Nazeel's Posts - Open Books Online2024-03-29T05:41:21ZNazeelhttp://www.openbooksonline.com/profile/NBNazeelhttp://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/2991278144?profile=RESIZE_48X48&width=48&height=48&crop=1%3A1http://www.openbooksonline.com/profiles/blog/feed?user=0eyl7tehjxhz5&xn_auth=noबहुत कुछ दांव पे लगाया है .....tag:www.openbooksonline.com,2015-04-07:5170231:BlogPost:6393382015-04-07T16:00:00.000ZNazeelhttp://www.openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p>१ २ २ २ १२ १ २२२ <br/> बड़ी मुश्किल उसे मनाया है ॥ <br/>
बहुत कुछ दांव पे लगाया है ॥ <br/>
किसे कहते कि बेवफा है वो ,<br/>
हँसा हम पे जिसे बताया है ॥ <br/>
बसा दिल-ओ-दिमाग में वो ही ,<br/>
अचानक सामने जो आया है ॥ <br/>
लगे ऐसा हमें खुदा ने उसे ,<br/>
हमारे के लिए बनाया है ॥ <br/>
हुआ है एहसास जन्नत का , <br/>
जो माँ ने गोद में सुलाया है ॥ <br/>
कहाँ होशो-हवास की बातें ,<br/>
किसी पे जब शबाब आया है ॥ <br/>
लगे है वो पवित्र गंगा सा ,<br/>
करिंदा जो पसीने से नहाया है ॥<br/>
मौलिक /अप्रकाशित</p>
<p>१ २ २ २ १२ १ २२२ <br/> बड़ी मुश्किल उसे मनाया है ॥ <br/>
बहुत कुछ दांव पे लगाया है ॥ <br/>
किसे कहते कि बेवफा है वो ,<br/>
हँसा हम पे जिसे बताया है ॥ <br/>
बसा दिल-ओ-दिमाग में वो ही ,<br/>
अचानक सामने जो आया है ॥ <br/>
लगे ऐसा हमें खुदा ने उसे ,<br/>
हमारे के लिए बनाया है ॥ <br/>
हुआ है एहसास जन्नत का , <br/>
जो माँ ने गोद में सुलाया है ॥ <br/>
कहाँ होशो-हवास की बातें ,<br/>
किसी पे जब शबाब आया है ॥ <br/>
लगे है वो पवित्र गंगा सा ,<br/>
करिंदा जो पसीने से नहाया है ॥<br/>
मौलिक /अप्रकाशित</p>वो सताए है मुझे यादों में शामो - सहर ..... Nazeeltag:www.openbooksonline.com,2015-04-01:5170231:BlogPost:6371332015-04-01T15:14:36.000ZNazeelhttp://www.openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p><br></br><span class="font-size-4">२१२२ २१२२ २१२२ २१२</span> <br></br>जिंदगी मेरी कहाँ जाके गई है तू ठहर ॥ <br></br>ले गई है फिर वहां ,जो छोड़ आया था शहर <br></br><br></br>है खुदा भी एक ,एक ही आसमां , एक ही ज़मीं <br></br>सरहदों पर किस लिए हमने मचाया है कहर <br></br><br></br>मारता आया है बरसों बाद भी अक्सर हमें ॥ <br></br>घुल गया था जो दिलों में लकीरो का जहर <br></br><br></br>भूल कर भी भूल सकता हूँ भला कैसे उसे ,<br></br>वो सताए है मुझे यादों में शामो - सहर <br></br><br></br>वायदा करके नहीं आये अभी तक क्यों भला ,<br></br>यूँ अकेला बैठ…</p>
<p><br/><span class="font-size-4">२१२२ २१२२ २१२२ २१२</span> <br/>जिंदगी मेरी कहाँ जाके गई है तू ठहर ॥ <br/>ले गई है फिर वहां ,जो छोड़ आया था शहर <br/><br/>है खुदा भी एक ,एक ही आसमां , एक ही ज़मीं <br/>सरहदों पर किस लिए हमने मचाया है कहर <br/><br/>मारता आया है बरसों बाद भी अक्सर हमें ॥ <br/>घुल गया था जो दिलों में लकीरो का जहर <br/><br/>भूल कर भी भूल सकता हूँ भला कैसे उसे ,<br/>वो सताए है मुझे यादों में शामो - सहर <br/><br/>वायदा करके नहीं आये अभी तक क्यों भला ,<br/>यूँ अकेला बैठ कर कब तक गिनूँगा मैं पहर । <br/><br/>सूखी थी दिल की ज़मीं ,आबाद जो फिर से हुई ,<br/>यूँ लगे है छू गई इसको मुहब्बत की लहर ॥<br/> मौलिक / अप्रकाशित <br/><br/><br/><br/> <br/><br/></p>वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल...tag:www.openbooksonline.com,2015-03-21:5170231:BlogPost:6334462015-03-21T16:00:00.000ZNazeelhttp://www.openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p>२२१२ २२१२ २२१२</p>
<p>खामोश से रहने लगे हैं आजकल ॥ <br></br> हम रात भर जगने लगे हैं आजकल ॥</p>
<p></p>
<p>इन महफ़िलों को क्या हुआ किसको पता ,<br></br> सब चेहरे ढलने लगे है आजकल ॥</p>
<p></p>
<p>सदियों से लूटा है खुदा के नाम पे ,<br></br> तो कब नया ठगने लगे है आज कल ॥</p>
<p></p>
<p>निभते नहीं हैं जो सियासत में कभी ,<br></br> वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल ॥</p>
<p></p>
<p>कैसे कहें , कितना चाहें हैं उसे ,<br></br> बस सोच के डरने लगे हैं आज कल ॥</p>
<p></p>
<p>मालूम होता तो बता पाते तुझे ,<br></br> वो दूर क्यों हटने…</p>
<p>२२१२ २२१२ २२१२</p>
<p>खामोश से रहने लगे हैं आजकल ॥ <br/> हम रात भर जगने लगे हैं आजकल ॥</p>
<p></p>
<p>इन महफ़िलों को क्या हुआ किसको पता ,<br/> सब चेहरे ढलने लगे है आजकल ॥</p>
<p></p>
<p>सदियों से लूटा है खुदा के नाम पे ,<br/> तो कब नया ठगने लगे है आज कल ॥</p>
<p></p>
<p>निभते नहीं हैं जो सियासत में कभी ,<br/> वो वायदे गिनने लगे हैं आज कल ॥</p>
<p></p>
<p>कैसे कहें , कितना चाहें हैं उसे ,<br/> बस सोच के डरने लगे हैं आज कल ॥</p>
<p></p>
<p>मालूम होता तो बता पाते तुझे ,<br/> वो दूर क्यों हटने लगे हैं आज कल ॥</p>
<p></p>
<p>अब क्या कहें तुमको कि तेरे ही सबब ,<br/> हम पे सवाल उठने लगे है आज कल ॥</p>
<p>अप्रकाशित व् मौलिक</p>माना होता खुदा को एक हमनेtag:www.openbooksonline.com,2015-03-15:5170231:BlogPost:6306992015-03-15T14:30:00.000ZNazeelhttp://www.openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p>2222 1222 1222</p>
<p></p>
<p>लोगों को लूटने का फ़लसफ़ा होता ||<br></br> तो अपने नाम पर बाबा लगा होता ||</p>
<p></p>
<p>तूं तूं - मैं मैं न होती इस कदर हम में ,</p>
<p>तेरा मेरा अगर इक रास्ता होता ||</p>
<p></p>
<p>माना होता खुदा को एक हमने तो ,<br></br> फिर घर न कोई किसी का जला होता ||</p>
<p></p>
<p>उनको आया नज़र फर्के- लिबासां ही ,<br></br> काश !ये इक रंग का खूं भी दिखा होता ||</p>
<p></p>
<p>फिर मैं भी मानता परवाह है उसको ,<br></br> ग़र आंसू पोंछ बांहो में कसा होता ||</p>
<p></p>
<p>समझौता कर लिया हालात से…</p>
<p>2222 1222 1222</p>
<p></p>
<p>लोगों को लूटने का फ़लसफ़ा होता ||<br/> तो अपने नाम पर बाबा लगा होता ||</p>
<p></p>
<p>तूं तूं - मैं मैं न होती इस कदर हम में ,</p>
<p>तेरा मेरा अगर इक रास्ता होता ||</p>
<p></p>
<p>माना होता खुदा को एक हमने तो ,<br/> फिर घर न कोई किसी का जला होता ||</p>
<p></p>
<p>उनको आया नज़र फर्के- लिबासां ही ,<br/> काश !ये इक रंग का खूं भी दिखा होता ||</p>
<p></p>
<p>फिर मैं भी मानता परवाह है उसको ,<br/> ग़र आंसू पोंछ बांहो में कसा होता ||</p>
<p></p>
<p>समझौता कर लिया हालात से उसने ,<br/> हो जाती जीत ग़र ज़िद पे अड़ा होता||</p>
<p>.</p>
<p>मौलिक और अप्रकाशित</p>भूला कहाँ हूँ कच्चा घर अपने गाँव काtag:www.openbooksonline.com,2012-03-03:5170231:BlogPost:1953782012-03-03T13:30:37.000ZNazeelhttp://www.openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p><span class="font-size-5">भूला कहाँ हूँ कच्चा घर अपने गाँव का ||</span><br></br> <span class="font-size-5">जो बना था लकड़ी का दर अपने गाँव का ||</span></p>
<p><span class="font-size-5">थी वो महकती मिटटी और वो कच्ची गली ,</span><br></br> <span class="font-size-5">घूमे ख़्यालों में मंज़र अपने गाँव का ||</span></p>
<p><span class="font-size-5">आँखे हुई नम , देखकर पानी बरसात का ,</span><br></br> <span class="font-size-5">जो याद आये जोहड़ अक्सर अपने गाँव का ||</span></p>
<p><span class="font-size-5">जब…</span></p>
<p><span class="font-size-5">भूला कहाँ हूँ कच्चा घर अपने गाँव का ||</span><br/> <span class="font-size-5">जो बना था लकड़ी का दर अपने गाँव का ||</span></p>
<p><span class="font-size-5">थी वो महकती मिटटी और वो कच्ची गली ,</span><br/> <span class="font-size-5">घूमे ख़्यालों में मंज़र अपने गाँव का ||</span></p>
<p><span class="font-size-5">आँखे हुई नम , देखकर पानी बरसात का ,</span><br/> <span class="font-size-5">जो याद आये जोहड़ अक्सर अपने गाँव का ||</span></p>
<p><span class="font-size-5">जब गाँव छोड़ा तो वालिद समझाए मुझे ,</span><br/> <span class="font-size-5">झुकने न देना कभी तुम, सर अपने गाँव का ||</span></p>
<p><span class="font-size-5">कैसी हवा आई है ये मगरिब से "नजील ",</span><br/> <span class="font-size-5">मुझको सताए है अब डर अपने गाँव का ||</span><br/> <br/> <br/></p>वो कोशिश करते रहे रुसवा करने की ,tag:www.openbooksonline.com,2012-02-06:5170231:BlogPost:1872242012-02-06T14:40:49.000ZNazeelhttp://www.openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p><span style="color: #000000;"><strong>मांगी जो उनसे जिगर में पनाह हमने ||</strong></span><br></br> <span style="color: #000000;"><strong>देखें ऐसे जो किया हो गुनाह हमने ||</strong></span></p>
<p><span style="color: #000000;"><strong>आज तक न मिला मुहब्बत सा बहर गहरा,</strong></span><br></br> <span style="color: #000000;"><strong>देखे लाखों बहर गहरे अथाह हमने ||</strong></span></p>
<p><span style="color: #000000;"><strong>हमको उसने भी दिया ना जवाब कोई ,…</strong></span><br></br></p>
<p><span style="color: #000000;"><strong>मांगी जो उनसे जिगर में पनाह हमने ||</strong></span><br/> <span style="color: #000000;"><strong>देखें ऐसे जो किया हो गुनाह हमने ||</strong></span></p>
<p><span style="color: #000000;"><strong>आज तक न मिला मुहब्बत सा बहर गहरा,</strong></span><br/> <span style="color: #000000;"><strong>देखे लाखों बहर गहरे अथाह हमने ||</strong></span></p>
<p><span style="color: #000000;"><strong>हमको उसने भी दिया ना जवाब कोई ,</strong></span><br/> <span style="color: #000000;"><strong>जब भी मांगी ज़िन्दगी में सलाह हमने ||</strong></span></p>
<p><span style="color: #000000;"><strong>वो कोशिश करते रहे रुसवा करने की ,</strong></span><br/> <span style="color: #000000;"><strong>जिसको भी बनाया उंस का गवाह हमने ||</strong></span></p>
<p><span style="color: #000000;"><strong>अब अच्छी लगती नहीं ये महफ़िल हमको ,</strong></span><br/> <span style="color: #000000;"><strong>तन्हाइयों से किया है निकाह हमने ||</strong></span></p>
<p><span style="color: #000000;"><strong>लोग तरसते हैं जिसे देखने की खातिर ,</strong></span><br/> <span style="color: #000000;"><strong>किस्मत से पाया "नजील"अल्लाह हमने</strong></span></p>मेरे घर के नज़दीक दीवारों पे tag:www.openbooksonline.com,2012-01-31:5170231:BlogPost:1863302012-01-31T11:00:00.000ZNazeelhttp://www.openbooksonline.com/profile/NBNazeel
मेरे घर के नज़दीक दीवारों पे ||<br/>
आए नज़र मुझे तू इश्तिहारों पे ||<br/>
<br/>
है सच्चाई की शरीफ कूचों में भी ,<br/>
अक्सर बिकता है हुस्न चौबारों पे ||<br/>
<br/>
शायद सब जायज है इस सियासत में,<br/>
बस मुद्दे ही हैं किस्मत के मारो पे ||<br/>
<br/>
मुमकिन ना है अब वस्ल होगा उनसे ,<br/>
बसते हैं जो आजकल वो सितारों पे ||<br/>
<br/>
आखिर आए है मौसिमे -वीरानी ,<br/>
इस फिजा को महकाती इन बहारों पे ||
मेरे घर के नज़दीक दीवारों पे ||<br/>
आए नज़र मुझे तू इश्तिहारों पे ||<br/>
<br/>
है सच्चाई की शरीफ कूचों में भी ,<br/>
अक्सर बिकता है हुस्न चौबारों पे ||<br/>
<br/>
शायद सब जायज है इस सियासत में,<br/>
बस मुद्दे ही हैं किस्मत के मारो पे ||<br/>
<br/>
मुमकिन ना है अब वस्ल होगा उनसे ,<br/>
बसते हैं जो आजकल वो सितारों पे ||<br/>
<br/>
आखिर आए है मौसिमे -वीरानी ,<br/>
इस फिजा को महकाती इन बहारों पे ||तेरे बिना लगती है जिंदगी अधूरी सी |tag:www.openbooksonline.com,2012-01-21:5170231:BlogPost:1837652012-01-21T14:15:25.000ZNazeelhttp://www.openbooksonline.com/profile/NBNazeel
तेरे बिना लगती है जिंदगी अधूरी सी |<br />
अपनी बज़्म की है अब हर ख़ुशी अधूरी सी ||<br />
<br />
बन के अब्र कोई ,बरसाए बारिशे-उल्फत ,<br />
मुहब्बत के बिन तो है दिल की ज़मीं अधूरी सी ||<br />
<br />
इसको गुनाह समझ ,चाहे समझ खता इसको ,<br />
हमसफ़र के बिन लगती है खुदी अधूरी सी ||<br />
<br />
जाम छलके हैं चाहे रोज़ मैकदे में, पर ,<br />
तेरे बिन साकीया ,मैकशी अधूरी सी |<br />
<br />
मैं चाहता हूँ अक्सर देखना खुदा को ,<br />
जाने क्यों रह जाए बन्दगी अधूरी सी |<br />
<br />
उनके ख्यालों में खोकर "नजील" अब मै तो ,<br />
रात भर करूं सितारों की गिनती अधूरी सी ||
तेरे बिना लगती है जिंदगी अधूरी सी |<br />
अपनी बज़्म की है अब हर ख़ुशी अधूरी सी ||<br />
<br />
बन के अब्र कोई ,बरसाए बारिशे-उल्फत ,<br />
मुहब्बत के बिन तो है दिल की ज़मीं अधूरी सी ||<br />
<br />
इसको गुनाह समझ ,चाहे समझ खता इसको ,<br />
हमसफ़र के बिन लगती है खुदी अधूरी सी ||<br />
<br />
जाम छलके हैं चाहे रोज़ मैकदे में, पर ,<br />
तेरे बिन साकीया ,मैकशी अधूरी सी |<br />
<br />
मैं चाहता हूँ अक्सर देखना खुदा को ,<br />
जाने क्यों रह जाए बन्दगी अधूरी सी |<br />
<br />
उनके ख्यालों में खोकर "नजील" अब मै तो ,<br />
रात भर करूं सितारों की गिनती अधूरी सी ||मुस्काने की फितरत साथ दे अगरtag:www.openbooksonline.com,2012-01-17:5170231:BlogPost:1811282012-01-17T07:00:00.000ZNazeelhttp://www.openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p><span class="font-size-3"><strong><span style="color: #888888;">मुश्किल में एजद की रहमत साथ दे अगर |</span></strong></span><br></br> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #888888;">तो छू लें बुलंदी हम ,किस्मत साथ दे अगर ||</span></strong></span><br></br> <br></br> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #888888;">मिट जाएगा झूठ हमारी कायनात से ,</span></strong></span><br></br> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #888888;">बस हमको इक बार सदाकत साथ से अगर…</span></strong></span></p>
<p><span class="font-size-3"><strong><span style="color: #888888;">मुश्किल में एजद की रहमत साथ दे अगर |</span></strong></span><br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #888888;">तो छू लें बुलंदी हम ,किस्मत साथ दे अगर ||</span></strong></span><br/> <br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #888888;">मिट जाएगा झूठ हमारी कायनात से ,</span></strong></span><br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #888888;">बस हमको इक बार सदाकत साथ से अगर ,|</span></strong></span><br/> <br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #888888;">फिर गम आयेंगे पास हमारे भला क्यों ,</span></strong></span><br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #888888;">हमको मुस्काने की फितरत साथ दे अगर ||</span></strong></span><br/> <br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #888888;">उनकी खातिर तो हम लड लेंगे जहान से ,</span></strong></span><br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #888888;">बस उनको पाने की हसरत साथ दे अगर ||</span></strong></span><br/> <br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #888888;">नाकाम नहीं होगी अब कोशिश "नज़ील" की ,</span></strong></span><br/> <span class="font-size-3"><strong><span style="color: #888888;">जीतेंगे नफरत को, उल्फ़त साथ दे अगर ||</span></strong></span><br/></p>उन्हें देख कर सूरत पे जलाल आएtag:www.openbooksonline.com,2012-01-07:5170231:BlogPost:1785862012-01-07T06:30:00.000ZNazeelhttp://www.openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p><span class="font-size-3">जब भी तुझको पाने का ख्याल आए |</span><br></br> <span class="font-size-3">पाए किस तरह ज़हन में सवाल आए ||</span></p>
<p><span class="font-size-3">.<br></br></span></p>
<p><span class="font-size-3">छोड़ कर हिया वो आ लगे गले से ,</span><br></br> <span class="font-size-3">जब उनसे हम पूछने उनका हाल आए |</span></p>
<p><span class="font-size-3">.<br></br></span></p>
<p><span class="font-size-3">बिन उनके तो हम बैठे रहें बुझे से ,</span><br></br> <span class="font-size-3">उन्हें देख कर सूरत पे…</span></p>
<p><span class="font-size-3">जब भी तुझको पाने का ख्याल आए |</span><br/> <span class="font-size-3">पाए किस तरह ज़हन में सवाल आए ||</span></p>
<p><span class="font-size-3">.<br/></span></p>
<p><span class="font-size-3">छोड़ कर हिया वो आ लगे गले से ,</span><br/> <span class="font-size-3">जब उनसे हम पूछने उनका हाल आए |</span></p>
<p><span class="font-size-3">.<br/></span></p>
<p><span class="font-size-3">बिन उनके तो हम बैठे रहें बुझे से ,</span><br/> <span class="font-size-3">उन्हें देख कर सूरत पे जलाल आए |</span></p>
<p><span class="font-size-3">.<br/></span></p>
<p><span class="font-size-3">पकड़ा हाथ मिरा उसने बड़ी अदा से ,</span><br/> <span class="font-size-3">जब लौटाने हम उनका रुमाल आए|</span></p>
<p><span class="font-size-3">.<br/></span></p>
<p><span class="font-size-3">भूलें कैसे हम उनकी हसीन यादें ,</span><br/> <span class="font-size-3">पिछली यादों को दिल में संभाल आए |</span></p>
<p><span class="font-size-3">.<br/></span></p>
<p><span class="font-size-3">यारो मिल कर एजद से करें दुआ हम ,</span><br/> <span class="font-size-3">अपनी महफ़िल में रंग-ए-गुलाल आए |</span></p>
<p><span class="font-size-3">.<br/></span></p>
<p><span class="font-size-3">बहुत मंशा है मिलने की उन दोस्तों को,</span><br/> <span class="font-size-3">जो इस जिंदगी में बनके मिसाल आए ||</span></p>उनकी सुहबत में सुधरते चले गए ||tag:www.openbooksonline.com,2011-12-30:5170231:BlogPost:1770322011-12-30T08:26:16.000ZNazeelhttp://www.openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p><span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">जैसे -जैसे दिन गुजरते चले गए |</span><br></br> <span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">वो मेरे दिल में उतरते चले गए ||</span><br></br></p>
<p><span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">याद दिलाने की कोशिश की है मगर ,</span><br></br> <span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">वो इन वादों से मुकरते चले गए |</span><br></br></p>
<p><span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">औरों को देते थे सलाह, मगर खुद ,…</span><br></br></p>
<p><span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">जैसे -जैसे दिन गुजरते चले गए |</span><br/> <span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">वो मेरे दिल में उतरते चले गए ||</span><br/></p>
<p><span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">याद दिलाने की कोशिश की है मगर ,</span><br/> <span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">वो इन वादों से मुकरते चले गए |</span><br/></p>
<p><span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">औरों को देते थे सलाह, मगर खुद ,</span><br/> <span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">आशिक बन कर हम उजड़ते चले गए |</span><br/></p>
<p><span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">बिछुड़े तो उनके होंठ कांपते रहे ,</span><br/> <span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">आँखों से आंसू उभरते चले गए |</span><br/></p>
<p><span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">चाहे कितना बिगड़े ,मगर "नजील" हम ,</span><br/> <span class="font-size-5" style="color: #0000ff;">उनकी सुहबत में सुधरते चले गए ||</span></p>वो रूठ जाते हैं बेवजह हीtag:www.openbooksonline.com,2011-12-24:5170231:BlogPost:1759792011-12-24T10:30:00.000ZNazeelhttp://www.openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p>हर दिन ज़िन्दगी से जूझता हूँ |</p>
<p>हर मोड़ पर मंजिलें ढूढता हूँ ||</p>
<p>.</p>
<p>वो रूठ जाते हैं बेवजह ही ,</p>
<p>उनसे भला मैं कब रूठता हूँ |</p>
<p>.</p>
<p>मजबूरी का बनके पासबां मैं ,</p>
<p>अरमान अपने ही लूटता हूँ |</p>
<p>.</p>
<p>अपना गम छुपाने के लिए अब,</p>
<p>मैं हाल औरों से पूछता हूँ |</p>
<p>.</p>
<p>मैं आज नफरत के दौर में भी,</p>
<p>तेरी उल्फ़त कहाँ भूलता हूँ |</p>
<p>.</p>
<p>हर बार फिर उठता हूँ मैं ,चाहे ,</p>
<p>दिन में कई बारी टूटता हूँ ||</p>
<p>हर दिन ज़िन्दगी से जूझता हूँ |</p>
<p>हर मोड़ पर मंजिलें ढूढता हूँ ||</p>
<p>.</p>
<p>वो रूठ जाते हैं बेवजह ही ,</p>
<p>उनसे भला मैं कब रूठता हूँ |</p>
<p>.</p>
<p>मजबूरी का बनके पासबां मैं ,</p>
<p>अरमान अपने ही लूटता हूँ |</p>
<p>.</p>
<p>अपना गम छुपाने के लिए अब,</p>
<p>मैं हाल औरों से पूछता हूँ |</p>
<p>.</p>
<p>मैं आज नफरत के दौर में भी,</p>
<p>तेरी उल्फ़त कहाँ भूलता हूँ |</p>
<p>.</p>
<p>हर बार फिर उठता हूँ मैं ,चाहे ,</p>
<p>दिन में कई बारी टूटता हूँ ||</p>माहो-अख्तर के बिना आसमां हूँ मैं ,tag:www.openbooksonline.com,2011-12-15:5170231:BlogPost:1742722011-12-15T06:30:00.000ZNazeelhttp://www.openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p><span class="font-size-5" style="color: #ff0000;">माहो-अख्तर के बिना आसमां हूँ मैं ,</span><br></br> <span class="font-size-5" style="color: #ff0000;">.यादों की बिखरी हुई कहकशां हूँ मैं |</span><br></br> <br></br> <span class="font-size-5" style="color: #ff0000;">अपने खूं से लिखी हुई दास्ताँ हूँ मैं |</span><br></br> <span class="font-size-5" style="color: #ff0000;">पढने वालों के लिए इम्तहाँ हूँ मैं |</span></p>
<p>.</p>
<p><span class="font-size-5" style="color: #ff0000;">चाहे जिसको लूटना ये ज़हाँ सारा…</span></p>
<p><span style="color: #ff0000;" class="font-size-5">माहो-अख्तर के बिना आसमां हूँ मैं ,</span><br/> <span style="color: #ff0000;" class="font-size-5">.यादों की बिखरी हुई कहकशां हूँ मैं |</span><br/> <br/> <span style="color: #ff0000;" class="font-size-5">अपने खूं से लिखी हुई दास्ताँ हूँ मैं |</span><br/> <span style="color: #ff0000;" class="font-size-5">पढने वालों के लिए इम्तहाँ हूँ मैं |</span></p>
<p>.</p>
<p><span style="color: #ff0000;" class="font-size-5">चाहे जिसको लूटना ये ज़हाँ सारा ,</span><br/> <span style="color: #ff0000;" class="font-size-5">उस दौलत -ऐ-हुस्न का पासबाँ हूँ मैं |</span></p>
<p>.</p>
<p><span style="color: #ff0000;" class="font-size-5">छिप सकता है दर्द तेरा ,भला कैसे</span><br/> <span style="color: #ff0000;" class="font-size-5">तुम्हारे हर राज़ का राज़दां हूँ मैं |</span><br/> .</p>
<p><span style="color: #ff0000;" class="font-size-5">या एजद! जाऊं कहीं और मैं कैसे ,</span><br/> <span style="color: #ff0000;" class="font-size-5">जब तेरे दर का संगे- आस्तां हूँ मैं|</span></p>
<p>.</p>
<p><span style="color: #ff0000;" class="font-size-5">कोई भी आकर बसे तो ख़ुशी होगी,</span><br/> <span style="color: #ff0000;" class="font-size-5">बहुत वक्त से एक सूना मकां हूँ मैं |</span></p>
<p>.</p>
<p><span style="color: #ff0000;" class="font-size-5">माना लिखता हूँ सुख़न मैं बहुत अच्छा ,</span><br/> <span style="color: #ff0000;" class="font-size-5">फिर भी ग़ालिब -सा सुख़नवर कहाँ हूँ मैं |</span></p>
<p><br/></p>
<p></p>