All Discussions Tagged 'पक्षी' - Open Books Online2024-03-29T11:05:58Zhttp://www.openbooksonline.com/group/Baal_Sahitya/forum/topic/listForTag?tag=%E0%A4%AA%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%80&feed=yes&xn_auth=noचुन्नी की बाजीजान (बाल-कविता)tag:www.openbooksonline.com,2019-06-03:5170231:Topic:9857132019-06-03T04:19:28.780ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>कबूतर बाजी आ गईं<br></br>बालकनी पर बैठ गईं।</p>
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<p>लू-लपटें चल रहीं<br></br>आसरा वो ढूंढ रहीं।</p>
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<p>कबूतर बाजी अंदर आईं<br></br>फ्लैट पूरा जब घूम आईं।</p>
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<p>मिला न कोई अड्डा मन का<br></br>पंखों से था ख़तरा तन का।</p>
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<p>कौने में दुबक कर बैठ गईं<br></br>जैसे-तैसे प्राण बचा पाईं।</p>
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<p>चुन्नी ने पंखे ऑफ़ किये<br></br>कबूतरनी के फोटो लिये।</p>
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<p>सेल्फ़ी भी ख़ूब ली गईं<br></br>खाना-पानी ही भूल गईं।</p>
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<p>रात जब होने को आई<br></br>चुन्नी को अब याद…</p>
<p>कबूतर बाजी आ गईं<br/>बालकनी पर बैठ गईं।</p>
<p></p>
<p>लू-लपटें चल रहीं<br/>आसरा वो ढूंढ रहीं।</p>
<p></p>
<p>कबूतर बाजी अंदर आईं<br/>फ्लैट पूरा जब घूम आईं।</p>
<p></p>
<p>मिला न कोई अड्डा मन का<br/>पंखों से था ख़तरा तन का।</p>
<p></p>
<p>कौने में दुबक कर बैठ गईं<br/>जैसे-तैसे प्राण बचा पाईं।</p>
<p></p>
<p>चुन्नी ने पंखे ऑफ़ किये<br/>कबूतरनी के फोटो लिये।</p>
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<p>सेल्फ़ी भी ख़ूब ली गईं<br/>खाना-पानी ही भूल गईं।</p>
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<p>रात जब होने को आई<br/>चुन्नी को अब याद आई।</p>
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<p>भोजन-पानी भर कटोरी<br/>पास कबूतरनी रख आईं।</p>
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<p>बड़े सबेरे दुपट्टा फैंका<br/>कबूतरनी पकड़ न पाईं।</p>
<p></p>
<p>पंख ताक़त से फड़फड़ाकर<br/>कबूतर बाजी अब उड़ पाईं।</p>
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<p>नज़र गई दरवाज़े पर जब<br/>ठंडी हवा में वो भाग पाईं।</p>
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<p>चुन्नी खड़ी हो बालकनी पर<br/>टाटा कर वीडियो बना रहीं।</p>
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<p>कबूतर बाजी गोते लगाकर<br/>साथियों संग अब उड़ती रहीं।</p>
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<p>(मौलिक व अप्रकाशित)<br/>शेख़ शहज़ाद उस्मानी<br/>शिवपुरी (मध्यप्रदेश)<br/>[03 जून, 2019]</p>