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All Blog Posts Tagged 'कविता' (987)

तुम्हीं से सुबहें, तुम्हीं से शामें,

तुम्हीं से सुबहें, तुम्हीं से शामें,

हर एक लम्हा, तुम्हारी बातें,

हैं साथ मेरे, हर एक पल में

तुम्हारी यादें, तुम्हारी बातें I



मेरी निगाहों में तेरा चेहरा,

ये दिल और धड़कन हैं संग जैसे,

तू संग चलता है ऐसे मेरे,

है चलता ये आसमाँ संग जैसे I



हूँ भीगा मैं ऐसे तेरी खुश्बुओं से,

हो बादल कोई डूबा बूँदों में जैसे,

यूँ छाया तेरा इश्क़ है मेरे दिल पे,

हो सिमटी कोई झील धुन्धों में जैसे I



तुझ ही में पाया मैंने ख़ुदा को,

ख़ुदा…

Added by Veerendra Jain on November 12, 2010 at 12:30pm — 3 Comments

हौसला

दीपक की देखी बाती

तेल में डूबी निज तन जलाती

महा तमस में अकेले ही

उजियारा फैलाती

सबका हौसला बढाती

देखी दीपक की बाती...

एक सैनिक

जो युद्ध-भूमि में पड़ा है

मातृभूमि के लिए

आखिरी साँस तक लड़ा है

उसके सीने में देशभक्त का

गौरव जड़ा है ....



हम युद्ध जीतेंगे हर बार

दुश्मन से भी और

बुराइयों से भी...

ऐ मेरे रहबर !

समझौते की मेज़ पर

अपना मनोबल न गिराना

खुद के आत्म सम्मान के लिए

देश को दांव पर न… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on November 7, 2010 at 11:00pm — No Comments

विश्वास

विश्वास
ढके शब्दों में नंगे हमाम पर लिखेंगे ,
समय थम कर पढ़ेगा इतना प्राणवान लिखेंगे,
हमने जब ठाना तो तस्वीर का रुख बदलकर माना,
हम सोच का एक स्रोत है, जब भी निकले अपनी जगह बना के माना
कुछ इतना खास कर गुजरेंगे ,
जब सचे-सच्चे अहसास शब्दों में ढालेंगे ,
हम वो जड़ है, जब चाहा तभी जड़ हुए ,जब चाहा जड़ कर दिया
बंद शब्दों में खुले आसमान पर लिखेंगे.
अलका तिवारी

Added by alka tiwari on November 4, 2010 at 2:01pm — 5 Comments

दस्तक

मेरे दरवाजे पे दस्तक हुई,

मैंने अन्दर से ही पूछा,

आप कौन हो,

उत्तर मिला,

सुख समृद्धि,

झट से दरवाजा खोला,

अन्दर आइये उनसे बोला,

उनका जबाब था,

मैं हमेशा से उनके साथ रहता हूँ,

जो प्यार से मिल कर रहते हैं,

जहा भी मेल मिलाप रहेगा,

वहाँ मैं दस्तक देता रहूँगा,



एक दिन घर में हो गया,

अपनों में झगड़ा,

बिना मतलब का,

बाते बढ़ी,

कोई भी किसी काम में,

विचार लेना देना छोड़ दिया,

घर को विपत्ति के रूप में,

कलह जकड़… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on November 3, 2010 at 12:30pm — 3 Comments

वीरगति.....

सन्नाटे की साँय-साँय

झींगुर की झाँय-झाँय

सूखे पत्तों पे कीट की सरसराहट

दर्जनों ह्रदयों की बढाती घबराहट

हरेक मानो मौत की डगर पर...

चलने को अग्रसर...

पपडाए होंठ सूखा हलक

ज़िन्दगी नहीं दूर तलक

चाँद की रौशनी भी

हो चली मद्धम जहाँ..

ऐसे मौत के घने जंगल हैं यहाँ,

हाथ में बन्दूक,ऊँगली घोड़े पर

ह्रदय है विचलित पर स्थिर है नज़र..

ना जाने और कितनी साँसें लिखी हैं तकदीर में..

एक बार फिर तुझे देख लूं तस्वीर में..

जेब को अपनी… Continue

Added by Roli Pathak on November 2, 2010 at 11:00pm — 3 Comments

दो बैल...

कल मर गया

किशनु का बूढा बैल,

अब क्या होगा...

कैसे होगा...

चिंतातुर,सोचता-विचारता

मन ही मन बिसूरता

थाली में पड़ी रोटी

टुकड़ों में तोड़ता

सोचता,,,बस सोचता...

बोहनी है सिर पर,

हल पर

गडाए नज़र,

एक ही बैल बचा...

हे प्रभु,

ये कैसी सज़ा...!!!

स्वयं को बैल के

रिक्तस्थान पे देखता..

मन-ही-मन देता तसल्ली

खुद से ही कहता,

मै ही करूँगा...हाँ मै ही करूँगा...

बैल ही तो हूँ मै,

जीवन भर ढोया बोझ,

इस हल का भी… Continue

Added by Roli Pathak on November 2, 2010 at 2:00pm — 3 Comments

सहारा

मैंने स्वीकार तो कर ली है हार
किन्तु मैं कभी हारा नहीं हूँ
मेरी अपने ही दृष्टि में सही
मैं पूर्वाग्रहों में घिरा नहीं हूँ
मेरी हार में भी विजय हुई है
मैं इस मर्म को बिसरा नहीं हूँ
तुमसे तर्क वितर्क नहीं करता
किन्तु मैं कोई बेचारा नहीं हूँ
मैं हँसता भी संजीदा ही हूँ
किसी गम का मारा नहीं हूँ
मेरे जीवन में बहुत सुख है
दर्द का तलाशता सहारा नहीं हूँ

Added by Udaya Shankar Pant on November 1, 2010 at 9:57pm — 2 Comments

भर जाएगा मेरा समंदर . . . .

हाँ तुमने ही तो किया था वादा,

मेरा समंदर भर दोगे।

जाने किस - किस से तुमने,

माँगा इसके लिए स्नेह।

पर अब भी रीता है,

मेरा समंदर, अधभरा . . .

उजली आँखों से निहारता,

टकटकी लगाए देखता।

शायद तुम अभी भी,

भरने को उत्साहित हो।

मांग लो किसी प्रेमी से,

थोड़ा और स्नेह।

न दे तो छीनो, मिटा दो,

प्रेम की बसती किसी की दुनिया।

उजाड़ दो किसी का घर,

और भर दो मेरा समंदर।

चाहे उसमें प्रेम की जगह,

किसी की खुशियों की दाह हो।

हाँ…

Continue

Added by Jaya Sharma on November 1, 2010 at 6:00am — 2 Comments

हूँ अभी गर्भ में ::: ©



► हूँ अभी गर्भ में ::: ©



हूँ अभी गर्भ में

ले रही आकर

हुआ ही है शुरू

स्पंदन ह्रदय का

कि जान लिया

कौन हूँ मैं

जताने लायक

हैं यंत्र नए

क्या करती



तैयार हूँ कट जाने को

आएगा जोड़ा यंत्रों का

होगी कोख कलंकित

कर रहे हैं पुर्जा-पुर्जा

अलग मुझे माँ से

न सोच न ही समझ है मुझे

करूँ क्रंदन कैसे

पर दर्द समझती हूँ

तडपा रहा कटना अंगों का

बिन… Continue

Added by Jogendra Singh जोगेन्द्र सिंह on November 1, 2010 at 1:00am — 2 Comments

उफ्फ..! ये सभ्य समाज के लोग..

उफ्फ..! ये सभ्य समाज के लोग..

कहते हैं इंसान स्वयं को

पर इंसानियत को समझ ना पाएँ I



जिस माँ ने पाल-पोसकर

इनको इतना बड़ा बनाया

बाँधकर उनको जंज़ीरों में

जाने कितने बरस बिताएँ I

उफ्फ..! ये सभ्य समाज के लोग..



तेईस बेंचों की कक्षा इनको

भीड़ भरा इक कमरा लगती

पर डिस्को जाकर

हज़ारों की भीड़ में

अपना जश्न खूब मनाएँ I

उफ्फ..! ये सभ्य समाज के लोग..



कॉलेज में नेता के आगे

बाल मज़दूरी पर

वाद विवाद कराएँ

और… Continue

Added by Veerendra Jain on October 30, 2010 at 5:30pm — 3 Comments

तुम हो कौन ?

आकाश के उस कोने मे जहाँ मेरी दृष्टि की सीमा है….

देखता हूँ किसी ना किसी पक्षी को नित्य ही ….

क्या यह मेरा अरमान है ?

एकाकी ही दूर तक उड़ते जाना.. सत्य की खोज मे….

क्या यह मेरे मन का भटकाव है ?



कभी उत्साह की बरसात होती है…

आशाओं का सवेरा

मन के अंधेरे को झीना कर जाता है…..

और तब दिखते हो तुम मुझे,

आनंद मे नहाए एकदम तरोताज़ा

सूरजमुखी का एक फूल…

यह नही है कोई भ्रम या भूल.



वर्जनाओं के कड़े पहरे मे

जब दीवाले कुछ मोटी होजाती… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 29, 2010 at 9:00am — 1 Comment


सदस्य टीम प्रबंधन
जिजीविषा

नीरव-गुमसी चट्टानों पर

कटी-पिटी उभरी रेखाएँ

उन्मत्त काल का

हिंस्र वज्र-नख

जगह-जगह से नोंच गया है..।



अभिलाषा है कुछ विक्षिप्त

स्वप्न बच गए जूठे-जूठे

मसले थकुचे नुचे-चुथे से

स्वप्न बच गए जूठे-जूठे



धूसर उपलों की धूप तापती

विवश बिसुरती ध्वनि अकेली

अशक्त नव-जन्मी बाला-सी पसरी..

उठा सके बस भार श्वाँस का निश्चय का जी तोड़ परिश्रम..



कि,

मुँदी

उठी

झपकी

ठिठकी

रुक-ठहर

परख

तकती... .. तबतक… Continue

Added by Saurabh Pandey on October 28, 2010 at 6:00am — 3 Comments

मेरी ख्वाइश --दीपक बनना

अग्नि की लौ में सिमटकर क्यों न एक दीपक बन जाऊं

तम प्रकाश की बनकर जली तम का नाम मिटाऊं ,,



जलकर खुद ही दूजों को , मैं रोशन कर जाऊं

छोड़ स्वार्थ परोपकार में,मैं अपना जीवन बिताऊं ,,



खुद के आभाव मिटा सकूँ न पर दूजों के आभाव मिटाऊं

जीता रहूँ दूजो के लिए , दूजों के लिए ही मर जाऊं ,,



ज्वाला है दीपक की रानी ,गीत ज्वाला के गाऊँ

गिने मुझे… Continue

Added by Ajay Singh on October 27, 2010 at 3:30pm — No Comments

कविता-मैं दधीची दान लो

जो सहा वो कहा

मौन है ये ज़ुबां

दर्द की इन्तेहाँ |



एक कली गयी कहाँ

थक गया बाग़बां

हमसफ़र चल रहा

रास्ता जल रहा |



किसके हाथ असलहा

कौन हाँथ मल रहा

आज है कल कहाँ

आँख में जल कहाँ

हर तरफ प्यास है

गाँव में नल कहाँ |



योजना मृगतृष्णा

नैतिकता हे कृष्णा

ज़ोर ज़बर चल रहा

फैसला टल रहा

लाल सूर्य ढल रहा

गर्म ग्रह गल रहा |



एक सवाल है खड़ा

किससे कौन है बड़ा

गर्भ क्यों पल रहा

चल रही… Continue

Added by Abhinav Arun on October 27, 2010 at 3:00pm — 1 Comment

था उसके चेहरे पे सकून ,

था उसके चेहरे पे सकून ,

माँ का आया था फोन ,

पाँच सौ रुपया मिल गया ,

तीन सौ राशन वाले को दिया ,

बाकी में छोटे भाई का पैंट ,

संग में सिलवा दिया हैं शर्ट ,

आज स्कूल भेजा हैं उसको ,

खरीद कर दिया हैं स्लेट ,

भाई स्कूल गया ये जान कर ,

था उसके चेहरे पे सकून !



उम्र के दसवे साल में ,

काम करता चाय की दुकान में .

घर से दूर बहुत दूर ,

हो कर आया था मजबूर ,

सपना था कुछ आँखों में ,

बडपन थी उसकी बातो में ,

पापा के इंतकाल के… Continue

Added by Rash Bihari Ravi on October 27, 2010 at 2:00pm — No Comments

दूर पहाड़ों से आया

मैं दूर पहाड़ों से आया



मैं दूर पहाड़ों से आया

जहाँ सर्द हवाएं बहती हैं

है व्यास पार्वती का संगम

जहाँ यादें मेरी बसती हैं

मेरे अपनें सभी वहीँ हैं

लेकिन मैं हूँ सबसे दूर

यह था किस्मत का लिखा

नहीं किसी का कसूर

ना जानें कब जा पाऊंगा

बापिस उन खूबसूरत फिजाओं में

कोई याद तो करता होगा

मुझको मेरे गाँव में

'दीपक शर्मा' था उस वक़्त मैं

अब हूं 'दीपक कुल्लुवी'

शक्ल-ओ-सूरत बदली,तखल्लुस बदला

लेकिन सीरत ना बदली

लेकिन… Continue

Added by Deepak Sharma Kuluvi on October 27, 2010 at 11:00am — 3 Comments

बड़े खामोश रहते हैं अभी हम,



बड़े खामोश रहते हैं अभी हम,

सुना है लोग अब भी बोलते हैं .

बड़े दिल से लगाकर दिल यहाँ पर,

सुना है लोग अब दिल तोड़ते हैं.



कभी अमुआ की अमराई पे कोयल ,

कुहू कुहु के गाती गीत थी पर ,

सुबह की शाख पे बैठी कोयल है ,

नगर में गीत कागा छेडते हैं.



धनक खिलती दिखी थी कल जहां पर ,

आज मरघट सा वो पनघट रुआंसा .

जो बुझाया करे थे प्यास कल तक,

आज वोही क्यों प्यासा छोड़ते हैं



वो सागर रूप के… Continue

Added by DEEP ZIRVI on October 24, 2010 at 9:30pm — 3 Comments

अब तो बस नयन बरसते हैं

सावन की घटा घहराती हैं,

मन में हलचल कर जाती हैं ..

विरही मन छोड़ रूठना अब,

प्रियतम की याद सताती है...

काले पीले बादल आते,

वर्षा की आशा ले आते,

मन हरा भरा हो जाता तब,

प्रियतम फिर से घर को आते,

प्रियतम की यादों को सावन,

फिर घेर घेर ले आता है,

दर्शन की अमित चाह में अब,

जीवन उत्साह बढ़ाता है ...

मन व्याकुल है तन आकुल है,

है कंठ रुद्ध आशा अपूर्ण..

प्रिय आँखों में बस जाओ तो,

जीवन हो… Continue

Added by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on October 24, 2010 at 3:30pm — 4 Comments

मौत...

मौत !

तिमिर की गहराईयों सी
भयानक
जीवन को निगलने को
तत्पर
जीवन पर्यंत
लक्षित यह अंत

मौत !!
शारीरिक शक्ति का ह्रास
पोषक तत्वों का विनाश
या
काया का परिवर्तन
पुरातन से नूतन

मौत !!!
आती है चुपके-चुपके
प्राण को निगलने के लिए
मिट्टी को मिट्टी में
मिलाने के लिए

मौत !!!!
नहीं... नहीं... !
मौत नहीं मोक्ष
कष्टों से मुक्ति का
जीवन का अंतिम लक्ष्य

~शशि

Added by Shashi Ranjan Mishra on October 21, 2010 at 8:28pm — 11 Comments

अर्घ्य

सांझ की पंचायत में..

शफ़क की चादर में लिपटा

और जमुहाई लेता सूरज,

गुस्से से लाल-पीला होता हुआ

दे रहा था उलाहना...



'मुई शब..!

बिन बताये ही भाग जाती है..'

'सहर भी, एकदम दबे पांव

सिरहाने आकर बैठ जाती है..'



'और ये लोग-बाग़, इतनी सुबह-सुबह

चुल्लुओं में आब-ए-खुशामद भर-भर कर

उसके चेहरे पे छोंपे क्यूँ मारते हैं?"



उफक ने डांट लगाई-

'ज्यादा चिल्ला मत..

तेरे डूबने का वक़्त आ गया..'



माँ समझाती थी-

"उगते…

Added by विवेक मिश्र on October 21, 2010 at 1:00pm — 10 Comments

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