Dr. Geeta Chaudhary's Posts - Open Books Online2024-03-28T21:48:48ZDr. Geeta Chaudharyhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrgeetaChaudharyhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/4665062097?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=2okooex2ah51r&xn_auth=noकविता: "एक वज़ह"tag:www.openbooksonline.com,2023-03-11:5170231:BlogPost:11006882023-03-11T16:58:15.000ZDr. Geeta Chaudharyhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrgeetaChaudhary
<p></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> शिकवों के दौर थे काफी,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> साथ ना तेरे आने को,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> पर एक वज़ह जिंदा थी बाकी,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> तेरा साथ निभाने को।</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> अल्फाज़ों का शोर बहुत था,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> तुझे दगा बताने को।…</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> शिकवों के दौर थे काफी,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> साथ ना तेरे आने को,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> पर एक वज़ह जिंदा थी बाकी,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> तेरा साथ निभाने को।</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> अल्फाज़ों का शोर बहुत था,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> तुझे दगा बताने को।</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> एक मेरी ख़ामोशी थी,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> सब ख़ामोश कराने को।</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> हर गुंजाइश फीकी थी,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> प्रीत परवाज़ चढ़ाने को।</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> एक मेरी उम्मीद थी बाकी,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> बाकी बचा बचाने को।</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> तू पूरब, मैं पश्चिम हूं,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> ना मिलने का छोर है कोई,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> पर तेरा पता है काफी,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> मेरी राह बताने को।</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> </span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> उगते सूरज की लाली तू,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> अंदाज़े आग दिखाने को,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> मैं पश्चिम की लाली हूं,</span></p>
<p><span style="font-size: 12pt;"> सब समेट छिप जाने को।</span></p>
<p> <span style="font-size: 12pt;"><strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></span></p>क्षणिकाएंtag:www.openbooksonline.com,2020-05-02:5170231:BlogPost:10056362020-05-02T20:30:00.000ZDr. Geeta Chaudharyhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrgeetaChaudhary
<div><span>1. बड़ी बात ना कर, बड़ी ज़ात ना कर, </span><span>ना बड़ा गुरूर,</span></div>
<div><span>ख़ुदा की नजरे-इनायत हुई, तो आजमाएगा ज़रू</span>र।</div>
<div>.</div>
<div>2 . कभी वक्त का हिसाब, कभी बातों का,</div>
<div>ज्यादा ना माँगा करो, हम गणित के कच्चे हैं।</div>
<div>.</div>
<div>3. मेरे हौसलें भी बेअद्बी,</div>
<div>उसकी बेअद्बी भी हौसलें।</div>
<div>ये दुनियादारी का गणित है,</div>
<div>ज़मीर से नहीं हिसाब से चलता है।</div>
<div>.</div>
<div>4. तर्कों के तीर काट नहीं पाते,</div>
<div>तेरी…</div>
<div><span>1. बड़ी बात ना कर, बड़ी ज़ात ना कर, </span><span>ना बड़ा गुरूर,</span></div>
<div><span>ख़ुदा की नजरे-इनायत हुई, तो आजमाएगा ज़रू</span>र।</div>
<div>.</div>
<div>2 . कभी वक्त का हिसाब, कभी बातों का,</div>
<div>ज्यादा ना माँगा करो, हम गणित के कच्चे हैं।</div>
<div>.</div>
<div>3. मेरे हौसलें भी बेअद्बी,</div>
<div>उसकी बेअद्बी भी हौसलें।</div>
<div>ये दुनियादारी का गणित है,</div>
<div>ज़मीर से नहीं हिसाब से चलता है।</div>
<div>.</div>
<div>4. तर्कों के तीर काट नहीं पाते,</div>
<div>तेरी यादों का तिलिस्म।</div>
<div>.</div>
<div>5. चल कुछ और हक़ जताएं,</div>
<div>और थोड़ी सी ज़िद की जाय,</div>
<div>हम मुक्त हो कन्यादान से,</div>
<div>और उनकी विदाई की बात की जाय।</div>
<div>.</div>
<div>6. शिकायतें जब अलफ़ाज़ बन</div>
<div>कागज़ पर उतरती हैं,</div>
<div>ना पूछ कितनी उम्मीदों</div>
<div>और अरमानों का सीना चीरती हैं।</div>
<div>.</div>
<div><strong>“मौलिक व अप्रकाशित”</strong></div>ऐ पागल पथिक !tag:www.openbooksonline.com,2020-03-27:5170231:BlogPost:10027442020-03-27T10:02:20.000ZDr. Geeta Chaudharyhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrgeetaChaudhary
<p>ऐ पागल पथिक ! ठहरो जरा ,<br></br>रुको जरा , सांस लो तनिक ,<br></br>सम्भलो जरा I <br></br>सब कुछ पाने की चाह में ,<br></br>कुछ टूट गया उस आशियाने में,<br></br>कुछ छूट गया उस हसीं फ़सानें में ,<br></br>ठहरों, रुको, उसे सवारों, उसे खोजो जरा I <br></br>रुको जरा ........ <br></br>घर पर नन्हों की आस में , <br></br>और बुजुर्गों की लम्बी प्यास में ,<br></br>छूटे किसी साज और रियाज़ में ,<br></br>वक्त की चीनी घोलो जरा, कोई सुर ताल छेड़ो जरा I <br></br>रुको जरा ........ <br></br>लूडो की गोटियाँ खोजो ,<br></br>शतरंज की बिसात बिछाओ जरा ,<br></br>कैरम की धूल…</p>
<p>ऐ पागल पथिक ! ठहरो जरा ,<br/>रुको जरा , सांस लो तनिक ,<br/>सम्भलो जरा I <br/>सब कुछ पाने की चाह में ,<br/>कुछ टूट गया उस आशियाने में,<br/>कुछ छूट गया उस हसीं फ़सानें में ,<br/>ठहरों, रुको, उसे सवारों, उसे खोजो जरा I <br/>रुको जरा ........ <br/>घर पर नन्हों की आस में , <br/>और बुजुर्गों की लम्बी प्यास में ,<br/>छूटे किसी साज और रियाज़ में ,<br/>वक्त की चीनी घोलो जरा, कोई सुर ताल छेड़ो जरा I <br/>रुको जरा ........ <br/>लूडो की गोटियाँ खोजो ,<br/>शतरंज की बिसात बिछाओ जरा ,<br/>कैरम की धूल झाड़ो,<br/>रानी पर नजर लगाओ जरा I <br/>रुको जरा .......<br/>पर भूल न जाना एक नेक काम ,<br/>फिर हो न जाना मशरूफ़ अपने आप में ,<br/>आस-पास देखो, कोई सुदामा खड़ा हो किसी आस में ,<br/>बन कृष्ण झोली भरो , मानव धर्म निभाओं जरा I <br/>रुको जरा .......<br/>माना कि वक़्त सख़्त है,<br/>रूठा है हमसे वो ख़ुदा तो क्या ,<br/>शून्य हुई संवेदनाओं में , पथरा गई आँखों में ,<br/>कुछ रक्त संचार करो, कुछ आशाओं के दीप जलाओ जरा I <br/>रुको जरा .......<br/>इस साझी जंग में अपनी भूमिका निभाओ जरा ,<br/>हम होंगें कामयाब ! दिल से एक अरदास लगाओ तो जरा I <br/>रुको जरा , सांस लो तनिक ,<br/>सम्भलो जरा I <br/>"मौलिक व् अप्रकाशित "</p>कविता: "तुम्हारे हित देशहित से बड़े क्यूँ है?"tag:www.openbooksonline.com,2020-01-12:5170231:BlogPost:9990402020-01-12T14:39:26.000ZDr. Geeta Chaudharyhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrgeetaChaudhary
<p>तुम्हारे हित देशहित से बड़े क्यूँ है<span>?</span></p>
<p>ये दुश्चरित्र<span> </span>है तुम्हारा<span>,</span></p>
<p>सताता मुझे क्यूँ है<span>?</span></p>
<p>तुम इन्सान ही बुरे हो<span>,</span></p>
<p>इल्जाम धर्म और जात पर क्यूँ है<span>?</span></p>
<p>तुम्हे इसमें सुकून है बहुत<span>,</span></p>
<p>ये मेरे सुकूं को खाता क्यूँ है<span>?</span></p>
<p>ये धर्म के ठेकेदार हैं<span>,</span></p>
<p>फिर मानवता के भक्षक क्यूँ हैं<span>?</span></p>
<p>ये दोषी है समाज…</p>
<p>तुम्हारे हित देशहित से बड़े क्यूँ है<span>?</span></p>
<p>ये दुश्चरित्र<span> </span>है तुम्हारा<span>,</span></p>
<p>सताता मुझे क्यूँ है<span>?</span></p>
<p>तुम इन्सान ही बुरे हो<span>,</span></p>
<p>इल्जाम धर्म और जात पर क्यूँ है<span>?</span></p>
<p>तुम्हे इसमें सुकून है बहुत<span>,</span></p>
<p>ये मेरे सुकूं को खाता क्यूँ है<span>?</span></p>
<p>ये धर्म के ठेकेदार हैं<span>,</span></p>
<p>फिर मानवता के भक्षक क्यूँ हैं<span>?</span></p>
<p>ये दोषी है समाज के<span>,</span></p>
<p><span> </span>कतार में इतने रक्षक क्यूँ है<span>?</span></p>
<p>क्या तेरा ईमान है<span>,</span> कहाँ तेरा ज़मीर है<span>?</span></p>
<p>भौंडे कुतर्कों का इतना गुमान क्यूँ है<span>?</span></p>
<p>कर्म- संदेशी इस धरा पर<span>,</span></p>
<p>कर्म से भटका मानव क्यूँ है<span>?</span></p>
<p>गंगा- जमुनी इस तहजीब में<span>,</span></p>
<p>लगा ये कलंक क्यूँ है<span>?</span></p>
<p>कौन रहेगा कौन सहेगा<span>?</span></p>
<p>किसकी होगी दावेदारी<span>?</span></p>
<p>इतिहास केवल दर्ज करेगा</p>
<p>सिर्फ़ तुम्हारी ज़िम्मेदारी<span>I</span></p>
<p>ना मै नेता<span>,</span> ना धर्मगुरु<span>,</span></p>
<p>ना मौलवी<span>,</span> ना ज्ञानी हूँ<span>I</span></p>
<p>माँ भारती की रक्षा में<span> </span></p>
<p>खड़ा एक सेनानी हूँ<span>I</span></p>
<p><span>"</span>मौलिक व अप्रकाशित"</p>गीत: तब तुम कोई गीत लिखना प्रिये!tag:www.openbooksonline.com,2019-12-26:5170231:BlogPost:9978892019-12-26T08:30:00.000ZDr. Geeta Chaudharyhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrgeetaChaudhary
<p>जब पीड़ा आसुओं को मात दे, <br></br> और संभाले ना संभले मन। <br></br> जब यादें मेरी दिल पर दस्तक दें, <br></br> और बेचैन हो ये अंतर्मन। <br></br> तब तुम कोई गीत लिखना प्रिये,</p>
<p>मैं आऊँगी भाव बनकर ज़रूर।</p>
<p></p>
<p>जब मेरी कमी तुमको खले, <br></br> और खोजे अक्श मेरा तुम्हारा मन। <br></br> जब बोझिल हो रातें काटे ना कटे, <br></br> और नींद से आँख-मिचौली खेले नयन। <br></br> तब तुम कोई सपना सजाना प्रिये,</p>
<p>मैं आऊँगी तुमसे मिलने ज़रूर।</p>
<p></p>
<p>जब पतझड़ में झड़ते हो पत्ते पुरातन, <br></br> और लहरों को देख विचलित हो मन।…</p>
<p>जब पीड़ा आसुओं को मात दे, <br/> और संभाले ना संभले मन। <br/> जब यादें मेरी दिल पर दस्तक दें, <br/> और बेचैन हो ये अंतर्मन। <br/> तब तुम कोई गीत लिखना प्रिये,</p>
<p>मैं आऊँगी भाव बनकर ज़रूर।</p>
<p></p>
<p>जब मेरी कमी तुमको खले, <br/> और खोजे अक्श मेरा तुम्हारा मन। <br/> जब बोझिल हो रातें काटे ना कटे, <br/> और नींद से आँख-मिचौली खेले नयन। <br/> तब तुम कोई सपना सजाना प्रिये,</p>
<p>मैं आऊँगी तुमसे मिलने ज़रूर।</p>
<p></p>
<p>जब पतझड़ में झड़ते हो पत्ते पुरातन, <br/> और लहरों को देख विचलित हो मन। <br/> जब यादों के कलेवर हो गाढ़े बहुत, <br/> और आसुओं से धुँधले हो नयन। <br/> तब तुम कोई तस्वीर बनाना प्रिये, <br/> मैं आऊँगी रंग भरने ज़रूर।</p>
<p>“मौलिक व अप्रकाशित”</p>कविता: कुछ ख़ास है उन बातों की बातtag:www.openbooksonline.com,2019-11-10:5170231:BlogPost:9958882019-11-10T13:00:00.000ZDr. Geeta Chaudharyhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrgeetaChaudhary
<div>वो लड़कपन के सपनों की बात,</div>
<div>काग़ज की नाव और कागज़ी जहाजों की बात।</div>
<div>वो जवानी की ज़िद्दी उमंगों की बात,</div>
<div>हर ख़्वाब को हकीकत बनाने की बात।</div>
<div>कुछ ख़ास है उन बातों की बात।</div>
<div>वो हसीं ख्वाबों, ख्यालों की रात,</div>
<div>वो चुराई हसीं मुलाकातों की बात।</div>
<div>वो कही अनकही बातों की बात,</div>
<div>वो बिखरते सिमटते जज्बातों की बात।</div>
<div>कुछ ख़ास है उन बातों की बात।</div>
<div>वो चाही, अनचाही विदाई की बात,</div>
<div><span>और जुदाई में छलके आंसुओ की…</span></div>
<div>वो लड़कपन के सपनों की बात,</div>
<div>काग़ज की नाव और कागज़ी जहाजों की बात।</div>
<div>वो जवानी की ज़िद्दी उमंगों की बात,</div>
<div>हर ख़्वाब को हकीकत बनाने की बात।</div>
<div>कुछ ख़ास है उन बातों की बात।</div>
<div>वो हसीं ख्वाबों, ख्यालों की रात,</div>
<div>वो चुराई हसीं मुलाकातों की बात।</div>
<div>वो कही अनकही बातों की बात,</div>
<div>वो बिखरते सिमटते जज्बातों की बात।</div>
<div>कुछ ख़ास है उन बातों की बात।</div>
<div>वो चाही, अनचाही विदाई की बात,</div>
<div><span>और जुदाई में छलके आंसुओ की बात।</span></div>
<div>वो अपनों के बेगानें होने की बात,</div>
<div>और बेगानों को दिल से अपनानें की बात।</div>
<div>कुछ ख़ास है उन बातों की बात।</div>
<div>वो दिल से दिल को राह की बात,</div>
<div>और चूके पता तो कसक और आह की बात।</div>
<div>वो पहली मुलाकात में जन्मों के रिश्तों की बात,</div>
<div>और कभी जन्मों की बेवजह मुलाकातों की बात।</div>
<div>कुछ ख़ास है उन बातों की बात।</div>
<div>“मौलिक व अप्रकाशित”<span> </span></div>कविता: स्मृति शेषtag:www.openbooksonline.com,2019-11-02:5170231:BlogPost:9955702019-11-02T02:00:00.000ZDr. Geeta Chaudharyhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrgeetaChaudhary
<p><span>स्मृति शेष, बनी विशेष। </span><br></br><span>कभी शूल सी चुभती हैं, </span><br></br><span>कभी बन प्रसून महकती हैं। </span><br></br><span>कभी अश्रु बन छलकती हैं, </span><br></br><span>कभी शब्दों में ढलती हैं। </span><br></br></p>
<p></p>
<p><span>स्मृति शेष, बनी विशेष। </span><br></br><span>अशेष, अन्नत प्रवाह पीड़ा का, </span><br></br><span>बिसराये ना बिसरती हैं। </span><br></br><span>सब छूट गया सब टूट गया, </span><br></br><span>शेष स्मृति का अटूट बंधेज। </span><br></br><br></br><span>स्मृति शेष, बनी विशेष। </span><br></br><span>कुछ…</span></p>
<p><span>स्मृति शेष, बनी विशेष। </span><br/><span>कभी शूल सी चुभती हैं, </span><br/><span>कभी बन प्रसून महकती हैं। </span><br/><span>कभी अश्रु बन छलकती हैं, </span><br/><span>कभी शब्दों में ढलती हैं। </span><br/></p>
<p></p>
<p><span>स्मृति शेष, बनी विशेष। </span><br/><span>अशेष, अन्नत प्रवाह पीड़ा का, </span><br/><span>बिसराये ना बिसरती हैं। </span><br/><span>सब छूट गया सब टूट गया, </span><br/><span>शेष स्मृति का अटूट बंधेज। </span><br/><br/><span>स्मृति शेष, बनी विशेष। </span><br/><span>कुछ जीने का अरमान गया, </span><br/><span>कुछ मरने का अरमान जगा। </span><br/><span>कुछ लावा पश्चात्ताप का है, </span><br/><span>ना दिखता है ना रिसता है। </span><br/><br/><span>स्मृति शेष, बनी विशेष। </span><br/><span>अजीब वियोग का मंथन है</span><br/><span>कुछ यादें अमृत बन जाती है</span><br/><span>कुछ विष पीड़ा बन जाती है</span><br/><span>इस पर भी दुनियां का पहरा है</span><br/><span>फिर समय चक्र कहाँ ठहरा है? </span><br/><br/><span>(मौलिक एवं अप्रकाशित) </span></p>क्षणिकाएं: विछोहtag:www.openbooksonline.com,2019-10-20:5170231:BlogPost:9944712019-10-20T14:44:26.000ZDr. Geeta Chaudharyhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrgeetaChaudhary
<p>1. ये यादों का अकूत कारवां है,</p>
<p> नित बेहिसाब चला पर वही खड़ाI</p>
<p></p>
<p>2. तेरी हाथों की लकीरों का दोष,</p>
<p> या मेरी दुआओ का,</p>
<p> अकाट्य प्रवाह पहेली सा I</p>
<p></p>
<p>3. कभी शब्द भी मौन हुए,</p>
<p> कभी मौन मुस्काए है I</p>
<p> कभी अभिव्यक्तियों को पंख लगे,</p>
<p> कभी सन्नाटों के साये है I</p>
<p></p>
<p>4. बातो का सिलसिला टूटा नहीं तेरे जाने से,</p>
<p> बस फर्क इतना है तेरा किरदार भी निभाती हूँ मै I </p>
<p></p>
<p>5. यूँ तो जी भर जिया हमने जिन्दगी को साथ…</p>
<p>1. ये यादों का अकूत कारवां है,</p>
<p> नित बेहिसाब चला पर वही खड़ाI</p>
<p></p>
<p>2. तेरी हाथों की लकीरों का दोष,</p>
<p> या मेरी दुआओ का,</p>
<p> अकाट्य प्रवाह पहेली सा I</p>
<p></p>
<p>3. कभी शब्द भी मौन हुए,</p>
<p> कभी मौन मुस्काए है I</p>
<p> कभी अभिव्यक्तियों को पंख लगे,</p>
<p> कभी सन्नाटों के साये है I</p>
<p></p>
<p>4. बातो का सिलसिला टूटा नहीं तेरे जाने से,</p>
<p> बस फर्क इतना है तेरा किरदार भी निभाती हूँ मै I </p>
<p></p>
<p>5. यूँ तो जी भर जिया हमने जिन्दगी को साथ साथ,</p>
<p> पर नासूर बन गई वो आधी अधूरी मुलाकात I</p>
<p></p>
<p>६. ना लय छंद के नियम मै जानूँ, ना शब्दों के भण्डार हैं,</p>
<p> बस असीम पीड़ा तेरे विछोह की, और यादों के अकूत अम्बार हैं I</p>
<p></p>
<p> "मौलिक व अप्रकाशित"</p>
<p> (डा० गीता चौधरी)</p>