Rekha Joshi's Posts - Open Books Online2024-03-29T09:29:37ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshihttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991280365?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=25c2xu3uq8lus&xn_auth=noहाँ मै चोर हूँ [लघु कथा ]tag:www.openbooksonline.com,2013-08-27:5170231:BlogPost:4218702013-08-27T07:30:00.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p>फैक्ट्री के आफिस के सामने एक लम्बी सी कार आ कर रुकी और भुवेश बाबू आँखों पर काला चश्मा चढ़ा कर आफिस में अपना काला बैग रख कर वह किसी मीटिग के लिए चले गए, जब वह वापिस आये तो उनके बैग में से किसी ने पचास हजार रूपये निकाल लिए थे। आफिस के सारे कर्मचारियों को पूछताछ के लिए बुलाया गया, सबकी नजरें सफाई कर्मचारी राजू पर टिक गई क्योकि उसे ही भुवेश बाबू के कमरे से बाहर आते हुए देखा गया था। अपनी निगाहें नीची किये हुए राजू के अपना गुनाह कबूल कर लिया और मान लिया कि वह ही चोर है, पुलिस आई और राजू को पकड़…</p>
<p>फैक्ट्री के आफिस के सामने एक लम्बी सी कार आ कर रुकी और भुवेश बाबू आँखों पर काला चश्मा चढ़ा कर आफिस में अपना काला बैग रख कर वह किसी मीटिग के लिए चले गए, जब वह वापिस आये तो उनके बैग में से किसी ने पचास हजार रूपये निकाल लिए थे। आफिस के सारे कर्मचारियों को पूछताछ के लिए बुलाया गया, सबकी नजरें सफाई कर्मचारी राजू पर टिक गई क्योकि उसे ही भुवेश बाबू के कमरे से बाहर आते हुए देखा गया था। अपनी निगाहें नीची किये हुए राजू के अपना गुनाह कबूल कर लिया और मान लिया कि वह ही चोर है, पुलिस आई और राजू को पकड़ कर जेल ले गई । पास ही के एक अस्पताल में राजू के बीमार कैंसर से पीड़ित बेटे का ईलाज चल रहा था । </p>
<p></p>
<p>रेखा जोशी </p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित रचना </p>आशा की नवकिरणtag:www.openbooksonline.com,2013-05-31:5170231:BlogPost:3702442013-05-31T15:11:04.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p></p>
<p>आशा की इक नवकिरण</p>
<p>भर देती है संचार तन में</p>
<p>पंख पखेरू बन के ये मन</p>
<p>भर लेता है ये ऊँची उड़ान</p>
<p>जा पहुंचा है दूर गगन पर</p>
<p>पीछे छोड़ के चाँद सितारे</p>
<p>छू रहा है सातवाँ आसमां</p>
<p>गीत गुनगुनाये धुन मधुर</p>
<p>रच रहा है हर पल नवीन </p>
<p>सृजन निरंतर रहा है कर</p>
<p>झंकृत करता तार मन के</p>
<p>बन जाता मानव महान </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p>आशा की इक नवकिरण</p>
<p>भर देती है संचार तन में</p>
<p>पंख पखेरू बन के ये मन</p>
<p>भर लेता है ये ऊँची उड़ान</p>
<p>जा पहुंचा है दूर गगन पर</p>
<p>पीछे छोड़ के चाँद सितारे</p>
<p>छू रहा है सातवाँ आसमां</p>
<p>गीत गुनगुनाये धुन मधुर</p>
<p>रच रहा है हर पल नवीन </p>
<p>सृजन निरंतर रहा है कर</p>
<p>झंकृत करता तार मन के</p>
<p>बन जाता मानव महान </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>नवगीतtag:www.openbooksonline.com,2013-04-22:5170231:BlogPost:3514612013-04-22T11:03:46.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p> मत तोड़ फूल को शाख से</p>
<div><p>झूमते झूलते संग हवा के</p>
<div><p>हिलोरें ले रही शाखाओं पर </p>
</div>
<div><p>सज रहें ये खिले खिले पेड़</p>
<p>बहने दो संगीतमय लहर</p>
<p>यही तो गीत है जीवन का </p>
<p>....................................</p>
<p> रहने दो फूल को शाख पर </p>
<p>वहीँ खिलने और झड़ने दो </p>
<p>बिखरने दो इसे यूं ही यहाँ </p>
<p>आकुल है भूमि चूमने इसे </p>
<p>महकने दो आँचल धरा का </p>
<p>सृजन होगा नवगीत यहाँ </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>
<p></p>
</div>
</div>
<p> मत तोड़ फूल को शाख से</p>
<div><p>झूमते झूलते संग हवा के</p>
<div><p>हिलोरें ले रही शाखाओं पर </p>
</div>
<div><p>सज रहें ये खिले खिले पेड़</p>
<p>बहने दो संगीतमय लहर</p>
<p>यही तो गीत है जीवन का </p>
<p>....................................</p>
<p> रहने दो फूल को शाख पर </p>
<p>वहीँ खिलने और झड़ने दो </p>
<p>बिखरने दो इसे यूं ही यहाँ </p>
<p>आकुल है भूमि चूमने इसे </p>
<p>महकने दो आँचल धरा का </p>
<p>सृजन होगा नवगीत यहाँ </p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित </p>
<p></p>
</div>
</div>लहराती चांदनीtag:www.openbooksonline.com,2013-03-23:5170231:BlogPost:3370242013-03-23T17:51:22.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p></p>
<p></p>
<p>मै हूँ धरती</p>
<p>आसमान पे चाँद</p>
<p>साथ साथ है</p>
<p>....................</p>
<p>शीतल तन</p>
<p>लहराती चांदनी</p>
<p>छटा बिखरी</p>
<p>...................</p>
<p>ठंडी हवाएं</p>
<p>जल रहा बदन</p>
<p>तड़पा जाती</p>
<p>.................</p>
<p>स्नेहिल साथ</p>
<p>अंगडाई प्यार की</p>
<p>बहार आई</p>
<p>..................</p>
<p>रात की रानी</p>
<p>दुधिया चांदनी है</p>
<p>महके धरा</p>
<p></p>
<p><span>अप्रकाशित एवं मौलिक </span></p>
<p></p>
<p></p>
<p>मै हूँ धरती</p>
<p>आसमान पे चाँद</p>
<p>साथ साथ है</p>
<p>....................</p>
<p>शीतल तन</p>
<p>लहराती चांदनी</p>
<p>छटा बिखरी</p>
<p>...................</p>
<p>ठंडी हवाएं</p>
<p>जल रहा बदन</p>
<p>तड़पा जाती</p>
<p>.................</p>
<p>स्नेहिल साथ</p>
<p>अंगडाई प्यार की</p>
<p>बहार आई</p>
<p>..................</p>
<p>रात की रानी</p>
<p>दुधिया चांदनी है</p>
<p>महके धरा</p>
<p></p>
<p><span>अप्रकाशित एवं मौलिक </span></p>मै बांसुरी बन जाऊं प्रियतमtag:www.openbooksonline.com,2013-03-03:5170231:BlogPost:3267012013-03-03T06:23:30.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p>मै बांसुरी बन जाऊं प्रियतम</p>
<p>और फिर इसे तुम अधर धरो</p>
<p>.............................................</p>
<p>.धुन मधुर बांसुरी की सुन मै</p>
<p> पाऊं कान्हा को राधिका बन </p>
<p>..........................................</p>
<p>रोम रोम यह कम्पित हो जाए</p>
<p>तन मन में कुछ ऐसा भर दो</p>
<p>............................................</p>
<p>प्रेम नीर भर आये नयनों में</p>
<p>शांत करे जो ज्वाला अंतर की </p>
<p>..........................................</p>
<p>फैले कण कण में…</p>
<p>मै बांसुरी बन जाऊं प्रियतम</p>
<p>और फिर इसे तुम अधर धरो</p>
<p>.............................................</p>
<p>.धुन मधुर बांसुरी की सुन मै</p>
<p> पाऊं कान्हा को राधिका बन </p>
<p>..........................................</p>
<p>रोम रोम यह कम्पित हो जाए</p>
<p>तन मन में कुछ ऐसा भर दो</p>
<p>............................................</p>
<p>प्रेम नीर भर आये नयनों में</p>
<p>शांत करे जो ज्वाला अंतर की </p>
<p>..........................................</p>
<p>फैले कण कण में उजियारा</p>
<p>और हर ले मन का अँधियारा</p>
<p>.........................................</p>
<p>मै बांसुरी बन जाऊं प्रियतम</p>
<p>और फिर इसे तुम अधर धरो</p>पति परमेश्वर[लघु कथा ]tag:www.openbooksonline.com,2013-03-01:5170231:BlogPost:3260282013-03-01T09:30:00.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p></p>
<p>''सोनू आज तुमने फिर आने में देर कर दी ,देखो सारे बर्तन जूठे पड़ें है ,सारा घर फैला पड़ा है ,कितना काम है ।''मीना ने सोनू के घर के अंदर दाखिल होते ही बोलना शुरू कर दिया ,लेकिन सोनू चुपचाप आँखे झुकाए किचेन में जा कर बर्तन मांजने लगी ,तभी मीना ने उसके मुख की ओर ध्यान से देखा ,उसका पूरा मुहं सूज रहा था ,उसकी बाहों और गर्दन पर भी लाल नीले निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे । ''आज फिर अपने आदमी से पिट कर आई है ''?उन निशानों को देखते हुए मीना ने पूछा ,परन्तु सोनू ने कोई उत्तर नही दिया ,नजरें…</p>
<p></p>
<p>''सोनू आज तुमने फिर आने में देर कर दी ,देखो सारे बर्तन जूठे पड़ें है ,सारा घर फैला पड़ा है ,कितना काम है ।''मीना ने सोनू के घर के अंदर दाखिल होते ही बोलना शुरू कर दिया ,लेकिन सोनू चुपचाप आँखे झुकाए किचेन में जा कर बर्तन मांजने लगी ,तभी मीना ने उसके मुख की ओर ध्यान से देखा ,उसका पूरा मुहं सूज रहा था ,उसकी बाहों और गर्दन पर भी लाल नीले निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे । ''आज फिर अपने आदमी से पिट कर आई है ''?उन निशानों को देखते हुए मीना ने पूछा ,परन्तु सोनू ने कोई उत्तर नही दिया ,नजरें झुकाए अपना काम करती रही बस उसकी आँखों से दो मोटे मोटे आंसू टपक पड़े । मीना ने इस पर उसे लम्बा चौड़ा भाषण और सुना दिया कि उन जैसी औरतों को अपने अधिकार के लिए लड़ना नही आता ,आये दिन पिटती रहती है ,घरेलू हिंसा के तहत उसके घरवाले को जेल हो सकती है और न जानेक्या क्या बुदबुदाती रही मीनू । उसी रात देव मीनू के पति रात देर से घर पहुंचे ,किसी पार्टी से आये थे वह ,एक दो पैग भी चढ़ा रखे थे ,मीनू ने दरवाज़ा खोलते ही बस इतना पूछ लिया ,''आज देर से कैसे आये ,?''बस देव का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया ,आव देखा न ताव कस कर दो थप्पड़ मीना के गाल पर जड़ दिए । सुबह जब सोनू ने अपनी मालकिन का सूजा हुआ चेहरा देखा तो वह अवाक उसे देखती रह गई । </p>अनजान मंजिलtag:www.openbooksonline.com,2013-02-23:5170231:BlogPost:3229442013-02-23T09:50:42.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p>चला जा रहा हूँ इस निर्जन पथ पर <br></br>अनजानी डगर है मंजिल अनजान <br></br>फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ<br></br>...........................................<br></br>आँधियों के थपेड़ो ने डराया मुझको <br></br>गरजते बादलो ने दहलाया दिल को<br></br>फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ<br></br>..........................................<br></br>भटक रहा कब से पथरीली राहों पर <br></br>पथिक हूँ अनजान कंटीली राहों का <br></br>फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ <br></br>............................................<br></br>आसन नही चलना हो कर जख्मी…</p>
<p>चला जा रहा हूँ इस निर्जन पथ पर <br/>अनजानी डगर है मंजिल अनजान <br/>फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ<br/>...........................................<br/>आँधियों के थपेड़ो ने डराया मुझको <br/>गरजते बादलो ने दहलाया दिल को<br/>फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ<br/>..........................................<br/>भटक रहा कब से पथरीली राहों पर <br/>पथिक हूँ अनजान कंटीली राहों का <br/>फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ <br/>............................................<br/>आसन नही चलना हो कर जख्मी <br/>गिरता पड़ता ठोकरें खाता कितनी <br/>फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ <br/>.........................................<br/> चलता रहूँगा साथ देंगे पाँव जब तक<br/> कहाँ जा रहा हूँ नही जानता अब तक <br/> फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ<br/>............................................<br/>कभी तो मिलेगी यूँ चलते हुए मंजिल <br/>कहीं तो ले जाएगी ये राह जिंदगी की <br/>यही सोच मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ <br/>...........................................</p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित रचना</p>प्रियतम मेरेtag:www.openbooksonline.com,2013-02-16:5170231:BlogPost:3191742013-02-16T18:00:16.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p><span>प्रियतम मेरे </span></p>
<div>फिर वही शाम वही तन्हाई </div>
<div>दिल में मेरे वही दर्द ले कर आई </div>
<div>....................................</div>
<div>प्रियतम मेरे </div>
<div>ढूँढ़ रही है बेचैन निगाहें </div>
<div>कहाँ खो गये दुनिया की भीड़ में</div>
<div>......................................</div>
<div>प्रियतम मेरे</div>
<div>मजनू बना प्यार में तेरे </div>
<div>आईना भी नही पहचानता मुझे</div>
<div>.....................................</div>
<div>प्रियतम मेरे </div>
<div>दर्देदिल…</div>
<p><span>प्रियतम मेरे </span></p>
<div>फिर वही शाम वही तन्हाई </div>
<div>दिल में मेरे वही दर्द ले कर आई </div>
<div>....................................</div>
<div>प्रियतम मेरे </div>
<div>ढूँढ़ रही है बेचैन निगाहें </div>
<div>कहाँ खो गये दुनिया की भीड़ में</div>
<div>......................................</div>
<div>प्रियतम मेरे</div>
<div>मजनू बना प्यार में तेरे </div>
<div>आईना भी नही पहचानता मुझे</div>
<div>.....................................</div>
<div>प्रियतम मेरे </div>
<div>दर्देदिल ने कुछ ऐसा किया </div>
<div>हो गया मै तुम्हारा उम्र भर के लिए</div>
<div>........................................</div>
<div>प्रियतम मेरे</div>
<div>हो न जाऊं कहीं पागल मै </div>
<div>स्वाती अमृत की बूंद मुझे दे </div>
<div>......................................</div>
<div>मौलिक और अप्रकाशित रचना </div>बसंतtag:www.openbooksonline.com,2013-02-12:5170231:BlogPost:3172032013-02-12T11:13:54.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p>चमक रही <br/> सूरज की तरह<br/> पीली सरसों<br/> ...............<br/> बिखर गई <br/> खुशिया सब ओर<br/> आया बसंत <br/> ................<br/> लाल गुलाबी <br/> रंग बिरंगे फूल <br/> लाया बसंत<br/> .................<br/> बगिया मेरी <br/> महक उठी आज <br/> आया बसंत<br/> ..............<br/> नमन तुझे <br/> दो मुझे वरदान <br/> माता सरस्वती</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित रचना</p>
<p>चमक रही <br/> सूरज की तरह<br/> पीली सरसों<br/> ...............<br/> बिखर गई <br/> खुशिया सब ओर<br/> आया बसंत <br/> ................<br/> लाल गुलाबी <br/> रंग बिरंगे फूल <br/> लाया बसंत<br/> .................<br/> बगिया मेरी <br/> महक उठी आज <br/> आया बसंत<br/> ..............<br/> नमन तुझे <br/> दो मुझे वरदान <br/> माता सरस्वती</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित रचना</p>मेरे हमसफरtag:www.openbooksonline.com,2012-10-17:5170231:BlogPost:2823012012-10-17T06:27:50.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<div>ओ मेरे हमसफर ओ हमदम मेरे </div>
<div>मेरी आँखों में देख तस्वीर अपनी </div>
<div>जो बन चुकी है अब तकदीर मेरी </div>
<div>बह चली मै अब बहती हवाओं में </div>
<div>उड़ रही हूँ हवाओं में संग तुम्हारे </div>
<div><span>इस से पहले कि रुख हवाओं का </span></div>
<div>न बदल जाये कहीं थाम लो मुझे </div>
<div><span>कहीं ऐसा न हो शाख से टूटे हुये</span></div>
<div><span>पत्ते सी भटकती रहूँ दर बदर मै</span></div>
<div>जन्म जन्म के साथी बन के मेरे </div>
<div>ले लो मुझे आगोश में तुम अपने </div>
<div>ओ…</div>
<div>ओ मेरे हमसफर ओ हमदम मेरे </div>
<div>मेरी आँखों में देख तस्वीर अपनी </div>
<div>जो बन चुकी है अब तकदीर मेरी </div>
<div>बह चली मै अब बहती हवाओं में </div>
<div>उड़ रही हूँ हवाओं में संग तुम्हारे </div>
<div><span>इस से पहले कि रुख हवाओं का </span></div>
<div>न बदल जाये कहीं थाम लो मुझे </div>
<div><span>कहीं ऐसा न हो शाख से टूटे हुये</span></div>
<div><span>पत्ते सी भटकती रहूँ दर बदर मै</span></div>
<div>जन्म जन्म के साथी बन के मेरे </div>
<div>ले लो मुझे आगोश में तुम अपने </div>
<div>ओ मेरे हमसफर ओ हमदम मेरे </div>
<p></p>सुनयना [लघु कथा ]tag:www.openbooksonline.com,2012-10-05:5170231:BlogPost:2783902012-10-05T07:43:03.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p>अपने नाम को सार्थक करती हुई कजरारे नयनों वाली सुनयना अपनी प्यारी बहन आरती से बहुत प्यार करती थी |किसी हादसे में आरती के नयनों की ज्योति चली गई थी लेकिन सुनयना ने जिंदगी में उसको कभी भी आँखों की कमी महसूस नही होने दी | हर वक्त वह साये की तरह उसके साथ रहती,उसकी हर जरूरत को वह अपनी समझ कर पूरा करने की कोशिश में लगी रहती |एक दिन सुनयना को बुखार आ गया जो उतरने का नाम ही नही ले रहा था ,उसके खून की जांच करवाने पर पता चला कि उसे कैंसर है ,उसके मम्मी पापा के पैरों तले तो जमीन ही खिसक गई ,लेकिन सुनयना…</p>
<p>अपने नाम को सार्थक करती हुई कजरारे नयनों वाली सुनयना अपनी प्यारी बहन आरती से बहुत प्यार करती थी |किसी हादसे में आरती के नयनों की ज्योति चली गई थी लेकिन सुनयना ने जिंदगी में उसको कभी भी आँखों की कमी महसूस नही होने दी | हर वक्त वह साये की तरह उसके साथ रहती,उसकी हर जरूरत को वह अपनी समझ कर पूरा करने की कोशिश में लगी रहती |एक दिन सुनयना को बुखार आ गया जो उतरने का नाम ही नही ले रहा था ,उसके खून की जांच करवाने पर पता चला कि उसे कैंसर है ,उसके मम्मी पापा के पैरों तले तो जमीन ही खिसक गई ,लेकिन सुनयना के मन में तो कुछ और ही चल रहा था ,इससे पहले कि मौत उसे अपने आगोश में ले कर सदा के लिए सुला दे ,उसने अपने माँ बाप से अपनी अंतिम इच्छा व्यक्त कर दी थी |आज सुनयना अपने माता पिता के साथ नही है ,लेकिन वह आरती के नयनों से इस दुनिया को देख रही है ,उसने अपने नेत्रदान कर दिए थे |</p>
<p></p>हमारी मातृ भाषाtag:www.openbooksonline.com,2012-09-14:5170231:BlogPost:2717482012-09-14T09:05:58.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p>जान अपनी <br/> पहचान अपनी <br/> है हिंदी भाषा <br/> .................<br/> खाते कसम <br/> हिंदी दिवस पर <br/> है अपनाना <br/> .................<br/> हिंदी हमारी <br/> मिले सम्मान इसे <br/> है मातृ भाषा <br/> ................. <br/> शान यह है <br/> भारत हमारे की <br/> राष्ट्र की भाषा <br/> ................. <br/> मित्र जनों को <br/> हिंदी दिवस पर<br/> मेरी बधाई</p>
<p>जान अपनी <br/> पहचान अपनी <br/> है हिंदी भाषा <br/> .................<br/> खाते कसम <br/> हिंदी दिवस पर <br/> है अपनाना <br/> .................<br/> हिंदी हमारी <br/> मिले सम्मान इसे <br/> है मातृ भाषा <br/> ................. <br/> शान यह है <br/> भारत हमारे की <br/> राष्ट्र की भाषा <br/> ................. <br/> मित्र जनों को <br/> हिंदी दिवस पर<br/> मेरी बधाई</p>सपनों का भारतtag:www.openbooksonline.com,2012-09-10:5170231:BlogPost:2703512012-09-10T14:30:48.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p>ये तो नही है <br/> सपनों का भारत <br/> देश ये मेरा</p>
<p>जला असम <br/> कश्मीर में आग<br/> सुलगे देश</p>
<p>आतंकवाद <br/> का भारत देश में <br/> है बोलबाला</p>
<p>भटक रहा <br/> दर दर ईमान <br/> फलता पाप</p>
<p>हुए पराये <br/> हम भारत वासी <br/> देश अपना</p>
<p>कोलगेट पे <br/> मच रहा बवाल <br/> है मुहं काला</p>
<p>ये तो नही है <br/> सपनों का भारत <br/> देश ये मेरा</p>
<p>ये तो नही है <br/> सपनों का भारत <br/> देश ये मेरा</p>
<p>जला असम <br/> कश्मीर में आग<br/> सुलगे देश</p>
<p>आतंकवाद <br/> का भारत देश में <br/> है बोलबाला</p>
<p>भटक रहा <br/> दर दर ईमान <br/> फलता पाप</p>
<p>हुए पराये <br/> हम भारत वासी <br/> देश अपना</p>
<p>कोलगेट पे <br/> मच रहा बवाल <br/> है मुहं काला</p>
<p>ये तो नही है <br/> सपनों का भारत <br/> देश ये मेरा</p>सनम बेवफाtag:www.openbooksonline.com,2012-09-06:5170231:BlogPost:2690122012-09-06T12:10:08.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p>इतने मिले जख्म कि जख्म ही दवा बने <br></br> न पाई ख़ुशी में ख़ुशी न रोये गम में हम <br></br> दिल और यह दिमाग सब शून्य हो गये <br></br> .................................................<br></br> है मुहब्बत इक फरेब औ प्यार इक धोखा <br></br> साये में है जिसके बस आंसूओं का सौदा <br></br> चोट पर चोट दिल पे हम खाते चले गये<br></br> ................................................<br></br> वफा को जो न समझे तुम सनम बेवफा हो<br></br> रहें गैरों की बाहों में और सिला दो वफा का <br></br> मेरे सपनो की तस्वीर के टुकड़े हुए तुम्ही से …<br></br></p>
<p>इतने मिले जख्म कि जख्म ही दवा बने <br/> न पाई ख़ुशी में ख़ुशी न रोये गम में हम <br/> दिल और यह दिमाग सब शून्य हो गये <br/> .................................................<br/> है मुहब्बत इक फरेब औ प्यार इक धोखा <br/> साये में है जिसके बस आंसूओं का सौदा <br/> चोट पर चोट दिल पे हम खाते चले गये<br/> ................................................<br/> वफा को जो न समझे तुम सनम बेवफा हो<br/> रहें गैरों की बाहों में और सिला दो वफा का <br/> मेरे सपनो की तस्वीर के टुकड़े हुए तुम्ही से <br/> .................................................<br/> इधर दिल टूटा हमारा गूंजी सदा वादियों में <br/> शोर हुआ हर गली गली अंजान रहे तुम्ही <br/> खामोश रही धड़कन न बनी जुबां दिल की</p>जूठन [लघु कथा ]tag:www.openbooksonline.com,2012-08-24:5170231:BlogPost:2641432012-08-24T15:03:04.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p><span>एक सुसज्जित भव्य पंडाल में सेठ धनीराम के बेटे की शादी हो रही थी ,नाच गाने के साथ पंडाल के अंदर अनेक स्वादिष्ट व्यंजन ,अपनी अपनी प्लेट में परोस कर शहर के जाने माने लोग उस लज़ीज़ भोजन का आनंद उठा रहे थे |खाना खाने के उपरान्त वहां अलग अलग स्थानों पर रखे बड़े बड़े टबों में वह लोग अपना बचा खुचा जूठा भोजन प्लेट सहित रख रहे थे ,जिसे वहां के सफाई कर्मचारी उठा कर पंडाल के बाहर रख देते थे |पंडाल के बाहर न जाने कहाँ से मैले कुचैले फटे हुए चीथड़ों में लिपटी एक औरत अपनी गोदी में भूख से…</span></p>
<p><span>एक सुसज्जित भव्य पंडाल में सेठ धनीराम के बेटे की शादी हो रही थी ,नाच गाने के साथ पंडाल के अंदर अनेक स्वादिष्ट व्यंजन ,अपनी अपनी प्लेट में परोस कर शहर के जाने माने लोग उस लज़ीज़ भोजन का आनंद उठा रहे थे |खाना खाने के उपरान्त वहां अलग अलग स्थानों पर रखे बड़े बड़े टबों में वह लोग अपना बचा खुचा जूठा भोजन प्लेट सहित रख रहे थे ,जिसे वहां के सफाई कर्मचारी उठा कर पंडाल के बाहर रख देते थे |पंडाल के बाहर न जाने कहाँ से मैले कुचैले फटे हुए चीथड़ों में लिपटी एक औरत अपनी गोदी में भूख से रोते बिलखते नंग धडंग बच्चे को लेकर एक बड़े से टब के पास आ गई और उस बची खुची जूठन से खाना निकाल कर अपने बच्चे के मुहं में डालने लगी |उसके पास खड़ा एक कुत्ता भी टब में मुहं डाल कर प्लेटें चाट रहा था |</span></p>पिया का घरtag:www.openbooksonline.com,2012-08-22:5170231:BlogPost:2633142012-08-22T05:51:55.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p>सात समुद्र पार कर,<br></br> आई पिया के द्वार ,<br></br> नव नीले आसमां पर,<br></br> झूलते इन्द्रधनुष पे ,<br></br> प्राणपिया के अंगना ,<br></br> सप्तऋषि के द्वार ,<br></br> झंकृत हए सात सुर,<br></br> हृदय में नये तराने |<br></br> .........................<br></br> उतर रहा वह नभ पर ,<br></br> सातवें आसमान से ,<br></br> लिए रक्तिम लालिमा <br></br> सवार सात घोड़ों पर ,<br></br> पार सब करता हुआ ,<br></br> प्रकाशित हुआ ये जहां <br></br> आलोकिक आनंदित <br></br> वो आशियाना दीप्त |<br></br> ...............................<br></br> थिरक रही अम्बर में ,<br></br> अरुण की ये…</p>
<p>सात समुद्र पार कर,<br/> आई पिया के द्वार ,<br/> नव नीले आसमां पर,<br/> झूलते इन्द्रधनुष पे ,<br/> प्राणपिया के अंगना ,<br/> सप्तऋषि के द्वार ,<br/> झंकृत हए सात सुर,<br/> हृदय में नये तराने |<br/> .........................<br/> उतर रहा वह नभ पर ,<br/> सातवें आसमान से ,<br/> लिए रक्तिम लालिमा <br/> सवार सात घोड़ों पर ,<br/> पार सब करता हुआ ,<br/> प्रकाशित हुआ ये जहां <br/> आलोकिक आनंदित <br/> वो आशियाना दीप्त |<br/> ...............................<br/> थिरक रही अम्बर में ,<br/> अरुण की ये रश्मियाँ,<br/> चमकी धूप सुनहरी सी <br/> अब आई मेरे अंगना ,<br/> है स्फुरित मेरा ये मन ,<br/> खिल उठा ये तन बदन <br/> निभाने वो सात वचन ,<br/> आई अपने पिया के घर |</p>रोला छंद -एक प्रयासtag:www.openbooksonline.com,2012-08-17:5170231:BlogPost:2604962012-08-17T15:36:15.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<div>रोला छंद -एक प्रयास </div>
<div> याद शाम सवेरे ,राधिका को है आये |</div>
<div>मनभावन कान्हा ,धुन मुरली की बजाये |</div>
<div>गोकुल के गोपाल ,सभी के मन को भाये |</div>
<div>चितचोर मनमोहन ,दिल सबका है चुराये|</div>
<div>रोला छंद -एक प्रयास </div>
<div> याद शाम सवेरे ,राधिका को है आये |</div>
<div>मनभावन कान्हा ,धुन मुरली की बजाये |</div>
<div>गोकुल के गोपाल ,सभी के मन को भाये |</div>
<div>चितचोर मनमोहन ,दिल सबका है चुराये|</div>आवाज़ दो हम एक हैtag:www.openbooksonline.com,2012-08-14:5170231:BlogPost:2596702012-08-14T17:30:46.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p>''</p>
<p><span>ओ बी ओ के सभी सदस्यों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं </span></p>
<p>दिशा जागो तुमने आज कालेज जाना है न ''जागृति ने अपनी प्यारी बेटी को सुबह सुबह जगाते हुए कहा |दिशा ने नींद में ही आँखे मलते हुए कहा ,''हाँ माँ आज स्वतंत्रता दिवस है , हमे अपने कालेज के ध्वजारोहण समारोह में जाना है और इस राष्टीय पर्व को मनाने के लिए हमने बहुत बढ़िया कार्यक्रम भी तैयार किया हुआ है ,''जल्दी से दिशा ने अपना बिस्तर छोड़ा और कालेज जाने की तैयारी में जुट गई| दिशा को कालेज भेज कर जागृति…</p>
<p>''</p>
<p><span>ओ बी ओ के सभी सदस्यों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं </span></p>
<p>दिशा जागो तुमने आज कालेज जाना है न ''जागृति ने अपनी प्यारी बेटी को सुबह सुबह जगाते हुए कहा |दिशा ने नींद में ही आँखे मलते हुए कहा ,''हाँ माँ आज स्वतंत्रता दिवस है , हमे अपने कालेज के ध्वजारोहण समारोह में जाना है और इस राष्टीय पर्व को मनाने के लिए हमने बहुत बढ़िया कार्यक्रम भी तैयार किया हुआ है ,''जल्दी से दिशा ने अपना बिस्तर छोड़ा और कालेज जाने की तैयारी में जुट गई| दिशा को कालेज भेज कर जागृति भी अपने गृहकार्य में व्यस्त हो गई | जब तक जागृति ने अपना कार्य निपटाया, दिशा घर आ गई ,उत्साह और जोश से भरी हुई दिशा ने आते ही माँ को अपनी बाहों भर लिया ,''वाह माँ आज तो मजा ही आ गया ,देश भक्ति के जोशीले गीतों ने क्या समां बाँध दिया , माँ क्या अनुभूति हो रही थी उस समय ,जब कालेज के सभी विधार्थियों से खचाखच भरा हुआ पूरा का पूरा हाल राष्ट्र प्रेम से ओत प्रोत था, हमारे प्रिंसिपल ,सब टीचर और सारे विधार्थी एक ही सुर में गा रहे थे ,''आवाज़ दो हम एक है ,हम एक है ,''ऐसा लग रहा था मानो पूरा हिंदुस्तान एक ही सुर में गा रहा हो ,हम एक है ,हम एक है और माँ वह नाटक ,जो मैने और मेरी सहेलियों ने मिल कर तैयार किया था ,''आजादी के मतवाले ''एकदम हिट रहा ,क्या एक्टिंग की थी हम सबने, स्वतन्त्रता संग्राम की पहली लड़ाई में ,वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई ने कैसे अपने छोटे से बच्चे को पीठ पर बाँध कर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे ,क्या जोशीले संवाद थे सुभाषचन्द्र बोस के ,''तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आज़ादी दूंगा ,''आज़ादी के दीवाने भगत सिंह ,सुखदेव और राजगुरु ने हँसते हँसते फांसी को गले लगा लिया था |दिशा का देश प्रेम के प्रति उत्साह देख कर जागृति का रोम रोम खिल उठा ,कितना जोश और उत्साह भरा हुआ है आज के युवा में ,इस देश की संगठित युवा शक्ति ही भारत का नव निर्माण कर सकती है |आज हमारा देश अनगिनत समस्याओं से घिरा हुआ है ,एक ओर तो भटका हुआ युवा रेव पार्टीज़ ,पब,नशीले पदार्थो का सेवन कर दिशाविहीन हो अंधाधुंध पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण कर रहा है तो दूसरी तरफ बेरोज़गारी ,महंगाई से झूझते कई परिवार दो समय की रोटी के लिए संघर्षरत है ,भ्रष्टाचार रूपी राक्षस हरेक की जिंदगी को निगल रहा है ,अपनी संस्कृति और संस्कारों को भूल कर हर इंसान पैसे के पीछे भाग रहा है ,चाहे कैसे भी मिले बस हाथ में पैसा आना चाहिए ओर ईमानदार इंसान को आज बेफकूफ समझा जाने लगा है,आतंकवाद की तलवार सदा हमारे सिर पर मंडराती रहती है ,किसान आत्महत्या कर रहे है ,बहू बेटियों की अस्मिता असुरक्षित है ,आसाम सुलग रहा है,अपने ही देश में लोग परायों सी जिंदगी जीने पर मजबूर है ,अनेक घोटालों में घिरी यह भ्रष्ट सरकार क्या जनता को सुरक्षा प्रदान कर पाए गी ? आज़ादी के मतवालों ने अपने प्राणों की आहुति दे कर हमे सदियों से चली आ रही गुलामी की जंजीरों से तो मुक्त करवा दिया,लेकिन क्या हमने उनकी कुर्बानी के साथ न्याय किया है ?हमारे देश का भविष्य आज भारत युवा शक्ति पर निर्भर है लेकिन उन्हें आज जरूरत है एक सशक्त मार्गदर्शक की , जो उन्हें सही दिशा दिखला सके , भारत माता के प्रति उनके प्रेम को जोश और जनून में बदल कर उन्हें राष्ट्र के लिए जीना और राष्ट्र के लिए मरना सिखा सके ,अखंड भारत का स्वरूप दिखा कर उन्हें एकजुट कर सके ,तभी देशभक्ति का वह सुंदर गीत सार्थक हो सकेगा ,''आवाज़ दो हम एक है |''</p>निशब्दtag:www.openbooksonline.com,2012-08-05:5170231:BlogPost:2566322012-08-05T07:54:16.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p><font face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif">खामोश हूँ</font></p>
<div><font face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif">शांत सागर सी </font></div>
<div><font face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif">भीतर हलचल </font></div>
<div><font face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif"> </font></div>
<div>इक हूक </div>
<div>सीने में उठती </div>
<div>ज्वालामुखी सी </div>
<div> </div>
<div>प्यार किया </div>
<div>दिल से चाहा</div>
<div>पर…</div>
<p><font face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif">खामोश हूँ</font></p>
<div><font face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif">शांत सागर सी </font></div>
<div><font face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif">भीतर हलचल </font></div>
<div><font face="Arial, Helvetica Neue, Helvetica, sans-serif"> </font></div>
<div>इक हूक </div>
<div>सीने में उठती </div>
<div>ज्वालामुखी सी </div>
<div> </div>
<div>प्यार किया </div>
<div>दिल से चाहा</div>
<div>पर तन्हा </div>
<div> </div>
<div><div>काश कोई </div>
<div>समझ पाता मुझे </div>
<div>जी लेती </div>
<div> </div>
</div>
<div>लब खुले </div>
<div>कुछ कहने को </div>
<div>आवाज़ गुम</div>
<div><div>शब्द नही </div>
<div>धड़कन में तुम</div>
<div>हूँ निशब्द </div>
</div>खूबसूरत [लघु कथा]tag:www.openbooksonline.com,2012-07-31:5170231:BlogPost:2553672012-07-31T17:34:59.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p>शन्नो की सगी बहन मन्नु लेकिन शक्ल सूरत में जमीन आसमान का अंतर , अपने माता पिता की लाडली शन्नो इतनी सुंदर थी मानो आसमान से कोई परी जमीन पर उतर आई हो ,बेचारी मन्नु को अपने साधारण रंग रूप के कारण सदा अपने माता पिता की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता था |शन्नो अपने माँ बाप के लाड और अपनी खूबसूरती के आगे किसी को कुछ समझती ही नही थी |एक दिन दुर्भाग्यवश उनकी माँ बहुत बीमार पड़ गई ,सारा दिन बिस्तर पर ही लेटी रहती थी ,मन्नु ने अपनी माँ की सेवा के साथ साथ घर का बोझ भी अपने कंधों पर ले लिया ,उसकी नकचढ़ी…</p>
<p>शन्नो की सगी बहन मन्नु लेकिन शक्ल सूरत में जमीन आसमान का अंतर , अपने माता पिता की लाडली शन्नो इतनी सुंदर थी मानो आसमान से कोई परी जमीन पर उतर आई हो ,बेचारी मन्नु को अपने साधारण रंग रूप के कारण सदा अपने माता पिता की उपेक्षा का शिकार होना पड़ता था |शन्नो अपने माँ बाप के लाड और अपनी खूबसूरती के आगे किसी को कुछ समझती ही नही थी |एक दिन दुर्भाग्यवश उनकी माँ बहुत बीमार पड़ गई ,सारा दिन बिस्तर पर ही लेटी रहती थी ,मन्नु ने अपनी माँ की सेवा के साथ साथ घर का बोझ भी अपने कंधों पर ले लिया ,उसकी नकचढ़ी बहन किसी भी काम में उसका हाथ नही बंटाती थी |धीरे धीरे मन्नु की मेहनत रंग ले आई और उसकी माँ के स्वास्थ्य में सुधार होना शुरू हो गया,अपनी बेटी को इतना काम करते देख उसके माँ बाप की आँखों में आंसू आ गये ,उन्होंने उसे गले लगा लिया ,वह जान चुके थे असली खूबसूरती तो मन की होती है |</p>व्याजोक्ति [लघु कथा ]tag:www.openbooksonline.com,2012-07-23:5170231:BlogPost:2508932012-07-23T17:18:43.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<div><span style="color: #272727; font-family: Verdana, Arial, Helvetica, sans-serif;">आलोक की बहन रीमा के पति के अचानक अपने घर परिवार से दूर पानीपत में हुए निधन के समाचार ने आलोक और उसकी पत्नी आशा को हिला कर रख दिया |दोनों ने जल्दी से समान बांधा ,आशा ने अपने ऐ टी म कार्ड से दस हजार रूपये निकाले और वह दोनों पानीपत के लिए रवाना हो गए ,वहां पहुंचते ही आशा ने वो रूपये आलोक के हाथ में पकड़ाते हुए कहा ,''दीदी अपने घर से बहुत दूर है और इस समय इन्हें पैसे की सख्त जरूरत होगी आप यह उन्हें अपनी ओर से दे…</span></div>
<div><span style="color: #272727; font-family: Verdana, Arial, Helvetica, sans-serif;">आलोक की बहन रीमा के पति के अचानक अपने घर परिवार से दूर पानीपत में हुए निधन के समाचार ने आलोक और उसकी पत्नी आशा को हिला कर रख दिया |दोनों ने जल्दी से समान बांधा ,आशा ने अपने ऐ टी म कार्ड से दस हजार रूपये निकाले और वह दोनों पानीपत के लिए रवाना हो गए ,वहां पहुंचते ही आशा ने वो रूपये आलोक के हाथ में पकड़ाते हुए कहा ,''दीदी अपने घर से बहुत दूर है और इस समय इन्हें पैसे की सख्त जरूरत होगी आप यह उन्हें अपनी ओर से दे दो और मेरा ज़िक्र भी मत करना कहीं उनके आत्मसम्मान को ठेस न पहुंचे''|अपनी बहन के विधवा होने पर अशोक बहुत भावुक हो रहा था ,उसने भरी आँखों से चुपचाप वो रूपये अपनी बहन रीमा के हाथ थमा दिए | देर रात को रीमा अपनी बहनों के साथ एक कमरे में सुख दुःख बाँट रही थी तभी आशा ने उस कमरे के सामने से निकलते हुए उनकी बाते सुन ली, उसकी आँखों से आंसू छलक गए ,जब उसकी नन्द रीमा के शब्द पिघलते सीसे से उसके कानो में पड़े ,वह अपनी बहनों से कह रही थी ,''मेरा भाई तो मुझसे बहुत प्यार करता है , आज मुसीबत <span>की</span> इस घड़ी में पता नही उसे कैसे पता चल गया कि मुझे पैसे कि जरूरत है ,यह तो मेरी भाभी है जिसने मेरे भाई को मुझ से से दूर कर रखा है |</span></div>सितमगरtag:www.openbooksonline.com,2012-07-11:5170231:BlogPost:2468542012-07-11T08:03:37.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p>तकदीर पर विशवास तो नही मुझे ,<br></br>आये क्यों हो मेरी जिंदगी में तुम ,<br></br>निभाया सदा साथ तुम्हारा लेकिन ,<br></br>दर्देदिल के सिवा क्या मिला मुझे|<br></br>.........................................<br></br>भुला कर हमने हर सितम तुम्हारे ,<br></br>साथ निभाने का क्यों वादा किया ,<br></br>हद हो गई अब ज़ुल्मो सितम की ,<br></br>प्यार में तो हमने धोखा ही खाया |<br></br>.........................................<br></br>निभा न सके जब तुम वफ़ा को ,<br></br>चुप रहे फिर भी खातिर तुम्हारी ,<br></br>दफना दिया सीने में ही दर्द को ,<br></br>उफ़ तक न की…</p>
<p>तकदीर पर विशवास तो नही मुझे ,<br/>आये क्यों हो मेरी जिंदगी में तुम ,<br/>निभाया सदा साथ तुम्हारा लेकिन ,<br/>दर्देदिल के सिवा क्या मिला मुझे|<br/>.........................................<br/>भुला कर हमने हर सितम तुम्हारे ,<br/>साथ निभाने का क्यों वादा किया ,<br/>हद हो गई अब ज़ुल्मो सितम की ,<br/>प्यार में तो हमने धोखा ही खाया |<br/>.........................................<br/>निभा न सके जब तुम वफ़ा को ,<br/>चुप रहे फिर भी खातिर तुम्हारी ,<br/>दफना दिया सीने में ही दर्द को ,<br/>उफ़ तक न की किसी के आगे |<br/>.....................................<br/>कर लो चाहे जितने भी सितम,<br/> सब सह लेंगे उसे ताउम्र हम ,<br/> न करें गे शिकवा न शिकायत ,<br/>तकदीर से ही बाज़ी हारे है हम |</p>
<p></p>
<p></p>
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<p></p>
<p><br/>?</p>बेवफाईtag:www.openbooksonline.com,2012-07-05:5170231:BlogPost:2442902012-07-05T15:00:34.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p><span>जिनके लिए हमने दिल औ जान लुटाई .</span></p>
<div>मिली सिर्फ उनसे हमको है बेवफाई |</div>
<div>...............................................</div>
<div>सजदा किया उसका निकला वो हरजाई ,</div>
<div>मुहब्बत के बदले पायी हमने रुसवाई |</div>
<div>...............................................</div>
<div>धडकता है दिले नादां सुनते ही शहनाई,</div>
<div>पर तक़दीर से हमने तो मात ही खाई |</div>
<div>................................................</div>
<div><span>न भर नयन तू आग तो दिल ने…</span></div>
<p><span>जिनके लिए हमने दिल औ जान लुटाई .</span></p>
<div>मिली सिर्फ उनसे हमको है बेवफाई |</div>
<div>...............................................</div>
<div>सजदा किया उसका निकला वो हरजाई ,</div>
<div>मुहब्बत के बदले पायी हमने रुसवाई |</div>
<div>...............................................</div>
<div>धडकता है दिले नादां सुनते ही शहनाई,</div>
<div>पर तक़दीर से हमने तो मात ही खाई |</div>
<div>................................................</div>
<div><span>न भर नयन तू आग तो दिल ने है लगाई ,</span></div>
<div>धोखा औ फरेब फितरत में, दुहाई है दुहाई,|</div>
<div>................................................</div>
<div><div>छोड़ गए क्यूँ तन्हां दे कर लम्बी जुदाई,</div>
<div><span>जी लेंगे बिन तेरे ,काट लेंगे सूनी तन्हाई |</span></div>
</div>साहसtag:www.openbooksonline.com,2012-07-04:5170231:BlogPost:2440552012-07-04T09:26:27.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p><span>नीले नभ पर .,</span></p>
<div>उड़ चले पंछी ,</div>
<div>इक लम्बी उड़ान,</div>
<div>संग साथी लिए ,</div>
<div>निकल पड़े सब,</div>
<div>तलाश में अपनी ,</div>
<div>थी मंजिल अनजान .</div>
<div>अनदेखी राहों में </div>
<div>जब हुआ सामना,<span> </span></div>
<div><span>था भयंकर तूफ़ान </span></div>
<div>घिर गए चहुँ ओर से ,<span> </span></div>
<div><span>और फ़स गए वो सब ,</span></div>
<div>इक ऐसे चक्रव्यूह में ,</div>
<div>अभिमन्यु की तरह ,</div>
<div>निकलना था मुश्किल ,</div>
<div>पर बुलंद…</div>
<p><span>नीले नभ पर .,</span></p>
<div>उड़ चले पंछी ,</div>
<div>इक लम्बी उड़ान,</div>
<div>संग साथी लिए ,</div>
<div>निकल पड़े सब,</div>
<div>तलाश में अपनी ,</div>
<div>थी मंजिल अनजान .</div>
<div>अनदेखी राहों में </div>
<div>जब हुआ सामना,<span> </span></div>
<div><span>था भयंकर तूफ़ान </span></div>
<div>घिर गए चहुँ ओर से ,<span> </span></div>
<div><span>और फ़स गए वो सब ,</span></div>
<div>इक ऐसे चक्रव्यूह में ,</div>
<div>अभिमन्यु की तरह ,</div>
<div>निकलना था मुश्किल ,</div>
<div>पर बुलंद हौंसलों ने ,</div>
<div>कर दिया नवसंचार ,</div>
<div>उन थके हारे पंखो में ,</div>
<div>भर दी इक नयी ताकत ,</div>
<div>उस कठिन घड़ी में ,</div>
<div>मिलकर उन सब ने ,</div>
<div>अपने पंखों के दम पे ,</div>
<div>टकराने का तूफान से ,</div>
<div>था साहस दिखलाया,</div>
<div>अपने फडफडाते परों से,</div>
<div>था तूफ़ान को हराया ,</div>
<div>हिम्मत और जोश लिए </div>
<div>बढ़ चले वह फिर से,</div>
<div><span> इक </span><span>अनजान डगर पे |</span></div>अर्धांगिनी [लघु कथा ]tag:www.openbooksonline.com,2012-06-28:5170231:BlogPost:2414482012-06-28T06:12:26.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p><span>आरती और वैभव के बीच में कल रात से ही झगड़ा चल <span>रहा</span> था ,मुद्दा वही उपर की आमदनी का ,जिसे आरती अपने घर में कदापि भी खर्च करना नही चाहती थी | वैभव ने अपनी पत्नी आरती को पैसे की अहमियत के बारे में बहुत समझाया और बताया कि उसके दफ्तर में सब मिल बाँट कर खातें है लेकिन आरती के लिए रिश्वत तो पाप कि कमाई थी , वैभव के लाख समझाने पर भी जब आरती नही मानी तो गुस्से में उसने आरती से साफ़ साफ़ कह दिया था कि अगर आरती ने इस मुद्दे पर और बहस की तो वह उससे सदा के लिए सम्बन्ध विच्छेद कर…</span></p>
<p><span>आरती और वैभव के बीच में कल रात से ही झगड़ा चल <span>रहा</span> था ,मुद्दा वही उपर की आमदनी का ,जिसे आरती अपने घर में कदापि भी खर्च करना नही चाहती थी | वैभव ने अपनी पत्नी आरती को पैसे की अहमियत के बारे में बहुत समझाया और बताया कि उसके दफ्तर में सब मिल बाँट कर खातें है लेकिन आरती के लिए रिश्वत तो पाप कि कमाई थी , वैभव के लाख समझाने पर भी जब आरती नही मानी तो गुस्से में उसने आरती से साफ़ साफ़ कह दिया था कि अगर आरती ने इस मुद्दे पर और बहस की तो वह उससे सदा के लिए सम्बन्ध विच्छेद कर लेगा ,बात बढ़ती देख आरती खामोश हो गई और मेज़ पर रखा हजार का नोट उठा कर उसे एक सफेद लिफाफे में डाल कर अपने घर में बने छोटे से मंदिर में रख दिया और भारी मन से रसोई में व्यस्त हो गई |तभी उसे बाहर आंगन में माली कि आवाज़ सुनाई दी ,जो वैभव से कुछ दिनों की छुट्टी मांग रहा था और उसे अपने बीमार बेटे के इलाज के लिए कुछ रुपयों की जरूरत थी ,आरती ने झट से मंदिर से सफेद लिफाफा उठाया और माली के हाथ में थमा दिया |</span></p>बिंदिया [लघु कथा ]tag:www.openbooksonline.com,2012-06-07:5170231:BlogPost:2346192012-06-07T11:55:37.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p><span>मीनू की डोली जब प्रशांत के घर के आगे रुकी तो दरवाजे पर पूजा की थाली लिए शिखा खड़ी थी | शिखा ने आगे बढ़ कर अपने प्यारे भैया प्रशांत और अपनी प्यारी सखी जो आज दुल्हन बनी ,भाभी के रूप में उसके सामने खड़ी थी ,आरती उतार कर स्वागत किया |बर्तन में भरे हुए चावल को अपने पैर से बिखराते हुए ,पूरे रीति रिवाज के अनुसार मीनू ने अपने ससुराल में प्रवेश किया |पूरा घर खुशियों से चहक उठा ,शिखा ने मीनू को गले लगाते हुए कहा ,''आज तुम्हारा पांच साल से परवान चढ़ता हुआ प्रेम सफल हुआ ,मै जानती हूँ तुम और…</span></p>
<p><span>मीनू की डोली जब प्रशांत के घर के आगे रुकी तो दरवाजे पर पूजा की थाली लिए शिखा खड़ी थी | शिखा ने आगे बढ़ कर अपने प्यारे भैया प्रशांत और अपनी प्यारी सखी जो आज दुल्हन बनी ,भाभी के रूप में उसके सामने खड़ी थी ,आरती उतार कर स्वागत किया |बर्तन में भरे हुए चावल को अपने पैर से बिखराते हुए ,पूरे रीति रिवाज के अनुसार मीनू ने अपने ससुराल में प्रवेश किया |पूरा घर खुशियों से चहक उठा ,शिखा ने मीनू को गले लगाते हुए कहा ,''आज तुम्हारा पांच साल से परवान चढ़ता हुआ प्रेम सफल हुआ ,मै जानती हूँ तुम और प्रशांत भैया दो जिस्म एक जान हो ,तुम एक दूसरेके बिना रह ही नही सकते ''|जल्दी ही मीनू अपने ससुराल में घुल मिल गई ,खासतौर से शिखा के साथ उसकी दोस्ती और भी गहरी हो गई |समय कब पंख लगा कर उड़ जाता है ,मालूम ही नही पड़ता ,दिन महीने और साल पर साल गुजरने का एहसास ही नही हुआ मीनू को ,फिर पता नही किसकी नजर लग गई और दबे पाँव अनहोनी ने उसकी प्यारी सी जिंदगी में दस्तक दे दी ,प्रशांत की एक कार दुर्घटना में मौत हो गई |मीनू की जिंदगी में घनघोर अँधेरा छा गया ,सारा सारा दिन प्रशांत की यादों में निकल जाता और राते तो कटने का नाम ही नही लेती ,रो रो कर आंसू भी सूख गये थे |शिखा भी अपने भाई को भूल नही पा रही थी ,जब भी वह मीनू को देखती उसकी आँखें मीनू के सूने माथे पर ही अटक कर रह जाती ,जहाँ कभी दमकती लाल रंग की बिंदिया मीनू की सुन्दरता की और भी निखार देती थी ,''नही नही ,मै मीनू की यूं घुट घुट कर जीने नही दूंगी ,उससे बात करनी ही होगी ,''और एक दिन उसने मीनू से दूसरी शादी की बात छेड़ दी , शिखा की बात सुन कर मीनू को जोर का झटका लगा ,तड़प उठी वह ,''शिखा मै तुमसे बहुत प्यार करती हूँ ,तुम्हे उस प्यार की कसम ,जो आज के बाद तुमने यह बात दुबारा कही,तुम ही तो जानती हो कि तुम्हारे भैया से मै कितना प्यार करती हूँ ,किसी और के बारे में सोचना भी मेरे लिए पाप है ,चाहे वह आज शारीरिक रूप से मेरे साथ नही ,लेकिन मै सिर्फ और सिर्फ प्रशांत की हूँ ,वह हर पल मेरे दिल में रहते है ,मै अपने से उनकी यादें दूर नही कर सकती |शिखा उसकी प्रिय सखी होने के नाते उसकी मनोदशा अच्छे से समझ रही थी ,''ठीक है मीनू ,मै तुम्हें समझ सकती हूँ ,लेकिन तुम्हे भी मेरी एक बात तो माननी ही होगी ,''शिखा ने मेज से बिंदियों का एक पत्ता उठाया और लाल रंग की एक बिंदी निकाल कर मीनू के सूने माथे पर लगा दी ,''यह बिंदिया मेरे भैया के उस प्यार के लिए ,जिसे तुम अब भी महसूस करती हो |मीनू अवाक खड़ी देखती रह गई |</span></p>मानव न बन सका मनुजtag:www.openbooksonline.com,2012-06-04:5170231:BlogPost:2331702012-06-04T05:44:42.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p><span>यह कविता मेरे पापा की लिखी हुई है और मै इसे उनकी सहमती से पोस्ट कर रही हूँ |</span></p>
<div>मै ही तो एक नही हूं ऐसा,</div>
<div>मुझ से पहले भी लोग बड़े थे :</div>
<div>जिन को तो था संसार बदलना ,</div>
<div>अंधेरों में जो लोग खड़े थे :</div>
<div>उन लोगों में मेरी क्या गिनती ,</div>
<div>मुझ से तो वे सब बहुत बड़े थे :</div>
<div>खा कर भी हत्यारे की गोली ,</div>
<div>गांधी जी कितने मौन पड़े थे :</div>
<div>और अहिंसा हिंसा ने खाई ,</div>
<div>था नफरत ने ही प्यार मिटाया :</div>
<div>प्यार…</div>
<p><span>यह कविता मेरे पापा की लिखी हुई है और मै इसे उनकी सहमती से पोस्ट कर रही हूँ |</span></p>
<div>मै ही तो एक नही हूं ऐसा,</div>
<div>मुझ से पहले भी लोग बड़े थे :</div>
<div>जिन को तो था संसार बदलना ,</div>
<div>अंधेरों में जो लोग खड़े थे :</div>
<div>उन लोगों में मेरी क्या गिनती ,</div>
<div>मुझ से तो वे सब बहुत बड़े थे :</div>
<div>खा कर भी हत्यारे की गोली ,</div>
<div>गांधी जी कितने मौन पड़े थे :</div>
<div>और अहिंसा हिंसा ने खाई ,</div>
<div>था नफरत ने ही प्यार मिटाया :</div>
<div>प्यार दिया इस जग को जिसने ही ,</div>
<div>क्रास पर गया था वह लटकाया :</div>
<div>पर मानव न बन सका मनुज अभी ,</div>
<div>पशुता उसकी उसके साथ रही |</div>विश्वासघात [कहानी ]tag:www.openbooksonline.com,2012-05-28:5170231:BlogPost:2302492012-05-28T15:40:48.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p><span>देवभूमि हिमाचल प्रदेश में एक छोटा सा गाँव सुन्नी ,हिमालय की गोद में प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर इस गाँव के भोले भाले लोग ,एक दूसरे के साथ मिलजुल कर प्यार से रहते थे | इसी गाँव की दो सहेलियाँ प्रीतो और मीता,बचपन से ले कर जवानी तक का साथ ,लेकिन आज प्रीतो गौने के बाद ,पहली बार अपने ससुराल दिल्ली जा रही थी |मीतो दूर खड़ी अपनी जान से भी प्यारी सहेली को कार में बैठते हुए देख़ रही थी ,उसके आंसू थमने का नाम ही नही ले रहे थे और यही हाल प्रीतो का भी था ,उसकी नम आँखें अपनी सहेली मीता को ढूंढ़…</span></p>
<p><span>देवभूमि हिमाचल प्रदेश में एक छोटा सा गाँव सुन्नी ,हिमालय की गोद में प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर इस गाँव के भोले भाले लोग ,एक दूसरे के साथ मिलजुल कर प्यार से रहते थे | इसी गाँव की दो सहेलियाँ प्रीतो और मीता,बचपन से ले कर जवानी तक का साथ ,लेकिन आज प्रीतो गौने के बाद ,पहली बार अपने ससुराल दिल्ली जा रही थी |मीतो दूर खड़ी अपनी जान से भी प्यारी सहेली को कार में बैठते हुए देख़ रही थी ,उसके आंसू थमने का नाम ही नही ले रहे थे और यही हाल प्रीतो का भी था ,उसकी नम आँखें अपनी सहेली मीता को ढूंढ़ रही थी ,लेकिन मीता उससे आँखे चुरा रही थी ,वह अपनी सखी को बिछुड़ते हुए नही देख़ पा रही थी |प्रीतो के पीछे मुड़ते ही ,दोनों की आँखे चार हुई और भीगी आँखों से मीता ने प्रीतो को विदा किया ,प्रीतो बहुत दूर मीता को छोड़ कर चली गई |दिन ,महीने ,साल गुजर गए ,मीता का ब्याह वही उसी गाँव के एक नौजवान से हो गया ,मीता की जिंदगी खुशियों से भर गई जब उसे एक नन्हे मेहमान के आने का पता चला | उसकी खुशिया दुगनी हो गई जब उसे पता चला कि प्रीतो आ रही है |<span>मीता ने जल्दी से अपने घर का काम खत्म किया और चल पड़ी प्रीतो से मिलने ,लेकिन यह क्या ,प्रीतो के मुरझाये हुए चेहरे को देखते ही मीता समझ गई कि प्रीतो अपने ससुराल में खुश नही है |मीता प्रीतो का हाथ पकड़ उसे खींच कर बाहर खुली वादियों में ले आई |दोनों आपस में गले मिल कर जोर जोर से रोते हुए अपने दिल के दुखड़े एक दूसरे के साथ बांटने लगी ,प्रीतो की बात सुन कर मीता अवाक खड़ी उस का मुंह देखने लगी ,ईश्वर ने प्रीतो के साथ यह कैसा अन्याय कर दिया ,क्या वह कभी भी माँ नही बन पाए गी ?उसके ससुराल वालों ने हमेशा के लिए उसे मायके भेज दिया है ,दोनों बाहर आंगन में आकर चारपाई पर बैठ गई ,सदा चहकने वाली दोनों सहेलियों के बीच आज एक लम्बी चुप्पी ने जगह ले ली ,जैसे कहने सुनने को अब कुछ भी नही रहा हो ,तभी मीता ने प्रीतो का हाथ अपने हाथ में लेते उस लम्बी चुप्पी तोड़ते हुए कहा ,''प्रीतो तुम माँ बनो गी ,मेरी कोख का बच्चा आज से तेरा हुआ ,अपने ससुराल में अभी कहलवा भेज कि तुम जल्दी ही उनको वारिस देने वाली हो ,बस मैने फैसला ले लिया ,जैसे ही बच्चा पैदा होगा तुम उसे लेकर दिल्ली चले जाना ,मेरी किस्मत में होगा तो मै फिर से माँ बन जाऊं गी ,तुम्हे मेरी कसम तुम अब कुछ नही बोलो गी ''|प्रीतो अपनी सखी की तरफ एकटक देखती रह गई ,इतना बड़ा त्याग ,''नही नही मीता ,मै ऐसा नही कर सकती ''.रुंधे गले से प्रीतो ने जवाब दिया ,लेकिन मीता ने उसकी एक नही सुनी और उसे अपनी कसम दे कर मना लिया |दिन गुजरने लगे ,माँ बनने की आस ने एक बार फिर से प्रीतो के मुरझाये चेहरे की चमक वापिस ला दी |आखिर वह दिन आ ही गया और मीता ने एक सुंदर से राजकुमार को जन्म दिया ,प्रीतो के पाँव जमीन पर टिक ही नही रहे थे ,बच्चे को अपनी गोद में ले कर वह अपने ससुराल वापिस जाए गी ,उसकी सास ,ससुर ,देवर ,पति सब कितने खुश होंगे ,इन्ही सपनो में खोयी वह मीता के पास पहुँच गई ,जैसे ही वह वहां पहुंची ,मीता की आँखों में आंसू आ गए ,दबी आवाज़ में उसने अपने नन्हे से राजकुमार को निहारते हुए उसे प्रीतो को सौपने से इनकार कर दिया |प्रीतो के सीने पर मानो किसी ने वज्रपात कर दिया हो ,आसमान से किसी ने जमीन पर झटक कर गिरा दिया हो ,अपने सीने में उफनते जज़्बात लिए वह वहां से चुपचाप चली गई ,वापिस अपने ससुराल |उसका वहां क्या हुआ किसी को कुछ नही मालूम .हाँ मीता के राजकुमार की आँखों की ज्योति किसी गलत दवा डालने के कारण हमेशा के लिए बुझ गई |यह प्रीतो के दिल से निकली आह थी ,याँ मीता दुवारा किया गया विश्वासघात |</span></span></p>सूरज कभी सोता नही [लघु कथा ]tag:www.openbooksonline.com,2012-05-21:5170231:BlogPost:2283992012-05-21T18:01:38.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p><span>नन्हे बबलू ने रोहित से पूछा ,''अंकल क्या सूरज थकता नही है ?वह तो कभी सोता ही नहीं ,''उस नन्हे बच्चे के इस सवाल ने रोहित को लाजवाब कर दिया |एक हारे हुए इंसान को उम्मीद की नवकिरण दिखा रहा था ,उस पांच साल के नन्हे से बच्चे का सवाल |एक हारा हुआ बिल्डर जिसकी बनाई हुई इमारत हाल ही में तांश के पत्तो सी बिखर गई थी और उसके साथ साथ उसकी आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल हो चुकी थी,लेकिन बबलू का वह वाक्य उसे एक नई राह दिखा रहा था | रोहित ने अपनी कम्पनी के पूरे स्टाफ को फिर से बुलाया ,नयी रूपरेखा तैयार…</span></p>
<p><span>नन्हे बबलू ने रोहित से पूछा ,''अंकल क्या सूरज थकता नही है ?वह तो कभी सोता ही नहीं ,''उस नन्हे बच्चे के इस सवाल ने रोहित को लाजवाब कर दिया |एक हारे हुए इंसान को उम्मीद की नवकिरण दिखा रहा था ,उस पांच साल के नन्हे से बच्चे का सवाल |एक हारा हुआ बिल्डर जिसकी बनाई हुई इमारत हाल ही में तांश के पत्तो सी बिखर गई थी और उसके साथ साथ उसकी आर्थिक स्थिति भी डांवाडोल हो चुकी थी,लेकिन बबलू का वह वाक्य उसे एक नई राह दिखा रहा था | रोहित ने अपनी कम्पनी के पूरे स्टाफ को फिर से बुलाया ,नयी रूपरेखा तैयार की गई और जुट गया एक बार फिर से उस प्रोजेक्ट को नए सिरे से बनाने में |इस बार रोहित बड़ी सतर्कता से हर काम अपनी ही देख रेख में करवा रहा था ,उसे न दिन का होश रहता था न रात का ,किसी पर कोई काम छोड़ता ही नही था| नन्हे बबलू के शब्द उसके कानो में सदा गूंजते रहते थे .</span><span>उसे सूरज की तरह ही बनना है ,कभी थकना नही है |एक दिन उसकी अनथक मेहनत रंग ले ही आई और उसकी हार जीत में बदल चुकी थी |वह उस बुलंद इमारत के सामने खड़ा उसके पीछे प्रेरणा देते हुए चमकते सूरज को टकटकी बांधे निहार रहा था ,आज उस नन्हे बच्चे के सवाल का जवाब उसके पास है ,''सूरज कभी सोता नही ''|</span></p>इंतज़ारtag:www.openbooksonline.com,2012-05-15:5170231:BlogPost:2257902012-05-15T19:16:31.000ZRekha Joshihttp://www.openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<div>या खुदा मेरी उल्फत को जिंदगी दे दे </div>
<div>गम जुदाई काअब और सहा नही जाता |</div>
<div>तडप तडप के गुजारी है हर घड़ी हर पल ,</div>
<div>मेरी वफा का दिया जल जल के बुझा जाता है |</div>
<div>इंतजार और अभी,और अभी और अभी ,</div>
<div>सब्रे पैमाना अब लब से छुटा जाता है |</div>
<div>रात में यह दिल तन्हां डूब जाता है ,</div>
<div>मायूसियों के आलम में दम घुटा जाताहै </div>
<div>या खुदा मेरी उल्फत को जिंदगी दे दे </div>
<div>गम जुदाई काअब और सहा नही जाता |</div>
<div>तडप तडप के गुजारी है हर घड़ी हर पल ,</div>
<div>मेरी वफा का दिया जल जल के बुझा जाता है |</div>
<div>इंतजार और अभी,और अभी और अभी ,</div>
<div>सब्रे पैमाना अब लब से छुटा जाता है |</div>
<div>रात में यह दिल तन्हां डूब जाता है ,</div>
<div>मायूसियों के आलम में दम घुटा जाताहै </div>