लाख करूँ यार हिला भी न सकूँ
यहाँ तो सिर्फ अँधेरों के तरफदार बचे
छिपा रक्खा है,…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 27, 2017 at 9:00am — 31 Comments
22 22 22 22 22 22 ( बहर ए मीर )
कटे हाथ लेकर बे चारे घूम रहे हैं
मांग रहे हैं, कहीं सहारे, घूम रहे हैं
कर्मों का लेखा उनका मत बाहर आये
इसी जुगत में डर के मारे, घूम रहे हैं
हाथों मे पत्थर हैं जिनके, उनके पीछे
छिपे हुये अब भी हत्यारे घूम रहे हैं
अँधियारा अब भी फैला है आंगन आंगन
क्यों ये सूरज, चंदा, तारे घूम रहे हैं
शब्द भटक जाते हैं उनके, अर्थ हीन हो
जिनके घर के अब चौबारे घूम रहे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on April 13, 2017 at 11:01am — 9 Comments
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