"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-116

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-116

विषय - "हम और हमारे"

आयोजन अवधि- 13 जून 2020, दिन शनिवार से 14 जून 2020, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 13 जून 2020, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक
ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम परिवार

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    pratibha pande

    दुनिया को देख ले तू , चश्मा जरा बदलकर
    खुद में गुमा हुआ सा , 
     क्यों  द्वीप बन रहा है
     गंभीर इक मुखौटा, 
    क्यों मुख पे तन रहा है
    तुझको गुरूर है  कि , 
    पूरा है तू स्वयं में
    तेरी समझ पे ईश्वर 
    दिल खोल हँस रहा है
    नभ से वो देखो आई, 
    खुश धूप है निकलकर
    दुनिया को देख ले तू, चश्मा जरा बदलकर
    '
    मैं' से बनेगा 'हम'और,
     हम से बनेगा हम सब
    जग जायगा उसी दिन,
    पर होगा ये बता कब
    तुझको दुलारने को, 
    ईश्वर खड़ा  हुआ है
    तूने ही मन के दर पर  
    ताला जड़ा हुआ है
    कब किरकिरी हटेगी
    नयनों की पूरी धुलकर
    दुनियाँ को देख ले तू, चश्मा जरा बदलकर
    **********************************
    मौलिक व अप्रकाशित
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    अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

    ज्ञान मिलेगा सुन आत्मा की, नश्वर जग में हमारा कौन।

    यही प्रश्न हम सबसे पूछें, इस दुनिया में तुम्हारा कौन॥

    आत्म बोध तब हो जाएगा, झूठे हैं सब रिश्ते नाते।

    जिन्हें पकड़कर हम बैठे थे, छोड़ गए सब हँसते गाते॥

     

    भूलेंगे ना सीख हमारी, बच्चे शायद कभी न पाते।

    और सभी को दे जाएँगे, कुछ यादें हम जाते जाते॥

     

    सदा के लिए नश्वर जग में, ना कोई ठौर ठिकाना है।

    तोड़ सभी से रिश्ते नाते, एक दिवस सबको जाना है॥

    ..................................

    [मौलिक एवं अप्रकाशित ]

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    Dayaram Methani

    गज़ल
    ....
    हम और हमारे का माना कि जमाना है
    पर फ़र्ज हमारा अब कोरोना भगाना है
    ....
    हालात वतन के ये हमने ही बिगाड़े है
    अब हमको ही खुशियों की सौगात भी लाना है
    ....
    कोरोना महामारी है ढीठ बहुत यारों
    चुपचाप नहीं बैठे हम इसको झुकाना है
    ....
    बिन प्यार यहां जीना मुश्किल तो कहाँ जायें
    तकरार भुला कर अपने दिल को मनाना है
    ....
    इन्सान लड़ेगा कब तक कौन बचायेगा
    अभिमान मिटाकर हमको प्यार जगाना है
    ....
    ( मौलिक एवं अप्रकाशित )
    - दयाराम मेठानी

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