डॉ संगीता गांधी's Posts - Open Books Online2024-03-28T13:49:49Zडॉ संगीता गांधीhttp://www.openbooksonline.com/profile/1tnl2pq5kwnp8http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991299305?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=1tnl2pq5kwnp8&xn_auth=noलघुकथा -गठबंधन की गाँठेंtag:www.openbooksonline.com,2018-01-10:5170231:BlogPost:9084732018-01-10T06:30:00.000Zडॉ संगीता गांधीhttp://www.openbooksonline.com/profile/1tnl2pq5kwnp8
<p>“नेता जी ,अब तो मेरे बारे में कुछ सोचिये। कितना काम किया चुनाव में दिन-रात जागा। विपक्षी नेता के विरुद्ध धरना दिया ।झंडा ,पोस्टर ,बैनर सब ले घुमा ।अब आप जीत गए तो हमारा भी नोकरी का जुगाड़ कर दीजिये।”<br></br> कार्यकर्त्ता कई दिन चक्कर लगाने के बाद आज बोल ही पड़ा ।पंचायत चुनाव के बाद नेता जी उसकी बात ही न सुन रहे थे ।<br></br> नेता जी ....” हाँ हाँ ठीक है ।देखते हैं ..पहले विधानसभा चुनाव होने दो । बहुत बिजी है अभी ।”<br></br> नेता जी कुछ रुके ।आँखों को मीचते हुए बोले --<br></br> “अच्छा कुछ काम करो ।खाना ,भत्ता…</p>
<p>“नेता जी ,अब तो मेरे बारे में कुछ सोचिये। कितना काम किया चुनाव में दिन-रात जागा। विपक्षी नेता के विरुद्ध धरना दिया ।झंडा ,पोस्टर ,बैनर सब ले घुमा ।अब आप जीत गए तो हमारा भी नोकरी का जुगाड़ कर दीजिये।”<br/> कार्यकर्त्ता कई दिन चक्कर लगाने के बाद आज बोल ही पड़ा ।पंचायत चुनाव के बाद नेता जी उसकी बात ही न सुन रहे थे ।<br/> नेता जी ....” हाँ हाँ ठीक है ।देखते हैं ..पहले विधानसभा चुनाव होने दो । बहुत बिजी है अभी ।”<br/> नेता जी कुछ रुके ।आँखों को मीचते हुए बोले --<br/> “अच्छा कुछ काम करो ।खाना ,भत्ता दे देंगे ।”<br/> “क्या काम ? नेता जी ! बताइये .......।” कार्यकर्ता फिर से जाल में फँस रहा था ।<br/> “राजेश्वर जी के लिए प्रचार करना है ।”<br/> टाँगे फैलाते हुए नेता जी ने एक वाक्य उछाला ।<br/> कार्यकर्त्ता भौचका था ।उसके गले में जैसे शब्द अटक गए थे ।गले से शब्दों को खींच कर बोला --<br/> …”.ये कैसे हो सकता है ?वो तो आपके शत्रु थे। उनकी पार्टी के विरुद्ध तो आप पंचायत चुनाव लड़े थे ।हम उनकी पार्टी को बहुत गालियां दिए थे ।अब उनका प्रचार ?”<br/> नेता जी ने मिची हुई आँखों को खोला ।आँखों से छलकती राजनीति शब्द बनकर बरसी:<br/> “अरे बेवकूफ ! गधे रहोगे ! राजनीती में कोई स्थायी शत्रु नहीं होता समझे …। सत्ता के लिए कभी गालियों की रस्सी कसी जाती है तो कभी उसी रस्सी में गठबंधन की गाँठे भी लगानी पड़ती हैं ।”<br/> <br/> मौलिक व अप्रकाशित</p>भयभीत परम्परा -लघुकथाtag:www.openbooksonline.com,2017-12-28:5170231:BlogPost:9065452017-12-28T15:41:19.000Zडॉ संगीता गांधीhttp://www.openbooksonline.com/profile/1tnl2pq5kwnp8
<p><span style="font-weight: 400;">भयभीत परम्परा</span> <span style="font-weight: 400;"><br></br></span> <span style="font-weight: 400;">-----------</span><span style="font-weight: 400;"><br></br></span> <span style="font-weight: 400;">"वो कांप रहे हैं।"</span><span style="font-weight: 400;"><br></br></span> <span style="font-weight: 400;">एक उड़ती खबर उनके कानों में पहुँची है ।यहाँ अब एक बड़ा मॉल बनेगा ।</span> <span style="font-weight: 400;"><br></br></span> <span style="font-weight: 400;">बड़े बड़े शॉपिग…</span></p>
<p><span style="font-weight: 400;">भयभीत परम्परा</span> <span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">-----------</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">"वो कांप रहे हैं।"</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">एक उड़ती खबर उनके कानों में पहुँची है ।यहाँ अब एक बड़ा मॉल बनेगा ।</span> <span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">बड़े बड़े शॉपिग काम्प्लेक्स ,होटल ,सिनेप्लेक्स ,ब्रांडेड शोरूम,स्विमिंग पूल ,पार्किंग !</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">विकास की बहती बयार के झोंकें कस्बे में चल रहे हैं ।</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">वो सुन्न हो चुके हैं ।कभी वो बहुत चहकते थे।</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">जब किसान हल चलाता था ।गुड़-चना ले भोरे भोरे आता था ।</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">फसल काटने वाली स्त्रियां हँसी -ठिठोली करते गीत गाती थीं !</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">बच्चे बीच की पगडंडियों पर दौड़ते ,खेलते थे ।</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">तब वो खिलखिलाते थे।</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">अब मौन हैं।किससे बतियाए ?</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">कर्ज़ को समर्पित हो चुकी है किसान की आत्महत्या ।</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">आत्महत्या से जो बच गए कहीं रिक्शा खींच रहे हैं ।</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">स्त्रियां अब शहरों के घरों में काम वाली कहलाती हैं ।</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">बच्चे अब किसी स्लम की झुग्गियों में दुबके पड़े हैं ।</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">उन्होनें सुना सत्ता और पूंजीवाद साथ साथ खड़े हैं !</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">कुछ वृद्ध बचे हैं --थके ,हताश ,उनकी तरह अपने अंत से थरथराये!</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">गाँव के खेत डरे हुए है ।थर थर कांप रहें हैं ।उनका आर्तनाद कौन सुनेगा ! अन्तिम बार उन्होंने ने खुद को निहारा !</span><span style="font-weight: 400;"><br/></span> <span style="font-weight: 400;">कल उनकी हरियाली कंक्रीट होने वाली है</span><span style="font-size: 10pt;">।</span></p>
<p><span style="font-size: 10pt;">मौलिक व अप्रकाशित</span></p>