केवल प्रसाद 'सत्यम''s Posts - Open Books Online2024-03-29T01:41:43Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasadhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991299504?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=1nn0cbtdfnmw9&xn_auth=noसमसामयिक दोहेtag:www.openbooksonline.com,2019-10-02:5170231:BlogPost:9937462019-10-02T14:30:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>समसामयिक दोहे-</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अर्थशास्त्र का ज्ञान ही, सब देशों का मूल.</p>
<p>कभी बढाता शक्ति यह, कभी हिला दे चूल.१</p>
<p></p>
<p>राजनीति परमार्थ को, लिया स्वार्थ में ढाल.</p>
<p>खुद सुख सुविधा भोगते, सौंप दुःख जंजाल.२</p>
<p></p>
<p>राजनीति के शास्त्र में, कूटनीति के मन्त्र.</p>
<p>दलदल कीचड़ वासना, फलते पाप कुतंत्र.३ </p>
<p></p>
<p>जीवन में संवेदना, बहुत काम की चीज.</p>
<p>कभी विफल होती नहीं, मिलें श्रेष्ठ या नीच.४</p>
<p></p>
<p>द्वेष भावना में किये, गए…</p>
<p>समसामयिक दोहे-</p>
<p></p>
<p></p>
<p>अर्थशास्त्र का ज्ञान ही, सब देशों का मूल.</p>
<p>कभी बढाता शक्ति यह, कभी हिला दे चूल.१</p>
<p></p>
<p>राजनीति परमार्थ को, लिया स्वार्थ में ढाल.</p>
<p>खुद सुख सुविधा भोगते, सौंप दुःख जंजाल.२</p>
<p></p>
<p>राजनीति के शास्त्र में, कूटनीति के मन्त्र.</p>
<p>दलदल कीचड़ वासना, फलते पाप कुतंत्र.३ </p>
<p></p>
<p>जीवन में संवेदना, बहुत काम की चीज.</p>
<p>कभी विफल होती नहीं, मिलें श्रेष्ठ या नीच.४</p>
<p></p>
<p>द्वेष भावना में किये, गए कार्य-व्यवहार.</p>
<p>कभी फलित होते नहीं, देते कष्ट अपार.५</p>
<p></p>
<p>रचनाकार- केवल प्रसाद सत्यम </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>चन्द्रयान-2 पर सात दोहे..tag:www.openbooksonline.com,2019-09-26:5170231:BlogPost:9928912019-09-26T15:30:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>चन्द्रयान-दो चल पड़ा, ले विक्रम को साथ।<br></br> दुखी हुआ बेचैन भी, छूट गया जब हाथ।।1</p>
<p></p>
<div class="text_exposed_show"><p>चन्द्रयान का हौसला, विक्रम था भरपूर।<br></br> क्रूर समय ने छीन कर, उसे किया मजबूर।।2</p>
<p></p>
<p>माँ की ममता देखिए, चन्द्रयान में डूब।<br></br>ढूँढ अँधेरों में लिया, जिसने विक्रम खूब।।3</p>
<p></p>
<p>चन्द्रयान दो का सफर, हुआ बहुत मशहूर।<br></br>सराहना कर विश्व ने, दिया मान भरपूर।।4</p>
<p></p>
<p>चन्द्रयान दो के लिए, विक्रम प्राण समान।<br></br> छीन लिया यमराज से, साध…</p>
</div>
<p>चन्द्रयान-दो चल पड़ा, ले विक्रम को साथ।<br/> दुखी हुआ बेचैन भी, छूट गया जब हाथ।।1</p>
<p></p>
<div class="text_exposed_show"><p>चन्द्रयान का हौसला, विक्रम था भरपूर।<br/> क्रूर समय ने छीन कर, उसे किया मजबूर।।2</p>
<p></p>
<p>माँ की ममता देखिए, चन्द्रयान में डूब।<br/>ढूँढ अँधेरों में लिया, जिसने विक्रम खूब।।3</p>
<p></p>
<p>चन्द्रयान दो का सफर, हुआ बहुत मशहूर।<br/>सराहना कर विश्व ने, दिया मान भरपूर।।4</p>
<p></p>
<p>चन्द्रयान दो के लिए, विक्रम प्राण समान।<br/> छीन लिया यमराज से, साध प्रेम-विज्ञान।।5</p>
<p></p>
<p>चन्दा मामा की बहन, वह माँ मेरी आज।<br/> शुभाशीष दे पूँछती, भइया के सुख-काज।।6</p>
<p></p>
<p>चन्द्रयान दो है अमर, जैसे गीता - ज्ञान।<br/> सुख-दुख विक्रम को दिया, रहा नहीं अनजान।।7</p>
<p></p>
<p></p>
<p>केवल प्रसाद सत्यम</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
</div>शारदे समग्र काव्य. . .tag:www.openbooksonline.com,2016-08-28:5170231:BlogPost:7957112016-08-28T05:07:59.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>कलाधर छन्द</p>
<p></p>
<p></p>
<p>शारदे समग्र काव्य में विचार भव्यता कि</p>
<p>सत्यता उघार के कुलीन भाव मन्त्र दें।</p>
<p>शब्द शब्द सावधान अर्थ की विवेचना</p>
<p>करें विशुद्ध भाव से सुताल छन्द तंत्र दें।।</p>
<p>व्यग्रता सुधार के विनम्रता सुबुद्धि ज्ञान</p>
<p>मान के समस्त मानदण्ड के सुयंत्र दें।</p>
<p>आप ही कमाल वाह वाह की विधायिनी</p>
<p>सुभाषिनी प्रवाह गद्य पद्य में स्वतन्त्र दें।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचनाकार . .केवल प्रसाद सत्यम</p>
<p>कलाधर छन्द</p>
<p></p>
<p></p>
<p>शारदे समग्र काव्य में विचार भव्यता कि</p>
<p>सत्यता उघार के कुलीन भाव मन्त्र दें।</p>
<p>शब्द शब्द सावधान अर्थ की विवेचना</p>
<p>करें विशुद्ध भाव से सुताल छन्द तंत्र दें।।</p>
<p>व्यग्रता सुधार के विनम्रता सुबुद्धि ज्ञान</p>
<p>मान के समस्त मानदण्ड के सुयंत्र दें।</p>
<p>आप ही कमाल वाह वाह की विधायिनी</p>
<p>सुभाषिनी प्रवाह गद्य पद्य में स्वतन्त्र दें।।</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचनाकार . .केवल प्रसाद सत्यम</p>मानव नही लगता. .tag:www.openbooksonline.com,2016-08-11:5170231:BlogPost:7911772016-08-11T11:36:02.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>मुक्तक</p>
<p>जिसेे भी देखिये नख शिख तलक मानव नही लगता।<br/> लिए बम वासना शमसीर हक मानव नही लगता।।<br/>
मुसीबत ने यहाँ मुफ़लिस किसानो को रुलाया है. . <br/>
बड़ी ताकत कहूं जो यार तक मानव नही लगता।।</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>मुक्तक</p>
<p>जिसेे भी देखिये नख शिख तलक मानव नही लगता।<br/> लिए बम वासना शमसीर हक मानव नही लगता।।<br/>
मुसीबत ने यहाँ मुफ़लिस किसानो को रुलाया है. . <br/>
बड़ी ताकत कहूं जो यार तक मानव नही लगता।।</p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>दोहा छ्न्द......प्रतिपल अच्छा देखिएtag:www.openbooksonline.com,2016-07-13:5170231:BlogPost:7833562016-07-13T03:00:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>प्रतिपल अच्छा देखिए</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>आंंख चुरा कर घूमते, मिला न पाए आंख.</p>
<p>आखों के तारे मगर, बिखरे जैसे पांख.1</p>
<p></p>
<p>आसमान से बात कर, मत अम्बर पर थूंक.</p>
<p>कण्ठ-हार बन कर चमक, अवसर पर मत चूक.2</p>
<p></p>
<p>प्रतिपल अच्छा देखिए, अच्छे में उत्साह.</p>
<p>बालमीकि - रैदास भी, हुए ब्रह्म के शाह.3</p>
<p></p>
<p>अच्छे दिन की सोच में, बुरी नहीं यदि सोच.</p>
<p>दीन-हीन के दु:ख भी दूर करें बिन खोंच.4</p>
<p></p>
<p>संसारिक उद्देश्य ने, रिश्ते गढ़े…</p>
<p>प्रतिपल अच्छा देखिए</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>आंंख चुरा कर घूमते, मिला न पाए आंख.</p>
<p>आखों के तारे मगर, बिखरे जैसे पांख.1</p>
<p></p>
<p>आसमान से बात कर, मत अम्बर पर थूंक.</p>
<p>कण्ठ-हार बन कर चमक, अवसर पर मत चूक.2</p>
<p></p>
<p>प्रतिपल अच्छा देखिए, अच्छे में उत्साह.</p>
<p>बालमीकि - रैदास भी, हुए ब्रह्म के शाह.3</p>
<p></p>
<p>अच्छे दिन की सोच में, बुरी नहीं यदि सोच.</p>
<p>दीन-हीन के दु:ख भी दूर करें बिन खोंच.4</p>
<p></p>
<p>संसारिक उद्देश्य ने, रिश्ते गढ़े कुलीन.</p>
<p>व्यवहारिक संताप में, मानव करे मलीन.5</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>दोहा.... मुहावरों की सार्थकताtag:www.openbooksonline.com,2016-07-11:5170231:BlogPost:7833542016-07-11T04:00:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>मुहावरों में दोहा छंद की छटा...</p>
<p></p>
<p></p>
<p>गाल बजा कर दल गये, जो छाती पर मूंग.</p>
<p>वही अक्ल के अरि यहां, बने खड़े हैं गूंग. १</p>
<p></p>
<p>शीष ओखली में दिया, जब-जब निकले पंख.</p>
<p>उंगली पर न नचा सके, रहे फूंकते शंख. २</p>
<p></p>
<p>डाल आग में घी करे, हवन दमन की चाह. </p>
<p>अंत घड़ों पानी पियें, खुलती कलई आह. ३</p>
<p></p>
<p>फूंक-फूंक कर रख कदम, कांटों की यह राह.</p>
<p>खेल जान पर तोड़ना, चांद-सितारे- वाह. ४</p>
<p></p>
<p>अपने पैरों पर करें, लिये कुल्हाड़ी वार.</p>
<p>दोष…</p>
<p>मुहावरों में दोहा छंद की छटा...</p>
<p></p>
<p></p>
<p>गाल बजा कर दल गये, जो छाती पर मूंग.</p>
<p>वही अक्ल के अरि यहां, बने खड़े हैं गूंग. १</p>
<p></p>
<p>शीष ओखली में दिया, जब-जब निकले पंख.</p>
<p>उंगली पर न नचा सके, रहे फूंकते शंख. २</p>
<p></p>
<p>डाल आग में घी करे, हवन दमन की चाह. </p>
<p>अंत घड़ों पानी पियें, खुलती कलई आह. ३</p>
<p></p>
<p>फूंक-फूंक कर रख कदम, कांटों की यह राह.</p>
<p>खेल जान पर तोड़ना, चांद-सितारे- वाह. ४</p>
<p></p>
<p>अपने पैरों पर करें, लिये कुल्हाड़ी वार.</p>
<p>दोष और को दे रहे, उलटा यह संसार.५</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचनाकार..... केवल प्रसाद सत्यम</p>जैसे पियें फकीर......tag:www.openbooksonline.com,2016-06-24:5170231:BlogPost:7788192016-06-24T15:51:40.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
कुण्डलिया<br />
<br />
[१]<br />
<br />
साज़िश की ही बात में, बहके नित्य सुगंध.<br />
फूलों से कहते रहे, बस तुमसे सम्बंध.<br />
बस तुमसे सम्बंध, नहीं भौरों से रिश्ता.<br />
पीकर वह मकरंद, चंद्र को समझे पिस्ता.<br />
नित्य प्रभा का लाल, सृष्टि की करता पालिश.<br />
मगर दिवा अवसान, रात्रि मिल रचती साजिश.<br />
<br />
<br />
[२]<br />
<br />
आंखों के आंसू बहे, जैसे गंगा नीर.<br />
अधरों ने झट पी लिये, जैसे पियें फकीर.<br />
जैसे पियें फकीर, व्यर्थ नहि बात बढ़ाते.<br />
औरों का सुख देख, स्वयं ही दुख पी जाते.<br />
कहतीं नदिया ताल, सदा सबका मन राखो.<br />
दीन - हीन संसार, देखता है इन आंखो.<br />
<br />
<br />
मौलिक व…
कुण्डलिया<br />
<br />
[१]<br />
<br />
साज़िश की ही बात में, बहके नित्य सुगंध.<br />
फूलों से कहते रहे, बस तुमसे सम्बंध.<br />
बस तुमसे सम्बंध, नहीं भौरों से रिश्ता.<br />
पीकर वह मकरंद, चंद्र को समझे पिस्ता.<br />
नित्य प्रभा का लाल, सृष्टि की करता पालिश.<br />
मगर दिवा अवसान, रात्रि मिल रचती साजिश.<br />
<br />
<br />
[२]<br />
<br />
आंखों के आंसू बहे, जैसे गंगा नीर.<br />
अधरों ने झट पी लिये, जैसे पियें फकीर.<br />
जैसे पियें फकीर, व्यर्थ नहि बात बढ़ाते.<br />
औरों का सुख देख, स्वयं ही दुख पी जाते.<br />
कहतीं नदिया ताल, सदा सबका मन राखो.<br />
दीन - हीन संसार, देखता है इन आंखो.<br />
<br />
<br />
मौलिक व अप्रकाशित<br />
रचनाकार ..... केवल प्रसाद सत्यमअनंगशेखर छंद.......महीन है विलासिनीtag:www.openbooksonline.com,2016-06-17:5170231:BlogPost:7768142016-06-17T15:00:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>महीन है विलासिनी </p>
<p></p>
<p></p>
<p>महीन हैंं विलासिनी तलाशती रही हवा, विकास के कगार नित्य छांटते ज़मीन हैं.</p>
<p>ज़मीन हैं विकास हेतु सेतु बंध, ईट वृन्द, रोपते मकान शान कांपते प्रवीण हैं.</p>
<p>प्रवीण हैं सुसभ्य लोग सृष्टि को संवारते, उजाड़ते असंत - कंत नोचते नवीन हैं.</p>
<p>नवीन हैं कुलीन बुद्ध सत्य को अलापते, परंतु तंत्र - मंत्र दक्ष काटते महीन हैं.</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचनाकार.... केवल प्रसाद सत्यम</p>
<p>महीन है विलासिनी </p>
<p></p>
<p></p>
<p>महीन हैंं विलासिनी तलाशती रही हवा, विकास के कगार नित्य छांटते ज़मीन हैं.</p>
<p>ज़मीन हैं विकास हेतु सेतु बंध, ईट वृन्द, रोपते मकान शान कांपते प्रवीण हैं.</p>
<p>प्रवीण हैं सुसभ्य लोग सृष्टि को संवारते, उजाड़ते असंत - कंत नोचते नवीन हैं.</p>
<p>नवीन हैं कुलीन बुद्ध सत्य को अलापते, परंतु तंत्र - मंत्र दक्ष काटते महीन हैं.</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचनाकार.... केवल प्रसाद सत्यम</p>बीज प्रेम के रोपते...tag:www.openbooksonline.com,2016-06-14:5170231:BlogPost:7757692016-06-14T04:30:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<div><div>दोहा छंद....</div>
<div>बादल-बदली-बूंद से, हवा हुई जब नर्म.</div>
</div>
<div><div>ज्येष्ठ ताप-बैसाख ने, जोड़ें रिश्ते मर्म.१</div>
</div>
<div><div> </div>
</div>
<div><div>हवा दिशाओं को करे, अनुप्राणित रस सिक्त.</div>
</div>
<div><div>बादल उनको जी रहा, वर्षा करती रिक्त.२</div>
</div>
<div><div> </div>
</div>
<div><div>सावन में वर्षा नहीं, नहीं हरित व्यवहार.</div>
</div>
<div><div>नीम वृक्ष के गांव में, चिंचियाता बॅंसवार.३</div>
</div>
<div><div> </div>
</div>
<div><div>सावन में…</div>
</div>
<div><div>दोहा छंद....</div>
<div>बादल-बदली-बूंद से, हवा हुई जब नर्म.</div>
</div>
<div><div>ज्येष्ठ ताप-बैसाख ने, जोड़ें रिश्ते मर्म.१</div>
</div>
<div><div> </div>
</div>
<div><div>हवा दिशाओं को करे, अनुप्राणित रस सिक्त.</div>
</div>
<div><div>बादल उनको जी रहा, वर्षा करती रिक्त.२</div>
</div>
<div><div> </div>
</div>
<div><div>सावन में वर्षा नहीं, नहीं हरित व्यवहार.</div>
</div>
<div><div>नीम वृक्ष के गांव में, चिंचियाता बॅंसवार.३</div>
</div>
<div><div> </div>
</div>
<div><div>सावन में पावक लगी, जले खेत-वन-बाग.</div>
</div>
<div><div>नदी ताल सर ऊंघतीं, लिये कोंढ़ के दाग. ४</div>
</div>
<div><div> </div>
</div>
<div><div>सावन के झूले नहीं, मिले लटकते सत्य.</div>
</div>
<div><div>बाहुबली अति वासना, सिर चढ़ करती नृत्य.५</div>
</div>
<div><div> </div>
</div>
<div><div>सत्य ब्रह्म तन सूर्य मुख, कर स्वर्णिम शुभलाभ.</div>
</div>
<div><div>बीज प्रेम के रोपते, फलते यश अमिताभ.६</div>
</div>
<div><div> </div>
</div>
<div><div>दिव्य नयन संसार में, नदिया-सागर-झील.</div>
</div>
<div><div>मानव उसमें उतर कर, लगे हंस - कंदील. ७</div>
</div>
<div><div> </div>
</div>
<div><div>मौलिक व अप्रकाशित</div>
</div>
<div><div>रचनाकार..... केवल प्रसाद सत्यम</div>
</div>
<div><div>चलभाष्य--- ९४१५ ५४१ ३५३</div>
</div>ईद हुई गुलज़ार...tag:www.openbooksonline.com,2016-06-09:5170231:BlogPost:7743732016-06-09T15:00:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>दोहो का उपकार</p>
<p></p>
<p>सदा सूफियाना गज़ल, गम को करके ध्वस्त.</p>
<p>शब्द अर्थ रस भाव से, ऊर्जा भरे समस्त.१</p>
<p></p>
<p>मंदिर की श्रद्धा लिये खड़ी दीप- जयमाल.</p>
<p>वरे नित्य सुख- शांति को, रखे प्रेम खुशहाल.२</p>
<p></p>
<p>मस्ज़िद का ताखा प्रखर, लिये धूप की गंध.</p>
<p>मेघ-मेह की भांति ही, जोड़े मृदु सम्बंध.३</p>
<p></p>
<p>पश्चिम का तारा उदय, हुआ ईद का चांद.</p>
<p>उन्तिस रोज़ो से डरा, छिपा शेर की मांद.४</p>
<p></p>
<p>रोज़ो से सहरी मिली, सांझ करे इफ्तार.</p>
<p>उन्तिस दिन…</p>
<p>दोहो का उपकार</p>
<p></p>
<p>सदा सूफियाना गज़ल, गम को करके ध्वस्त.</p>
<p>शब्द अर्थ रस भाव से, ऊर्जा भरे समस्त.१</p>
<p></p>
<p>मंदिर की श्रद्धा लिये खड़ी दीप- जयमाल.</p>
<p>वरे नित्य सुख- शांति को, रखे प्रेम खुशहाल.२</p>
<p></p>
<p>मस्ज़िद का ताखा प्रखर, लिये धूप की गंध.</p>
<p>मेघ-मेह की भांति ही, जोड़े मृदु सम्बंध.३</p>
<p></p>
<p>पश्चिम का तारा उदय, हुआ ईद का चांद.</p>
<p>उन्तिस रोज़ो से डरा, छिपा शेर की मांद.४</p>
<p></p>
<p>रोज़ो से सहरी मिली, सांझ करे इफ्तार.</p>
<p>उन्तिस दिन के बाद फिर, ईद हुई गुलज़ार.५</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचनाकार.....केवल प्रसाद सत्यम</p>सवैया ......करुणाकरtag:www.openbooksonline.com,2016-06-08:5170231:BlogPost:7741942016-06-08T14:30:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>(१) दुर्मिल सवैया ....करुणाकर राम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>करुणाकर राम प्रणाम तुम्हें, तुम दिव्य प्रभाकर के अरूणा.</p>
<p>अरुणाचल प्रज्ञ विदेह गुणी, शिव विष्णु सुरेश तुम्हीं वरुणा.</p>
<p>वरुणा क्षर - अक्षर प्राण लिये, चुनती शुभ कुम्भ अमी तरुणा.</p>
<p>तरुणा नद सिंधु मही दुखिया, प्रभु राम कृपालु करो करुणा.</p>
<p></p>
<p></p>
<p>(२) किरीट सवैया ...अनुप्राणित वृक्ष</p>
<p></p>
<p>कल्प अकल्प विकल्प कहे तरु, पल्लव एक विशेष सहायक.</p>
<p>तुष्ट करें वन-बाग नमी -जल विंदु समस्त विशेष…</p>
<p>(१) दुर्मिल सवैया ....करुणाकर राम</p>
<p></p>
<p></p>
<p>करुणाकर राम प्रणाम तुम्हें, तुम दिव्य प्रभाकर के अरूणा.</p>
<p>अरुणाचल प्रज्ञ विदेह गुणी, शिव विष्णु सुरेश तुम्हीं वरुणा.</p>
<p>वरुणा क्षर - अक्षर प्राण लिये, चुनती शुभ कुम्भ अमी तरुणा.</p>
<p>तरुणा नद सिंधु मही दुखिया, प्रभु राम कृपालु करो करुणा.</p>
<p></p>
<p></p>
<p>(२) किरीट सवैया ...अनुप्राणित वृक्ष</p>
<p></p>
<p>कल्प अकल्प विकल्प कहे तरु, पल्लव एक विशेष सहायक.</p>
<p>तुष्ट करें वन-बाग नमी -जल विंदु समस्त विशेष विधायक.</p>
<p>वायु धरा नभ अग्नि परा, परमाणु अशेष विशेष विनायक.</p>
<p>ब्रह्म अगोचर शक्ति लिये, अनुप्राणित वृक्ष विशेष प्रदायक.</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचनाकार....केवल प्रसाद सत्यम</p>
<p></p>
<p></p>तने- तने मिले घने......tag:www.openbooksonline.com,2016-06-07:5170231:BlogPost:7741252016-06-07T13:00:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>कलाधर छंद .........तने- तने मिले घने</p>
<p> </p>
<p>वृक्ष की पुकार आज, सांस में रुंधी रही कि, वायु धूप क्रूर रेत, चींखती सिवान में.</p>
<p>मर्म सूख के उड़ी, गुमान मेघ में भरा कि, बूंद-बूंद ब्रह्म शक्ति, त्यागती सिवान में.</p>
<p>डूबती गयी नसीब, बीज़ कोख में लिये, स्वभाव प्रेम छांव भाव, रोपती सिवान में.</p>
<p>कोंपलें खिली जवां, तने- तने मिले घने, हसीन वादियां बहार, झूमती सिवान में.</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचनाकार....केवल प्रसाद सत्यम</p>
<p>कलाधर छंद .........तने- तने मिले घने</p>
<p> </p>
<p>वृक्ष की पुकार आज, सांस में रुंधी रही कि, वायु धूप क्रूर रेत, चींखती सिवान में.</p>
<p>मर्म सूख के उड़ी, गुमान मेघ में भरा कि, बूंद-बूंद ब्रह्म शक्ति, त्यागती सिवान में.</p>
<p>डूबती गयी नसीब, बीज़ कोख में लिये, स्वभाव प्रेम छांव भाव, रोपती सिवान में.</p>
<p>कोंपलें खिली जवां, तने- तने मिले घने, हसीन वादियां बहार, झूमती सिवान में.</p>
<p> </p>
<p> </p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचनाकार....केवल प्रसाद सत्यम</p>कुण्डलिया.......पतित पावनी गंगाtag:www.openbooksonline.com,2016-06-04:5170231:BlogPost:7732312016-06-04T15:00:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>गंगा निर्मल पावनी, नहीं मात्र जल धार.</p>
<p>अपने आंचल नेह से, करती है उद्धार.</p>
<p>करती है उद्धार, प्रेम श्रद्धा उपजा कर.</p>
<p>जन खग पशु वन बाग, सिक्त हैं कूप-सरोवर.</p>
<p>हुआ कठौता धन्य, करे सबका मन चंगा.</p>
<p>भारत का सौभाग्य, मोक्ष सुखदायी गंगा.</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचनाकार....केवल प्रसाद सत्यम</p>
<p>गंगा निर्मल पावनी, नहीं मात्र जल धार.</p>
<p>अपने आंचल नेह से, करती है उद्धार.</p>
<p>करती है उद्धार, प्रेम श्रद्धा उपजा कर.</p>
<p>जन खग पशु वन बाग, सिक्त हैं कूप-सरोवर.</p>
<p>हुआ कठौता धन्य, करे सबका मन चंगा.</p>
<p>भारत का सौभाग्य, मोक्ष सुखदायी गंगा.</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p>रचनाकार....केवल प्रसाद सत्यम</p>कलाधर छंद.....धन्यवाद ज्ञापनtag:www.openbooksonline.com,2016-05-27:5170231:BlogPost:7690192016-05-27T03:30:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>कलाधर छंद............धन्यवाद ज्ञापन</p>
<p>(१)</p>
<p> </p>
<p>धन्यवाद ज्ञाप आज आपका विशेष श्लेष वंदना करूं यथा प्रणाम राम-राम है.</p>
<p>दूर - दूर से यहां पधार के पवित्रता सुमित्रता दिया हमें अवाम राम-राम है.</p>
<p>शब्द भाव भक्ति ज्ञान दे रहे सुवृत्ति मान सत्य सूर्य-चंद्र मस्त श्याम राम-राम है.</p>
<p>आपके सुयोग से रचे गये सुपंथ मंत्र भव्य का प्रणाम ब्रह्म- धाम राम-राम है.</p>
<p> </p>
<p>(२)</p>
<p>धन्य-धन्य भाग्य है कि धन्य है सुभारती कि धन्य स्थान काल दिव्य आरती…</p>
<p>कलाधर छंद............धन्यवाद ज्ञापन</p>
<p>(१)</p>
<p> </p>
<p>धन्यवाद ज्ञाप आज आपका विशेष श्लेष वंदना करूं यथा प्रणाम राम-राम है.</p>
<p>दूर - दूर से यहां पधार के पवित्रता सुमित्रता दिया हमें अवाम राम-राम है.</p>
<p>शब्द भाव भक्ति ज्ञान दे रहे सुवृत्ति मान सत्य सूर्य-चंद्र मस्त श्याम राम-राम है.</p>
<p>आपके सुयोग से रचे गये सुपंथ मंत्र भव्य का प्रणाम ब्रह्म- धाम राम-राम है.</p>
<p> </p>
<p>(२)</p>
<p>धन्य-धन्य भाग्य है कि धन्य है सुभारती कि धन्य स्थान काल दिव्य आरती उतारती.</p>
<p>शारदे सुब्रह्म शैव शक्ति को बुला रही कि व्यंजना प्रगीत – गीत - छंद में संवारती.</p>
<p>आपकी उदारता महानता विशुद्ध नीति सूर्य के समान नित्य रोशनी बिखेरती.</p>
<p>पाप - अंधकार आज गर्त में समा रहे कि प्रेम – भक्ति आपकी प्रभात को उकेरती.</p>
<p> </p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित/</p>
<p>रचनाकार....केवल प्रसाद सत्यम</p>घूरे के दिन भी संवरते ...एक दिनtag:www.openbooksonline.com,2016-04-19:5170231:BlogPost:7581562016-04-19T12:00:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">घूरे के दिन भी संवरते ....</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI"> </span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">ज़िंदगी जो आज है</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">वह कल थी</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">किसी घूरे पर पड़ी मल</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">गंध से कराहती.</span></p>
<p></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">कोई पूंछने को न आता</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">सितारे दूर से निकल…</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">घूरे के दिन भी संवरते ....</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI"> </span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">ज़िंदगी जो आज है</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">वह कल थी</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">किसी घूरे पर पड़ी मल</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">गंध से कराहती.</span></p>
<p></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">कोई पूंछने को न आता</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">सितारे दूर से निकल जाते</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">बागों के फूल मुंह चिढ़ाते</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">पूरी देह कांटों में</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">और कांटे देह से बिंध जाते.</span></p>
<p></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">रो पड़ते आकाश</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">आंखों से पानी नहीं</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">सरसराती हवा बह निकलती </span></p>
<p>पुरवाई सबको सुख देती</p>
<p>पर ज़िंदगी गठियाबाई</p>
<p>यह सोच</p>
<p>मल की चींख निकल आई</p>
<p>हवा रुक नहीं पायी.</p>
<p></p>
<p>धरा अति दयावान</p>
<p>तत्क्षण आंचल में रख दुलराती...</p>
<p>पुचकारती</p>
<p>मल गंध घात लगाकर</p>
<p>श्वांस रोकती</p>
<p>दर्द सिर पर चढ़कर घर कर जाती.</p>
<p></p>
<p>नौ महीने बाद</p>
<p>मल की ढेर...ज़िंदगी!</p>
<p>खाल की खोल में अंगड़ाई लेती</p>
<p>बजती थालियां </p>
<p>बधाईयां गुनगुनाती</p>
<p>लड्डुओं के दौर चलते</p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">सिक्के उछलते....</span></p>
<p></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">इसी बीच ज़िंदगी !</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">रो पड़ती कल पर और </span>लोग.... </p>
<p>आज पर हंसते</p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">प्याले पर प्याले पीते</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">घूरे के दिन भी संवरते.....</span></p>
<p><span lang="HI" xml:lang="HI">एक दिन.</span></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>दोहा छंद......ग्यारह मनकेtag:www.openbooksonline.com,2016-04-10:5170231:BlogPost:7567962016-04-10T05:19:58.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p><span class="font-size-3">दोहा छंद......ग्यारह मनके</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">भले भलाई ही करें, बुरे बुने नित जाल.</span></p>
<p><span class="font-size-3">भले हुए यश-चांदनी, बुरे क्रूर-तम-काल.१</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">सत्य-अहिंसा-प्रेम रस, सदगुरु की पहचान.</span></p>
<p><span class="font-size-3">रखे मुक्त हर दोष से, जैसे कमल-कमान.२</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">सूरज की किरनें चली, सत्य ज्ञान के पार.…</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">दोहा छंद......ग्यारह मनके</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">भले भलाई ही करें, बुरे बुने नित जाल.</span></p>
<p><span class="font-size-3">भले हुए यश-चांदनी, बुरे क्रूर-तम-काल.१</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">सत्य-अहिंसा-प्रेम रस, सदगुरु की पहचान.</span></p>
<p><span class="font-size-3">रखे मुक्त हर दोष से, जैसे कमल-कमान.२</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">सूरज की किरनें चली, सत्य ज्ञान के पार.</span></p>
<p><span class="font-size-3">मिली चांदनी रात मेंं, क्षुद्र सितारे वार.३</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">पंचतत्व की देह यह, <span>राम-</span>कृष्ण की शान.</span></p>
<p><span class="font-size-3">पांच इंद्रियों से करें, सत्यम नित्य बखान.४ </span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">धर्म स्वार्थ से रख परे, करते जब परमार्थ.</span></p>
<p><span class="font-size-3">सूर्य चंद्र नभ जल पवन, खड़े रहें सहतार्थ.५</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">मिट्टी चढ़ कर चाक पर, कहे पुकार - पुकार.</span></p>
<p><span class="font-size-3">धरा-गगन-तन-कुम्भ में, भरें प्रेम रसधार.६</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">मिट्टी यश धन प्रेम की, मस्तक ब्रह्म समान.</span></p>
<p><span class="font-size-3">शिवा शक्ति वर कामनी, करे प्रकाशित प्राण.७</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">सोना- चांदी- रत्न से, बढ़े प्रीति अति ढीठ.</span></p>
<p><span class="font-size-3">करें सत्य सम्भाव्य को, दफ्न बांध कर गींठ.८</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">भ्रष्ट नीति व्यवहार को, कभी न रखिए साथ.</span></p>
<p><span class="font-size-3">जीवन में कटुता भरें, रिश्ते करें अनाथ.९</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">बड़ी कुटिल हैं इंद्रियां, करके तन अभिशप्त.</span></p>
<p><span class="font-size-3">अंत उसी को खा गयीं, फिर भी हुईं न तृप्त.१०</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">निर्बल के प्रति नेह रख, बने सहायक नेक.</span></p>
<p><span class="font-size-3">नित्य प्रेम सम्मान में, उनका हो अभिषेक.११</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">मौलिक व अप्रकाशित</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3"> </span></p>चिप्स पापड़ में ठनी...tag:www.openbooksonline.com,2016-03-25:5170231:BlogPost:7526412016-03-25T19:00:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>गज़ल....बह्र----२१२२, ११२२, ११२२, २२</p>
<p></p>
<p>आम के बाग में महुआ से मिलाया उसने.</p>
<p>मस्त पुरवाई हसीं फूल सजाया उसने.</p>
<p></p>
<p>शुद्ध महुआ का प्रखर ज्ञान पिलाया उसने'</p>
<p>संग होली का मज़ा प्रेम सिखाया उसने.</p>
<p></p>
<p>ज़िन्दगी दर्द सही गर्द छिपा कर हॅसती,</p>
<p>चोट गम्भीर भले घाव सिलाया उसने.</p>
<p></p>
<p>ताल-नदियों में अड़ी रेत झगड़ती रहती,</p>
<p>लाज़-पानी के लिये मेघ बुलाया उसने.</p>
<p></p>
<p>वक्त की खार हवा घात अकड़ पतझड़ सब,</p>
<p>होलिका खार की हर बार जलाया…</p>
<p>गज़ल....बह्र----२१२२, ११२२, ११२२, २२</p>
<p></p>
<p>आम के बाग में महुआ से मिलाया उसने.</p>
<p>मस्त पुरवाई हसीं फूल सजाया उसने.</p>
<p></p>
<p>शुद्ध महुआ का प्रखर ज्ञान पिलाया उसने'</p>
<p>संग होली का मज़ा प्रेम सिखाया उसने.</p>
<p></p>
<p>ज़िन्दगी दर्द सही गर्द छिपा कर हॅसती,</p>
<p>चोट गम्भीर भले घाव सिलाया उसने.</p>
<p></p>
<p>ताल-नदियों में अड़ी रेत झगड़ती रहती,</p>
<p>लाज़-पानी के लिये मेघ बुलाया उसने.</p>
<p></p>
<p>वक्त की खार हवा घात अकड़ पतझड़ सब,</p>
<p>होलिका खार की हर बार जलाया उसने.</p>
<p></p>
<p>रंग सत्कार लिये प्रेम की तितली मचली,</p>
<p>वृद्ध - बच्चों में युवा ज़ोश जगाया उसने.</p>
<p></p>
<p>दर्द महुआ की चुवन गंध चमेली जैसी,</p>
<p>देह सूरज की तपन, बर्फ लगाया उसने.</p>
<p></p>
<p>चिप्स पापड़ में ठनी माल-पुआ हॅसते रस,</p>
<p>गोझिया फूल गयी, खस्ता खिलाया उसने.</p>
<p></p>
<p>ईद -होली का सबब गीत गज़ल कविता में,</p>
<p>आप लोगों की कसम, खूब हॅसाया उसने.</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p>होलिका दबंग हैtag:www.openbooksonline.com,2016-03-25:5170231:BlogPost:7527152016-03-25T06:30:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p><span class="font-size-3">कलाधर छंद......<span>होलिका दबंग है</span></span></p>
<p><span class="font-size-3">विधान---गुरु लघु की पंद्रह आवृति और एक गुरु रखने का प्राविधान है. अर्थात २, १ गुणे १५ तत्पश्चात एक गुरु रखकर इस छंद की रचना की जाती है. इस प्रकार इसमें इकतीस वर्ण होते हैं. संदर्भ अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद की पुस्तक " छंद माला के काव्य-सौष्ठव" में ऐसे अनेकानेक सुंदर छंद विद्यमान हैं..</span></p>
<p><span class="font-size-3">यथा----…</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">कलाधर छंद......<span>होलिका दबंग है</span></span></p>
<p><span class="font-size-3">विधान---गुरु लघु की पंद्रह आवृति और एक गुरु रखने का प्राविधान है. अर्थात २, १ गुणे १५ तत्पश्चात एक गुरु रखकर इस छंद की रचना की जाती है. इस प्रकार इसमें इकतीस वर्ण होते हैं. संदर्भ अंजुमन प्रकाशन, इलाहाबाद की पुस्तक " छंद माला के काव्य-सौष्ठव" में ऐसे अनेकानेक सुंदर छंद विद्यमान हैं..</span></p>
<p><span class="font-size-3">यथा----</span></p>
<p></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">कृष्ण संग गाय ग्वाल, वृक्ष छांव, ठांव-ठांव, रंग में रॅगें समाज, बाजते मृदंग हैं.</span></p>
<p><span class="font-size-3">गांव-हाट, ठांट-बांट रंग गांठ-गांठ आज, मस्त भाव में सरोज भृंगराज संग हैं.</span></p>
<p><span class="font-size-3">पोर-पोर बांस की लिये सुराग फाग की, उड़ी हवा रुकी नहीं अनंग की उमंग है.</span></p>
<p><span class="font-size-3">अंग-अंग झूमते सुब्रह्म-शैव रीझते, सुभाषिनी करें सुनृत्य होलिका दबंग है.</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">मौलिक व अप्रकाशित</span></p>हंसीं शशि मलाला......tag:www.openbooksonline.com,2016-03-23:5170231:BlogPost:7522312016-03-23T06:28:57.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>गज़ल.....१२२ १२२ १२२ १२२</p>
<p></p>
<p>हमारे घरों का उजाला लिये जो.</p>
<p>हंसीं शशि मलाला सितारा लिये जो.</p>
<p> </p>
<p>लड़ी गोलियों से बिना खौफ खाये</p>
<p>खुले आसमां का हवाला लिये जो.</p>
<p> </p>
<p>दुआ यदि सलामत कयामत भी हारे</p>
<p>ये तारिख बलन्दी की माला लिये जो.</p>
<p> </p>
<p>चुरा कर खुशी ज़िन्दगी लूट लेते-</p>
<p>उन्हीं से मुहब्बत–फंसाना लिये जो.</p>
<p> </p>
<p>ये होली-दिवाली मिले ईद-सत्यम</p>
<p>हंसी फाग समरस तराना लिये जो.</p>
<p></p>
<p>सुखनवर....केवल प्रसाद…</p>
<p>गज़ल.....१२२ १२२ १२२ १२२</p>
<p></p>
<p>हमारे घरों का उजाला लिये जो.</p>
<p>हंसीं शशि मलाला सितारा लिये जो.</p>
<p> </p>
<p>लड़ी गोलियों से बिना खौफ खाये</p>
<p>खुले आसमां का हवाला लिये जो.</p>
<p> </p>
<p>दुआ यदि सलामत कयामत भी हारे</p>
<p>ये तारिख बलन्दी की माला लिये जो.</p>
<p> </p>
<p>चुरा कर खुशी ज़िन्दगी लूट लेते-</p>
<p>उन्हीं से मुहब्बत–फंसाना लिये जो.</p>
<p> </p>
<p>ये होली-दिवाली मिले ईद-सत्यम</p>
<p>हंसी फाग समरस तराना लिये जो.</p>
<p></p>
<p>सुखनवर....केवल प्रसाद सत्यम</p>
<p> </p>एक गज़ल....होली परtag:www.openbooksonline.com,2016-03-23:5170231:BlogPost:7520962016-03-23T05:01:12.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<div><div class="_1mf _1mj"><div><div class="_1mf _1mj"><span>एक गज़ल....होली पर</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>इसलिये प्यार है.</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>अपनी सरकार है.</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>कहता बदमाश पर,</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>करता सत्कार…</span></div>
</div>
</div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><div><div class="_1mf _1mj"><span>एक गज़ल....होली पर</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>इसलिये प्यार है.</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>अपनी सरकार है.</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>कहता बदमाश पर,</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>करता सत्कार है.</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>जिसको भी देखो अब</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>करता तकरार है.</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>होलि मिलने को बस</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>रहता बेज़ार है.</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>दिल का दुखड़ा अड़ा</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>चलना दुश्वार है.</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>आंखो का नूर जो</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>देता दुत्कार है.</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>कट गये पंख पर</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>हौंसला यार है.</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>आज पानी नहीं..!</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>रंग का सार है.</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>होलि त्योहार पर</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>छलका रस-प्यार है.</span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span>सुखनवर....केवल प्रसाद सत्यम</span></div>
</div>
</div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>
<div><div class="_1mf _1mj"><span> </span></div>
</div>पीढ़ियां.....tag:www.openbooksonline.com,2016-03-20:5170231:BlogPost:7519262016-03-20T03:00:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>पीढ़ियां !</p>
<p></p>
<p>सीढ़ियों पर चढ़ कर</p>
<p>पीढ़ियां !</p>
<p>थूंकती आसमान पर</p>
<p>धरा आर्द्रवश सहेज लेती</p>
<p>नदियों के कछार</p>
<p>दलदल - सदाबहार वन</p>
<p>आमंत्रित मेघ</p>
<p>बरसते नहीं.</p>
<p></p>
<p>पीढ़ियां !</p>
<p>असमय कड़क कर चमकतीं</p>
<p>गिरती बिजलियां</p>
<p>जलते घास-पूस के छप्पर</p>
<p>ढह जाते दुर्ग</p>
<p>सम्मान के...</p>
<p>संस्कृति के.</p>
<p></p>
<p>बिखरे अवशेष कराहते</p>
<p>खण्डहर में उग आते बांस</p>
<p>सीढ़ियां बनने को उत्सुक</p>
<p>पीढ़ियां उत्साह में फिसल…</p>
<p>पीढ़ियां !</p>
<p></p>
<p>सीढ़ियों पर चढ़ कर</p>
<p>पीढ़ियां !</p>
<p>थूंकती आसमान पर</p>
<p>धरा आर्द्रवश सहेज लेती</p>
<p>नदियों के कछार</p>
<p>दलदल - सदाबहार वन</p>
<p>आमंत्रित मेघ</p>
<p>बरसते नहीं.</p>
<p></p>
<p>पीढ़ियां !</p>
<p>असमय कड़क कर चमकतीं</p>
<p>गिरती बिजलियां</p>
<p>जलते घास-पूस के छप्पर</p>
<p>ढह जाते दुर्ग</p>
<p>सम्मान के...</p>
<p>संस्कृति के.</p>
<p></p>
<p>बिखरे अवशेष कराहते</p>
<p>खण्डहर में उग आते बांस</p>
<p>सीढ़ियां बनने को उत्सुक</p>
<p>पीढ़ियां उत्साह में फिसल जातीं,</p>
<p></p>
<p>हवन में आहुति डालते</p>
<p>भड़कती चिंगारी</p>
<p>सब भस्म कर देतीं</p>
<p>जप-तप और देह ..</p>
<p></p>
<p>आत्मा कुण्ठित</p>
<p>सीढ़ियों से इतर निर्मित करती</p>
<p>साम्यवाद !</p>
<p>प्रेम और सौहार्द्र.</p>
<p></p>
<p>पीढ़ियां नींव में दफ्न</p>
<p>नित्य करवटें बदलतीं</p>
<p>थूके हुये को चाटतीं....क्योंकि</p>
<p>ज़िंदा रहना जरूरी है....</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित </p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>हारे हरि का नामtag:www.openbooksonline.com,2016-03-14:5170231:BlogPost:7501702016-03-14T15:30:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>सावन के दिन झर गये, ठरी पूस की रात.</p>
<p>रंग बसंती रो रही, पतझड़ करते घात.१</p>
<p> </p>
<p>आंखों का सावन कभी, हुआ न तन का मीत.</p>
<p>कहें बसंती-फाग रस, पतझड़ जग की रीत.२</p>
<p> </p>
<p>वन उपवन नद ताल को, देकर दु:ख अतीव.</p>
<p>दशा दिशा श्रुति ज्ञान सब, बिगड़े मौसम जीव.३</p>
<p> </p>
<p>सरोकार रखते नहीं, जो समाज के साथ.</p>
<p>श्वेत वस्त्र उनके मगर, रंगे रक्त से हाथ.४</p>
<p></p>
<p>तंत्र मंत्र हर यंत्र जब, हारे हरि का नाम.</p>
<p>कृषक छात्र जन आज खुद, हुये कृष्ण-बलराम.५</p>
<p></p>
<p>राम…</p>
<p>सावन के दिन झर गये, ठरी पूस की रात.</p>
<p>रंग बसंती रो रही, पतझड़ करते घात.१</p>
<p> </p>
<p>आंखों का सावन कभी, हुआ न तन का मीत.</p>
<p>कहें बसंती-फाग रस, पतझड़ जग की रीत.२</p>
<p> </p>
<p>वन उपवन नद ताल को, देकर दु:ख अतीव.</p>
<p>दशा दिशा श्रुति ज्ञान सब, बिगड़े मौसम जीव.३</p>
<p> </p>
<p>सरोकार रखते नहीं, जो समाज के साथ.</p>
<p>श्वेत वस्त्र उनके मगर, रंगे रक्त से हाथ.४</p>
<p></p>
<p>तंत्र मंत्र हर यंत्र जब, हारे हरि का नाम.</p>
<p>कृषक छात्र जन आज खुद, हुये कृष्ण-बलराम.५</p>
<p></p>
<p>राम नाम से है बड़ा, उनका कार्य प्रसार.</p>
<p>मात्र नाम के जाप से, होता नहीं सुधार.६</p>
<p></p>
<p>धर्म-कर्म के नाम पर, फैले बहुत प्रकोप.</p>
<p>जड़ता सठता क्रूरता, हर जन पर दे थोप.७</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p> </p>खिले जो फूल सेंभल के ...tag:www.openbooksonline.com,2016-03-08:5170231:BlogPost:7477992016-03-08T17:00:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>नवगीत........सेंभल के फूल</p>
<p></p>
<p>खिले जो फूल सेंभल के</p>
<p>रहे वह मात्र दस दिन के</p>
<p>वो दुनियां देख न पाये</p>
<p>अहं के झूठ के साये</p>
<p>लड़े हर वक्त मौसम से</p>
<p>हुये बस धूल कण-कण के.............खिले जो फूल सेंभल के </p>
<p></p>
<p>रुई की नर्म फाहें उड़</p>
<p>गगन को भेदना चाहें</p>
<p>हवा रुख को बदल देती</p>
<p>उगाती रक्त की बांहें.</p>
<p>पकड़ कर ठूंसते-पीटें</p>
<p>लिहाफों में भरें धुन के...............खिले जो फूल सेंभल के </p>
<p></p>
<p>हवाओं से भरे फूले</p>
<p>निशक्तों…</p>
<p>नवगीत........सेंभल के फूल</p>
<p></p>
<p>खिले जो फूल सेंभल के</p>
<p>रहे वह मात्र दस दिन के</p>
<p>वो दुनियां देख न पाये</p>
<p>अहं के झूठ के साये</p>
<p>लड़े हर वक्त मौसम से</p>
<p>हुये बस धूल कण-कण के.............खिले जो फूल सेंभल के </p>
<p></p>
<p>रुई की नर्म फाहें उड़</p>
<p>गगन को भेदना चाहें</p>
<p>हवा रुख को बदल देती</p>
<p>उगाती रक्त की बांहें.</p>
<p>पकड़ कर ठूंसते-पीटें</p>
<p>लिहाफों में भरें धुन के...............खिले जो फूल सेंभल के </p>
<p></p>
<p>हवाओं से भरे फूले</p>
<p>निशक्तों की तरह झूलें</p>
<p>लिये फल फूल रस कलियां</p>
<p>मिली नहिं देव की गलियां</p>
<p>समय ने नित्य झकझोरा</p>
<p>बिजूखों सा गिरे तन के................खिले जो फूल सेंभल के </p>
<p></p>
<p>कहें जन्नत मिले दो जख</p>
<p>चुभें नित कण्ट शूली नख</p>
<p>वियावानों घने वन में</p>
<p>भटकते टीसते सदमें</p>
<p>सुखी जीवन क्षरे हरपल</p>
<p>सुनाते दर्द चुन-चुन के..................खिले जो फूल सेंभल के </p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>
<p> </p>प्रेम की वर्षा सूखी...tag:www.openbooksonline.com,2016-03-05:5170231:BlogPost:7474782016-03-05T16:25:04.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p><span class="font-size-3">कुण्डलिया</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">धुंआ हवा को छेड़ती, पानी करे पुकार.</span></p>
<p><span class="font-size-3">धरती निशदिन लुट रही, अम्बर है लाचार.</span></p>
<p><span class="font-size-3">अम्बर है लाचार, प्रेम की वर्षा सूखी.</span></p>
<p><span class="font-size-3">सरिता नदिया ताल, रेत में उलझी रूखी.</span></p>
<p><span class="font-size-3">सूरज रखता खार, करें क्या सत्यम-फगुवा.</span></p>
<p><span class="font-size-3">मानव अति बेशर्म, उड़ाता खुद…</span></p>
<p><span class="font-size-3">कुण्डलिया</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">धुंआ हवा को छेड़ती, पानी करे पुकार.</span></p>
<p><span class="font-size-3">धरती निशदिन लुट रही, अम्बर है लाचार.</span></p>
<p><span class="font-size-3">अम्बर है लाचार, प्रेम की वर्षा सूखी.</span></p>
<p><span class="font-size-3">सरिता नदिया ताल, रेत में उलझी रूखी.</span></p>
<p><span class="font-size-3">सूरज रखता खार, करें क्या सत्यम-फगुवा.</span></p>
<p><span class="font-size-3">मानव अति बेशर्म, उड़ाता खुद धुंआ- हवा.</span></p>
<p></p>
<p><span class="font-size-3">मौलिक व अप्रकाशित</span></p>उसी से दिल्लगी......tag:www.openbooksonline.com,2016-03-03:5170231:BlogPost:7472282016-03-03T16:42:43.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>गज़ल............उसी से दिल्लगी...</p>
<p>बहरे रुक्न.....हज़ज़ मुसम्मन सालिग</p>
<p></p>
<p>दिखा कर रोशनी जिसने किया है सृष्टि को पावन.</p>
<p>सघन तम में बसी जिसने किया है सृष्टि को पावन.</p>
<p></p>
<p>रही चर्चा यही जिसने किया है सृष्टि को पावन.</p>
<p>नहीं मिलती फली जिसने किया है सृष्टि को पावन.</p>
<p></p>
<p>हवाओं में, गुबारों में, समन्दर में वही साया</p>
<p>कहे मुझको परी जिसने किया है सृष्टि को पावन.</p>
<p></p>
<p>दिवाकर सांझ से मिलकर सितारे रात से कहते</p>
<p>वही सबसे बली जिसने किया है…</p>
<p>गज़ल............उसी से दिल्लगी...</p>
<p>बहरे रुक्न.....हज़ज़ मुसम्मन सालिग</p>
<p></p>
<p>दिखा कर रोशनी जिसने किया है सृष्टि को पावन.</p>
<p>सघन तम में बसी जिसने किया है सृष्टि को पावन.</p>
<p></p>
<p>रही चर्चा यही जिसने किया है सृष्टि को पावन.</p>
<p>नहीं मिलती फली जिसने किया है सृष्टि को पावन.</p>
<p></p>
<p>हवाओं में, गुबारों में, समन्दर में वही साया</p>
<p>कहे मुझको परी जिसने किया है सृष्टि को पावन.</p>
<p></p>
<p>दिवाकर सांझ से मिलकर सितारे रात से कहते</p>
<p>वही सबसे बली जिसने किया है सृष्टि को पावन.</p>
<p></p>
<p>करें मत सृष्टि से रगड़ा रखें बस दृष्टि समता की</p>
<p>कयामत सौंपती जिसने किया है सृष्टि को पावन.</p>
<p></p>
<p>वही साकी, वही प्याला, वही मदमस्त हाला है</p>
<p>उसी से दिल्लगी जिसने किया है सृष्टि को पावन.</p>
<p></p>
<p>हकीकत को समझ सत्यम बहुत मुश्किल नहीं कोई</p>
<p>सिखाती सादगी जिसने किया है सृष्टि को पावन.</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>पंचामृत......दोहेtag:www.openbooksonline.com,2016-02-26:5170231:BlogPost:7439202016-02-26T16:00:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>पंचामृत......दोहे</p>
<p></p>
<p></p>
<p>सावन-भादों सूखते, ठिठुरी आश्विन-पूस.</p>
<p>माघ-फाल्गुनी रक्त रस, रही प्रेम से चूस. १</p>
<p></p>
<p>अपने सारे दर्द हुए, जीवन के अभिलेख.</p>
<p>कुछ पन्ने इतिहास से, कुछ इस युग के देख. २</p>
<p></p>
<p>सत्य अहिंसा प्रेम-धन, सब पर्वत के रूप.</p>
<p>मन-मंदिर को ठग रहे, जैसे अंधे कूप. ३</p>
<p></p>
<p>राग-द्वेष नेतृत्व की, धारा प्रबल प्रवाह.</p>
<p>जन गण मन को डुबा कर, कहें स्वयं को शाह. ४</p>
<p></p>
<p>मौसम के हर रंग हैं, जीवन के संदेश.</p>
<p>कभी…</p>
<p>पंचामृत......दोहे</p>
<p></p>
<p></p>
<p>सावन-भादों सूखते, ठिठुरी आश्विन-पूस.</p>
<p>माघ-फाल्गुनी रक्त रस, रही प्रेम से चूस. १</p>
<p></p>
<p>अपने सारे दर्द हुए, जीवन के अभिलेख.</p>
<p>कुछ पन्ने इतिहास से, कुछ इस युग के देख. २</p>
<p></p>
<p>सत्य अहिंसा प्रेम-धन, सब पर्वत के रूप.</p>
<p>मन-मंदिर को ठग रहे, जैसे अंधे कूप. ३</p>
<p></p>
<p>राग-द्वेष नेतृत्व की, धारा प्रबल प्रवाह.</p>
<p>जन गण मन को डुबा कर, कहें स्वयं को शाह. ४</p>
<p></p>
<p>मौसम के हर रंग हैं, जीवन के संदेश.</p>
<p>कभी शुष्क-बरसात तो, कभी बसंती वेष. ५</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>किसान का बेटा....tag:www.openbooksonline.com,2016-02-26:5170231:BlogPost:7436972016-02-26T12:30:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>किसान का बेटा...</p>
<p></p>
<p>गंदे फटे वस्त्रों में उलझी धूल</p>
<p>झाड़ती सोंधी-सोंधी खुशुबू.</p>
<p></p>
<p>नीम की छांव में बैठ कर</p>
<p>निमकौड़ी !</p>
<p>खुद पिघल कर रचती</p>
<p>नये-नये अंकुर.</p>
<p></p>
<p>सावन मस्त होकर झूमता</p>
<p>वर्षा निछावर करती</p>
<p>जीवन के जल-कण</p>
<p>छप्पर रो पड़ते</p>
<p>किसान फटी आंखों से सहेज लेता...</p>
<p>जल-कण</p>
<p>बटुली में</p>
<p>थाली में.</p>
<p></p>
<p>धान के खेत लहलहाते</p>
<p>गंदे-फटे वस्त्र धुल जाते</p>
<p>चमकते सूर्य सा</p>
<p>साफ आसमान…</p>
<p>किसान का बेटा...</p>
<p></p>
<p>गंदे फटे वस्त्रों में उलझी धूल</p>
<p>झाड़ती सोंधी-सोंधी खुशुबू.</p>
<p></p>
<p>नीम की छांव में बैठ कर</p>
<p>निमकौड़ी !</p>
<p>खुद पिघल कर रचती</p>
<p>नये-नये अंकुर.</p>
<p></p>
<p>सावन मस्त होकर झूमता</p>
<p>वर्षा निछावर करती</p>
<p>जीवन के जल-कण</p>
<p>छप्पर रो पड़ते</p>
<p>किसान फटी आंखों से सहेज लेता...</p>
<p>जल-कण</p>
<p>बटुली में</p>
<p>थाली में.</p>
<p></p>
<p>धान के खेत लहलहाते</p>
<p>गंदे-फटे वस्त्र धुल जाते</p>
<p>चमकते सूर्य सा</p>
<p>साफ आसमान में.</p>
<p></p>
<p>किसान का बेटा!</p>
<p>बैठा है आज ए०सी० रूम में</p>
<p>उसे नही चाहिये</p>
<p>नीम की छांव,</p>
<p>निमकौड़ी की गंध</p>
<p>मिट्टी की सोंधी खुशुबू.</p>
<p></p>
<p>निकाल लेना चाहता है....वह !</p>
<p>किसान की आंखें</p>
<p>जिससे उसने देखा था</p>
<p>एक सुनहरा कल</p>
<p>स्वप्नों के गलियारों में</p>
<p>मेरा राजा बेटा, !</p>
<p>मेरा भारत महान....!</p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>मत्तगयन्द सवैया...tag:www.openbooksonline.com,2016-02-22:5170231:BlogPost:6853942016-02-22T18:30:00.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>[१]</p>
<p></p>
<p>प्यार मुहब्बत संग दया समता,करुणाकर ही रखते हैं.</p>
<p>क्रूर कठोर अघोर सभी जन मे, सदबुद्धि वही फलते हैं.</p>
<p>रावण कौरव कंस बली हिरणाक्ष,सभी पल मे क्षरते हैं.</p>
<p>धर्म सधे जनमानस के हित, सत्यम नित्य कहा करते हैं.</p>
<p></p>
<p>[२]</p>
<p></p>
<p>वक्त बली अति सौम्य तुला रख, नीति सुनीति सदा पगता है.</p>
<p>काल अकाल विधी विधना, सबके सब मूक बयां करता है.</p>
<p>मीन - नदी अति व्यग्र रहें, बगुला - तट शांत मजा चखता है.</p>
<p>वक्त समग्र विकास करे, पर मानव सत्य नहीं गहता…</p>
<p>[१]</p>
<p></p>
<p>प्यार मुहब्बत संग दया समता,करुणाकर ही रखते हैं.</p>
<p>क्रूर कठोर अघोर सभी जन मे, सदबुद्धि वही फलते हैं.</p>
<p>रावण कौरव कंस बली हिरणाक्ष,सभी पल मे क्षरते हैं.</p>
<p>धर्म सधे जनमानस के हित, सत्यम नित्य कहा करते हैं.</p>
<p></p>
<p>[२]</p>
<p></p>
<p>वक्त बली अति सौम्य तुला रख, नीति सुनीति सदा पगता है.</p>
<p>काल अकाल विधी विधना, सबके सब मूक बयां करता है.</p>
<p>मीन - नदी अति व्यग्र रहें, बगुला - तट शांत मजा चखता है.</p>
<p>वक्त समग्र विकास करे, पर मानव सत्य नहीं गहता है.</p>
<p></p>
<p>के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>सवैया - ऋतुराज....tag:www.openbooksonline.com,2016-02-20:5170231:BlogPost:7421522016-02-20T23:43:36.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>आठ भगण पर आधारित सवैया...किरीट सवैया कहलाती है.</p>
<p></p>
<p>-१-</p>
<p></p>
<p>पावन हैं ऋतुराज समाजिक, मान सुज्ञान विधान प्रतिष्ठित.</p>
<p>पर्वत दृश्य समीर नदी रस, धार सुप्रीति समान प्रतिष्ठित.</p>
<p>काम कमान लिये फिरता, रति संग रखे हर बाण प्रतिष्ठित.</p>
<p>शंकर भस्म करे पल में, वर काम अनंग प्रधान प्रतिष्ठित.</p>
<p></p>
<p>-२-</p>
<p></p>
<p>गंग तरंग उमंग लिये नव प्राण धरा रस से कर सिंचित.</p>
<p>पाप विकार अनिष्ट गरिष्ठ समेट बही यश से कर सिंचित.</p>
<p>शुद्ध प्रबुद्ध प्रणाम करे…</p>
<p>आठ भगण पर आधारित सवैया...किरीट सवैया कहलाती है.</p>
<p></p>
<p>-१-</p>
<p></p>
<p>पावन हैं ऋतुराज समाजिक, मान सुज्ञान विधान प्रतिष्ठित.</p>
<p>पर्वत दृश्य समीर नदी रस, धार सुप्रीति समान प्रतिष्ठित.</p>
<p>काम कमान लिये फिरता, रति संग रखे हर बाण प्रतिष्ठित.</p>
<p>शंकर भस्म करे पल में, वर काम अनंग प्रधान प्रतिष्ठित.</p>
<p></p>
<p>-२-</p>
<p></p>
<p>गंग तरंग उमंग लिये नव प्राण धरा रस से कर सिंचित.</p>
<p>पाप विकार अनिष्ट गरिष्ठ समेट बही यश से कर सिंचित.</p>
<p>शुद्ध प्रबुद्ध प्रणाम करे नित सूर्य सुधारस से कर सिंचित.</p>
<p>धर्म सुमर्म पगे दिन-रात रसायन - पावन से कर सिंचित.</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित</p>सुख के सागर.....tag:www.openbooksonline.com,2016-02-17:5170231:BlogPost:7409842016-02-17T02:47:24.000Zकेवल प्रसाद 'सत्यम'http://www.openbooksonline.com/profile/kewalprasad
<p>आनंद..!</p>
<p>आनंद का आकार.....</p>
<p>निराकार!</p>
<p>बात-बात पर अट्टहास करते</p>
<p>पल झपकते ही स्वर</p>
<p>हवा में बह जाते.</p>
<p>दिशाओं की कोंख</p>
<p>नित्य जन्मतीं</p>
<p>सूर्य-चंद्र अगणित तारे</p>
<p>सृष्टि के सृजन में</p>
<p>सत्यम शिवम सुंदरम</p>
<p>स्वयं शव!</p>
<p>शांति का संदेश देते ब्रह्म !</p>
<p>ऊंकार,</p>
<p>जीवन पुष्ट करता</p>
<p>जीव !</p>
<p>चक्रवत निरंतर खोजता</p>
<p>जीवन का आनंद..</p>
<p>परमानंद...पर,</p>
<p>आनंद की अनुभूति कभी न हो पाती</p>
<p>मिलता केवल दु:ख</p>
<p>सुख…</p>
<p>आनंद..!</p>
<p>आनंद का आकार.....</p>
<p>निराकार!</p>
<p>बात-बात पर अट्टहास करते</p>
<p>पल झपकते ही स्वर</p>
<p>हवा में बह जाते.</p>
<p>दिशाओं की कोंख</p>
<p>नित्य जन्मतीं</p>
<p>सूर्य-चंद्र अगणित तारे</p>
<p>सृष्टि के सृजन में</p>
<p>सत्यम शिवम सुंदरम</p>
<p>स्वयं शव!</p>
<p>शांति का संदेश देते ब्रह्म !</p>
<p>ऊंकार,</p>
<p>जीवन पुष्ट करता</p>
<p>जीव !</p>
<p>चक्रवत निरंतर खोजता</p>
<p>जीवन का आनंद..</p>
<p>परमानंद...पर,</p>
<p>आनंद की अनुभूति कभी न हो पाती</p>
<p>मिलता केवल दु:ख</p>
<p>सुख के सागर में.</p>
<p></p>
<p> </p>
<p>मौलिक/ अप्रकाशित</p>