महद्धनं यदि ते भवेत्, दीनेभ्यस्तद्देहि।
विधेहि कर्म सदा शुभं, शुभं फलं त्वं प्रेहि ॥
(यदि आप बहुत धन वाले हैं तो उसे दीनों को दान करें I सदा शुभ कर्म करें I उसका फल आपके लिए भी शुभ होगा )
यह संस्कृत का 'दोहड़िका' छंद है जो पालि, प्राकृत और अपभ्रंश भाषा की सरणियों से होकर हिंदी में आकर दोहरा या दोहा हो गया । सच्चाई तो यह है कि अपभ्रंश के अधिकरण पर ही हिंदी का विकास हुआ I आचार्य हजारी प्र…