All Discussions Tagged 'modi' - Open Books Online2024-03-28T15:15:27Zhttp://www.openbooksonline.com/group/sarokaar/forum/topic/listForTag?tag=modi&feed=yes&xn_auth=noसामाजिक न्याय की तरफ एक ठोस कदमtag:www.openbooksonline.com,2019-01-15:5170231:Topic:9696702019-01-15T15:03:44.239Zdr neelam mahendrahttp://www.openbooksonline.com/profile/drneelammahendra
<p><strong>सामाजिक न्याय की तरफ एक ठोस कदम</strong></p>
<p><strong><a href="https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/767418135?profile=original" rel="noopener" target="_blank"><img class="align-full" src="https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/767418135?profile=RESIZE_710x"></img></a></strong></p>
<p>भारत की राजनीति का वो दुर्लभ दिन जब विपक्ष अपनी विपक्ष की भूमिका चाहते हुए भी नहीं नहीं निभा पाया और न चाहते हुए भी वह सरकार का समर्थन करने के लिए मजबूर हो गया, इसे क्या कहा जाए? कांग्रेस यह कह कर क्रेडिट लेने की असफल कोशिश कर रही है कि बिना उसके समर्थन के भाजपा इस बिल को पास नहीं…</p>
<p><strong>सामाजिक न्याय की तरफ एक ठोस कदम</strong></p>
<p><strong><a href="https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/767418135?profile=original" target="_blank" rel="noopener"><img src="https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/767418135?profile=RESIZE_710x" class="align-full"/></a></strong></p>
<p>भारत की राजनीति का वो दुर्लभ दिन जब विपक्ष अपनी विपक्ष की भूमिका चाहते हुए भी नहीं नहीं निभा पाया और न चाहते हुए भी वह सरकार का समर्थन करने के लिए मजबूर हो गया, इसे क्या कहा जाए? कांग्रेस यह कह कर क्रेडिट लेने की असफल कोशिश कर रही है कि बिना उसके समर्थन के भाजपा इस बिल को पास नहीं करा सकती थी लेकिन सच्चाई यह है कि बाज़ी तो मोदी ही जीतकर ले गए है।</p>
<p>“आरक्षण", देश के राजनैतिक पटल पर वो शब्द,जो पहले एक सोच बना फिर उसकी सिफारिश की गई जिसे,एक संविधान संशोधन बिल के रूप में प्रस्तुत किया गया, और अन्ततः एक कानून बनाकर देश भर में लागू कर दिया गया। </p>
<p>आजाद भारत के राजनैतिक इतिहास में 1990 और 2019 ये दोनों ही साल बेहद अहम माने जाएंगे। क्योंकि जब 1990 में तत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने देश भर में भारी विरोध के बावजूद मंडल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर "जातिगत आरक्षण" को लागू किया था तो उनका यह कदम देश में एक नई राजनैतिक परंपरा की नींव बन कर उभरा था। <strong>समाज के बंटवारे पर आधारित</strong><strong> </strong><strong>जातीगत विभाजित वोट बैंक की राजनीति की नींव।</strong></p>
<p>इस लिहाज से 8 जनवरी 2019 की तारीख़ उस ऐतिहासिक दिन के रूप में याद की जाएगी जिसने उस राजनीति की नींव ही हिला दी।</p>
<p>क्योंकि मोदी सरकार ने ना केवल संविधान में संशोधन करके, आर्थिक आधार पर आरक्षण दिए जाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है बल्कि भारत की राजनीति की दिशा बदलने की एक नई नींव भी रख दी है। यह जातिगत वोटबैंक आधारित राजनीति पर <strong>केवल राजनैतिक ही नहीं कूटनीतिक विजय भी है। इसे</strong><strong> </strong><strong>मोदी की कूटनीतिक जीत ही कहा जाएगा कि जिस वोटबैंक की राजनीति सभी विपक्षी दल अब तक कर रहे थे</strong><strong>,</strong> <strong>आज खुद उसी का शिकार हो गए।</strong> यह वोटबैंक का गणित ही था कि देश में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए 10% आरक्षण लागू करने हेतु 124 वाँ संविधान संशोधन विधेयक राजयसभा में भाजपा अल्पमत में होते हुए भी पारित करा लें जाती है। मोदी सरकार की हर नीति का विरोध करने वाला विपक्ष, मोदी को रोकने के लिए अपने अपने विरोधों को भुलाकर महागठबंधन तक बना कर एक होने वाला विपक्ष आज समझ ही नहीं पा रहा कि वो मोदी के इस दांव का सामना कैसे करे। </p>
<p>अब खास बात यह है कि अब आरक्षण का लाभ किसी जाति या धर्म विशेष तक सीमित न होकर हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई पारसी और अन्य अनारक्षित समुदायों को मिलेगा। यह देश के समाज की दिशा और सोच बदलने वाला वाकई में एक महत्वपूर्ण कदम है।</p>
<p>यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस देश में हर विषय पर राजनीति होती है। शायद इसलिए कुछ लोगों का कहना है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का यह फैसला एक राजनैतिक फैसला है जिसे केवल आगामी लोकसभा चुनावों में राजनैतिक लाभ उठाने के उद्देश्य से लिया गया है। तो इन लोगों से एक प्रश्न कि देश के वर्तमान परिदृश्य में कौन सा ऐसा राजनैतिक दल है जो राजनैतिक नफा नुकसान देखे बिना कोई कदम उठाना तो दूर की बात है,एक बयान भी देता है? कम से कम वर्तमान सरकार का यह कदम विपक्षी दलों के उन गैर जिम्मेदाराना कदमों से तो बेहतर ही है जो देश को धर्म जाति सम्प्रदाय के नाम पर बांट कर समाज में वैमनस्य बढ़ाने का काम करते हैं और नफरत की राजनीति करते हैं। याद कीजिए 1990 का वो साल जब ना सिर्फ हमारे कितने जवान बच्चे आरक्षण की आग में झुलसे थे बल्कि आरक्षण के इस कदम ने हमारे समाज को भी दो भागों में बांट कर एक दूसरे के प्रति कटुता उत्पन्न कर दी थी। इसका स्पष्ट उदाहरण हमें तब देखने को मिला था जब अभी कुछ माह पहले ही सरकार ने एट्रोसिटी एक्ट में बदलाव किया था और देश के कई हिस्से हिंसा की आग में जल उठे थे।</p>
<p>कहा जा सकता है कि <strong>जाति गत भेदभाव की सामाजिक खाई कम होने के बजाए बढ़ती ही जा रही थी।</strong></p>
<p>लेकिन अब जाति या सम्प्रदाय सरीखे सभी भेदों को किनारे करते हुए केवल आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण ने सामाजिक न्याय की दिशा में एक नई पहल का आगाज़ किया है। समय के साथ चलने के लिए समय के साथ बदलना आवश्यक होता है।</p>
<p>आज जब आरक्षण की बात हो रही हो तो यह जानना भी जरूरी है कि आखिर इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी।</p>
<p> दरअसल जब देश में आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई थी तो उसके मूल में समाज में पिछड़े वर्गों के साथ होने वाले अत्याचार और भेदभाव को देखते हुए उनके सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए मंडल आयोग द्वारा कुछ सिफारिशें की गई थीं जिनमें से कुछ एक को संशोधन के साथ अपनाया गया था। लेकिन आज इस प्रकार का सामाजिक भेदभाव और शोषण भारतीय समाज में लगभग नहीं के बराबर है। और आज आरक्षण जैसी सुविधा के अतिरिक्त देश के इन शोषित दलित वंचित वर्गों के साथ किसी भी प्रकार के भेदभाव अथवा अन्याय को रोकने के लिए अनेक सशक्त एवं कठोर कानून मौजूदा न्याय व्यवस्था में लागू हैं जिनके बल पर सामाजिक पिछड़ेपन की लड़ाई हम लोग काफी हद तक जीत चुके हैं। <strong>अब लड़ाई है शैक्षणिक एवं आर्थिक पिछड़ेपन की</strong>। इसी बात को ध्यान में रखते हुए सरकार ने मौजूदा आरक्षण व्यवस्था से छेड़छाड़ नहीं करते हुए इसकी अलग व्यवस्था की है जो अब समाज में आरक्षण के भेदभाव को ही खत्म कर के एक सकारात्मक माहौल बनाने में निश्चित रूप से मददगार होगा। चूंकि <strong>अब समाज का हर वर्ग ही आरक्षित हो गया है तो आए दिन समाज के विभिन्न वर्गों द्वारा आरक्षण की मांग और राजनीति पर भी लगाम लगेगी।</strong></p>
<p>और अब आखिरी बात जो लोग इसका विरोध यह कहकर कर रहे हैं कि सरकार के इस कदम का कोई मतलब नहीं है क्योंकि नौकरियाँ ही नहीं हैं उनसे एक सवाल। जब मराठा, जाट, पाटीदार,मुस्लिम, आदि आरक्षण की मांग यही लोग करते हैं तब इनका यह तर्क कहाँ चला जाता है?</p>
<p>डॉ नीलम महेंद्र</p>
<p><strong>मौलिक व अप्रकाशित</strong></p> बांग्लादेश चुनाव परिणाम भाजपा के लिए केस स्टडी हो सकते हैंtag:www.openbooksonline.com,2019-01-04:5170231:Topic:9685392019-01-04T07:12:39.639Zdr neelam mahendrahttp://www.openbooksonline.com/profile/drneelammahendra
<p><strong>बांग्लादेश चुनाव परिणाम भाजपा के लिए केस स्टडी हो सकते हैं</strong></p>
<p><strong><a href="https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/648042889?profile=original" rel="noopener" target="_blank"><img class="align-full" src="https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/648042889?profile=original"></img></a></strong></p>
<p>वैसे तो आने वाला हर साल अपने साथ उत्साह और उम्मीदों की नई किरणें ले कर आता है, लेकिन यह साल कुछ खास है। क्योंकि आमतौर पर देश की राजनीति में रूचि न रखने वाले लोग भी इस बार यह देखने के लिए उत्सुक हैं कि 2019 में राजनीति का ऊँठ किस करवट बैठेगा। खास तौर पर…</p>
<p><strong>बांग्लादेश चुनाव परिणाम भाजपा के लिए केस स्टडी हो सकते हैं</strong></p>
<p><strong><a href="https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/648042889?profile=original" target="_blank" rel="noopener"><img src="https://storage.ning.com/topology/rest/1.0/file/get/648042889?profile=original" class="align-full"/></a></strong></p>
<p>वैसे तो आने वाला हर साल अपने साथ उत्साह और उम्मीदों की नई किरणें ले कर आता है, लेकिन यह साल कुछ खास है। क्योंकि आमतौर पर देश की राजनीति में रूचि न रखने वाले लोग भी इस बार यह देखने के लिए उत्सुक हैं कि 2019 में राजनीति का ऊँठ किस करवट बैठेगा। खास तौर पर इसलिए कि 2019 की शुरुआत दो ऐसी महत्त्वपूर्ण घटनाओं से हुई जिसने अवश्य ही हर एक का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया होगा। पहली घटना,साल के पहले दिन मीडिया को दिया प्रधानमंत्री मोदी का साक्षात्कार जिसमें वे स्वयं को एक ऐसे राजनेता के रूप में व्यक्त करते दिखाई दिए जो संवैधानिक और कानूनी प्रक्रिया के साथ ही लोकतंत्र की रक्षा के लिए मजबूत विपक्ष के होने में यकीन करते दिखे।इस दौरान वे अपनी सरकार की नीतियों की मजबूत रक्षा और विपक्ष का राजनैतिक विरोध पूरी "विनम्रता" के साथ करते दिखाई दिए। कहा जा सकता है कि वो अपनी आक्रामक शैली के विपरीत डिफेंसिव दिखाई दिए।</p>
<p>और दूसरी घटना थी बांग्लादेश के चुनाव परिणाम। </p>
<p>दरअसल अपने पड़ोसी देश बांग्लादेश के हाल के चुनाव नतीजों में शेख हसीना को लगातार तीसरी बार मिली जबरदस्त कामयाबी ने भारतवासियों की ना सिर्फ कुछ पुरानी यादों को ताज़ा कर दिया बल्कि शायद इस देश के आम आदमी से लेकर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व तक को भी काफी हद तक सोचने के लिए मजबूर किया होगा। क्योंकि लगातार 10 साल तक शासन करने के बाद, विपक्ष के तमाम आरोपों और उनकी कुछ हद तक अलोकतांत्रिक कार्यशैली ( दबंग सत्तात्मक भी कहा जा सकता है) के बावजूद, इन चुनावों में बांग्लादेश की आवाम ने जिस प्रकार शेख हसीना पर अपना भरोसा जताया है और वहाँ विपक्ष का एक प्रकार से सफाया हो गया है, यह भाजपा और विशेष रूप से नरेंद्र मोदी के लिए एक केस स्टडी हो सकती है।क्योंकि जिस प्रकार वहाँ के लोगों को आज की स्थिति में शेख हसीना के अलावा अपने देश के प्रधानमंत्री के रूप में कोई अन्य चेहरा दूर दूर तक दिखाई नहीं दे रहा, उसी प्रकार भारत में भी 2014 के चुनाव ही "मोदीमय" नहीं थे बल्कि उन आम चुनावों के बाद अनेक राज्यों से आने वाले लगभग हर चुनाव परिणाम पूरे देश में मोदी लहर पर अपनी मुहर लगते जा रहे थे।ऐसा लगने लगा था कि मोदि के विजय रथ को रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। क्योंकि नोटबन्दी और जीएसटी जैसे कठोर निर्णयों के बावजूद जिस प्रकार उत्तरप्रदेश और गुजरात में भाजपा का परचम खुलकर लहराया और अन्य राज्यों में सहयोगियों के साथ मिलकर, उसने जहाँ एक तरफ भाजपा के हौसले बुलंद किए वहीं कांग्रेस समेत समूचे विपक्ष को हैरानी और हताशा के उस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया जहाँ उन्हें यह एहसास होने लगा कि अपने अपने विरोधों को भुलाकर अपने विरोधियों के साथ मिलकर ही उनके लिए "मोदी" नाम की सुनामी का सामना करने का एकमात्र विकल्प है। </p>
<p> लेकिन फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि कल तक जो 2019 भाजपा के लिए एक आसान लक्ष्य और विपक्ष के लिए एक असम्भव चुनौती के रूप में एकतरफा खेल दिखाई दे रहा था आज एक रोमांचक युद्ध बन गया? भाजपा का गढ़ कहे जाने वाले तीन राज्य भाजपा के हाथों से फिसल गए। <strong>इन राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के बीच केवल सत्ता का हस्तांतरण का नहीं बल्कि आत्मविश्वास का भी हस्तांतरण हुआ।</strong> 2014 के बाद पहली बार मोदी आक्रामक नहीं आत्मरक्षा की मुद्रा में और राहुल आत्मविश्वास से भरे एक नए अवतार में दिखाई दिए।</p>
<p>तो जनाब समझने वाली बात यह है कि कुछ भी "अचानक" नहीं होता। ना "मोदी लहर" अचानक बनी थी और ना ही राहुल का यह नया अवतार। भाजपा जिस मोदी लहर पर सवार होकर सत्ता पर काबिज हुई थी, उस मोदी को पहले एक लहर और फिर सुनामी बनने में 14 साल लगे थे। जी हाँ, और उसकी नींव पड़ी थी 2001 में जब वे पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे। तब देश तो छोड़ो गुजरात में भी वो कोई बड़ा नाम नहीं थे। लेकिन ये उनकी कार्यशैली ही थी जिसने गुजरात के लोगों को लगातार उन्हें ही मुख्यमंत्री चुनने के लिए विवश कर दिया। और वो मोदी का गुजरात मॉडल था जिसने उनकी कीर्ति पूरे देश में फैलाई। इसी गुजरात मॉडल और मोदी की छवि को भाजपा ने उसे पूरे देश के सामने रखकर 2014 का दाँव खेला जो सफल भी रहा। भाजपा ही नहीं देश को उम्मीद ही नहीं विश्वास था कि गुजरात की तर्ज पर अब दिल्ली की कुर्सी भी 2025 तक बुक है। लेकिन आज वस्तुस्थिति यह है कि 2019 की राह भी कठिन लग रही है। आखिर क्यों? इसका विश्लेषण हर राजनैतिक पंडित अपने अपने तरीके से कर रहा है। कोई वोट बैंक के गणित को दोष दे रहा है तो कोई मोदी सरकार की नीतियों को। कोई विपक्षी एकता को दोष दे रहा है तो कोई भीतरघात को। कुल मिलाकर कारण बाहर ही ढूंढे जा रहे हैं भीतर नहीं। जबकि अपनी हार को जीत में वो ही बदल सकता है जो कमियाँ खुद में ढूंढता है परिस्थितियों में नहीं। अब समय कम है लेकिन कुछ बातें जो भाजपा से ज्यादा मोदी जी को समझनी आवश्यक हैं,</p>
<p>1,यह बात सही है कि भाजपा से वोटर का मोहभंग हुआ है</p>
<p>2,चूंकि 2014 में लोगों ने मोदी को चुना था, भाजपा को नहीं इसलिए यह मोहभंग मोदी से है भाजपा से नहीं।</p>
<p>3,लेकिन <strong>इसका कारण राजनैतिक से अधिक</strong><strong> </strong><strong>मनोवैज्ञानिक है</strong></p>
<p>4, क्योंकि जब किसी लहर के बहाव में बहकर लोग मतदान करते हैं तो वो भावना से प्रेरित होता है राजनीति से नहीं</p>
<p>5, ऐसे में अधिकांश वो दल एकतरफा जीत हासिल करता है जिसके पक्ष में लहर होती है जैसे इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस को सहानुभूति लहर का फायदा मिला था और उसने स्पष्ठ बहुमत प्राप्त किया था</p>
<p>6, 2014 में देश में मौजूद मोदी लहर की भावना से भाजपा सत्ता में आई</p>
<p>7 लोगों ने मोदी की आक्रामक एवं एक कट्टर हिंदूवादी कर्मठ प्रशासक छवि को वोट दिया था जो उन्होंने पहले 2001 में गुजरात को भयानक भूकंप से उपजी तबाही और फिर गुजरात को 2002 के दंगों के बाद उपजी अराजकता से उबार कर देश के मानचित्र पर तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था वाला प्रदेश बनाकर कमाई थी।</p>
<p>8,लेकिन केंद्र में आते ही मोदी ने पहली गलती अपनी छवि बदलने का प्रयास कर के की। पूरे देश के जनमानस में अपने लिए स्वीकार्यता बनाने के उद्देश्य से "सबका साथ सबका विकास" के नारे से अपनी कट्टर हिंदूवादी की छवि से बाहर निकलने का प्रयास किया। इसके बजाए अगर वो अपनी "उसी छवि के साथ" सबका विकास करते तो उन्हें कहीं बेहतर परिणाम मिलते।</p>
<p>9,देश ने जब मोदी को चुना था तो देश की उनसे बहुत अपेक्षाएँ थीं जिन्हें उन्होंने भी "अच्छे दिन आने वाले हैं" के नारे से काफी बढ़ा दिया था। </p>
<p>10,लेकिन उन्होंने दूसरी गलती यह की, कि <strong>लोगों की अपेक्षाएं पूरी करने के बजाए उनसे अपेक्षाएँ करने लगे</strong> (कि वे उनके कठोर निर्णयों में उनका साथ दें)।</p>
<p>11, लोगों ने भी विपक्ष की आशा के विपरीत नोटबन्दी और जीएसटी जैसे कठोर निर्णयों के बावजूद मोदी की झोली उत्तरप्रदेश हरियाणा और गुजरात में भर दी। देश मोदी की अपेक्षाओं पर खरा उतरता गया और मोदी मदमस्त होते गए। लेकिन यह भूल गए कि उन्हें भी देश की अपेक्षाओं पर खरा उतरना है।</p>
<p>12, वो अपने पारंपरिक वोट बैंक को टेकेन फ़ॉर ग्रांटेड लेते गए, यह उनकी तीसरी और सबसे बड़ी भूल थी।</p>
<p>13, जो भाजपा कहती थी कि मुस्लिम उसे कभी वोट नहीं देते और जिसके वोट के बिना वो सत्ता में आई वो उस वोट बैंक में सेंध डालने की नीतियाँ बनाने में इतनी मशगूल हो गई कि अपने चुनावी मेनिफेस्टो को ही भूल गयी। देश यूनिफॉर्म सिविल कोड, 35A ,370, कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास जैसे फैसलों का इंतजार करता रहा और यह तीन तलाक की लड़ाई लड़ते रहे।</p>
<p>14, जिस मिडिल क्लास के दम पर भाजपा सत्ता में आई उसके फाइनेंस मिनिस्टर ने अपने पहले ही बजट में उसके सपने यह कहकर तोड़ दिए कि मध्यम वर्ग को अपना ख्याल खुद ही रखना होगा</p>
<p>15 जो सवर्ण समाज उसका कोर वोटबैंक था उसे एट्रोसिटी एक्ट का तोहफा दिया।</p>
<p>16, मोदी यह अच्छी तरह जानते हैं कि भारत का माध्यम वर्ग ही वो एकमात्र ऐसा वोटबैंक हैं जो नैतिक मूल्यों के साथ जीता है और बिकाऊ नहीं है (जबकि उच्च वर्ग की नैतिकता वहाँ होती है जहाँ उनके स्वार्थ की पूर्ति होती है)। शायद इसलिए उन्होंने इसका सबसे ज्यादा फायदा भी उठाया लेकिन अब नुकसान भी उठा रहे हैं। </p>
<p>17, और सबसे बढ़ी भूल, मोदी समझ नहीं पाए कि जिन "दलितों शोषितों वंचितों" का जिक्र वो अपने हर भाषण में करते हैं और जिनके लिए वे उज्ज्वला सौभाग्य आयुष्मान प्रधानमंत्री आवास शौचालय निर्माण जैसी योजनाएं लेकर अपना वोटबैंक बनाने की सोच रहे हैं, वो पुरूष एक शराब की बोतल और महिलाएं चार साड़ी के नशे में वोट डालते हैं सरकारी योजनाएं देखकर नहीं। क्योंकि यह उनकी मजबूरी है क्योंकि वे पढ़े लिखे नहीं हैं वे अखबार नहीं पढते और ना ही उनके साक्षात्कार सुनते हैं। </p>
<p>और सबसे महत्वपूर्ण बात जो मोदी भूल गए, कि यह वो देश है जहाँ चुनाव काम के दम पर नहीं वोटबैंक और जातीय गणित के आधार पर जीते जाते हैं, जहाँ वोट विकास के नाम पर नहीं आरक्षण या कर्ज़ माफी के नाम पर मिलते हैं। </p>
<p>लेकिन 2014 में देश में मोदी का कोई वोटबैंक नहीं था अगर था तो केवल गुजरात में था फिर भी मोदी को पुरे देश में वोट मिले । क्यों? क्या किसी जाति विशेष ने दिया था? नहीं, बल्कि लोगों ने जाती का भेद भूला के वोट दिया था। क्या मोदी ने आरक्षण या कर्जमाफी का लालच दिया था? नहीं, लोगों ने विकास के नाम पर वोट दिया था। कुल मिलाकर मोदी की छवि के आकर्षण के आगे सभी चुनावी समीकरण गलत सिद्ध हुए। लेकिन अफसोस मोदी ने सत्ता में आते ही स्वयं को उसी छवि से मुक्त करने के प्रयास शुरू कर दिए जो आत्मघाती सिद्ध हुए। इसलिए मोदी को समझना चाहिए कि लोगों का आकर्षण "मोदी" से अधिक उनकी दबंग हिंदूवादी छवि के प्रति था। उन्हें शेख हसीना से सीखना चाहिए कि सबको साथ लेकर चलने के लिए इच्छाशक्ति की जरूरत होती है छवि बदलने की नहीं।</p>
<p>डॉ नीलम महेंद्र</p>
<p><strong>मौलिक व अप्रकाशित</strong></p>