रौशन जसवाल विक्षिप्त's Posts - Open Books Online2024-03-29T05:12:25Zरौशन जसवाल विक्षिप्तhttp://www.openbooksonline.com/profile/roshanvikshipthttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991276446?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=0z9g16dtzkivt&xn_auth=noनींद चीज है बड़ीtag:www.openbooksonline.com,2013-08-11:5170231:BlogPost:4127642013-08-11T14:30:00.000Zरौशन जसवाल विक्षिप्तhttp://www.openbooksonline.com/profile/roshanvikshipt
<div><p>नींद चीज है बड़ी उंघते रहिए</p>
<p>बेफिक्री में आंखे मूंदते रहिए</p>
<p></p>
<p>आग लगती है लगे हमको क्या</p>
<p>आम दशहरी जनाब चूसते रहिए</p>
<p></p>
<p>मौका मिले तो तंज कर लो</p>
<p>नहीं तो मस्ती में झूमते रहिए</p>
<p></p>
<p>आसां नहीं है अहम को तोड़ना</p>
<p>दुनिया अजब है घूमते रहिए</p>
<p></p>
<p>अदाकार आप खूब है जनाब </p>
<p>सूत्रधार की भूमिका निभाते रहिए</p>
<p></p>
<p>बातें विक्षिप्त की है आपसे बाहर</p>
<p>हंसी चेहरे पर कूटिल दिखाते रहिए </p>
<p></p>
<p></p>
<p></p>
<p>"मौलिक…</p>
</div>
<div><p>नींद चीज है बड़ी उंघते रहिए</p>
<p>बेफिक्री में आंखे मूंदते रहिए</p>
<p></p>
<p>आग लगती है लगे हमको क्या</p>
<p>आम दशहरी जनाब चूसते रहिए</p>
<p></p>
<p>मौका मिले तो तंज कर लो</p>
<p>नहीं तो मस्ती में झूमते रहिए</p>
<p></p>
<p>आसां नहीं है अहम को तोड़ना</p>
<p>दुनिया अजब है घूमते रहिए</p>
<p></p>
<p>अदाकार आप खूब है जनाब </p>
<p>सूत्रधार की भूमिका निभाते रहिए</p>
<p></p>
<p>बातें विक्षिप्त की है आपसे बाहर</p>
<p>हंसी चेहरे पर कूटिल दिखाते रहिए </p>
<p></p>
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<p>"मौलिक व अप्रकाशित" </p>
</div>ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2011-04-23:5170231:BlogPost:727452011-04-23T14:49:42.000Zरौशन जसवाल विक्षिप्तhttp://www.openbooksonline.com/profile/roshanvikshipt
पत्ते जीवन के कब बिखर जाए क्या मालूम<br />
शाम जीवन की कब हो जाए क्या मालूम<br />
<br />
बन्द हो गए है रास्ते सभी गुफतगू के<br />
अब वहां कौन कैसे जाए क्या मालूम<br />
<br />
झूठ पर कर लेते है विश्वास सब<br />
सच कैसे सामने आए क्या मालूम<br />
<br />
दो मुहें सापों से भरा है आस पास<br />
दोस्त बन कौन डस जाए क्या मालूम<br />
<br />
विक्षिप्त की दुनिया है बेतरतीव बेरंग<br />
कोई संगकार सजा जाए क्या मालूम
पत्ते जीवन के कब बिखर जाए क्या मालूम<br />
शाम जीवन की कब हो जाए क्या मालूम<br />
<br />
बन्द हो गए है रास्ते सभी गुफतगू के<br />
अब वहां कौन कैसे जाए क्या मालूम<br />
<br />
झूठ पर कर लेते है विश्वास सब<br />
सच कैसे सामने आए क्या मालूम<br />
<br />
दो मुहें सापों से भरा है आस पास<br />
दोस्त बन कौन डस जाए क्या मालूम<br />
<br />
विक्षिप्त की दुनिया है बेतरतीव बेरंग<br />
कोई संगकार सजा जाए क्या मालूम