2122 1212 22/112
एक पत्थर सा बस पड़ा हूँ मैं हूँ मुसाफ़िर या रास्ता हूँ मैं (1)
अब कोई ढूँढता नहीं मुझकोएक मुद्दत से लापता हूँ मैं (2)
ज़िंदगी आजकल जहन्नम है ख़्वाब जन्नत के देखता हूँ मैं (3)
छोड़ कर सब चले गए हैं या भीड़ में फिर से खो गया हूँ मैं (4)
अब नहीं इंतिज़ार तेरा पर रास्ता रोज़ देखता हूँ मैं (5)
हर तरफ है अजीब वीरानी खुद में शायद उजड़ रहा हूँ मैं (6)
जिसने महरूम ही रखा सबको क्यों वफा उनस…