Amit Kumar "Amit"'s Posts - Open Books Online2024-03-28T22:07:22ZAmit Kumar "Amit"http://www.openbooksonline.com/profile/AmitKumar568http://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/10972934276?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=1hg584pyc4tsq&xn_auth=noगीत - मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।tag:www.openbooksonline.com,2019-07-19:5170231:BlogPost:9883842019-07-19T12:39:49.000ZAmit Kumar "Amit"http://www.openbooksonline.com/profile/AmitKumar568
तुम मुझको चाहे जो भी समझो लेकिन सुनो प्रिय।<br />
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।<br />
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तुम अमृत जैसी दुर्लभ हो, तुम गंगाजल सी पावन हो।<br />
तुम खुशबू से लबरेज पवन, तुम बहका-बहका सावन हो।<br />
तुम कलियों में कचनार प्रिय, तुम नील गगन में चंदा हो।<br />
उर्वशी-मेनका से सुंदर, जो जग पूजे वो वृंदा हो।<br />
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उस जीवन दाता रब का मुझ पर फजल समझता हूं।<br />
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।१।।<br />
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सांसो की मधुमय हाला से मदहोश सदा हो जाता हूं।<br />
इन नैनो की मधुशाला में परिचय अपना खो आता हूं।<br />
योवन के इस रूप महल में पल में सदिया…
तुम मुझको चाहे जो भी समझो लेकिन सुनो प्रिय।<br />
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।<br />
<br />
तुम अमृत जैसी दुर्लभ हो, तुम गंगाजल सी पावन हो।<br />
तुम खुशबू से लबरेज पवन, तुम बहका-बहका सावन हो।<br />
तुम कलियों में कचनार प्रिय, तुम नील गगन में चंदा हो।<br />
उर्वशी-मेनका से सुंदर, जो जग पूजे वो वृंदा हो।<br />
<br />
उस जीवन दाता रब का मुझ पर फजल समझता हूं।<br />
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।१।।<br />
<br />
सांसो की मधुमय हाला से मदहोश सदा हो जाता हूं।<br />
इन नैनो की मधुशाला में परिचय अपना खो आता हूं।<br />
योवन के इस रूप महल में पल में सदिया जी लेता हूं।<br />
जब अधरों के दो प्यालो से मधुरस सारा पी लेता हूं।।<br />
<br />
तब खुद को इन कोमल बाहों में कतल समझता हूं।<br />
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।२।।<br />
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तुम्ही बंदना तुम्ही साधना तुम्ही इबादत हो मेरी।<br />
तुम्ही कर्म हो तुम्ही धर्म हो तुम्ही मोहब्बत हो मेरी।।<br />
छलके सदा सादगी जिससे ऐसी भोली सूरत हो।<br />
सजदा सभी करें जिसको वो पावनता की मूरत हो।।<br />
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उस परम ब्रह्म के शक्ति रूप की नकल समझता हूं।<br />
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।३।।<br />
<br />
तुम तितली सी इतराती हो तुम कलियों सी इठलाती हो।<br />
मैं भंवरा बन कर आता हूं तुम फूलों से खिल जाती हो।।<br />
तुम मन के सूने आंगन में खुशियों के दीप जलाती हो।<br />
जब बाहों में भर लेता हूं तुम शर्मा कर अलसाती हो।।<br />
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तब पुष्पों से खेलते होठों को कमल समझता हूं।<br />
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।४।।<br />
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कोयल से मीठा गाती हो दिल में सरगम ले आती हो।<br />
गुल गुलशन में खिल जाते हैं जब घूंघट कभी उठाती हो।<br />
स्वप्न लोक की परी मेरे ख्वाबों में आती-जाती हो।<br />
तुम अजब नशीली खुशबू से तन मन में आग लगाती हो।।<br />
<br />
मनमीत अगर हो संग गीत को सफल समझता हूं।<br />
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।५।।<br />
<br />
तुम चंदन वन की रानी हो निर्धन की प्रेम कहानी हो।<br />
तुम यादों में बस जाती हो भावों की जीवन साथी हो।।<br />
तुम दीपशिखा सी जलती हो क्यों आंखों से यूं बहती हो।<br />
'अमित' दुखों को हंसकर तुम सुंदर लफ्जो में कहती हो।<br />
<br />
बस गम को ही झूठी दुनिया में असल समझता हूं।<br />
मैं तुमको अपनी सबसे प्यारी गजल समझता हूं।।६।।<br />
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मौलिक एवं अप्रकाशितगज़ल - गमों का नाम हो जाये हमारे नाम से साकी।tag:www.openbooksonline.com,2019-01-06:5170231:BlogPost:9687302019-01-06T17:00:00.000ZAmit Kumar "Amit"http://www.openbooksonline.com/profile/AmitKumar568
<p>पिला दे घूंट दो मुझको, ज़रा नजरों से ऐ साकी।।<br></br> मिलुंगा मैं तुझे हर मोड़ पे पहचान ले साकी।।१।।</p>
<p>अभी तो दिन भी बाकी है ये सूरज ही नहीं डूबा।<br></br> इसे दिलबर के आंचल में जरा छुप जान दे साकी।।२।।</p>
<p>जिसे पूजा किये हरदम जिसे समझा खुदा मैंने।<br></br> किया बर्बाद मुझको तो उसी इन्सान ने साकी।।३।।</p>
<p>मेरा महबूब भी तू है मेरा हमराज भी तू है।<br></br> वे दुश्मन थे मेरे पक्के जो मेरे साथ थे साकी।।४।।</p>
<p>नहीं इससे बड़ी कोई भी अब अपनी तमन्ना है।<br></br> गमों का नाम हो जाये हमारे नाम से…</p>
<p>पिला दे घूंट दो मुझको, ज़रा नजरों से ऐ साकी।।<br/> मिलुंगा मैं तुझे हर मोड़ पे पहचान ले साकी।।१।।</p>
<p>अभी तो दिन भी बाकी है ये सूरज ही नहीं डूबा।<br/> इसे दिलबर के आंचल में जरा छुप जान दे साकी।।२।।</p>
<p>जिसे पूजा किये हरदम जिसे समझा खुदा मैंने।<br/> किया बर्बाद मुझको तो उसी इन्सान ने साकी।।३।।</p>
<p>मेरा महबूब भी तू है मेरा हमराज भी तू है।<br/> वे दुश्मन थे मेरे पक्के जो मेरे साथ थे साकी।।४।।</p>
<p>नहीं इससे बड़ी कोई भी अब अपनी तमन्ना है।<br/> गमों का नाम हो जाये हमारे नाम से साकी।।५।।</p>
<p>यकीनन दर्द मेरा उनको भी महसूस होता है।<br/> सभी यूं ही नही पढते हमारे शैर ये साकी।।६।।</p>
<p>'अमित', अपनी कहानी मयकदे की आप बीती है।<br/> दर औ दीवार रोते हैं हमारी बात पे साकी।।७।।</p>
<p></p>
<p>मौलिक/अप्रकाशित</p>