दो लघु-कवितायें — डॉo विजय शंकर

सच्चे मन से ईश्वर

मंदिर से अधिक

अस्पतालों में

याद किया जाता है l 

जो दृश्य सिनेमा हाल में

मन को दुखी , द्रवित कर

अँधेरे में,आँखे नाम कर जाता है

वही दृश्य हमें दिन की

रौशनी में आस पास

दिखाई नहीं दे पाता है ,

आँखें नम कहाँ  से हों

बाहर की दौड़ भाग में

पसीना तक सूख जाता है। .....1.

आज हर आदमी ज्ञानी है ,

हर ज्ञानी ज्ञान बाँट रहा है ,

मतलब  , हर कोई

अपना अपना पक्ष

प्रस्तुत कर रहा है ,

पक्ष भी क्या , अपना

अपना स्वार्थ बाँट रहा है।.....2.

मौलिक एवं अप्रकाशित

  • लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

    आ. भाई विजय शंकर जी, सादर अभिवादन । अच्छी कवितायें हुई हैं।हार्दिक बधाई ।

  • Dr. Vijai Shanker

    आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी ,लघु-कविताओं को स्वीकार करने के लिए आभार एवं धन्यवाद , सादर।