कौन जाने क्या हुआ है धरा क्यों है भीत।
हो रहा संक्रमित कैसे मौसमों का रीत।
गुम हुए हैं घरों के खग
छिपकली हैं शेष,
क्या पता कौए गए हैं
दूर कितने देश।
कब उगेंगे वृक्ष नूतन होगी कल - कल नाद
कैसे होगी पत्थरों पर हरीतिमा की शीत।
धूप की गर्मी बढ़ी है
सूखती है दूब,
आस का पंछी तड़पता
धैर्य जाता डूब।
क्षीण होती जा रही है अब दिनोदिन छाँव
कब सुनाई देगी वो ही मौसमी संगीत।
आ धमकती सुबह से ही
गर्म किरणें रोज,
कु…