था सब आँखों में मर्यादा का पानी याद है हमको
पुराने गाँव की अब भी कहानी याद है हमको।
भले खपरैल छप्पर बाँस का घर था हमारा पर
वहीं पर थी सुखों की राजधानी याद है हमको
वो भूके रहके ख़ुद महमान को खाना खिलाते थे
ग़रीबों के घरों की मेज़बानी याद है हमको
हमारे गाँव की बैठक में क़िस्सा गो सुनाता था
वही हामिद के चिमटे की कहानी याद है हमको
सलोना और मनभावन शरारत से भरा बचपन
अभी तक मस्त अल्हड़ ज़िंदगानी याद है हमको
हमें सोने से पहले रात को अम्मा बताती थी
कि रहती चाँद पर इक बूढ़ी नानी, याद है हमको
सितारों की लिए बारात सज के चाँद आता जब
महकती गाँव की वो रात रानी याद है हमको
(मौलिक व अप्रकाशित)
नाथ सोनांचली
आद0 अमीरुद्दीन 'अमीर' जी सादर अभिवादन। आपकी दाद मिली। ग़ज़ल पुरस्कृत हो गयी। बहुत बहुत आभार आपका
Jul 13, 2020
बसंत कुमार शर्मा
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सादर नमस्कार , लाजबाब मन मुग्ध करने वाली ग़ज़ल के लिए बधाई आपको
महकती गाँव की वो रात रानी याद है हमको
Jul 13, 2020
नाथ सोनांचली
आद0 बसन्त कुमार शर्मा जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया का दिल से आभार
Jul 14, 2020