(221 2121 1221 212)
उकता गया हूँ इनसे मेरे यार कम करो
ख़ालिस की है तलब ये अदाकार कम करो
आगे जो सबसे है वो ये आदेश दे रहा
आराम से चलो सभी रफ़्तार कम करो
वो हमसे कह रहे हैं कि मसनद बड़ी बने
हम उनसे कह रहे हैं कि आकार कम करो
जो मेरे दुश्मनों को गले से लगा रहा
मुझसे कहा कि दोस्तोंं से प्यार कम करो
अपने घरों में क़ैद हैं , हर रोज़ छुट्टियाँ
किससे कहें कि अब तो ये इतवार कम करो
बाज़ार में तो सुस्ती-सी छाई है इन दिनों
फ़रमान है कि आज से व्यापार कम करो
लेती नहीं हैंं नाम ये कम होने का कभी
अपनी ज़रूरतों का ही अंबार कम करो
*मौलिक एवं अप्रकाशित
सालिक गणवीर
आदरणीय रवि भसीन 'शाहिद' साहिब
आदाब.
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ. आपकी इस्लाह पर आपका सुझाया हुआ मतले का सानी मिसरा बदल दिया है, इसके लिए आपको अलग से शुक्रिया. सादर
Jul 13, 2020
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी
आदरणीय सालिक गणवीर जी, आपकी ज़र्रा नवाज़ी और मान देने के लिए शुक्रिया।
जनाब आख़िरी मिसरे में शायद भूले से "ही" अतिरिक्त टाईप हो गया है, जिस वजह से मिसरा बह्र में नहीं रहा। देखियेगा।
Jul 13, 2020
सालिक गणवीर
आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब
आदाब
ऐसा कह कर मुझे शर्मिंदा न करें जनाब.बड़ों का आदर करना हमारी संस्कृति है आदरणीय.जाने अंजाने कुछ गुस्ताखी हो गई हो तो मुआफी दरकार है।
Jul 13, 2020