2122/1212/22 (112)
रोज़ देता हूँ बद-दुआ तुमकोग़म-ज़दा ही रखे ख़ुदा तुमको[1]
जान-ए-जाँ मौसम-ए-ख़िज़ाँ में भीहमने रक्खा हरा भरा तुमको[2]
बे-तरह चीख़ कर लिखा हमनेअपनी ग़ज़लों में बे-वफ़ा तुमको[3]
सुर्ख़ आँखें गवाही देती हैकल की शब भी थी रत-जगा तुमको[4]
हिज्र ने हमको बे-क़रार कियामिल गया फ़ासलों से क्या तुमको[5]
बीच दरिया में हाथ छोड़ दियाडूब जाऊँगा इल्म था तुमको[6]
अपनी मंज़िल की जब ख़बर है मुझेक्यूँ भरोसा न…