Amod shrivastav (bindouri)'s Posts - Open Books Online2024-03-19T06:28:39Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindourihttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991293054?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=1o2r8bi9kbvar&xn_auth=noशेर लब से लब टहलकर कागजी हो जायेगाtag:www.openbooksonline.com,2019-07-25:5170231:BlogPost:9885962019-07-25T09:40:45.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>बहर :- 2122-2122-2122-212</p>
<p></p>
<p>ख्याल लफ्जों से उतरकर शाइरी हो जाएगा ।।<br></br>शेर लब से लब टहलकर कागजी हो जायेगा।।</p>
<p></p>
<p>अब्र से शबभर गिरेंगी ओश की बूंदें मगर ।<br></br>दिन ही चढ़ते ये समां इक मस्खरी हो जाएगा।।</p>
<p></p>
<p>हाँ खुमार -ए-इश्क है बातें तो होगी रात दिन ।<br></br>जब भी उतरेगा ये सर से मयकशी हो जाएगा।।</p>
<p></p>
<p>उसके हक़ में है सियासत देखना तुम एक दिन।<br></br>जाने वो बोलेगा क्या क्या औऱ बरी हो जायेगा।।</p>
<p></p>
<p>दर्द-ओ-गम शुहरत मुहब्बत सब मिलेगा इश्क में ।<br></br>इश्क…</p>
<p>बहर :- 2122-2122-2122-212</p>
<p></p>
<p>ख्याल लफ्जों से उतरकर शाइरी हो जाएगा ।।<br/>शेर लब से लब टहलकर कागजी हो जायेगा।।</p>
<p></p>
<p>अब्र से शबभर गिरेंगी ओश की बूंदें मगर ।<br/>दिन ही चढ़ते ये समां इक मस्खरी हो जाएगा।।</p>
<p></p>
<p>हाँ खुमार -ए-इश्क है बातें तो होगी रात दिन ।<br/>जब भी उतरेगा ये सर से मयकशी हो जाएगा।।</p>
<p></p>
<p>उसके हक़ में है सियासत देखना तुम एक दिन।<br/>जाने वो बोलेगा क्या क्या औऱ बरी हो जायेगा।।</p>
<p></p>
<p>दर्द-ओ-गम शुहरत मुहब्बत सब मिलेगा इश्क में ।<br/>इश्क कर के देख ले...खुद जौहरी हो जाएगा।।</p>
<p>आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशित</p>उसने इतना कह मुझे मेरी ग़लतियों को रख दिया (ग़जल)tag:www.openbooksonline.com,2019-07-14:5170231:BlogPost:9877272019-07-14T13:07:57.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>बहर.<br></br>2122-2122-2122-212</p>
<p></p>
<p>एक दिन उसने मेरी खामोशियों को रख दिया ।।<br></br>मेरे पेश-ए-आईने मे'री' हिचकियों को रख दिया ।।</p>
<p></p>
<p>तोड़ बंदिश हिज्र -ए-दिल ख़ुल कर युँ रोया इक दफा।<br></br>उसने दिल के सामने जब चिट्ठियों को रख दिया ।।</p>
<p></p>
<p>खन्न की आवाज ले सिक्का छुआ कांसे को जब।<br></br>भूख ने नजरें उठाई सिसकियों को रख दिया ।।</p>
<p></p>
<p>जब कभी मेरा वजू अन्धा हुआ इस भीड़ में ।<br></br>माँ ने अपनी आस के रौशन दियों को रख दिया ।।</p>
<p></p>
<p>गर कभी मायूस हो मन देख कर छत घास…</p>
<p>बहर.<br/>2122-2122-2122-212</p>
<p></p>
<p>एक दिन उसने मेरी खामोशियों को रख दिया ।।<br/>मेरे पेश-ए-आईने मे'री' हिचकियों को रख दिया ।।</p>
<p></p>
<p>तोड़ बंदिश हिज्र -ए-दिल ख़ुल कर युँ रोया इक दफा।<br/>उसने दिल के सामने जब चिट्ठियों को रख दिया ।।</p>
<p></p>
<p>खन्न की आवाज ले सिक्का छुआ कांसे को जब।<br/>भूख ने नजरें उठाई सिसकियों को रख दिया ।।</p>
<p></p>
<p>जब कभी मेरा वजू अन्धा हुआ इस भीड़ में ।<br/>माँ ने अपनी आस के रौशन दियों को रख दिया ।।</p>
<p></p>
<p>गर कभी मायूस हो मन देख कर छत घास की।<br/>छत में लाकर के पिता ने तितलियों को रख दिया ।।</p>
<p></p>
<p>रूठ कर नींदों ने मुझको गर डराया है कभी।<br/>माँ ने सिरहाने में ला कर लोरियों को रख दिया ।।</p>
<p></p>
<p>बाद तेरे छल के टूटी जिस्त का यह हौसला।<br/>हाँ अकेला ही चला बैशाखियों को रख दिया।।</p>
<p></p>
<p>जब कदम बे-हिस हुये जीस्त की इस जंग में।<br/>उसने संजीदा किया तालीमियों को रख दिया।।</p>
<p></p>
<p>एक दिन मिटना सभी को दूर रख तब तक इन्हें।<br/>उसने इतना कह मुझे मे'री' गल्तियों को रख दिया ।।</p>
<p><br/>आमोद बिन्दौरी / मौलिक अप्रकाशित</p>आदमीं हूँ ख्वाहिशें होनी नहीं कम ऐ खुदा ...tag:www.openbooksonline.com,2019-05-31:5170231:BlogPost:9853382019-05-31T06:50:50.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p><br></br>2122-2122-2122-212</p>
<p>मतला:-<br></br>ख़ुश ही रहता हूँ शिकायत क्या करूँ क्या है अता।।<br></br>आदमी हूँ ख्वाहिशें होनी नहीं कम ऐ ख़ुदा।।</p>
<p></p>
<p>हुश्न-ए-मतला:-</p>
<p>तेरे ज़ानिब से मुझे जो भी मिला अच्छा लगा ।<br></br>मैं तो मुफ़लिस था मेरी हिम्मत कहाँ कुछ माँगता।।</p>
<p></p>
<p>मेरा दम घुटने लगा जब महफिलों की शान में ।<br></br>यार आया हूँ उठा कर दूर खुद का मकबरा।।</p>
<p></p>
<p>मेरी मैय्यत में गुलों की बारिशें अच्छी नहीं।<br></br>शाइरी के भेष में करने लगा था इल्तिज़ा।।</p>
<p></p>
<p>देख़ो उल्फ़त के…</p>
<p><br/>2122-2122-2122-212</p>
<p>मतला:-<br/>ख़ुश ही रहता हूँ शिकायत क्या करूँ क्या है अता।।<br/>आदमी हूँ ख्वाहिशें होनी नहीं कम ऐ ख़ुदा।।</p>
<p></p>
<p>हुश्न-ए-मतला:-</p>
<p>तेरे ज़ानिब से मुझे जो भी मिला अच्छा लगा ।<br/>मैं तो मुफ़लिस था मेरी हिम्मत कहाँ कुछ माँगता।।</p>
<p></p>
<p>मेरा दम घुटने लगा जब महफिलों की शान में ।<br/>यार आया हूँ उठा कर दूर खुद का मकबरा।।</p>
<p></p>
<p>मेरी मैय्यत में गुलों की बारिशें अच्छी नहीं।<br/>शाइरी के भेष में करने लगा था इल्तिज़ा।।</p>
<p></p>
<p>देख़ो उल्फ़त के सफर ने चैंन ही छीना है बस।<br/>तुम भुला पाओ न पाओ मैं भुलाना चाहता ।।</p>
<p></p>
<p>जैसी चाहे जो भी चाहे लिख मेरी क़िस्मत को तू।<br/>आख़िरत जीता या हारा दो ही सूरत फैसला।।</p>
<p></p>
<p>रौशनाईगार ये कागज़ कलम छूटेगी तब।<br/>नींद का आग़ोश थामें बाँह बोले लौट आ।।<br/>आमोद बिन्दौरी / मौलिक अप्रकाशित</p>मेरी ओर से भी दरवाजा लगता है,,,tag:www.openbooksonline.com,2019-05-24:5170231:BlogPost:9843022019-05-24T12:16:20.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>बहर :- 22-22-22-22-22-2<br></br><br></br></p>
<p>तुम हो शातिर तुमको ऐसा लगता है ।।<br></br>मेरी ओर से भी दरवाजा लगता है।। </p>
<p></p>
<p>मैं करता तुमसे कैसे दिल की बातें।<br></br>तुमको मेरा प्रेम ही' सौदा लगता है।।</p>
<p></p>
<p>वो मंदिर में गिरजाघर में मस्जिद में।<br></br>मुझमें तुझमें पहरा जिसका लगता है।।</p>
<p></p>
<p>वो पत्थर ख़ुद को समझे क़िस्मत वाला।<br></br>जिसको छैनी और हथौड़ा लगता है ।।</p>
<p></p>
<p>आन पड़े जब मुश्किल घड़ियां जीवन में।<br></br>एक रु'पइया एक हजारा लगता है ।।</p>
<p></p>
<p>हिन्दू मुस्लिम भाई…</p>
<p>बहर :- 22-22-22-22-22-2<br/><br/></p>
<p>तुम हो शातिर तुमको ऐसा लगता है ।।<br/>मेरी ओर से भी दरवाजा लगता है।। </p>
<p></p>
<p>मैं करता तुमसे कैसे दिल की बातें।<br/>तुमको मेरा प्रेम ही' सौदा लगता है।।</p>
<p></p>
<p>वो मंदिर में गिरजाघर में मस्जिद में।<br/>मुझमें तुझमें पहरा जिसका लगता है।।</p>
<p></p>
<p>वो पत्थर ख़ुद को समझे क़िस्मत वाला।<br/>जिसको छैनी और हथौड़ा लगता है ।।</p>
<p></p>
<p>आन पड़े जब मुश्किल घड़ियां जीवन में।<br/>एक रु'पइया एक हजारा लगता है ।।</p>
<p></p>
<p>हिन्दू मुस्लिम भाई चारे में शामिल ।<br/>"चाँद बता तू कौन हमारा लगता है ।।"</p>
<p></p>
<p>इनकी उनकी कहता है मेरी सुन अब।<br/>तू मेरी ग़जलों का तारा लगता है ।।</p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>कुछ और नहीं बस सताया गया मुझे.....tag:www.openbooksonline.com,2019-05-24:5170231:BlogPost:9845222019-05-24T07:58:27.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>1211-22-1221-212</p>
<p><br/>दरोज बुझाया जलाया गया मुझे।।<br/>कुछ और नहीं बस सताया गया मुझे।।<br/><br/></p>
<p>यूँ पहली नजर की मुहब्बत ही नेक थी ।<br/>गलत है क़े रस्ता दिखाया गया मुझे।।<br/><br/></p>
<p>मुँड़ेर से महताब जैसा दिखाई दूँ।<br/>वही एक रोगन चढ़ाया गया मुझे।।<br/><br/></p>
<p>मुझे भी यही दौर आसान कह रहा ।<br/>वो दौर बता जो बताया गया मुझे।।<br/><br/></p>
<p>गुलाब सी खुश्बू बिखेरुं कभी कहीं।<br/>कलम से कलम कर लगाया गया मुझे।।<br/><br/></p>
<p>आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशित</p>
<p>1211-22-1221-212</p>
<p><br/>दरोज बुझाया जलाया गया मुझे।।<br/>कुछ और नहीं बस सताया गया मुझे।।<br/><br/></p>
<p>यूँ पहली नजर की मुहब्बत ही नेक थी ।<br/>गलत है क़े रस्ता दिखाया गया मुझे।।<br/><br/></p>
<p>मुँड़ेर से महताब जैसा दिखाई दूँ।<br/>वही एक रोगन चढ़ाया गया मुझे।।<br/><br/></p>
<p>मुझे भी यही दौर आसान कह रहा ।<br/>वो दौर बता जो बताया गया मुझे।।<br/><br/></p>
<p>गुलाब सी खुश्बू बिखेरुं कभी कहीं।<br/>कलम से कलम कर लगाया गया मुझे।।<br/><br/></p>
<p>आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशित</p>हरेक बात में उसका जवाब उल्टा है ।tag:www.openbooksonline.com,2019-04-27:5170231:BlogPost:9823432019-04-27T07:00:00.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p><br></br>1212-1122-1212-22</p>
<p>हरेक बात पे उसका जवाब उल्टा है ।।<br></br>मगर वो प्यार मुझे बेशुमार करता है।।</p>
<p></p>
<p>वो मेरे इश्क-ए- मरासिम* बनाएगा' इकदिन यूँ।(प्यार के रिश्ते)<br></br>बड़े यकींन से उल्फ़त की बात करता है।।</p>
<p></p>
<p>यूँ बर्फ आब-ओ-हवा वादियों से गुजरी हो।<br></br>उसी तरह से मेरा ज़िस्म अब पिघलता है।।</p>
<p></p>
<p>कभी भी वक्त न ठहरा हुआ लगे मुझको।<br></br>के चावी कौन भला सुब्ह शाम भरता है।।</p>
<p></p>
<p>यकीं न हो तो जरा गौर कर के देखो तुम ।<br></br>तुम्हारी आँख में भारी तुम्हारा'…</p>
<p><br/>1212-1122-1212-22</p>
<p>हरेक बात पे उसका जवाब उल्टा है ।।<br/>मगर वो प्यार मुझे बेशुमार करता है।।</p>
<p></p>
<p>वो मेरे इश्क-ए- मरासिम* बनाएगा' इकदिन यूँ।(प्यार के रिश्ते)<br/>बड़े यकींन से उल्फ़त की बात करता है।।</p>
<p></p>
<p>यूँ बर्फ आब-ओ-हवा वादियों से गुजरी हो।<br/>उसी तरह से मेरा ज़िस्म अब पिघलता है।।</p>
<p></p>
<p>कभी भी वक्त न ठहरा हुआ लगे मुझको।<br/>के चावी कौन भला सुब्ह शाम भरता है।।</p>
<p></p>
<p>यकीं न हो तो जरा गौर कर के देखो तुम ।<br/>तुम्हारी आँख में भारी तुम्हारा' चश्मा है।।</p>
<p></p>
<p>मैं आईने से शिकायत कभी नहीं करता ।<br/>जो होता' सामने' वो साफ़ साफ़ कहता है।।</p>
<p></p>
<p>तुम्हारी उम्र में शीला ,बदन में मुन्नी और।<br/>तुम्हारी चाल है नागिन, ये गाँव कहता है।।</p>
<p>आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशित</p>नफ़स की धुन नही थमीं...tag:www.openbooksonline.com,2019-04-24:5170231:BlogPost:9817232019-04-24T17:30:00.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p dir="ltr"><br></br> हजज़ मुरब्बा मक़बूज<br></br> अरकान :- मुफाइलुन मुफाइलुन <a>(1212-1212</a>)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मुझे उसी से प्यार हो ।।<br></br> जो तीर दिल के पार हो ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">पहाड़ जैसी' जिंदगी ।<br></br> कोई तो दाबे'दार हो।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">सवाल बस मेरा यही ।<br></br> अदब ओ ऐतबार हो।।(शिष्टाचार,विश्वास)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">नफ़स की धुन नहीं थमें।(आत्मा,soul)<br></br> कोई भी कितना यार हो।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">लुग़त* की …</p>
<p dir="ltr"><br/> हजज़ मुरब्बा मक़बूज<br/> अरकान :- मुफाइलुन मुफाइलुन <a>(1212-1212</a>)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मुझे उसी से प्यार हो ।।<br/> जो तीर दिल के पार हो ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">पहाड़ जैसी' जिंदगी ।<br/> कोई तो दाबे'दार हो।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">सवाल बस मेरा यही ।<br/> अदब ओ ऐतबार हो।।(शिष्टाचार,विश्वास)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">नफ़स की धुन नहीं थमें।(आत्मा,soul)<br/> कोई भी कितना यार हो।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">लुग़त* की छेड़छाड़ में। (शब्दकोश)<br/> हुसूल* दाग़दार हो।।(परिणाम,फल)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">उसूल दिल का ये कहे ।(नियम, कायदा)<br/> मिलावटी न प्यार हो।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मेरी रिसाल-ए- इश्क में ।<br/> वो रौशनाइगार हो ।।</p>
<p dir="ltr">आमोद बिंदौरी/ मौलिक अप्रकाशित</p>कोई तो दीद के क़ाबिल है आयाtag:www.openbooksonline.com,2019-04-21:5170231:BlogPost:9813462019-04-21T05:17:01.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p></p>
<p dir="ltr"><a>1222-1222-122</a></p>
<p dir="ltr">श'हर में शोर ये फैला हुआ है ।।<br></br> पडोसी गाँव में मुजरा हुआ है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">कोई तो दीद के क़ाबिल है आया ।<br></br> यहाँ दो दिन से ही परदा हुआ है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">वतन की आबरू कैसे बचाए।<br></br> म'सलतन आज ही सौदा हुआ है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">जरा देखूं सराफ़त छोड़ कर के ।<br></br> सुना है नाम कुछ अच्छा हुआ है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">अजां पढ़ ले या बुत की आरती को ।<br></br> सभी कुछ आज…</p>
<p></p>
<p dir="ltr"><a>1222-1222-122</a></p>
<p dir="ltr">श'हर में शोर ये फैला हुआ है ।।<br/> पडोसी गाँव में मुजरा हुआ है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">कोई तो दीद के क़ाबिल है आया ।<br/> यहाँ दो दिन से ही परदा हुआ है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">वतन की आबरू कैसे बचाए।<br/> म'सलतन आज ही सौदा हुआ है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">जरा देखूं सराफ़त छोड़ कर के ।<br/> सुना है नाम कुछ अच्छा हुआ है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">अजां पढ़ ले या बुत की आरती को ।<br/> सभी कुछ आज कल धंधा हुआ है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">हमारे देश की हालत बुरी अब।<br/> बुलंदी खोर हर तबक़ा हुआ है ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">गले को फाड़ कर चीघे भी कितना ।<br/> जमाना दूर तक बहरा हुआ है ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">कई हिन्दू ओ मुस्लिम घर जले हैं।<br/> ये दंगा किसका' अब भेजा हुआ है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">किसी को कुछ न कहना ठीक है जी ।<br/> सियासी शख़्स तो नंगा हुआ है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">म'सअले देर तक ना फडफ़ड़ाएं।<br/> विपक्षी संग समझौता हुआ है ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">हुई जब से मुहब्बत दिल का मेरे।<br/> ऐरा गैरा नत्थू खैरा हुआ है।।</p>
<p dir="ltr">आमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित</p>
<p><em> </em></p>समय के साथ भी सीखा गया है ।tag:www.openbooksonline.com,2019-04-17:5170231:BlogPost:9810192019-04-17T06:00:00.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p dir="ltr"><a>122-2122-2122</a></p>
<p dir="ltr"></p>
<p><br></br>समय के साथ भी सीखा गया है ।।<br></br>ये गुजरा दौर भी बतला गया है ।।</p>
<p></p>
<p>मेरी मजबूरियां अब मत गिनो तुम ।<br></br>मेरे संग हो तो सब देखा गया है ।।</p>
<p></p>
<p>सभी उस्ताद बनकर ही नहीं हैं।<br></br>मुझे अधभर में ही रख्खा गया है ।।</p>
<p></p>
<p>ये तेरा प्रेम कब छूटेगा मुझसे ।<br></br>मेरे चहरे में ये बस सा गया है ।।</p>
<p></p>
<p>मेरे भी चाहने वाले मिलेंगे।<br></br>मुझे कहकर यही बिछड़ा गया है ।।</p>
<p></p>
<p>कभी वो इन्तेहाँ मेरा भी ले…</p>
<p dir="ltr"><a>122-2122-2122</a></p>
<p dir="ltr"></p>
<p><br/>समय के साथ भी सीखा गया है ।।<br/>ये गुजरा दौर भी बतला गया है ।।</p>
<p></p>
<p>मेरी मजबूरियां अब मत गिनो तुम ।<br/>मेरे संग हो तो सब देखा गया है ।।</p>
<p></p>
<p>सभी उस्ताद बनकर ही नहीं हैं।<br/>मुझे अधभर में ही रख्खा गया है ।।</p>
<p></p>
<p>ये तेरा प्रेम कब छूटेगा मुझसे ।<br/>मेरे चहरे में ये बस सा गया है ।।</p>
<p></p>
<p>मेरे भी चाहने वाले मिलेंगे।<br/>मुझे कहकर यही बिछड़ा गया है ।।</p>
<p></p>
<p>कभी वो इन्तेहाँ मेरा भी ले ले।<br/>जो मंजिल की तरफ रस्ता गया है।।</p>
<p></p>
<p>सलोना मुस्कुराता एक चहरा ।<br/>मुकम्मल झूठ पर पहना गया है।।</p>
<p></p>
<p>जमाना क्या कहेगा क्या सुनेगा ।<br/>नसीहत को सदा रौंदा गया है।।</p>
<p></p>
<p>कोई कमजोर तबक़ा कब उठा है ।<br/>सियासी खेल पर खेला गया है।।</p>
<p>आमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित</p>सुब्ह शाम की तरह अब ये रात भी गई ..tag:www.openbooksonline.com,2019-03-22:5170231:BlogPost:9793192019-03-22T05:00:00.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>2121-212-2121-212</p>
<p></p>
<p>सुब्ह शाम की तरह अब ये रात भी गई।।<br></br> ख़ैरख्वाह वो बने,खैर-ख्वाही' की गई।।</p>
<p></p>
<p>मुद्दतों के बाद गर जो यूँ बात की गई।।<br></br> खामियां जता के ही गात फिर भरी गई।।</p>
<p></p>
<p>गर दो'-आब की पवन,रोंक लें ये खिड़कियां ।<br></br> रूह चंद दिवारों के दरमियाँ सिली गई।।</p>
<p></p>
<p>गर कहूँ जो' उनकी' तो साफ़ लफ़्ज हैं यही।<br></br> रात-ओ-दिन युँ आदतन हमसे बात की गई ।।</p>
<p></p>
<p>बिन पढ़े किताब -ए- दिल ,ग़र हिंसाब कर दिया ।।<br></br> तो दरख़्ती' जिंदगी क़त्ल ही तो की…</p>
<p>2121-212-2121-212</p>
<p></p>
<p>सुब्ह शाम की तरह अब ये रात भी गई।।<br/> ख़ैरख्वाह वो बने,खैर-ख्वाही' की गई।।</p>
<p></p>
<p>मुद्दतों के बाद गर जो यूँ बात की गई।।<br/> खामियां जता के ही गात फिर भरी गई।।</p>
<p></p>
<p>गर दो'-आब की पवन,रोंक लें ये खिड़कियां ।<br/> रूह चंद दिवारों के दरमियाँ सिली गई।।</p>
<p></p>
<p>गर कहूँ जो' उनकी' तो साफ़ लफ़्ज हैं यही।<br/> रात-ओ-दिन युँ आदतन हमसे बात की गई ।।</p>
<p></p>
<p>बिन पढ़े किताब -ए- दिल ,ग़र हिंसाब कर दिया ।।<br/> तो दरख़्ती' जिंदगी क़त्ल ही तो की गई।।</p>
<p></p>
<p>मैं गरीब ए आह हूँ , गर कहूँ तो क्या कहूँ।<br/> के तबाह जिंदगी कर के दिल्लगी गई।।</p>
<p></p>
<p>हम नशे में डूब कर जिंदगी गुजार दें।<br/> उनको ,बे इरादतन ही शराब पी गई।।</p>
<p>आमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित</p>कोई ऐसे रूठता है क्याtag:www.openbooksonline.com,2019-03-17:5170231:BlogPost:9786302019-03-17T15:30:00.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p dir="ltr"><a>122-1212-22</a></p>
<p dir="ltr">.</p>
<p dir="ltr">कोई रोकने लगा है क्या ?<br></br> कोई राज दरमियां है क्या?</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">तेरा फोन अब नहीं आता!!<br></br> कोई और मिल गया है क्या ?</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मुझे गैर कह दिया तुमने!!<br></br> मेरा वास्ता बुरा है क्या ?</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मेरे रूबरू नहीं रहते!!<br></br> मेरा साथ बददुआ है क्या?</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">तू ही खैरख्वाह बस मेरा!!<br></br> तू भी आजकल खफा है क्या?…</p>
<p dir="ltr"><a>122-1212-22</a></p>
<p dir="ltr">.</p>
<p dir="ltr">कोई रोकने लगा है क्या ?<br/> कोई राज दरमियां है क्या?</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">तेरा फोन अब नहीं आता!!<br/> कोई और मिल गया है क्या ?</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मुझे गैर कह दिया तुमने!!<br/> मेरा वास्ता बुरा है क्या ?</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मेरे रूबरू नहीं रहते!!<br/> मेरा साथ बददुआ है क्या?</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">तू ही खैरख्वाह बस मेरा!!<br/> तू भी आजकल खफा है क्या?</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मिरे साथ साथ चलना था!!<br/> भटक रास्ता गया है क्या?</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">तू क्यूँ बोलता नही कुछ अब!!<br/> कोई ऐसे रूठता है क्या???</p>
<p dir="ltr">आमोद बिंदौरी / मौलिक - अप्रकाशित<br/></p>मन की मनमानी को ठुकराने लगे हैं ..tag:www.openbooksonline.com,2019-03-16:5170231:BlogPost:9785432019-03-16T07:51:02.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p></p>
<p>2122-2122-2122</p>
<p>वक्त से दो चार हो जाने लगे हैं।।<br></br>मन की मनमानी को ठुकराने लगे हैं।।</p>
<p></p>
<p>अब जो अरमानों को टहलाने-लगे* हैं।।(बहाने बाजी करना)<br></br>जीस्त की सच्चाई अपनाने लगे हैं।।</p>
<p></p>
<p>उम्र की दस्तक़ जो है चहरे प मेरे।<br></br>श्वेत होकर केश लहराने लगे हैं।।</p>
<p></p>
<p>बचपना अब रूठता सा जा रहा है ।<br></br>पौढ़पन* अब अक्श दरसाने लगे हैं।।</p>
<p></p>
<p>मंजिलों में जिनके परचम दिख रहे उन।<br></br>सब के तर* पे शाल्य* मनमाने लगे हैं।।( निचला हिस्सा,…</p>
<p></p>
<p>2122-2122-2122</p>
<p>वक्त से दो चार हो जाने लगे हैं।।<br/>मन की मनमानी को ठुकराने लगे हैं।।</p>
<p></p>
<p>अब जो अरमानों को टहलाने-लगे* हैं।।(बहाने बाजी करना)<br/>जीस्त की सच्चाई अपनाने लगे हैं।।</p>
<p></p>
<p>उम्र की दस्तक़ जो है चहरे प मेरे।<br/>श्वेत होकर केश लहराने लगे हैं।।</p>
<p></p>
<p>बचपना अब रूठता सा जा रहा है ।<br/>पौढ़पन* अब अक्श दरसाने लगे हैं।।</p>
<p></p>
<p>मंजिलों में जिनके परचम दिख रहे उन।<br/>सब के तर* पे शाल्य* मनमाने लगे हैं।।( निचला हिस्सा, काटें)</p>
<p></p>
<p>आंवा'* जब तपकर किये स्वभाव मटका।(कुम्हार की भट्ठी)<br/> हर तपिश से ..शुक्रिया पाने लगे हैं।।</p>
<p></p>
<p>झूठ के आगे बढा जब सच का चहरा।<br/> कुछ सियासी लोग गुरर्राने लगे हैं।।</p>
<p></p>
<p>लीक से हटकर जरा चलना जो चाहा।<br/>बे-हया हूँ ..... बज्म से तानें लगे हैं।।</p>
<p></p>
<p>सच जरा सा आगे क्या बढ़ने लगा सब।<br/>मरकजों के पैर ....थरर्राने लगे हैं।</p>
<p>अमोद बिंदौरी / मौलिक , अप्रकाशित</p>जाने क्या कह रहा है मेरा आज मन ..गीतtag:www.openbooksonline.com,2019-03-12:5170231:BlogPost:9781042019-03-12T05:18:56.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p><br></br>शीत जैसी चुभन, आग जैसी जलन।।<br></br>जाने क्या कह रहा है मेरा आज मन।।</p>
<p></p>
<p>इक कशिश पल रही है हृदय में कहीं।<br></br>कश्मकश चल रही , साथ मेरे कोई।।<br></br>डुबकियां ले रहा ही मेरा आज मन।।<br></br>इस कदर है अधर से अधर का मिलन।।<br></br>जैसे पुरवा पवन छू रही हो बदन।।..१</p>
<p>जाने क्या कह रहा है .....</p>
<p></p>
<p>गर हूँ तन्हा मेरे साथ तन्हाई है।<br></br>भीड़ के साथ हूँ तो ये रूसवाई है।<br></br>दौड़कर पास आना लिपटना तेरा।।<br></br> मेरे आगोश में यूँ सिमटना तेरा।।<br></br>यूँ लगे जैसे मिलतें हो धरती…</p>
<p><br/>शीत जैसी चुभन, आग जैसी जलन।।<br/>जाने क्या कह रहा है मेरा आज मन।।</p>
<p></p>
<p>इक कशिश पल रही है हृदय में कहीं।<br/>कश्मकश चल रही , साथ मेरे कोई।।<br/>डुबकियां ले रहा ही मेरा आज मन।।<br/>इस कदर है अधर से अधर का मिलन।।<br/>जैसे पुरवा पवन छू रही हो बदन।।..१</p>
<p>जाने क्या कह रहा है .....</p>
<p></p>
<p>गर हूँ तन्हा मेरे साथ तन्हाई है।<br/>भीड़ के साथ हूँ तो ये रूसवाई है।<br/>दौड़कर पास आना लिपटना तेरा।।<br/> मेरे आगोश में यूँ सिमटना तेरा।।<br/>यूँ लगे जैसे मिलतें हो धरती गगन।।...२</p>
<p></p>
<p>जाने क्या कह रहा है ...</p>
<p></p>
<p>मुश्कुराहट जो चहरे में अब आ रही।<br/>हक है जन्मों का जैसे ये दर्शा रही।।<br/>इक मुकम्मल सी तश्वीर अब आप की ।<br/>उलझनें से रही आग बरपा रही।<br/>केशुओं की शरारत ये भीगा बदन।।...३</p>
<p></p>
<p>जाने क्या कह रहा है ....</p>
<p></p>
<p>तुम न होते तो होता मेरा जाने क्या ।<br/>गुल किताबों में था एक सूखा हुआ।।<br/>तुम जो आये मेरी साँसें चलने लगी।<br/>अब तो बेस्वाद हालाऐं लगने लगी।<br/>जबसे हासिल हुई लब की तेरे छुअन।...४</p>
<p></p>
<p>जाने क्या कह रहा है ....</p>
<p></p>
<p>ख्वाबिदा हो गए हम तेरे प्यार में ।<br/>जिंदगी बन गए आप ओ सांवरे।।<br/>एक पल में बदल सी गयी जिंदगी।।<br/>ये इनायत खुदा की कसम आप की।<br/>बिन पिये, बावला, झूमें ये तन बदन।।...५</p>
<p></p>
<p>जाने क्या कह रहा है ....</p>
<p>आमोद बिन्दौरी / मौलिक अप्रकाशित</p>मन भी कितना आतुर है ..tag:www.openbooksonline.com,2019-03-11:5170231:BlogPost:9780042019-03-11T09:19:27.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p dir="ltr"><a>22-22-22-2</a><br></br> मन भी कितना आतुर है।।<br></br> ज्यूँ सबकुछ जीवन भर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">पशुओं कि यह हालत भी।<br></br> इंसानों से बेहतर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">लोक समीक्षा इतनी ही।<br></br> जितना चिड़िया का पर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मेरा मेरा मुझको ही।<br></br> छाया है सब छप्पर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">कितना तुम अब भागोगे ।<br></br> तीन-कदम* पर ही घर है।।(बचपन जवानी बुढ़ापा)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">खूब बड़े बन जाओ क्या…</p>
<p dir="ltr"><a>22-22-22-2</a><br/> मन भी कितना आतुर है।।<br/> ज्यूँ सबकुछ जीवन भर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">पशुओं कि यह हालत भी।<br/> इंसानों से बेहतर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">लोक समीक्षा इतनी ही।<br/> जितना चिड़िया का पर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मेरा मेरा मुझको ही।<br/> छाया है सब छप्पर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">कितना तुम अब भागोगे ।<br/> तीन-कदम* पर ही घर है।।(बचपन जवानी बुढ़ापा)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">खूब बड़े बन जाओ क्या कर।<br/> दो गज का ही बिस्तर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मत कह तन्हा तू हमको।<br/> है मालिक उसका दर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">शिल्प नज़र लिख लू कैसे ।<br/> भाव भरा लघु सागर है।।<br/> <br/> साया वालिद ऐसा ज्यों ।<br/> जंग-ए- मैदां बख्तर* है।।(सुरक्षा घेरा)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">उनका कहना वाज़िब यूँ ।<br/> उनका साया हमपर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">बच कर रहना यारों तुम।<br/> उल्फ़त भी इक खंज़र है।।</p>
<p dir="ltr">आमोद बिंदौरी /मौलिक या प्रकाशित</p>मैं वक्त कहाँ कब रुकता हूँ .tag:www.openbooksonline.com,2019-03-10:5170231:BlogPost:9780862019-03-10T06:00:00.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>22-22-22-22</p>
<p></p>
<p>मैं कुछ और कहाँ कहता हूँ।।<br/> गैरों से लिपटा - अपना हूँ।।</p>
<p></p>
<p>वैमनष्यता न सर उठा पाए।<br/> दुश्मन की तरहा रहता हूँ।।</p>
<p></p>
<p>दरपण भी छू सकता है क्या।<br/> बस ये ऐसे ही - पूछा हूँ।</p>
<p></p>
<p>कलियाँ खुशबू बिखरायेंगी।<br/> मैं वक़्त कहाँ कब रुकता हूँ।।</p>
<p></p>
<p>आमोद रखो, बिश्वास रखो।<br/> पग पग जीवन में अच्छा हूँ।।</p>
<p><br/> ..अमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित</p>
<p>22-22-22-22</p>
<p></p>
<p>मैं कुछ और कहाँ कहता हूँ।।<br/> गैरों से लिपटा - अपना हूँ।।</p>
<p></p>
<p>वैमनष्यता न सर उठा पाए।<br/> दुश्मन की तरहा रहता हूँ।।</p>
<p></p>
<p>दरपण भी छू सकता है क्या।<br/> बस ये ऐसे ही - पूछा हूँ।</p>
<p></p>
<p>कलियाँ खुशबू बिखरायेंगी।<br/> मैं वक़्त कहाँ कब रुकता हूँ।।</p>
<p></p>
<p>आमोद रखो, बिश्वास रखो।<br/> पग पग जीवन में अच्छा हूँ।।</p>
<p><br/> ..अमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित</p>सच की झूठी जिल्दकारी क्या करूँ ..tag:www.openbooksonline.com,2019-03-09:5170231:BlogPost:9779532019-03-09T10:00:00.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p dir="ltr"><a>2122-2122-212</a></p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">याद आती है तुम्हारी क्या करूँ ।।<br></br> छाई रहती है खुमारी क्या करूँ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">अब नहीं चलता , मेरे पे बस मेरा।<br></br>बढ़ रही नित बेक़रारी क्या करूँ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">खुद मुआफ़िक आयत ए कुरआन हो।<br></br> इसमें अच्छी अर्श कारी क्या करूँ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">झूठा' सिक्का अब चलन बाजार का<br></br> सच की झूठी जिल्दकारी क्या करूँ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">हर्ज़ कोई बात से…</p>
<p dir="ltr"><a>2122-2122-212</a></p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">याद आती है तुम्हारी क्या करूँ ।।<br/> छाई रहती है खुमारी क्या करूँ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">अब नहीं चलता , मेरे पे बस मेरा।<br/>बढ़ रही नित बेक़रारी क्या करूँ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">खुद मुआफ़िक आयत ए कुरआन हो।<br/> इसमें अच्छी अर्श कारी क्या करूँ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">झूठा' सिक्का अब चलन बाजार का<br/> सच की झूठी जिल्दकारी क्या करूँ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">हर्ज़ कोई बात से मुझको नहीं।<br/> तुम लगा लो रहगुजारी क्या करूँ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">हाल ख़स्ता चाल बरहम हो गयी।<br/> ज़ीस्त की ईमानदारी क्या करूँ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">बद से बदतर हालते सूरत में हूँ।<br/> हाँ गई थी अक़्ल मारी क्या करूँ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">अब न चल सकता हवा के साथ मैं।<br/> मानता हूँ खुद ही हारी क्या करूँ।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">इक किताबी कब्र मेरी चाह है।<br/> कर रहा खुद की तयारी क्या करूँ।।</p>
<p dir="ltr">.</p>
<p dir="ltr">आमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित</p>कोई उम्मीद का सूरज कहीं पर है खड़ा सायदtag:www.openbooksonline.com,2019-03-06:5170231:BlogPost:9775782019-03-06T14:09:33.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>1222-1222-1222-1222</p>
<p>जो नजरें अब तलक बेख़ौफ़ दौड़ी जा रहीं हैं यूँ।।<br></br> कई आशाएं तपती रेत को खंघला रहीं हैं यूँ।।</p>
<p></p>
<p>कोई उम्मीद का सूरज , कहीं पर है खड़ा सायद।<br></br> पहल की किरने ये पैग़ाम लेकर आ रहीं हैं यूँ।।</p>
<p></p>
<p>ये सन्नाटा जो पसरा चीख़ के कुछ अंश बांकी हैं।<br></br> दिशाएँ इंतक़ाम-ए-जंग को दुहरा रहीं हैं यूँ।।</p>
<p></p>
<p>विषमता में खड़ी हो लोकधर्मी जंग लड़कर अब।<br></br> रिसाल ए रौशनाई हौसले उमड़ा रहीं हैं यूँ।।</p>
<p></p>
<p>कोई तो लिख रहा बेशक नया भारत किताबों में।…<br></br></p>
<p>1222-1222-1222-1222</p>
<p>जो नजरें अब तलक बेख़ौफ़ दौड़ी जा रहीं हैं यूँ।।<br/> कई आशाएं तपती रेत को खंघला रहीं हैं यूँ।।</p>
<p></p>
<p>कोई उम्मीद का सूरज , कहीं पर है खड़ा सायद।<br/> पहल की किरने ये पैग़ाम लेकर आ रहीं हैं यूँ।।</p>
<p></p>
<p>ये सन्नाटा जो पसरा चीख़ के कुछ अंश बांकी हैं।<br/> दिशाएँ इंतक़ाम-ए-जंग को दुहरा रहीं हैं यूँ।।</p>
<p></p>
<p>विषमता में खड़ी हो लोकधर्मी जंग लड़कर अब।<br/> रिसाल ए रौशनाई हौसले उमड़ा रहीं हैं यूँ।।</p>
<p></p>
<p>कोई तो लिख रहा बेशक नया भारत किताबों में।<br/> यक़ीनन आँधियाँ भी सज संवरकर गा रही हैं यूँ।</p>
<p>आमोद बिंदौरी/ मौलिक अप्रकाशित</p>अहसास होगा याद अगर करते हैंtag:www.openbooksonline.com,2019-03-04:5170231:BlogPost:9772842019-03-04T07:00:00.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p dir="ltr"><a>2212-22-1122-22</a></p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">अहसास होगा याद अगर करते हैं।।<br></br> आती है क्यूँ चाहत, के क्यूँ घर करते हैं।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">इस आस से की कल कुछ अच्छा होगा।<br></br> हम लोग इक दिन और सफर करते हैं।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मैंने भी अक्सर नाम लिये बिन लिख्खा।<br></br>जज्बात ए दिल बेनाम सफर करते हैं।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">ये आपकी आहट ही कुरेदेगी घर को।<br></br> जो छोड़ जाना आप नज़र करतें हैं।।(पेश करना)…</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr"><a>2212-22-1122-22</a></p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">अहसास होगा याद अगर करते हैं।।<br/> आती है क्यूँ चाहत, के क्यूँ घर करते हैं।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">इस आस से की कल कुछ अच्छा होगा।<br/> हम लोग इक दिन और सफर करते हैं।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मैंने भी अक्सर नाम लिये बिन लिख्खा।<br/>जज्बात ए दिल बेनाम सफर करते हैं।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">ये आपकी आहट ही कुरेदेगी घर को।<br/> जो छोड़ जाना आप नज़र करतें हैं।।(पेश करना)</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">ये कह दिया किसने?? की यही सच है इक!<br/> इंसान को भगवान असर करते हैं।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">अल्लाह ये भगवान ईशा ड्रामा सब।<br/> इंसानियत आला है अगर करतें हैं।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">मत मान कोई भी बात मेरी अब सच तू।<br/> है झूठ, के चाहत कोई ,पर करतें हैं।।</p>
<p dir="ltr">.</p>
<p dir="ltr">आमोद बिंदौरी / मौलिक अप्रकाशित</p>यूँ इश्क का इक सुकून हूँ मैं..tag:www.openbooksonline.com,2019-02-13:5170231:BlogPost:9747492019-02-13T18:22:49.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>121-22-121-22</p>
<p>नये ज़माने का खून हूँ मैं।।</p>
<p>पुराने स्वेटर का ऊन हूँ मैं।।</p>
<p></p>
<p>मुझे न पढ़ना न पढ़ सकोगे।</p>
<p>मैं अहदे उल्फ़त* जुनून हूँ मैं। time of love</p>
<p></p>
<p>अजब! सिफारिश मेरी करोगे।</p>
<p>अभी भी शक है कि कौन हूं मैं।।</p>
<p></p>
<p>करोगे क्या मेरे ज़ख्म सी कर।</p>
<p>यूँ इश्क का इक सुकून हूँ मैं।।</p>
<p></p>
<p>मकान मेरा नहीं है गुम सा।</p>
<p>पुराने घर से दरून* हूँ मैं।। (दिल,मध्य कोर)</p>
<p></p>
<p>के हिज्र हो या विसाल तेरा।</p>
<p>हूँ दोनों शय में…</p>
<p>121-22-121-22</p>
<p>नये ज़माने का खून हूँ मैं।।</p>
<p>पुराने स्वेटर का ऊन हूँ मैं।।</p>
<p></p>
<p>मुझे न पढ़ना न पढ़ सकोगे।</p>
<p>मैं अहदे उल्फ़त* जुनून हूँ मैं। time of love</p>
<p></p>
<p>अजब! सिफारिश मेरी करोगे।</p>
<p>अभी भी शक है कि कौन हूं मैं।।</p>
<p></p>
<p>करोगे क्या मेरे ज़ख्म सी कर।</p>
<p>यूँ इश्क का इक सुकून हूँ मैं।।</p>
<p></p>
<p>मकान मेरा नहीं है गुम सा।</p>
<p>पुराने घर से दरून* हूँ मैं।। (दिल,मध्य कोर)</p>
<p></p>
<p>के हिज्र हो या विसाल तेरा।</p>
<p>हूँ दोनों शय में ,सुकून हूँ मैं।।</p>
<p style="text-align: right;"><span style="font-size: 12pt;">आमोद बिन्दौरी / मौलिक अप्रकाशित</span></p>सुन! जो उनसे हो मुलाकात जाये तो क्या होगाtag:www.openbooksonline.com,2019-02-07:5170231:BlogPost:9729792019-02-07T13:07:23.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p></p>
<p>बह्र-<br></br>2122-2122-1221-222</p>
<p>सुन! जो उनसे हो मुलाकात जाये तो क्या होगा ।।<br></br>दरमियाँ फिर हो वही बात जाये तो क्या होगा।।</p>
<p></p>
<p>पर कहीं वो रूठ कर नजरें अपनी घुमा ली तो ।<br></br>बेबजह यूँ इश्क जजबात जाये तो क्या होगा।।</p>
<p></p>
<p>छोड़ उसको फिर न ये दर्द उलफत का देना अब।<br></br>रो के गर उसकी भी ये रात जाये तो क्या होगा।।</p>
<p></p>
<p>जानते हो ,वो यूँ मीलों सफर के जैसा है।<br></br>दो कदम चल के मुलाकात जाये तो क्या होगा ।।</p>
<p></p>
<p>मुझसे वो अच्छे से मिलना नहीं चाहती…</p>
<p></p>
<p>बह्र-<br/>2122-2122-1221-222</p>
<p>सुन! जो उनसे हो मुलाकात जाये तो क्या होगा ।।<br/>दरमियाँ फिर हो वही बात जाये तो क्या होगा।।</p>
<p></p>
<p>पर कहीं वो रूठ कर नजरें अपनी घुमा ली तो ।<br/>बेबजह यूँ इश्क जजबात जाये तो क्या होगा।।</p>
<p></p>
<p>छोड़ उसको फिर न ये दर्द उलफत का देना अब।<br/>रो के गर उसकी भी ये रात जाये तो क्या होगा।।</p>
<p></p>
<p>जानते हो ,वो यूँ मीलों सफर के जैसा है।<br/>दो कदम चल के मुलाकात जाये तो क्या होगा ।।</p>
<p></p>
<p>मुझसे वो अच्छे से मिलना नहीं चाहती होगी।<br/>बेवफा हूँ, मिल भी खैरात जाये तो क्या होगा ।।</p>
<p>आमोद बिन्दौरी / मौलिक- अप्रकाशित</p>वही उग आऊंगा मैं भी , अनाजों की तरह ..tag:www.openbooksonline.com,2019-01-20:5170231:BlogPost:9701352019-01-20T01:30:00.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>बह्र <br></br> 1222-1222-1222-12</p>
<p></p>
<p>चलो हमदर्द बन जाओ, ख़यालों की तरह।।<br></br> कोई खुश्बू ही बिखराओ गुलाबों की तरह।।</p>
<p></p>
<p>बहुत थक सा गया हूँ जिंदगी से खेल कर।<br></br> कजा आगोश में भर लो दुशालों की तरह।।</p>
<p></p>
<p>मुझे बंजर में नफरत से कहीं भी फेंक दो।<br></br> वही उग आऊंगा मैं भी, अनाजों की तरहा।।</p>
<p></p>
<p>मुझे पढ़ना अगर चाहो तो पढ़ लेना यूँ ही ।<br></br> हुँ यू के जी के बस्ते में, किताबों की तरह।।<br></br> <br></br> मेरी तुलना न कर उल्फ़त, गुलों की बस्ती' से।<br></br> मैं काफिर मैकदे में…</p>
<p>बह्र <br/> 1222-1222-1222-12</p>
<p></p>
<p>चलो हमदर्द बन जाओ, ख़यालों की तरह।।<br/> कोई खुश्बू ही बिखराओ गुलाबों की तरह।।</p>
<p></p>
<p>बहुत थक सा गया हूँ जिंदगी से खेल कर।<br/> कजा आगोश में भर लो दुशालों की तरह।।</p>
<p></p>
<p>मुझे बंजर में नफरत से कहीं भी फेंक दो।<br/> वही उग आऊंगा मैं भी, अनाजों की तरहा।।</p>
<p></p>
<p>मुझे पढ़ना अगर चाहो तो पढ़ लेना यूँ ही ।<br/> हुँ यू के जी के बस्ते में, किताबों की तरह।।<br/> <br/> मेरी तुलना न कर उल्फ़त, गुलों की बस्ती' से।<br/> मैं काफिर मैकदे में हूँ इन्हीं प्यालों की तरह।।</p>
<p></p>
<p>बहुत बेचैन मैं अहसास के हूँ दरमियाँ।<br/> मुझे रौशन करो फिर से चरागों की तरह।।</p>
<p></p>
<p>मैं खुश्बू इश्क फ़ैलाने में माहिर हूँ अगर।<br/> कहीं शामिल अगर कर दो नमाजों की तरह।<br/> आमोद बिन्दौरी/ मौलिक अप्रकाशित</p>मेरे घर अब उजाला बन के मुझमे कौन रहता हैtag:www.openbooksonline.com,2019-01-17:5170231:BlogPost:9697762019-01-17T13:05:11.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>बह्र 1222-1222-1222-1222</p>
<p>बता हर सिम्त तेरा बनके मुझमें कौन रहता है।।<br></br>तुझे लेकर अकेला बनके मुझमे कौन रहता है।।</p>
<p></p>
<p>अगर अब मुस्कुराते हो मेरी जद्दोजहद से तुम।<br></br>तो बोलो आज तुम सा बनके मुझमें कौन रहता है।।</p>
<p></p>
<p>तुम्हारा प्यार, तुम सा यार तेरी यादें वो सारी।<br></br>भुला हर कुछ अवारा बनके मुझमे कौन रहता है।।</p>
<p></p>
<p>गरीबी के दिये सा गर्दिशों में भी मैं जगमग हूँ।<br></br>मेरे घर अब उजाला बन के मुझमें कौन रहता है।।</p>
<p></p>
<p>बहा कर खत तेरे सारे यूँ गंगा के…</p>
<p>बह्र 1222-1222-1222-1222</p>
<p>बता हर सिम्त तेरा बनके मुझमें कौन रहता है।।<br/>तुझे लेकर अकेला बनके मुझमे कौन रहता है।।</p>
<p></p>
<p>अगर अब मुस्कुराते हो मेरी जद्दोजहद से तुम।<br/>तो बोलो आज तुम सा बनके मुझमें कौन रहता है।।</p>
<p></p>
<p>तुम्हारा प्यार, तुम सा यार तेरी यादें वो सारी।<br/>भुला हर कुछ अवारा बनके मुझमे कौन रहता है।।</p>
<p></p>
<p>गरीबी के दिये सा गर्दिशों में भी मैं जगमग हूँ।<br/>मेरे घर अब उजाला बन के मुझमें कौन रहता है।।</p>
<p></p>
<p>बहा कर खत तेरे सारे यूँ गंगा के किनारे पर।<br/>फकीरां मस्त आला बनके मुझमे कौन रहता है।।</p>
<p></p>
<p>आमोद बिन्दौरी/ मौलिक-अप्रकाशित</p>है बहुत कहने को लेकिन अब तो चुप बहतर है।।tag:www.openbooksonline.com,2018-12-23:5170231:BlogPost:9664662018-12-23T09:31:03.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p dir="ltr">बह्र- 2122-2122-2122-22</p>
<p dir="ltr">है बहुत कहने को लेकिन अब तो चुप बहतर है।।<br></br>जो समझ पाए न तुम क्या फायदा कहकर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">शोर कितना ही मचाये, या करे अब बकझक।<br></br>मैं समझ लेता हूँ मेरा दिल भी इक दफ्तर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">खुश नशीबी है मेरी नफ़रत मुहब्बत जंग की।<br></br>हार कर भी जीतने जैसा ही इक अवसर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">अब मैं ढक लेता हूँ खुद-का ये बदन अच्छे से।<br></br>अब नहीं मैं पहले जैसा गन्दगी अंदर है।।…</p>
<p dir="ltr">बह्र- 2122-2122-2122-22</p>
<p dir="ltr">है बहुत कहने को लेकिन अब तो चुप बहतर है।।<br/>जो समझ पाए न तुम क्या फायदा कहकर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">शोर कितना ही मचाये, या करे अब बकझक।<br/>मैं समझ लेता हूँ मेरा दिल भी इक दफ्तर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">खुश नशीबी है मेरी नफ़रत मुहब्बत जंग की।<br/>हार कर भी जीतने जैसा ही इक अवसर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">अब मैं ढक लेता हूँ खुद-का ये बदन अच्छे से।<br/>अब नहीं मैं पहले जैसा गन्दगी अंदर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">गीत गाता खुश है लगता घाट का यह पीपल।<br/>आस की चादर ढके पर दर्द का सागर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">प्रेम शब्दों में लिखूँ या फिर उकेरू संग में।<br/>प्रेम का हर एक आखर स्वर्ण हस्ताक्षर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">क्या अचम्भा कर अगर है ठूठ सा ये पीपल।<br/>इक अकेला ही नहीं ये दास्तां घर-घर है।।</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">चीर कर अहसास अपने दफ्न कर देता हूँ ।<br/>गूँगे बहरों की कृपा जो आज भी हमपर है ।।</p>
<p dir="ltr">आमोद बिन्दौरी / मौलिक अप्रकाशित</p>बहुत पछतायेगा वो मेरा पता पा कर - ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2018-10-18:5170231:BlogPost:9539712018-10-18T13:59:36.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>बह्र - 1222-122-2212-22</p>
<p>कोई यूँ खुश हुआ हो अपना खुदा पाकर।।</p>
<p>बहुत पछताएंगे वो मेरा पता पाकर।।</p>
<p></p>
<p>सफर चलना है कैसे ,लेकर चलन कैसा।</p>
<p>उन्हें अहसास होगा ,आबोहवा पाकर।।</p>
<p></p>
<p>वो अपनी ज़द में ही अपना आशियाँ चुन लें ।</p>
<p>कहाँ होता है आदम से बा वफ़ा पाकर।।</p>
<p></p>
<p>मुझे अब मुल्क़ से ये मजहब ही निकालेगा ।</p>
<p>बहुत खुश है मुझे यह जलता हुआ पा कर ।।</p>
<p></p>
<p>मैं अपनी आरजू अब अपना कहूँ कैसे ।</p>
<p>ये तो खुश है मेरे बच्चों से दगा पा कर…</p>
<p>बह्र - 1222-122-2212-22</p>
<p>कोई यूँ खुश हुआ हो अपना खुदा पाकर।।</p>
<p>बहुत पछताएंगे वो मेरा पता पाकर।।</p>
<p></p>
<p>सफर चलना है कैसे ,लेकर चलन कैसा।</p>
<p>उन्हें अहसास होगा ,आबोहवा पाकर।।</p>
<p></p>
<p>वो अपनी ज़द में ही अपना आशियाँ चुन लें ।</p>
<p>कहाँ होता है आदम से बा वफ़ा पाकर।।</p>
<p></p>
<p>मुझे अब मुल्क़ से ये मजहब ही निकालेगा ।</p>
<p>बहुत खुश है मुझे यह जलता हुआ पा कर ।।</p>
<p></p>
<p>मैं अपनी आरजू अब अपना कहूँ कैसे ।</p>
<p>ये तो खुश है मेरे बच्चों से दगा पा कर ।।</p>
<p>आमोद बिन्दौरी / मौलिक अप्रकाशित</p>मैं बहुत कुछ सोंचता रहता हूँ पर कहता नहींtag:www.openbooksonline.com,2018-10-07:5170231:BlogPost:9523142018-10-07T17:36:14.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
बह्र- 2122-2122-2122-212<br />
<br />
ज्यों हवा दस्तक करे खटखट कोई होता नहीं।।<br />
मैं बहुत कुछ सोंचता रहता हूँ पर कहता नहीं।।<br />
<br />
इस तरह परछाई सा महसूस होता वो मुझे।<br />
जैसे कोई दरमियाँ अपने है पर दिखता नहीं।।<br />
<br />
हर बुढ़ापा रात भर कुछ खोजता है जाने क्या<br />
नींद में भी जागता रहता है क्यों सोता नहीं ।।<br />
<br />
चौक में करता नुमाइश ,वक्त भी दल्ला हुआ।<br />
एक झटके में मुझे क्यों नग्न कर देता नहीं।।<br />
<br />
इक समंदर कैद है आँखों में अपने दर्द का ।<br />
जो भरा रहता है अंदर,पर कभी बहता नहीं।।<br />
<br />
आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशित
बह्र- 2122-2122-2122-212<br />
<br />
ज्यों हवा दस्तक करे खटखट कोई होता नहीं।।<br />
मैं बहुत कुछ सोंचता रहता हूँ पर कहता नहीं।।<br />
<br />
इस तरह परछाई सा महसूस होता वो मुझे।<br />
जैसे कोई दरमियाँ अपने है पर दिखता नहीं।।<br />
<br />
हर बुढ़ापा रात भर कुछ खोजता है जाने क्या<br />
नींद में भी जागता रहता है क्यों सोता नहीं ।।<br />
<br />
चौक में करता नुमाइश ,वक्त भी दल्ला हुआ।<br />
एक झटके में मुझे क्यों नग्न कर देता नहीं।।<br />
<br />
इक समंदर कैद है आँखों में अपने दर्द का ।<br />
जो भरा रहता है अंदर,पर कभी बहता नहीं।।<br />
<br />
आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशितहै सच के नींद बड़ी मुश्किलों से आती हैtag:www.openbooksonline.com,2018-09-13:5170231:BlogPost:9485372018-09-13T16:00:00.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p style="text-align: left;">बहर<br></br> 1212-1122-1212-22</p>
<p></p>
<p>मेरे खयाल में अब फासलों से आती है।।<br></br>तुम्हारी याद भी अब दूसरों से आती है।।</p>
<p></p>
<p>कदम रुके हैं मुहब्बत की राह में जबसे।<br></br>है सच के नींद बड़ी मुश्किलों से आती है।।</p>
<p></p>
<p>की जर्रा जर्रा कही टूट कर है बिखरा यूँ।<br></br>सदा ये आज मेरी महफिलों से आती है।।</p>
<p></p>
<p>मसल चुका हुँ सभी कुछ मैं जह्न के भीतर।<br></br> अभी भी तेरी कसक , हौसलों से आती है।।</p>
<p></p>
<p>गुजर रही है मुहब्बत की तिश्नगी दे कर।<br></br> जो…</p>
<p style="text-align: left;">बहर<br/> 1212-1122-1212-22</p>
<p></p>
<p>मेरे खयाल में अब फासलों से आती है।।<br/>तुम्हारी याद भी अब दूसरों से आती है।।</p>
<p></p>
<p>कदम रुके हैं मुहब्बत की राह में जबसे।<br/>है सच के नींद बड़ी मुश्किलों से आती है।।</p>
<p></p>
<p>की जर्रा जर्रा कही टूट कर है बिखरा यूँ।<br/>सदा ये आज मेरी महफिलों से आती है।।</p>
<p></p>
<p>मसल चुका हुँ सभी कुछ मैं जह्न के भीतर।<br/> अभी भी तेरी कसक , हौसलों से आती है।।</p>
<p></p>
<p>गुजर रही है मुहब्बत की तिश्नगी दे कर।<br/> जो सर्द सर्द हवा वादियों से आती है।।</p>
<p></p>
<p>कई जबान में उल्फ़त को जी के गुजरा हूँ ।<br/>महक अभी भी पुराने खतों से आती है।।</p>
<p></p>
<p>तू मुझसे हो के जुदा, आज तक भी मेरा है।<br/>खबर ये तेरी लिखी चिट्ठियों से आती है।।<br/>आमोद बिन्दौरी /मौलिक अप्रकाशित</p>बस है कोशिश उड़ूँ कुतरे पर लेtag:www.openbooksonline.com,2018-09-07:5170231:BlogPost:9482292018-09-07T15:00:00.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>बह्र - 2122-1221-22</p>
<p></p>
<p>इतना उलझा है आदम बसर में।।<br/> खुद से पूछे वो है किस सफर में ।।</p>
<p></p>
<p>क्या समझ पाएगे रात भर में।।<br/> फर्क है इस नजर उस नजर में।।</p>
<p></p>
<p>ना बदल पाऊं बिलकुल न बदले।<br/> पर है कोशिश उड़ूँ कुतरे पर में।।</p>
<p></p>
<p>अपनी मंजिल से है लापता जो ।<br/> चीखता फिर रहा, रह-गुजर में।।</p>
<p></p>
<p>हर मुसाफिर की कोशिस यही बस।<br/>सब सलामत रहे मेरे घर में।।</p>
<p></p>
<p>आमोद बिन्दौरी /मौलिक- अप्रकाशित</p>
<p>बह्र - 2122-1221-22</p>
<p></p>
<p>इतना उलझा है आदम बसर में।।<br/> खुद से पूछे वो है किस सफर में ।।</p>
<p></p>
<p>क्या समझ पाएगे रात भर में।।<br/> फर्क है इस नजर उस नजर में।।</p>
<p></p>
<p>ना बदल पाऊं बिलकुल न बदले।<br/> पर है कोशिश उड़ूँ कुतरे पर में।।</p>
<p></p>
<p>अपनी मंजिल से है लापता जो ।<br/> चीखता फिर रहा, रह-गुजर में।।</p>
<p></p>
<p>हर मुसाफिर की कोशिस यही बस।<br/>सब सलामत रहे मेरे घर में।।</p>
<p></p>
<p>आमोद बिन्दौरी /मौलिक- अप्रकाशित</p>घर के सपने संजो अधभरा ठीक हूँ।।tag:www.openbooksonline.com,2018-08-18:5170231:BlogPost:9450332018-08-18T11:30:00.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>बह्र-212-212-212-212</p>
<p><br></br> घर पे अपने बुरा या भला ठीक हूँ।।<br></br> गुम<strong>शु</strong>दा हूँ अगर गुम<strong>शु</strong>दा ठीक हूँ।।</p>
<p></p>
<p>पर्त धू की चढ़ी,दीमकों का बसर।<br></br> हो लगी चाहे सीलन पता ठीक हूँ।।</p>
<p></p>
<p>मेरा लहजा है कोई कहे न कहे।<br></br> मैं रदीफ़ ए ग़ज़ल काफिया ठीक हूँ।।</p>
<p></p>
<p>ठाठ की टोकरी या तुअर झाड़ की ।<br></br> घर के सपने संजो अधभरा ठीक हूँ।।</p>
<p></p>
<p>शान ओ शौक़त न कोई बसर चाहिए।<br></br> बस है चादर फटी अध-ढका ठीक हूँ।।</p>
<p>.</p>
<p>आमोद बिन्दौरी…</p>
<p>बह्र-212-212-212-212</p>
<p><br/> घर पे अपने बुरा या भला ठीक हूँ।।<br/> गुम<strong>शु</strong>दा हूँ अगर गुम<strong>शु</strong>दा ठीक हूँ।।</p>
<p></p>
<p>पर्त धू की चढ़ी,दीमकों का बसर।<br/> हो लगी चाहे सीलन पता ठीक हूँ।।</p>
<p></p>
<p>मेरा लहजा है कोई कहे न कहे।<br/> मैं रदीफ़ ए ग़ज़ल काफिया ठीक हूँ।।</p>
<p></p>
<p>ठाठ की टोकरी या तुअर झाड़ की ।<br/> घर के सपने संजो अधभरा ठीक हूँ।।</p>
<p></p>
<p>शान ओ शौक़त न कोई बसर चाहिए।<br/> बस है चादर फटी अध-ढका ठीक हूँ।।</p>
<p>.</p>
<p>आमोद बिन्दौरी ,मौलिक /अप्रकाशित</p>खुशबुएँ ज़ेहनी अभी भी कर रहे गुलजार क्यों??tag:www.openbooksonline.com,2018-08-05:5170231:BlogPost:9434112018-08-05T07:31:23.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>2122-2122-2122-212<br></br>आप को जाना ही है तो आज कल इतवार क्यों।<br></br>तोडना गर दिल ही है तो प्यार और मनुहार क्यों।।</p>
<p></p>
<p>आप की नजरें बयाँ क्यों कर बहाना है नया ।<br></br>आप की यह भीगती पलकों में ये उपहार क्यों।।</p>
<p></p>
<p>शौख था गर भूलना ही भूल जाते बे -शबब।<br></br>खुशबुएँ ज़ेहनी , अभी भी कर रहे गुलजार क्यों।।</p>
<p></p>
<p>रोक लो यह छटपटाती रूह का एहसास है ।<br></br>जल चुका है आशियाँ जो खोज इसमें प्यार क्यों।।</p>
<p></p>
<p>देखना गर चाहते हो मेरे चेहरे में ख़ुशी।<br></br>हाथ में लेकर खड़े हो आप…</p>
<p>2122-2122-2122-212<br/>आप को जाना ही है तो आज कल इतवार क्यों।<br/>तोडना गर दिल ही है तो प्यार और मनुहार क्यों।।</p>
<p></p>
<p>आप की नजरें बयाँ क्यों कर बहाना है नया ।<br/>आप की यह भीगती पलकों में ये उपहार क्यों।।</p>
<p></p>
<p>शौख था गर भूलना ही भूल जाते बे -शबब।<br/>खुशबुएँ ज़ेहनी , अभी भी कर रहे गुलजार क्यों।।</p>
<p></p>
<p>रोक लो यह छटपटाती रूह का एहसास है ।<br/>जल चुका है आशियाँ जो खोज इसमें प्यार क्यों।।</p>
<p></p>
<p>देखना गर चाहते हो मेरे चेहरे में ख़ुशी।<br/>हाथ में लेकर खड़े हो आप ही औजार क्यों।।</p>
<p></p>
<p>मेरे अंदर ही कुचल देते मेरे अहसास को।<br/>अधमरी इस पौध पर अब इश्क की बौछार क्यों।।</p>
<p></p>
<p>हूँ मैं जाहिल,नीच,घटिया,और दूषित खून है।<br/>गालियों की उष्ण बारिश करते नहीं अब यार क्यों।।<br/>मौलिक अप्रकाशित /आमोद बिन्दौरी</p>आज खुद को आज कहकर जानता है ..गजलtag:www.openbooksonline.com,2018-05-24:5170231:BlogPost:9313022018-05-24T04:00:00.000Zamod shrivastav (bindouri)http://www.openbooksonline.com/profile/amodbindouri
<p>2122-2122-2122</p>
<p>.</p>
<p>आज खुद को आज कहकर जानता है।।<br></br> हल वो बूढ़ा सा शज़र ,पर जानता है।।</p>
<p></p>
<p>किसका कितना पेट भूखा रह गया अब ।<br></br> घर का चूल्हा ही ये बेहतर जानता है ।।</p>
<p></p>
<p>कैसा बीता है शरद और ग्रीष्म बरखा।<br></br> मुझसे बेहतर घर का छप्पर जानता हैं।।</p>
<p></p>
<p>कैसे कटती हैं मेरी तन्हा सी रातें ।<br></br> खाट तकिया और बिस्तर जानता है।।</p>
<p></p>
<p>दर्द के किस दौर से गुजरा हुआ मैं।<br></br> आह का निकला ही अक्षर जानता है।।</p>
<p></p>
<p>आमोद बिंदौरी , मौलिक…</p>
<p>2122-2122-2122</p>
<p>.</p>
<p>आज खुद को आज कहकर जानता है।।<br/> हल वो बूढ़ा सा शज़र ,पर जानता है।।</p>
<p></p>
<p>किसका कितना पेट भूखा रह गया अब ।<br/> घर का चूल्हा ही ये बेहतर जानता है ।।</p>
<p></p>
<p>कैसा बीता है शरद और ग्रीष्म बरखा।<br/> मुझसे बेहतर घर का छप्पर जानता हैं।।</p>
<p></p>
<p>कैसे कटती हैं मेरी तन्हा सी रातें ।<br/> खाट तकिया और बिस्तर जानता है।।</p>
<p></p>
<p>दर्द के किस दौर से गुजरा हुआ मैं।<br/> आह का निकला ही अक्षर जानता है।।</p>
<p></p>
<p>आमोद बिंदौरी , मौलिक अप्रकाशित</p>
<p></p>