मिलती है ख़ूए-यार[1] से नार[2] इल्तिहाब[3] में काफ़िर हूँ गर न मिलती हो राहत अ़ज़ाब[4] में कब से हूँ क्या बताऊँ जहां-ए-ख़राब में शब-हाए-हिज्र[5] को भी रखूँ गर हिसाब में ता फिर न इन्तज़ार में नींद आये उम्र भर आने का अ़हद[6] कर गये आये जो ख़्वाब में क़ासिद[7] के आते-आते ख़त इक और लिख रखूँ मैं जानता हूँ, जो वो लिखेंगे जवाब में मुझ तक कब उनकी बज़्म में आता था दौर-ए-जाम साक़ी ने कुछ मिला…