Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"'s Posts - Open Books Online2024-03-29T14:11:31ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayanhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991292385?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=0qlb80b1jf2m6&xn_auth=noओबीओ को एक छोटी सी भेंट---ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2022-04-03:5170231:BlogPost:10823352022-04-03T06:00:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>212 212 212 212</p>
<p></p>
<p>साल बारह का अब है हुआ ओबीओ </p>
<p>उम्र तरुणाई की पा गया ओबीओ</p>
<p></p>
<p>शाइरी गीत कविता कहानी ग़ज़ल</p>
<p>के अमिय नीर का है पता ओबीओ</p>
<p></p>
<p>संस्कार औ अदब का यहाँ मोल है</p>
<p>लेखनी के नियम पर टिका ओबीओ </p>
<p></p>
<p>गर है साहित्य संसार का आइना</p>
<p>तब तो दर्पण ही है दुनिया का ओबीओ</p>
<p></p>
<p>सीखने व सिखाने की है झील तू</p>
<p>ये भी पंकज तुझी में खिला ओबीओ </p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>
<p>212 212 212 212</p>
<p></p>
<p>साल बारह का अब है हुआ ओबीओ </p>
<p>उम्र तरुणाई की पा गया ओबीओ</p>
<p></p>
<p>शाइरी गीत कविता कहानी ग़ज़ल</p>
<p>के अमिय नीर का है पता ओबीओ</p>
<p></p>
<p>संस्कार औ अदब का यहाँ मोल है</p>
<p>लेखनी के नियम पर टिका ओबीओ </p>
<p></p>
<p>गर है साहित्य संसार का आइना</p>
<p>तब तो दर्पण ही है दुनिया का ओबीओ</p>
<p></p>
<p>सीखने व सिखाने की है झील तू</p>
<p>ये भी पंकज तुझी में खिला ओबीओ </p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>गिरगिटी रंगबाज़ी की आदत तेरी----- ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2022-04-03:5170231:BlogPost:10823342022-04-03T05:30:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>212 212 212 212</p>
<p></p>
<p>जब कभी दर्द हद से गुज़रने लगा<br/> शाइरी का हुनर तब निखरने लगा</p>
<p></p>
<p>ज़ख़्म जब भी लगा दिल से दरिया कोई<br/> हर्फ़ बन कागज़ों पर बिखरने लगा</p>
<p></p>
<p>तन के भीतर जो उस आइने में उतर<br/> कौन ऐसा है जो अब सँवरने लगा</p>
<p></p>
<p>बेवफ़ाई का ऐसा हुआ है असर<br/> एक सन्नाटा दिल में पसरने लगा</p>
<p></p>
<p>रँग बदलने की आदत तेरी गिरगिटी <br/> सो जहाँ तू नज़र से उतरने लगा</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p>212 212 212 212</p>
<p></p>
<p>जब कभी दर्द हद से गुज़रने लगा<br/> शाइरी का हुनर तब निखरने लगा</p>
<p></p>
<p>ज़ख़्म जब भी लगा दिल से दरिया कोई<br/> हर्फ़ बन कागज़ों पर बिखरने लगा</p>
<p></p>
<p>तन के भीतर जो उस आइने में उतर<br/> कौन ऐसा है जो अब सँवरने लगा</p>
<p></p>
<p>बेवफ़ाई का ऐसा हुआ है असर<br/> एक सन्नाटा दिल में पसरने लगा</p>
<p></p>
<p>रँग बदलने की आदत तेरी गिरगिटी <br/> सो जहाँ तू नज़र से उतरने लगा</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>
<p></p>दौड़ पड़ा याद का तौसन कोई----ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2021-01-14:5170231:BlogPost:10423332021-01-14T08:38:56.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>2122 1122 1122 22</p>
<p></p>
<p>फिर खुला याद के कमरे का ज्यूँ रौज़न कोई</p>
<p>त्यों ही फिर दौड़ पड़ा याद का तौसन कोई</p>
<p></p>
<p>शेर में ज़िक्र है कोचिंग व घने कुहरे का</p>
<p>चाहता हूँ किसी रिक्शे पे चले मन कोई</p>
<p></p>
<p>मैंने कुछ शेर केमिस्ट्री के कहे हैं, जिससे</p>
<p>मेरे महबूब के दिल में हो रिएक्शन कोई</p>
<p></p>
<p>किस तरह मैंने सजाया है मेरे दिलबर को</p>
<p>आके देखे मेरी ग़ज़लों का ये गुलशन कोई</p>
<p></p>
<p>शायरी गीत सभी कुछ जो लिखा है मैंने</p>
<p>जान तेरा है असर मेरा नहीं फ़न…</p>
<p>2122 1122 1122 22</p>
<p></p>
<p>फिर खुला याद के कमरे का ज्यूँ रौज़न कोई</p>
<p>त्यों ही फिर दौड़ पड़ा याद का तौसन कोई</p>
<p></p>
<p>शेर में ज़िक्र है कोचिंग व घने कुहरे का</p>
<p>चाहता हूँ किसी रिक्शे पे चले मन कोई</p>
<p></p>
<p>मैंने कुछ शेर केमिस्ट्री के कहे हैं, जिससे</p>
<p>मेरे महबूब के दिल में हो रिएक्शन कोई</p>
<p></p>
<p>किस तरह मैंने सजाया है मेरे दिलबर को</p>
<p>आके देखे मेरी ग़ज़लों का ये गुलशन कोई</p>
<p></p>
<p>शायरी गीत सभी कुछ जो लिखा है मैंने</p>
<p>जान तेरा है असर मेरा नहीं फ़न कोई</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>ईंटा पत्थर कंकड़ बजरी ले कर आऊँगा---ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2019-09-09:5170231:BlogPost:9917842019-09-09T05:30:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>22 22 22 22 22 22 2 </p>
<p></p>
<p>ईंटें पत्थर कंकड़ बजरी ले कर आऊँगा<br></br>सुन; तेरे शीशे के घर पर सब बरसाऊँगा</p>
<p></p>
<p>फूँक-फाँक कर वर्ग विभाजन वाला हर अध्याय<br></br>क्या है सनातन सब को यह अहसास कराऊँगा</p>
<p></p>
<p>जान रहा, जग की रानी है मुद्रा-माया धारी<br></br>किन्तु मनुज से प्रीत ज़रूरी रोज़ सिखाऊँगा</p>
<p></p>
<p>मठ अधिपति को पूज रहे, जबकि नहीं हो निर्बल<br></br>वायु-अनल से युक्त बली हो, याद धराऊँगा</p>
<p></p>
<p>तीव्र प्रज्ज्वलित शब्द हैं मेरे ताप भयंकर है<br></br>किंतु स्वर्ण-मन-शोधन को मैं…</p>
<p>22 22 22 22 22 22 2 </p>
<p></p>
<p>ईंटें पत्थर कंकड़ बजरी ले कर आऊँगा<br/>सुन; तेरे शीशे के घर पर सब बरसाऊँगा</p>
<p></p>
<p>फूँक-फाँक कर वर्ग विभाजन वाला हर अध्याय<br/>क्या है सनातन सब को यह अहसास कराऊँगा</p>
<p></p>
<p>जान रहा, जग की रानी है मुद्रा-माया धारी<br/>किन्तु मनुज से प्रीत ज़रूरी रोज़ सिखाऊँगा</p>
<p></p>
<p>मठ अधिपति को पूज रहे, जबकि नहीं हो निर्बल<br/>वायु-अनल से युक्त बली हो, याद धराऊँगा</p>
<p></p>
<p>तीव्र प्रज्ज्वलित शब्द हैं मेरे ताप भयंकर है<br/>किंतु स्वर्ण-मन-शोधन को मैं यूँ ही जलाऊँगा</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित </p>आईना टूट न जाए मग़र ये ध्यान रहे----------ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2019-08-29:5170231:BlogPost:9914812019-08-29T04:00:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>2122 1122 1212 112</p>
<p></p>
<p>तुम हसीं हो ये भले ही तुम्हें गुमान रहे<br></br> आईना टूट न जाए मग़र ये ध्यान रहे</p>
<p></p>
<p>पाँव मन्ज़िल की तरफ रख सँभल सँभल के ज़रा<br></br> एक दिल भी है तेरी राह में ये ध्यान रहे</p>
<p></p>
<p>तू ज़माने से रहे बे-ख़बर नहीं कहता<br></br> किन्तु इस दिल के भजन पर भी तेरा कान रहे</p>
<p></p>
<p>तेरी साँसों के हर-इक गीत में रहूँ शामिल<br></br> ताल सुर नाद ये पंकज ही तेरी तान रहे</p>
<p></p>
<p>पूछ मत नींद सुकूँ का हिसाब आशिक़ से<br></br> आशिक़ी कैसी अगर ध्यान में ज़ियान…</p>
<p>2122 1122 1212 112</p>
<p></p>
<p>तुम हसीं हो ये भले ही तुम्हें गुमान रहे<br/> आईना टूट न जाए मग़र ये ध्यान रहे</p>
<p></p>
<p>पाँव मन्ज़िल की तरफ रख सँभल सँभल के ज़रा<br/> एक दिल भी है तेरी राह में ये ध्यान रहे</p>
<p></p>
<p>तू ज़माने से रहे बे-ख़बर नहीं कहता<br/> किन्तु इस दिल के भजन पर भी तेरा कान रहे</p>
<p></p>
<p>तेरी साँसों के हर-इक गीत में रहूँ शामिल<br/> ताल सुर नाद ये पंकज ही तेरी तान रहे</p>
<p></p>
<p>पूछ मत नींद सुकूँ का हिसाब आशिक़ से<br/> आशिक़ी कैसी अगर ध्यान में ज़ियान रहे</p>
<p></p>
<p>जान का यार न पूछो हिसाब सैनिक से<br/> आशिक़ी कैसी अगर ध्यान में ज़ियान रहे</p>
<p></p>
<p>यूँ ही मुनियों नें विधाता नहीं लिखा तुम को<br/> शेष जब कुछ न रहे तब भी तू नदान रहे</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>तुम मेरे ख़ाबों के गुलशन में मिलो------ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2019-08-06:5170231:BlogPost:9893992019-08-06T05:15:53.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>तुम मेरे ख़ाबों के गुलशन में रहो हक़ है तुम्हें</p>
<p>मुझ से जब चाहो ख़यालों में मिलो हक़ है तुम्हें</p>
<p></p>
<p>तुम को तकने की ख़ता, नींदें गँवाने की सज़ा</p>
<p>बदला आँखों से मेरी ऐसे ही लो हक़ है तुम्हें</p>
<p></p>
<p>बस तुम्हारा नाम हर पल जप रहा है मेरा दिल</p>
<p>मेरे सीने से लगो तुम भी सुनो हक़ है तुम्हें</p>
<p></p>
<p>कल्पना के व्योम में जितना मेरा विस्तार है</p>
<p>वह क्षितिज पूरा तुम्हारा, तुम उड़ो हक़ है तुम्हें</p>
<p></p>
<p>शब्द सारे भाव हर लय ताल…</p>
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>तुम मेरे ख़ाबों के गुलशन में रहो हक़ है तुम्हें</p>
<p>मुझ से जब चाहो ख़यालों में मिलो हक़ है तुम्हें</p>
<p></p>
<p>तुम को तकने की ख़ता, नींदें गँवाने की सज़ा</p>
<p>बदला आँखों से मेरी ऐसे ही लो हक़ है तुम्हें</p>
<p></p>
<p>बस तुम्हारा नाम हर पल जप रहा है मेरा दिल</p>
<p>मेरे सीने से लगो तुम भी सुनो हक़ है तुम्हें</p>
<p></p>
<p>कल्पना के व्योम में जितना मेरा विस्तार है</p>
<p>वह क्षितिज पूरा तुम्हारा, तुम उड़ो हक़ है तुम्हें</p>
<p></p>
<p>शब्द सारे भाव हर लय ताल हैं तुम से मेरे</p>
<p>सो सदा पंकज-ग़ज़ल में तुम सजो हक़ है तुम्हें</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>हर नफ़र इस शह्र का कुछ इस तरह बस जी रहा--------ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2019-07-25:5170231:BlogPost:9886842019-07-25T10:30:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>लड़खड़ाती साँस डगमग आस व्याकुल मन सदा<br></br> हर नफ़र इस शह्र का कुछ इस तरह बस जी रहा</p>
<p></p>
<p>अनगिनत सपने सजा कर, चाहते निंदिया नयन<br></br>रात भर बेचैनियों की, है ग़ज़ब देखो प्रथा</p>
<p></p>
<p>पत्थर-ओ-फ़ौलाद की दीवारें मुझ को चुभ रहीं<br></br> आप यदि अपने महल में खुश हैं फिर तो वाह वा</p>
<p></p>
<p>सृष्टि की हर एक रचना का अलग इक सत्य है<br></br> कैसे लिख दूँ एक है व्यवहार जल औ आग का</p>
<p></p>
<p>फूल की डाली कली से फुसफुसा कर कह गई<br></br> ओढ़ ले काँटे सुरक्षा का यही है…</p>
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>लड़खड़ाती साँस डगमग आस व्याकुल मन सदा<br/> हर नफ़र इस शह्र का कुछ इस तरह बस जी रहा</p>
<p></p>
<p>अनगिनत सपने सजा कर, चाहते निंदिया नयन<br/>रात भर बेचैनियों की, है ग़ज़ब देखो प्रथा</p>
<p></p>
<p>पत्थर-ओ-फ़ौलाद की दीवारें मुझ को चुभ रहीं<br/> आप यदि अपने महल में खुश हैं फिर तो वाह वा</p>
<p></p>
<p>सृष्टि की हर एक रचना का अलग इक सत्य है<br/> कैसे लिख दूँ एक है व्यवहार जल औ आग का</p>
<p></p>
<p>फूल की डाली कली से फुसफुसा कर कह गई<br/> ओढ़ ले काँटे सुरक्षा का यही है रास्ता</p>
<p></p>
<p>बारिशों के आब सा मन उस का तन चंदन सा है<br/> इस नगर में हुस्न उस जैसा नहीं है दूसरा</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>मुसीबत जुटातीं ग़लत फहमियाँ-----ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2019-07-10:5170231:BlogPost:9872312019-07-10T16:41:33.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>122 122 122 12</p>
<p></p>
<p>मुसीबत जुटातीं ग़लत फहमियाँ<br/>सुकूँ यूँ चुरातीं ग़लत फहमियाँ</p>
<p></p>
<p>किसी रिश्ते के दरमियाँ आएँ तो<br/>महब्बत जलातीं ग़लत फहमियाँ</p>
<p></p>
<p>जहाँ तक भी हो इससे बच के रहो<br/>तबाही मचातीं ग़लत फहमियाँ</p>
<p></p>
<p>अगर गर्व हावी हुआ शक्ति पे <br/>ग़लत पथ धरातीं ग़लत फहमियाँ</p>
<p></p>
<p>उन्हें सच से जिसने न पोषित किया<br/>उन्हीं को चबातीं ग़लत फहमियाँ</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>
<p>122 122 122 12</p>
<p></p>
<p>मुसीबत जुटातीं ग़लत फहमियाँ<br/>सुकूँ यूँ चुरातीं ग़लत फहमियाँ</p>
<p></p>
<p>किसी रिश्ते के दरमियाँ आएँ तो<br/>महब्बत जलातीं ग़लत फहमियाँ</p>
<p></p>
<p>जहाँ तक भी हो इससे बच के रहो<br/>तबाही मचातीं ग़लत फहमियाँ</p>
<p></p>
<p>अगर गर्व हावी हुआ शक्ति पे <br/>ग़लत पथ धरातीं ग़लत फहमियाँ</p>
<p></p>
<p>उन्हें सच से जिसने न पोषित किया<br/>उन्हीं को चबातीं ग़लत फहमियाँ</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>ये भँव तिरी तो कमान लगे----ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2019-07-08:5170231:BlogPost:9873132019-07-08T17:25:36.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>12112 12112</p>
<p></p>
<p>ये भँव तिरी तो, कमान लगे</p>
<p>तिरे ये नयन, दो बान लगे</p>
<p></p>
<p>कहीं न रुके, रमे न कहीं</p>
<p>इसे तू ही तो, जहान लगे</p>
<p></p>
<p>मैं जब से मिला हूँ तुम से, मिरी</p>
<p>हरेक अदा जवान लगे</p>
<p></p>
<p>अमिय है तिरी अवाज़ सखी</p>
<p>तू गीत लगे है गान लगे</p>
<p></p>
<p>है खोजती महज़ तुझे ही निगा'ह</p>
<p>न और कहीं मिरा धियान लगे</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>
<p>12112 12112</p>
<p></p>
<p>ये भँव तिरी तो, कमान लगे</p>
<p>तिरे ये नयन, दो बान लगे</p>
<p></p>
<p>कहीं न रुके, रमे न कहीं</p>
<p>इसे तू ही तो, जहान लगे</p>
<p></p>
<p>मैं जब से मिला हूँ तुम से, मिरी</p>
<p>हरेक अदा जवान लगे</p>
<p></p>
<p>अमिय है तिरी अवाज़ सखी</p>
<p>तू गीत लगे है गान लगे</p>
<p></p>
<p>है खोजती महज़ तुझे ही निगा'ह</p>
<p>न और कहीं मिरा धियान लगे</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>इच्छाओं का भार नहीं धर----ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2019-06-01:5170231:BlogPost:9855152019-06-01T07:16:01.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>22 22 22 22</p>
<p></p>
<p>इच्छाओं का भार नहीं धर<br></br>रिश्तों के नाज़ुक धागों पर</p>
<p></p>
<p>पोषित पुष्पित होंगे रिश्ते<br></br>हठ मनमानी त्याग दिया कर</p>
<p></p>
<p>ऊर्जा से परिपूर्ण रहेगा<br></br>खुद में शक्ति सहन की तू भर</p>
<p></p>
<p>करनी का फल सन्तति भोगे<br></br>सो कुकर्म से ए मानव डर</p>
<p></p>
<p>देख निगाहें घुमा-फिरा के<br></br>कौन नहीं फल भोगे यहाँ पर</p>
<p></p>
<p>अब वैज्ञानिक भी कहते हैं<br></br>पाप-प्रलय-भय तू मन में भर</p>
<p></p>
<p>गा कर, लिख कर, यूँ ही पंकज<br></br>हर मन से अवसाद सदा…</p>
<p>22 22 22 22</p>
<p></p>
<p>इच्छाओं का भार नहीं धर<br/>रिश्तों के नाज़ुक धागों पर</p>
<p></p>
<p>पोषित पुष्पित होंगे रिश्ते<br/>हठ मनमानी त्याग दिया कर</p>
<p></p>
<p>ऊर्जा से परिपूर्ण रहेगा<br/>खुद में शक्ति सहन की तू भर</p>
<p></p>
<p>करनी का फल सन्तति भोगे<br/>सो कुकर्म से ए मानव डर</p>
<p></p>
<p>देख निगाहें घुमा-फिरा के<br/>कौन नहीं फल भोगे यहाँ पर</p>
<p></p>
<p>अब वैज्ञानिक भी कहते हैं<br/>पाप-प्रलय-भय तू मन में भर</p>
<p></p>
<p>गा कर, लिख कर, यूँ ही पंकज<br/>हर मन से अवसाद सदा हर</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>सच क्या है कोई पूछे, मैं श्याम बता दूँगा-----ग़ज़ल पंकज मिश्रtag:www.openbooksonline.com,2019-05-26:5170231:BlogPost:9850132019-05-26T19:13:34.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>221 1222 221 1222</p>
<p></p>
<p>किस्मत की लकीरों पर खुश-रंग चढ़ा दूँगा<br></br>मैं दर्द के सागर में पंकज को खिला दूँगा</p>
<p></p>
<p>ज्यादा का नहीं केवल छोटा सा है इक दावा <br></br>ग़र वक्त दो तुम को मैं खुद तुम से मिला दूँगा</p>
<p></p>
<p>कुछ और भले जग को दे पाऊँ नहीं लेकिन<br></br>जीने का सलीका मैं अंदाज़ सिखा दूँगा</p>
<p></p>
<p>कंक्रीट की बस्ती में मन घुटता है रोता है<br></br>वादा है मैं बागों का इक शह्र बसा दूँगा</p>
<p></p>
<p>आभास की बस्ती है, अहसास पे जीती है<br></br>जन जन के मनस में मैं यह मंत्र जगा…</p>
<p>221 1222 221 1222</p>
<p></p>
<p>किस्मत की लकीरों पर खुश-रंग चढ़ा दूँगा<br/>मैं दर्द के सागर में पंकज को खिला दूँगा</p>
<p></p>
<p>ज्यादा का नहीं केवल छोटा सा है इक दावा <br/>ग़र वक्त दो तुम को मैं खुद तुम से मिला दूँगा</p>
<p></p>
<p>कुछ और भले जग को दे पाऊँ नहीं लेकिन<br/>जीने का सलीका मैं अंदाज़ सिखा दूँगा</p>
<p></p>
<p>कंक्रीट की बस्ती में मन घुटता है रोता है<br/>वादा है मैं बागों का इक शह्र बसा दूँगा</p>
<p></p>
<p>आभास की बस्ती है, अहसास पे जीती है<br/>जन जन के मनस में मैं यह मंत्र जगा दूँगा</p>
<p></p>
<p>ये रंग ये दुनिया का हर रूप महज़ भ्रम है<br/>सच क्या है कोई पूछे? मैं श्याम बता दूँगा</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना------गीतtag:www.openbooksonline.com,2019-05-20:5170231:BlogPost:9842262019-05-20T07:31:31.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।</p>
<p></p>
<p>भूख प्यास नींद चैन सब गँवा कर<br></br>अवधान में एकल उद्दीपक बसा कर</p>
<p></p>
<p>उस तक पहुँचने का सतत यत्न करना<br></br>प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।</p>
<p></p>
<p>इच्छित के प्रति समर्पण है प्रेम<br></br>उद्देश्य के प्रति अभ्यर्पण है प्रेम</p>
<p></p>
<p>लक्ष्य के प्रति अनवरत गतिशील रहना<br></br>प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।</p>
<p></p>
<p>प्रेयसी के अंक पाश तक सीमित नहीं<br></br>काम जनित आकर्षण तो किंचित नहीं</p>
<p></p>
<p>कामना के केंद्र-बिंदु पर…</p>
<p>प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।</p>
<p></p>
<p>भूख प्यास नींद चैन सब गँवा कर<br/>अवधान में एकल उद्दीपक बसा कर</p>
<p></p>
<p>उस तक पहुँचने का सतत यत्न करना<br/>प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।</p>
<p></p>
<p>इच्छित के प्रति समर्पण है प्रेम<br/>उद्देश्य के प्रति अभ्यर्पण है प्रेम</p>
<p></p>
<p>लक्ष्य के प्रति अनवरत गतिशील रहना<br/>प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।</p>
<p></p>
<p>प्रेयसी के अंक पाश तक सीमित नहीं<br/>काम जनित आकर्षण तो किंचित नहीं</p>
<p></p>
<p>कामना के केंद्र-बिंदु पर टिके रहना<br/>प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना।।</p>
<p></p>
<p>माता-पिता व संतान, गुरु और ज्ञान<br/>स्त्री और पुरुष, भक्त और भगवान</p>
<p></p>
<p>साधक का साध्य में ही लीन रहना<br/>प्रेम हो जाना अर्थात रात भर जगना</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>स्वप्न के सीवान में----------गीतtag:www.openbooksonline.com,2019-05-10:5170231:BlogPost:9835662019-05-10T03:30:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>स्वप्न के सीवान में ज़ुल्फ़ों के बादल छा गए</p>
<p>चाँद क्या आया नज़र हम दिल गँवा कर आ गए।।</p>
<p></p>
<p>चूम कर नज़रों से नज़रें, गुदगुदा कर मन गई</p>
<p>रूपसी जादू भरी थी मन की अभिहर* बन गई </p>
<p></p>
<p>तन सुरभि का यूँ असर खुद को भुला कर आ गए</p>
<p>चाँद क्या आया नज़र हम दिल गँवा कर आ गए।।</p>
<p></p>
<p>मन्द सी मुस्कान उसके होठों पर जैसे खिली</p>
<p>इस हृदय की बन्द साँकल खुद अचानक से खुली</p>
<p></p>
<p>हम मनस में रूप उसका लो सजा कर आ गए</p>
<p>चाँद क्या आया नज़र हम दिल…</p>
<p>स्वप्न के सीवान में ज़ुल्फ़ों के बादल छा गए</p>
<p>चाँद क्या आया नज़र हम दिल गँवा कर आ गए।।</p>
<p></p>
<p>चूम कर नज़रों से नज़रें, गुदगुदा कर मन गई</p>
<p>रूपसी जादू भरी थी मन की अभिहर* बन गई </p>
<p></p>
<p>तन सुरभि का यूँ असर खुद को भुला कर आ गए</p>
<p>चाँद क्या आया नज़र हम दिल गँवा कर आ गए।।</p>
<p></p>
<p>मन्द सी मुस्कान उसके होठों पर जैसे खिली</p>
<p>इस हृदय की बन्द साँकल खुद अचानक से खुली</p>
<p></p>
<p>हम मनस में रूप उसका लो सजा कर आ गए</p>
<p>चाँद क्या आया नज़र हम दिल गँवा कर आ गए।।</p>
<p></p>
<p>चाल हिरनी बात जैसे छंद मानस का सरल</p>
<p>स्वर मधुर ऐसे कि जैसे मीर की कोई ग़ज़ल</p>
<p></p>
<p>सो उसे हम प्रीत की सरगम सिखा कर आ गए</p>
<p>चाँद क्या आया नज़र हम दिल गँवा कर आ गए।।</p>
<p></p>
<p>*अभिहर====हरने वाली</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>गज़ब करता है अय्यारी.......तरही ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2019-04-28:5170231:BlogPost:9827222019-04-28T09:00:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>1222 1222 1222 1222</p>
<p></p>
<p>गज़ब करता है अय्यारी ज़माने से ज़माना भी</p>
<p>हक़ीक़त जो है इस पल में है कल का वो फ़साना भी</p>
<p></p>
<p>न मानो तो सकल संसार है इक शै महज़, लेकिन</p>
<p>हर इक शै ज्ञान का खुद में है अतुलित इक खज़ाना भी</p>
<p></p>
<p>बहुत अलगाव का परचम उठाए फिर लिए यारों</p>
<p>समय कहता है आवश्यक हुआ सबको मिलाना भी</p>
<p></p>
<p>उन्होंने पूछा उसको किस लिए फ़िलवक्त चुप है वो</p>
<p>समंदर हौले से बोला है इक तूफाँ उठाना भी</p>
<p></p>
<p>बहाते नीर हो क्यूँकर, जो बादल से कहा…</p>
<p>1222 1222 1222 1222</p>
<p></p>
<p>गज़ब करता है अय्यारी ज़माने से ज़माना भी</p>
<p>हक़ीक़त जो है इस पल में है कल का वो फ़साना भी</p>
<p></p>
<p>न मानो तो सकल संसार है इक शै महज़, लेकिन</p>
<p>हर इक शै ज्ञान का खुद में है अतुलित इक खज़ाना भी</p>
<p></p>
<p>बहुत अलगाव का परचम उठाए फिर लिए यारों</p>
<p>समय कहता है आवश्यक हुआ सबको मिलाना भी</p>
<p></p>
<p>उन्होंने पूछा उसको किस लिए फ़िलवक्त चुप है वो</p>
<p>समंदर हौले से बोला है इक तूफाँ उठाना भी</p>
<p></p>
<p>बहाते नीर हो क्यूँकर, जो बादल से कहा मैंने</p>
<p>भिगो कर वो ज़मीं बोला, बहारों को है लाना भी</p>
<p></p>
<p>यूँ कागज़-स्याही क्यूँ खरचूँ, क्यूँ नीद-ओ-चैन खोए हूँ</p>
<p>जहाँ में याद रह जाएगा कुछ अपना फ़साना भी"</p>
<p></p>
<p>मौलिक-अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p>ओबीओ लाइव तरही मुशायरा 106 के लिए लिखी गई लेकिन भूल जाने के कारण वहाँ पेश न हो सकी, आपके सब की महफ़िल में पेश है</p>यार पंकज, चुन सुकूँ, रख बन्द आँखें, मौन धर-----ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2019-04-17:5170231:BlogPost:9808492019-04-17T07:57:04.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>मौन रह अपनी ज़रूरत के लिए ए मित्रवर<br></br>तू समस्याओं पे काहें को फ़िराता है नज़र</p>
<p></p>
<p>यूँ भी सदियों से लुटेरे आबरू लूटा किए<br></br>रोकने की क्या ज़रूरत लूट लेंगे अब अगर</p>
<p></p>
<p>चाय अपनी दाल रोटी चल रही दासत्व से<br></br>तो भला ज़िद ठान बैठा है तू क्यूँ सम्मान पर</p>
<p></p>
<p>साख़ पर उल्लू हैं लाखों क्या हुआ, जाने भी दे<br></br>छोड़ चिंता बाग की, बस धन पे रख अपनी नज़र</p>
<p></p>
<p>क्या गरज तुझको पड़ी क्यूँ नींद अपनी खो रहा<br></br>यार पंकज, चुन सुकूँ, रख बन्द…</p>
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>मौन रह अपनी ज़रूरत के लिए ए मित्रवर<br/>तू समस्याओं पे काहें को फ़िराता है नज़र</p>
<p></p>
<p>यूँ भी सदियों से लुटेरे आबरू लूटा किए<br/>रोकने की क्या ज़रूरत लूट लेंगे अब अगर</p>
<p></p>
<p>चाय अपनी दाल रोटी चल रही दासत्व से<br/>तो भला ज़िद ठान बैठा है तू क्यूँ सम्मान पर</p>
<p></p>
<p>साख़ पर उल्लू हैं लाखों क्या हुआ, जाने भी दे<br/>छोड़ चिंता बाग की, बस धन पे रख अपनी नज़र</p>
<p></p>
<p>क्या गरज तुझको पड़ी क्यूँ नींद अपनी खो रहा<br/>यार पंकज, चुन सुकूँ, रख बन्द आँखें, मौन धर</p>
<p></p>
<p>मौलिक-अप्रकाशित</p>ये कौन आया है महफ़िल में चाँदनी पहने------पंकज मिश्रtag:www.openbooksonline.com,2019-03-17:5170231:BlogPost:9787212019-03-17T14:00:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>1212 1222 1212 22</p>
<p>.</p>
<p>अदा में शोखियाँ मस्ती गुलाबी रंग धरे</p>
<p>ये कौन आया है महफ़िल में चाँदनी पहने</p>
<p></p>
<p>ये हुस्न है या कोई दरिया ही चला आया<br></br> है दिल डुबोने को गालों पे इक भँवर ले के</p>
<p></p>
<p>ठुमकने लगते हैं सपने सलोने सरगम पर<br></br> वो खिलखिला के हँसे तो लगे सितार बजे</p>
<p></p>
<p>नज़र उसी पे ही सबकी टिकी है महफ़िल में<br></br> ये बात और है उसकी निगाहें बस मुझ पे</p>
<p></p>
<p>ज़रा सा छू ने पे छुई मुई समेटे ज्यूँ खुद को<br></br> नज़र पड़े तो वो खुद को समेटती…</p>
<p>1212 1222 1212 22</p>
<p>.</p>
<p>अदा में शोखियाँ मस्ती गुलाबी रंग धरे</p>
<p>ये कौन आया है महफ़िल में चाँदनी पहने</p>
<p></p>
<p>ये हुस्न है या कोई दरिया ही चला आया<br/> है दिल डुबोने को गालों पे इक भँवर ले के</p>
<p></p>
<p>ठुमकने लगते हैं सपने सलोने सरगम पर<br/> वो खिलखिला के हँसे तो लगे सितार बजे</p>
<p></p>
<p>नज़र उसी पे ही सबकी टिकी है महफ़िल में<br/> ये बात और है उसकी निगाहें बस मुझ पे</p>
<p></p>
<p>ज़रा सा छू ने पे छुई मुई समेटे ज्यूँ खुद को<br/> नज़र पड़े तो वो खुद को समेटती वैसे</p>
<p>.</p>
<p>मौलिक-अप्रकाशित</p>तेरे रुखसार हैं या दहके गुलाब-------ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2019-03-08:5170231:BlogPost:9778072019-03-08T02:54:32.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>1222 1222 2121</p>
<p></p>
<p>तेरे रुख़्सार हैं या दहके ग़ुलाब<br></br>ये तेरी ज़ुल्फ़ है या तेरा हिज़ाब</p>
<p></p>
<p>हटा के ज़ुल्फ़ का पर्दा, उँगलियों से<br></br>बिखेरो चाँदनी मुझ पर माहताब</p>
<p></p>
<p>करीब आ तो, निगाहों के पन्ने पलटूँ <br></br>मैं पढ़ना चाहूँ तेरे मन की किताब</p>
<p></p>
<p>महज़ चर्चा तुम्हारा, बातें तुम्हारी<br></br>इसे ही सब कहें, चाहत बे-हिसाब</p>
<p></p>
<p>ज़माना तुहमतें चाहे जितनी भी दे<br></br>ग़ज़ल पंकज की, है तुझको इंतिसाब</p>
<p></p>
<p>===============================<br></br>कठिन शब्दों के…</p>
<p>1222 1222 2121</p>
<p></p>
<p>तेरे रुख़्सार हैं या दहके ग़ुलाब<br/>ये तेरी ज़ुल्फ़ है या तेरा हिज़ाब</p>
<p></p>
<p>हटा के ज़ुल्फ़ का पर्दा, उँगलियों से<br/>बिखेरो चाँदनी मुझ पर माहताब</p>
<p></p>
<p>करीब आ तो, निगाहों के पन्ने पलटूँ <br/>मैं पढ़ना चाहूँ तेरे मन की किताब</p>
<p></p>
<p>महज़ चर्चा तुम्हारा, बातें तुम्हारी<br/>इसे ही सब कहें, चाहत बे-हिसाब</p>
<p></p>
<p>ज़माना तुहमतें चाहे जितनी भी दे<br/>ग़ज़ल पंकज की, है तुझको इंतिसाब</p>
<p></p>
<p>===============================<br/>कठिन शब्दों के अर्थ----</p>
<p>हिज़ाब=पर्दा</p>
<p>माहताब=चाँद</p>
<p>इंतिसाब=किसी के नाम करना</p>
<p>===============================</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>क्यूँ जाने लोग कुछ अपने ही जल गए---ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2019-03-05:5170231:BlogPost:9776222019-03-05T11:00:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>1212 1222 1212</p>
<p></p>
<p>हमारे वार से जब अरि दहल गए <br/> क्यूँ जाने लोग कुछ अपने ही जल गए</p>
<p></p>
<p>ख़बर ख़बीस के मरने की क्या मिली<br/> वतन में कईयों के आँसू निकल गए</p>
<p></p>
<p>वो बिलबिला उठे हैं जाने क्यूँ भला<br/> जो लोग देश को वर्षों हैं छल गए</p>
<p></p>
<p>नसीब-ए-मुल्क़ पे उँगली उठाए हैं<br/> सुकून देश का जो खुद निगल गए</p>
<p></p>
<p>मिलेगा दण्ड ए दुश्मन ज़रु'र<br/> वो और ही थे, जो तुझ पर पिघल गए</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p>1212 1222 1212</p>
<p></p>
<p>हमारे वार से जब अरि दहल गए <br/> क्यूँ जाने लोग कुछ अपने ही जल गए</p>
<p></p>
<p>ख़बर ख़बीस के मरने की क्या मिली<br/> वतन में कईयों के आँसू निकल गए</p>
<p></p>
<p>वो बिलबिला उठे हैं जाने क्यूँ भला<br/> जो लोग देश को वर्षों हैं छल गए</p>
<p></p>
<p>नसीब-ए-मुल्क़ पे उँगली उठाए हैं<br/> सुकून देश का जो खुद निगल गए</p>
<p></p>
<p>मिलेगा दण्ड ए दुश्मन ज़रु'र<br/> वो और ही थे, जो तुझ पर पिघल गए</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>
<p></p>मीडिया भारत का या तो वायरस इक बन गया---ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2019-03-03:5170231:BlogPost:9773252019-03-03T16:30:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>मीडिया भारत का या तो वायरस यक बन गया</p>
<p>दीमकों के साथ मिलकर या के दीमक बन गया</p>
<p></p>
<p>मीडिया का काम था जनता की ख़ातिर वो लड़े</p>
<p>किन्तु वो सत्ता के उद्देश्यों का पोषक बन गया</p>
<p></p>
<p>दोस्तों टी वी समाचारों का चैनल त्यागिए</p>
<p>क्योंकि उनके वास्ते हर दर्द नाटक बन गया</p>
<p></p>
<p>क्या दिखाना है, नहीं क्या क्या दिखाना चाहिए</p>
<p>कुछ न, जाने मीडिया, सो अब ये घातक बन गया</p>
<p></p>
<p>ज़ह्र भर कर शब्द में, वो वार जिह्वा से…</p>
<p>2122 2122 2122 212</p>
<p></p>
<p>मीडिया भारत का या तो वायरस यक बन गया</p>
<p>दीमकों के साथ मिलकर या के दीमक बन गया</p>
<p></p>
<p>मीडिया का काम था जनता की ख़ातिर वो लड़े</p>
<p>किन्तु वो सत्ता के उद्देश्यों का पोषक बन गया</p>
<p></p>
<p>दोस्तों टी वी समाचारों का चैनल त्यागिए</p>
<p>क्योंकि उनके वास्ते हर दर्द नाटक बन गया</p>
<p></p>
<p>क्या दिखाना है, नहीं क्या क्या दिखाना चाहिए</p>
<p>कुछ न, जाने मीडिया, सो अब ये घातक बन गया</p>
<p></p>
<p>ज़ह्र भर कर शब्द में, वो वार जिह्वा से करे</p>
<p>न्यूज़ का हर एंकर नफ़रत-प्रसारक बन गया</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>होश की मैं पैमाइश हूँ:........ग़ज़ल, पंकज मिश्र..........इस्लाह की विनती के साथtag:www.openbooksonline.com,2018-11-12:5170231:BlogPost:9608692018-11-12T18:30:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>22 22 22 2</p>
<p></p>
<p>मयख़ानों की ख़ाहिश हूँ<br></br> होश की मैं पैमाइश हूँ</p>
<p></p>
<p>चाँद न कर मुझ पर काविश<br></br> ब्लैक होल की नाज़िश हूँ</p>
<p></p>
<p>हल ना कर पाओगे तुम<br></br> ज़िद की ऐसी नालिश हूँ</p>
<p></p>
<p>जल जाएगा हुस्न तेरा<br></br> मैं सूरज की ताबिश हूँ</p>
<p></p>
<p>आ मत मेरी राहों में<br></br> तूफ़ानों की जुंबिश हूँ</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p>उर्दू का ज्ञान लगभग शून्य है, इसलिए, मुझे सन्देह है कि शायद मेरे भाव अस्पष्ट हों..….इसलिए हार्दिक विनती है कि इस ग़ज़ल के कथ्य…</p>
<p>22 22 22 2</p>
<p></p>
<p>मयख़ानों की ख़ाहिश हूँ<br/> होश की मैं पैमाइश हूँ</p>
<p></p>
<p>चाँद न कर मुझ पर काविश<br/> ब्लैक होल की नाज़िश हूँ</p>
<p></p>
<p>हल ना कर पाओगे तुम<br/> ज़िद की ऐसी नालिश हूँ</p>
<p></p>
<p>जल जाएगा हुस्न तेरा<br/> मैं सूरज की ताबिश हूँ</p>
<p></p>
<p>आ मत मेरी राहों में<br/> तूफ़ानों की जुंबिश हूँ</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p>उर्दू का ज्ञान लगभग शून्य है, इसलिए, मुझे सन्देह है कि शायद मेरे भाव अस्पष्ट हों..….इसलिए हार्दिक विनती है कि इस ग़ज़ल के कथ्य पर भी सुझाव दिया जाए</p>सिद्धिर्भवति कर्मजा-----ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2018-10-08:5170231:BlogPost:9521762018-10-08T11:21:34.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>22 122 12</p>
<p></p>
<p>गीता में लिक्खा गया<br/>सिद्धिर्भवति कर्मजा</p>
<p></p>
<p>बिन फल की चिंता करे<br/>सद्कर्म करिए सदा</p>
<p></p>
<p>दिखता है जो कुछ यहाँ<br/>सब खेल है काल का</p>
<p></p>
<p>ऊर्जा का सिद्धांत है<br/>लक्षण है जो आत्म का</p>
<p></p>
<p>बदले हैं बस रूप ही<br/>ऊर्जा हो या आत्मा</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>
<p></p>
<p>22 122 12</p>
<p></p>
<p>गीता में लिक्खा गया<br/>सिद्धिर्भवति कर्मजा</p>
<p></p>
<p>बिन फल की चिंता करे<br/>सद्कर्म करिए सदा</p>
<p></p>
<p>दिखता है जो कुछ यहाँ<br/>सब खेल है काल का</p>
<p></p>
<p>ऊर्जा का सिद्धांत है<br/>लक्षण है जो आत्म का</p>
<p></p>
<p>बदले हैं बस रूप ही<br/>ऊर्जा हो या आत्मा</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>
<p></p>है दूर मंज़िल घना तिमिर है------ग़ज़ल, इस्लाह की गुजारिश के साथtag:www.openbooksonline.com,2018-09-11:5170231:BlogPost:9482042018-09-11T14:00:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>12122 12122 12122 12122</p>
<p></p>
<p>है दूर मन्ज़िल तिमिर घनेरा, अगर कलम की डगर कठिन है<br></br> नहीं थकेंगे कदम हमारे हमारा व्रत भी मगर कठिन है</p>
<p></p>
<p>चलो उठाओ तमाम बातें जवाब सारा कलम ही देगी<br></br> चले भले ही कदम अभी कम पता है हमको सफर कठिन है</p>
<p></p>
<p>मना ले जश्नां उड़ा मज़ाकाँ ज़माने दूँगा सलाम लाखों<br></br> सलाम वापस इधर ही होंगे हालाँकि तुमसे समर कठिन है</p>
<p></p>
<p>न पूछ काहें मैं अक्षरों की ये धार सब पर बिखेरुँ पल पल<br></br> है इक हिमालय यहाँ भी ग़म का सो आँसुओं की लहर कठिन…</p>
<p>12122 12122 12122 12122</p>
<p></p>
<p>है दूर मन्ज़िल तिमिर घनेरा, अगर कलम की डगर कठिन है<br/> नहीं थकेंगे कदम हमारे हमारा व्रत भी मगर कठिन है</p>
<p></p>
<p>चलो उठाओ तमाम बातें जवाब सारा कलम ही देगी<br/> चले भले ही कदम अभी कम पता है हमको सफर कठिन है</p>
<p></p>
<p>मना ले जश्नां उड़ा मज़ाकाँ ज़माने दूँगा सलाम लाखों<br/> सलाम वापस इधर ही होंगे हालाँकि तुमसे समर कठिन है</p>
<p></p>
<p>न पूछ काहें मैं अक्षरों की ये धार सब पर बिखेरुँ पल पल<br/> है इक हिमालय यहाँ भी ग़म का सो आँसुओं की लहर कठिन है</p>
<p></p>
<p>दुआएं उनको जो साथ में हैं दुआ उन्हें भी जो घात पर हैं<br/> मगर नहीं हूँ हताश किंचित प्रयास का हर असर कठिन है</p>
<p></p>
<p>यूँ ही सरोवर में खिल गया हो ये ऐसा पंकज नहीं कदाचित<br/> निगाह जिसमें नहीं हो पानी वहाँ पे इसका बसर कठिन है</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक-अप्रकाशित</p>जिगर औ साँस में उतर आई मई (ग़ज़ल, इस्लाह के लिए)tag:www.openbooksonline.com,2018-08-28:5170231:BlogPost:9465562018-08-28T18:30:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>122 212 122 212</p>
<p></p>
<p>ये शेर-ओ-शायरी? मुझे, इश्क़ है भई<br/>सभी से, आप से; किसी ख़ास से नई</p>
<p></p>
<p>क़लम चिल्ला उठी, जहाँ के दर्द से<br/> कुई तड़पा, निगाह नम हो गई</p>
<p></p>
<p>किसी नें राष्ट्र को तरेरी आँख तो<br/> जिगर औ साँस में उतर आई मई</p>
<p></p>
<p>सुनो ए, नाज़नीं घमण्डी होने का<br/> इसे इल्ज़ाम देने को बस तुम नई</p>
<p></p>
<p>महज़ खटती रहीं वो बच्चों के लिए<br/> सभी माताओं की उम्र यूँ ही गई</p>
<p></p>
<p>मौलिक-अप्रकाशित</p>
<p>122 212 122 212</p>
<p></p>
<p>ये शेर-ओ-शायरी? मुझे, इश्क़ है भई<br/>सभी से, आप से; किसी ख़ास से नई</p>
<p></p>
<p>क़लम चिल्ला उठी, जहाँ के दर्द से<br/> कुई तड़पा, निगाह नम हो गई</p>
<p></p>
<p>किसी नें राष्ट्र को तरेरी आँख तो<br/> जिगर औ साँस में उतर आई मई</p>
<p></p>
<p>सुनो ए, नाज़नीं घमण्डी होने का<br/> इसे इल्ज़ाम देने को बस तुम नई</p>
<p></p>
<p>महज़ खटती रहीं वो बच्चों के लिए<br/> सभी माताओं की उम्र यूँ ही गई</p>
<p></p>
<p>मौलिक-अप्रकाशित</p>काँधे पर सभी शरीर गए (इस्लाह के लिए)tag:www.openbooksonline.com,2018-08-27:5170231:BlogPost:9464382018-08-27T20:00:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>16 रुकनी ग़ज़ल</p>
<p></p>
<p>किस किस के नाम गिनाऊँ मैं, जो इस दिल मे भर पीर गए<br></br> जिस जिस को हिफाज़त सौंपी थी, वो सारे ही दिल चीर गए</p>
<p></p>
<p>वो तन्हा छोड़ गए लेकिन मैं उनको दोष नहीं दूँगा<br></br> जो तोहफे में इन दो प्यासे नयनों को दे कर नीर गए</p>
<p></p>
<p>हर गीत ग़ज़ल अशआर सभी हैं जिन लोगों की सौगातें<br></br> आबाद रहें वो, जो मुझ को, दे कर ग़म की जागीर गए</p>
<p></p>
<p>हर ख़ाब कुचल डाले मेरे, तुम रौंद गए अरमानों को<br></br> पर मुआफ़ किया मैंने तुमको, तुम चाहे कर तफ़्सीर गए</p>
<p></p>
<p>रातों की…</p>
<p>16 रुकनी ग़ज़ल</p>
<p></p>
<p>किस किस के नाम गिनाऊँ मैं, जो इस दिल मे भर पीर गए<br/> जिस जिस को हिफाज़त सौंपी थी, वो सारे ही दिल चीर गए</p>
<p></p>
<p>वो तन्हा छोड़ गए लेकिन मैं उनको दोष नहीं दूँगा<br/> जो तोहफे में इन दो प्यासे नयनों को दे कर नीर गए</p>
<p></p>
<p>हर गीत ग़ज़ल अशआर सभी हैं जिन लोगों की सौगातें<br/> आबाद रहें वो, जो मुझ को, दे कर ग़म की जागीर गए</p>
<p></p>
<p>हर ख़ाब कुचल डाले मेरे, तुम रौंद गए अरमानों को<br/> पर मुआफ़ किया मैंने तुमको, तुम चाहे कर तफ़्सीर गए</p>
<p></p>
<p>रातों की जिम्मेदारी इक लक्ष्मण को थी अब पंकज को<br/> कम से कम मुझ नाची'ज़ को वो दे कर इतनी तौक़ीर गए</p>
<p></p>
<p>पैदल गाड़ी चाहे जिस भी साधन से आप चलें, लेकिन<br/>अंतिम यात्रा में काँधों पर सबके निर्जीव शरीर गए</p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित </p>जिसे भी दिल मे बसाया वो चीर कर के गया--tag:www.openbooksonline.com,2018-08-25:5170231:BlogPost:9460012018-08-25T19:30:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p style="text-align: left;">1212 1122 1212 112</p>
<div>मैं किसका नाम गिनाऊँ जो पीर भर केे गया</div>
<div>जिसे भी दिल मे बसाया वो चीर कर के गया</div>
<div>किसी दीवार पे टाँगा हुआ आईना हूँ</div>
<div>निगाह जिसने मिलाई वही सँवर के गया</div>
<div>मेरी कथा भी किसी फल भरे शजर सी है</div>
<div>उसी ने चोट दी जो छाँव मेंं ठहर के गया</div>
<div>भला क्यूँ जाग रहा हूँ मैं रोज़ रातों से</div>
<div>न पूछियेगा कभी कौन नींद हर के गया</div>
<div>ग़ुरूर क्यूँ न करे खुद पे जबकि पंकज से</div>
<div>मिला है जो भी…</div>
<p style="text-align: left;">1212 1122 1212 112</p>
<div>मैं किसका नाम गिनाऊँ जो पीर भर केे गया</div>
<div>जिसे भी दिल मे बसाया वो चीर कर के गया</div>
<div>किसी दीवार पे टाँगा हुआ आईना हूँ</div>
<div>निगाह जिसने मिलाई वही सँवर के गया</div>
<div>मेरी कथा भी किसी फल भरे शजर सी है</div>
<div>उसी ने चोट दी जो छाँव मेंं ठहर के गया</div>
<div>भला क्यूँ जाग रहा हूँ मैं रोज़ रातों से</div>
<div>न पूछियेगा कभी कौन नींद हर के गया</div>
<div>ग़ुरूर क्यूँ न करे खुद पे जबकि पंकज से</div>
<div>मिला है जो भी तबीअत से वो निखर के गया</div>
<div>मौलिक अप्रकाशित</div>अटल जी को श्रद्धांजलिtag:www.openbooksonline.com,2018-08-16:5170231:BlogPost:9448392018-08-16T12:30:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को नमन<br></br> ------------------------------------<br></br> हिन्दू तन मन हिन्दू जीवन रग रग हिन्दू युक्त अटल।<br></br> आज जगत के इस बन्धन को त्याग हो गए मुक्त अटल।।</p>
<p></p>
<p>नैतिकता के मानदंड थे प्रेम राग के अनुरागी<br></br> सर्वधर्म समभाव के असली आप थे सच्चे अनुगामी</p>
<p></p>
<p>सकल विश्व में भारत की जो मान-प्रतिष्ठा आज बढ़ी<br></br> उसकी गाथा अटल बिहारी के द्वारा परवान चढ़ी</p>
<p></p>
<p>विश्व पटल पर एक शक्ति सम्पन्न राष्ट्र है भारत जो<br></br> आप…</p>
<p>पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी को नमन<br/> ------------------------------------<br/> हिन्दू तन मन हिन्दू जीवन रग रग हिन्दू युक्त अटल।<br/> आज जगत के इस बन्धन को त्याग हो गए मुक्त अटल।।</p>
<p></p>
<p>नैतिकता के मानदंड थे प्रेम राग के अनुरागी<br/> सर्वधर्म समभाव के असली आप थे सच्चे अनुगामी</p>
<p></p>
<p>सकल विश्व में भारत की जो मान-प्रतिष्ठा आज बढ़ी<br/> उसकी गाथा अटल बिहारी के द्वारा परवान चढ़ी</p>
<p></p>
<p>विश्व पटल पर एक शक्ति सम्पन्न राष्ट्र है भारत जो<br/> आप हैं कारण, परमाणु से किया आपने युक्त अटल।।1।।</p>
<p></p>
<p>तेज आपका भेष आपका वाणी प्रखर अनूठी थी<br/> उस का फल है जागी किस्मत जो भारत से रूठी थी</p>
<p></p>
<p>सभागार संयुक्त राष्ट्र का अभिभूत सुन अभिभाषण<br/> हम हिंदी के यशवर्धन का कैसे भूलेंगे वह क्षण?</p>
<p></p>
<p>भारतवर्ष की नवल चेतना के वाहक थे पोषक थे<br/> राजनीति के उच्च शिखर उत्तम विचार से युक्त अटल ।।2।।</p>
<p></p>
<p>छोड़ गए हम सब को क्षति जो हुई न अब पूरी होगी<br/> अटल आपके बिना हिन्द की गाथा सदा अधूरी होगी</p>
<p></p>
<p>सत्ता के गलियारों में काजल की छींट भी लगी नहीं<br/> हे भारत के रत्न पुरुष कोई और उदाहरण आज नहीं</p>
<p></p>
<p>अलग सोच थी, अलग लक्ष्य थे सबके अपने मार्ग अलग<br/> किन्तु विविध धाराओं को कर ही गए संयुक्त अटल।।3।।</p>
<p></p>
<p>विश्व उदासी में है भारत का कण कण विह्वल व्याकुल<br/> हिन्द देश के हर वासी का मन अतिशय है शोकाकुल</p>
<p></p>
<p>हे भारत के स्वाभिमान तन छोड़ कहाँ प्रस्थान हुआ<br/> जनता रो रो कर कहती इक युग का अब अवसान हुआ</p>
<p></p>
<p>हे विराट युग पुरुष आपको शब्दों में कैसे ढाले<br/> मुरझाए पंकज के लाखों भाव अभी अनुक्त अटल।।4।।</p>
<p></p>
<p>मेलिक अप्रकाशित</p>पीढ़ी को समझा दे पंकज, खेती ख़ातिर खेत बचा ले----ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2018-08-07:5170231:BlogPost:9436062018-08-07T18:30:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<div><strong>22 22 22 22 22 22 22 22</strong></div>
<div>नाम हमारा लेना छोड़े, धड़कन को अपनी समझाले</div>
<div>रात यहाँ बेचैन गुजरती, सुन ए छोड़ के जाने वाले</div>
<div>सनई ब्रांड सेंट की बू और कीचड़ छाप पहन कर धोती</div>
<div>वो, जूते का ऐड निहारे और फिर अपने पाँव के छाले</div>
<div>नीच अधम अधिकारी-नेता जिन्हें परोसी गईं बेटियाँ</div>
<div>यद्यपि नीच हैं कन्याओं को बिस्तर तक पहुँचाने वाले</div>
<div>एक सुझाव हमारा पी एम छोटा लेकिन भारी है</div>
<div>लाल किले से कहिए भारत वर्ग-भेद का भाव मिटा…</div>
<div><strong>22 22 22 22 22 22 22 22</strong></div>
<div>नाम हमारा लेना छोड़े, धड़कन को अपनी समझाले</div>
<div>रात यहाँ बेचैन गुजरती, सुन ए छोड़ के जाने वाले</div>
<div>सनई ब्रांड सेंट की बू और कीचड़ छाप पहन कर धोती</div>
<div>वो, जूते का ऐड निहारे और फिर अपने पाँव के छाले</div>
<div>नीच अधम अधिकारी-नेता जिन्हें परोसी गईं बेटियाँ</div>
<div>यद्यपि नीच हैं कन्याओं को बिस्तर तक पहुँचाने वाले</div>
<div>एक सुझाव हमारा पी एम छोटा लेकिन भारी है</div>
<div>लाल किले से कहिए भारत वर्ग-भेद का भाव मिटा ले</div>
<div>बोरी भर सोना ले कर भी ढूंढे नहीं मिलेगा भोजन</div>
<div><div>पीढ़ी को समझा दे पंकज खेती खातिर खेत बचा ले</div>
<div><strong>मौलिक अप्रकाशित </strong></div>
</div>पंकज उसी लिखावट की कमज़ोरी पर रो रहा....कविता......छंदमुक्त अतुकान्तtag:www.openbooksonline.com,2018-08-06:5170231:BlogPost:9435792018-08-06T17:30:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>पीड़ा के ताप से, <br></br> पिघल रही मन की हिमानी<br></br> दो आँखें हुई हैं यमुनोत्री गंगोत्री<br></br> कंठ क्षेत्र देव प्रयाग हुआ है<br></br> जहाँ अलकनंदा और भगीरथी <br></br> की धाराएं आकर मिल रहीं<br></br> और हृदय क्षेत्र-हरिद्वार को<br></br> भिंगों रहीं</p>
<p>आप इसे रोना कह सकते हैं<br></br> लेकिन मैं अपना दुःख बहा रहा हूँ<br></br> अपने बैलों के साथ मर चुके किसान के प्रति<br></br> अपना फ़र्ज़ निभा रहा हूँ</p>
<p>शायद इससे अधिक कुछ कर नहीं सकता?</p>
<p>ना!!!!</p>
<p>सच ये है कि इससे ज्यादा कुछ करना ही नहीं चाहता</p>
<p>ख़ैर, …<br></br></p>
<p>पीड़ा के ताप से, <br/> पिघल रही मन की हिमानी<br/> दो आँखें हुई हैं यमुनोत्री गंगोत्री<br/> कंठ क्षेत्र देव प्रयाग हुआ है<br/> जहाँ अलकनंदा और भगीरथी <br/> की धाराएं आकर मिल रहीं<br/> और हृदय क्षेत्र-हरिद्वार को<br/> भिंगों रहीं</p>
<p>आप इसे रोना कह सकते हैं<br/> लेकिन मैं अपना दुःख बहा रहा हूँ<br/> अपने बैलों के साथ मर चुके किसान के प्रति<br/> अपना फ़र्ज़ निभा रहा हूँ</p>
<p>शायद इससे अधिक कुछ कर नहीं सकता?</p>
<p>ना!!!!</p>
<p>सच ये है कि इससे ज्यादा कुछ करना ही नहीं चाहता</p>
<p>ख़ैर, <br/> देख रहा हूँ....<br/> उसके टूटे चप्पल, तार से सिले हुए<br/> महसूस कर रहा हूँ...<br/> उसके पाँव छिले हुए</p>
<p>अपना धर्म और कर्म तोल रहा हूँ<br/> मैं; पंकज आज एकदम सच बोल रहा हूँ</p>
<p>फूँक देना चाहता हूँ धर्म की किताबें<br/> जला देना चाहता हूँ कानून की इबारतें</p>
<p>वह विधान जो आज भी पाँव के छाले ढो रहा<br/> पंकज उसी लिखावट की कमज़ोरी पर रो रहा......</p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>हृदय अपना जिसनें समंदर किया है-----ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2018-04-21:5170231:BlogPost:9260192018-04-21T09:30:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>122 122 122 122</p>
<p></p>
<p>युगों तक जगत में वही जी सका है<br></br> हृदय अपना जिसने समंदर किया है</p>
<p></p>
<p>हक़ीक़त से नज़रें हटाने से यारो<br></br> कभी झूठ भी क्या कहीं सच हुआ है?</p>
<p></p>
<p>कहाँ रात के मानकों से हो चिपके<br></br> उजाले का वाहक तो सूरज रहा है</p>
<p></p>
<p>गरल एकता के लिए पीना होगा<br></br> सिखाती सभी को परम शिव कथा है</p>
<div class="quoted-text"></div>
<p><span>'सुनो आइनो तुम भी पढ़ लो सुकूँ से</span><br></br><span>कि 'पंकज' ने सब सामने रख दिया है' (आदरणीय बाऊजी समर कबीर द्वारा…</span></p>
<p>122 122 122 122</p>
<p></p>
<p>युगों तक जगत में वही जी सका है<br/> हृदय अपना जिसने समंदर किया है</p>
<p></p>
<p>हक़ीक़त से नज़रें हटाने से यारो<br/> कभी झूठ भी क्या कहीं सच हुआ है?</p>
<p></p>
<p>कहाँ रात के मानकों से हो चिपके<br/> उजाले का वाहक तो सूरज रहा है</p>
<p></p>
<p>गरल एकता के लिए पीना होगा<br/> सिखाती सभी को परम शिव कथा है</p>
<div class="quoted-text"></div>
<p><span>'सुनो आइनो तुम भी पढ़ लो सुकूँ से</span><br/><span>कि 'पंकज' ने सब सामने रख दिया है' (आदरणीय बाऊजी समर कबीर द्वारा संशोधित)</span></p>
<p></p>
<p>मौलिक अप्रकाशित</p>जानें क्या बात है आज कल, दर्द अपना छिपाने लगा---ग़ज़लtag:www.openbooksonline.com,2018-04-19:5170231:BlogPost:9255782018-04-19T18:30:00.000ZPankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"http://www.openbooksonline.com/profile/PankajKumarMishraVatsyayan
<p>212 212 212 212 212 212</p>
<p></p>
<p>जानें क्या बात है आज कल, दर्द अपना छिपाने लगा<br></br>हाल उसका पता कीजिए, वो बहुत मुस्कुराने लगा</p>
<p></p>
<p>हम उसे बस यूँ ही चारागर, झूठे ही तो नहीं लिख दिए<br></br>एक बेजान से बुत में भी, वो जो धड़कन चलाने लगा</p>
<p></p>
<p>उसको पागल नहीं जो कहें, तो भला नाम क्या और दें<br></br>एक निर्जन नगर में कोई, स्वप्न के घर बसाने लगा</p>
<p></p>
<p>शुक्रिया आपका शुक्रिया है ये तोहफा बहुत कीमती <br></br>देखिए तो विरह का असर शेर मैं गुनगुनाने लगा</p>
<p></p>
<p>उम्र भर की ख़लिश…</p>
<p>212 212 212 212 212 212</p>
<p></p>
<p>जानें क्या बात है आज कल, दर्द अपना छिपाने लगा<br/>हाल उसका पता कीजिए, वो बहुत मुस्कुराने लगा</p>
<p></p>
<p>हम उसे बस यूँ ही चारागर, झूठे ही तो नहीं लिख दिए<br/>एक बेजान से बुत में भी, वो जो धड़कन चलाने लगा</p>
<p></p>
<p>उसको पागल नहीं जो कहें, तो भला नाम क्या और दें<br/>एक निर्जन नगर में कोई, स्वप्न के घर बसाने लगा</p>
<p></p>
<p>शुक्रिया आपका शुक्रिया है ये तोहफा बहुत कीमती <br/>देखिए तो विरह का असर शेर मैं गुनगुनाने लगा</p>
<p></p>
<p>उम्र भर की ख़लिश के सिवा कुछ भी नफ़रत से मिलना नहीं<br/>मन से कूड़ा हटा दीजिए, सबको पंकज सिखाने लगा</p>
<p></p>
<p>मौलिक-अप्रकाशित</p>