AVINASH S BAGDE's Posts - Open Books Online2024-03-29T10:10:42ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDEhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991300718?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=32xk0rpiyc82i&xn_auth=noहाइकुtag:www.openbooksonline.com,2014-08-05:5170231:BlogPost:5649312014-08-05T10:00:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p>मेरे शहर का मौसम !</p>
<div>============</div>
<div>बूँद बरखा </div>
<div>हरियाला मौसम </div>
<div>सजा के रखा </div>
<div>****</div>
<div>आँख झपकी </div>
<div>घनघोर घटायें </div>
<div>बूँद टपकी </div>
<div>****</div>
<div>झूमते पत्ते </div>
<div>नाचते तरुवर </div>
<div>घनों के छत्ते </div>
<div>****</div>
<div>रसिक मन </div>
<div>भीगने को आतुर </div>
<div>तन -बदन </div>
<div>========<br/> @अविनाश बागडे </div>
<p>मेरे शहर का मौसम !</p>
<div>============</div>
<div>बूँद बरखा </div>
<div>हरियाला मौसम </div>
<div>सजा के रखा </div>
<div>****</div>
<div>आँख झपकी </div>
<div>घनघोर घटायें </div>
<div>बूँद टपकी </div>
<div>****</div>
<div>झूमते पत्ते </div>
<div>नाचते तरुवर </div>
<div>घनों के छत्ते </div>
<div>****</div>
<div>रसिक मन </div>
<div>भीगने को आतुर </div>
<div>तन -बदन </div>
<div>========<br/> @अविनाश बागडे </div>सामायिक गीत !tag:www.openbooksonline.com,2014-07-19:5170231:BlogPost:5604152014-07-19T15:49:28.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p><span>सामायिक गीत !</span><br></br><span>==========</span><br></br><span>मन से मन की बात चलेगी</span><br></br><span>सहज भाव अपनापन होगा।</span><br></br><span>जुड़े नहीं जो तार ये मन के</span><br></br><span>सूखा और सूनापन होगा !</span><br></br><br></br><span>छद्म ,छल-कपट छलिया बन के</span><br></br><span>मेघदूत आये सावन के !</span><br></br><span>किसका ये सब रचा हुआ है /</span><br></br><span>मुद्दे का सत्यापन होगा !</span><br></br><span>मन से मन की बात चलेगी</span><br></br><span>सहज भाव अपनापन होगा …।</span><br></br><br></br><span>हर मौसम को धरा सह…</span></p>
<p><span>सामायिक गीत !</span><br/><span>==========</span><br/><span>मन से मन की बात चलेगी</span><br/><span>सहज भाव अपनापन होगा।</span><br/><span>जुड़े नहीं जो तार ये मन के</span><br/><span>सूखा और सूनापन होगा !</span><br/><br/><span>छद्म ,छल-कपट छलिया बन के</span><br/><span>मेघदूत आये सावन के !</span><br/><span>किसका ये सब रचा हुआ है /</span><br/><span>मुद्दे का सत्यापन होगा !</span><br/><span>मन से मन की बात चलेगी</span><br/><span>सहज भाव अपनापन होगा …।</span><br/><br/><span>हर मौसम को धरा सह गई</span><br/><span>बिन बरसे बरसात बह गई</span><br/><span>नीलगगन के सम्मुख भू का</span><br/><span>इसी बात पर ज्ञापन होगा !</span><br/><span>मन से मन की बात चलेगी</span><br/><span>सहज भाव अपनापन होगा …।</span><br/><br/><span>मन-भावन सावन पुरवाई</span><br/><span>आँचल में भर कर ले आई !!</span><br/><span>जलवायु के संग बदरिया !!!!!</span><br/><span>कब तक ये विज्ञापन होगा ?</span><br/><span>मन से मन की बात चलेगी</span><br/><span>सहज भाव अपनापन होगा …।</span><br/><span>=====================</span><br/><span>@ अविनाश बागड़े /मौलिक-अप्रकाशित </span></p>नवगीतtag:www.openbooksonline.com,2014-06-21:5170231:BlogPost:5513122014-06-21T19:00:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p><span>जाने कहाँ <span>गईं </span>?<span><br></br></span></span></p>
<div>**************<br></br> नींदों से सपनों की फसलें<br></br> जाने कहाँ <span>गईं </span>?<br></br> ==<br></br> मलमल के बिस्तर से तन को<br></br> हमने जोड़ रखा<br></br> उसके ऊपर मन-चादर को<br></br> कस के ओढ़ रखा<br></br> रातों की महफ़िल से गज़लें<br></br> जाने कहाँ <span>गईं </span>?<br></br> ==<br></br> बार-बार अँखियों के मैंने<br></br> परदे बंद किये<br></br> सपनों वाली नींद बुलाने<br></br> जप हरचंद किये<br></br> नियति -नटी सपनों के खत ले<br></br> जाने कहाँ <span>गईं </span>?<br></br> ==<br></br> बेटी…</div>
<p><span>जाने कहाँ <span>गईं </span>?<span><br/></span></span></p>
<div>**************<br/> नींदों से सपनों की फसलें<br/> जाने कहाँ <span>गईं </span>?<br/> ==<br/> मलमल के बिस्तर से तन को<br/> हमने जोड़ रखा<br/> उसके ऊपर मन-चादर को<br/> कस के ओढ़ रखा<br/> रातों की महफ़िल से गज़लें<br/> जाने कहाँ <span>गईं </span>?<br/> ==<br/> बार-बार अँखियों के मैंने<br/> परदे बंद किये<br/> सपनों वाली नींद बुलाने<br/> जप हरचंद किये<br/> नियति -नटी सपनों के खत ले<br/> जाने कहाँ <span>गईं </span>?<br/> ==<br/> बेटी कहती पापाजी तुम<br/> नींद में हँसते हो<br/> कसम आपकी मै बतलाऊं<br/> खूब ही जंचते हो<br/> नींद जहाँ दो पल को हंस ले<br/> जाने कहाँ <span>गईं </span>?<br/> ==<br/> नींदों से सपनों की फसलें<br/> जाने कहाँ <span>गईं </span>?<br/> ==================(मौलिक/अप्रकाशित )<br/> -- अविनाश बागडे</div>हाइकु !tag:www.openbooksonline.com,2014-06-18:5170231:BlogPost:5498892014-06-18T09:37:56.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p><span>६ - हाइकु !</span></p>
<div>=======</div>
<div>१. </div>
<div>लटकी लाशें </div>
<div>जड़ ! पेड़ की जड़ें </div>
<div>हुए तमाशे। </div>
<div>२. </div>
<div>सामंतवाद </div>
<div>रक्षक ही भक्षक </div>
<div>समाजवाद !</div>
<div>३. </div>
<div>अदालत है </div>
<div>रुके हुए फैसले </div>
<div>अदावत है </div>
<div>४. </div>
<div>गुणात्मक हो </div>
<div>रिश्तों की बुनावट </div>
<div>भावात्मक हो </div>
<div>५. </div>
<div>चला चरखा </div>
<div>जीवन की कताई </div>
<div>चल चर…</div>
<p><span>६ - हाइकु !</span></p>
<div>=======</div>
<div>१. </div>
<div>लटकी लाशें </div>
<div>जड़ ! पेड़ की जड़ें </div>
<div>हुए तमाशे। </div>
<div>२. </div>
<div>सामंतवाद </div>
<div>रक्षक ही भक्षक </div>
<div>समाजवाद !</div>
<div>३. </div>
<div>अदालत है </div>
<div>रुके हुए फैसले </div>
<div>अदावत है </div>
<div>४. </div>
<div>गुणात्मक हो </div>
<div>रिश्तों की बुनावट </div>
<div>भावात्मक हो </div>
<div>५. </div>
<div>चला चरखा </div>
<div>जीवन की कताई </div>
<div>चल चर खा </div>
<div>६. </div>
<div>साइलेन्स है </div>
<div>ये ट्रैफिक पुलिस </div>
<div>लाइसेंस है </div>
<div>=============</div>
<div>अविनाश बागड़े ( मौलिक-अप्रकाशित )</div>ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2014-03-31:5170231:BlogPost:5267322014-03-31T11:17:54.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p><span>साकी तो हो गिलास भी हो क्या !</span><br></br><span>घूँट-दो -घूँट ये प्यास भी हो क्या !</span><br></br><span>--</span><br></br><span>दूर-दूर यूँ रहकर पास भी हो क्या !</span><br></br><span>मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या !</span><br></br><span>--</span><br></br><span>क्यूँ लगता है डर सा अंधेरों को ?</span><br></br><span>मुझसे कह दो उजास भी हो क्या !</span><br></br><span>--</span><br></br><span>ढँक रही हो मुझको शिदद्त से,</span><br></br><span>मेरी हमनफ़स लिबास भी हो क्या !</span><br></br><span>--</span><br></br><span>दूध जैसी निर्मल…</span></p>
<p><span>साकी तो हो गिलास भी हो क्या !</span><br/><span>घूँट-दो -घूँट ये प्यास भी हो क्या !</span><br/><span>--</span><br/><span>दूर-दूर यूँ रहकर पास भी हो क्या !</span><br/><span>मुझसे मिलकर उदास भी हो क्या !</span><br/><span>--</span><br/><span>क्यूँ लगता है डर सा अंधेरों को ?</span><br/><span>मुझसे कह दो उजास भी हो क्या !</span><br/><span>--</span><br/><span>ढँक रही हो मुझको शिदद्त से,</span><br/><span>मेरी हमनफ़स लिबास भी हो क्या !</span><br/><span>--</span><br/><span>दूध जैसी निर्मल पहचान बारहा ,</span><br/><span>वक़्त पे दही की खटास भी हो क्या !</span><br/><span>-- </span><br/><span>अविनाश बागडे (मौलिक/अप्रकाशित )</span></p>नवगीत: आकाश उसी का है !tag:www.openbooksonline.com,2014-01-21:5170231:BlogPost:5027032014-01-21T18:00:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div><div>नवगीत </div>
<div>********</div>
</div>
<div>उड़ने की जो ठान ले </div>
<div>आकाश उसी का है </div>
<div>पंखों में हो </div>
<div>कमी अगरचे </div>
<div>या फिर ना-ना </div>
<div>के हो चर्चे </div>
<div>इन बातों से ना घबराना </div>
<div>दिल ने सीखा है</div>
<div>…… आकाश उसी का है </div>
<div><div>अगर-मगर जो </div>
</div>
<div>अगर करेगा </div>
<div>कैसे पहली </div>
<div>पेंग भरेगा </div>
<div>सच कहता हूँ सुनो कसम से </div>
<div>मुद्दा तीखा है </div>
<div>..... आकाश उसी का है…</div>
<div><div>नवगीत </div>
<div>********</div>
</div>
<div>उड़ने की जो ठान ले </div>
<div>आकाश उसी का है </div>
<div>पंखों में हो </div>
<div>कमी अगरचे </div>
<div>या फिर ना-ना </div>
<div>के हो चर्चे </div>
<div>इन बातों से ना घबराना </div>
<div>दिल ने सीखा है</div>
<div>…… आकाश उसी का है </div>
<div><div>अगर-मगर जो </div>
</div>
<div>अगर करेगा </div>
<div>कैसे पहली </div>
<div>पेंग भरेगा </div>
<div>सच कहता हूँ सुनो कसम से </div>
<div>मुद्दा तीखा है </div>
<div>..... आकाश उसी का है </div>
<div>उठो बता दो </div>
<div>आसमान को </div>
<div>तोड़ो उसके </div>
<div>तुम गुमान को </div>
<div>बढे हौसलों के आगे </div>
<div>हर रोड़ा फीका है</div>
<div>.... आकाश उसी का है </div>
<div><br/> <div>------------------------------------------------------</div>
<div>अविनाश बागड़े //अपकाशित/मौलिक रचना </div>
</div>धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप में (गीत).tag:www.openbooksonline.com,2014-01-17:5170231:BlogPost:5007242014-01-17T05:30:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप में </div>
<div>धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप में</div>
<div> </div>
<div>क्रांतिकारियों ने जो बलिदान है दिया </div>
<div>निज देश पे हर बात को कुर्बान कर दिया </div>
<div>हम छांव में खड़े थे वो चले थे धूप में </div>
<div>धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप में</div>
<div> </div>
<div>बयानबाजियों से कभी हल नहीं कोई </div>
<div>उंगली उठा के दूजे पे सफल नहीं कोई </div>
<div>फर्क प्रजातंत्र में न रंक ओ भूप में </div>
<div>धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप…</div>
<div>धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप में </div>
<div>धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप में</div>
<div> </div>
<div>क्रांतिकारियों ने जो बलिदान है दिया </div>
<div>निज देश पे हर बात को कुर्बान कर दिया </div>
<div>हम छांव में खड़े थे वो चले थे धूप में </div>
<div>धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप में</div>
<div> </div>
<div>बयानबाजियों से कभी हल नहीं कोई </div>
<div>उंगली उठा के दूजे पे सफल नहीं कोई </div>
<div>फर्क प्रजातंत्र में न रंक ओ भूप में </div>
<div>धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप में</div>
<div> </div>
<div>देश है तो राज और ये नीति सब सही </div>
<div>कुर्सियों से प्रेम दल से प्रीति सब सही </div>
<div>बिन देश कौन रह सका है रंगो-रूप में </div>
<div>धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप में</div>
<div> </div>
<div>अमन परस्ती की है पहचान हमारी </div>
<div>नानक कबीर बुद्ध सी है शान हमारी</div>
<div>शामिल है नाम अपना ऐसे अनूप में</div>
<div>धकेलिए न देश को यूँ अंध-कूप में</div>
<div>-----------------------------------------</div>
<div>अविनाश बागड़े....मौलिक/अप्रकाशित </div>जाने कब तक (नवगीत)tag:www.openbooksonline.com,2014-01-09:5170231:BlogPost:4978312014-01-09T09:30:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>जाने कब तक </div>
<div>चले खेल सारा </div>
<div> </div>
<div>साँस के तार </div>
<div>जब तक जुड़े है </div>
<div>देह की ये </div>
<div>पतंगे उड़े है </div>
<div> </div>
<div>है महज-</div>
<div>उँगलियों का इशारा … </div>
<div>जाने कब तक </div>
<div>चले खेल सारा </div>
<div> </div>
<div>हमने देखा है </div>
<div>अपना रवैया </div>
<div>काम हो तो </div>
<div>करें दादा-भैया </div>
<div> </div>
<div>ढंग जायज़ </div>
<div>नहीं ये हमारा .... </div>
<div>जाने कब तक </div>
<div>चले खेल…</div>
<div>जाने कब तक </div>
<div>चले खेल सारा </div>
<div> </div>
<div>साँस के तार </div>
<div>जब तक जुड़े है </div>
<div>देह की ये </div>
<div>पतंगे उड़े है </div>
<div> </div>
<div>है महज-</div>
<div>उँगलियों का इशारा … </div>
<div>जाने कब तक </div>
<div>चले खेल सारा </div>
<div> </div>
<div>हमने देखा है </div>
<div>अपना रवैया </div>
<div>काम हो तो </div>
<div>करें दादा-भैया </div>
<div> </div>
<div>ढंग जायज़ </div>
<div>नहीं ये हमारा .... </div>
<div>जाने कब तक </div>
<div>चले खेल सारा </div>
<div> </div>
<div>ये व्यवस्था का </div>
<div>जोड़ो-घटाना </div>
<div>गुणा -भाग का </div>
<div>है तराना </div>
<div> </div>
<div>इसके आगे </div>
<div>नहीं कोई चारा .... </div>
<div>जाने कब तक </div>
<div>चले खेल सारा </div>
<div> </div>
<div>कर्म अच्छे </div>
<div>अगर हम करेंगे </div>
<div>बाद अपने भी </div>
<div>जिन्दा रहेंगे </div>
<div> </div>
<div>रखें पाक </div>
<div>सत्संग की धारा </div>
<div>जाने कब तक </div>
<div>चले खेल सारा </div>
<div>.</div>
<div>(अप्रकाशित-मौलिक रचना )</div>
<div>अविनाश बागड़े </div>दस दोहेtag:www.openbooksonline.com,2014-01-02:5170231:BlogPost:4951952014-01-02T05:00:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>निर्ममता से जो पड़ी ,खूब समय की बेंत। </div>
<div>नदिया पूरी बह गई ,शेष रह गई रेत !!१ </div>
<div> </div>
<div>शहर हमारी देह सा ,रक्त नदी की धार। </div>
<div>नस-नस में काहे करे, नाला समझ विचार।।२ </div>
<div> </div>
<div>नदी जन्म देती शहर ,शहर बन रहे शाप। </div>
<div>मैली करते कोख को ,मिलजुल कर हम-आप !!३ </div>
<div> </div>
<div>नदी दीन सी हो गई , बजी ईंट से ईंट। </div>
<div>काँटों से तट पर उगे ,घावनुमा कंक्रीट।।४ </div>
<div> </div>
<div>आसमान जो फट गया ,दुष्कर भागम-भाग…</div>
<div>निर्ममता से जो पड़ी ,खूब समय की बेंत। </div>
<div>नदिया पूरी बह गई ,शेष रह गई रेत !!१ </div>
<div> </div>
<div>शहर हमारी देह सा ,रक्त नदी की धार। </div>
<div>नस-नस में काहे करे, नाला समझ विचार।।२ </div>
<div> </div>
<div>नदी जन्म देती शहर ,शहर बन रहे शाप। </div>
<div>मैली करते कोख को ,मिलजुल कर हम-आप !!३ </div>
<div> </div>
<div>नदी दीन सी हो गई , बजी ईंट से ईंट। </div>
<div>काँटों से तट पर उगे ,घावनुमा कंक्रीट।।४ </div>
<div> </div>
<div>आसमान जो फट गया ,दुष्कर भागम-भाग !</div>
<div>झुलस गए तट साथ के ,लगी नदी में आग।। ५ </div>
<div> </div>
<div>वानर से ही नर बना , सदा कुलाटी खाय !</div>
<div>अपनी हो या गैर की , उम्र नज़र ना आय।।६ </div>
<div> </div>
<div>करती कितना नारियाँ ,जप तप और उपवास !</div>
<div>फिर भी नन्ही बच्चियां ,भोग रही संत्रास।।७ </div>
<div> </div>
<div>काला - रंग समाज का , चिंता की है बात। </div>
<div>बद से बदतर हो रहे , जीने के हालात।।८ </div>
<div> </div>
<div>पायल तुम झंकार पर , इतना मत इतराव। </div>
<div>घुंघरू खुद बजते नहीं ,अगर हिले ना पाँव।।९ </div>
<div> </div>
<div>ना मानूँ मै धर्म को ,मानूँ ना भगवान् !</div>
<div>मै तो इतना जानता ,समय बड़ा बलवान।।१० </div>
<div>----------------------------------------------------------------</div>
<div>अविनाश बागडे...<span>मौलिक/अप्रकाशित </span></div>सुबह का सूरज --नवगीत !tag:www.openbooksonline.com,2013-12-28:5170231:BlogPost:4934042013-12-28T17:30:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>नवगीत </div>
<div>********</div>
<div>सुबह का सूरज </div>
<div>आसमान में चढ़ जाये </div>
<div> </div>
<div>नव प्रभात के </div>
<div>शब्द-सुमन ले </div>
<div>कलरव का </div>
<div>उसमे चिंतन ले </div>
<div>किरणो के कुछ छंद </div>
<div>सलोने गढ़ जाये …सुबह का सूरज </div>
<div> </div>
<div>होते इस परिपक्व </div>
<div>दिवस में </div>
<div>किरणे घुल जाती </div>
<div>नस-नस में </div>
<div>कदमों पर आरोप </div>
<div>थकन के मढ़ जाये …सुबह का सूरज </div>
<div> </div>
<div>ढलती ये </div>
<div>संध्या…</div>
<div>नवगीत </div>
<div>********</div>
<div>सुबह का सूरज </div>
<div>आसमान में चढ़ जाये </div>
<div> </div>
<div>नव प्रभात के </div>
<div>शब्द-सुमन ले </div>
<div>कलरव का </div>
<div>उसमे चिंतन ले </div>
<div>किरणो के कुछ छंद </div>
<div>सलोने गढ़ जाये …सुबह का सूरज </div>
<div> </div>
<div>होते इस परिपक्व </div>
<div>दिवस में </div>
<div>किरणे घुल जाती </div>
<div>नस-नस में </div>
<div>कदमों पर आरोप </div>
<div>थकन के मढ़ जाये …सुबह का सूरज </div>
<div> </div>
<div>ढलती ये </div>
<div>संध्या की बेला</div>
<div>मन हो जाता </div>
<div>निपट अकेला </div>
<div>छोड़ मील के पत्थर </div>
<div>आगे बढ़ जाये …सुबह का सूरज </div>
<div> </div>
<div><div>सुबह का सूरज </div>
<div>आसमान में चढ़ जाये </div>
</div>
<div>--------------------------------------</div>
<div>अविनाश बागड़े मौलिक /अप्रकाशित</div>वही मै दे पाया ! … नवगीत !tag:www.openbooksonline.com,2013-12-23:5170231:BlogPost:4908572013-12-23T06:01:53.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div><font color="#454545" face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif" size="3"><span>वही मै दे पाया ! … नवगीत !</span></font></div>
<div><font color="#454545" face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif" size="3"><span>----------------------------------</span></font></div>
<div><font color="#454545" face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif" size="3"><span>जो था मेरे पास </span></font></div>
<div><span>वही मै दे पाया…</span></div>
<div><font color="#454545" face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif" size="3"><span>वही मै दे पाया ! … नवगीत !</span></font></div>
<div><font color="#454545" face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif" size="3"><span>----------------------------------</span></font></div>
<div><font color="#454545" face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif" size="3"><span>जो था मेरे पास </span></font></div>
<div><span>वही मै दे पाया</span><font color="#454545" face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif" size="3"><span><br/></span></font></div>
<div><span> </span></div>
<div><span>अंतर में खुशियों का सोता </span></div>
<div><span>होठों पर मुस्कान </span></div>
<div><span>चहरे पर है इंद्रधनुष और </span></div>
<div><span>हाव-भाव में शान </span></div>
<div><span> </span></div>
<div><span>इठलाता मधुमास </span></div>
<div><span>तुम्हारी खातिर लाया …ज़ो था …</span><span>वही मै दे पाया </span><span> </span></div>
<div><span> </span></div>
<div><span>मन में था अवसाद </span></div>
<div><span>अधर भी सूखे-सूखे </span></div>
<div><span>नयन किसी दर्शन को </span></div>
<div><span>जैसे प्यासे -भूखे </span></div>
<div><span> </span></div>
<div><span>घुटन नीर आभास </span></div>
<div><span>यही बस लिख पाया </span><span>…ज़ो था …</span><span>वही मै दे पाया </span></div>
<div><span> </span></div>
<div><span>देने को तो दे सकता </span></div>
<div><span>पर क्या है </span><span>अपना</span></div>
<div><span>एक बार तो पूंछू </span></div>
<div><span>उससे उसका सपना </span></div>
<div><span> </span></div>
<div><span>अपने-अपने वृत्त </span></div>
<div><span>समय ने समझाया </span><span>…ज़ो था …</span><span>वही मै दे पाया </span></div>
<div><span> </span></div>
<div><div><font color="#454545" face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif" size="3"><span>जो था मेरे पास </span></font></div>
<div><span>वही मै दे पाया ! </span><span>…ज़ो था …</span><span>वही मै दे पाया </span><span> </span></div>
</div>
<div><span>------------------------------------------------</span></div>
<div><span>अविनाश बागडे मौलिक/अप्रकाशित </span></div>नवगीतtag:www.openbooksonline.com,2013-12-19:5170231:BlogPost:4888842013-12-19T04:00:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>जीने का </div>
<div>विश्वास जगा है </div>
<div> </div>
<div>मरना माना </div>
<div>अटल सत्य है </div>
<div>क्यूँ जीने से </div>
<div>मगर पथ्य है </div>
<div> </div>
<div>जीवन से ये </div>
<div>साफ दगा है .... जीने का। </div>
<div> </div>
<div>मन को </div>
<div>मुट्ठी में कर लूंगा </div>
<div>नयी ऑसजन </div>
<div>मै भर लूंगा </div>
<div> </div>
<div>कर सकता हूँ </div>
<div>मुझे लगा है ... जीने का। </div>
<div> </div>
<div>देख रहें </div>
<div>सब रिश्ते - नाते </div>
<div>याद कर…</div>
<div>जीने का </div>
<div>विश्वास जगा है </div>
<div> </div>
<div>मरना माना </div>
<div>अटल सत्य है </div>
<div>क्यूँ जीने से </div>
<div>मगर पथ्य है </div>
<div> </div>
<div>जीवन से ये </div>
<div>साफ दगा है .... जीने का। </div>
<div> </div>
<div>मन को </div>
<div>मुट्ठी में कर लूंगा </div>
<div>नयी ऑसजन </div>
<div>मै भर लूंगा </div>
<div> </div>
<div>कर सकता हूँ </div>
<div>मुझे लगा है ... जीने का। </div>
<div> </div>
<div>देख रहें </div>
<div>सब रिश्ते - नाते </div>
<div>याद कर रहे </div>
<div>बीती बातें </div>
<div> </div>
<div>याद से बढ़ के </div>
<div>कौन सगा है ... जीने का। </div>
<div>---------------------------------</div>
<div>अविनाश बागड़े </div>
<div>(मौलिक/अप्रकाशित )</div>नवगीतtag:www.openbooksonline.com,2013-12-17:5170231:BlogPost:4881042013-12-17T05:00:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>बर्फ देखो </div>
<div>पिघलने लगी </div>
<div> </div>
<div>साँस पानी की </div>
<div>जैसे थमी थी </div>
<div>पत्थरों की तरह </div>
<div>जो जमी थी … </div>
<div> </div>
<div>स्थितियाँ अब </div>
<div>बदलने लगी … बर्फ देखो। </div>
<div> </div>
<div>वो जो उम्मीद-</div>
<div>-जैसे खिला है </div>
<div>साथ सूरज का </div>
<div>हमको मिला है </div>
<div> </div>
<div>दूरियां पास </div>
<div>चलने लगी …बर्फ देखो। </div>
<div> </div>
<div>मौसम ने </div>
<div>बदली है करवट </div>
<div>पायी…</div>
<div>बर्फ देखो </div>
<div>पिघलने लगी </div>
<div> </div>
<div>साँस पानी की </div>
<div>जैसे थमी थी </div>
<div>पत्थरों की तरह </div>
<div>जो जमी थी … </div>
<div> </div>
<div>स्थितियाँ अब </div>
<div>बदलने लगी … बर्फ देखो। </div>
<div> </div>
<div>वो जो उम्मीद-</div>
<div>-जैसे खिला है </div>
<div>साथ सूरज का </div>
<div>हमको मिला है </div>
<div> </div>
<div>दूरियां पास </div>
<div>चलने लगी …बर्फ देखो। </div>
<div> </div>
<div>मौसम ने </div>
<div>बदली है करवट </div>
<div>पायी है </div>
<div>जीने की आहट </div>
<div> </div>
<div>फिर से सांसें </div>
<div>मचलने लगी</div>
<div><div>बर्फ देखो </div>
<div>पिघलने लगी </div>
</div>
<div>.</div>
<div>--मौलिक /अप्रकाशित </div>
<div>अविनाश बागडे</div>आत्मीयता !!!! (लघु कथा)tag:www.openbooksonline.com,2013-11-17:5170231:BlogPost:4726952013-11-17T08:00:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div><div>शहर के एक नए भाग में पहुँच कर एक गन्तव्य् का पता पूछ रहा था। </div>
<div>कार से उतरते हुए एक सभ्रांत व्यक्ति को पूछा तो उसने नीचे से ऊपर तक देखा और आगे बढ़ गया। मार्किट की तरफ जा रही एक महिला को पता पूछना चाहा तो सिवाय रुखाई के कुछ न हाथ लगा। कालेज जाने वाले एक विद्यार्थी को देख उम्मीद जगी पर कोई फायदा नहीं हुआ। पते का कागज हाथ में लिए कुछ सोच ही रहा था कि एक आवाज कानो में पड़ी 'भैय्या बहुत देर से किसे पूछ रहे हो ?'</div>
<div>चौक की सफाई के बाद सुस्ताने बैठी एक सफाई कामगार महिला…</div>
</div>
<div><div>शहर के एक नए भाग में पहुँच कर एक गन्तव्य् का पता पूछ रहा था। </div>
<div>कार से उतरते हुए एक सभ्रांत व्यक्ति को पूछा तो उसने नीचे से ऊपर तक देखा और आगे बढ़ गया। मार्किट की तरफ जा रही एक महिला को पता पूछना चाहा तो सिवाय रुखाई के कुछ न हाथ लगा। कालेज जाने वाले एक विद्यार्थी को देख उम्मीद जगी पर कोई फायदा नहीं हुआ। पते का कागज हाथ में लिए कुछ सोच ही रहा था कि एक आवाज कानो में पड़ी 'भैय्या बहुत देर से किसे पूछ रहे हो ?'</div>
<div>चौक की सफाई के बाद सुस्ताने बैठी एक सफाई कामगार महिला की आवाज थी। </div>
<div>मै उसकी तरफ बढ़ा </div>
<div>पते का कागज़ देखते ही वह सविस्तार पता समझने लगी । मै भी उसके सद्भाव को नतमस्तक हो सर हिला रहा था। </div>
<div>'चाहो तो आपको वहाँ तक छोड़ आती हूँ ' वह फिर बोली। </div>
<div>'ना ! ना ! मै चला जाउंगा',मैंने कहा। </div>
<div>उसकी सहृदयता को मै देखता ही रह गया ....... </div>
<div>दूसरे दिन सुबह मै अपने बरामदे पे खड़ा था </div>
<div>मेरे मोहल्ले का सफाई कर्मी सुबह की सफाई कर अपना पसीना पोछ ही रहा था कि मै एक पानी से भरी बोतल लेकर उसके पास लपका </div>
<div>' लो पानी पी लो प्यास लगी होगी '</div>
<div>इतनी आत्मीयता !!!!</div>
<div>वह मुझे देखता ही रह गया। </div>
<div>पानी की बोतल से दोनों के हाथ जुड़े थे …। </div>
<div>---------------------------------------------------</div>
<div>अविनाश बागड़े </div>
</div>हाइकूtag:www.openbooksonline.com,2013-10-08:5170231:BlogPost:4514002013-10-08T13:39:31.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>हाइकू </div>
<div>******</div>
<div>भूख मरी है </div>
<div>दो चित्र जीवन के </div>
<div>भुखमरी है </div>
<div>-----</div>
<div>पेपर पढ़ा </div>
<div>भूखा उस पे सोया </div>
<div>पेपर बिछा </div>
<div>---------</div>
<div>धरा पे भेज </div>
<div>भरे जीवन - रंग </div>
<div>वो रंगरेज </div>
<div><div>--------</div>
<div>भजन कर </div>
<div><div>सर्व शक्तिमान का </div>
<div>नमन कर </div>
<div>------</div>
<div>अविनाश बागडे </div>
<div>---------------------</div>
</div>
<div>(मौलिक/अप्रकाशित…</div>
</div>
<div>हाइकू </div>
<div>******</div>
<div>भूख मरी है </div>
<div>दो चित्र जीवन के </div>
<div>भुखमरी है </div>
<div>-----</div>
<div>पेपर पढ़ा </div>
<div>भूखा उस पे सोया </div>
<div>पेपर बिछा </div>
<div>---------</div>
<div>धरा पे भेज </div>
<div>भरे जीवन - रंग </div>
<div>वो रंगरेज </div>
<div><div>--------</div>
<div>भजन कर </div>
<div><div>सर्व शक्तिमान का </div>
<div>नमन कर </div>
<div>------</div>
<div>अविनाश बागडे </div>
<div>---------------------</div>
</div>
<div>(मौलिक/अप्रकाशित )</div>
</div>पहाड़ (लघुकथा)tag:www.openbooksonline.com,2013-09-02:5170231:BlogPost:4267902013-09-02T17:30:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>रोज स्कूल जाते समय पीछा करते आखिर आज असलम ने लता का हाथ रस्ते में पकड़ने की हिमाकत कर ही डाली!!!!!!!!!!!</div>
<div>लता सकपका गई। कातर निगाहों से वो इधर उधर देखने लगी। आने जाने वालों की खामोश नज़रें असलम के खौफ को साफ बयां कर रही थी !</div>
<div>तभी एक पुलिसवाले की नज़र उन पर पड़ी। उसने तत्काल लता को असलम से छुड़वाया और उसे थाने में उठा लाया। बयां देने के लिए लता को भी जाना पड़ा। </div>
<div>कार्यवाही जारी थी …… </div>
<div>लता के मन में असलम और उसके समाज के प्रति घृणा और वितृष्णा के…</div>
<div>रोज स्कूल जाते समय पीछा करते आखिर आज असलम ने लता का हाथ रस्ते में पकड़ने की हिमाकत कर ही डाली!!!!!!!!!!!</div>
<div>लता सकपका गई। कातर निगाहों से वो इधर उधर देखने लगी। आने जाने वालों की खामोश नज़रें असलम के खौफ को साफ बयां कर रही थी !</div>
<div>तभी एक पुलिसवाले की नज़र उन पर पड़ी। उसने तत्काल लता को असलम से छुड़वाया और उसे थाने में उठा लाया। बयां देने के लिए लता को भी जाना पड़ा। </div>
<div>कार्यवाही जारी थी …… </div>
<div>लता के मन में असलम और उसके समाज के प्रति घृणा और वितृष्णा के पहाड़ अपनी उचाईयां नापने लगे। देखते ही देखते उसके मन में ऐसे ही कई पहाड़ स्थापित हो गए !</div>
<div>"तड़ाक "! !</div>
<div>एक चांटे की आवाज ने लता की तन्द्रा भंग कर दी !</div>
<div>पुलिस थाने में पहुंची असलम की माँ ने एक जोरदार तमाचा असलम के गालों पे जड़ दिया। </div>
<div>"थानेदार साब इस नामुराद को लाकअप में डाल दीजिये। जो किसी लड़की का सरे राह अपमान करे वो मेरा बेटा हो ही नहीं सकता "</div>
<div>फिर पलट के उसने लता के सामने हाथ जोड़ लिए। </div>
<div>लता के मन में स्थापित सारे पहाड़ पिघलने लगे थे …… </div>
<div>---------------------------------------------------------------------------------</div>
<div>अविनाश बागडे (मौलिक व अप्रकाशित )</div>ईदी - लघु कथाtag:www.openbooksonline.com,2013-08-20:5170231:BlogPost:4181562013-08-20T05:00:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>रिजवान को पुलिस ने किसी मामले में पकड़ कर थाने में बिठा दिया। उसने थानेदार से अपनी माँ से फोन पर बात करवाने की प्रार्थना की। </div>
<div>थानेदार बोला … माँ का नाम और नंबर दो </div>
<div>जी … मंजूषा . </div>
<div>क्या !</div>
<div>ये कैसे हो सकता है !! ये तो हिन्दू है और तुम …. </div>
<div>जी! आप फोन तो लगाइए माँ को …रिजवान ने जिद की। </div>
<div>थानेदार ने फोन लगाया …. मंजूषा जी ! क्या रिजवान आपका बेटा है?</div>
<div>जी !सहजता से जवाब मिला। </div>
<div>मगर हुआ क्या है ? … मंजूषा…</div>
<div>रिजवान को पुलिस ने किसी मामले में पकड़ कर थाने में बिठा दिया। उसने थानेदार से अपनी माँ से फोन पर बात करवाने की प्रार्थना की। </div>
<div>थानेदार बोला … माँ का नाम और नंबर दो </div>
<div>जी … मंजूषा . </div>
<div>क्या !</div>
<div>ये कैसे हो सकता है !! ये तो हिन्दू है और तुम …. </div>
<div>जी! आप फोन तो लगाइए माँ को …रिजवान ने जिद की। </div>
<div>थानेदार ने फोन लगाया …. मंजूषा जी ! क्या रिजवान आपका बेटा है?</div>
<div>जी !सहजता से जवाब मिला। </div>
<div>मगर हुआ क्या है ? … मंजूषा ने पूछा। </div>
<div>ये आपका बेटा मार पीट के आरोप में थाने में लाया गया है। </div>
<div>मंजूषा तुरंत थाने पहुंची। </div>
<div>अरे आप !</div>
<div>मंजूषा को देखते ही थानेदार और शिकायतकर्ता सहित सब लोग चौंक पड़े। </div>
<div>उनके सामने प्रसिद्ध समाज सेविका खड़ी थी.</div>
<div>आते ही मंजूषा ने शिकायतकर्ता से बड़े ही प्यार से बात की और रिजवान से माफ़ी भी मंगवा दी। </div>
<div>मामला बिना किसी कार्यवाही के वहीँ ख़त्म हो गया। तब तक रिजवान के असली माँ बाप भी वहां आ (जिन्हें अब तक मंजूषा जी ने कुछ भी नहीं बताया था )</div>
<div>ठगे से खड़े थानेदार ने रिजवान से आखिर पूछ ही लिया की माज़रा क्या है </div>
<div>बात काटते हुए मंजूषा जी बोली … समाज की सेवा में जुटे लोगो के लिए समाज का हर व्यक्ति उसका सगा होता है ,इस नाते रिजवान मेरा बेटा ही हुआ और वैसे भी ये मेरे बेटे बंटू का खास दोस्त है … </div>
<div>थानेदार ने एक कड़क सलूट मंजूषा जी को ठोंक दिया। </div>
<div>अरे!रिजवान आज तो ईद है </div>
<div>कहाँ है मेरी ईदी ? …. मंजूषा रिजवान के सर पे हाथ फेरते हुए बोली। </div>
<div>झर झर बहते आंसुओं के बीच रिजवान बोला …. अम्मी आपने मेरे लिए जो आज किया है वही तो मेरे लिए सबसे बड़ी ईदी है …. ईदी तो आपने मुझे दी है आज। …. </div>
<div>---------------------------------------------------------------------------------------------------------</div>
<div>अविनाश बागडे </div>
<div>-----------------------------------------------------------------------------------</div>
<div>(मौलिक और अप्रकाशित )</div>संस्कार (लघुकथा )tag:www.openbooksonline.com,2013-08-13:5170231:BlogPost:4138312013-08-13T17:30:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>संस्कार </div>
<div>********</div>
<div>महीमा जी पर बहू को प्रताड़ित करने का मामला न्यायालय में चल रहा था . </div>
<div>आज एक महत्वपूर्ण गवाही थी . </div>
<div>श्रीमती उषाकिरण ने अपनी गवाही में बताया -</div>
<div>महीमा जी मेरी बहू की माँ है और मै अपनी बहू को बेटी की तरह रखती हूँ . </div>
<div>इनकी बेटी भी मुझे माँ से कहीं बढ़कर स्नेह देती है. </div>
<div>जिस बहू में ऐसे सुंदर संस्कार हो भला उसकी माँ अपनी बहू को कैसे प्रताड़ना का शिकार </div>
<div>बना सकती है !!!!</div>
<div>बातों में…</div>
<div>संस्कार </div>
<div>********</div>
<div>महीमा जी पर बहू को प्रताड़ित करने का मामला न्यायालय में चल रहा था . </div>
<div>आज एक महत्वपूर्ण गवाही थी . </div>
<div>श्रीमती उषाकिरण ने अपनी गवाही में बताया -</div>
<div>महीमा जी मेरी बहू की माँ है और मै अपनी बहू को बेटी की तरह रखती हूँ . </div>
<div>इनकी बेटी भी मुझे माँ से कहीं बढ़कर स्नेह देती है. </div>
<div>जिस बहू में ऐसे सुंदर संस्कार हो भला उसकी माँ अपनी बहू को कैसे प्रताड़ना का शिकार </div>
<div>बना सकती है !!!!</div>
<div>बातों में दम था . </div>
<div>विद्वान न्यायमूर्ति ने महीमा जी को निर्दोष बरी कर दिया … </div>
<div>---------------------------------------------------------------------------</div>
<div>अविनाश बागडे </div>
<div><span>मौलिक व अप्रकाशित </span></div>दोहेtag:www.openbooksonline.com,2013-06-21:5170231:BlogPost:3814922013-06-21T14:45:53.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>फुटकर दोहे ....</div>
<div>** *** *** **</div>
<p><span>आज पुरस्कृत हो रहे ,प्राय: वो पाखण्ड।</span></p>
<div>जिन देहों से लुप्त हैं ,उनके मेरुदण्ड।।</div>
<div>--</div>
<div>झांसा जग को दे रहे, कर ऊर्जा का ह़ास।</div>
<div>सरल राह पर जो चले,सुखद मिले अहसास </div>
<div>--</div>
<div>छद्म एकता का सदा ,रचते हम पाखण्ड।</div>
<div>क्यूँ हम जग को तोड़ते,आओ रहे अखण्ड।।</div>
<div>--</div>
<div>नाम धर्म का हो रहा ,पकता खूब अधर्म।</div>
<div>भोली जनता नासमझ,नहीं जानती…</div>
<div>फुटकर दोहे ....</div>
<div>** *** *** **</div>
<p><span>आज पुरस्कृत हो रहे ,प्राय: वो पाखण्ड।</span></p>
<div>जिन देहों से लुप्त हैं ,उनके मेरुदण्ड।।</div>
<div>--</div>
<div>झांसा जग को दे रहे, कर ऊर्जा का ह़ास।</div>
<div>सरल राह पर जो चले,सुखद मिले अहसास </div>
<div>--</div>
<div>छद्म एकता का सदा ,रचते हम पाखण्ड।</div>
<div>क्यूँ हम जग को तोड़ते,आओ रहे अखण्ड।।</div>
<div>--</div>
<div>नाम धर्म का हो रहा ,पकता खूब अधर्म।</div>
<div>भोली जनता नासमझ,नहीं जानती मर्म।।</div>
<div>--</div>
<div>कहते जिसे क्रिकेट हैं, भोग रहा है दण्ड।</div>
<div>भद्र जनों का खेल था,अब नीरा पाखण्ड।।</div>
<div>------------------------------------------------</div>
<div>अविनाश बागडे </div>
<div>(संपादक महोदय ,.मेरी यह रचना पूर्णत:अप्रकाशित ,अप्रसारित और मौलिक है ,)</div>कुछ हाइकु ...tag:www.openbooksonline.com,2013-04-25:5170231:BlogPost:3529562013-04-25T18:31:53.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>सूरज -चंदा </div>
<div>धरती हवा पानी </div>
<div>आदमी गन्दा </div>
<div>------</div>
<div>रिश्तों का खून </div>
<div>पडोसी का धरम </div>
<div>तेज नाखून .</div>
<div>----</div>
<div>अभी तो थी वो </div>
<div>किलकारियां थमी </div>
<div>रो रही थी वो !!!!!!!</div>
<div>--</div>
<div>बढ़ता धर्म </div>
<div>कम होता विश्वास </div>
<div>शापित कर्म </div>
<div>-----</div>
<div>बचपन में </div>
<div>खिलौने खेले कैसे </div>
<div>डर मन में ...</div>
<div>----</div>
<div>अन्जाने हाथ </div>
<div>चाकलेट…</div>
<div>सूरज -चंदा </div>
<div>धरती हवा पानी </div>
<div>आदमी गन्दा </div>
<div>------</div>
<div>रिश्तों का खून </div>
<div>पडोसी का धरम </div>
<div>तेज नाखून .</div>
<div>----</div>
<div>अभी तो थी वो </div>
<div>किलकारियां थमी </div>
<div>रो रही थी वो !!!!!!!</div>
<div>--</div>
<div>बढ़ता धर्म </div>
<div>कम होता विश्वास </div>
<div>शापित कर्म </div>
<div>-----</div>
<div>बचपन में </div>
<div>खिलौने खेले कैसे </div>
<div>डर मन में ...</div>
<div>----</div>
<div>अन्जाने हाथ </div>
<div>चाकलेट दिखाते </div>
<div>ले गए साथ </div>
<div>-----</div>
<div>जरूरत है </div>
<div>देह दहक रही </div>
<div>क्यूँ आफत है ?</div>
<div>---</div>
<div>अँधा नगर </div>
<div>चौपट लोकशाही </div>
<div>मचा कहर .</div>
<div>-----</div>
<div>तन्हाईयां हैं </div>
<div>यादों की भीड़-भाड़ </div>
<div>रुबाईयां है </div>
<div>----</div>
<div>यातना -वन </div>
<div>जिसका जैसा मन </div>
<div>खुश -चमन </div>
<div>------</div>
<div>बेड़ियाँ टूटे </div>
<div>सामाजिक जंजीरें </div>
<div>बेटियां छूटे </div>
<div>----------</div>
<div>अरे! गुडिया </div>
<div>हरी -हरी चूड़िया </div>
<div>उडी चिड़िया </div>
<div>----</div>
<div>परछाईयां </div>
<div>बिटिया मां से जुदा </div>
<div>शहनाईयां </div>
<div>-------</div>
<div>कुछ तो करो </div>
<div>किसान मर रहा </div>
<div>खेत ही चरो </div>
<div>------</div>
<div>जुबान बंद </div>
<div>तेवर रिश्वत के </div>
<div>जुगाड़चंद </div>
<div>---</div>
<div><span>अविनाश बागडे </span></div>ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2013-02-01:5170231:BlogPost:3135962013-02-01T14:00:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p>आपकी नज़रें इनायत हो गई,<br></br> दूर बरसों की, शिकायत हो गई ।</p>
<p>आप हैं तो धडकनों में गीत है,<br></br> जिंदगी जैसे, रवायत हो गई ।</p>
<p>बात उनकी मानना बस!फ़र्ज़ है,<br></br> जो, जहाँ, जैसी, हिदायत हो गई ।</p>
<p>आपकी खामोशियों को देखकर,<br></br> बात अपनी बस! हिकायत हो गई |</p>
<p>फूल सी लम्बी थी उनकी जिंदगी,<br></br> साँस लेने में, किफायत हो गई |</p>
<p>मेरी नज़रों का ,करें वो शुक्रिया,<br></br> खूबसूरत वो, निहायत हो गई ।</p>
<p>बात टेढ़ी कब, तलक रहती भला,<br></br> सादगी बोली, हिमायत हो गई |…</p>
<p>आपकी नज़रें इनायत हो गई,<br/> दूर बरसों की, शिकायत हो गई ।</p>
<p>आप हैं तो धडकनों में गीत है,<br/> जिंदगी जैसे, रवायत हो गई ।</p>
<p>बात उनकी मानना बस!फ़र्ज़ है,<br/> जो, जहाँ, जैसी, हिदायत हो गई ।</p>
<p>आपकी खामोशियों को देखकर,<br/> बात अपनी बस! हिकायत हो गई |</p>
<p>फूल सी लम्बी थी उनकी जिंदगी,<br/> साँस लेने में, किफायत हो गई |</p>
<p>मेरी नज़रों का ,करें वो शुक्रिया,<br/> खूबसूरत वो, निहायत हो गई ।</p>
<p>बात टेढ़ी कब, तलक रहती भला,<br/> सादगी बोली, हिमायत हो गई |</p>
<ul>
<li><span style="font-size: 13px;">अविनाश बागडे</span></li>
</ul>जीवन की जंग...tag:www.openbooksonline.com,2012-12-25:5170231:BlogPost:3037212012-12-25T07:03:20.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p><span>खास आदमी जीने के, मौके करे तलाश </span></p>
<div>आम आदमी अपनी ही, ढोते फिरता लाश!!!</div>
<div>--</div>
<div>मन पांखी उड़ता रहे,चाहे गगन विशाल।</div>
<div>देखे तन का घोसला ,देता खुद को डाल ।।</div>
<div>--</div>
<div>सोचे है कुछ आदमी ,होती है कुछ बात!</div>
<div>होना होनी के लिये ,करना अपने हाथ।।</div>
<div>--</div>
<div>अलग अलग है बानगी ,अलग अलग है रंग।</div>
<div>जारी है हर मोड़ पे, इस जीवन की जंग।।</div>
<div>--</div>
<div>आँखों में जब अश्क का,दरिया सा…</div>
<p><span>खास आदमी जीने के, मौके करे तलाश </span></p>
<div>आम आदमी अपनी ही, ढोते फिरता लाश!!!</div>
<div>--</div>
<div>मन पांखी उड़ता रहे,चाहे गगन विशाल।</div>
<div>देखे तन का घोसला ,देता खुद को डाल ।।</div>
<div>--</div>
<div>सोचे है कुछ आदमी ,होती है कुछ बात!</div>
<div>होना होनी के लिये ,करना अपने हाथ।।</div>
<div>--</div>
<div>अलग अलग है बानगी ,अलग अलग है रंग।</div>
<div>जारी है हर मोड़ पे, इस जीवन की जंग।।</div>
<div>--</div>
<div>आँखों में जब अश्क का,दरिया सा लहराय ।</div>
<div>दर्द-सिन्धू में जानिए , मन का मीत नहाय ।</div>
<div>------------------</div>
<div>अविनाश बागडे </div>छन्न पकैया : अविनाश बागडेtag:www.openbooksonline.com,2012-12-15:5170231:BlogPost:3004902012-12-15T15:00:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p>छन्न पकैया छन्न पकैया ,पढ़ते दांत पहाडा।<br></br> खड़ा हुआ है सर के ऊपर , डंडा लेकर जाड़ा।।</p>
<p>छन्न पकैया छन्न पकैया,पार तभी हो नाव।<br></br> सर्द हवा के बीच रात में, जलता रहे अलाव।।</p>
<p>छन्न पकैया छन्न पकैया,ठिठुर रहें फुटपाथ।<br></br> काली कुतिया साथ ठिठुरती,सोती है जो साथ।।</p>
<p>छन्न पकैया छन्न पकैया,नहीं गल रही दाल।<br></br> शीत युद्ध के चलते पहनो,स्वेटर मफलर शाल।।</p>
<p>छन्न पकैया छन्न पकैया,सड़कें हैं सुनसान।<br></br> ऊपर वाले का कर्फ्यू है ,लो अच्छे से जान।।</p>
<p>छन्न पकैया छन्न पकैया,कहता है…</p>
<p>छन्न पकैया छन्न पकैया ,पढ़ते दांत पहाडा।<br/> खड़ा हुआ है सर के ऊपर , डंडा लेकर जाड़ा।।</p>
<p>छन्न पकैया छन्न पकैया,पार तभी हो नाव।<br/> सर्द हवा के बीच रात में, जलता रहे अलाव।।</p>
<p>छन्न पकैया छन्न पकैया,ठिठुर रहें फुटपाथ।<br/> काली कुतिया साथ ठिठुरती,सोती है जो साथ।।</p>
<p>छन्न पकैया छन्न पकैया,नहीं गल रही दाल।<br/> शीत युद्ध के चलते पहनो,स्वेटर मफलर शाल।।</p>
<p>छन्न पकैया छन्न पकैया,सड़कें हैं सुनसान।<br/> ऊपर वाले का कर्फ्यू है ,लो अच्छे से जान।।</p>
<p>छन्न पकैया छन्न पकैया,कहता है अविनाश।<br/> कोहरा इतना गहरा है कि ,दिखे नहीं आकाश।</p>
<ul>
<li>अविनाश बागडे</li>
</ul>हाइकु .....tag:www.openbooksonline.com,2012-11-01:5170231:BlogPost:2868622012-11-01T14:56:18.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>1 - 8 !</div>
<div>*******</div>
<div>अगरबत्ती </div>
<div>महकता जीवन </div>
<div>जब जलती .</div>
<div>-------</div>
<div>धुआं ही धुआं </div>
<div>तेरी यादों का तन </div>
<div>जब भी छुआ ..</div>
<div>--------</div>
<div>लगे जताने </div>
<div>छलकते पैमाने </div>
<div>लोग सयाने ..</div>
<div>-------</div>
<div>जाम छलके </div>
<div>हलक तर हुआ </div>
<div>हुए हलके </div>
<div>-------</div>
<div>जानवर है </div>
<div>क्या बिगाड़ पाओगे !</div>
<div>नामवर है ..</div>
<div>------</div>
<div>कागज़ी…</div>
<div>1 - 8 !</div>
<div>*******</div>
<div>अगरबत्ती </div>
<div>महकता जीवन </div>
<div>जब जलती .</div>
<div>-------</div>
<div>धुआं ही धुआं </div>
<div>तेरी यादों का तन </div>
<div>जब भी छुआ ..</div>
<div>--------</div>
<div>लगे जताने </div>
<div>छलकते पैमाने </div>
<div>लोग सयाने ..</div>
<div>-------</div>
<div>जाम छलके </div>
<div>हलक तर हुआ </div>
<div>हुए हलके </div>
<div>-------</div>
<div>जानवर है </div>
<div>क्या बिगाड़ पाओगे !</div>
<div>नामवर है ..</div>
<div>------</div>
<div>कागज़ी घोड़े </div>
<div>चाबुक रिश्वत की </div>
<div>रुकते थोड़े!</div>
<div>------</div>
<div>खबरें पढ़ी </div>
<div>अखबार बिछाया </div>
<div>नींद दो घडी ..</div>
<div>-----</div>
<div>जलता दीया </div>
<div>लपलपाती बाती </div>
<div>नाजुक हीया </div>
<div>---------------------------------</div>
<div>अविनाश बागडे...</div>आओ उस जिंदगी के लिए दुआ करें।।।tag:www.openbooksonline.com,2012-10-16:5170231:BlogPost:2820482012-10-16T05:30:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001461299?profile=original" target="_self"><img class="align-full" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001461299?profile=original" width="307"></img> <span>हाइकु ..सन्दर्भ ,' मलाला '</span></a></p>
<div>* * * * * * * * * * * * * * * </div>
<p></p>
<div><div>रखे सहेज </div>
<div>स्त्री शिक्षा अभियान </div>
<div>रौशनी तेज। </div>
<div>--------</div>
<div>हटायें पर्दा </div>
<div>रौशनी स्कूलों वाली </div>
<div>घूँघट-पर्दा।।</div>
<div>--------</div>
<div>मंत्रोच्चार हो </div>
<div>पढ़ी-लिखी नार हो </div>
<div>अधिकार…</div>
</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001461299?profile=original" target="_self"><img src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001461299?profile=original" width="307" class="align-full"/><span>हाइकु ..सन्दर्भ ,' मलाला '</span></a></p>
<div>* * * * * * * * * * * * * * * </div>
<p></p>
<div><div>रखे सहेज </div>
<div>स्त्री शिक्षा अभियान </div>
<div>रौशनी तेज। </div>
<div>--------</div>
<div>हटायें पर्दा </div>
<div>रौशनी स्कूलों वाली </div>
<div>घूँघट-पर्दा।।</div>
<div>--------</div>
<div>मंत्रोच्चार हो </div>
<div>पढ़ी-लिखी नार हो </div>
<div>अधिकार हो।</div>
<div>----------</div>
<div>बड़ी लड़ाई </div>
<div>एक छोटी लड़की </div>
<div>रौशनी लाई .</div>
<div>------</div>
<div>निज दम पे </div>
<div>हे! मानिनी मलाला </div>
<div>गर्व तुम पे .</div>
<div>----</div>
<div>चौदह साल </div>
<div>पाठ एक मलाला </div>
<div>नहीं मलाल </div>
<div>------</div>
<div>है पाठशाला </div>
<div><span>जोश </span> साहस ,ज्वाला </div>
<div>नाम मलाला </div>
<div>--------</div>
<div>औरत पढ़े </div>
<div>वो इतिहास गढ़े </div>
<div>पर्वत चढ़े।</div>
<div>------</div>
<div>बताओ पाप?</div>
<div>तालिबान ओ खाप !!!</div>
<div>क्या हम-आप???</div>
<div>------</div>
<div>खुदा-ईश्वर </div>
<div>जिंदगी ए मलाला </div>
<div>तेरी नज़र।।।</div>
</div>
<p></p>
<div>---------------------------------</div>
<p></p>
<div>अविनाश बागडे ...</div>
<p></p>हाइकुtag:www.openbooksonline.com,2012-10-11:5170231:BlogPost:2807972012-10-11T15:06:19.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>दस हाइकु </div>
<div>***********</div>
<div>जहर धीमा </div>
<div>परोसते चेनल </div>
<div>चरम सीमा </div>
<div>-------------</div>
<div>चपलता है </div>
<div>तन-मन स्वस्थ है </div>
<div>सफलता है </div>
<div>--------------</div>
<div>चेहरा भाव </div>
<div>मन की परिस्थिती </div>
<div>हंसते घाव </div>
<div>--------------</div>
<div>जंगली फूल </div>
<div>लान की हरियाली </div>
<div>क्यूँ प्रतिकूल ?</div>
<div>--------------</div>
<div>बहती नदी </div>
<div>कटते यूँ किनारे </div>
<div>यही है…</div>
<div>दस हाइकु </div>
<div>***********</div>
<div>जहर धीमा </div>
<div>परोसते चेनल </div>
<div>चरम सीमा </div>
<div>-------------</div>
<div>चपलता है </div>
<div>तन-मन स्वस्थ है </div>
<div>सफलता है </div>
<div>--------------</div>
<div>चेहरा भाव </div>
<div>मन की परिस्थिती </div>
<div>हंसते घाव </div>
<div>--------------</div>
<div>जंगली फूल </div>
<div>लान की हरियाली </div>
<div>क्यूँ प्रतिकूल ?</div>
<div>--------------</div>
<div>बहती नदी </div>
<div>कटते यूँ किनारे </div>
<div>यही है बदी !!</div>
<div>-----------</div>
<div>जूनी शराब </div>
<div>नयी-नयी बोतल </div>
<div>देखो शवाब।</div>
<div>------------</div>
<div>पाखंडी बना </div>
<div>लालच था पैसों का </div>
<div>शिखंडी बना!!!</div>
<div>---------</div>
<div>पर्वतमाला </div>
<div>खुद पर दुशाला </div>
<div>धरा ने डाला।</div>
<div>---------</div>
<div>बोली चिड़िया </div>
<div>बरगद के तले </div>
<div>गयी पीढियां </div>
<div>--------</div>
<div>जागरण है </div>
<div>सुबह का सूरज </div>
<div>क्या स्मरण है?</div>
<div>-------------------</div>
<div>अविनाश बागडे </div>आस्था (लघुकथा)tag:www.openbooksonline.com,2012-09-19:5170231:BlogPost:2735432012-09-19T09:00:00.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p><span>"अरे ! ये क्या!! मनु दीदी तुम तो कह रही थी की तुम्हारा बजट केवल पांच सौ रुपयों का ही था!! ये गणपति जी की शानदार मूर्ती तो हजार रुपयों से क्या कम होगी!!" शाम को सुनंदा ने अपनी बड़ी बहन के घर गणेश स्थापना की पूजा </span><span>के लिये घुसते ही कहा.</span><br></br> <span>'अरे! क्या बताऊँ!! हम मूर्तियाँ खरीदने गए थे तो वहां हमारी काम वाली बाई भी मिल गई. </span><span>उसने पांच सौ वाली मूर्ति उठा ली तो हमारे पास हजार वाली उठाने के अलावा कोई चारा ही नहीं था...."</span><br></br> <span>गहरी उदासी के साथ…</span></p>
<p><span>"अरे ! ये क्या!! मनु दीदी तुम तो कह रही थी की तुम्हारा बजट केवल पांच सौ रुपयों का ही था!! ये गणपति जी की शानदार मूर्ती तो हजार रुपयों से क्या कम होगी!!" शाम को सुनंदा ने अपनी बड़ी बहन के घर गणेश स्थापना की पूजा </span><span>के लिये घुसते ही कहा.</span><br/> <span>'अरे! क्या बताऊँ!! हम मूर्तियाँ खरीदने गए थे तो वहां हमारी काम वाली बाई भी मिल गई. </span><span>उसने पांच सौ वाली मूर्ति उठा ली तो हमारे पास हजार वाली उठाने के अलावा कोई चारा ही नहीं था...."</span><br/> <span>गहरी उदासी के साथ मनु बोली......</span><br/> <span>-------------------------------------------------------------------------------------------------------------</span><br/> <span>अविनाश बागडे.....नागपुर.</span></p>जल सत्याग्रहtag:www.openbooksonline.com,2012-09-09:5170231:BlogPost:2699502012-09-09T11:57:32.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"><img class="align-full" src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" width="403"></img></a></p>
<div>--------२२७</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>ख़राब ग्रह!!</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>ये जल सत्याग्रह…</div>
<p></p>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"><img src="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" width="403" class="align-full"/></a></p>
<div>--------२२७</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>ख़राब ग्रह!!</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>ये जल सत्याग्रह</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>ये सत्ताग्रह!!!</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>--------</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>अधिकार दो</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>पानी में प्यासे लोग</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>इन्हें तार दो.</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>-----------</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>चलती घडी</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>बहता हुआ पानी</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>जनता अड़ी....</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>--------</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>कहाँ है न्याय?</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>जनता असहाय</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>बढ़ा अन्याय...</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>------------</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>हमें बचाओ</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>पानी में डूब रहे</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>हाथ बढाओ.</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>-------</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>मध्यप्रदेश </div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>फैलाता ये सन्देश</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>अन्याय शेष.</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>
<div>-------</div>
<p><a href="http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/3001462143?profile=original" target="_self"></a></p>कुण्डलियाँ छंद...tag:www.openbooksonline.com,2012-08-17:5170231:BlogPost:2606152012-08-17T06:45:51.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<div>चलो बचायें देश!</div>
<div>******************</div>
<p><span>बुनियादें मज़बूत हों , सुदृढ़ रहे मकान.</span></p>
<div>श्रीमन कभी न दीजिये , अफवाहों पर ध्यान.</div>
<div>अफवाहों पर ध्यान , तोड़ने की है साजिश.</div>
<div>अन्दर-बाहर दुश्मन , खड़ा है लेकर माचिस!!</div>
<div>कहता है अविनाश , ताड़कर गलत इरादें.</div>
<div>चलो बचायें देश , थाम लें फिर बुनियादें..........</div>
<div>--------------------------------------------------</div>
<div>अविनाश बागडे...</div>
<div>चलो बचायें देश!</div>
<div>******************</div>
<p><span>बुनियादें मज़बूत हों , सुदृढ़ रहे मकान.</span></p>
<div>श्रीमन कभी न दीजिये , अफवाहों पर ध्यान.</div>
<div>अफवाहों पर ध्यान , तोड़ने की है साजिश.</div>
<div>अन्दर-बाहर दुश्मन , खड़ा है लेकर माचिस!!</div>
<div>कहता है अविनाश , ताड़कर गलत इरादें.</div>
<div>चलो बचायें देश , थाम लें फिर बुनियादें..........</div>
<div>--------------------------------------------------</div>
<div>अविनाश बागडे...</div>कटाक्ष...tag:www.openbooksonline.com,2012-08-16:5170231:BlogPost:2600692012-08-16T04:29:22.000ZAVINASH S BAGDEhttp://www.openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p></p>
<div>जन्म सिद्ध अधिकार बनाम....स्वतंत्रता????</div>
<div>------------------------------------------------</div>
<div>१४ और १५ अगस्त की आधी रात को दो देशों को फिरंगियों से आज़ादी नसीब हुई.</div>
<div>आखिर आज़ादी दिन के उजाले में नहीं मिली ...मिली तो रात की कालिमा के साये में सो वो कालिमा </div>
<div>स्वतंत्रता के इस अधिकार को ऐसा डस रही है कि बस !!! </div>
<div>पाक कि आज़ादी बोले तो वो कभी अपनी कट्टर-पंथी छवि से मुक्त ही कहाँ हुआ है जो इत्मिनान से आज़ादी के बेर चखे..</div>
<div>ऊपर से…</div>
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<div>जन्म सिद्ध अधिकार बनाम....स्वतंत्रता????</div>
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<div>१४ और १५ अगस्त की आधी रात को दो देशों को फिरंगियों से आज़ादी नसीब हुई.</div>
<div>आखिर आज़ादी दिन के उजाले में नहीं मिली ...मिली तो रात की कालिमा के साये में सो वो कालिमा </div>
<div>स्वतंत्रता के इस अधिकार को ऐसा डस रही है कि बस !!! </div>
<div>पाक कि आज़ादी बोले तो वो कभी अपनी कट्टर-पंथी छवि से मुक्त ही कहाँ हुआ है जो इत्मिनान से आज़ादी के बेर चखे..</div>
<div>ऊपर से आतंकवादियों के निर्माण को उद्योग का दर्ज़ा दे के ..मुहँ की खा रहा है...</div>
<div>मुहँ की खा रहा है मतलब,सब कुछ कर-कुराने के बाद ऐसा पल्टी मारता है कि कोई सांप भी शर्मा जाये ..</div>
<div>जाने दो बेचारा पाकिस्तान अपने ही बोझ तले एक बार फिर आज़ादी के लिये छटपटा रहा है ऐसे में उसे और क्यूँ परेशान करें.....</div>
<div>अब १५ को हमने आज़ादी पाई...</div>
<div>सब कुछ स्वतंत्र</div>
<div>कुछ भी करने को आज़ाद</div>
<div>रात को मिली ना स्वतंत्रता! सो दिन निकलते-निकलते सब कुछ चेंज....</div>
<div>वो चेंज आज बड़ा हो के बयानों के बड़बोलेपन और भ्रष्टाचार के राजनीतिक शिष्टाचार में </div>
<div>ऐसा एक्सचेंज हो गया है की मत पूछो....</div>
<div>इन पचास सालो में हमारी तरक्की देखिए कि आज हम टॉयलेट में भी फोन की सुविधा अव्हेल कर सकते हैं और वहां से बता सकते है की मै आउट ऑफ़ स्टशन हूँ...हा...हा...हा.</div>
<div>बिना शादी किये लिव इन रिलेशनशिप के बिस्तर पे गुलछर्रे उड़ा कर खुद को अल्ट्रा माडर्न..माडर्न या </div>
<div>चालू भाषा में बोले तो अगाऊ कहलाने की आज़ादी का जश्न मना रहें हैं लोग .</div>
<div>राजनीती में स्वतंत्रता की तो जैसे सीमाएं ही नहीं है....क्या कोड़ा (झारखंडी सी. एम. मधु कोड़ा ) और क्या कांडा हर ब्रांड का भ्रष्टाचार करने की असीमित आज़ादी....</div>
<div>राज-भवन में बुढौती में राज्यपाल पद की गरिमा को चार-चाँद लगा कर बाद में कोर्ट के लेबर-रूम में एक जवान बेटे के बाप के रूप में पैदा होने की अलौकिक आज़ादी..ठेठ एन .डी.स्टाइल... अरे देश आज़ाद है...कुछ भी करो.</div>
<div>दुकान एक खोलो माल दूसरा बेचो....लोकपाल विधेयक के मुद्दे की दुकान खोली और सरकार में भ्रष्ट मंत्रियो की गिनती करने का माल बेचने लगे ...नतीजा बैक टू पवेलियन...</div>
<div>योग और चूरन बेचने की टपरी लगाई और लगे बेचने विदेशों से काला धन लाने का मुद्दा...अंततोगत्वा हरिद्वार रिटर्न....</div>
<div>बेचारी जनता का क्या जो भी उठ-सुठ हांक लेता है....अब उसे भी तो स्वतंत्रता है ना ! किसी के भी पीछे जाकर नारे लगाने की आज़ादी......</div>
<div>बड़ी-बड़ी स्कूल्स हैं...और उससे भी बड़ी कोचिंग क्लास बनाने की आज़ादी....नाम सर्व-शिक्षा अभियान ...</div>
<div>आम जनता भी आज़ादी के माने खूब समझती है...</div>
<div>हर दर ओ दीवार को खानदानी पीकदान समझ कर पिचकारियाँ छोड़ता रहता है...</div>
<div>शर्मो-हया को घर में रख कर सरे आम सड़क के किनारे लघु से लेकर दीर्घ शंका का समाधान कर लेता है...आज़ाद है...सिंपल!</div>
<div>कुल मिला के हम उस आज़ादी को आलिशान भोग रहें है जो हमें रात में मिली थी</div>
<div>हमें अभी भी इंतजार है दिन वाली चमकीली आज़ादी का जिसका सपना हमारे हर स्वतंत्रता सेनानी या शहीदों ने देखा था....</div>
<div>क्या हम बच्चे जो अब जरुरत से ज्यादा ही बड़े हो गए हैं ,उस आज़ादी को संभाल पाएंगे जो इन पंक्तियों में बयान है...</div>
<div> "हम लायें हैं तूफ़ान से कश्ती निकाल के,</div>
<div>इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के. "</div>
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<div>अविनाश बागडे.</div>