विवेक ठाकुर "मन"'s Posts - Open Books Online2024-03-29T01:41:03Zविवेक ठाकुर "मन"http://www.openbooksonline.com/profile/3n16amc0retf8http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3820250041?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=3n16amc0retf8&xn_auth=noएक ग़ज़ल - ख़ुद को आज़माकर देखूँtag:www.openbooksonline.com,2020-01-15:5170231:BlogPost:9997342020-01-15T11:49:12.000Zविवेक ठाकुर "मन"http://www.openbooksonline.com/profile/3n16amc0retf8
रब ना करे मैं ऐसा मंज़र देखूँ<br />
दोस्त के हाथ में खंज़र देखूँ<br />
<br />
सबकी ख़ुशी सलामत रख मौला<br />
ना ही टूटता किसी का घर देखूँ<br />
<br />
गम दे तो हिम्मत भी बक्श ख़ुदा<br />
आँखों में किसी की ना डर देखूँ<br />
<br />
ख़्वाब पूरे होते नहीं देखने भर से<br />
खुद को भी तो आज़माकर देखूँ<br />
<br />
ये हवा भी हारेगी मिरे यकीं से<br />
उम्मीद-ए-चिराग़ जला कर देखूँ<br />
<br />
ठान ही ली जब चलने की 'विवेक'<br />
फिर क्यूँ मुश्किल-ए-सफ़र देखूँ<br />
#मौलिक व अप्रकाशित#
रब ना करे मैं ऐसा मंज़र देखूँ<br />
दोस्त के हाथ में खंज़र देखूँ<br />
<br />
सबकी ख़ुशी सलामत रख मौला<br />
ना ही टूटता किसी का घर देखूँ<br />
<br />
गम दे तो हिम्मत भी बक्श ख़ुदा<br />
आँखों में किसी की ना डर देखूँ<br />
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ख़्वाब पूरे होते नहीं देखने भर से<br />
खुद को भी तो आज़माकर देखूँ<br />
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ये हवा भी हारेगी मिरे यकीं से<br />
उम्मीद-ए-चिराग़ जला कर देखूँ<br />
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ठान ही ली जब चलने की 'विवेक'<br />
फिर क्यूँ मुश्किल-ए-सफ़र देखूँ<br />
#मौलिक व अप्रकाशित#