Chetan Prakash's Posts - Open Books Online2024-03-29T11:56:28ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/10449668666?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=334kmevkxqpzb&xn_auth=noग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2023-12-20:5170231:BlogPost:11137022023-12-20T12:30:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>2122 1122 1122 22 / 112</p>
<p></p>
<p>अंधा आँखों का है हर शख़्स बता देगा तुम्हें<br></br> ख़ार खाया है ये जन्मों का दग़ा देगा तुम्हें</p>
<p></p>
<p>गुरु वो घंटाल ज़माने कभी सय्याद रहा<br></br> काट कर पर वो रखेगा जो सज़ा देगा तुम्हें</p>
<p></p>
<p>झाँसे में उसके न आया करो जानाँ कभी तुम<br></br> रहती दुनिया का दरिन्दा वो क़जा देगा तुम्हें</p>
<p></p>
<p>है नशा उसको सदारत का कई बज़्म सुना<br></br> ना तुम्हारा न वो मेरा ही जता देगा तुम्हें</p>
<p></p>
<p>है वो ख़ुदगर्ज़ निहायत कहीं हद से ज़ियादा<br></br> ख़ुद…</p>
<p>2122 1122 1122 22 / 112</p>
<p></p>
<p>अंधा आँखों का है हर शख़्स बता देगा तुम्हें<br/> ख़ार खाया है ये जन्मों का दग़ा देगा तुम्हें</p>
<p></p>
<p>गुरु वो घंटाल ज़माने कभी सय्याद रहा<br/> काट कर पर वो रखेगा जो सज़ा देगा तुम्हें</p>
<p></p>
<p>झाँसे में उसके न आया करो जानाँ कभी तुम<br/> रहती दुनिया का दरिन्दा वो क़जा देगा तुम्हें</p>
<p></p>
<p>है नशा उसको सदारत का कई बज़्म सुना<br/> ना तुम्हारा न वो मेरा ही जता देगा तुम्हें</p>
<p></p>
<p>है वो ख़ुदगर्ज़ निहायत कहीं हद से ज़ियादा<br/> ख़ुद में खोया रहे हर वक्त मिटा देगा तुम्हें</p>
<p></p>
<p>घर के हालात नहीं अच्छे <span>हैं चेतन सुनो जाँ</span></p>
<p>बदल डालो वो मुहाफ़िज़ डुबा देगा तुम्हें</p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश चेतन<br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>एक ताज़ा ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2023-11-27:5170231:BlogPost:11125482023-11-27T07:27:06.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p></p>
<p>2122 1122 1122 22</p>
<p></p>
<p>ख़्वाब से जाग उठे शाह सदा दी जाए<br></br> पकड़े जायें अभी क़ातिल वो सज़ा दी जाए</p>
<p></p>
<p>बख़्श दी जाए कहीं जान ख़वातीनों की<br></br> अब तो ज़ालिम को कड़ी कोई सज़ा दी जाए</p>
<p></p>
<p>घूमते हैं वो दरिन्दे भी नकाबों में <span>अब तो</span><br></br> जितना जल्दी हो उन्हें मौत बजा दी जाए</p>
<p></p>
<p>लोग अच्छे ही परेशान हैं वहशी दरिन्दों<br></br> इन्तिहाँ हो गयी अब लौ वो बुझा दी जाए</p>
<p></p>
<p>ज़ात इन्साँ की पशेमाँ है ज़रायम से 'चेतन'<br></br> तूफाँ कोई तो उठा कर…</p>
<p></p>
<p>2122 1122 1122 22</p>
<p></p>
<p>ख़्वाब से जाग उठे शाह सदा दी जाए<br/> पकड़े जायें अभी क़ातिल वो सज़ा दी जाए</p>
<p></p>
<p>बख़्श दी जाए कहीं जान ख़वातीनों की<br/> अब तो ज़ालिम को कड़ी कोई सज़ा दी जाए</p>
<p></p>
<p>घूमते हैं वो दरिन्दे भी नकाबों में <span>अब तो</span><br/> जितना जल्दी हो उन्हें मौत बजा दी जाए</p>
<p></p>
<p>लोग अच्छे ही परेशान हैं वहशी दरिन्दों<br/> इन्तिहाँ हो गयी अब लौ वो बुझा दी जाए</p>
<p></p>
<p>ज़ात इन्साँ की पशेमाँ है ज़रायम से 'चेतन'<br/> तूफाँ कोई तो उठा कर वो दवा दी जाए</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित<br/> प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>एक ताज़ा गज़लtag:www.openbooksonline.com,2023-11-08:5170231:BlogPost:11113942023-11-08T15:00:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>2121 2122 2121 212</p>
<p></p>
<p>खो गया सुकून दिल का कार हो गया जहाँ<br></br> गुम गया <span>सनम</span> भँवर में ख़ार हो गया जहाँ</p>
<p></p>
<p>कामयाबी तौलती दुनिया भरोसे जऱ ज़मी<br></br> फार्म जिनके हैं नहीं गुड़मार हो गया जहाँ</p>
<p></p>
<p>ज़िन्दगी जिसे कहा हमने कहीं छुपा गया<br></br> है निशान अपने ज़ालिम पार हो गया जहाँ</p>
<p></p>
<p>कार-ए-दुनिया और कुछ हैं और कुछ दिखें ख़ुदा<br></br> मारकाट हाल कारोबार हो गया जहाँ</p>
<p></p>
<p>तोड़ हद रहे सभी अब तो अदब जहान में<br></br> लाज लुट रही घरों मुरदार हो गया…</p>
<p>2121 2122 2121 212</p>
<p></p>
<p>खो गया सुकून दिल का कार हो गया जहाँ<br/> गुम गया <span>सनम</span> भँवर में ख़ार हो गया जहाँ</p>
<p></p>
<p>कामयाबी तौलती दुनिया भरोसे जऱ ज़मी<br/> फार्म जिनके हैं नहीं गुड़मार हो गया जहाँ</p>
<p></p>
<p>ज़िन्दगी जिसे कहा हमने कहीं छुपा गया<br/> है निशान अपने ज़ालिम पार हो गया जहाँ</p>
<p></p>
<p>कार-ए-दुनिया और कुछ हैं और कुछ दिखें ख़ुदा<br/> मारकाट हाल कारोबार हो गया जहाँ</p>
<p></p>
<p>तोड़ हद रहे सभी अब तो अदब जहान में<br/> लाज लुट रही घरों मुरदार हो गया जहाँ</p>
<p></p>
<p>लाखआँख नम दिखे जज़्बात मर गये कहीं<br/> प्यार खो रहा अभी इसरार हो गया जहाँ</p>
<p></p>
<p>मशविरा करूँ तो किससे राबते रहे नहीं<br/> गुम गये निशान उनके रार हो गया जहाँ</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित<br/> प्रोफ. चेतन प्रकाश चेतन</p>एक और ग़जल ःtag:www.openbooksonline.com,2023-09-24:5170231:BlogPost:11094052023-09-24T04:16:40.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
2121 2122 2122 212<br />
<br />
ढूढ़ ले हबीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके<br />
साथ हो नसीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके<br />
<br />
छोड़ देता रोना-धोना मस्त जीता ज़िन्दगी<br />
दोस्त हो करीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके<br />
<br />
मरता जीता मुश्किलों तू आदमी है बदगुमाँ<br />
साध ले सलीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके<br />
<br />
ज़ीस्त बोझ बन गई हर शख़्स वो है झींकता<br />
जाम हो अजीब कोई जिन्दगी तो हो सके<br />
<br />
खो चुका ख़ुलूस आदम हो गया बे होश है<br />
दोस्त हो ग़रीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके<br />
<br />
उम्र सारी वो गँवा दी द़ुश्मनी जीते हुए<br />
बख़्श दे रकीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके<br />
<br />
प्रोफ चेतन प्रकाश चेतन<br />
मौलिक…
2121 2122 2122 212<br />
<br />
ढूढ़ ले हबीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके<br />
साथ हो नसीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके<br />
<br />
छोड़ देता रोना-धोना मस्त जीता ज़िन्दगी<br />
दोस्त हो करीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके<br />
<br />
मरता जीता मुश्किलों तू आदमी है बदगुमाँ<br />
साध ले सलीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके<br />
<br />
ज़ीस्त बोझ बन गई हर शख़्स वो है झींकता<br />
जाम हो अजीब कोई जिन्दगी तो हो सके<br />
<br />
खो चुका ख़ुलूस आदम हो गया बे होश है<br />
दोस्त हो ग़रीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके<br />
<br />
उम्र सारी वो गँवा दी द़ुश्मनी जीते हुए<br />
बख़्श दे रकीब कोई ज़िन्दगी तो हो सके<br />
<br />
प्रोफ चेतन प्रकाश चेतन<br />
मौलिक व अप्रकाशितएक ताज़ा गज़लtag:www.openbooksonline.com,2023-09-15:5170231:BlogPost:11091862023-09-15T02:52:32.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p></p>
<p>1222 1222 1222 1222</p>
<p></p>
<p>सुहाना सुब्ह मौसम है तुम्हें अब ग़म नहीं होता<br></br> खिली है धूप गुलशन में सवेरा कम नहीं होता</p>
<p></p>
<p>वो काली रात है तारी अँधेरा कम नहीं होता<br></br> ये कैसा वक़्त आया है सनम हमदम नहीं होता</p>
<p></p>
<p>परायापन बना हासिल कि रिश्तों दम नहीं होता<br></br> न प्यारा कोई है दुनिया कभी दुख कम नहीं होता</p>
<p></p>
<p>तुम्हारी आँख का पानी अभी क्यों सूखता जानाँ<br></br> हमे तो शर्म आती हैं पशेमाँ दम नहीं होता</p>
<p></p>
<p>तुम्हारे शह्र के हालात वो…</p>
<p></p>
<p>1222 1222 1222 1222</p>
<p></p>
<p>सुहाना सुब्ह मौसम है तुम्हें अब ग़म नहीं होता<br/> खिली है धूप गुलशन में सवेरा कम नहीं होता</p>
<p></p>
<p>वो काली रात है तारी अँधेरा कम नहीं होता<br/> ये कैसा वक़्त आया है सनम हमदम नहीं होता</p>
<p></p>
<p>परायापन बना हासिल कि रिश्तों दम नहीं होता<br/> न प्यारा कोई है दुनिया कभी दुख कम नहीं होता</p>
<p></p>
<p>तुम्हारी आँख का पानी अभी क्यों सूखता जानाँ<br/> हमे तो शर्म आती हैं पशेमाँ दम नहीं होता</p>
<p></p>
<p>तुम्हारे शह्र के हालात वो ग़मगीन क्यों है अब<br/> मिटे दुख मुफ़लिसों के शाह को क्या दम नहीं होता</p>
<p></p>
<p>किसी को इस तरह रुसवा करो मत यार सुन, चेतन<br/> बहुत कोशिश करे वो दर्द फिर भी कम नहीं होता</p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>
<p><span>मौलिक व अप्रकाशित</span></p>ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2023-08-28:5170231:BlogPost:11089652023-08-28T09:00:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>ग़ज़ल</p>
<p></p>
<p>1212 2121 1212 122</p>
<p></p>
<p>चला जाऊँगा जहाँ से तुम्हें सँवार कर के</p>
<p>तुम्हारी इन ख़ामियों को कहीं निखार कर के</p>
<p></p>
<p>नवाज़ा मुझको ख़ुदा ने वो अज़्म धार कर के<br></br> बुलंदी बख़्शी है उस ने ग़ज़ल बहार कर के</p>
<p></p>
<p>बड़े बड़ो को दिखाया है आइना ख़ुदा ने<br></br> निकाल दी हैंकड़ी भी उन्हें सुधार कर के</p>
<p></p>
<p>वो चोर मौसेरे भाई हैं बागबाँ चहेते<br></br> उन्हें गिरा दो निगाह से दोस्त ख़ार कर के</p>
<p></p>
<p>बहार सावन की आयी कली- कली खिली है<br></br> कि हो…</p>
<p>ग़ज़ल</p>
<p></p>
<p>1212 2121 1212 122</p>
<p></p>
<p>चला जाऊँगा जहाँ से तुम्हें सँवार कर के</p>
<p>तुम्हारी इन ख़ामियों को कहीं निखार कर के</p>
<p></p>
<p>नवाज़ा मुझको ख़ुदा ने वो अज़्म धार कर के<br/> बुलंदी बख़्शी है उस ने ग़ज़ल बहार कर के</p>
<p></p>
<p>बड़े बड़ो को दिखाया है आइना ख़ुदा ने<br/> निकाल दी हैंकड़ी भी उन्हें सुधार कर के</p>
<p></p>
<p>वो चोर मौसेरे भाई हैं बागबाँ चहेते<br/> उन्हें गिरा दो निगाह से दोस्त ख़ार कर के</p>
<p></p>
<p>बहार सावन की आयी कली- कली खिली है<br/> कि हो रही बूंदाबाँदी मल्हार, हार कर के</p>
<p></p>
<p>है महरबाँ वो ख़ुदा भी कि महफ़िलों है मस्ती<br/> मुझे भी चेतन तू रोक लेना गुहार कर के</p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश चेतन<br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>ताज़ा ग़ज़लःtag:www.openbooksonline.com,2023-08-24:5170231:BlogPost:11083082023-08-24T03:48:25.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p></p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>अच्छा हो तुम पढ़ो ये ग़ज़ल दोस्त ध्यान से<br></br> मैंने कहा है इसको बड़े मान - कान से</p>
<p></p>
<p>हम राह में बढेंगे तो मंज़िल मिलेगी ही<br></br> मक़सद भी होगा पूरा जियें आन - बान से</p>
<p></p>
<p>हर शख़्स बदहवास अभी भागता शहर<br></br> हलकान ज़िन्दगी में है वो खान - पान से</p>
<p></p>
<p>अवसाद इस सदी की समस्या जनाब है<br></br> तनहाई मारती रही इनसान जान से</p>
<p></p>
<p>अनजान है ज़माना अभी शोध चाँद पर <br></br> आग़ाज भारती हुआ इस बार शान से</p>
<p></p>
<p>आदम…</p>
<p></p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>अच्छा हो तुम पढ़ो ये ग़ज़ल दोस्त ध्यान से<br/> मैंने कहा है इसको बड़े मान - कान से</p>
<p></p>
<p>हम राह में बढेंगे तो मंज़िल मिलेगी ही<br/> मक़सद भी होगा पूरा जियें आन - बान से</p>
<p></p>
<p>हर शख़्स बदहवास अभी भागता शहर<br/> हलकान ज़िन्दगी में है वो खान - पान से</p>
<p></p>
<p>अवसाद इस सदी की समस्या जनाब है<br/> तनहाई मारती रही इनसान जान से</p>
<p></p>
<p>अनजान है ज़माना अभी शोध चाँद पर <br/> आग़ाज भारती हुआ इस बार शान से</p>
<p></p>
<p>आदम को झोंकती अना विश्वयुद्ध में<br/> य़ूक्रेन रूस लड़ रहे क़मबख़्त शान से</p>
<p></p>
<p>दुनिया है पागलों की क़यामत से जान लो<br/>'चेतन' न विश्वयुद्ध कभी हो मचान से</p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'<br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>सावन गीत....कजरीtag:www.openbooksonline.com,2023-08-21:5170231:BlogPost:11080732023-08-21T09:00:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p></p>
<p>मोरा साजन छूटो जाय</p>
<p>सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..</p>
<p></p>
<p>पपीहा करत है पी हू पी हू<br></br> मोहे जोबन विरह हो जाय <br></br> सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कोयल बोलै कुूहू कुहू बागन में<br></br> मोरा सावन सूखौ जाय<br></br> सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!</p>
<p></p>
<p></p>
<p>नाचत मोर बदरिया बरसत है <br></br> मोरा आँगन बिसरौ जाय<br></br> सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..!</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मरौ ददुरवा बूँद पी <span> रह</span> जाय<br></br> लो सोवत रहत साल भर वो तो<br></br> मो पै बिन पिया…</p>
<p></p>
<p>मोरा साजन छूटो जाय</p>
<p>सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..</p>
<p></p>
<p>पपीहा करत है पी हू पी हू<br/> मोहे जोबन विरह हो जाय <br/> सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कोयल बोलै कुूहू कुहू बागन में<br/> मोरा सावन सूखौ जाय<br/> सखी री मै जाऊँ न पीहरवा...!</p>
<p></p>
<p></p>
<p>नाचत मोर बदरिया बरसत है <br/> मोरा आँगन बिसरौ जाय<br/> सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा..!</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मरौ ददुरवा बूँद पी <span> रह</span> जाय<br/> लो सोवत रहत साल भर वो तो<br/> मो पै बिन पिया रह्यो न जाय</p>
<p>सखी री मैं जाऊँ न पीहरवा...!</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कि पड़त हिंडोला वृन्दावन है <br/> कान्हा राधा रह्यौ झुलाय</p>
<p>सखी री मैं न जाऊँ पीहरवा...!</p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'<br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>एक ताज़ा ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2023-08-16:5170231:BlogPost:11080302023-08-16T03:00:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p></p>
<p>212 1222 212 1222</p>
<p></p>
<p>दिलजले लगे हैं फिर घर नया बसाने में<br></br> रह गये हैं वो खुद पीछे हमें उठाने में</p>
<p></p>
<p></p>
<p>रतजगे कई होते दोस्त घर बनाने में<br></br> भारती बहा है खूँ फिर इसे बसाने में</p>
<p></p>
<p>राह भटके रहबर अब ख़ुदगर्ज़ हुए हैं वो<br></br> बेलगाम होकर याँ व्यस्त घर लुटाने में</p>
<p></p>
<p>बाँट कर हुकूमत ने साधे स्वार्थ अपने हैं<br></br> पर लगे ज़माने उसको हमें जगाने में</p>
<p></p>
<p>भुखमरी ग़रीबी हटती नहीं हटाने से<br></br> बढ़ रही अमीरी उल्टा उसे भगाने…</p>
<p></p>
<p>212 1222 212 1222</p>
<p></p>
<p>दिलजले लगे हैं फिर घर नया बसाने में<br/> रह गये हैं वो खुद पीछे हमें उठाने में</p>
<p></p>
<p></p>
<p>रतजगे कई होते दोस्त घर बनाने में<br/> भारती बहा है खूँ फिर इसे बसाने में</p>
<p></p>
<p>राह भटके रहबर अब ख़ुदगर्ज़ हुए हैं वो<br/> बेलगाम होकर याँ व्यस्त घर लुटाने में</p>
<p></p>
<p>बाँट कर हुकूमत ने साधे स्वार्थ अपने हैं<br/> पर लगे ज़माने उसको हमें जगाने में</p>
<p></p>
<p>भुखमरी ग़रीबी हटती नहीं हटाने से<br/> बढ़ रही अमीरी उल्टा उसे भगाने में</p>
<p></p>
<p>रोज़ी-रोटी में खटती ज़िन्दगी अभी भारत<br/> अब लगी नशा-खोरी भी हमें मिटाने में</p>
<p></p>
<p>एक रोता हँसता वो दूसरा है दुनिया में<br/> ग़ैर सी लगे बस्ती आज भी ज़माने में</p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश चेतन<br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2023-08-14:5170231:BlogPost:11079492023-08-14T09:00:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p></p>
<p>ग़ज़ल</p>
<p></p>
<p>1212 1212 1212 1212</p>
<p></p>
<p>सुनो पुकार राष्ट्र की बढ़े चलो सुजान से<br></br> मिटेंगे अंथकार के निशाँ बढ़ो सुजान से</p>
<p></p>
<p>निशाना चूक जाए ना बचे रहो सुजान से<br></br> वो सारा देश देखता तुम्हें, चलो सुजान से</p>
<p></p>
<p>रहेगा नाम वीरों का किताबों में रिसालों में<br></br> मरो तो देश के लिये सखा जियो सुजान से</p>
<p></p>
<p>हमें जहाँ को देना है नहीं किसी से लेना है<br></br> ऐसा विचार हो कहीं सही पढ़ो सुजान से</p>
<p></p>
<p>निशान छोड़ जाओ कोई वक़्त की शिलाओं…</p>
<p></p>
<p>ग़ज़ल</p>
<p></p>
<p>1212 1212 1212 1212</p>
<p></p>
<p>सुनो पुकार राष्ट्र की बढ़े चलो सुजान से<br/> मिटेंगे अंथकार के निशाँ बढ़ो सुजान से</p>
<p></p>
<p>निशाना चूक जाए ना बचे रहो सुजान से<br/> वो सारा देश देखता तुम्हें, चलो सुजान से</p>
<p></p>
<p>रहेगा नाम वीरों का किताबों में रिसालों में<br/> मरो तो देश के लिये सखा जियो सुजान से</p>
<p></p>
<p>हमें जहाँ को देना है नहीं किसी से लेना है<br/> ऐसा विचार हो कहीं सही पढ़ो सुजान से</p>
<p></p>
<p>निशान छोड़ जाओ कोई वक़्त की शिलाओं पर<br/> हो वारिसों को गर्व भी तुम्हीं सहो सुजान से</p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश चेतन</p>
<p><span>मौलिक व अप्रकाशित</span></p>दरबारी राग पंचकtag:www.openbooksonline.com,2023-08-03:5170231:BlogPost:11076332023-08-03T06:30:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>कौन बाँधे तू बता, बिल्ली ...घंटी आज ।<br></br> चूहों की बारात है, गधों के सर स्वराज।।</p>
<p></p>
<p>ग़ज़ल की बज़्म है सजा, चूहों.. का दरबार ।<br></br> कहते कलाम... शोहदे, होते ....हाहाकार ।।</p>
<p></p>
<p>रोबोट हो गये सखा, सच के पैरोकार ।<br></br> शेर हथेली पीटते, करते हैं जयकार ।।</p>
<p></p>
<p>अब तो शिकार हो रहे, शायर मंच विकार ।<br></br> रीमोट, सिद्ध बन गये, ग़ज़ल क<span>हें</span>..दरबार ।।</p>
<p></p>
<p>बनते मूर्ख बुद्ध यहाँ, फँसे हैं वाग्जाल ।<br></br> कौन यहाँ है पूछता, मरहूम…</p>
<p>कौन बाँधे तू बता, बिल्ली ...घंटी आज ।<br/> चूहों की बारात है, गधों के सर स्वराज।।</p>
<p></p>
<p>ग़ज़ल की बज़्म है सजा, चूहों.. का दरबार ।<br/> कहते कलाम... शोहदे, होते ....हाहाकार ।।</p>
<p></p>
<p>रोबोट हो गये सखा, सच के पैरोकार ।<br/> शेर हथेली पीटते, करते हैं जयकार ।।</p>
<p></p>
<p>अब तो शिकार हो रहे, शायर मंच विकार ।<br/> रीमोट, सिद्ध बन गये, ग़ज़ल क<span>हें</span>..दरबार ।।</p>
<p></p>
<p>बनते मूर्ख बुद्ध यहाँ, फँसे हैं वाग्जाल ।<br/> कौन यहाँ है पूछता, मरहूम हालचाल।।</p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश चेतन</p>
<p><span>मौलिक व अप्रकाशित</span></p>ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2023-07-12:5170231:BlogPost:11063972023-07-12T05:11:51.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p><br></br> 2121 2122 21 21 2122</p>
<p><br></br> हम को कौन जानता था तेरी बन्दगी से पहले<br></br> चाल - ढाल खो चुके थे हम तो आशिक़ी से पहले</p>
<p></p>
<p>बन सँवर गये नहींं हम तेेरी दोस्ती से पहले<br></br> कब था ये सलीका हमको अपनी गुमशुदी से पहलेे</p>
<p></p>
<p>कूद-फाँद की बहुत पर थाह हो नहीं सकी जाँ <br></br> ज़िन्दगी के गुर न पाये हम भी ख़़ुदक़शी से पहले</p>
<p></p>
<p>खो सको जुनूूँ-मुहब्बत आना इस डगर को यारो<br></br> अन्यथा कहोगे मरना अच्छा हर सती से पहले</p>
<p></p>
<p>खूब मयकशी की हमने साथ साक़ी थी वो…</p>
<p><br/> 2121 2122 21 21 2122</p>
<p><br/> हम को कौन जानता था तेरी बन्दगी से पहले<br/> चाल - ढाल खो चुके थे हम तो आशिक़ी से पहले</p>
<p></p>
<p>बन सँवर गये नहींं हम तेेरी दोस्ती से पहले<br/> कब था ये सलीका हमको अपनी गुमशुदी से पहलेे</p>
<p></p>
<p>कूद-फाँद की बहुत पर थाह हो नहीं सकी जाँ <br/> ज़िन्दगी के गुर न पाये हम भी ख़़ुदक़शी से पहले</p>
<p></p>
<p>खो सको जुनूूँ-मुहब्बत आना इस डगर को यारो<br/> अन्यथा कहोगे मरना अच्छा हर सती से पहले</p>
<p></p>
<p>खूब मयकशी की हमने साथ साक़ी थी वो 'चेतन'</p>
<p>ऐ ख़ुुदा अच्छे थे हम भी तेरी बन्दगी से पहले </p>
<p><br/> प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>
<p><span>मौलिक व अप्रकाशित</span></p>ग़जल ( प्रोफ. चेतन प्रकाश चेतन )tag:www.openbooksonline.com,2023-07-07:5170231:BlogPost:11062002023-07-07T08:04:54.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p></p>
<p>221 2122 221 2122</p>
<p></p>
<p>सावन हवा सुहानी आँखों कहीं नमी है<br></br> अब आ भी जाओ जानाँ तुम बिन नहीं खुशी है</p>
<p></p>
<p>छोड़ो भी दिल्लगी अब तन्हाई मारती है <br></br> बढ़ती है अब उदासी बदहाल ज़िन्दगी है</p>
<p></p>
<p>बादल बुझा रहा है सुन प्यास इस ज़मीं की<br></br> तू भी बसा मेरी दुनिया जो नहीं सजी है</p>
<p></p>
<p>ताउम्र तुमको चाहा मेरा जहाँ तुम्हीं हो<br></br> जाँ दिल मलो कि अब तो बेदर्द सी ग़मी है</p>
<p></p>
<p>अलमस्त जी रहे थे हम साथ-साथ जानाँ<br></br> ऐसा हुआ वो क्या हमसे जो ये बेदिली…</p>
<p></p>
<p>221 2122 221 2122</p>
<p></p>
<p>सावन हवा सुहानी आँखों कहीं नमी है<br/> अब आ भी जाओ जानाँ तुम बिन नहीं खुशी है</p>
<p></p>
<p>छोड़ो भी दिल्लगी अब तन्हाई मारती है <br/> बढ़ती है अब उदासी बदहाल ज़िन्दगी है</p>
<p></p>
<p>बादल बुझा रहा है सुन प्यास इस ज़मीं की<br/> तू भी बसा मेरी दुनिया जो नहीं सजी है</p>
<p></p>
<p>ताउम्र तुमको चाहा मेरा जहाँ तुम्हीं हो<br/> जाँ दिल मलो कि अब तो बेदर्द सी ग़मी है</p>
<p></p>
<p>अलमस्त जी रहे थे हम साथ-साथ जानाँ<br/> ऐसा हुआ वो क्या हमसे जो ये बेदिली है</p>
<p></p>
<p>हासिल हों सब खुशियाँ आदम को ज़िन्दगी में<br/> मुमकिन कहाँ वो दुनिया इन्साँ को हर खुशी है</p>
<p></p>
<p>बादे सबा महकती जो बह रही है गुलशन<br/> उसमें भी खुश्बुओं सी तेरी शराब ही है</p>
<p></p>
<p>राहत ख़ुदा की यूँ ही मिलती नहीं कभी सुन <br/> उसके लिये तो चेतन ज़ाहिर वो बन्दगी है</p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश चेतन<br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p>ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2023-06-30:5170231:BlogPost:11063052023-06-30T11:36:02.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>ग़ज़ल</p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>मदमस्त हम न हों कभी आँखों नमी से हम<br></br> सुख दुख रहें खुशी से <span>सदा</span> बन्दगी से हम</p>
<p></p>
<p>हर शख़्स चाहता है ख़ुशी से हो ज़िन्दगी<br></br> तस्बीह हो ख़ुदा की बचें हर बदी से हम</p>
<p></p>
<p>हमदर्द बन रहें कभी ज़िन्दा न लाश हों<br></br> खुशहाल ज़िन्दगी जियें इन्सान ही से हम</p>
<p></p>
<p>हमको क़सम ख़ुदा की न ज़ालिम का साथ हो <br></br> खुशहाल हर कोई कि हर दम नबी से हम</p>
<p></p>
<p>हम भूल कर भी साथ न हों साज़िशों कहीं<br></br> जल्लाद हर कहीं हैं…</p>
<p>ग़ज़ल</p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>मदमस्त हम न हों कभी आँखों नमी से हम<br/> सुख दुख रहें खुशी से <span>सदा</span> बन्दगी से हम</p>
<p></p>
<p>हर शख़्स चाहता है ख़ुशी से हो ज़िन्दगी<br/> तस्बीह हो ख़ुदा की बचें हर बदी से हम</p>
<p></p>
<p>हमदर्द बन रहें कभी ज़िन्दा न लाश हों<br/> खुशहाल ज़िन्दगी जियें इन्सान ही से हम</p>
<p></p>
<p>हमको क़सम ख़ुदा की न ज़ालिम का साथ हो <br/> खुशहाल हर कोई कि हर दम नबी से हम</p>
<p></p>
<p>हम भूल कर भी साथ न हों साज़िशों कहीं<br/> जल्लाद हर कहीं हैं निरे पीर ही से हम</p>
<p></p>
<p>चेतन हमें सुकूँन भी हासिल कहीं तो हो<br/> मंज़िल हमारे क़दमो हों मालिक, ख़ुशी से हम</p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश चेतन<br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>दिया दिखाते सूर्य को...tag:www.openbooksonline.com,2023-06-25:5170231:BlogPost:11062762023-06-25T04:00:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p></p>
<p>दिया दिखाते सूर्य को, बनकर वो कवि सूर ।<br></br> आखर एक पढ़ा नहीं, महफिल की हैं हूर ।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>बुद्ध ...पड़े ..बेकार ..हैं, जग की रेलम पेल । <br></br> कि गधों के सिर ताज है, चलते उलटी रेल ।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>नवाँकुरों ..के घर हुई, उस्तादों... से रार ।<br></br> आज ग़ज़ल प्राईमरी, मीर भी गिरफ्तार ।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>छूट मिली <span>थी</span> जो चचा , उन्हें नहीं दरकार ।<br></br> आँखों ..के ...अन्धे हुए, घर के पहरे दार ।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>ज़ुल्म करते रहे अदब, बदल काफिया…</p>
<p></p>
<p>दिया दिखाते सूर्य को, बनकर वो कवि सूर ।<br/> आखर एक पढ़ा नहीं, महफिल की हैं हूर ।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>बुद्ध ...पड़े ..बेकार ..हैं, जग की रेलम पेल । <br/> कि गधों के सिर ताज है, चलते उलटी रेल ।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>नवाँकुरों ..के घर हुई, उस्तादों... से रार ।<br/> आज ग़ज़ल प्राईमरी, मीर भी गिरफ्तार ।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>छूट मिली <span>थी</span> जो चचा , उन्हें नहीं दरकार ।<br/> आँखों ..के ...अन्धे हुए, घर के पहरे दार ।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>ज़ुल्म करते रहे अदब, बदल काफिया यार । <br/> अबलाओं पर वो करें, घर - घर अत्याचार ।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>दबंगई उनका शगल, अरु ...जूतमपैजार ।<br/> पाल रखे हैं घर कई, यहाँ ..अलम्बरदार ।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश चेतन<br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>एक ताज़ा गज़लtag:www.openbooksonline.com,2023-06-12:5170231:BlogPost:11059362023-06-12T11:56:23.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>22 22 22 22 2</p>
<p></p>
<p>आँगन-आँगन अब धूप खिली है<br></br> कि..अंगड़ाई ले ..नदी ..बही है</p>
<p></p>
<p>ओस पत्तियाें हुई सतरँगी है<br></br>बसंत, <span>बूँद</span> हीर कनी बनी है</p>
<p></p>
<p>बागों बहार फूल कली आई<br></br> ऋुतु बसन्त भी बन वधू बिछी है</p>
<p></p>
<p>लिखा शह्र के भाग्य अभी रोना<br></br> गली-सड़क याँ, लू गर्म बही है</p>
<p></p>
<p>तपता तवा सड़क तारकोल की<br></br> मुफलिस के घर वो छान पड़ी है</p>
<p></p>
<p>आई क्या गरमी मई - जून की<br></br> मौत आम जन सर, आन पड़ी है</p>
<p></p>
<p>बहरा हो गया ख़ुदा…</p>
<p>22 22 22 22 2</p>
<p></p>
<p>आँगन-आँगन अब धूप खिली है<br/> कि..अंगड़ाई ले ..नदी ..बही है</p>
<p></p>
<p>ओस पत्तियाें हुई सतरँगी है<br/>बसंत, <span>बूँद</span> हीर कनी बनी है</p>
<p></p>
<p>बागों बहार फूल कली आई<br/> ऋुतु बसन्त भी बन वधू बिछी है</p>
<p></p>
<p>लिखा शह्र के भाग्य अभी रोना<br/> गली-सड़क याँ, लू गर्म बही है</p>
<p></p>
<p>तपता तवा सड़क तारकोल की<br/> मुफलिस के घर वो छान पड़ी है</p>
<p></p>
<p>आई क्या गरमी मई - जून की<br/> मौत आम जन सर, आन पड़ी है</p>
<p></p>
<p>बहरा हो गया ख़ुदा भी चेतन<br/> लावारिस यारो लाश पड़ी है</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>कुकुभ छंद आधारित सरस्वती गीत-वन्दनाःtag:www.openbooksonline.com,2023-06-01:5170231:BlogPost:11053542023-06-01T02:05:08.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>दुर्दशा हुई मातृ भूमि जो, गंगा ...हुई... .पुरानी है<br></br> पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता-कथा सुनानी है !</p>
<p></p>
<p></p>
<p>दोहा ..सोरठा ..सवैया तज, कवि मुक्त काव्य लिखता है । <br></br> सिद्ध छंद छोड़ काव्य वह अब, भार गिरा कर पढ़ता है ।।<br></br> ग़ज़ल उसे बहुत भाती रही, याद ,.,कविता.. दिलानी है ।<br></br> कविता का ..मर्म नहीं.. जाने , घुट्टी ..उन्हें ...पिलानी है ।।</p>
<p></p>
<p>पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता - कथा.. सुनानी है !</p>
<p></p>
<p></p>
<p>माँ शारदे .. सुन, वरदान दे, दास काव्य का..बन…</p>
<p>दुर्दशा हुई मातृ भूमि जो, गंगा ...हुई... .पुरानी है<br/> पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता-कथा सुनानी है !</p>
<p></p>
<p></p>
<p>दोहा ..सोरठा ..सवैया तज, कवि मुक्त काव्य लिखता है । <br/> सिद्ध छंद छोड़ काव्य वह अब, भार गिरा कर पढ़ता है ।।<br/> ग़ज़ल उसे बहुत भाती रही, याद ,.,कविता.. दिलानी है ।<br/> कविता का ..मर्म नहीं.. जाने , घुट्टी ..उन्हें ...पिलानी है ।।</p>
<p></p>
<p>पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता - कथा.. सुनानी है !</p>
<p></p>
<p></p>
<p>माँ शारदे .. सुन, वरदान दे, दास काव्य का..बन जाऊँ ।<br/> कि नित नये छंद रचूँ माँ मैं, जनगण का बन मन छाऊँ।। <br/> भाव भरी हो.. कविता ..मेरी, जन हित ही.. जो गानी है ।<br/> सत्य सिद्ध हो जिसका.. मैया, रचना.. अमर कहानी है।।.</p>
<p></p>
<p>पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता - कथा.. सुनानी है !</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अन्य कवि रचें काव्य भारती, हो कविता जन प्रिय सारी ।<br/> ध्येय सदैव जन कल्याण हो, मनुज हित ..साधना जारी ।।<br/> राह मिले जीवन जीने की, काव्य ..नहीं ...निगरानी है ।<br/> रस में सही गति कविता की, दुर्गति ..नहीं.. करानी है ।।</p>
<p></p>
<p>पावन देवि सरस्वती तुझे कविता - कथा सुनानी है !</p>
<p></p>
<p><br/> कि तोड़ छंद नवगीत लिखते, अकविता, कविता नहीं है ।<br/> प्रयोग वाद नयी कविता कब, प्रयोग वो सही नहीं है ।।<br/> खोज नये बिम्बों की हो तो, सदैव.. श्रेष्ठ. .....बतानी है ।<br/> अंततः काव्य समय-समर्पित, बात यही कवि जानी है।।</p>
<p></p>
<p>पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता - कथा.. सुनानी है !</p>
<p></p>
<p></p>
<p>भाषा सदा.. प्रवाहमयी हो, बोल चाल.. कवि की ..भाषा ।<br/> आम जन उसे समझ सके माँ, जीवन की हो परिभाषा ।।<br/> हिन्दी भाषा... सर्वश्रेष्ठ.. है, पाचन - क्षमता ....जानी है ।<br/> संस्कृत उर्दू फारसी सखी, अरबी.... भी ..पहचानी है ।।</p>
<p></p>
<p>पावन देवि सरस्वती तुझे, कविता - कथा.. सुनानी है !</p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>है ज़हर आज हवाओं में, दिल दहलते हैंtag:www.openbooksonline.com,2023-05-29:5170231:BlogPost:11047742023-05-29T02:00:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p></p>
<p>1212 1122 1212 22</p>
<p></p>
<p>है ज़हर आज हवाओं में, दिल दहलते हैं<br></br>मुनाफ़िकों की है बस्ती कि वो टहलते हैं</p>
<p></p>
<p>के चार सू यहाँ मरते हैं लोग तनहाई<br></br> बुझे- बुझे से हैं बूढ़े कहीं निकलते हैं</p>
<p></p>
<p>कि ख़ौफनाक है मंज़र ये नफ़रतों दुनिया<br></br> ये ज़ालिमों की है बस्ती खला बहलते हैं</p>
<p></p>
<p>वो शर्म मर गयी आँखों की ग़मज़दा हम हैं<br></br> करें भी क्या अदब वाले यहाँ से चलते हैं</p>
<p></p>
<p>गुलाम देते सलामी वो शाह भी खुश हैं<br></br> कि मार डाले हैं दुश्मन जहाँ जो…</p>
<p></p>
<p>1212 1122 1212 22</p>
<p></p>
<p>है ज़हर आज हवाओं में, दिल दहलते हैं<br/>मुनाफ़िकों की है बस्ती कि वो टहलते हैं</p>
<p></p>
<p>के चार सू यहाँ मरते हैं लोग तनहाई<br/> बुझे- बुझे से हैं बूढ़े कहीं निकलते हैं</p>
<p></p>
<p>कि ख़ौफनाक है मंज़र ये नफ़रतों दुनिया<br/> ये ज़ालिमों की है बस्ती खला बहलते हैं</p>
<p></p>
<p>वो शर्म मर गयी आँखों की ग़मज़दा हम हैं<br/> करें भी क्या अदब वाले यहाँ से चलते हैं</p>
<p></p>
<p>गुलाम देते सलामी वो शाह भी खुश हैं<br/> कि मार डाले हैं दुश्मन जहाँ जो खलते हैं</p>
<p></p>
<p>न आने देंगे बहारें यहाँ वो जब तक हैं <br/> वो आजमाते हैं चेतन निहाल पलते हैं</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>गज़ल ःtag:www.openbooksonline.com,2023-03-12:5170231:BlogPost:11009332023-03-12T14:14:31.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>1222 1222 122</p>
<p></p>
<p>कहूँ सच आपका कोई नहीं है <br></br> जहाँ में आश्ना कोई नहीं है</p>
<p></p>
<p>सबूतों बात ये कह दी अभी से<br></br> वो दुनिया में मिरा कोई नहीं है</p>
<p></p>
<p>ये सब माया उसी की जो छुपा है<br></br> सिवा उसके ख़ुदा कोई नहीं है</p>
<p></p>
<p>अकेलापन बड़ी सबसे सज़ा है<br></br> अभागा अन्यथा कोई नहीं हैं</p>
<p></p>
<p>किया जो ज़ुर्म उसने वो भरेगा<br></br> वो मेरा मुँहलगा कोई नहीं है</p>
<p></p>
<p>मुखौटा कब कोई पहना है मैंने<br></br> बहस ये मुद्दआ कोई नहीं है</p>
<p></p>
<p>जो है इनसान का…</p>
<p>1222 1222 122</p>
<p></p>
<p>कहूँ सच आपका कोई नहीं है <br/> जहाँ में आश्ना कोई नहीं है</p>
<p></p>
<p>सबूतों बात ये कह दी अभी से<br/> वो दुनिया में मिरा कोई नहीं है</p>
<p></p>
<p>ये सब माया उसी की जो छुपा है<br/> सिवा उसके ख़ुदा कोई नहीं है</p>
<p></p>
<p>अकेलापन बड़ी सबसे सज़ा है<br/> अभागा अन्यथा कोई नहीं हैं</p>
<p></p>
<p>किया जो ज़ुर्म उसने वो भरेगा<br/> वो मेरा मुँहलगा कोई नहीं है</p>
<p></p>
<p>मुखौटा कब कोई पहना है मैंने<br/> बहस ये मुद्दआ कोई नहीं है</p>
<p></p>
<p>जो है इनसान का क़ातिल बुरा है<br/> वो मुज़रिम है भला कोई नहीं है</p>
<p></p>
<p>मैं शाइर हूँ यतीमों का वो 'चेतन'<br/> भरोसा बस ख़ुदा कोई नहीं है</p>
<p></p>
<p>सज़ा मिलती कैसे मुझको वो यारों<br/>"मुझे पहचानता कोई नहीं है"</p>
<p><br/>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>
<p></p>
<p><span>मौलिक व</span> <span>अप्रकाशित</span></p>गज़लtag:www.openbooksonline.com,2023-02-17:5170231:BlogPost:10988672023-02-17T02:13:52.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>2122 1212 22 / 112</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कारवाँ प्यार का रुका क्यूँ है<br></br> हादसा आज ये हुआ क्यूँ है</p>
<p></p>
<p>गुलदस्ता वो नहीं कोई फूल नहीं<br></br> दीवाना दोस्त गुमशुदा क्यूँ है</p>
<p></p>
<p>चलनी है रहगुज़र मुझे और भी<br></br> बदगुमाँ फिर वो दिलरुबा क्यूँ है</p>
<p></p>
<p>वो जुनूँ प्यार का हवा हो गया<br></br> होंसला बारहा हुआ क्यूँ है</p>
<p></p>
<p>कौन जाने वो मसअला क्या है</p>
<p>राय़गाँ हुस्न अब हुआ क्यूँ है</p>
<p></p>
<p>कोई रिश्ता ठहरता ही नहीं याँ</p>
<p>राबतों को ये बद्दुआ क्यूँ…</p>
<p>2122 1212 22 / 112</p>
<p></p>
<p></p>
<p>कारवाँ प्यार का रुका क्यूँ है<br/> हादसा आज ये हुआ क्यूँ है</p>
<p></p>
<p>गुलदस्ता वो नहीं कोई फूल नहीं<br/> दीवाना दोस्त गुमशुदा क्यूँ है</p>
<p></p>
<p>चलनी है रहगुज़र मुझे और भी<br/> बदगुमाँ फिर वो दिलरुबा क्यूँ है</p>
<p></p>
<p>वो जुनूँ प्यार का हवा हो गया<br/> होंसला बारहा हुआ क्यूँ है</p>
<p></p>
<p>कौन जाने वो मसअला क्या है</p>
<p>राय़गाँ हुस्न अब हुआ क्यूँ है</p>
<p></p>
<p>कोई रिश्ता ठहरता ही नहीं याँ</p>
<p>राबतों को ये बद्दुआ क्यूँ है</p>
<p></p>
<p>बागबाँ बेईमान होने लगा</p>
<p>फूल बागों जवाँ हुआ क्यूँ है</p>
<p></p>
<p>लाख कोशिश की ज़िन्दगी बदले<br/> सारी महनत ख़ुदा जुआ क्यूँ है</p>
<p></p>
<p>रोशन था सुब्ह आफताब 'चेतन'<br/> शाम होते बुझा - बुझा क्यूँ है</p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>
<p></p>
<p><span>मौलिक एवम् अप्रकाशित</span></p>गीत.... असल कामयाबी जीवन कीtag:www.openbooksonline.com,2023-01-17:5170231:BlogPost:10968412023-01-17T16:30:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p></p>
<p>असल कामयाबी जीवन की<br></br> सहज सरल सादा जीवन हो</p>
<p><br></br> बचना होगा वासना लिप्सा <br></br> अतिशय कामना नहीं मन हो<br></br> चल सकता काम अगर दो रोटी <br></br> तो एक गाय कुत्ते को दे दो !<br></br> पेट भरा होने पर भैया <br></br> उसे कभी अवकाश भी दो</p>
<p></p>
<p>असल कामयाबी जीवन की<br></br> सहज सरल सादा जीवन हो</p>
<p></p>
<p>होता सूर्य है उत्तरायण</p>
<p>सुनहला है अब वातावरण <br></br> निकली है अब धूप धुंध से<br></br> क्षमा भाव अपनाते सज्जन <br></br> सहने की सामर्थ्य बढ़ा लो</p>
<p></p>
<p>असल कामयाबी जीवन की<br></br> सहज…</p>
<p></p>
<p>असल कामयाबी जीवन की<br/> सहज सरल सादा जीवन हो</p>
<p><br/> बचना होगा वासना लिप्सा <br/> अतिशय कामना नहीं मन हो<br/> चल सकता काम अगर दो रोटी <br/> तो एक गाय कुत्ते को दे दो !<br/> पेट भरा होने पर भैया <br/> उसे कभी अवकाश भी दो</p>
<p></p>
<p>असल कामयाबी जीवन की<br/> सहज सरल सादा जीवन हो</p>
<p></p>
<p>होता सूर्य है उत्तरायण</p>
<p>सुनहला है अब वातावरण <br/> निकली है अब धूप धुंध से<br/> क्षमा भाव अपनाते सज्जन <br/> सहने की सामर्थ्य बढ़ा लो</p>
<p></p>
<p>असल कामयाबी जीवन की<br/> सहज सरल सादा जीवन हो</p>
<p></p>
<p>कंक्रीट का जंगल छोड़ें<br/> नदी झील पर्वतों फिर जुड़ें <br/> सादा सा घर प्रकृति बनायें<br/> पगडंडी जिसकी पक्की हो<br/> दिन में धूप रात सोलर हो</p>
<p></p>
<p>असल कामयाबी जीवन की<br/> सहज सरल सादा जीवन हो</p>
<p></p>
<p>कलकल करते झरनों से जल <br/> नदियों में स्नान हमारा हो <br/> गुड़ गुड़ स्रोत बहते पर्वतों <br/> मधुर रास कानो घुलता हो</p>
<p><br/> कि प्रकृति आँगन हों किलकारी<br/> सारे उत्सव ग॔गा - तट हों !</p>
<p>असल कामयाबी जीवन की</p>
<p>सहज सरल सादा जीवन हो</p>
<p></p>
<p>भोग की स्वयं संस्कृति त्यागें<br/> काकटेल मदिरा से भागें<br/> मौसम में फलों का रसपान <br/> सोयी हुई मेधा जगा दे</p>
<p><br/> धरती पुत्र हमें बनना होगा <br/> मान माँ-बाप का बढ़ा दो</p>
<p></p>
<p>असल कामयाबी जीवन की<br/> सहज सरल सादा जीवन हो</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>एक गीतtag:www.openbooksonline.com,2023-01-06:5170231:BlogPost:10966502023-01-06T15:30:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p></p>
<p>अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नहीं है <br></br> है बर्फीली फज़ा जारी साज़ <span>तो</span> सूरज नहीं है !<br></br> मरें मुफ़लिस अभी ठंडी उन्हें घर क्या क़मी है<br></br> लगे हैं लाव लश्कर दर अमीरों क्या ग़मी है</p>
<p></p>
<p>अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नहीं है !</p>
<p></p>
<p>दरीचों पर जमी है बर्फ ठिठुरन हड्डियों है<br></br> है बिस्तर गर्म नेताओं के गरमी गड्डियों है<br></br> बुलाकर अफसरों को घर अभी फाइल पढ़ी है<br></br> है मौसम ये पकोड़ो का अभी दारू उड़ी है<br></br> गरीबों को लगे अब ठंड चढ़ती फुरफुरी…</p>
<p></p>
<p>अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नहीं है <br/> है बर्फीली फज़ा जारी साज़ <span>तो</span> सूरज नहीं है !<br/> मरें मुफ़लिस अभी ठंडी उन्हें घर क्या क़मी है<br/> लगे हैं लाव लश्कर दर अमीरों क्या ग़मी है</p>
<p></p>
<p>अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नहीं है !</p>
<p></p>
<p>दरीचों पर जमी है बर्फ ठिठुरन हड्डियों है<br/> है बिस्तर गर्म नेताओं के गरमी गड्डियों है<br/> बुलाकर अफसरों को घर अभी फाइल पढ़ी है<br/> है मौसम ये पकोड़ो का अभी दारू उड़ी है<br/> गरीबों को लगे अब ठंड चढ़ती फुरफुरी है</p>
<p></p>
<p>अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नही है !</p>
<p></p>
<p>कहीं जलती अलावों ठंड की अरथी नहीं है<br/> अभी शायद हवा वो बेधती हड्डी नहीं है<br/> नहीं पर्यावरण अब शुद्ध अच्छा वो बहाना<br/> तुम्हीं ने गैस छोड़ी आसमाँ जीवन नहीं है </p>
<p></p>
<p>अजब मौसम हुआ आज वो सूरज नही है !</p>
<p></p>
<p>बढ़ी वो भीड़ भी सैलानियों की दिख रही है<br/> अमीरों को नहीं चिन्ता गरीबों की रही है <br/> निकलता गर है वो सूरज अँधेरा झोंपड़ी है<br/> नशीली धूप तो अट्टालिका में ही बसी है !</p>
<p></p>
<p>अजब मौसम हुआ है आज वो सूरज नहीं है !</p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>दिल से अपने हमें गिला है येtag:www.openbooksonline.com,2022-10-05:5170231:BlogPost:10911992022-10-05T12:00:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>2122 1212 22</p>
<p></p>
<p>खुद ब खुद हो गया जुदा है ये</p>
<p>दिल हमारा तो मनचला है ये</p>
<p></p>
<p>गुम है दिल ये किसी पहेली में</p>
<p>और कई दिन से सिलसिला है ये</p>
<p></p>
<p>ज़िन्दगी का कोई सबूत नहीं</p>
<p>बस धड़कता सा हादसा है ये</p>
<p></p>
<p>बात करता नहीं कुछिक दिन से</p>
<p>" दिल से अपने हमें गिला है ये "</p>
<p></p>
<p>है समन्दर भी ये हरा अब तो</p>
<p>चांद पूनम तो ज़लज़ला है ये </p>
<p></p>
<p>बदहवासी रही है हावी दिल</p>
<p>भागता बेहिसी मरा है ये</p>
<p></p>
<p>आखिरी दांव…</p>
<p>2122 1212 22</p>
<p></p>
<p>खुद ब खुद हो गया जुदा है ये</p>
<p>दिल हमारा तो मनचला है ये</p>
<p></p>
<p>गुम है दिल ये किसी पहेली में</p>
<p>और कई दिन से सिलसिला है ये</p>
<p></p>
<p>ज़िन्दगी का कोई सबूत नहीं</p>
<p>बस धड़कता सा हादसा है ये</p>
<p></p>
<p>बात करता नहीं कुछिक दिन से</p>
<p>" दिल से अपने हमें गिला है ये "</p>
<p></p>
<p>है समन्दर भी ये हरा अब तो</p>
<p>चांद पूनम तो ज़लज़ला है ये </p>
<p></p>
<p>बदहवासी रही है हावी दिल</p>
<p>भागता बेहिसी मरा है ये</p>
<p></p>
<p>आखिरी दांव चल चुका 'चेतन'</p>
<p> हद से बाहर है दिल दग़ा है ये</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>
<p></p>
<p></p>ग़ज़ल : बहुत वो देर लगी आग दिल लगाने मेंtag:www.openbooksonline.com,2022-09-19:5170231:BlogPost:10896262022-09-19T10:00:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>1212 1122 1212 22 / 122</p>
<p> </p>
<p>बहुत <span>सी</span> देर लगी आग दिल लगाने में </p>
<p><span>उन्होंने खेल जो खेला उसे</span> <span>उसे मिटाने में</span> </p>
<p></p>
<p>अभी तो आप नहीं भूल पाए प्यार सनम !</p>
<p>लगेगा वक़्त अभी आग वो बुझाने में </p>
<p></p>
<p>वो रात कल भी तो गुज़री है भारी <span>मुझ </span>पर जाँ </p>
<p> <span>अभी कोशिश मिरी बस ज़िन्दगी बनाने में</span></p>
<p></p>
<p>तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा हमें रुलाकर भी</p>
<p>कि शम'अ बुझ अभी जाती है आज़माने…</p>
<p>1212 1122 1212 22 / 122</p>
<p> </p>
<p>बहुत <span>सी</span> देर लगी आग दिल लगाने में </p>
<p><span>उन्होंने खेल जो खेला उसे</span> <span>उसे मिटाने में</span> </p>
<p></p>
<p>अभी तो आप नहीं भूल पाए प्यार सनम !</p>
<p>लगेगा वक़्त अभी आग वो बुझाने में </p>
<p></p>
<p>वो रात कल भी तो गुज़री है भारी <span>मुझ </span>पर जाँ </p>
<p> <span>अभी कोशिश मिरी बस ज़िन्दगी बनाने में</span></p>
<p></p>
<p>तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ा हमें रुलाकर भी</p>
<p>कि शम'अ बुझ अभी जाती है आज़माने में</p>
<p></p>
<p><span>मुझे हुनर है</span> <span>वो हासिल कि लौट आँऊँगा</span></p>
<p>हरा चुका हूँ कभी मौत को मिटाने में</p>
<p></p>
<p>हदें जो भूले हैं हालात को समझने में </p>
<p><span>हैं रोए हम सदा दुनिया हँसाते जाने में</span></p>
<p></p>
<p>लगे तुम्हें न नज़र दुश्मनों की अब 'चेतन'</p>
<p><span>करे मदद तुम्हें भी कोई झलमिलाने में</span></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>ग़ज़ल: : हिन्दीtag:www.openbooksonline.com,2022-09-16:5170231:BlogPost:10894932022-09-16T14:00:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>1222 1222 1222 1222</p>
<p>बह्रे हजज़ मुसम्मन सालिम </p>
<p></p>
<p>जो बोला है वही लिखती मेरा सम्मान है हिन्दी </p>
<p>है बिन्दी माँ के माथे सी पिता का मान है हिन्दी </p>
<p></p>
<p>तुम्हारी माँ अग्रजा मम शिखा का मान है हिन्दी</p>
<p>है सरकारी वो रोटी आज भोजन आन है हिन्दी</p>
<p></p>
<p>खड़ी बोली है हरियाणा कि दिल्ली प्रान है हिन्दी </p>
<p>न है अनजान कोई उससे मेरी शान है हिन्दी </p>
<p></p>
<p>कहूँ क्या आपसे साथी स्वयं भण्डार भाषा है</p>
<p>वो सुमधुर गीत फिल्मों के बड़ा…</p>
<p>1222 1222 1222 1222</p>
<p>बह्रे हजज़ मुसम्मन सालिम </p>
<p></p>
<p>जो बोला है वही लिखती मेरा सम्मान है हिन्दी </p>
<p>है बिन्दी माँ के माथे सी पिता का मान है हिन्दी </p>
<p></p>
<p>तुम्हारी माँ अग्रजा मम शिखा का मान है हिन्दी</p>
<p>है सरकारी वो रोटी आज भोजन आन है हिन्दी</p>
<p></p>
<p>खड़ी बोली है हरियाणा कि दिल्ली प्रान है हिन्दी </p>
<p>न है अनजान कोई उससे मेरी शान है हिन्दी </p>
<p></p>
<p>कहूँ क्या आपसे साथी स्वयं भण्डार भाषा है</p>
<p>वो सुमधुर गीत फिल्मों के बड़ा अनुमान है हिन्दी</p>
<p></p>
<p>वो अग्रजा उर्दू वो माँ बाक़ी भाषा बोलियों की है</p>
<p>वो है सरताज़ हिन्दुस्तान शिव भगवान है हिन्दी</p>
<p></p>
<p>बनी हिन्दी ही ब्रज भाषा वो साँवरिया की नगरी में</p>
<p>रही राधा वो बरसाने अहं अनजान है हिन्दी</p>
<p></p>
<p>रही पाणिनी सुता हिन्दी अज़ल से व्याकरण जो दी </p>
<p>अनोखी भारती भाषा सहोदर जान है हिन्दी</p>
<p></p>
<p>यढ़ें बालक बड़े खुश हों गुनें 'चेतन' गीता को</p>
<p>है तुलसीदास की वो जानकी माँ शान है हिन्दी</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>
<p></p>गज़लtag:www.openbooksonline.com,2022-09-12:5170231:BlogPost:10891812022-09-12T15:00:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>ग़ज़ल</p>
<p>1222 1222 1222 122</p>
<p></p>
<p></p>
<p>रहे जिससे मरासिम थे वही अखबार निकला <br></br> मुसीबत है अभी जीवन निरा श्रृंगार निकला</p>
<p></p>
<p></p>
<p>शबे ग़म दिल मिरा टूटा रही वो आँख रोती<br></br> कई दिन हो गये सूरज न वो संसार निकला</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अँधेरे अधखुली आँखों मुझे अब देखते हैं<br></br> बुरा हो इश्क़ तेरा यार वो अख़बार निकला</p>
<p></p>
<p></p>
<p>न कोई दोस्त है दुनिया न ही हमदम यहाँ है<br></br> जिसे गलहार समझा था अभी खूँख़्वार निकला</p>
<p></p>
<p></p>
<p>न हमजोली बचा है आज तो…</p>
<p>ग़ज़ल</p>
<p>1222 1222 1222 122</p>
<p></p>
<p></p>
<p>रहे जिससे मरासिम थे वही अखबार निकला <br/> मुसीबत है अभी जीवन निरा श्रृंगार निकला</p>
<p></p>
<p></p>
<p>शबे ग़म दिल मिरा टूटा रही वो आँख रोती<br/> कई दिन हो गये सूरज न वो संसार निकला</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अँधेरे अधखुली आँखों मुझे अब देखते हैं<br/> बुरा हो इश्क़ तेरा यार वो अख़बार निकला</p>
<p></p>
<p></p>
<p>न कोई दोस्त है दुनिया न ही हमदम यहाँ है<br/> जिसे गलहार समझा था अभी खूँख़्वार निकला</p>
<p></p>
<p></p>
<p>न हमजोली बचा है आज तो क़मज़ोर मन भी<br/> बहादुर कल रहा था जो फ़क़त मल्हार निकला</p>
<p></p>
<p></p>
<p>सियासत तोड़ डाले घर ये वो परिवार क्या है<br/> हवाला दोस्त का दूँ गर निरा मझधार निकला</p>
<p></p>
<p></p>
<p>बहाओ खूब तुम आँसू मरे अहसास है याँ<br/> भरोसा बारहा टूटा वो चेतन ख़ार निकला</p>
<p></p>
<p><span>मौलिक एवम् अप्रकाशित</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>कह मुकरियाँtag:www.openbooksonline.com,2022-09-04:5170231:BlogPost:10891522022-09-04T10:06:27.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p> ( 1 )</p>
<p></p>
<p>आ जाये दिल खुश हो जाये</p>
<p>चला जाय तो भादों आवे</p>
<p>चाकर बन पैरों गिर पसरा</p>
<p>क्या सखि साजन ? ना सखि भँवरा !</p>
<p></p>
<p> ( 2 )</p>
<p></p>
<p>दादुर मोर पपीहा बोले </p>
<p>कोयल सी वो बोली बोले </p>
<p>समीर बहती है दिल-आँगन </p>
<p>क्या सखि साजन ? ना सखि सावन !</p>
<p></p>
<p> ( 3 )</p>
<p></p>
<p>पोर- पोर में रस भर जावे</p>
<p>चहुँओर मुरलिया सी बाजे</p>
<p>खुशियों का नहीं जग में अंत</p>
<p>क्या सखि साजन ? ना सखि…</p>
<p> ( 1 )</p>
<p></p>
<p>आ जाये दिल खुश हो जाये</p>
<p>चला जाय तो भादों आवे</p>
<p>चाकर बन पैरों गिर पसरा</p>
<p>क्या सखि साजन ? ना सखि भँवरा !</p>
<p></p>
<p> ( 2 )</p>
<p></p>
<p>दादुर मोर पपीहा बोले </p>
<p>कोयल सी वो बोली बोले </p>
<p>समीर बहती है दिल-आँगन </p>
<p>क्या सखि साजन ? ना सखि सावन !</p>
<p></p>
<p> ( 3 )</p>
<p></p>
<p>पोर- पोर में रस भर जावे</p>
<p>चहुँओर मुरलिया सी बाजे</p>
<p>खुशियों का नहीं जग में अंत</p>
<p>क्या सखि साजन ? ना सखि बसंत</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>
<p></p>गज़लtag:www.openbooksonline.com,2022-08-25:5170231:BlogPost:10885882022-08-25T22:30:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>गज़ल</p>
<p>1212 1122 1212 22</p>
<p></p>
<p>वो जिसकी मैंने मदद की शरर पे बैठ गया<br></br> सितारा हो गया सबकी नज़र पे बैठ गया</p>
<p></p>
<p>गरीब जान के जिसकी कभी मदद की थी<br></br> वही ये शहर का बालक तो ज़र पै बैठ गया</p>
<p></p>
<p>वो बार-बार मुझे अपने घर बुलाता था<br></br> जो एक बार गया मैं तो दर पे बैठ गया</p>
<p></p>
<p>तुम्हारे <span>जाने</span> से पहले न कोई मुश्किल थी<br></br> लो फिर हुआ ये कि तूफाँ डगर पे बैठ गया</p>
<p></p>
<p>बदल गये हैं वो हालात ज़िन्दगी के अब<br></br> अगर कहूँ तो शनीचर ही सर पे बैठ…</p>
<p>गज़ल</p>
<p>1212 1122 1212 22</p>
<p></p>
<p>वो जिसकी मैंने मदद की शरर पे बैठ गया<br/> सितारा हो गया सबकी नज़र पे बैठ गया</p>
<p></p>
<p>गरीब जान के जिसकी कभी मदद की थी<br/> वही ये शहर का बालक तो ज़र पै बैठ गया</p>
<p></p>
<p>वो बार-बार मुझे अपने घर बुलाता था<br/> जो एक बार गया मैं तो दर पे बैठ गया</p>
<p></p>
<p>तुम्हारे <span>जाने</span> से पहले न कोई मुश्किल थी<br/> लो फिर हुआ ये कि तूफाँ डगर पे बैठ गया</p>
<p></p>
<p>बदल गये हैं वो हालात ज़िन्दगी के अब<br/> अगर कहूँ तो शनीचर ही सर पे बैठ गया</p>
<p></p>
<p>वो भूलकर सभी शर्मो लिहाज़ दूर हुआ<br/> अलग बसा ली कही दुनिया डर पे बैठ गया</p>
<p></p>
<p>कभी किसी को सताओ नहीं सुना, 'चेतन'<br/> कि फिर तुम्हीं तो कहोगे वो दर पे बैठ गया</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>गज़लtag:www.openbooksonline.com,2022-08-09:5170231:BlogPost:10877302022-08-09T06:00:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>गज़ल</p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p></p>
<p>उम्मीद अब नहीं कोई वो दीदावर मिले<br></br> बहतर खुुदा कसम वही चारागर मिले ( मतला )</p>
<p></p>
<p></p>
<p>लगता नहीं है दिल कोई तो हमसफर मिले <br></br> अब लौट आ कि हम सनम सारी उमर मिले</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अनजान तुम नहीं हो कि मिलते नहीं कभी<br></br> कुछ कर सको तो तुम करो मुझको दर मिले</p>
<p></p>
<p></p>
<p>उलझन भरी हैं रातें बड़ी बेहिसी वो दिन<br></br> हो दोस्त कोई अपना सही रहगुज़र मिले</p>
<p></p>
<p></p>
<p>दिन- रात हो गये बड़े मुश्किल भी बढ़…</p>
<p>गज़ल</p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p></p>
<p>उम्मीद अब नहीं कोई वो दीदावर मिले<br/> बहतर खुुदा कसम वही चारागर मिले ( मतला )</p>
<p></p>
<p></p>
<p>लगता नहीं है दिल कोई तो हमसफर मिले <br/> अब लौट आ कि हम सनम सारी उमर मिले</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अनजान तुम नहीं हो कि मिलते नहीं कभी<br/> कुछ कर सको तो तुम करो मुझको दर मिले</p>
<p></p>
<p></p>
<p>उलझन भरी हैं रातें बड़ी बेहिसी वो दिन<br/> हो दोस्त कोई अपना सही रहगुज़र मिले</p>
<p></p>
<p></p>
<p>दिन- रात हो गये बड़े मुश्किल भी बढ़ गयीं<br/> वापस चले तुम्हीं सनम आओ सहर मिले</p>
<p></p>
<p></p>
<p>आज़ाद हम ज़़रूर हुये खुश नहीं अभी <br/> हो खुशनुमा डगर कि शामो-सहर मिले</p>
<p></p>
<p></p>
<p>लगता नहीं है दिल कोई तो हमसफर मिले <br/> अब लौट आ सनम अभी सब कुछ महर मिले</p>
<p></p>
<p></p>
<p>दो फाड़ दर हुआ ही था अनजान हो गये <br/> बदला मिजाज़ भाई का हम क़मनज़र मिले</p>
<p></p>
<p></p>
<p>चेतन नज़र बदल गई रिश्ते मुहाल हैं <br/> ईमाँ -ज़़मीर गुम गए अ्पने न घर मिले</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक एवम् अप्रकाशित<br/> प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>
<p>-</p>गज़लtag:www.openbooksonline.com,2022-06-30:5170231:BlogPost:10860742022-06-30T04:30:00.000ZChetan Prakashhttp://www.openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>गज़ल<br></br> 221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>अख़लाक पर मुहब्बत भरोसा रहा नहीं <br></br> हमदम रहा कोई कहाँ जानाँ हुआ नहीं</p>
<p></p>
<p></p>
<p>दिल जानता है तुझसे अभी प्यार भी कहाँ<br></br> जो बिक चुका है वो जहाँ तो मन बसा नहीं</p>
<p></p>
<p></p>
<p>लगता उन्हे नहीं है वो दरकार भारती <br></br> गर चाहिए है मुल्क तो मौसम रहा नहीं</p>
<p></p>
<p></p>
<p>गुलदस्ता हिन्दुस्तान है था और होगा भी <br></br> क़मज़र्फ था सदा वो तो भाई हुआ नहीं</p>
<p></p>
<p></p>
<p>औरंगजेब तेरा तो राणा हमारा है<br></br> मत खेल तू ज़मीर से…</p>
<p>गज़ल<br/> 221 2121 1221 212</p>
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<p>अख़लाक पर मुहब्बत भरोसा रहा नहीं <br/> हमदम रहा कोई कहाँ जानाँ हुआ नहीं</p>
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<p>दिल जानता है तुझसे अभी प्यार भी कहाँ<br/> जो बिक चुका है वो जहाँ तो मन बसा नहीं</p>
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<p>लगता उन्हे नहीं है वो दरकार भारती <br/> गर चाहिए है मुल्क तो मौसम रहा नहीं</p>
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<p>गुलदस्ता हिन्दुस्तान है था और होगा भी <br/> क़मज़र्फ था सदा वो तो भाई हुआ नहीं</p>
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<p>औरंगजेब तेरा तो राणा हमारा है<br/> मत खेल तू ज़मीर से माँ का हुआ नहीँ</p>
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<p>क़मज़ोर नस हमारी तो तहजीब है जहाँ <br/> जो मार काट करता वो हारा रहा नहीं ।</p>
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<p>अब नींद से उठो कि वो आतंक द्वार है<br/> हम डूबे ही रहे नशे खाना हुआ नहीं</p>
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<p>चेतन सुना है तुमने ये सरकार और है <br/> <span>ब</span>कलोल है नहीं वो लानत अमा नहीं</p>
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<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
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<p>प्रोफ. चेतन प्रकाश 'चेतन'</p>