ट्रेन स्टेशन छोड़ चुकी थी, रिज़र्वेशन वाले डब्बे में भी साधारण डब्बे जैसी भीड़ थी. अपना बैग कंधे पर टाँगे और छोटा ब्रीफकेस खींचते हुए शंभू डब्बे में अंदर बढ़े. लगभग हर सीट पर कई लोग बैठे हुए थे और शंभू को कहीं जगह नजर नहीं आ रही थी. जहां भी वह बैठने का प्रयत्न करते, लोग उन्हे झिड़क देते. अचानक साइड वाली एक सीट पर उनकी नजर पड़ी जहां सिर्फ एक ही व्यक्ति बैठा हुआ था. शंभू लपक कर सीट पर एक तरफ बैठ गये और अपना ब्रीफकेस उन्होने सीट के नीचे घुसा दिया. अक्सर सफर करनेवाले शंभू को इन परिस्थितियों से भी…
ContinueAdded by विनय कुमार on August 8, 2018 at 2:00pm — 6 Comments
पुश्तैनी घर में होने वाले रोज़-रोज़ के झगड़े से तंग आ चुका था और मंशा थी की अपना एक अलग घोसला बनाया जाए |श्री वर्मा जी जो की मेरे शिक्षक,मार्गदर्शक एवं प्रेरणाश्रोत रहे हैं उनसे इस सिलसिले में मिलने पहुँचा |
मिलते ही उन्होंने प्रश्न किया-सबसे पहले यह बताओ की कितनी नकद राशि है और घर लेने की क्या योजना है |
“पैसे तो छह-सात लाख के आसपास हैं बाकि पैसे लोन करा लूँगा |सोच रहा हूँ की कोई जड़ सहित मकान या फ़्लोर मिल जाए |”मैंने हिचकिचाते हुए कहा
“लेकिन या परंतु बाद में ---सबसे पहले…
ContinueAdded by somesh kumar on July 2, 2018 at 9:59am — 4 Comments
कलावती से आज मैं पहली बार अकेले नेहरु पार्क में मिल रहा था |इससे पहले उससे विज्ञान मेले में मिला था |वहीं पर उससे मुलकात हुई थी |उसका माडल मेरे माडल के साथ ही था |वह हमेशा खोई-खोई और उदास लगती थी |मैंने ही उससे बात शुरू की और पत्नी द्वारा बनाया गया टिफ़िन शेयर किया |लाख कोशिशों के बाद वह ज़्यादा नहीं खुली पर बात-बात में पता चला की वह अपने पति से अलग अपने बेटे को लेकर मायके में रहती है |उसकी नौकरी पक्की नहीं है और वह अपने और बेटे के भविष्य को लेकर काफ़ी परेशान है |विज्ञान मेले के आखिरी दिन मैंने…
ContinueAdded by somesh kumar on June 3, 2018 at 5:30pm — No Comments
आ नहीं पाऊँगा फ़ोन काटकर राजबीर कुर्सी पर बैठ गया |हालाँकि समय ऐसा नहीं था की वो बैठे |घर में ढेरों काम बाकी थे और वक्त बहुत कम |मामा जी अभी-अभी कानपुर से आए हैं |ताऊ दो घंटे में पहुँच जाएँगे |मौसी कल ही दीपक के साथ आ चुकी हैं |सभी लोगों के नाश्ते का प्रबंध करना है और हलवाई का अता-पता नहीं है |
रिश्तेदारों के लिए शहर नया है और पड़ोसियों से कोई उम्मीद बेकार |कुल मिलाकर अमित ही था जो उसकी मदद कर सकता था पर अब !
“फ़िक्र ना कर मैं और तेरी भाभी एक रोज़ पहले पहुँच जाएँगे और तेरी…
ContinueAdded by somesh kumar on May 28, 2018 at 5:41pm — 2 Comments
“सर,इस सेम की बेल को खंबे पर लिपटने में मुश्किल आएगी |” मैंने सुरेंदर जी की तरफ़ देखते हुए कहा
“हाँ,मैं सोच रहा था की सामने वाली इमली में कील ठोककर बेल को उधर मोड़ दिया जाए |”
“ पेड़ में कील ! क्या यह पेड़ के लिए जानलेवा नहीं होगा |” मैंने कुछ परेशान होकर पूछा
“लोग पेड़ों में पूरा का पूरा मन्दिर बना देते हैं और तुम कहते हो की कील से पेड़ को नुकसान होगा |” उन्होंने मेरी तरफ़ मुस्कुराते हुए कहा
“सर ,मैंने पेड़ों से मार्ग की बात तो सुनी है पर क्या हमारे देश में कोई ऐसा पेड़…
ContinueAdded by somesh kumar on May 25, 2018 at 4:40pm — No Comments
पन्द्रह दिन पूर्व
निधि का फोन था |मैंने फोन उठाकर कहा की अभी कुछ व्यस्त हूँ |बाद में बात करते हैं |
“दो मिनट में मैं घर पहुँच जाऊँगी |” उसने कुछ बुझी आवाज़ में कहा
“सब ठीक-ठाक है ?” मैंने चिंता जताते हुए कहा |
“बहुत से भूचाल हैं |”
“ससुराल में फिर कुछ हुआ ?”
“वो तो लगा ही रहना है |मुझे लगता है मैं इन लोगों के साथ तालमेल नहीं बिठा सकती |पर कुछ और बताना है पिंकी के बारे में --” निधि का गला भर्राया हुआ था
“क्या हुआ !”
“मुझे लगता है…
ContinueAdded by somesh kumar on May 4, 2018 at 11:00am — 1 Comment
जाति-पाती पूछे हर कोई
“हो गईल चन्दवा क शादी |” पत्नी मोबाईल कान से लगाए मेरी तरफ देखते हुए बोली
मैं दफ्तर से लौटा तो समझ गया की पत्नी जी अपनी माता से फ़ोन पर लगी पड़ी हैं |मैंने बिना कोई रूचि दिखाए अपना बैग रखा और हाथ-मुँह धोने चला गया |
थोड़ी देर बाद पत्नी चाय लेकर आई और सामने बैठ गयी |मैं समझ गया कि वो मुझे कुछ बताने के लिए बेताब है और यह भी कि यह चंदा के विषय में है पर सिद्ध-पुरुष की तरह मैं प्लेट से कचरी उठाकर खाने लगा और अपने व्हाट्सएप्प को…
ContinueAdded by somesh kumar on April 29, 2018 at 5:26pm — 4 Comments
“ रात महके तेरे तस्सवुर में
दीद हो जाए तो फिर सहर महके “
“अमित अब बंद भी करो !बोर नहीं होते |कितनी बार सुनोगे वही गजल |” सुनिधि ने चिढ़ते हुए कहा
प्रतिक्रिया में अमित ने ईयरफोन लगाया और आँखें बंद कर लीं |
कुछ देर बाद सुनिधि ने करवट बदली और अपना हाथ अमित की छाती पर रख दिया |पर अमित अपने ही अहसासों में खोया रहा और उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी |
“ऐसा लगता है तुम मुझे प्यार नहीं करते |” सुनिधि ने हाथ हटाते हुए कहा पर अमित अभी भी अपने ख्यालों में खोया…
ContinueAdded by somesh kumar on March 30, 2018 at 12:00am — 2 Comments
रामदीन |” अख़बार एक तरफ रखते हुए और चाय का घूंट भरते हुए पासवान बाबू ने आवाज़ लगाई
“जी बाबू जी |”
“मन बहुत भारी हो रहा है |दीपावली गुजरे भी छह महीने हो गए | सोचता हूँ दोनों बेटे बहुओं से मिल लिया जाए|---- ज़िन्दगी का क्या भरोसा !”
“ऐसा क्यों कहते हैं बाबूजी !हम तो रोज़ रामजी से यही प्रार्थना करते हैं की बाबूजी को लंबा और सुखी जीवन दे |”
“ये दुआ नहीं मुसीबत है |बुढ़ापा ---अकेलापन----तेरे माई जिंदा थी तब अलग बात थी पर अब ---“ वो गहरी साँस भरते हुए कहते हैं
“हम क्या…
ContinueAdded by somesh kumar on March 18, 2018 at 11:00pm — 8 Comments
आदित्य और नियति(शादी के पहले छह महीने )
खाना लगा दूँ ?” घर लौटे आदित्य से नियति ने पूछा
“दोस्तों के साथ बाहर खा लिया |”
“बता तो देते |” नियति ने मुँह गिराते हुए कहा
“कई बार तो कह चुका हूँ कि जब दोस्तों के साथ बाहर जाता हूँ तो खाने पर इंतजार मत किया करो |”आदित्य ने तेज़ आवाज़ में कहा
नियति की आँखों में आँसू आ गए आदित्य
“अच्छा बाबा सॉरी !अब प्लीज़ ये इमोशनल ड्रामा बंद करो |” आदित्य ने कान पकड़ते हुए कहा और नियति अपने आँसू पोछने लगी
रात को…
ContinueAdded by somesh kumar on March 17, 2018 at 11:25am — 4 Comments
“भाई अरविन्द ,कब तक ताड़ते रहोगे ,अब छोड़ भी दो बेचारी नाजुक कलियाँ हैं |”
“मैंsए ,नहीं तो -----“
वो ऐसे सकपकाया जैसे कोई दिलेर चोर रंगे हाथों पकड़ा जाए और सीना ठोक कर कहे –मैं चोर नहीं हूँ |
“अच्छा तो फिर रोज़ होस्टल की इसी खिड़की पर क्यों बैठते हो ?”
“यहाँ से सारा हाट दिखता है |”
“हाट दिखता है या सामने रेलवे-क्वार्टर की वो दोनों लडकियाँ --–“
“कौन दोनों !किसकी बात कर रहे हो !देखों मैं शादी-शुदा हूँ ---और तुम मुझसे ऐसी बात कर रहे हो –“ उसने बीड़ी को झट से…
ContinueAdded by somesh kumar on February 11, 2018 at 7:30am — No Comments
पुआल बनती ज़िन्दगी
जब मैं गाँव से निकला तो वह पुआल जला रही थी | ठीक उसी तरह जिस तरह वह पहले दिन जला रही थी,जब मैंने उसे इस बार,पहली बार देखा था | ना तो मैं उससे तब मिला था ना आज जाते हुए | पर मैं संतुष्ट था |मेरी अभिलाषा काफ़ी हद तक तृप्त थी |मेरे पास एक उद्देश्य था और एक जीवित कहानी थी |
पहली बार जब मैं स्टेशन के लिए निकला तभी पत्नी ने फोन करके कहा की गाड़ी का समय आगे बढ़ गया है और जैसे ही मैं गाँव में लौटा मैंने खुशी मैं शोर मचाया और वह भी चिड़ियों की…
ContinueAdded by somesh kumar on January 15, 2018 at 8:29pm — No Comments
भंडारे में भंडारी
दोपहर पाली का एक स्कूल(दिल्ली )
“जिन बच्चों को लिखना नहीं आता कॉपी लेकर मेरे पास आओ |-----------अरमान,मोहित,रितिश और शंकर तू भी |” अध्यापक सुमित ने क्लास की तरफ देखते हुए कहा
“क्या लिखवाया जाए ?” फिर अरमान की तरफ देखते हुए
“सुबह नाश्ते में क्या खा कर आए हो?”
“चाय-रोटी |”अरमान ने सपाट सा जवाब दिया
ठीक है लो ये “चाय” लिखो,ठीक-ठीक मेरी तरह बनाना |
“और मोहित तुमने क्या खाया ?”
“रात का…
ContinueAdded by somesh kumar on December 22, 2017 at 8:22pm — 3 Comments
तौल-मोल के “लव यू “
10 अक्टूबर 2009
मुझे लगता है-“अब हमें उठना चाहिए |”
उसने सहमति में सिर हिलाया और पुनीत वापस परिवार वालों के पास आ बैठा |
“क्या पसंद है !” दीदी ने धीरे से कानों में पूछा और पुनीत ने ‘ना’ में सिर हिलाया |
रास्ते में पिताजी ने झल्लाते हुए कहा-“नवाब-साहब कौन सी परी चाहिए ,बाप अच्छा खासा बुलेरो दे रहा था तीन तौला सोना |ये कहते हैं कि नौकरी-नौकरी |बड़े घर की औरतें क्या नौकरी करती जँचती है |वो आदमी ही…
ContinueAdded by somesh kumar on December 14, 2017 at 1:30am — 3 Comments
तेज़ अंधड़ के साथ खिड़कियों से पत्ते ,कीट-पतंगे और धूल कम्पार्टमेंट में घुस आई |जैसे ही हवा शांत हुई ट्रेन ने चलने का हार्न दिया |सीट पर आए पत्तों को साफ़ करने के लिए उन्होंने ज्यों ही हाथ बढ़ाया उनकी आँखे चमक उठी |हाँ ये वही वस्तु थी जिससे इर्द-गिर्द उनके बचपन का ग्रामीण जीवन पल्लवित-पोषित हुआ था |हृदयाकृति के बीचों-बीच जीवन का गर्भ यानि चिलबिल का बीज |
कुछ समय तक वो उस सुनहले बीज को निहारते रहे…
ContinueAdded by somesh kumar on December 9, 2017 at 4:38pm — 3 Comments
“यार अच्छी-खासी नौकरी है तुम्हारी ये दिन रात इंटरनेट और मोबाइल पर क्या खेल खेलते रहते हो, थोड़ा हम लोगों के पास भी बैठा करो, पिता ने बड़ी ही मित्रतापूर्वक भाव से ‘आनंद’ से पूछा !
आनंद ने अपना लैपटॉप बंद करते हुए बड़े ही सहज भाव से कहा “कुछ नहीं पिताजी आपकी समझ से बाहर है यह सब, जब मैं बड़ा आदमी बन जाऊँगा तब आपको अपने आप पता चल जाएगा !”
पिता अपना सा मुहँ लेकर खामोश हो गए तभी आनंद की माँ आ गईं और उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, बेटा सबकुछ तो ठीक चल रहा है, अच्छी खासी तन्खाव्ह है…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on June 16, 2017 at 3:30pm — 10 Comments
नफरत का रिश्ता--
पूरा गाँव पार कर गए पंडित लेकिन दुक्खू नहीं दिखा| जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते वो गाँव से बाहर निकल गए, बहुत जरुरी काम से जा रहे थे और ऐसे में दुक्खू न दिखे, यही मना रहे थे| पंडित को लगा कि लगता है गाँव के बाहर चला गया है आज, राहत की सांस ली उन्होंने| पंडित पूरे नियम कानून वाले थे, बिना नहाए धोए अन्न ग्रहण नहीं करते थे और सारी गणना करके ही घर से निकलते थे| कब किस दिशा में जाना है, कब नहीं, सब देख समझ ही किसी यात्रा की तैयारी करते थे| ख़ुदा न खास्ता अगर किसी ने छींक दिया या…
Added by विनय कुमार on July 25, 2016 at 12:49am — 9 Comments
थक गए थे जलील चचा, कोई भी उनकी बात सुनने को तैयार नहीं था| सबको बस एक ही बात समझ आ रही थी कि बड़ी बड़ी बंदूकें उठाओ और हर उस शख्श को रास्ते से हटा दो जो उनकी बात नहीं माने| पता नहीं ये उन भड़काऊ तकरीरों का असर था या उनके द्वारा दिखाए गए प्रलोभन का असर| आज उनको बेहद अफ़सोस हो रहा था, अपने ऊपर और पत्नी के ऊपर भी जो उनको अकेला छोड़कर जन्नत सिधार गयी थी| काश उनको एक औलाद दे गयी होती तो कम से कम उसे तो सही रास्ते पर चला पाते|
आज शाम की मीटिंग में फिर से सबने उनके शांति और सौहार्द के प्रस्ताव को…
Added by विनय कुमार on July 17, 2016 at 3:23pm — 8 Comments
"सर, ये लिस्ट एक बार देख लीजिए| कमेटी ने तो पास कर दिया है, बस आपका अप्रूवल चाहिए", मुख्य अधिकारी ने तीन पन्ने की लिस्ट उनके सामने रख दी|
"हूँ, अच्छा मैंने जो नाम कहे थे, वो सब तो हैं ना इसमें", एक गहरी नज़र मुख्य अधिकारी के चेहरे पर डाली उन्होंने|
"हाँ सर, वो सब तो हैं ही, आप एक बार देख लीजिए", मुख्य अधिकारी ने हकलाते हुए कहा|
"ठीक है, लिस्ट छोड़ जाओ, मैं देख लूंगा", अभी भी उन्होंने लिस्ट की तरफ नज़र भी डालने की जहमत नहीं उठाई थी|
"ओ के सर" बोलकर मुख्य अधिकारी जाने के लिए…
Added by विनय कुमार on July 3, 2016 at 4:53am — 4 Comments
बनारसी गईया चरा के लौटे और उनको चरनी पर बाँध के पीठ सीधा करने के लिए झोलंगी खटिया पर लेट गए। इस बार पानी महीनों से बरस नहीं रहा तो घाँस भी कम हो गयी है सिवान में, गर्मी अलग बढ़ गयी है। गमछी से माथे का पसीना पोंछते हुए मेहरारू को आवाज़ दिए " अरे तनी एक लोटा पानी त पिलाओ रघुआ की महतारी, बहुत गरम है आज"। दरवाज़े पर नज़र दौड़ाये तो साइकिल नहीं दिखी, मतलब रघुआ कहीं निकला है।
" कहाँ गायब हौ तोहार नवाब, खेत बारी से कउनो मतलब त नाहीं हौ, कम से कम गईया के ही चरा दिहल करत", पानी लेते हुए मेहरारू से…
Added by विनय कुमार on February 13, 2016 at 11:48pm — 6 Comments
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