सालिक गणवीर's Posts - Open Books Online
2024-03-28T13:57:41Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/4888344272?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1
http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=1px9wp0rcj1oz&xn_auth=no
ग़ज़ल : लड़ते झगड़ते रहते हैं यारो सभी से हम....
tag:www.openbooksonline.com,2023-07-05:5170231:BlogPost:1106522
2023-07-05T11:53:36.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>२२१-२१२१-१२२१-२१२</p>
<p></p>
<p>लड़ते झगड़ते रहते हैं यारो सभी से हम<br></br> मिलते हैं दुश्मनों से बड़ी सादगी से हम(१)</p>
<p></p>
<p>चक्कर लगाता रहता है दुनिया का एक शख़्स<br></br> आगे निकल न पाए तुम्हारी गली से हम (२)</p>
<p></p>
<p>कैसे बिताएँ वक़्त ज़रा सा भी उनके साथ<br></br> वो हैं नये समय के पुरानी घड़ी से हम (३)</p>
<p></p>
<p>मिलना है जिसका हक़ उसे धेला नहीं मिला<br></br> बाँटे गए हैं मुफ़्त में ही रेवड़ी से हम (४)</p>
<p></p>
<p>जब भी छुपाई हमने कहीं पर तुम्हारी बेंत<br></br> पीटे गए हमेशा हमारी छड़ी से हम…</p>
<p>२२१-२१२१-१२२१-२१२</p>
<p></p>
<p>लड़ते झगड़ते रहते हैं यारो सभी से हम<br/> मिलते हैं दुश्मनों से बड़ी सादगी से हम(१)</p>
<p></p>
<p>चक्कर लगाता रहता है दुनिया का एक शख़्स<br/> आगे निकल न पाए तुम्हारी गली से हम (२)</p>
<p></p>
<p>कैसे बिताएँ वक़्त ज़रा सा भी उनके साथ<br/> वो हैं नये समय के पुरानी घड़ी से हम (३)</p>
<p></p>
<p>मिलना है जिसका हक़ उसे धेला नहीं मिला<br/> बाँटे गए हैं मुफ़्त में ही रेवड़ी से हम (४)</p>
<p></p>
<p>जब भी छुपाई हमने कहीं पर तुम्हारी बेंत<br/> पीटे गए हमेशा हमारी छड़ी से हम (५)</p>
<p></p>
<p>इन मुश्किलों से हारना लाजिम था दोस्तो<br/> छोटी से लड़ न पाए भिड़े थे बड़ी से हम (६)</p>
<p></p>
<p>रिश्तों ने डाल रक्खी है पैरों में बेड़ियाँ<br/> आज़ाद हो न पाए तेरी हथकड़ी से हम (७)</p>
<p></p>
<p>* मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
झूठ बोले हैं न जाने कितने.......ग़ज़ल- सालिक गणवीर
tag:www.openbooksonline.com,2022-02-03:5170231:BlogPost:1078474
2022-02-03T04:03:40.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>2122-1122-22/112<br></br>झूठ बोले हैं न जाने कितने<br></br>उसको आते हैं बहाने कितने (1)</p>
<p></p>
<p>मैं किसी से भी तो नाराज नहीं<br></br>आ गए लोग मनाने कितने (2)</p>
<p></p>
<p>अब भी लोगों के नई दुनिया में<br></br>हैं ख़यालात पुराने कितने (3)</p>
<p></p>
<p>एक भी लफ़्ज मुझे याद नहीं<br></br>याद आते हैं वो गाने कितने (4)</p>
<p></p>
<p>घर जला कोई बुझाने न गया <br></br>आ गए आग लगाने कितने (5)</p>
<p></p>
<p>साथ आया न निभाने कोई<br></br>रस्म आएंँगे निभाने कितने (6)</p>
<p></p>
<p>अब कहीं पर तू ठहर जा…</p>
<p></p>
<p>2122-1122-22/112<br/>झूठ बोले हैं न जाने कितने<br/>उसको आते हैं बहाने कितने (1)</p>
<p></p>
<p>मैं किसी से भी तो नाराज नहीं<br/>आ गए लोग मनाने कितने (2)</p>
<p></p>
<p>अब भी लोगों के नई दुनिया में<br/>हैं ख़यालात पुराने कितने (3)</p>
<p></p>
<p>एक भी लफ़्ज मुझे याद नहीं<br/>याद आते हैं वो गाने कितने (4)</p>
<p></p>
<p>घर जला कोई बुझाने न गया <br/>आ गए आग लगाने कितने (5)</p>
<p></p>
<p>साथ आया न निभाने कोई<br/>रस्म आएंँगे निभाने कितने (6)</p>
<p></p>
<p>अब कहीं पर तू ठहर जा 'सालिक'<br/>रोज़ बदलेगा ठिकाने कितने (7)</p>
<p></p>
<p>©मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>
यही है शिकायत यही तो गिला है....ग़ज़ल ( सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-12-24:5170231:BlogPost:1075444
2021-12-24T17:30:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>122-122-122-122</p>
<p>यही है शिकायत यही तो गिला है<br></br> चराग़ों तले क्यों अँधेरा हुआ है (1)</p>
<p></p>
<p>लुटाया है सब कुछ कहा जा रहा है<br></br> मैं ये सोचता हूँ मुझे क्या मिला है (2)</p>
<p></p>
<p>कभी सामने जो अकड़ता बहुत था<br></br> वही उसके क़दमों के नीचे पड़ा है (3)</p>
<p></p>
<p>न आगे कोई है न है कोई पीछे<br></br> बयाँ दे रहा बीच सबके खड़ा है (4)</p>
<p></p>
<p>बड़ी मुश्किलों से कटी ज़िंदगी ये<br></br> न जाने मुक़द्दर में क्या क्या लिखा है (5)</p>
<p></p>
<p>ख़ुशी के दो पल हाथ आते नहीं पर<br></br> ये ग़म है कि…</p>
<p>122-122-122-122</p>
<p>यही है शिकायत यही तो गिला है<br/> चराग़ों तले क्यों अँधेरा हुआ है (1)</p>
<p></p>
<p>लुटाया है सब कुछ कहा जा रहा है<br/> मैं ये सोचता हूँ मुझे क्या मिला है (2)</p>
<p></p>
<p>कभी सामने जो अकड़ता बहुत था<br/> वही उसके क़दमों के नीचे पड़ा है (3)</p>
<p></p>
<p>न आगे कोई है न है कोई पीछे<br/> बयाँ दे रहा बीच सबके खड़ा है (4)</p>
<p></p>
<p>बड़ी मुश्किलों से कटी ज़िंदगी ये<br/> न जाने मुक़द्दर में क्या क्या लिखा है (5)</p>
<p></p>
<p>ख़ुशी के दो पल हाथ आते नहीं पर<br/> ये ग़म है कि बरसों से पीछे लगा है (6)</p>
<p></p>
<p>मुझे मारने पर तुले हैं वो "सालिक"<br/> मिरा क़त्ल तो पहले से हो चुका है (7)</p>
<p></p>
<p>* मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
अब तो इंसाफ भी करें साहिब.......ग़ज़ल सालिक गणवीर
tag:www.openbooksonline.com,2021-11-13:5170231:BlogPost:1073223
2021-11-13T16:24:50.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>2122-1212-22/112<br></br>अब तो इंसाफ भी करें साहिब<br></br>हक़ मिरा मुझको दे भी दें साहिब (1)</p>
<p></p>
<p>ऊँचे पेड़ों ने फिर से की साजिश<br></br>लोग सब धूप में रहें साहिब (2)</p>
<p></p>
<p>आप सब क्यों उड़े हवाओं में<br></br>हम ज़मीं पर ही क्यों चलें साहिब (3)</p>
<p></p>
<p>काग़ज़ों पर लिखा तो पढ़ते हैं<br></br>पीठ पर भी कभी लिखें साहिब (4)</p>
<p></p>
<p>न ज़मीं है न आसमाँ अपना<br></br>ये बता दो कहाँ रहें साहिब (5)</p>
<p></p>
<p>इतना अफ़सोस है अगर फिर तो<br></br>शर्म से डूब कर मरें साहिब (6)</p>
<p></p>
<p>आप सुनते नहीं…</p>
<p>2122-1212-22/112<br/>अब तो इंसाफ भी करें साहिब<br/>हक़ मिरा मुझको दे भी दें साहिब (1)</p>
<p></p>
<p>ऊँचे पेड़ों ने फिर से की साजिश<br/>लोग सब धूप में रहें साहिब (2)</p>
<p></p>
<p>आप सब क्यों उड़े हवाओं में<br/>हम ज़मीं पर ही क्यों चलें साहिब (3)</p>
<p></p>
<p>काग़ज़ों पर लिखा तो पढ़ते हैं<br/>पीठ पर भी कभी लिखें साहिब (4)</p>
<p></p>
<p>न ज़मीं है न आसमाँ अपना<br/>ये बता दो कहाँ रहें साहिब (5)</p>
<p></p>
<p>इतना अफ़सोस है अगर फिर तो<br/>शर्म से डूब कर मरें साहिब (6)</p>
<p></p>
<p>आप सुनते नहीं किसी की तब<br/>आपसे हम भी क्या कहें साहिब(7)</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>
जाने क्या लोग कर गए होंगे.......( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-10-24:5170231:BlogPost:1071621
2021-10-24T04:30:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>2122-1212-22/112</p>
<p></p>
<p>जाने क्या लोग कर गए होंगे<br></br> जी रहे हैं या मर गए होंगे (1)</p>
<p></p>
<p>वो भरी दोपहर गए होंगे<br></br> पाँव छालों से भर गए होंगे (2)</p>
<p></p>
<p>लड़कियाँ माँ की तर्ह सीधी हैं<br></br> लड़के तो बाप पर गए होंगे (3)</p>
<p></p>
<p>ख़ौफ़ होता है देख कर जिनको<br></br> आइना देख डर गए होंगे (4)</p>
<p></p>
<p>टेढ़े-मेढ़े जलेबी जैसे लोग<br></br> है ये मुमकिन सुधर गए होंगे (5)</p>
<p></p>
<p>दफ़्न माज़ी को जब किया होगा<br></br> याद के गड्ढे भर गए होंगे (6)</p>
<p></p>
<p>हमको जिन पर नहीं…</p>
<p>2122-1212-22/112</p>
<p></p>
<p>जाने क्या लोग कर गए होंगे<br/> जी रहे हैं या मर गए होंगे (1)</p>
<p></p>
<p>वो भरी दोपहर गए होंगे<br/> पाँव छालों से भर गए होंगे (2)</p>
<p></p>
<p>लड़कियाँ माँ की तर्ह सीधी हैं<br/> लड़के तो बाप पर गए होंगे (3)</p>
<p></p>
<p>ख़ौफ़ होता है देख कर जिनको<br/> आइना देख डर गए होंगे (4)</p>
<p></p>
<p>टेढ़े-मेढ़े जलेबी जैसे लोग<br/> है ये मुमकिन सुधर गए होंगे (5)</p>
<p></p>
<p>दफ़्न माज़ी को जब किया होगा<br/> याद के गड्ढे भर गए होंगे (6)</p>
<p></p>
<p>हमको जिन पर नहीं भरोसा वो<br/> आप लोगों के मोतबर होंगे (7)</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
हालत जो तेरी देखी है हैरान हूँ मैं भी....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-09-16:5170231:BlogPost:1068544
2021-09-16T03:00:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>221-1221-1221-122</p>
<p></p>
<p>हालत जो तेरी देखी है हैरान हूँ मैं भी<br></br> कोने में पड़ा घर के परेशान हूँ मैं भी (1)</p>
<p></p>
<p>गर आप सरल होंगे तो आसान हूँ मैं भी<br></br> ज़ालिम हैं अगर आप तो हैवान हूँ मैं भी (2)</p>
<p></p>
<p>ये सूनी दिवारें ही मुझे घूर रहीं हैं<br></br> खाली है मकाँ भी मिरा सुनसान हूँ मैं भी (3)</p>
<p></p>
<p>गर मिल भी गए हम भी तो आबाद न होंगे<br></br> उजड़ा है अगर तू भी तो वीरान हूँ मैं भी (4)</p>
<p></p>
<p>आएगा किसी दिन वो लगाएगा ठिकाने<br></br> कमरे में पड़ा फालतू सामान हूँ मैं भी…</p>
<p>221-1221-1221-122</p>
<p></p>
<p>हालत जो तेरी देखी है हैरान हूँ मैं भी<br/> कोने में पड़ा घर के परेशान हूँ मैं भी (1)</p>
<p></p>
<p>गर आप सरल होंगे तो आसान हूँ मैं भी<br/> ज़ालिम हैं अगर आप तो हैवान हूँ मैं भी (2)</p>
<p></p>
<p>ये सूनी दिवारें ही मुझे घूर रहीं हैं<br/> खाली है मकाँ भी मिरा सुनसान हूँ मैं भी (3)</p>
<p></p>
<p>गर मिल भी गए हम भी तो आबाद न होंगे<br/> उजड़ा है अगर तू भी तो वीरान हूँ मैं भी (4)</p>
<p></p>
<p>आएगा किसी दिन वो लगाएगा ठिकाने<br/> कमरे में पड़ा फालतू सामान हूँ मैं भी (5)</p>
<p></p>
<p>वो देखता रहता है मुझे यार हमेशा<br/> इस घर का दरीचा है वो दालान हूँ मैं भी (6)</p>
<p></p>
<p>ख़्वाहिश न किया तू कभी मिलने की 'सालिक'<br/> मालिक है वो इस चाल का दरबान हूँ मैं भी (7)</p>
<p></p>
<p>©सालिक गणवीर<br/> *मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
बेवज़्ह मुझे रोने की आदत भी बहुत थी...( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-08-16:5170231:BlogPost:1066616
2021-08-16T15:07:04.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>221-1221-1221-122</p>
<p></p>
<p>बेवज़्ह मुझे रोने की आदत भी बहुत थी<br></br>पर मुझको रुलाने में सियासत भी बहुत थी (1)</p>
<p></p>
<p>माज़ी को भुला कर मियाँ अच्छा किया मैंने<br></br>रखने में उसे याद अज़ीयत भी बहुत थी (2)</p>
<p></p>
<p>मैंने भी बुझा दी थीं वो जलती हुई शम'एँ<br></br>कमरे में हवाओं की शरारत भी बहुत थी (3)</p>
<p></p>
<p>है मुझसे अदावत उन्हें अब हद से ज़ियादा <br></br>था और ज़माना वो महब्बत भी बहुत थी (4)</p>
<p></p>
<p>ज़ालिम की शिकायत भी करें तो करें किससे<br></br>हाकिम की उसी पर ही इनायत भी…</p>
<p></p>
<p>221-1221-1221-122</p>
<p></p>
<p>बेवज़्ह मुझे रोने की आदत भी बहुत थी<br/>पर मुझको रुलाने में सियासत भी बहुत थी (1)</p>
<p></p>
<p>माज़ी को भुला कर मियाँ अच्छा किया मैंने<br/>रखने में उसे याद अज़ीयत भी बहुत थी (2)</p>
<p></p>
<p>मैंने भी बुझा दी थीं वो जलती हुई शम'एँ<br/>कमरे में हवाओं की शरारत भी बहुत थी (3)</p>
<p></p>
<p>है मुझसे अदावत उन्हें अब हद से ज़ियादा <br/>था और ज़माना वो महब्बत भी बहुत थी (4)</p>
<p></p>
<p>ज़ालिम की शिकायत भी करें तो करें किससे<br/>हाकिम की उसी पर ही इनायत भी बहुत थी (5)</p>
<p></p>
<p>दिखने में बहुत सख़्त था पत्थर की तरह वो<br/>फूलों सी मगर उनमें नज़ाक़त भी बहुत थी (6)</p>
<p></p>
<p>वैसे भी अलग होना था इक दिन हमें 'सालिक'<br/>थे पास मगर हम में मसाफ़त भी बहुत थी (7)</p>
<p></p>
<p>* मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p>©सालिक गणवीर</p>
ये लोग मुझे कुछ भी तो करने नहीं देते....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-08-06:5170231:BlogPost:1066248
2021-08-06T17:31:54.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>221-1221-1221-122</p>
<p></p>
<p>ये लोग मुझे कुछ भी तो करने नहीं देते<br></br>मुश्किल है बहुत जीना ये मरने नहीं देते (1)</p>
<p></p>
<p>खोदा था कुआँ सहरा में हमने कभी मिल कर<br></br>कुछ लोग घड़े हमको वाँ भरने नहीं देते (2)</p>
<p></p>
<p>इक उम्र गुज़ारी है यहाँ मैंने सफ़र में<br></br>अब पाँव भी मंज़िल पे ठहरने नहीं देते (3)</p>
<p></p>
<p>उसने जो कहा है तो वो कर के ही रहेगा<br></br>वादे से उसूल उसको मुकरने नहीं देते (4)</p>
<p></p>
<p>छाता है कभी ज़ीस्त में जब ग़म का अँधेरा<br></br>डरता हूँ मगर दोस्त सिहरने…</p>
<p></p>
<p>221-1221-1221-122</p>
<p></p>
<p>ये लोग मुझे कुछ भी तो करने नहीं देते<br/>मुश्किल है बहुत जीना ये मरने नहीं देते (1)</p>
<p></p>
<p>खोदा था कुआँ सहरा में हमने कभी मिल कर<br/>कुछ लोग घड़े हमको वाँ भरने नहीं देते (2)</p>
<p></p>
<p>इक उम्र गुज़ारी है यहाँ मैंने सफ़र में<br/>अब पाँव भी मंज़िल पे ठहरने नहीं देते (3)</p>
<p></p>
<p>उसने जो कहा है तो वो कर के ही रहेगा<br/>वादे से उसूल उसको मुकरने नहीं देते (4)</p>
<p></p>
<p>छाता है कभी ज़ीस्त में जब ग़म का अँधेरा<br/>डरता हूँ मगर दोस्त सिहरने नहीं देते (5)</p>
<p></p>
<p>अब याद नहीं है तेरी बातें तेरा शिकवा<br/>माज़ी से मुझे लोग गुज़रने नहीं देते (6)</p>
<p></p>
<p>उड़ता है बहुत ऊँचा वो ख़्वाबों का परिंदा<br/>उम्मीद के पर मुझको कतरने नहीं देते (7)</p>
<p></p>
<p>मिट्टी में मिला देते हैं झंडा मेरा 'सालिक'<br/>परचम कभी चोटी पे फहरने नहीं देते (8)</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित<br/>©सालिक गणवीर</p>
मंज़िल की जुस्तजू में तो घर से निकल पड़े..( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-07-23:5170231:BlogPost:1064417
2021-07-23T07:00:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>221-2121-1221-212</p>
<p></p>
<p>मंज़िल की जुस्तजू में तो घर से निकल पड़े<br></br> काँटों भरी थी राह प बेख़ौफ़ चल पड़े (1)</p>
<p></p>
<p>भौहें तनीं थीं देख के मुझको ऐ दिल मेरे<br></br> कुछ ऐसा कर कि अब उसी माथे प बल पड़े (2)</p>
<p></p>
<p>हर रात जागता हूँ मैं बेवज्ह दोस्तो<br></br> उसकी भी नींद में किसी शब तो ख़लल पड़े (3)</p>
<p></p>
<p>सारे बुजुर्ग देख के ख़ामोश थे मगर<br></br> बच्चे तो देखते ही खिलौने मचल पड़े (4)</p>
<p></p>
<p>सोचा नहीं था ज़ीस्त ये दिन भी दिखाएगी<br></br> देखी जो शक्ल मौत की हम भी उछल पड़े…</p>
<p></p>
<p>221-2121-1221-212</p>
<p></p>
<p>मंज़िल की जुस्तजू में तो घर से निकल पड़े<br/> काँटों भरी थी राह प बेख़ौफ़ चल पड़े (1)</p>
<p></p>
<p>भौहें तनीं थीं देख के मुझको ऐ दिल मेरे<br/> कुछ ऐसा कर कि अब उसी माथे प बल पड़े (2)</p>
<p></p>
<p>हर रात जागता हूँ मैं बेवज्ह दोस्तो<br/> उसकी भी नींद में किसी शब तो ख़लल पड़े (3)</p>
<p></p>
<p>सारे बुजुर्ग देख के ख़ामोश थे मगर<br/> बच्चे तो देखते ही खिलौने मचल पड़े (4)</p>
<p></p>
<p>सोचा नहीं था ज़ीस्त ये दिन भी दिखाएगी<br/> देखी जो शक्ल मौत की हम भी उछल पड़े (5)</p>
<p></p>
<p>मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
दम नहीं रहा मेरे यार मे.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-06-20:5170231:BlogPost:1061692
2021-06-20T17:24:27.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
212. 12. 212. 12.<br />
<br />
दम नहीं रहा मेरे यार में<br />
क्या रखा फिर जीत हार में (1)<br />
<br />
कह रहा है वो मन को क़ैद कर<br />
जो नहीं मिरे इख़्तियार में (2)<br />
<br />
वस्ल की घड़ी ख़्वाब बन गई<br />
उम्र कट गई इंतिज़ार में (3)<br />
<br />
सुब्ह आएगा वो यक़ीन है<br />
शब कटी इसी एतिबार में (4)<br />
<br />
सामने मिरे भीख बट रही<br />
रह गया खड़ा मैं क़तार में (5)<br />
<br />
क्या ख़िज़ाँ ने ही दी है बद्दुआ<br />
फूल मर गए इस बहार में (6)<br />
<br />
धूप में सदा पूछते रहे<br />
प्यास क्यों लगी रेगज़ार में (7)<br />
<br />
सिर्फ नफ़रतों के सिवा बता<br />
क्या मिला मुझे तेरे प्यार में (8)<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
212. 12. 212. 12.<br />
<br />
दम नहीं रहा मेरे यार में<br />
क्या रखा फिर जीत हार में (1)<br />
<br />
कह रहा है वो मन को क़ैद कर<br />
जो नहीं मिरे इख़्तियार में (2)<br />
<br />
वस्ल की घड़ी ख़्वाब बन गई<br />
उम्र कट गई इंतिज़ार में (3)<br />
<br />
सुब्ह आएगा वो यक़ीन है<br />
शब कटी इसी एतिबार में (4)<br />
<br />
सामने मिरे भीख बट रही<br />
रह गया खड़ा मैं क़तार में (5)<br />
<br />
क्या ख़िज़ाँ ने ही दी है बद्दुआ<br />
फूल मर गए इस बहार में (6)<br />
<br />
धूप में सदा पूछते रहे<br />
प्यास क्यों लगी रेगज़ार में (7)<br />
<br />
सिर्फ नफ़रतों के सिवा बता<br />
क्या मिला मुझे तेरे प्यार में (8)<br />
<br />
मौलिक एवं अप्रकाशित
थी अस्ल में सियाह वो रंगीन हम ने की.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-06-05:5170231:BlogPost:1061330
2021-06-05T03:30:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>थी अस्ल में सियाह वो रंगीन हम ने की<br></br> कुछ इस तरह से रात की तज़ईन हम ने की (1)</p>
<p></p>
<p>उनकी नज़र के सामने गिरने से बच गए <br></br> कल आइने में अपनी ही तौहीन हम ने की (2)</p>
<p></p>
<p>अपने गिरोह में हमें शामिल तो कीजिए <br></br> लोगों ने दी हैं गालियाँ तहसीन हम ने की (3)</p>
<p></p>
<p>उस ने तो चीर फाड़ के क्या कर दिया इसे<br></br> पहलू में दिल नहीं था ये तस्कीन हम ने की (4)</p>
<p></p>
<p>सौ काम ठीक ठाक कीये आज तक मगर<br></br> ग़लती भी एक बारहा संगीन हम ने की…</p>
<p></p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>थी अस्ल में सियाह वो रंगीन हम ने की<br/> कुछ इस तरह से रात की तज़ईन हम ने की (1)</p>
<p></p>
<p>उनकी नज़र के सामने गिरने से बच गए <br/> कल आइने में अपनी ही तौहीन हम ने की (2)</p>
<p></p>
<p>अपने गिरोह में हमें शामिल तो कीजिए <br/> लोगों ने दी हैं गालियाँ तहसीन हम ने की (3)</p>
<p></p>
<p>उस ने तो चीर फाड़ के क्या कर दिया इसे<br/> पहलू में दिल नहीं था ये तस्कीन हम ने की (4)</p>
<p></p>
<p>सौ काम ठीक ठाक कीये आज तक मगर<br/> ग़लती भी एक बारहा संगीन हम ने की (5)</p>
<p></p>
<p>लोगों ने जब दुआएँ दीं तो कुछ नहीं कहा<br/> जब तुम ने बद्दुआएँ दीं आमीन हम ने की (6)</p>
<p></p>
<p>माज़ी को याद कर लिया फिर सुब्ह दोस्तो</p>
<p>इस तरह शाम आज भी ग़मगीन हम ने की (7)</p>
<p></p>
<p>मौलिक/अप्रकाशित<br/> ©सालिक गणवीर</p>
चल आज मिल के दोनों.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-05-25:5170231:BlogPost:1060374
2021-05-25T05:00:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>221 2121 1221 212</p>
<p><br></br>चल आज मिल के दोनोंं क़सम ये उठाएँ हम<br></br> तुम हमको भूल जाओ तुम्हें भूल जाएँ हम (1)</p>
<p></p>
<p>इह तरह तो हमारा गला बैठ जाएगा<br></br> कब तक असम को अपनी कहानी सुनाएँ हम (2)</p>
<p></p>
<p>पीछा न अपना छोड़ेंगी यादों की बिल्लियाँ<br></br> चल यार इनको दूर कहीं छोड़ आएँ हम (3)</p>
<p></p>
<p>तेरे ख़िलाफ़ फिर से न आवाज़ उठ सके<br></br> लोगों के साथ अपना गला भी दबाएँ हम (4)</p>
<p></p>
<p>मुद्दत से आरज़ू है हमारी ऐ जान-ए-मन<br></br> इक शाम तेरे साथ कभी तो बिताएँ हम…</p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p><br/>चल आज मिल के दोनोंं क़सम ये उठाएँ हम<br/> तुम हमको भूल जाओ तुम्हें भूल जाएँ हम (1)</p>
<p></p>
<p>इह तरह तो हमारा गला बैठ जाएगा<br/> कब तक असम को अपनी कहानी सुनाएँ हम (2)</p>
<p></p>
<p>पीछा न अपना छोड़ेंगी यादों की बिल्लियाँ<br/> चल यार इनको दूर कहीं छोड़ आएँ हम (3)</p>
<p></p>
<p>तेरे ख़िलाफ़ फिर से न आवाज़ उठ सके<br/> लोगों के साथ अपना गला भी दबाएँ हम (4)</p>
<p></p>
<p>मुद्दत से आरज़ू है हमारी ऐ जान-ए-मन<br/> इक शाम तेरे साथ कभी तो बिताएँ हम (5)</p>
<p></p>
<p>दुनिया में नाम होगा हमारा भी इस तरह<br/> अंदर लगी हो आग तो बाहर बुझाएँ हम (6)</p>
<p></p>
<p>© सालिक गणवीर<br/> मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
जग में नाम कमाना है....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-05-08:5170231:BlogPost:1059857
2021-05-08T03:30:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>22 22 22 2</p>
<p></p>
<p>जग में नाम कमाना है<br></br>इक दिन तो मर जाना है. (1)</p>
<p></p>
<p>अपना दर्द छुपा कर रख<br></br> दिल में जो तहख़ाना है. (2)</p>
<p></p>
<p>ग़ैर समझता है मुझको<br></br> जिसको अपना माना है. (3)</p>
<p></p>
<p>मार नहीं सकती है भूख<br></br> गर क़िस्मत में दाना है. (4)</p>
<p></p>
<p>नई सुराही ले आए<br></br> पानी मगर पुराना है. (5)</p>
<p></p>
<p>चिड़िया उड़ जाए न कहीँ<br></br> इक पिंजरा बनवाना है. (6)</p>
<p></p>
<p>शक्ल ज़रा सी है बदली <br></br> पर जाना-पहचाना है. (7)</p>
<p></p>
<p>*मौलिक…</p>
<p></p>
<p>22 22 22 2</p>
<p></p>
<p>जग में नाम कमाना है<br/>इक दिन तो मर जाना है. (1)</p>
<p></p>
<p>अपना दर्द छुपा कर रख<br/> दिल में जो तहख़ाना है. (2)</p>
<p></p>
<p>ग़ैर समझता है मुझको<br/> जिसको अपना माना है. (3)</p>
<p></p>
<p>मार नहीं सकती है भूख<br/> गर क़िस्मत में दाना है. (4)</p>
<p></p>
<p>नई सुराही ले आए<br/> पानी मगर पुराना है. (5)</p>
<p></p>
<p>चिड़िया उड़ जाए न कहीँ<br/> इक पिंजरा बनवाना है. (6)</p>
<p></p>
<p>शक्ल ज़रा सी है बदली <br/> पर जाना-पहचाना है. (7)</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
( बेजान था मैं फिर भी तो मारा गया मुझे......(ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-04-07:5170231:BlogPost:1057874
2021-04-07T08:21:42.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>बेजान था मैं फिर भी तो मारा गया मुझे<br></br>कल घाट मौत के यूँ उतारा गया मुझे (1)</p>
<p></p>
<p>मैं जा रहा था रूठ के लेकिन सदा न दी<br></br>था सामने खड़ा तो पुकारा गया मुझे (2)</p>
<p></p>
<p>मैं एक साँस में कभी बाहर न आ सकूँ<br></br>दरिया में और गहरे उतारा गया मुझे (3)</p>
<p></p>
<p>अक्सर यही हुआ है मैं जब भी दुरुस्त था<br></br>बिगड़ा नहीं था फिर भी सुधारा गया मुझे (4)</p>
<p></p>
<p>देता रहूँ सबूत मैं कब तक वज़ूद का<br></br>हर बार हर क़दम पे नक़ारा गया मुझे…</p>
<p></p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>बेजान था मैं फिर भी तो मारा गया मुझे<br/>कल घाट मौत के यूँ उतारा गया मुझे (1)</p>
<p></p>
<p>मैं जा रहा था रूठ के लेकिन सदा न दी<br/>था सामने खड़ा तो पुकारा गया मुझे (2)</p>
<p></p>
<p>मैं एक साँस में कभी बाहर न आ सकूँ<br/>दरिया में और गहरे उतारा गया मुझे (3)</p>
<p></p>
<p>अक्सर यही हुआ है मैं जब भी दुरुस्त था<br/>बिगड़ा नहीं था फिर भी सुधारा गया मुझे (4)</p>
<p></p>
<p>देता रहूँ सबूत मैं कब तक वज़ूद का<br/>हर बार हर क़दम पे नक़ारा गया मुझे (5)</p>
<p></p>
<p>वो जानते हैं जिस्म मेरा भी है काग़ज़ी<br/>पर आग से हमेशा गुज़ारा गया मुझे (6)</p>
<p></p>
<p>अहबाब ऐसे हैं तो कमी क्यों अदू की हो<br/>करते हैं याद सबको बिसारा गया मुझे (7)</p>
<p></p>
<p>वो चाहते थे देखना मुझको डरा हुआ<br/>जब डूबने लगा तो उभारा गया मुझे (8)</p>
<p></p>
<p>*मौलिक व अप्रकाशित</p>
बात मुख्तसर सी थी गर कही नहीं होती......( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-03-19:5170231:BlogPost:1056944
2021-03-19T17:31:13.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>212 1222 212 1222</p>
<p></p>
<p>बात मुख्तसर सी थी गर कही नहीं होती<br></br>लाठी एक तनकर थी अब खड़ी नहीं होती (1)</p>
<p></p>
<p>छोटे छोटे ख़्वाबों का रोज़ क़त्ल करती है<br></br>बेटी क्यों ये आसानी से बड़ी नहीं होती (2)</p>
<p></p>
<p>आपसे मिलूँ गर मैं तो उदास होता हूँ<br></br>और जब नहीं मिलते तो ख़ुशी नहीं होती (3)</p>
<p></p>
<p>बढ़ नहीं सकी आगे कार ही उमीदों की<br></br>लाल ही रही बत्ती वो हरी नहीं होती (4)</p>
<p></p>
<p>ज़िंदगी में दोनों तो साथ साथ रहते हैं<br></br>पर गुलाब काँटों में दोस्ती नहीं होती…</p>
<p></p>
<p>212 1222 212 1222</p>
<p></p>
<p>बात मुख्तसर सी थी गर कही नहीं होती<br/>लाठी एक तनकर थी अब खड़ी नहीं होती (1)</p>
<p></p>
<p>छोटे छोटे ख़्वाबों का रोज़ क़त्ल करती है<br/>बेटी क्यों ये आसानी से बड़ी नहीं होती (2)</p>
<p></p>
<p>आपसे मिलूँ गर मैं तो उदास होता हूँ<br/>और जब नहीं मिलते तो ख़ुशी नहीं होती (3)</p>
<p></p>
<p>बढ़ नहीं सकी आगे कार ही उमीदों की<br/>लाल ही रही बत्ती वो हरी नहीं होती (4)</p>
<p></p>
<p>ज़िंदगी में दोनों तो साथ साथ रहते हैं<br/>पर गुलाब काँटों में दोस्ती नहीं होती (5)</p>
<p></p>
<p>दश्त-ओ-सहरा में या फिर ढूँढ ज़ह्न में इसको<br/>राह में ख़ुशी कोई तो पड़ी नहीं होती (6)</p>
<p></p>
<p>पास है मेरे सब कुछ क्या बताऊँ पर "सालिक"<br/>चाहिए जो शै मुझको वो मेरी नहीं होती (7)</p>
<p></p>
<p>©सालिक गणवीर</p>
<p> मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
शम्स हरदम छुपा नहीं रहता......( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-03-04:5170231:BlogPost:1056116
2021-03-04T23:12:06.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>2122 1212 22/112</p>
<p></p>
<p>शम्स हरदम छुपा नहीं रहता<br></br>बादलों से ढका नही रहता (1)</p>
<p></p>
<p>लोग मुझको न ढूँढ पाएँगे<br></br>मैं कहाँ हूँ पता नहीं रहता (2)</p>
<p></p>
<p>इश्क़ में काम इतने होते हैं<br></br>फिर कोई काम का नहीं रहता (3)</p>
<p></p>
<p>लोग आपस में बाँट लेते हैं<br></br>मेरा हिस्सा बचा नहीं रहता (4)</p>
<p></p>
<p>हम सभी मिल के एक होते तो<br></br>मुल्क इतना बँटा नहीं रहता (5)</p>
<p></p>
<p>लौट आया है सुख मिरे घर में<br></br>देख रहता है या नहीं रहता (6)</p>
<p></p>
<p>इक न इक…</p>
<p></p>
<p>2122 1212 22/112</p>
<p></p>
<p>शम्स हरदम छुपा नहीं रहता<br/>बादलों से ढका नही रहता (1)</p>
<p></p>
<p>लोग मुझको न ढूँढ पाएँगे<br/>मैं कहाँ हूँ पता नहीं रहता (2)</p>
<p></p>
<p>इश्क़ में काम इतने होते हैं<br/>फिर कोई काम का नहीं रहता (3)</p>
<p></p>
<p>लोग आपस में बाँट लेते हैं<br/>मेरा हिस्सा बचा नहीं रहता (4)</p>
<p></p>
<p>हम सभी मिल के एक होते तो<br/>मुल्क इतना बँटा नहीं रहता (5)</p>
<p></p>
<p>लौट आया है सुख मिरे घर में<br/>देख रहता है या नहीं रहता (6)</p>
<p></p>
<p>इक न इक दिन तो ज़ख़्म भरता है<br/>उम्रभर तो हरा नहीं रहता (7)</p>
<p></p>
<p>सिर्फ रहती है दैर में मूरत<br/>अब वहाँ देवता नहीं रहता (8)</p>
<p></p>
<p>मौलिक/अप्रकाशित</p>
यार कब तक डरा करे कोई.........( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-02-14:5170231:BlogPost:1050356
2021-02-14T17:00:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>2122 1212 22/112</p>
<p></p>
<p>यार कब तक डरा करे कोई<br></br> मौत का सामना करे कोई (1)</p>
<p></p>
<p>मैं तो उनके क़रीब रहता हूँ<br></br>दूर मुझसे रहा करे कोई (2)</p>
<p></p>
<p>मुफ़्त में गर किसी को देना हो<br></br> मशविर: दे दिया करे कोई (3)</p>
<p></p>
<p>मयकदे से बताओ ऐ यारो<br></br> दूर कब तक रहा करे कोई (4)</p>
<p></p>
<p>क्या ज़मींदोज़ करके मानेगा<br></br> और कितना दबा करे कोई (5)</p>
<p></p>
<p>वक्त के साथ भर ही जाएँगे<br></br>ज़ख़्म जितने दिया करे कोई (6)</p>
<p></p>
<p>यार "सालिक" की अब ये ख़्वाहिश…</p>
<p></p>
<p>2122 1212 22/112</p>
<p></p>
<p>यार कब तक डरा करे कोई<br/> मौत का सामना करे कोई (1)</p>
<p></p>
<p>मैं तो उनके क़रीब रहता हूँ<br/>दूर मुझसे रहा करे कोई (2)</p>
<p></p>
<p>मुफ़्त में गर किसी को देना हो<br/> मशविर: दे दिया करे कोई (3)</p>
<p></p>
<p>मयकदे से बताओ ऐ यारो<br/> दूर कब तक रहा करे कोई (4)</p>
<p></p>
<p>क्या ज़मींदोज़ करके मानेगा<br/> और कितना दबा करे कोई (5)</p>
<p></p>
<p>वक्त के साथ भर ही जाएँगे<br/>ज़ख़्म जितने दिया करे कोई (6)</p>
<p></p>
<p>यार "सालिक" की अब ये ख़्वाहिश है<br/> सिर्फ़ उसकी सुना करे कोई (7)</p>
<p></p>
<p>*मौलिक /अप्रकाशित</p>
<p>©सालिक गणवीर</p>
तेरे कहने से ही क्या हो जाएगा......( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-01-29:5170231:BlogPost:1043263
2021-01-29T17:00:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>2122 2122 212</p>
<p><br></br> तेरे कहने से ही क्या हो जाएगा </p>
<p>जो बुरा है वो भला हो जाएगा (1)</p>
<p></p>
<p>जो पुराना जख़्म माज़ी ने दिया<br></br> दो ही दिन में क्या नया हो जाएगा (2)</p>
<p></p>
<p>खाद पानी मिलने से ही क्या शजर<br></br> वक़्त से पहले बड़ा हो जाएगा (3)</p>
<p></p>
<p>है अलग सबसे ख़ज़ाना प्यार का<br></br> ख़र्च कीजै दोगुना हो जाएगा (4)</p>
<p></p>
<p>दोस्ती में दर्द-ओ-ग़म हो या ख़ुशी<br></br> जो भी तेरा है मेरा हो जाएगा (5)</p>
<p></p>
<p>क़द अगर छोटा है उसका दोस्तो<br></br> मैं झुका तो वो बड़ा…</p>
<p></p>
<p>2122 2122 212</p>
<p><br/> तेरे कहने से ही क्या हो जाएगा </p>
<p>जो बुरा है वो भला हो जाएगा (1)</p>
<p></p>
<p>जो पुराना जख़्म माज़ी ने दिया<br/> दो ही दिन में क्या नया हो जाएगा (2)</p>
<p></p>
<p>खाद पानी मिलने से ही क्या शजर<br/> वक़्त से पहले बड़ा हो जाएगा (3)</p>
<p></p>
<p>है अलग सबसे ख़ज़ाना प्यार का<br/> ख़र्च कीजै दोगुना हो जाएगा (4)</p>
<p></p>
<p>दोस्ती में दर्द-ओ-ग़म हो या ख़ुशी<br/> जो भी तेरा है मेरा हो जाएगा (5)</p>
<p></p>
<p>क़द अगर छोटा है उसका दोस्तो<br/> मैं झुका तो वो बड़ा हो जाएगा (6)</p>
<p></p>
<p>ये नहीं सोचा था मैंने ख़्वाब में<br/> एक पत्थर देवता हो जाएगा (7)</p>
<p></p>
<p>दूर होने से बढ़ीं नज़दीकियाँ<br/> पास होंगे फासला हो जाएगा (8)</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
एक पत्थर सा बस पड़ा हूँ मैं......( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-01-15:5170231:BlogPost:1042370
2021-01-15T14:30:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>2122 1212 22/112</p>
<p></p>
<p>एक पत्थर सा बस पड़ा हूँ मैं<br></br> हूँ मुसाफ़िर या रास्ता हूँ मैं (1)</p>
<p></p>
<p>अब कोई ढूँढता नहीं मुझको<br></br>एक मुद्दत से लापता हूँ मैं (2)</p>
<p></p>
<p>ज़िंदगी आजकल जहन्नम है<br></br> ख़्वाब जन्नत के देखता हूँ मैं (3)</p>
<p></p>
<p>छोड़ कर सब चले गए हैं या<br></br> भीड़ में फिर से खो गया हूँ मैं (4)</p>
<p></p>
<p>अब नहीं इंतिज़ार तेरा पर<br></br> रास्ता रोज़ देखता हूँ मैं (5)</p>
<p></p>
<p>हर तरफ है अजीब वीरानी <br></br>खुद में शायद उजड़ रहा हूँ मैं…</p>
<p></p>
<p>2122 1212 22/112</p>
<p></p>
<p>एक पत्थर सा बस पड़ा हूँ मैं<br/> हूँ मुसाफ़िर या रास्ता हूँ मैं (1)</p>
<p></p>
<p>अब कोई ढूँढता नहीं मुझको<br/>एक मुद्दत से लापता हूँ मैं (2)</p>
<p></p>
<p>ज़िंदगी आजकल जहन्नम है<br/> ख़्वाब जन्नत के देखता हूँ मैं (3)</p>
<p></p>
<p>छोड़ कर सब चले गए हैं या<br/> भीड़ में फिर से खो गया हूँ मैं (4)</p>
<p></p>
<p>अब नहीं इंतिज़ार तेरा पर<br/> रास्ता रोज़ देखता हूँ मैं (5)</p>
<p></p>
<p>हर तरफ है अजीब वीरानी <br/>खुद में शायद उजड़ रहा हूँ मैं (6)</p>
<p></p>
<p>जिसने महरूम ही रखा सबको<br/> क्यों वफा उनसे माँगता हूँ मैं (7)</p>
<p></p>
<p>* मौलिक/अप्रकाशित</p>
होता नहीं है ख़त्म मेरा काम भी कभी......( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-01-10:5170231:BlogPost:1041796
2021-01-10T17:30:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>होता नहीं है ख़त्म मेरा काम भी कभी<br></br> कैसे करे ये दिल बता आराम भी कभी (1)</p>
<p></p>
<p>अब हो न जाँऊ यार मैं बदनाम भी कभी<br></br> हो जाए मुफ्त में न मेरा नाम भी कभी (2)</p>
<p></p>
<p>क्या क्या चुरा लिया है ये मुझसे न पूछिये<br></br> लूटा गया है मुझको सर-ए-आम भी कभी (3)</p>
<p></p>
<p>कुछ इस तरह से छोड़ गए हैं मुझे यहाँ<br></br> आते नहीं हैं मुद्दतों पैगाम भी कभी (4)</p>
<p></p>
<p>करते रहे हवाई सफ़र मुफ़्त में सदा<br></br> कुछ लोग तो चुकाते नहीं दाम भी कभी …</p>
<p></p>
<p>221 2121 1221 212</p>
<p></p>
<p>होता नहीं है ख़त्म मेरा काम भी कभी<br/> कैसे करे ये दिल बता आराम भी कभी (1)</p>
<p></p>
<p>अब हो न जाँऊ यार मैं बदनाम भी कभी<br/> हो जाए मुफ्त में न मेरा नाम भी कभी (2)</p>
<p></p>
<p>क्या क्या चुरा लिया है ये मुझसे न पूछिये<br/> लूटा गया है मुझको सर-ए-आम भी कभी (3)</p>
<p></p>
<p>कुछ इस तरह से छोड़ गए हैं मुझे यहाँ<br/> आते नहीं हैं मुद्दतों पैगाम भी कभी (4)</p>
<p></p>
<p>करते रहे हवाई सफ़र मुफ़्त में सदा<br/> कुछ लोग तो चुकाते नहीं दाम भी कभी (5)</p>
<p></p>
<p>वैसे है बेगुनाह अभी है वो जेल में<br/> क़ातिल पे तो लगाइये इल्ज़ाम भी कभी (6)</p>
<p></p>
<p>चर्चा बहुत हुआ था मगर यार आजकल<br/> होता नहीं है जिक्र किसी शाम भी कभी (7)</p>
<p></p>
<p><span> उसको सज़ा ही दी है अभी तक तो आपने</span><br/> 'सालिक' को दे भी दीजिये इनआम भी कभी (8)</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित</p>
उसे पहले कभी देखा नहीं था.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2021-01-01:5170231:BlogPost:1040102
2021-01-01T09:00:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>1222 1222 122</p>
<p></p>
<p>उसे पहले कभी देखा नहीं था<br></br> वो दिल के पास जो रहता नहीं था (1)</p>
<p></p>
<p>लगी है शह्र की इसको हवा अब<br></br> हमारा गाँव तो ऐसा नहीं था (2)</p>
<p></p>
<p>बहुत कुछ बोलती थीं आँखें उसकी<br></br> ज़ुबाँ से वो कभी कहता नहीं था (3)</p>
<p></p>
<p>अँधेरों ने रखा था क़ैद जब तक<br></br> उजाला दूर तक फैला नहीं था (4)</p>
<p></p>
<p>न जाने क्या हुआ भरता नहीं है<br></br> पुराना घाव तो गहरा नहीं था (5)</p>
<p></p>
<p>वही तन कर खड़ा रहता है आगे<br></br> कभी जो सामने बैठा नहीं…</p>
<p></p>
<p>1222 1222 122</p>
<p></p>
<p>उसे पहले कभी देखा नहीं था<br/> वो दिल के पास जो रहता नहीं था (1)</p>
<p></p>
<p>लगी है शह्र की इसको हवा अब<br/> हमारा गाँव तो ऐसा नहीं था (2)</p>
<p></p>
<p>बहुत कुछ बोलती थीं आँखें उसकी<br/> ज़ुबाँ से वो कभी कहता नहीं था (3)</p>
<p></p>
<p>अँधेरों ने रखा था क़ैद जब तक<br/> उजाला दूर तक फैला नहीं था (4)</p>
<p></p>
<p>न जाने क्या हुआ भरता नहीं है<br/> पुराना घाव तो गहरा नहीं था (5)</p>
<p></p>
<p>वही तन कर खड़ा रहता है आगे<br/> कभी जो सामने बैठा नहीं था (6)</p>
<p></p>
<p>रखा था क़ैद में यादों ने तेरी<br/> वहाँ पर तो कहीं पहरा नहीं था (7)</p>
<p></p>
<p>बिका मैं मुफ़्त में कल रात"सालिक"<br/> किसी की जेब में पैसा नहीं था (8)</p>
<p></p>
<p>*मौलिक/अप्रकाशित</p>
यहाँ तो बहुत हैं अभी यार मेरे.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2020-12-24:5170231:BlogPost:1039117
2020-12-24T17:30:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p style="text-align: right;"></p>
<p>122 122 122 122</p>
<p></p>
<p>यहाँ तो बहुत हैं अभी यार मेरे<br></br> मगर याँ अदू भी हैं दो-चार मेरे (1)</p>
<p></p>
<p>कभी भूलकर भी न उनको सज़ा दी<br></br> रहे उम्र-भर जो गुनहगार मेरे (2)</p>
<p></p>
<p>हिकारत से अब देखते हैं मुझे भी<br></br> यही लोग थे कल तलबगार मेरे (3)</p>
<p></p>
<p>मुझे टुकड़ों में बाट कर ही रहेंगे<br></br> हैं दुनिया में जो लोग हक़दार मेरे (4)</p>
<p></p>
<p>जो रिश्ते सभी तोड़ कर जा चुका है <br></br> उसी से जुड़े हैं अभी तार मेरे (5)</p>
<p></p>
<p>वही मिल…</p>
<p style="text-align: right;"></p>
<p>122 122 122 122</p>
<p></p>
<p>यहाँ तो बहुत हैं अभी यार मेरे<br/> मगर याँ अदू भी हैं दो-चार मेरे (1)</p>
<p></p>
<p>कभी भूलकर भी न उनको सज़ा दी<br/> रहे उम्र-भर जो गुनहगार मेरे (2)</p>
<p></p>
<p>हिकारत से अब देखते हैं मुझे भी<br/> यही लोग थे कल तलबगार मेरे (3)</p>
<p></p>
<p>मुझे टुकड़ों में बाट कर ही रहेंगे<br/> हैं दुनिया में जो लोग हक़दार मेरे (4)</p>
<p></p>
<p>जो रिश्ते सभी तोड़ कर जा चुका है <br/> उसी से जुड़े हैं अभी तार मेरे (5)</p>
<p></p>
<p>वही मिल गये हैं अभी दुश्मनों से<br/> यही कल तलक थे तरफ़-दार मेरे (6)</p>
<p></p>
<p>मुझे मिल गई है वहीं यार मिट्टी<br/> जहाँ दफ़्न हैं अब ज़मींदार मेरे (7)</p>
<p></p>
<p>वही बिक रहे हैं सर-ए-आम "सालिक"<br/> यही लोग कल थे ख़रीदार मेरे (8)</p>
<p></p>
<p>* मौलिक/अप्रकाशित</p>
उसने आज़ाद कब किया है मुझे (ग़ज़ल)
tag:www.openbooksonline.com,2020-12-14:5170231:BlogPost:1038750
2020-12-14T17:30:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>2122 1212 22/122</p>
<p></p>
<p>क़ैद नज़रों में ही रखा है मुझे</p>
<p>उसने आज़ाद कब किया है मुझे (1)</p>
<p></p>
<p>इससे बहतर तो था अदू मेरा<br></br> यार दीमक सा खा रहा है मुझे (2)</p>
<p></p>
<p> रात की नींद उड़ गई मेरी<br></br> ख़्वाब में जब से वो दिखा है मुझे (3)</p>
<p></p>
<p>सुब्ह तक होश में नहीं आया<br></br> रात इतनी पिला चुका है मुझे (4)</p>
<p></p>
<p>मंज़िलों तक पँहुच नहीं पाया<br></br> पर वो रस्ता बता गया है मुझे (5)</p>
<p></p>
<p>वो शिकायत कभी नहीं करता<br></br> उससे इतना ही अब गिला है मुझे …</p>
<p>2122 1212 22/122</p>
<p></p>
<p>क़ैद नज़रों में ही रखा है मुझे</p>
<p>उसने आज़ाद कब किया है मुझे (1)</p>
<p></p>
<p>इससे बहतर तो था अदू मेरा<br/> यार दीमक सा खा रहा है मुझे (2)</p>
<p></p>
<p> रात की नींद उड़ गई मेरी<br/> ख़्वाब में जब से वो दिखा है मुझे (3)</p>
<p></p>
<p>सुब्ह तक होश में नहीं आया<br/> रात इतनी पिला चुका है मुझे (4)</p>
<p></p>
<p>मंज़िलों तक पँहुच नहीं पाया<br/> पर वो रस्ता बता गया है मुझे (5)</p>
<p></p>
<p>वो शिकायत कभी नहीं करता<br/> उससे इतना ही अब गिला है मुझे (6)</p>
<p></p>
<p>मैं तो पहचानता नहीं उसको<br/>यार लेकिन वो जानता है मुझे (7)</p>
<p></p>
<p>मश्क़ मरने की क्यों करूँ "सालिक"<br/> अब तो जीना भी आ गया है मुझे (8)</p>
<p></p>
<p>* मौलिक/अप्रकाशित</p>
<p></p>
सामने आ तू कभी ख़्वाब में आने वाले....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2020-12-08:5170231:BlogPost:1037906
2020-12-08T03:50:27.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>2122 1122 1122 22</p>
<p></p>
<p>सामने आ तू कभी ख़्वाब में आने वाले<br></br>क्या मिला तुझको मेरी नींद उड़ाने वाले (1)</p>
<p></p>
<p>ऐसा लगता है कि आने का इरादा ही नहीं<br></br>वर्ना महशर में भी आ जाते हैं आने वाले (2)</p>
<p></p>
<p>चंद लम्हे भी अगर बंद हुई हैं पलकें<br></br>आ ही जाते हैं नये ख़्वाब दिखाने वाले (3)</p>
<p></p>
<p>क्या ग़जब है कि नये लोग चले आए हैं<br></br>घर में पहले से ही थे आग लगाने वाले (4)</p>
<p></p>
<p>मैं इस उम्मीद में बस आज तलक ज़िंदा हूँ<br></br>लौट आएँगे कभी छोड़ के जाने वाले…</p>
<p></p>
<p>2122 1122 1122 22</p>
<p></p>
<p>सामने आ तू कभी ख़्वाब में आने वाले<br/>क्या मिला तुझको मेरी नींद उड़ाने वाले (1)</p>
<p></p>
<p>ऐसा लगता है कि आने का इरादा ही नहीं<br/>वर्ना महशर में भी आ जाते हैं आने वाले (2)</p>
<p></p>
<p>चंद लम्हे भी अगर बंद हुई हैं पलकें<br/>आ ही जाते हैं नये ख़्वाब दिखाने वाले (3)</p>
<p></p>
<p>क्या ग़जब है कि नये लोग चले आए हैं<br/>घर में पहले से ही थे आग लगाने वाले (4)</p>
<p></p>
<p>मैं इस उम्मीद में बस आज तलक ज़िंदा हूँ<br/>लौट आएँगे कभी छोड़ के जाने वाले (5)</p>
<p></p>
<p>मैं कभी अपने ही वादे से मुकर जाता हूँ<br/>भूल जाते हैं कभी मुझको बुलाने वाले (6)</p>
<p></p>
<p>अब तो लगता है कि सब भूल गए हैं मुझको<br/>याद आते हैं बहुत मुझको भुलाने वाले (7)</p>
<p></p>
<p>पीछे हटता हूँ कभी उनकी मदद लेने से<br/>खींच लेते हैं कभी हाथ बढ़ाने वाले (8)</p>
<p></p>
<p>*मौलिक/अप्रकाशित</p>
मार ही दें न फिर ये लोग मुझे.....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2020-11-26:5170231:BlogPost:1037515
2020-11-26T10:30:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>2122 1212 22/112</p>
<p><br></br> जाँ से प्यारे हैं सारे लोग मुझे</p>
<p>मार देंगे मगर ये लोग मुझे(1)</p>
<p></p>
<p>मुझको पानी से प्यार है लेकिन<br></br> एक दिन फूँक देंगे लोग मुझे (2)</p>
<p></p>
<p>मैं उन्हें अपना मानता हूँ मगर <br></br> ग़ैर समझे हैं मेरे लोग मुझे (3)</p>
<p></p>
<p>उम्र भर शह्र में रहा फिर भी<br></br> जानते ही नहीं ये लोग मुझे (4)</p>
<p></p>
<p>बाद मुद्दत के अपने गाँव गया<br></br>सारे पहचानतेे थे लोग मुझे (5)</p>
<p></p>
<p>उनकी बातों का क्यों बुरा मानूँ<br></br> लग रहे हैं भले से लोग…</p>
<p></p>
<p>2122 1212 22/112</p>
<p><br/> जाँ से प्यारे हैं सारे लोग मुझे</p>
<p>मार देंगे मगर ये लोग मुझे(1)</p>
<p></p>
<p>मुझको पानी से प्यार है लेकिन<br/> एक दिन फूँक देंगे लोग मुझे (2)</p>
<p></p>
<p>मैं उन्हें अपना मानता हूँ मगर <br/> ग़ैर समझे हैं मेरे लोग मुझे (3)</p>
<p></p>
<p>उम्र भर शह्र में रहा फिर भी<br/> जानते ही नहीं ये लोग मुझे (4)</p>
<p></p>
<p>बाद मुद्दत के अपने गाँव गया<br/>सारे पहचानतेे थे लोग मुझे (5)</p>
<p></p>
<p>उनकी बातों का क्यों बुरा मानूँ<br/> लग रहे हैं भले से लोग मुझे (6)</p>
<p></p>
<p>कौन रोके मुझे यहाँ "सालिक"<br/> जब बुलाएँ वहाँ के लोग मुझे (7)</p>
<p></p>
<p>*मौलिक/अप्रकाशित.</p>
फिर से मुझको न वो हरा जाए....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2020-11-13:5170231:BlogPost:1036946
2020-11-13T04:00:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>2122 1212 22/112</p>
<p></p>
<p>फिर से मुझको न वो हरा जाए<br></br> इससे पहले ही कुछ किया जाए (1)</p>
<p></p>
<p>जब वो आँखों से कुछ नहीं कहता<br></br> कान में कुछ तो बुदबुदा जाए (2)</p>
<p></p>
<p>बन गया है वो मील का पत्थर<br></br>अब उसे ठीक से पढ़ा जाए (3)</p>
<p></p>
<p>यार अब बन गया अदू मेरा<br></br> अब भले को बुरा कहा जाए (4)</p>
<p></p>
<p>सीधे रस्ते पे क्या चलेगा वो<br></br> जिसका ईमान डगमगा जाए (5)</p>
<p></p>
<p>है जबाँ यार ये महब्बत की<br></br> उससे उर्दू में कुछ कहा जाए…</p>
<p></p>
<p>2122 1212 22/112</p>
<p></p>
<p>फिर से मुझको न वो हरा जाए<br/> इससे पहले ही कुछ किया जाए (1)</p>
<p></p>
<p>जब वो आँखों से कुछ नहीं कहता<br/> कान में कुछ तो बुदबुदा जाए (2)</p>
<p></p>
<p>बन गया है वो मील का पत्थर<br/>अब उसे ठीक से पढ़ा जाए (3)</p>
<p></p>
<p>यार अब बन गया अदू मेरा<br/> अब भले को बुरा कहा जाए (4)</p>
<p></p>
<p>सीधे रस्ते पे क्या चलेगा वो<br/> जिसका ईमान डगमगा जाए (5)</p>
<p></p>
<p>है जबाँ यार ये महब्बत की<br/> उससे उर्दू में कुछ कहा जाए (6)</p>
<p></p>
<p>*मौलिक/अप्रकाशित</p>
जो किसी का नहीं अब वही है मेरा ....( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2020-11-02:5170231:BlogPost:1036558
2020-11-02T11:30:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>212 212 212 212</p>
<p></p>
<p>आज दिल उसके दुख से दुखी है मेरा<br></br> जो किसी का नहीं अब वही है मेरा (1)</p>
<p></p>
<p>मौत मुझको बुलाती है हर पल मगर <br></br> ज़िंदगी रास्ता रोकती है मेरा (2)</p>
<p></p>
<p>लिख न पाऊँगा मैं आज क्या हो गया<br></br> मौत से सामना आज भी है मेरा (3)</p>
<p></p>
<p>डगमगाते हैं जब भी क़दम ये मिरे<br></br>यार मंज़िल पता पूछती है मेरा (4)</p>
<p></p>
<p>रख दिया है मुझे आग के सामने<br></br> जानता है बदन काग़ज़ी है मेरा (5)</p>
<p></p>
<p>रोक सकता नहीं रथ के पहिए कोई<br></br> अब…</p>
<p></p>
<p>212 212 212 212</p>
<p></p>
<p>आज दिल उसके दुख से दुखी है मेरा<br/> जो किसी का नहीं अब वही है मेरा (1)</p>
<p></p>
<p>मौत मुझको बुलाती है हर पल मगर <br/> ज़िंदगी रास्ता रोकती है मेरा (2)</p>
<p></p>
<p>लिख न पाऊँगा मैं आज क्या हो गया<br/> मौत से सामना आज भी है मेरा (3)</p>
<p></p>
<p>डगमगाते हैं जब भी क़दम ये मिरे<br/>यार मंज़िल पता पूछती है मेरा (4)</p>
<p></p>
<p>रख दिया है मुझे आग के सामने<br/> जानता है बदन काग़ज़ी है मेरा (5)</p>
<p></p>
<p>रोक सकता नहीं रथ के पहिए कोई<br/> अब ख़ुदा जंग में सारथी है मेरा (6)</p>
<p></p>
<p>ज़िंदगी मेरी सुनती नहीं आजकल<br/> मौत भी कब कहा मानती है मेरा (7)</p>
<p></p>
<p>जानता ही नहीं वो मुझे आज तक<br/> यार 'सालिक' वही अजनबी है मेरा (8)</p>
<p style="text-align: right;"></p>
<p>* मौलिक/अप्रकाशित</p>
ज़िंदगी रास्ता देखती हो मेरा...( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2020-10-26:5170231:BlogPost:1035778
2020-10-26T10:30:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>212 212 212 212</p>
<p></p>
<p>ज़िंदगी रास्ता देखती हो मेरा<br></br> सामना मौत से भी तभी हो मेरा (1)</p>
<p></p>
<p>मैं चलूँ अपने बच्चों की उंँगली पकड़ <br></br>फिर भले ये सफ़र आख़िरी हो मेरा (2)</p>
<p></p>
<p>वाक़िआ होगा पहला यक़ीं मानिए<br></br> सामना मौत से जब कभी हो मेरा (3)</p>
<p></p>
<p>अब ये मुमकिन नहीं आज के दौर में<br></br> शह्र में भी रहूँ गांँव भी हो मेरा (4)</p>
<p></p>
<p>ख़ाक ऐसे करें नफ़रतों का जहाँ<br></br> आग तेरी रहे और घी हो मेरा (5)</p>
<p></p>
<p>ज़िंदगी को भी आना पड़े सामने…<br></br></p>
<p></p>
<p>212 212 212 212</p>
<p></p>
<p>ज़िंदगी रास्ता देखती हो मेरा<br/> सामना मौत से भी तभी हो मेरा (1)</p>
<p></p>
<p>मैं चलूँ अपने बच्चों की उंँगली पकड़ <br/>फिर भले ये सफ़र आख़िरी हो मेरा (2)</p>
<p></p>
<p>वाक़िआ होगा पहला यक़ीं मानिए<br/> सामना मौत से जब कभी हो मेरा (3)</p>
<p></p>
<p>अब ये मुमकिन नहीं आज के दौर में<br/> शह्र में भी रहूँ गांँव भी हो मेरा (4)</p>
<p></p>
<p>ख़ाक ऐसे करें नफ़रतों का जहाँ<br/> आग तेरी रहे और घी हो मेरा (5)</p>
<p></p>
<p>ज़िंदगी को भी आना पड़े सामने<br/> मौत जब भी पता पूछती हो मेरा (6)</p>
<p></p>
<p>आज तक शख़्स जो हुक़्म देता रहा<br/> एक दिन के लिए अर्दली हो मेरा (7)</p>
<p></p>
<p>*मौलिक/अप्रकाशित</p>
नहीं दो चार लगता है बहुत सारे बनाएगा.( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2020-10-19:5170231:BlogPost:1033673
2020-10-19T02:00:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>1222 1222 1222 1222</p>
<p></p>
<p>नहीं दो-चार लगता है बहुत सारे बनाएगा<br></br> जहाँ मिलता नहीं पानी वो फ़व्वारे बनाएगा (1)</p>
<p></p>
<p>ज़रूरत से ज़ियादा है शुगर मेरे बदन में पर<br></br> मुझे वो देखते ही फिर शकर-पारे बनाएगा (2)</p>
<p></p>
<p>फ़लक के इन सितारों की तरह ही देखना इक दिन<br></br>ज़मीं पर भी ख़ुुदा अपने लिए तारे बनाएगा (3)</p>
<p></p>
<p>ज़मीं पर पैर रखने की जगह दिखती नहीं उसको<br></br> फ़लक पर वो नये दो-तीन सय्यारे बनाएगा (4)</p>
<p></p>
<p>जहाँ में ख़ुशनसीबों की नहीं दिखती…</p>
<p></p>
<p>1222 1222 1222 1222</p>
<p></p>
<p>नहीं दो-चार लगता है बहुत सारे बनाएगा<br/> जहाँ मिलता नहीं पानी वो फ़व्वारे बनाएगा (1)</p>
<p></p>
<p>ज़रूरत से ज़ियादा है शुगर मेरे बदन में पर<br/> मुझे वो देखते ही फिर शकर-पारे बनाएगा (2)</p>
<p></p>
<p>फ़लक के इन सितारों की तरह ही देखना इक दिन<br/>ज़मीं पर भी ख़ुुदा अपने लिए तारे बनाएगा (3)</p>
<p></p>
<p>ज़मीं पर पैर रखने की जगह दिखती नहीं उसको<br/> फ़लक पर वो नये दो-तीन सय्यारे बनाएगा (4)</p>
<p></p>
<p>जहाँ में ख़ुशनसीबों की नहीं दिखती कमी'सालिक'<br/> ख़ुदा दो-चार तुझ जैसे भी बेचारे बनाएगा (5)</p>
<p></p>
<p>*मौलिक/अप्रकाशित</p>
रुठ जाते हैं कभी दिन के उजाले मुझसे..( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर)
tag:www.openbooksonline.com,2020-10-11:5170231:BlogPost:1029026
2020-10-11T10:00:00.000Z
सालिक गणवीर
http://www.openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p></p>
<p>2122. 1122. 1122. 22.</p>
<p></p>
<p>रूठ जाते हैं कभी दिन के उजाले मुझसे<br></br> अब नहीं जाते अँधेरे ये सँभाले मुझसे (1)</p>
<p></p>
<p>सूख जाता है गला प्यास के मारे जब भी<br></br> दूर हो जाते हैं पानी के पियाले मुझसे (2)</p>
<p></p>
<p>क़ैद रक्खा है मुझे उसने कई सालों से <br></br> चाबियों का भी पता पूछ न ताले मुझसे (3)</p>
<p></p>
<p>सामने मेरे बहुत लोग यहाँ भूखे हैं<br></br> आज निगले नहीं जाएँगे निवाले मुझसे (4)</p>
<p></p>
<p>हाथ जब मेरे सलीबें ही उठाना चाहें<br></br> ख़ार अब माँग रहे पैरों के छाले…</p>
<p></p>
<p>2122. 1122. 1122. 22.</p>
<p></p>
<p>रूठ जाते हैं कभी दिन के उजाले मुझसे<br/> अब नहीं जाते अँधेरे ये सँभाले मुझसे (1)</p>
<p></p>
<p>सूख जाता है गला प्यास के मारे जब भी<br/> दूर हो जाते हैं पानी के पियाले मुझसे (2)</p>
<p></p>
<p>क़ैद रक्खा है मुझे उसने कई सालों से <br/> चाबियों का भी पता पूछ न ताले मुझसे (3)</p>
<p></p>
<p>सामने मेरे बहुत लोग यहाँ भूखे हैं<br/> आज निगले नहीं जाएँगे निवाले मुझसे (4)</p>
<p></p>
<p>हाथ जब मेरे सलीबें ही उठाना चाहें<br/> ख़ार अब माँग रहे पैरों के छाले मुझसे (5)</p>
<p></p>
<p>इक ज़माना था कभी साथ दिखा करते थे<br/> दूर ही रहते हैं अब देखने वाले मुझसे (6)</p>
<p></p>
<p>क्यों नहीं छपती यहाँ ग़ज़लें तुम्हारी 'सालिक'<br/> पूछते रहते हैं हर दिन ही रिसाले मुझसे (7)</p>
<p></p>
<p>*मौलिक एवं अप्रकाशित.</p>