Anand murthy's Posts - Open Books Online2024-03-28T13:43:45Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthyhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2966940816?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=13pmogj8c0ucg&xn_auth=noदिये के आले....tag:www.openbooksonline.com,2015-04-18:5170231:BlogPost:6431322015-04-18T07:58:54.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p>दीवारों में<br/> दिये के आले<br/>
दीपक का स्वागत करते हैं<br/>
रश्मि राग में<br/>
मगन हुई<br/>
ज्योति <br/>
पताका लहराती है<br/>
तमस वज्र को तोड़<br/>
आलय को रोशनी से भर देते हैं<br/>
और<br/>
दिये के आले<br/>
बदले में<br/>
दिये से<br/>
काजल के झाले <br/>
खुद अन्तस में<br/>
धर लेते हैं<br/>
@आनन्द 18/04/2015 "मौलिक व अप्रकाशित"</p>
<p>दीवारों में<br/> दिये के आले<br/>
दीपक का स्वागत करते हैं<br/>
रश्मि राग में<br/>
मगन हुई<br/>
ज्योति <br/>
पताका लहराती है<br/>
तमस वज्र को तोड़<br/>
आलय को रोशनी से भर देते हैं<br/>
और<br/>
दिये के आले<br/>
बदले में<br/>
दिये से<br/>
काजल के झाले <br/>
खुद अन्तस में<br/>
धर लेते हैं<br/>
@आनन्द 18/04/2015 "मौलिक व अप्रकाशित"</p>रुख़सती पे उनकी...............tag:www.openbooksonline.com,2015-03-15:5170231:BlogPost:6305912015-03-15T06:00:00.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p align="center" style="text-align: left;">रुख़सती पे उनकी आँखों में नमी अच्छी लगी</p>
<p align="center" style="text-align: left;">ज्यूं दूर बादलों को धरा की गमी अच्छी लगी</p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;">तबस्सुम देख के मचली लबों पे एक दूसरे के</p>
<p align="center" style="text-align: left;">पाक इरादों में छिपी उनकी कमी अच्छी लगी</p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;">असीम…</p>
<p align="center" style="text-align: left;">रुख़सती पे उनकी आँखों में नमी अच्छी लगी</p>
<p align="center" style="text-align: left;">ज्यूं दूर बादलों को धरा की गमी अच्छी लगी</p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;">तबस्सुम देख के मचली लबों पे एक दूसरे के</p>
<p align="center" style="text-align: left;">पाक इरादों में छिपी उनकी कमी अच्छी लगी</p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;">असीम समन्दर की रगों में खारापन भी देखिए</p>
<p align="center" style="text-align: left;">फिर भी मिलने आ गई मीठी नदी अच्छी लगी</p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;">अपनी मिल्कियत समझता रहा जहाँ को दोस्तों</p>
<p align="center" style="text-align: left;">चलते हुए उनको भी दो गज जमीं अच्छी लगी</p>
<p align="center" style="text-align: left;"></p>
<p align="center" style="text-align: left;">@आनंद १४/०३/२०१५ मौलिक व अप्रकाशित"</p>होली आई होली आई.....tag:www.openbooksonline.com,2015-03-05:5170231:BlogPost:6264312015-03-05T16:38:50.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p>मधुशाले भी बोल रहे.... होली आई होली आई<br></br>भंग घुटेगी रस गन्ने में होली आई होली आई<br></br>है सरकारी फ़रमान ....<br></br>प्यारे बन्द रहेगी दुकान <br></br>साकी अकेली प्याले अकेले<br></br> हथ जोड़ करें <span>आह्वान</span></p>
<p>आजा ..आ जाओ श्रीमान <br></br>बोतल... अद्दी पउआ ले जा<br></br>रम भिस्की ए दउआ ले जा<br></br>भर लो... सारो मकान <br></br>ओ बन्द रहेगी दुकान <br></br>मयखाने भी बोल रहे होली आई होली आई<br></br>रंग घुलेंगे दंग रहेंगे होली आई होली आई<br></br>इक दिन पहले प्यारे ले जा<br></br>ज़ाम जहां के न्यारे ले जा<br></br>बम भोले का प्रसाद…</p>
<p>मधुशाले भी बोल रहे.... होली आई होली आई<br/>भंग घुटेगी रस गन्ने में होली आई होली आई<br/>है सरकारी फ़रमान ....<br/>प्यारे बन्द रहेगी दुकान <br/>साकी अकेली प्याले अकेले<br/> हथ जोड़ करें <span>आह्वान</span></p>
<p>आजा ..आ जाओ श्रीमान <br/>बोतल... अद्दी पउआ ले जा<br/>रम भिस्की ए दउआ ले जा<br/>भर लो... सारो मकान <br/>ओ बन्द रहेगी दुकान <br/>मयखाने भी बोल रहे होली आई होली आई<br/>रंग घुलेंगे दंग रहेंगे होली आई होली आई<br/>इक दिन पहले प्यारे ले जा<br/>ज़ाम जहां के न्यारे ले जा<br/>बम भोले का प्रसाद बटे<br/>प्यारों का अवसाद घटे<br/>बन्द रहेंगी दुकान <br/>है सरकारी फ़रमान <br/>खुला निमंत्रण पाकर देखो <br/>ट्रेन टिकट सा हल्ला है<br/>लाइन मे हर इक ठल्ला है<br/>मंहगाई की मार बता के<br/>पत्नी को बहका आया है<br/>बिन गुझिया के बच्चे माने<br/>फ़िर भी सुना दिये है ताने<br/>तब का खाली खल्ला ले<br/>लाइन खड़ा वो झल्ला है<br/>बन्द रहेंगी दुकान <br/>है सरकारी फ़रमान <br/>मधुशाले भी बोल रहे होली आई होली आई<br/>पंक सने मेहमान देखो होली आई होली आई<br/>@आनन्द 05/03/2015 <strong>"मौलिक व अप्रकाशित</strong></p>दिल से दिल के तार................................tag:www.openbooksonline.com,2015-02-14:5170231:BlogPost:6171422015-02-14T09:29:44.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p>दिल से दिल के तार जुड़े संतूर जहाँ में बजते हैं</p>
<p>छंद पहेली गीत ग़ज़ल जब दूर जहाँ में सजते हैं</p>
<p>रुनझुन-रुनझुन घुंघरू आहट का संदेशा लाती है</p>
<p>ताल मिलाती धड़कन से मगरूर जहाँ में लगते है</p>
<p>अंतस मन मेल हुआ दिलबाग रूमानी गुलशन है </p>
<p>रुखसार गुलाबी होंठ शबाबी नूर जहाँ में लगते हैं</p>
<p>हया लबों पे खेल रही है नज़र नज़ाकत शानी है</p>
<p>कोयल किस्से कहती है मशहूर जहाँ में लगते हैं</p>
<p>नैन नख्श नखरों पे है नायाब नवेली नज्म अदा</p>
<p>फिदा फ़साने पर आनंद वो चूर जहाँ में लगते…</p>
<p>दिल से दिल के तार जुड़े संतूर जहाँ में बजते हैं</p>
<p>छंद पहेली गीत ग़ज़ल जब दूर जहाँ में सजते हैं</p>
<p>रुनझुन-रुनझुन घुंघरू आहट का संदेशा लाती है</p>
<p>ताल मिलाती धड़कन से मगरूर जहाँ में लगते है</p>
<p>अंतस मन मेल हुआ दिलबाग रूमानी गुलशन है </p>
<p>रुखसार गुलाबी होंठ शबाबी नूर जहाँ में लगते हैं</p>
<p>हया लबों पे खेल रही है नज़र नज़ाकत शानी है</p>
<p>कोयल किस्से कहती है मशहूर जहाँ में लगते हैं</p>
<p>नैन नख्श नखरों पे है नायाब नवेली नज्म अदा</p>
<p>फिदा फ़साने पर आनंद वो चूर जहाँ में लगते हैं</p>
<p>@आनंद 14/०२/२०१५ <strong>"मौलिक व अप्रकाशित</strong></p>कब तक मनाऊँ मैं...............tag:www.openbooksonline.com,2015-02-08:5170231:BlogPost:6157492015-02-08T15:50:02.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p><span>कब तक मनाऊँ मैं, वो अक्सर रूठ जाते हैं|</span><br></br><span>गर्दिश में अक्सर.... हर सहारे छूट जाते हैं|1</span></p>
<p><br></br><span>न मनाने का सलीका है,न रिझाने का तरीका है|</span><br></br><span>मनाते ही मनाते वो अक्सर रूठ जाते है|2</span></p>
<p><br></br><span>संजोकर दिल में रखता हूँ,नजर को खूब पढ़ता हूँ|</span><br></br><span>मगर खास होते ही ,अक्सर नजारे छूट जाते हैं|3</span></p>
<p><br></br><span>आयना समझकर हम.., उन्ही को देख जाते हैं|</span><br></br><span>संभालने की ही कोशिश में,जो अक्सर टूट जाते…</span></p>
<p><span>कब तक मनाऊँ मैं, वो अक्सर रूठ जाते हैं|</span><br/><span>गर्दिश में अक्सर.... हर सहारे छूट जाते हैं|1</span></p>
<p><br/><span>न मनाने का सलीका है,न रिझाने का तरीका है|</span><br/><span>मनाते ही मनाते वो अक्सर रूठ जाते है|2</span></p>
<p><br/><span>संजोकर दिल में रखता हूँ,नजर को खूब पढ़ता हूँ|</span><br/><span>मगर खास होते ही ,अक्सर नजारे छूट जाते हैं|3</span></p>
<p><br/><span>आयना समझकर हम.., उन्ही को देख जाते हैं|</span><br/><span>संभालने की ही कोशिश में,जो अक्सर टूट जाते हैं|4</span></p>
<p><br/><span>सब्र करता हूँ कि मेरे शब्दों में खामी हैं |</span><br/><span>नारी अनबन से घरों में,अक्सर मुहारे फ़ूट जाते हैं|5</span></p>
<p><br/><span>कब तक मनाऊँ मैं, वो अक्सर रूठ जाते हैं|</span><br/><span>पढ़कर हमीं को ,दोस्त पुराने लूट जाते हैं|6</span><br/><span>कब तक मनाऊँ मैं........................................</span></p>
<p><span><span>@आनद 08/02/2015 <strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></span></span></p>विकट विरल है राह .................tag:www.openbooksonline.com,2015-01-24:5170231:BlogPost:6100422015-01-24T08:00:00.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p>विकट विरल है राह कठिन कदम कदम कुहासा है</p>
<p>खड़ा मुसाफिर मुश्किल में वो बेबस बहुत रूआंसा है</p>
<p></p>
<p>संयम और सहजता से निरंतर नित निज काम करो</p>
<p>शनै शनै पुरजोर प्रयासों से प्रज्ज्वलित इक आशा है</p>
<p></p>
<p>संकल्पों के यज्ञकुंड में श्रमनीर का अर्घ्य दान करो</p>
<p>दिनकर दिलबर रश्क करे जिन्दगी की यह परिभाषा है</p>
<p></p>
<p>अरमानों के बीज रोप कर सींचो रोज पसीने से</p>
<p>छ्टे कुहासे साफ़ डगर स्फुटन अंकुर की अभिलाषा है</p>
<p></p>
<p>@आनंद ०७/०१/२०१५ <strong>"मौलिक व…</strong></p>
<p>विकट विरल है राह कठिन कदम कदम कुहासा है</p>
<p>खड़ा मुसाफिर मुश्किल में वो बेबस बहुत रूआंसा है</p>
<p></p>
<p>संयम और सहजता से निरंतर नित निज काम करो</p>
<p>शनै शनै पुरजोर प्रयासों से प्रज्ज्वलित इक आशा है</p>
<p></p>
<p>संकल्पों के यज्ञकुंड में श्रमनीर का अर्घ्य दान करो</p>
<p>दिनकर दिलबर रश्क करे जिन्दगी की यह परिभाषा है</p>
<p></p>
<p>अरमानों के बीज रोप कर सींचो रोज पसीने से</p>
<p>छ्टे कुहासे साफ़ डगर स्फुटन अंकुर की अभिलाषा है</p>
<p></p>
<p>@आनंद ०७/०१/२०१५ <strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></p>बाती मैं ....tag:www.openbooksonline.com,2015-01-13:5170231:BlogPost:6053732015-01-13T15:15:28.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p>दिये की बाती मैं <br></br>धुए में घिर जाती हूं <br></br>कुछ पल को घबराती<br></br>तो कुछ पल इठलाती हूँ <br></br>चीर तिमिर की छाती मैं <br></br>भू को ज्योतिर्मय कर जाती हूँ<br></br>अनिल तूफानी तेज हुए <br></br>भावुक मन और उत्तेजित हुए <br></br>ज्योति शिखर पे नर्तन करती <br></br>लिपट दिये के अंतस में<br></br>क्षण भर को शर्माती <br></br>और सहज धीर बढ़ाती हूँ <br></br>राग अनोखे गाती मैं <br></br>रागिनी को अपना पाती हूँ <br></br>आह समेटे... चाह लिए <br></br>क्षणभंगुर आतुर जीवन में <br></br>खाक हुई... पीर छिपाई <br></br>ज़र्रे ज़र्रे को रोशन करती <br></br>अपलक रास रचाती…</p>
<p>दिये की बाती मैं <br/>धुए में घिर जाती हूं <br/>कुछ पल को घबराती<br/>तो कुछ पल इठलाती हूँ <br/>चीर तिमिर की छाती मैं <br/>भू को ज्योतिर्मय कर जाती हूँ<br/>अनिल तूफानी तेज हुए <br/>भावुक मन और उत्तेजित हुए <br/>ज्योति शिखर पे नर्तन करती <br/>लिपट दिये के अंतस में<br/>क्षण भर को शर्माती <br/>और सहज धीर बढ़ाती हूँ <br/>राग अनोखे गाती मैं <br/>रागिनी को अपना पाती हूँ <br/>आह समेटे... चाह लिए <br/>क्षणभंगुर आतुर जीवन में <br/>खाक हुई... पीर छिपाई <br/>ज़र्रे ज़र्रे को रोशन करती <br/>अपलक रास रचाती हूँ <br/>दिये की बाती मैं ..<br/>धुए में घिर जाती हूँ <br/>निपट अकेली निडर कभी<br/>उज्ज्वलित निशा को करके…. <br/> दिये में ही खो जाती हूँ <br/> @आनंद ११/०१/२०१५ <strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></p>होगा सबको हर्ष.....tag:www.openbooksonline.com,2015-01-04:5170231:BlogPost:6025372015-01-04T07:00:00.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p>होगा सबको हर्ष</p>
<p>जब होगा नव वर्ष</p>
<p>होगा सवेरा नवीन</p>
<p>संध्या होगी नवीन</p>
<p>दिवस भी नया</p>
<p>होगी रजनी नई</p>
<p>गगन भी नया</p>
<p>निर्मल सरिता नई</p>
<p>हिमांशु नवीन </p>
<p>रवि होगा नवीन</p>
<p>मुस्कुराए वरुण </p>
<p>रश्मि होगी अरुण</p>
<p>वे उर्मिल किरण</p>
<p>करें आकांक्षी वरण</p>
<p>कोई हो न संकीर्ण </p>
<p>होवें पूर्ण प्रवीण</p>
<p>आलोकित हो ......</p>
<p>खुशियों की उमंग</p>
<p>रहे बजता मृदंग</p>
<p>बूढ़े बच्चे सब संग</p>
<p>झूमें खेलें नव रंग...</p>
<p>न…</p>
<p>होगा सबको हर्ष</p>
<p>जब होगा नव वर्ष</p>
<p>होगा सवेरा नवीन</p>
<p>संध्या होगी नवीन</p>
<p>दिवस भी नया</p>
<p>होगी रजनी नई</p>
<p>गगन भी नया</p>
<p>निर्मल सरिता नई</p>
<p>हिमांशु नवीन </p>
<p>रवि होगा नवीन</p>
<p>मुस्कुराए वरुण </p>
<p>रश्मि होगी अरुण</p>
<p>वे उर्मिल किरण</p>
<p>करें आकांक्षी वरण</p>
<p>कोई हो न संकीर्ण </p>
<p>होवें पूर्ण प्रवीण</p>
<p>आलोकित हो ......</p>
<p>खुशियों की उमंग</p>
<p>रहे बजता मृदंग</p>
<p>बूढ़े बच्चे सब संग</p>
<p>झूमें खेलें नव रंग...</p>
<p>न हो विराग कहीं</p>
<p>वे तो अनुराग भरी</p>
<p>होगा वसंत नया</p>
<p>वो हेमंत नया </p>
<p>अनिल के झरोखे</p>
<p>बहें विपिन के सहारे</p>
<p>प्रसून पंकज नए</p>
<p>आस अंकुर नए</p>
<p>होंगे प्रफुल्ल विमल</p>
<p>हो ऊष्मित निखिल</p>
<p>फैले लालिमा की लड़ी </p>
<p>नई शिव वाणी खड़ी</p>
<p>जो बनेगी अजेय</p>
<p>संग जिसके विजय</p>
<p>ज्योति दीपक बढ़े</p>
<p>पूर वसुधा सजे</p>
<p>होगी उपासना नई</p>
<p>होगी आराधना नई</p>
<p>सबका होगा अब नेक</p>
<p>करो उसका अभिषेक</p>
<p>नव ऊर्जित संसार देख </p>
<p>मिट जाएंगे सब क्लेश</p>
<p>पुष्पवर्षण कर जश्न</p>
<p>मनाएंगे श्री अखिलेश</p>
<p>.</p>
<p>@आनंद ३०/१२/२०१४ </p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित"</p>पूजा का वो थाल लगीtag:www.openbooksonline.com,2014-11-01:5170231:BlogPost:5849802014-11-01T08:00:00.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p>साड़ी में जैसे फाल लगी</p>
<p>डाली में जैसे डाल लगी</p>
<p> </p>
<p>मैं भी कुछ खिल जाउंगा</p>
<p>वो आके जब गाल लगी</p>
<p> </p>
<p>धीरे से पाती खोल रहीं</p>
<p>तबले पे जैसे ताल लगी</p>
<p> </p>
<p>नज़रों की चोली ओढ़ेगी</p>
<p>मालों में जो माल लगी</p>
<p> </p>
<p>असीर हैं अनचाहे हम </p>
<p>मछली का वो जाल लगी</p>
<p> </p>
<p>इत्र गुलाबी खुशबू फैली</p>
<p>पूजा का वो थाल लगी</p>
<p> </p>
<p>अजब सलीके कत्ल किया</p>
<p>चैन की वो ही काल लगी</p>
<p> </p>
<p>गाली भी खिल जाएगी</p>
<p>मुखड़े से जब…</p>
<p>साड़ी में जैसे फाल लगी</p>
<p>डाली में जैसे डाल लगी</p>
<p> </p>
<p>मैं भी कुछ खिल जाउंगा</p>
<p>वो आके जब गाल लगी</p>
<p> </p>
<p>धीरे से पाती खोल रहीं</p>
<p>तबले पे जैसे ताल लगी</p>
<p> </p>
<p>नज़रों की चोली ओढ़ेगी</p>
<p>मालों में जो माल लगी</p>
<p> </p>
<p>असीर हैं अनचाहे हम </p>
<p>मछली का वो जाल लगी</p>
<p> </p>
<p>इत्र गुलाबी खुशबू फैली</p>
<p>पूजा का वो थाल लगी</p>
<p> </p>
<p>अजब सलीके कत्ल किया</p>
<p>चैन की वो ही काल लगी</p>
<p> </p>
<p>गाली भी खिल जाएगी</p>
<p>मुखड़े से जब लाल लगी</p>
<p></p>
<p>चाल पैंतरों से वाकिफ न था</p>
<p>अरि की पहली ढाल लगी</p>
<p></p>
<p>मैं नयनों से हाला पी बैठा</p>
<p>लहरीदार एक चाल लगी</p>
<p></p>
<p>कितनों की नीद ले उड़ी </p>
<p>लड़की नहीं भूचाल लगी </p>
<p></p>
<p>@आनंद 31/10/2014</p>
<p><span><strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></span><span> </span></p>
<p> </p>
<p> </p>
<p> </p>उत्तर जहां से अब ..tag:www.openbooksonline.com,2014-10-21:5170231:BlogPost:5833112014-10-21T11:30:00.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p>हाय राम क्या करे जी कोई ...जवाब चाहिए</p>
<p>उत्तर जहां से अब तो कुछ लाजवाब चाहिए</p>
<p></p>
<p>लौकी आलू भिण्डी टमाटर लड़ते हैं बाजार में</p>
<p>इस दिवाली हमको ही इक खिताब चाहिए</p>
<p></p>
<p>पटाखों फुलझड़ी को देख बच्चे मचल रहे हैं</p>
<p>टूटी आस लिए वो पूछें कितने बेताब चाहिए</p>
<p></p>
<p>मजबूरियों में निःशब्द बाप आंसू बहा रहे हैं</p>
<p>फीकी जेब तेज हाट में माथों पर आब चाहिए</p>
<p></p>
<p>लड्डू बर्फ़ी रसगुल्ला हमसे यूँ अब दूर हुए</p>
<p>मिश्री घोलें रिश्तों में मिठास बेहिसाब…</p>
<p>हाय राम क्या करे जी कोई ...जवाब चाहिए</p>
<p>उत्तर जहां से अब तो कुछ लाजवाब चाहिए</p>
<p></p>
<p>लौकी आलू भिण्डी टमाटर लड़ते हैं बाजार में</p>
<p>इस दिवाली हमको ही इक खिताब चाहिए</p>
<p></p>
<p>पटाखों फुलझड़ी को देख बच्चे मचल रहे हैं</p>
<p>टूटी आस लिए वो पूछें कितने बेताब चाहिए</p>
<p></p>
<p>मजबूरियों में निःशब्द बाप आंसू बहा रहे हैं</p>
<p>फीकी जेब तेज हाट में माथों पर आब चाहिए</p>
<p></p>
<p>लड्डू बर्फ़ी रसगुल्ला हमसे यूँ अब दूर हुए</p>
<p>मिश्री घोलें रिश्तों में मिठास बेहिसाब चाहिए</p>
<p></p>
<p>माटी का हो इक दिया ज्योति सदा जलती हो</p>
<p>गुड़ भोग से हमको बड़प्पन का रूआब चाहिए</p>
<p></p>
<p>किसी का रुपया हजार है..या लाखों बेकार है</p>
<p>सन्तुष्टि बख्से खुदा जो अब बेहिसाब चाहिए</p>
<p></p>
<p>इस दुनिया में अब ऐसे भी मजाक हो रहे है</p>
<p>झोपड़ से पूछते सब तुझे क्या मेहराब चाहिए</p>
<p></p>
<p><strong>"मौलिक व अप्रकाशित</strong></p>घर मेरे सावन का..............................tag:www.openbooksonline.com,2014-10-11:5170231:BlogPost:5811742014-10-11T18:28:08.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p>आज मौसम ....बड़ा आशिकाना है</p>
<p>शब्द के मोतियों से उन्हें सजाना है</p>
<p> </p>
<p>हर्फ़ में ही सही तस्वीर बनाई बहुत</p>
<p>कहीं और जिनका अब ठिकाना है</p>
<p> </p>
<p>जिसकी खातिर यहाँ रातें बिताई बहुत</p>
<p>उनका इधर से यूँ रोज आना जाना है</p>
<p> </p>
<p>ख्वाब में डाल पर झूले झूलेंगे हम</p>
<p>घर मेरे सावन का यूँ आना जाना है</p>
<p> </p>
<p>स्वप्न में आकर फ़िर से लुभाओ प्रिय</p>
<p>जहाँ न मेरा न तेरा कोई बहाना है</p>
<p> </p>
<p>कैसे कह दूँ उन्हें प्यार करता नहीं</p>
<p>पहले दीदार…</p>
<p>आज मौसम ....बड़ा आशिकाना है</p>
<p>शब्द के मोतियों से उन्हें सजाना है</p>
<p> </p>
<p>हर्फ़ में ही सही तस्वीर बनाई बहुत</p>
<p>कहीं और जिनका अब ठिकाना है</p>
<p> </p>
<p>जिसकी खातिर यहाँ रातें बिताई बहुत</p>
<p>उनका इधर से यूँ रोज आना जाना है</p>
<p> </p>
<p>ख्वाब में डाल पर झूले झूलेंगे हम</p>
<p>घर मेरे सावन का यूँ आना जाना है</p>
<p> </p>
<p>स्वप्न में आकर फ़िर से लुभाओ प्रिय</p>
<p>जहाँ न मेरा न तेरा कोई बहाना है</p>
<p> </p>
<p>कैसे कह दूँ उन्हें प्यार करता नहीं</p>
<p>पहले दीदार से ये.जिनका दीवाना है</p>
<p>....................................................@आनन्द 11/10/2014 <strong>"मौलिक व अप्रकाशित</strong></p>चुटकियों से माँ...................tag:www.openbooksonline.com,2014-10-08:5170231:BlogPost:5800832014-10-08T11:00:00.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p>एक छतरी है जो याद मुझको बहुत आती है|</p>
<p>चुनरी पालने की याद मुझको रोज आती है |।</p>
<p> </p>
<p>सुधियों से परिपूर्ण,सुध बचपन की आती है |</p>
<p>अंगने के झूले की,याद उस उपवन की आती है|।</p>
<p> </p>
<p>सायबान की छाया में ..पालने की गोदी में.......</p>
<p>हरकतों पर मेरी दूर खड़ी माँ खूब मुस्कुराती है।।</p>
<p> </p>
<p>चुटकियों से माँ, मेरे चेहरे पर सरगम सजाती है |</p>
<p>डूबकर मेरी किलकारियों में ,हर गम भूल जाती है|।</p>
<p> </p>
<p>माँ मुझे पालना झुलाती है ,कभी गोदी में हिलाती है…</p>
<p>एक छतरी है जो याद मुझको बहुत आती है|</p>
<p>चुनरी पालने की याद मुझको रोज आती है |।</p>
<p> </p>
<p>सुधियों से परिपूर्ण,सुध बचपन की आती है |</p>
<p>अंगने के झूले की,याद उस उपवन की आती है|।</p>
<p> </p>
<p>सायबान की छाया में ..पालने की गोदी में.......</p>
<p>हरकतों पर मेरी दूर खड़ी माँ खूब मुस्कुराती है।।</p>
<p> </p>
<p>चुटकियों से माँ, मेरे चेहरे पर सरगम सजाती है |</p>
<p>डूबकर मेरी किलकारियों में ,हर गम भूल जाती है|।</p>
<p> </p>
<p>माँ मुझे पालना झुलाती है ,कभी गोदी में हिलाती है |</p>
<p>हवा में उछाल कर मुझको,.. दुनिया रोज दिखाती है |।</p>
<p> </p>
<p>मिटाने डर की लकीरों को , कई तरकीब लाती है |</p>
<p>आँचल में छिपा कर वो ,हमें जन्नत दिखाती है |।</p>
<p> </p>
<p>प्यारी थप्पी लगाती है ,कभी लोरी सुनाती है |</p>
<p>प्रतिक्रिया देख कर मेरी,माँ माथा चूम जाती है|।</p>
<p> </p>
<p>रीति की गहन सीमा में,वो घूँघट में मुस्काती है|</p>
<p>मेरे गिरने के हर अंदेशे मे,...देहरी लाँघ जाती है|।</p>
<p> </p>
<p>चुन्नी को छतरी बनाती है,कभी बिछावन बनाती है|</p>
<p>मेरी खुशियों में वो,.....न जाने क्या-क्या बनाती है|।</p>
<p></p>
<p>खुशहाली की चाहत में,माँ मन्दिर -मन्दिर जाती है|</p>
<p>नजर के टोटकों में ,...वो हमें पल्लू में छिपाती है|।</p>
<p> </p>
<p>सहरा-सहरा मोती बीने,...सेहरा रोज सजाती है|</p>
<p>फ़रमाइश में इक राधा की,कई तस्वीरें भिजवाती है|।</p>
<p> </p>
<p>माँ अभी भी मेरे घर आने की, हर खबरों में फूल जाती है|</p>
<p>पलकें बिछाकर राहों में अपना खाना भूल जाती है |।</p>
<p> </p>
<p>उम्र की इस सरहद पर माँ, ममता का पालना झुलाती है|</p>
<p>दूर रह कर भी ,..दुआओं की चूनर उढ़ाती है|।</p>
<p> </p>
<p>एक छतरी है जो याद.</p>
<p>.</p>
<p>@anand "मौलिक व अप्रकाशित"</p>
<p> </p>लो अब मैं ....tag:www.openbooksonline.com,2014-09-29:5170231:BlogPost:5786302014-09-29T14:00:00.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p><span id="yui_3_16_0_1_1411999558162_2274">लो अब मैं सुधर गया</span><br></br> <span id="yui_3_16_0_1_1411999558162_2273">उनके दिल से उतर गया</span><br></br><span id="yui_3_16_0_1_1411999558162_2272">याद न आया उनको मैं भी</span><br></br>मेरी कुरबत भी न भा पाई<br></br><span id="yui_3_16_0_1_1411999558162_2271">उनकी सुधियों से गुजर गया</span><span id="yui_3_16_0_1_1411999558162_2270"><br></br>इक पतझड़ सा बिखर गया<br></br>मलूल हुआ आनन्द<br></br>सोचकर कि वो<br></br>इजहारे-वक्त पर मुकर गया<br></br>उसूल देखो यार मेरे<br></br>साए में…</span></p>
<p><span id="yui_3_16_0_1_1411999558162_2274">लो अब मैं सुधर गया</span><br/> <span id="yui_3_16_0_1_1411999558162_2273">उनके दिल से उतर गया</span><br/><span id="yui_3_16_0_1_1411999558162_2272">याद न आया उनको मैं भी</span><br/>मेरी कुरबत भी न भा पाई<br/><span id="yui_3_16_0_1_1411999558162_2271">उनकी सुधियों से गुजर गया</span><span id="yui_3_16_0_1_1411999558162_2270"><br/>इक पतझड़ सा बिखर गया<br/>मलूल हुआ आनन्द<br/>सोचकर कि वो<br/>इजहारे-वक्त पर मुकर गया<br/>उसूल देखो यार मेरे<br/>साए में जिनके <br/>इक खौफ़ से उबर गया<br/>लो अब मैं सुधर गया...<br/>माना कि पतझड़ सा बिखर गया<br/>पीली पाती बना वृक्ष की<br/>टूट कर डाली से देखो<br/>गोद में धरणी के मचल गया<br/>नव झोके और बयारों में<br/>कोने-कोने में उछल गया<br/>कितने दिलों में उतर गया<br/>लो अब मैं सुधर गया</span></p>
<p><span id="yui_3_16_0_1_1411999558162_2270">.<br/>@anand</span></p>
<p><span id="yui_3_16_0_1_1411999558162_2270">"मौलिक व अप्रकाशित"</span></p>तेरे बिन ..........tag:www.openbooksonline.com,2014-09-27:5170231:BlogPost:5780602014-09-27T06:30:00.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p>तेरे बिन अपना हाल ....सखी री तुझे क्या बतलाऊं<br></br> गुल बिन ज्यों गुलदस्ता है<br></br> भूले को ज्यों इक रस्ता है<br></br> कॉपी बिन ज्यों इक बस्ता है<br></br> और दाल बिना ज्यों खस्ता है<br></br> वसंत...बिना इक साल ......सखी री तुझे क्या बतलाऊं</p>
<p><br></br> माँ बिन .. जैसे लोरी है<br></br> भ्रात बिना वो डोरी ..सखी<br></br> चोर बिना ..ज्यों चोरी है<br></br> पनघट है बिन गोरी..सखी<br></br> राधा बिन ज्यों गोपाल.......सखी री तुझे क्या बतलाऊं</p>
<p><br></br> ज्यों अंगना है बिन नोनी के </p>
<p>ब्रिटेन है..... बिन टोनी…</p>
<p>तेरे बिन अपना हाल ....सखी री तुझे क्या बतलाऊं<br/> गुल बिन ज्यों गुलदस्ता है<br/> भूले को ज्यों इक रस्ता है<br/> कॉपी बिन ज्यों इक बस्ता है<br/> और दाल बिना ज्यों खस्ता है<br/> वसंत...बिना इक साल ......सखी री तुझे क्या बतलाऊं</p>
<p><br/> माँ बिन .. जैसे लोरी है<br/> भ्रात बिना वो डोरी ..सखी<br/> चोर बिना ..ज्यों चोरी है<br/> पनघट है बिन गोरी..सखी<br/> राधा बिन ज्यों गोपाल.......सखी री तुझे क्या बतलाऊं</p>
<p><br/> ज्यों अंगना है बिन नोनी के </p>
<p>ब्रिटेन है..... बिन टोनी के</p>
<p>क्रिकेट है ......बिन धोनी के<br/> और बनियां है बिन बोनी के<br/> नानी बिन ज्यों ननिहाल ....सखी री तुझे क्या बतलाऊं</p>
<p><br/> स्तम्भ बिना महरौली है<br/> मंत्र बिना ज्यों मौली है<br/> जैसे रंग बिना रंगोली है<br/> प्रतिष्ठान बिना ज्यों रोली है.....<br/> साली...बिन ज्यों ससुराल......सखी री तुझे क्या बतलाऊं<br/> साङी है जैसे बिन पल्ला के<br/> ताश है ज्यों बिन गुल्ला के<br/> और...पानी बिन जैसे कुल्ला है.<br/> कुरान बिना... ज्यों मुल्ला है<br/> बिन ताल ज्यों नैनीताल......सखी री तुझे क्या बतलाऊं</p>
<p><br/> शादी बिन जैसे ढोल सखी<br/> सङक बिना ज्यों टोल सखी<br/> फुटबाल बिना ज्यों गोल सखी<br/> वाचाल है ज्यों बिन बोल सखी<br/> उत्तर....बिना सवाल ......सखी री तुझे क्या बतलाऊं</p>
<p></p>
<p>इतिहास बिना ज्यों जजिया है<br/> दिल्ली बिन जैसे रजिया है<br/> वेसन बिन ज्यों भजिया है<br/> और दही बिना जैसे गुजिया है<br/> मनवसिया बिन अपना हाल.....सखी री तुझे क्या बतलाऊं</p>
<p>.</p>
<p>@anand</p>
<p>"मौलिक व अप्रकाशित</p>काशी की दुनिया.........tag:www.openbooksonline.com,2014-09-11:5170231:BlogPost:5742452014-09-11T10:30:00.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p><span>काशी की दुनिया हो</span><br></br> <span>या काबा की बस्ती हो</span><br></br> <span>यूँ ही न उजड़े चाहे</span><br></br> <span>फ़कीर बाबा की बस्ती हो।।</span><br></br> <span>साहिल से बिछड़ी हुई</span><br></br> <span>मुक़ाम-ए-पास हो जाए</span><br></br> <span>लहरों में फँसती चाहे</span><br></br> <span>केवट की कश्ती हो।।</span><br></br> <span>शोहरत की मस्ती हो</span><br></br> <span>या माले की हस्ती हो</span><br></br> <span>यूँ ही न टूटे कोई चाहे</span><br></br> <span>मुफ़लिसी में घरबां गिरस्ती हो।।</span><br></br> <span>मातहतों की मस्ती…</span></p>
<p><span>काशी की दुनिया हो</span><br/> <span>या काबा की बस्ती हो</span><br/> <span>यूँ ही न उजड़े चाहे</span><br/> <span>फ़कीर बाबा की बस्ती हो।।</span><br/> <span>साहिल से बिछड़ी हुई</span><br/> <span>मुक़ाम-ए-पास हो जाए</span><br/> <span>लहरों में फँसती चाहे</span><br/> <span>केवट की कश्ती हो।।</span><br/> <span>शोहरत की मस्ती हो</span><br/> <span>या माले की हस्ती हो</span><br/> <span>यूँ ही न टूटे कोई चाहे</span><br/> <span>मुफ़लिसी में घरबां गिरस्ती हो।।</span><br/> <span>मातहतों की मस्ती हो</span><br/> <span>या निगाहबां की गस्ती हो</span><br/> <span>हो सके न हावी कभी चाहे</span><br/> <span>मेरे अहबाब की नारास्ती हो।। .... (नारास्ती-कपटता)</span><br/> <span>विश्वासों की छाया हो</span><br/> <span>आशुफ़्ता की सख्ती हो ..... (आशुफ़्ता-भ्रमित)</span><br/> <span>खड़ा मुसाफिर भीगे न जब</span><br/> <span>रिश्तों की छतनार दरख्ती हो।।</span><br/> <span>थाम ले मौला उन्हें</span><br/> <span>कुछ अपना समझकर</span><br/> <span>ज़मीर से भटके हों चाहे</span><br/> <span>कीमत गिरेबां की सस्ती हो।।</span><br/> <span>यूँ ही न उजड़े चाहे</span><br/> <span>फ़कीर बाबा की बस्ती हो...</span></p>
<p><span>.@आनन्द</span></p>
<p><span><strong>"मौलिक व अप्रकाशित</strong></span><br/> <span>06-09-2014</span></p>मैंने भी तेज नजरो को...tag:www.openbooksonline.com,2014-09-08:5170231:BlogPost:5735812014-09-08T12:30:00.000Zanand murthyhttp://www.openbooksonline.com/profile/anandmurthy
<p>बन के अजनबी वो अक्सर मेरे दर से गुजरते हैं</p>
<p>फ़कत दीदार को खुद को रस्तों से जोड़ रक्खा हैं</p>
<p></p>
<p>दिल की दरियादिली दर्पण-सी सच्ची देखकर</p>
<p>घर के आईनों में तेरी तस्वीर को जोड़ रक्खा हैं</p>
<p></p>
<p>हकीकत की सतह से उस चाँद को देख रक्खा है..</p>
<p>खुदा के उस हसीं अजूबे से नाता जोड़ रक्खा है</p>
<p></p>
<p>कहने को तो उन्होने बहुत कुछ छोड़ रक्खा है...</p>
<p>चाहत की चिट्ठी को लिफाफों में मोड़ रक्खा है..</p>
<p></p>
<p>हवाओं के सहारे खुशबू कुछ इस तरफ़ आयी....</p>
<p>मैंने भी तेज नजरो…</p>
<p>बन के अजनबी वो अक्सर मेरे दर से गुजरते हैं</p>
<p>फ़कत दीदार को खुद को रस्तों से जोड़ रक्खा हैं</p>
<p></p>
<p>दिल की दरियादिली दर्पण-सी सच्ची देखकर</p>
<p>घर के आईनों में तेरी तस्वीर को जोड़ रक्खा हैं</p>
<p></p>
<p>हकीकत की सतह से उस चाँद को देख रक्खा है..</p>
<p>खुदा के उस हसीं अजूबे से नाता जोड़ रक्खा है</p>
<p></p>
<p>कहने को तो उन्होने बहुत कुछ छोड़ रक्खा है...</p>
<p>चाहत की चिट्ठी को लिफाफों में मोड़ रक्खा है..</p>
<p></p>
<p>हवाओं के सहारे खुशबू कुछ इस तरफ़ आयी....</p>
<p>मैंने भी तेज नजरो को खुल्ला छोड़ रक्खा है..</p>
<p>.</p>
<p><span><strong>"मौलिक व अप्रकाशित"</strong></span><span> </span></p>