१- अच्छे दिन !
सुबह-शाम !
घर-चौबारे आशंकित
प्रतीक्षारत सहेजते हैं...
दीप-बाती और तेल
आक्रोशित तम व्यग्रतावश बिखेर देता
असंख्य नक्षत्र....
भद्रा से प्रभावित
आर्द्रा-रोहिणी
व्यथित कृष्ण-ध्रुव की राह तकती
चांद, बादलों के घात से दु:खी
हवायें दृश्य बदल देतीं
बसंत के इशारों पर पतझड़
होलिका दहन कर बिखेरते
रोशनी,
चांदनी में लम्बी-लम्बी छाया...
ठूंठ वृक्ष,
नंगी टहनियां सब के सब...
खेलते रक्त की होली.…