मापनी १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
बहुत आसान है धन के नशे में चूर हो जाना,
बड़ा मुश्किल है दिल का प्यार से भरपूर हो जाना.
अगर वो चाहता कुछ और होना तो न था मुश्किल,
मगर मजनूँ को भाया इश्क में मशहूर हो जाना.
भले दो गज जमीं थी गॉंव में अपने मगर खुश थे,
नगर में रास कब आया हमें मजदूर हो जाना.
कभी तो आदमी को नारियल होना जरूरी है,
हमें तो पड़ गया महँगा मियाँ अंगूर हो जाना.
मेरी उल्फत के गुलशन को हिफाज़त की जरूरत है,
जिया में तुम छुपा रखना भले ही दूर हो जाना.
इबादत है मुहब्बत है यही मकसद यही मंजिल,
है तुमसे माँग मेरी माँग का सिंदूर हो जाना.
न हो आशीष वीणावादिनी का तो असम्भव है,
किसी का जायसी तुलसी कबीरा सूर हो जाना.
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
नाथ सोनांचली
आद0 बसंत कुमार शर्मा जी सादर अभिवादन।अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई निवेदित करता हूँ। सादर
Jul 18, 2020
बसंत कुमार शर्मा
आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी सादर नमस्कार
आपकी मनभावन प्रतिक्रिया पाकर अभिभूत हूँ ,
जी नुक्ते मेर्री आदत में अभी नहीं आये हैं, इसी तरह आपके मार्गदर्शन से सीख जाऊंगा, सादर स्नेह बनाये रखें , सादर नमन
Jul 21, 2020
बसंत कुमार शर्मा
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सादर नमस्कार
आपकी हौसलाफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
Jul 21, 2020