"ओबीओ चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 56 - Open Books Online2024-03-29T05:44:08Zhttp://www.openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/56?commentId=5170231%3AComment%3A724763&feed=yes&xn_auth=noसभी प्रतिभागियों को हार्दिक ब…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-19:5170231:Comment:7251392015-12-19T18:29:41.094Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>सभी प्रतिभागियों को हार्दिक बधाई आयोजन की सफलता हेतु ...</p>
<p>सभी प्रतिभागियों को हार्दिक बधाई आयोजन की सफलता हेतु ...</p> अनुमोदन हेतु आभार सर.... संकल…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-19:5170231:Comment:7250562015-12-19T18:26:37.638Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>अनुमोदन हेतु आभार सर.... संकलन पश्चात् संशोधन हेतु</p>
<p>अनुमोदन हेतु आभार सर.... संकलन पश्चात् संशोधन हेतु</p> ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदो…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-19:5170231:Comment:7249952015-12-19T18:24:23.973ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p><span>ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 56 के सफल आयोजन के लिए समस्त सुधीजनों के प्रति हार्दिक आभार.</span></p>
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<p><span>ओबीओ ’चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव" अंक- 56 के सफल आयोजन के लिए समस्त सुधीजनों के प्रति हार्दिक आभार.</span></p>
<p></p> आदरणीय सौरभ सर, आपको यह प्रया…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-19:5170231:Comment:7250552015-12-19T18:22:45.293Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय सौरभ सर, आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकार दिल खुश हो गया. आपकी सराहना पाकर सदैव मेरा मनोबल बढ़ता है. आपका हार्दिक आभार. नमन </p>
<p>आदरणीय सौरभ सर, आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकार दिल खुश हो गया. आपकी सराहना पाकर सदैव मेरा मनोबल बढ़ता है. आपका हार्दिक आभार. नमन </p> तीसरी प्रस्तुति दोहा सृजन के…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-19:5170231:Comment:7248992015-12-19T18:20:28.648ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
तीसरी प्रस्तुति दोहा सृजन के रूप में पोस्ट करने के अति उत्साह में इंगित त्रुटियां रह गईं, जिसका मुझे खेद है। रचना पर समय देकर प्रोत्साहित करने व आशीष शुभकामनाएँ प्रेषित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी।
तीसरी प्रस्तुति दोहा सृजन के रूप में पोस्ट करने के अति उत्साह में इंगित त्रुटियां रह गईं, जिसका मुझे खेद है। रचना पर समय देकर प्रोत्साहित करने व आशीष शुभकामनाएँ प्रेषित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय श्री सौरभ पाण्डेय जी। पेट मिलाया सेट से, तुक कारण स…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-19:5170231:Comment:7251382015-12-19T18:20:16.208Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>पेट मिलाया सेट से, तुक कारण सरदार </p>
<p>गंगा जल का बेचना था इसका आधार </p>
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<p>आज बधाई से मिला मुझको भी आधार </p>
<p>नमन आपको कह रहा, दिल से भी आभार </p>
<p>पेट मिलाया सेट से, तुक कारण सरदार </p>
<p>गंगा जल का बेचना था इसका आधार </p>
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<p>आज बधाई से मिला मुझको भी आधार </p>
<p>नमन आपको कह रहा, दिल से भी आभार </p> जी बिलकुल सही कहा आपने। संकलन…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-19:5170231:Comment:7249942015-12-19T18:17:01.882ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
जी बिलकुल सही कहा आपने। संकलन में सुधार करने की कोशिश करूँगा। समय देकर अवलोकन व सुझाव हेतु बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी।
जी बिलकुल सही कहा आपने। संकलन में सुधार करने की कोशिश करूँगा। समय देकर अवलोकन व सुझाव हेतु बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी। हर इक डुबकी मारे .. सही संशोध…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-19:5170231:Comment:7251372015-12-19T18:08:25.622ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p><em>हर इक डुबकी मारे</em> .. सही संशोधन होगा</p>
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<p><em>हर इक डुबकी मारे</em> .. सही संशोधन होगा</p>
<p></p> आदरणीय मिथिलेश भाईजी, आपके दो…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-19:5170231:Comment:7248982015-12-19T18:04:48.889ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय मिथिलेश भाईजी, आपके दोहों ने चकित किया है. मुग्ध किया है. आश्वस्त भी कर रहे हैं कि आपकी रचनाधर्मिता सदिश और विन्दुवत है.</p>
<p><em>जब से देखा मैल का, गंगाजी में झाग</em><br></br><em>माता का दुःख देखकर, रोया खूब प्रयाग</em></p>
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<p>इस दोहे को मैं जितनी बार पढ़ूँ, थक नहीं रहा. यह प्रयाग, विशेषकर संगम के दर्द को भावुकता ही नहीं तार्किकता के साथ सापेक्ष कर रहा है. <br></br>मैं आपके गहन प्रयास को सम्मान की दृष्टि से देखता हूँ.</p>
<p>वैसे, यह भी सही है, कि आदरणीय अशोक भाई के प्रश्न या संदेह…</p>
<p>आदरणीय मिथिलेश भाईजी, आपके दोहों ने चकित किया है. मुग्ध किया है. आश्वस्त भी कर रहे हैं कि आपकी रचनाधर्मिता सदिश और विन्दुवत है.</p>
<p><em>जब से देखा मैल का, गंगाजी में झाग</em><br/><em>माता का दुःख देखकर, रोया खूब प्रयाग</em></p>
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<p>इस दोहे को मैं जितनी बार पढ़ूँ, थक नहीं रहा. यह प्रयाग, विशेषकर संगम के दर्द को भावुकता ही नहीं तार्किकता के साथ सापेक्ष कर रहा है. <br/>मैं आपके गहन प्रयास को सम्मान की दृष्टि से देखता हूँ.</p>
<p>वैसे, यह भी सही है, कि आदरणीय अशोक भाई के प्रश्न या संदेह में दम है. <br/>हार्दिक शुभकामनाएँ</p> आदरणीय सौरभ सर, सराहना मार्गद…tag:www.openbooksonline.com,2015-12-19:5170231:Comment:7248972015-12-19T18:03:57.696Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय सौरभ सर, <span>सराहना मार्गदर्शन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद आपका. आपके मार्गदर्शन अनुसार "हर इक डुबकी मारे" किया जाना निवेदित है. सादर </span></p>
<p>आदरणीय सौरभ सर, <span>सराहना मार्गदर्शन और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद आपका. आपके मार्गदर्शन अनुसार "हर इक डुबकी मारे" किया जाना निवेदित है. सादर </span></p>