Surender insan's Posts - Open Books Online2024-03-29T09:13:24Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsanhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991291641?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=3nh9dfqhl9syl&xn_auth=no"जब तुम्हारें शह्र में आना हुआ"tag:www.openbooksonline.com,2019-09-20:5170231:BlogPost:9923982019-09-20T07:30:00.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
<p>2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>इस कदर था इश्क़ में डूबा हुआ।<br></br>चढ़ गया सूली पे वो हँसता हुआ।।</p>
<p></p>
<p>अब कहूँ क्या इश्क़ में क्या क्या हुआ।<br></br>हर कदम पर इक नया धोखा हुआ।।</p>
<p></p>
<p>जब किसी को इश्क़ में धोखा हुआ।<br></br>फिर उसे देखा नहीं हँसता हुआ।।</p>
<p></p>
<p>क्या बताऊँ मैं तुझे क्या क्या हुआ।<br></br>है मेरा जीवन बहुत उलझा हुआ।।</p>
<p></p>
<p>और कुछ तेरे सिवा दिखता नहीं।<br></br>इस कदर मैं तेरा दीवाना हुआ।।</p>
<p></p>
<p>मानता कब है किसी की बात वो।<br></br>वक़्त जिसका हो बुरा आया…</p>
<p>2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>इस कदर था इश्क़ में डूबा हुआ।<br/>चढ़ गया सूली पे वो हँसता हुआ।।</p>
<p></p>
<p>अब कहूँ क्या इश्क़ में क्या क्या हुआ।<br/>हर कदम पर इक नया धोखा हुआ।।</p>
<p></p>
<p>जब किसी को इश्क़ में धोखा हुआ।<br/>फिर उसे देखा नहीं हँसता हुआ।।</p>
<p></p>
<p>क्या बताऊँ मैं तुझे क्या क्या हुआ।<br/>है मेरा जीवन बहुत उलझा हुआ।।</p>
<p></p>
<p>और कुछ तेरे सिवा दिखता नहीं।<br/>इस कदर मैं तेरा दीवाना हुआ।।</p>
<p></p>
<p>मानता कब है किसी की बात वो।<br/>वक़्त जिसका हो बुरा आया हुआ।।</p>
<p></p>
<p>जख़्म दिल के फिर हरे होने लगें।<br/>जब तुम्हारे शह्र में आना हुुुआ ।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित।</p>दोहेtag:www.openbooksonline.com,2019-04-04:5170231:BlogPost:9799812019-04-04T09:00:00.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
<p></p>
<p>रक्षा करते देश की,दे कर अपनी जान।</p>
<p>वीर जवानों का करो,दिल से तुम सम्मान।।</p>
<p></p>
<p>बाहर से उजले दिखें, मन में भरे विकार।</p>
<p>ऐसे लोगों पर कभी,करना न ऐतबार।।</p>
<p></p>
<p>ये माना मैं जी रहा,तेरे जाने बाद।</p>
<p>लेकिन मुझको हर समय,तेरी आती याद।।</p>
<p></p>
<p>जीवन के पथ पर तुम्हें,छाँव मिले या धूप।</p>
<p>हर पल आगे ही बढ़ो,सुख दुख में सम रूप।।</p>
<p></p>
<p>मदिरा बहुत बुरी बला,किसने की ईजाद।</p>
<p>इसके कारण हो रहे,कितने घर बरबाद।।</p>
<p></p>
<p>थोड़े से भी हो…</p>
<p></p>
<p>रक्षा करते देश की,दे कर अपनी जान।</p>
<p>वीर जवानों का करो,दिल से तुम सम्मान।।</p>
<p></p>
<p>बाहर से उजले दिखें, मन में भरे विकार।</p>
<p>ऐसे लोगों पर कभी,करना न ऐतबार।।</p>
<p></p>
<p>ये माना मैं जी रहा,तेरे जाने बाद।</p>
<p>लेकिन मुझको हर समय,तेरी आती याद।।</p>
<p></p>
<p>जीवन के पथ पर तुम्हें,छाँव मिले या धूप।</p>
<p>हर पल आगे ही बढ़ो,सुख दुख में सम रूप।।</p>
<p></p>
<p>मदिरा बहुत बुरी बला,किसने की ईजाद।</p>
<p>इसके कारण हो रहे,कितने घर बरबाद।।</p>
<p></p>
<p>थोड़े से भी हो नहीं,बचने के आसार।</p>
<p>अपने दुश्मन पर करें,ऐसा तेज प्रहार।।</p>
<p></p>
<p>हर कोई कहता यही,जीने के दिन चार।</p>
<p>आओ थोड़ा यत्न कर,इन में भर ले प्यार।।</p>
<p></p>
<p>जिसके रहते हो गयी,चोरों की भरमार।</p>
<p>कौन कहे उसको भला,अच्छा चौकीदार।।</p>
<p></p>
<p>जो रोके बढ़ती हुई,चोरों की रफ़्तार।</p>
<p>उसको ही तो सब कहें, अच्छा चौकीदार।।</p>
<p></p>
<p>हम तो दुनिया से चले, करके पूरा फ़र्ज़।</p>
<p>सोचो उतरे किस तरह, तुम पर है जो कर्ज़।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>"किसी के साथ भी धोखा नहीं करतें"tag:www.openbooksonline.com,2018-12-11:5170231:BlogPost:9649902018-12-11T11:00:00.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
<p> 1222 1222 1222</p>
<p><br/> सुकूँ वो उम्र भर पाया नहीं करतें।<br/> बड़ों की बात जो माना नहीं करतें।।</p>
<p></p>
<p>बुजुर्गों की नसीहत ये पुरानी है।<br/> बिना सोचे कभी बोला नहीं करतें।।</p>
<p></p>
<p>सफल होते हमेशा लोग वो ही जो।<br/>किसी की बात सुन बहका नहीं करतें।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>जिन्हें आदत हमेशा जीतने की हो।<br/> वो मैदां छोड़ कर भागा नहीं करतें।।</p>
<p></p>
<p>हमेशा से रहा इक ही उसूल अपना।<br/> किसी के साथ भी धोखा नहीं करतें।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p> 1222 1222 1222</p>
<p><br/> सुकूँ वो उम्र भर पाया नहीं करतें।<br/> बड़ों की बात जो माना नहीं करतें।।</p>
<p></p>
<p>बुजुर्गों की नसीहत ये पुरानी है।<br/> बिना सोचे कभी बोला नहीं करतें।।</p>
<p></p>
<p>सफल होते हमेशा लोग वो ही जो।<br/>किसी की बात सुन बहका नहीं करतें।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>जिन्हें आदत हमेशा जीतने की हो।<br/> वो मैदां छोड़ कर भागा नहीं करतें।।</p>
<p></p>
<p>हमेशा से रहा इक ही उसूल अपना।<br/> किसी के साथ भी धोखा नहीं करतें।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>"गर अदब में नाम की दरकार है"tag:www.openbooksonline.com,2018-10-01:5170231:BlogPost:9515002018-10-01T06:30:00.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
<p></p>
<p>2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>गर अदब में नाम की दरकार है।<br></br> तो ग़ज़ल कोई नयी दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>तू किसी को देख ले ग़मगीन तो।<br></br> आँख में तेरी नमी दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>प्यार करते हो मुझे तुम भी अगर<br></br> इक नज़र चाहत भरी दरकार है।।</p>
<p><br></br>एक दूजे पे हमेशा हो यकीं।<br></br> दोस्ती में बस यही दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>ये अँधेरा दूर होगा एक दिन।<br></br> इल्म की बस रौशनी दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>बात सच्ची ही कहें हर शेर में।<br></br> शाइरी में ये रही दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>तुम बढ़ा…</p>
<p></p>
<p>2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>गर अदब में नाम की दरकार है।<br/> तो ग़ज़ल कोई नयी दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>तू किसी को देख ले ग़मगीन तो।<br/> आँख में तेरी नमी दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>प्यार करते हो मुझे तुम भी अगर<br/> इक नज़र चाहत भरी दरकार है।।</p>
<p><br/>एक दूजे पे हमेशा हो यकीं।<br/> दोस्ती में बस यही दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>ये अँधेरा दूर होगा एक दिन।<br/> इल्म की बस रौशनी दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>बात सच्ची ही कहें हर शेर में।<br/> शाइरी में ये रही दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>तुम बढ़ा लो सोच का अब दायरा।<br/> यह बदलते वक्त की दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>अपने अंदर झाँकना है गर तुम्हें।<br/> एक गहरी ख़ामुशी दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>दर्द-ए-दिल में दे सके सबको सुकूँ।<br/> कर सकूँ वो शाइरी दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>अब दिखावा ही सभी करते पसंद।<br/> कब किसी को सादगी दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>चाहिए कोई न कोई साथ तो।<br/> हो खुशी या ग़म यही दरकार है।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>"दर्द वो इस तरह छुपाता है"tag:www.openbooksonline.com,2018-07-24:5170231:BlogPost:9413252018-07-24T15:30:08.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
<p dir="ltr">2122 1212 22</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">हर समय खूब मुस्कुराता है।<br></br> दर्द वो इस तरह छुपाता है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">वक़्त अच्छा बुरा जो आता है।<br></br> कुछ न कुछ तो सबक सिखाता है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">दोस्त सच्चा उसे कहा जाता।<br></br> साथ जो हर कदम निभाता है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">वो सकूँ से कभी नहीं रहता।<br></br> दिल किसी का भी जो दुखाता है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">एक दिन ख़ुद मज़ाक बनता वो।<br></br> जो किसी का मज़ाक उड़ाता…</p>
<p dir="ltr">2122 1212 22</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">हर समय खूब मुस्कुराता है।<br/> दर्द वो इस तरह छुपाता है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">वक़्त अच्छा बुरा जो आता है।<br/> कुछ न कुछ तो सबक सिखाता है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">दोस्त सच्चा उसे कहा जाता।<br/> साथ जो हर कदम निभाता है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">वो सकूँ से कभी नहीं रहता।<br/> दिल किसी का भी जो दुखाता है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">एक दिन ख़ुद मज़ाक बनता वो।<br/> जो किसी का मज़ाक उड़ाता है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">अब यकीं किस तरह करूँ उस पर।<br/> जो न वादा कभी निभाता है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">दर्द अल्फाज में अगर ढाले।<br/> शाइरी में निख़ार आता है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल "एक दिन मिल जायेगा सब ख़ाक में"tag:www.openbooksonline.com,2018-03-28:5170231:BlogPost:9219442018-03-28T09:30:00.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
<p>*२१२२ २१२२ २१२*</p>
<p></p>
<p>हर जगह रहता है अपनी धाक में।<br></br> ख़ासियत देखी ये उस चालाक में।।</p>
<p></p>
<p>चीज कोई मुफ़्त में कैसे मिले।<br></br> लोग रहते आजकल इस ताक में।।</p>
<p></p>
<p>आदमी करता गुमाँ किस बात का।<br></br> एक दिन मिल जायेगा सब ख़ाक में।।</p>
<p></p>
<p>ख़ुद-ब-ख़ुद सम्मान मिलता आजकल।<br></br> आप हो जब कीमती पोशाक में।।</p>
<p></p>
<p>जब न मोबाइल किसी के पास था।<br></br>लोग लिखते हाल अपना डाक में।।</p>
<p></p>
<p>डर हमेशा उस ख़ुदा से ही लगे।<br></br> मैं नहीं रहता किसी की धाक…</p>
<p>*२१२२ २१२२ २१२*</p>
<p></p>
<p>हर जगह रहता है अपनी धाक में।<br/> ख़ासियत देखी ये उस चालाक में।।</p>
<p></p>
<p>चीज कोई मुफ़्त में कैसे मिले।<br/> लोग रहते आजकल इस ताक में।।</p>
<p></p>
<p>आदमी करता गुमाँ किस बात का।<br/> एक दिन मिल जायेगा सब ख़ाक में।।</p>
<p></p>
<p>ख़ुद-ब-ख़ुद सम्मान मिलता आजकल।<br/> आप हो जब कीमती पोशाक में।।</p>
<p></p>
<p>जब न मोबाइल किसी के पास था।<br/>लोग लिखते हाल अपना डाक में।।</p>
<p></p>
<p>डर हमेशा उस ख़ुदा से ही लगे।<br/> मैं नहीं रहता किसी की धाक में।।</p>
<p></p>
<p>बस यही ख्वाहिश रही "इंसान" की।<br/> वो बिखर जाए वतन की ख़ाक में।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल "कहता हूँ अब ग़ज़ल मैं उसे सोचते हुए"tag:www.openbooksonline.com,2018-03-11:5170231:BlogPost:9189322018-03-11T10:30:00.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
<p> </p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>इंसानियत के तंग सभी दायरे हुए।<br></br> दिखते नहीं हैं लोग जमीं से जुड़े हुए।।</p>
<p></p>
<p>जो सुर्खियों में रहते हमेशा बने हुए।<br></br> रहते है लोग वो ही ज़ियादा डरे हुए।।</p>
<p></p>
<p>आहट हुई जरा सी बुरे वक़्त की तभी।<br></br> कुछ साँप आस्तीन से निकले छुपे हुए।।</p>
<p></p>
<p>वो इस लिये खड़ा है बुलन्दी पे आज भी।<br></br> डरता नहीं है झूठ कोई बोलते हुए।।</p>
<p></p>
<p>ख्वाबों में देखता हूँ जिसे रोज रात में।<br></br> कहता हूँ अब ग़ज़ल मैं उसे सोचते…</p>
<p> </p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>इंसानियत के तंग सभी दायरे हुए।<br/> दिखते नहीं हैं लोग जमीं से जुड़े हुए।।</p>
<p></p>
<p>जो सुर्खियों में रहते हमेशा बने हुए।<br/> रहते है लोग वो ही ज़ियादा डरे हुए।।</p>
<p></p>
<p>आहट हुई जरा सी बुरे वक़्त की तभी।<br/> कुछ साँप आस्तीन से निकले छुपे हुए।।</p>
<p></p>
<p>वो इस लिये खड़ा है बुलन्दी पे आज भी।<br/> डरता नहीं है झूठ कोई बोलते हुए।।</p>
<p></p>
<p>ख्वाबों में देखता हूँ जिसे रोज रात में।<br/> कहता हूँ अब ग़ज़ल मैं उसे सोचते हुए।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल " ग़मो का इक समंदर टूटता है।"tag:www.openbooksonline.com,2018-01-24:5170231:BlogPost:9107372018-01-24T04:00:00.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
<p>1222 1222 122</p>
<p></p>
<p>ग़मो का इक समंदर टूटता है।<br></br> किसी का भी अगर घर टूटता है।।</p>
<p></p>
<p>मिले धोख़े पे धोख़ा जब किसी को।<br></br> तो वो अंदर ही अंदर टूटता है।।</p>
<p></p>
<p>सँभलता मुश्किलों से आदमी फिर।<br></br> भरोसा जब कहीं पर टूटता है।।</p>
<p></p>
<p>करो कोशिश भले तुम लाख यारो।<br></br> न आईने से पत्थर टूटता है।।</p>
<p></p>
<p>उजड़ते है परिंदों के कई घर।<br></br> कभी कोई भी खण्डहर टूटता है।।</p>
<p></p>
<p>यही तक़दीर में शायद लिखा हो।<br></br> जो देखूं ख़्वाब अक्सर टूटता है।।</p>
<p></p>
<p>ग़ज़ल…</p>
<p>1222 1222 122</p>
<p></p>
<p>ग़मो का इक समंदर टूटता है।<br/> किसी का भी अगर घर टूटता है।।</p>
<p></p>
<p>मिले धोख़े पे धोख़ा जब किसी को।<br/> तो वो अंदर ही अंदर टूटता है।।</p>
<p></p>
<p>सँभलता मुश्किलों से आदमी फिर।<br/> भरोसा जब कहीं पर टूटता है।।</p>
<p></p>
<p>करो कोशिश भले तुम लाख यारो।<br/> न आईने से पत्थर टूटता है।।</p>
<p></p>
<p>उजड़ते है परिंदों के कई घर।<br/> कभी कोई भी खण्डहर टूटता है।।</p>
<p></p>
<p>यही तक़दीर में शायद लिखा हो।<br/> जो देखूं ख़्वाब अक्सर टूटता है।।</p>
<p></p>
<p>ग़ज़ल को जब नहीं मिलती तवज़्ज़ो।<br/> तभी कोई सुख़नवर टूटता है।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल "ऐसे भी माहौल बनाया जाता है"tag:www.openbooksonline.com,2018-01-12:5170231:BlogPost:9091132018-01-12T09:00:00.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
<p>22 22 22 22 22 2</p>
<p><br></br>रिश्ता जो इक बार बनाया जाता है।<br></br>वो फिर सारी उम्र निभाया जाता है।।</p>
<p></p>
<p>ऐसे भी माहौल बनाया जाता है।<br></br> कुछ होता कुछ और दिखाया जाता है।।</p>
<p></p>
<p>ऐसा देखा यार सियासत में अक्सर।<br></br> इक दूजे को चोर बताया जाता है।।</p>
<p></p>
<p>सच हो पाए जो न किसी भी सूरत में।<br></br> क्यों अक्सर वो ख़्वाब दिखाया जाता है।।</p>
<p></p>
<p> रंग बदलते गिरगिट सा कुछ लोग यहाँ।<br></br> मतलब हो तो प्यार जताया जाता है।।</p>
<p></p>
<p>ये सच्चाई तो जग जाहिर है यारो।<br></br> जो…</p>
<p>22 22 22 22 22 2</p>
<p><br/>रिश्ता जो इक बार बनाया जाता है।<br/>वो फिर सारी उम्र निभाया जाता है।।</p>
<p></p>
<p>ऐसे भी माहौल बनाया जाता है।<br/> कुछ होता कुछ और दिखाया जाता है।।</p>
<p></p>
<p>ऐसा देखा यार सियासत में अक्सर।<br/> इक दूजे को चोर बताया जाता है।।</p>
<p></p>
<p>सच हो पाए जो न किसी भी सूरत में।<br/> क्यों अक्सर वो ख़्वाब दिखाया जाता है।।</p>
<p></p>
<p> रंग बदलते गिरगिट सा कुछ लोग यहाँ।<br/> मतलब हो तो प्यार जताया जाता है।।</p>
<p></p>
<p>ये सच्चाई तो जग जाहिर है यारो।<br/> जो सच बोले खूब सताया जाता है।।</p>
<p></p>
<p>जो औरों के सुख दुख को अपना समझे।<br/> वो अच्छा 'इंसान' बताया जाता है।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>"एक क़तरा था समंदर हो गया हूँ"tag:www.openbooksonline.com,2017-12-02:5170231:BlogPost:9009742017-12-02T07:30:00.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
<p>2122 2122 2122<br/> <br/> एक क़तरा था समंदर हो गया हूँ।<br/> मैं समय के साथ बेहतर हो गया हूँ।।<br/> <br/> कल तलक अपना समझते थे मुझे जो।<br/> उनकी ख़ातिर आज नश्तर हो गया हूँ।।<br/> <br/> मैं बयां करता नहीं हूँ दर्द अपना।<br/> सब समझते हैं कि पत्थर हो गया हूँ।।<br/> <br/> ज़िन्दगी में हादसे ऐसे हुए कुछ।<br/> मैं जरा सा तल्ख़ तेवर हो गया हूँ।।<br/> <br/> जख़्म दिल के तो नहीं अब तक भरे हैं।<br/> हां मगर पहले से बेहतर हो गया हूँ।।<br/> <br/> <br/> सुरेन्द्र इंसान<br/> <br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>2122 2122 2122<br/> <br/> एक क़तरा था समंदर हो गया हूँ।<br/> मैं समय के साथ बेहतर हो गया हूँ।।<br/> <br/> कल तलक अपना समझते थे मुझे जो।<br/> उनकी ख़ातिर आज नश्तर हो गया हूँ।।<br/> <br/> मैं बयां करता नहीं हूँ दर्द अपना।<br/> सब समझते हैं कि पत्थर हो गया हूँ।।<br/> <br/> ज़िन्दगी में हादसे ऐसे हुए कुछ।<br/> मैं जरा सा तल्ख़ तेवर हो गया हूँ।।<br/> <br/> जख़्म दिल के तो नहीं अब तक भरे हैं।<br/> हां मगर पहले से बेहतर हो गया हूँ।।<br/> <br/> <br/> सुरेन्द्र इंसान<br/> <br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़ल "हाल-ए-दिल अपना कभी मैं कह न पाया"tag:www.openbooksonline.com,2017-10-14:5170231:BlogPost:8892812017-10-14T15:00:00.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
2122 2122 2122<br />
<br />
रोज जीना रोज मरना है सिखाया।<br />
मुफ़लिसी ने पाठ ये अच्छा पढ़ाया।।<br />
<br />
दोस्ती का अस्ल मतलब यूँ बताया।<br />
हर कदम उसने सही रस्ता दिखाया।।<br />
<br />
बाँटना दुख सुख कभी मुझको न आया।<br />
हाल-ए-दिल अपना कभी मैं कह न पाया।।<br />
<br />
ख़ुद ब ख़ुद इक दिन इशारे से बुलाया।<br />
प्यार अपना इस तरह उसने जताया।।<br />
<br />
वो भरोसा प्यार में करता कभी तो।<br />
क्यो मुझे हर बार उसने आज़माया।।<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित
2122 2122 2122<br />
<br />
रोज जीना रोज मरना है सिखाया।<br />
मुफ़लिसी ने पाठ ये अच्छा पढ़ाया।।<br />
<br />
दोस्ती का अस्ल मतलब यूँ बताया।<br />
हर कदम उसने सही रस्ता दिखाया।।<br />
<br />
बाँटना दुख सुख कभी मुझको न आया।<br />
हाल-ए-दिल अपना कभी मैं कह न पाया।।<br />
<br />
ख़ुद ब ख़ुद इक दिन इशारे से बुलाया।<br />
प्यार अपना इस तरह उसने जताया।।<br />
<br />
वो भरोसा प्यार में करता कभी तो।<br />
क्यो मुझे हर बार उसने आज़माया।।<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशितग़ज़ल "जिन्दगी इक अज़ब पहेली है"tag:www.openbooksonline.com,2017-10-06:5170231:BlogPost:8871662017-10-06T09:02:16.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
2122 1212 22<br />
ख़ुद उलझती है ख़ुद सुलझती है।<br />
जिन्दगी इक अज़ब पहेली है।।<br />
<br />
साथ तेरा मुझे मिला जबसे।<br />
जिन्दगी मेरी मुस्कुराती है।।<br />
<br />
सब्र करना व भूख से लड़ना।<br />
मुफ़लिसी क्या नहीं सिखाती है।।<br />
<br />
मैं बहुत चाहने लगा तुझको।<br />
हर ग़ज़ल मेरी ये बताती है।।<br />
<br />
बात कोई चुभे अगर दिल को।<br />
तब ग़ज़ल ख़ुद मुझे बुलाती है।।<br />
<br />
दुख घुटन दर्द आह मजबूरी।<br />
ज़िन्दगी की यही कहानी है।।<br />
<br />
मुस्कुराती हुई तेरी तस्वीर।<br />
पास मेरे तेरी निशानी<br />
है।।<br />
<br />
जीतना हारना लगा रहता।<br />
जिन्दगी ये सबक़ सिखाती है।।<br />
<br />
दूर तू है बहुत मगर फिर भी।<br />
ज़ेहन में याद तेरी रहती…
2122 1212 22<br />
ख़ुद उलझती है ख़ुद सुलझती है।<br />
जिन्दगी इक अज़ब पहेली है।।<br />
<br />
साथ तेरा मुझे मिला जबसे।<br />
जिन्दगी मेरी मुस्कुराती है।।<br />
<br />
सब्र करना व भूख से लड़ना।<br />
मुफ़लिसी क्या नहीं सिखाती है।।<br />
<br />
मैं बहुत चाहने लगा तुझको।<br />
हर ग़ज़ल मेरी ये बताती है।।<br />
<br />
बात कोई चुभे अगर दिल को।<br />
तब ग़ज़ल ख़ुद मुझे बुलाती है।।<br />
<br />
दुख घुटन दर्द आह मजबूरी।<br />
ज़िन्दगी की यही कहानी है।।<br />
<br />
मुस्कुराती हुई तेरी तस्वीर।<br />
पास मेरे तेरी निशानी<br />
है।।<br />
<br />
जीतना हारना लगा रहता।<br />
जिन्दगी ये सबक़ सिखाती है।।<br />
<br />
दूर तू है बहुत मगर फिर भी।<br />
ज़ेहन में याद तेरी रहती है।।<br />
<br />
वो मुलाकात आपसे मेरी।<br />
आज भी मुझको याद आती है।।<br />
<br />
मौलिक और अप्रकाशितग़ज़ल " जिंदगी से जी भर गया कब का "tag:www.openbooksonline.com,2017-08-09:5170231:BlogPost:8723402017-08-09T11:30:00.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
2122 1212 22<br />
<br />
ज़िन्दगी,जी तो भर गया कब का।<br />
टूट कर मैं बिखर गया कब का ।।<br />
<br />
***<br />
इक मुहब्बत का था नशा मुझको।<br />
वो नशा भी उतर गया कब का।।<br />
***<br />
चाहता था तुझे दिल-ओ-जां से।<br />
वक़्त वो तो गुज़र गया कब का।।<br />
<br />
***<br />
देख हालत नशे के मारों की।<br />
ख़ुद-ब-ख़ुद वो सुधर गया कब का।।<br />
<br />
***<br />
देख कर छल फ़रेब दुनिया के।<br />
एक "इंसान" मर गया कब का।।<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित
2122 1212 22<br />
<br />
ज़िन्दगी,जी तो भर गया कब का।<br />
टूट कर मैं बिखर गया कब का ।।<br />
<br />
***<br />
इक मुहब्बत का था नशा मुझको।<br />
वो नशा भी उतर गया कब का।।<br />
***<br />
चाहता था तुझे दिल-ओ-जां से।<br />
वक़्त वो तो गुज़र गया कब का।।<br />
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***<br />
देख हालत नशे के मारों की।<br />
ख़ुद-ब-ख़ुद वो सुधर गया कब का।।<br />
<br />
***<br />
देख कर छल फ़रेब दुनिया के।<br />
एक "इंसान" मर गया कब का।।<br />
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मौलिक व अप्रकाशितग़ज़ल "दिखाना ख़्वाब यूँ अच्छा नहीं है"tag:www.openbooksonline.com,2017-08-03:5170231:BlogPost:8712882017-08-03T04:24:06.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
1222 1222 122<br />
दिखाना ख़्वाब यूँ अच्छा नहीं है।<br />
फ़क़त बातों से कुछ होता नहीं है।।<br />
<br />
***<br />
बुरा अंजाम होता है बुरे का।<br />
ख़ुदा से कुछ भी तो छुपता नहीं है।।<br />
<br />
***<br />
कई धोख़े मिले हैं जिंदगी में।<br />
किसी पर अब यकीं होता नहीं है।।<br />
<br />
***<br />
मुहब्बत में मुझे इक बेवफा ने।<br />
दिया वो जख़्म जो भरता नहीं है।।<br />
<br />
***<br />
यकीं कोई न अब उस पर करेगा।<br />
वो अपनी बात पर टिकता नहीं है।।<br />
<br />
***<br />
उसे है याद बातें सब पुरानी।<br />
मगर अब गाँव वो जाता नहीं है।।<br />
<br />
***<br />
भले "इंसान" की पहचान है ये।<br />
किसी को वो बुरा कहता नहीं है।।<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित
1222 1222 122<br />
दिखाना ख़्वाब यूँ अच्छा नहीं है।<br />
फ़क़त बातों से कुछ होता नहीं है।।<br />
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***<br />
बुरा अंजाम होता है बुरे का।<br />
ख़ुदा से कुछ भी तो छुपता नहीं है।।<br />
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***<br />
कई धोख़े मिले हैं जिंदगी में।<br />
किसी पर अब यकीं होता नहीं है।।<br />
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***<br />
मुहब्बत में मुझे इक बेवफा ने।<br />
दिया वो जख़्म जो भरता नहीं है।।<br />
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***<br />
यकीं कोई न अब उस पर करेगा।<br />
वो अपनी बात पर टिकता नहीं है।।<br />
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***<br />
उसे है याद बातें सब पुरानी।<br />
मगर अब गाँव वो जाता नहीं है।।<br />
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***<br />
भले "इंसान" की पहचान है ये।<br />
किसी को वो बुरा कहता नहीं है।।<br />
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मौलिक व अप्रकाशितग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2017-07-25:5170231:BlogPost:8686982017-07-25T18:28:36.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
2222 2222 222<br />
दूरी अपने बीच मिटा भी नहीं सकता।<br />
आना चाहूँ तो मैं आ भी नहीं सकता।<br />
<br />
मैं तुझ से मिलने को आ भी नहीं सकता।<br />
क्या दिल पे गुजरती है बता भी नहीं सकता।।<br />
<br />
बेईमानी से मैं कमा भी नहीं सकता।<br />
भूखा बच्चों को मैं सुला भी नहीं सकता।।<br />
<br />
मैं इतना दूर चला आया हूँ उस से।<br />
वो आना चाहे तो आ भी नहीं सकता।<br />
<br />
पहले से दुख इतने हैं मेरे अंदर।<br />
और कोई दिल मेरा दुखा भी नहीं सकता।।<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित
2222 2222 222<br />
दूरी अपने बीच मिटा भी नहीं सकता।<br />
आना चाहूँ तो मैं आ भी नहीं सकता।<br />
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मैं तुझ से मिलने को आ भी नहीं सकता।<br />
क्या दिल पे गुजरती है बता भी नहीं सकता।।<br />
<br />
बेईमानी से मैं कमा भी नहीं सकता।<br />
भूखा बच्चों को मैं सुला भी नहीं सकता।।<br />
<br />
मैं इतना दूर चला आया हूँ उस से।<br />
वो आना चाहे तो आ भी नहीं सकता।<br />
<br />
पहले से दुख इतने हैं मेरे अंदर।<br />
और कोई दिल मेरा दुखा भी नहीं सकता।।<br />
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मौलिक व अप्रकाशितग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2017-06-25:5170231:BlogPost:8631842017-06-25T18:30:00.000Zsurender insanhttp://www.openbooksonline.com/profile/surenderinsan
<p>22 22 22 2</p>
<p></p>
<p>सुख दुख में सम रहता हूँ।<br/>मैं दरिया सा बहता हूँ।।</p>
<p></p>
<p>कह कर सच्ची बात यहाँ।<br/>तंज़ सभी के सहता हूँ।।</p>
<p></p>
<p>मिट्टी की इस दुनिया में।<br/>मिट्टी जैसे रहता हूँ।।</p>
<p></p>
<p>जैसे को तैसा मिलता।<br/>सच यह सबको कहता हूँ।।</p>
<p></p>
<p>तल्ख़ हक़ीक़त दुनिया की।<br/>रोज ग़ज़ल में कहता हूँ।।</p>
<p><br/> <br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>22 22 22 2</p>
<p></p>
<p>सुख दुख में सम रहता हूँ।<br/>मैं दरिया सा बहता हूँ।।</p>
<p></p>
<p>कह कर सच्ची बात यहाँ।<br/>तंज़ सभी के सहता हूँ।।</p>
<p></p>
<p>मिट्टी की इस दुनिया में।<br/>मिट्टी जैसे रहता हूँ।।</p>
<p></p>
<p>जैसे को तैसा मिलता।<br/>सच यह सबको कहता हूँ।।</p>
<p></p>
<p>तल्ख़ हक़ीक़त दुनिया की।<br/>रोज ग़ज़ल में कहता हूँ।।</p>
<p><br/> <br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>