OBO लाइव तरही मुशायरा-3 (Now Closed) - Open Books Online2024-03-28T16:04:16Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/obo-3-now-closed?commentId=5170231%3AComment%3A21610&feed=yes&xn_auth=no//बाद गाँधीजी के, यार - इस मु…tag:www.openbooksonline.com,2010-09-23:5170231:Comment:223672010-09-23T02:03:16.367Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
//बाद गाँधीजी के, यार - इस मुल्क में|<br />
पुस्तकों में ही 'गाँधीगिरी' रह गयी //<br />
<br />
कितनी आसानी से कितनी बड़ी बात कह दी अपने, आफरीन !<br />
<br />
<br />
//मेरे 'दिल की तसल्ली' कहाँ गुम हो तुम|<br />
जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गयी //<br />
<br />
तरही मिसरे को ग़ज़ल में इस्तेमाल तो सबने ही किया, लेकिन जिस खूबसूरती से आपने इस शेअर में इसे बांधा है - कमाल हो गया ! नवीन भाई, आपकी ज़रखेज़ कलम और रौशन दीमाग को सलाम करता हूँ ! भगवन सदा आपको नजर-ए-बद से बचाए !
//बाद गाँधीजी के, यार - इस मुल्क में|<br />
पुस्तकों में ही 'गाँधीगिरी' रह गयी //<br />
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कितनी आसानी से कितनी बड़ी बात कह दी अपने, आफरीन !<br />
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//मेरे 'दिल की तसल्ली' कहाँ गुम हो तुम|<br />
जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गयी //<br />
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तरही मिसरे को ग़ज़ल में इस्तेमाल तो सबने ही किया, लेकिन जिस खूबसूरती से आपने इस शेअर में इसे बांधा है - कमाल हो गया ! नवीन भाई, आपकी ज़रखेज़ कलम और रौशन दीमाग को सलाम करता हूँ ! भगवन सदा आपको नजर-ए-बद से बचाए ! मेरी बधाई स्वीकारो दीपक..
पहल…tag:www.openbooksonline.com,2010-09-22:5170231:Comment:223532010-09-22T23:14:04.353ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
मेरी बधाई स्वीकारो दीपक..<br />
पहले के सारे बंद अपनी जगह.. उपरोक्त तीन बंदों ने तो कमाल ही ढा दिया है. विशेषकर -<br />
>>उम्र भर नींद आई नहीं ढंग से<br />
आँख लेकिन लगी तो लगी रह गई<<<br />
क्या कहूँ कितना प्रौढ़ लगा है ये बंद. विश्वास करता हूँ भाई, कि आपको गुमान है कि क्या लिख गये हो.<br />
<br />
>>सोचता हूँ हमेशा यही शाम को<br />
ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई <<<br />
हर शाम .. यही सोच.. वाह! ..सारी सफलताएँ एक ओर.. बेमानी सी ही हैं.. ग़र तुम नहीं जाने तो पाया ही क्या.. वाह!
मेरी बधाई स्वीकारो दीपक..<br />
पहले के सारे बंद अपनी जगह.. उपरोक्त तीन बंदों ने तो कमाल ही ढा दिया है. विशेषकर -<br />
>>उम्र भर नींद आई नहीं ढंग से<br />
आँख लेकिन लगी तो लगी रह गई<<<br />
क्या कहूँ कितना प्रौढ़ लगा है ये बंद. विश्वास करता हूँ भाई, कि आपको गुमान है कि क्या लिख गये हो.<br />
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>>सोचता हूँ हमेशा यही शाम को<br />
ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई <<<br />
हर शाम .. यही सोच.. वाह! ..सारी सफलताएँ एक ओर.. बेमानी सी ही हैं.. ग़र तुम नहीं जाने तो पाया ही क्या.. वाह! सलिलजी नमस्ते.
>>जो कमा…tag:www.openbooksonline.com,2010-09-22:5170231:Comment:223522010-09-22T22:18:00.352ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
सलिलजी नमस्ते.<br />
>>जो कमाया गुमा, जो गँवाया मिला.<br />
ज़िन्दगी में तुम्हारी, कमी रह गई..<br />
आपने वो कुछ कहा है सलिलजी जिसे समझने में बरसों लगें.. इस गूढ़ विचार को इतनी आसानी से कहने के लिए धन्यवाद.
सलिलजी नमस्ते.<br />
>>जो कमाया गुमा, जो गँवाया मिला.<br />
ज़िन्दगी में तुम्हारी, कमी रह गई..<br />
आपने वो कुछ कहा है सलिलजी जिसे समझने में बरसों लगें.. इस गूढ़ विचार को इतनी आसानी से कहने के लिए धन्यवाद. वाह नवीनजी वाह.. इसे कहते हैं…tag:www.openbooksonline.com,2010-09-22:5170231:Comment:223462010-09-22T21:08:29.346ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
वाह नवीनजी वाह.. इसे कहते हैं तल्लीनता.. और किसी चाहत को जीना. इस मुशाअरा की रोशनी आपके नाम. मुझे सद्यःप्रस्तुति के शेरों ने कहना न होगा प्रभावित किया है -<br />
<br />
>>सब से आगे, वही आज है - दौर में|<br />
मुद्दतों से जो कुचली-दबी रह गयी|३६|<<<br />
समझ-बूझने ने के इस अंदाज़ को साधुवाद.. उन ’जातियों’ की वास्तविक स्थिति के मुद्दे पर अच्छी-खासी बहस की गुंजाइश है. पर, अनगढ़ ही सही काम तो अवश्य हुआ उनके लिए जो ’मुद्दतों से कुचली-दबी रह गई’ हैं. बहुत अच्छे.<br />
<br />
>>बाद गाँधीजी के, यार - इस मुल्क में|<br />
पुस्तकों…
वाह नवीनजी वाह.. इसे कहते हैं तल्लीनता.. और किसी चाहत को जीना. इस मुशाअरा की रोशनी आपके नाम. मुझे सद्यःप्रस्तुति के शेरों ने कहना न होगा प्रभावित किया है -<br />
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>>सब से आगे, वही आज है - दौर में|<br />
मुद्दतों से जो कुचली-दबी रह गयी|३६|<<<br />
समझ-बूझने ने के इस अंदाज़ को साधुवाद.. उन ’जातियों’ की वास्तविक स्थिति के मुद्दे पर अच्छी-खासी बहस की गुंजाइश है. पर, अनगढ़ ही सही काम तो अवश्य हुआ उनके लिए जो ’मुद्दतों से कुचली-दबी रह गई’ हैं. बहुत अच्छे.<br />
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>>बाद गाँधीजी के, यार - इस मुल्क में|<br />
पुस्तकों में ही 'गाँधीगिरी' रह गयी|३७|<<<br />
बहुत खूब.. वाह-वाह! इस कचोटते हुए तथ्य को सामने लाने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद. हर हल्के में लोग सचाई जानते हैं.<br />
हमने उनसे मतलब साधा..<br />
अच्छा हुआ वो चले गए..<br />
<br />
और आपकी ये चालीसा पूरी हुई भी तो किस अंदाज़ में-<br />
>>मेरे 'दिल की तसल्ली' कहाँ गुम हो तुम<br />
जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गयी|४०|<<<br />
हाय-हाय-हाय!! .. ’’.....कहाँ आवाज़ दे तुमको, कहाँ हो.......” सौरभ भाई जी, आपकी आज्ञा शिरोध…tag:www.openbooksonline.com,2010-09-22:5170231:Comment:222832010-09-22T16:11:47.283Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
सौरभ भाई जी, आपकी आज्ञा शिरोधार्य ! जैसा कि सेना में कहते है "Very loud and clear Sirrr "
सौरभ भाई जी, आपकी आज्ञा शिरोधार्य ! जैसा कि सेना में कहते है "Very loud and clear Sirrr " क्या कहा और किस लहजे में कहा.…tag:www.openbooksonline.com,2010-09-22:5170231:Comment:222792010-09-22T16:05:10.279ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
क्या कहा और किस लहजे में कहा..<br />
वाक़ई साहब, दिल के मुआमले के नाम फ़कत सतही रुमानियत और उन जज़्बों का बयाँ बहुत हो चुका.. आज की शायरी को ज़मीन से जोड़ने की जरुरत है.<br />
<br />
हिन्दी में फ़ारसी बसी? अरे साहब ये तो अन्योन्याश्रय हिस्सा है अब.. एक समय ये राज-काज और दरबार की जुबान हुआ करती थी. जब अंग्रेज़ी आयी और इसे वो दर्ज़ा हासिल हुआ.. वो मशहूर मसल इसी पर चल निकला था.. ’पढ़े फ़ारसी बेचे तेल ..देखो ये क़ुदरत का खेल..’ क्योंकि अब फ़ारसी का नहीं अंग्रेज़ी का बोलबाला हो चुका था..<br />
बहुत उम्दा बन पड़ा है साहबजी.<br />
<br />
बस एक…
क्या कहा और किस लहजे में कहा..<br />
वाक़ई साहब, दिल के मुआमले के नाम फ़कत सतही रुमानियत और उन जज़्बों का बयाँ बहुत हो चुका.. आज की शायरी को ज़मीन से जोड़ने की जरुरत है.<br />
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हिन्दी में फ़ारसी बसी? अरे साहब ये तो अन्योन्याश्रय हिस्सा है अब.. एक समय ये राज-काज और दरबार की जुबान हुआ करती थी. जब अंग्रेज़ी आयी और इसे वो दर्ज़ा हासिल हुआ.. वो मशहूर मसल इसी पर चल निकला था.. ’पढ़े फ़ारसी बेचे तेल ..देखो ये क़ुदरत का खेल..’ क्योंकि अब फ़ारसी का नहीं अंग्रेज़ी का बोलबाला हो चुका था..<br />
बहुत उम्दा बन पड़ा है साहबजी.<br />
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बस एक गुजारिश है .. विश्वास है, मेरी सलाह को इज़्ज़त बख़्शेंगे..<br />
शेर है -<br />
>>लाज को ढांपती,कौरवों में घिरी,<br />
कृष्ण को ढूँढती द्रौपदी रह गई !<<<br />
द्रौपदी को कृष्ण ने बहन का दर्ज़ा दिया हुआ था. और क्या ही निभाया था उस भाई ने अपनी बहन का मान उसके किंकर्तव्यविमूढ़ मर्दों.. ग़लीज़ रिश्तेदारों और बेआवाज़ दरबारियों के बीच! यही कुछ आजके भाइयों से आजकी बहन चाहती है.. विशेषकर इस दौर में.. जब भाइयों ने अपनी उथली और ढकोसली पारिवारिक मान्यताओं के नाम पर अपनी बहनों का न सिर्फ़ सुहाग उजाड़ना शुरू कर दिया है बल्कि सगी बहनों का भी सरेआम क़त्ल करना शुरू कर दिया है.. आप अपने उपरोक्त शेर में वो आयाम/पहलू कुछ इस ढ़ंग से ले आएँ कि ये बात खुल कर.. निखर कर.. सामने आये. .. आपभी तो यही चाहते हैं, योगराज भाई. .. परन्तु, आपके मौज़ूदा शेर में उस कर्त्तव्यपरायण भाई ’कृष्ण’ पर ही उंगली उठती दिखायी दे रही है.. मैं जानता हूँ कि आप ऐसा बिल्कुल नहीं चाहते.<br />
आभार. गुरुदेव इन शे'रों पर तो वाह व…tag:www.openbooksonline.com,2010-09-22:5170231:Comment:222742010-09-22T15:51:34.274ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://www.openbooksonline.com/profile/GaneshJee
गुरुदेव इन शे'रों पर तो वाह वाह भी छोटी लगने लगी, कमाल का शे'र कह गये, यह मुशायरा तो सुपर सुपर हिट हो गया, अगर किसी साथी को मेरी बातों से असहमति हो तो जरूर बता देंगे |
गुरुदेव इन शे'रों पर तो वाह वाह भी छोटी लगने लगी, कमाल का शे'र कह गये, यह मुशायरा तो सुपर सुपर हिट हो गया, अगर किसी साथी को मेरी बातों से असहमति हो तो जरूर बता देंगे | नवीन भाई, आप हैं इस मुशायरे क…tag:www.openbooksonline.com,2010-09-22:5170231:Comment:222632010-09-22T14:53:37.263Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
नवीन भाई, आप हैं इस मुशायरे के हीरो - इसलिए आपको पूरा और हर प्रकार का अख्त्यार हासिल है !
नवीन भाई, आप हैं इस मुशायरे के हीरो - इसलिए आपको पूरा और हर प्रकार का अख्त्यार हासिल है ! नवीन भाई, ये आपकी मोहब्बत है…tag:www.openbooksonline.com,2010-09-22:5170231:Comment:222572010-09-22T14:41:24.257Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
नवीन भाई, ये आपकी मोहब्बत है जो आपने इतना मान दिया ! अगर सच पूछें तो बार बार आपके कहने पर ही दोबारा शेअर कहने की हिम्मत जुटा पाया ! दिल से मशकूर हूँ आपकी ज़र्रानवाजी का !
नवीन भाई, ये आपकी मोहब्बत है जो आपने इतना मान दिया ! अगर सच पूछें तो बार बार आपके कहने पर ही दोबारा शेअर कहने की हिम्मत जुटा पाया ! दिल से मशकूर हूँ आपकी ज़र्रानवाजी का ! बहुत बहुत धन्यवाद डॉ सरोज गुप…tag:www.openbooksonline.com,2010-09-22:5170231:Comment:222472010-09-22T13:48:20.247Zयोगराज प्रभाकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
बहुत बहुत धन्यवाद डॉ सरोज गुप्ता जी आपका ! अपने अच्छा कहा तो ये शेअर मुझे भी अच्छा लगने लगा !
बहुत बहुत धन्यवाद डॉ सरोज गुप्ता जी आपका ! अपने अच्छा कहा तो ये शेअर मुझे भी अच्छा लगने लगा !