For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Featured Blog Posts (1,174)

ग़ज़ल ( जाना है एक दिन न मगर फिक्र कर अभी...)

(221 2121 1221 212)

जाना है एक दिन न मगर फिक्र कर अभी

हँस,खेल,मुस्कुरा तू क़ज़ा से न डर अभी

आयेंगे अच्छे दिन भी कभी तो हयात में

मर-मर के जी रहे हैं यहाँ क्यूँँ बशर अभी

हम वो नहीं हुज़ूर जो डर जाएँँ चोट से

हमने तो ओखली में दिया ख़ुद ही सर अभी

सच बोलने की उसको सज़ा मिल ही जाएगी 

उस पर गड़ी हुई है सभी की नज़र अभी

हँस लूँ या मुस्कुराऊँ , लगाऊँ मैं क़हक़हे

ग़लती से आ गई है ख़ुशी मेरे घर…

Continue

Added by सालिक गणवीर on June 30, 2020 at 8:00am — 14 Comments

चीन के नाम (नज़्म - शाहिद फ़िरोज़पुरी)

212  /  1222  /  212  /  1222

दुनिया के गुलिस्ताँ में फूल सब हसीं हैं पर

एक मुल्क ऐसा है जो बला का है ख़ुद-सर

लाल जिसका परचम है इंक़लाब नारा है

ज़ुल्म करने में जिसने सबको जा पछाड़ा है

इस जहान का मरकज़ ख़ुद को गो समझता है

राब्ता कोई दुनिया से नहीं वो रखता है

अपनी सरहदों को वो मुल्क चाहे फैलाना

इसलिए वो हमसायों से है आज बेगाना

बात अम्न की करके मारे पीठ में खंजर

और रहनुमा उसके झूट ही बकें दिन भर

इंसाँ की तरक़्क़ी…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on July 3, 2020 at 1:00am — 10 Comments

550 वीं रचना मंच को सादर समर्पित : सावनी दोहे :

गौर वर्ण पर नाचती, सावन की बौछार।

श्वेत वसन से झाँकता, रूप अनूप अपार।। १



चम चम चमके दामिनी, मेघ मचाएं शोर।

देख पिया को सामने, मन में नाचे मोर।।२



छल छल छलके नैन से, यादों की बरसात।

सावन की हर बूँद दे, अंतस को आघात।।३



सावन में प्यारी लगे, साजन की मनुहार।

बौछारों में हो गई, इन्कारों की हार।। ४



कोरे मन पर लिख गईं, बौछारें इतिहास।

यौवन में आता सदा, सावन बनकर प्यास।।५



भावों की नावें चलीं, अंतस उपजा प्यार।

बौछारों…

Continue

Added by Sushil Sarna on June 30, 2020 at 9:30pm — 4 Comments

ग़ज़ल (वही मंज़र है और मैं) - शाहिद फ़िरोज़पुरी

बहरे मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़

221  / 2121  / 1221 /  212

बद-हालियों का फिर वही मंज़र है और मैं

इक आज़माइशों का समंदर है और मैं [1]

अरमान दिल के दिल में घुटे जा रहे हैं सब

महरूमियों का एक बवंडर है और मैं…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on June 16, 2020 at 11:54am — 17 Comments

ईद कैसी आई है!

ईद कैसी आई है ! ये ईद कैसी आई है !

ख़ुश बशर कोई नहीं, ये ईद कैसी आई है !

जब नमाज़े - ईद ही, न हो, भला फिर ईद क्या,

मिट गये अरमांँ सभी, ये ईद कैसी आई है!

दे रहा कोरोना कितने, ज़ख़्म हर इन्सान को,

सब घरों में क़ैैद हैं, ये ईद कैसी आई है!

गर ख़ुदा नाराज़ हम से है, तो फिर क्या ईद है,

ख़ौफ़ में हर ज़िन्दगी, ये ईद कैसी आई है!

रंज ओ ग़म तारी है सब पे, सब परीशाँ हाल हैं,

फ़िक्र में रोज़ी की सब, ये ईद कैसी आई…

Continue

Added by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on May 25, 2020 at 6:00am — 9 Comments

"ओबीओ की सालगिरह का तुहफ़ा"

2122 2122 212

.

देख साँसों में बसा है ओ बी ओ

मेरी क़िस्मत में लिखा है ओ बी ओ




कितने आए और कितने ही गए

शान से अब तक खड़ा है ओ बी ओ




बढ़ गई तौक़ीर मेरी और भी

तू मुझे जब से मिला है ओ बी ओ




हों वो 'बाग़ी' या कि भाई 'योगराज'

तू सभी का लाडला है ओ बी ओ



भाई 'सौरभ' शान से कहते…

Continue

Added by Samar kabeer on April 1, 2020 at 9:00pm — 18 Comments

छुड़ाना है कभी मुमकिन बशर का ग़म से दामन क्या ? (७० )

(1222 1222 1222 1222 )

छुड़ाना है कभी मुमकिन बशर का ग़म से दामन क्या ?

ख़िज़ाँ के दौर से अब तक बचा है कोई गुलशन क्या ?

**

कभी आएगा वो दिन जब हमें मिलकर सिखाएंगे

मुहब्बत और बशरीयत यहाँ शैख़-ओ-बरहमन क्या ?

**

क़फ़स में हो अगर मैना तभी क़ीमत है कुछ उसकी

बिना इस रूह के आख़िर करेगा ख़ाना-ए-तन* क्या ?(*शरीर का भाग )

**

निग़ाह-ए-शौक़ का दीदार करने की तमन्ना है

उठेगी या रहेगी बंद ये आँखों की चिलमन क्या ?

**

अगर बेकार हैं तो काम ढूंढे या करें बेगार…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on March 18, 2020 at 12:00am — 6 Comments

किसी आजाद पन्छी को न थी मन्जूर पाबन्दी -गजल

१२२२ /१२२२/ १२२२ /१२२२/

*

कभी कतरों में बँटकर  तो  कभी सारा गिरा कोई

मिला जो माँ का आँचल तो थका हारा गिरा कोई।१।

*

कि होगी कामना  पूरी किसी  की लोग कहते हैं

फलक से आज फिर टूटा हुआ तारा गिरा कोई।२।

*

गमों की मार से लाखों सँभल पाये नहीं  लेकिन

सुना हमने यहाँ  खुशियों  का भी मारा गिरा कोई।३।

*

किसी आजाद पन्छी को न थी मन्जूर…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2020 at 6:17am — 7 Comments


मुख्य प्रबंधक
कोरोना के विरुद्ध पाँच दोहे (गणेश बाग़ी)

(1)

सुनी सुनाई बात पर, मत करना विश्वास ।

चक्कर में गौमूत्र के, थम ना जाए श्वास ।।

(2)

कोरोना से तेज अब, फैल रही अफ़वाह ।

सोच समझ कर पग रखो, कठिन बहुत है राह ।।

(3)

कोरोना के संग यदि, लड़ना है अब जंग ।

धरना-वरना बस करो, बंद करो सत्संग ।।

(4)

साफ सफाई स्वच्छता, सजग रहें दिन रात ।

दें साबुन से हाथ धो, कोरोना को मात ।

(5)

मुश्किल के इस दौर में, मत घबराओ यार ।

बस वैसा करते रहो, जो कहती सरकार ।।

(मौलिक एवं…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2020 at 10:00am — 4 Comments

तृप्ति

तृप्ति

चहुँ ओर उलझा कटा-पिटा सत्य

कितना आसान है हर किसी का

स्वयं को क्षमा कर देना

हो चाहे जीवन की डूबती संध्या

आन्तरिक द्वंद्व और आंदोलन

मानसिक सरहदें लाँघते अशक्ति, विरोध

स्वयं से टकराहट

व्यक्तित्व .. यंत्रबद्ध खंड-खंड

जब देखो जहाँ देखो हर किसी में

पलायन की ही प्रवृत्ति

एक रिश्ते से दूसरे ...

एक कदम इस नाव

एक ... उस…

Continue

Added by vijay nikore on May 13, 2020 at 5:30am — 4 Comments

ख़ुदा ख़ैर करे (ग़ज़ल)

रमल मुसम्मन सालिम मख़्बून महज़ूफ़ / महज़ूफ़ मुसक्किन

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़इलुन/फ़ेलुन

2122 1122 1122 112 / 22

ये सफ़र है बड़ा दुश्वार ख़ुदा ख़ैर करे

राह लगने लगी दीवार ख़ुदा ख़ैर करे [1]

इस किनारे तो सराबों के सिवा कुछ भी नहीं

देखिए क्या मिले उस पार ख़ुदा ख़ैर करे [2]

लोग खाते थे क़सम जिसकी वही ईमाँ अब

बिक रहा है सर-ए-बाज़ार ख़ुदा ख़ैर करे [3]

ये बग़ावत पे उतर आएँगे जो उठ बैठे

सो रहें हाशिया-बरदार ख़ुदा ख़ैर करे…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on March 20, 2020 at 7:00pm — 16 Comments

कान और कांव कांव(लघुकथा)

कान और कांव कांव 

*****

एक आदमी(नकाब में) :तेरे कान कौवे ले गए।

दूसरा:एं?

पहला:और क्या?वो देखो, कौवे उड़ते जा रहे हैं।

दूसरा व्यक्ति दो कौवों के पीछे दौड़ने लगा। उसके पीछे एक एक कर लोग दौड़ने लगे। कारवां बन गया....गुबार देखते बनता था ... कारवां के पिछले हिस्से में दौड़ते हांफते लोग एक दूसरे से सवाल करते कि आखिर वे कहां जा रहे हैं,क्या कर रहे हैं? हां, आगे के हिस्से की आवाज में आवाज जरूर मिलाते कि ' वापस दो,वापस दो...।' कोई कोई तो ' वापस लो..वापस लो..' की भी आवाज…

Continue

Added by Manan Kumar singh on January 11, 2020 at 2:58pm — 6 Comments

वीर जवान

फ़ाइलातुन  फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

2122   2122 2122

धमनियों में दौड़ता यूँ तो सदा है ।।

रक्त है जो देश हित में खोलता है ।।

हौसला उस वीर का देखो ज़रा तुम ।

गोलियों की धार में सीना तना है ।।…

Continue

Added by प्रशांत दीक्षित 'प्रशांत' on January 25, 2020 at 5:33pm — 3 Comments


मुख्य प्रबंधक
अतुकांत कविता : प्रगतिशील (गणेश जी बागी)

अतुकांत कविता : प्रगतिशील

अकस्मात हम जा पहुँचे

एक लेखिका की कविताओं पर

जिसमे प्रमुखता से उल्लेखित थे

मर्द-औरत के गुप्त अंगों के नाम

लगभग सभी कविताओं में...

पूरी तरह से किया गया था निर्वहन

उस परंपरा को

जहाँ दी जाती हैं गालियाँ

समूची मर्द जाति को

एक ही कटघरे में खड़ा कर

प्रस्तुत किया जाता है विशिष्ट उदाहरण

चंद मानसिक विक्षिप्तों…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 30, 2020 at 7:30pm — 6 Comments

नियति का आशीर्वाद

नियति का आशीर्वाद

हमारे बीच

यह चुप्पी की हलकी-सी दूरी

जानती हो इक दिन यह हलकी न रहेगी

परत पर परत यह ठोस बनी

धातु बन जाएगी

तो क्या नाम देंगे हम उस धातु को ?…

Continue

Added by vijay nikore on January 27, 2020 at 12:30pm — 4 Comments

मनुष्य और पयोनिधि

आओ और निकट से देखो

हिलोरें लेते इस पारावार को

हमारा जीवन भी ऐसा ही है

नीर जैसा स्वच्छ और निर्मल

 

जब पयोधि क़ी लहरें छूती हैं

रेत क़ी फ़ैली हुई कगार को

तब वह समेट लेती सब कुछ

और ले जाती है पयोनिधी में

 

हम मनुष्य भी तो ऐसे ही हैं

जब हम प्रेम में होते हैं तब

ढूंढते रहते हैं बस एक साहिल

ताकि समेट सकें स्वयं में सब कुछ

 

किंतु उदधि और मनुज क़ा प्रेम

उदर में ज्य़ादा काल नहीं…

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on January 2, 2020 at 12:30pm — 6 Comments

स्वप्न-मिलन

स्वप्न-मिलन

रात ... कल रात

कटने-पिटने के बावजूद

बड़ी देर तक उपस्थित रही

नींद के धुँधलके एकान्त में

पिघलते मोम-सा

कोई परिचित सलोना सपना बना…

Continue

Added by vijay nikore on January 7, 2020 at 6:30am — 8 Comments

आया है जनवरी (ग़ज़ल)

(221 2121 1221 212)

(बहर मज़ारे मुसम्मन अख़रब मक्फूफ़ महज़ूफ़)

अब के अजीब रंग में आया है जनवरी

ग़म सब पुराने साथ में लाया है जनवरी

बे-नूर सुब्ह-ओ-शाम हैं वीरां हैं रास्ते

तू भी किसी के ग़म का सताया है जनवरी

ना दिन में आफ़्ताब न महताब रात में

मत पूछिये कि कैसे निभाया है जनवरी

क़हर-ओ-सितम है ठंड का जारी उसी तरह

कोहरा-ओ-धुंद और भी लाया है जनवरी

शादाब ना शजर हों तो क्या लुत्फ़-ए-ज़िन्दगी

तुझको सितम…

Continue

Added by रवि भसीन 'शाहिद' on January 7, 2020 at 11:41am — 6 Comments

तू भी निजाम नित नया मत अब कमाल कर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/२२२/१२१२

पर्दा सलीके से बहुत मकसद पे डाल कर

वो लाये सबको देखिए घर से निकाल कर।१।

कितना किया अहित है यूँ अपने ही देश का

लोगों ने उसके नाम  पर  पत्थर उछाल कर।२।

वंशज  उन्हीं  के  कर  रहे  जर्जर  इसे यहाँ

रखना जो कह गये थे ये कश्ती सँभाल कर।३।

कर्तब तेरे  किसी  को  यूँ  आते  समझ  नहीं

तू भी निजाम नित नया मत अब कमाल कर।४।

कर  ली  है  पाँच   साल  यूँ   नेतागरी  बहुत

बच्चों सरीखा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2020 at 4:26pm — 11 Comments

थामूँ तोरी बाँहे गोरी / तिन्ना छंद

2 2 2 2

चोरी-चोरी।
ओ री छोरी।
थामूँ तोरी।
बाँहे गोरी।

जागे नैना।
पूरी रैना।
खोएँ चैना।
भूले बैना।

आजा चूमूँ।
थोड़ा झूमूँ।
सांसे घोलूँ।
तेरा होलूँ।

- विमल शर्मा 'विमल'
स्वरचित

Added by विमल शर्मा 'विमल' on October 16, 2019 at 12:59pm — 7 Comments

Featured Monthly Archives

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
6 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
6 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Saturday
PHOOL SINGH added a discussion to the group धार्मिक साहित्य
Thumbnail

महर्षि वाल्मीकि

महर्षि वाल्मीकिमहर्षि वाल्मीकि का जन्ममहर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में बहुत भ्रांतियाँ मिलती है…See More
Apr 10
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी

२१२२ २१२२ग़मज़दा आँखों का पानीबोलता है बे-ज़बानीमार ही डालेगी हमकोआज उनकी सरगिरानीआपकी हर बात…See More
Apr 10

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service