"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-94 - Open Books Online2024-03-29T15:25:16Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/94?commentId=5170231%3AComment%3A926556&xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noमुशायरे में शिरकत और प्रतिक्र…tag:www.openbooksonline.com,2018-04-28:5170231:Comment:9271162018-04-28T18:30:17.766ZRana Pratap Singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh
<p>मुशायरे में शिरकत और प्रतिक्रया देनेवाले सदस्यों का तहे दिल से शुक्रिया|</p>
<p>मुशायरे में शिरकत और प्रतिक्रया देनेवाले सदस्यों का तहे दिल से शुक्रिया|</p> शुक्रिया भाई,ये डांट नहीं मंच…tag:www.openbooksonline.com,2018-04-28:5170231:Comment:9269662018-04-28T18:28:55.848ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>शुक्रिया भाई,ये डांट नहीं मंच की महब्बत है ।</p>
<p>वैसे आज तो शुक्रिया ग़ज़लकारों और पाठकों का आप ही अदा करें,अच्छा लगेगा ।</p>
<p>शुक्रिया भाई,ये डांट नहीं मंच की महब्बत है ।</p>
<p>वैसे आज तो शुक्रिया ग़ज़लकारों और पाठकों का आप ही अदा करें,अच्छा लगेगा ।</p> सर कई बार मोबाईल तो रहता है प…tag:www.openbooksonline.com,2018-04-28:5170231:Comment:9268922018-04-28T18:24:47.499ZRana Pratap Singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh
<p>सर कई बार मोबाईल तो रहता है पर नेटवर्क नहीं रहता ....फिर भी मैं अपना आलस्य स्वीकारता हूँ ..आपकी डांट का नतीज़ा ही है जो इस बार देर सही पर बेदार हूँ|</p>
<p>सर कई बार मोबाईल तो रहता है पर नेटवर्क नहीं रहता ....फिर भी मैं अपना आलस्य स्वीकारता हूँ ..आपकी डांट का नतीज़ा ही है जो इस बार देर सही पर बेदार हूँ|</p> जनाब ग़लत लफ़्ज़ लोग लेलेते हैं,…tag:www.openbooksonline.com,2018-04-28:5170231:Comment:9271152018-04-28T18:24:21.473ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब ग़लत लफ़्ज़ लोग लेलेते हैं,लेकिन ये मान्य नहीं हैं शाइरी में,आपने जितने अल्फ़ाज़ लिखे हैं इनकी मिसालों में उस्तादों के अशआर मिसाल में पेश करते तो बात होती, और ऐसी मिसाल उर्दू शाइरी में उस्तादों के कलाम में तो नहीं मिलती ।</p>
<p>जनाब ग़लत लफ़्ज़ लोग लेलेते हैं,लेकिन ये मान्य नहीं हैं शाइरी में,आपने जितने अल्फ़ाज़ लिखे हैं इनकी मिसालों में उस्तादों के अशआर मिसाल में पेश करते तो बात होती, और ऐसी मिसाल उर्दू शाइरी में उस्तादों के कलाम में तो नहीं मिलती ।</p> देर आये दुरुस्त आये ।
मैं भी…tag:www.openbooksonline.com,2018-04-28:5170231:Comment:9269652018-04-28T18:16:31.989ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>देर आये दुरुस्त आये ।</p>
<p>मैं भी मोबाईल से ही ओबीओ पर सक्रिय रहता हूँ,मुझे कोई परेशानी नहीं होती ,सक्रियता बनाये रखें ।</p>
<p>देर आये दुरुस्त आये ।</p>
<p>मैं भी मोबाईल से ही ओबीओ पर सक्रिय रहता हूँ,मुझे कोई परेशानी नहीं होती ,सक्रियता बनाये रखें ।</p> आली जनाब समर साहिब आदाब लफ़्…tag:www.openbooksonline.com,2018-04-28:5170231:Comment:9271142018-04-28T18:15:31.567ZAfroz 'sahr'http://www.openbooksonline.com/profile/Afrozsahr
<p> आली जनाब समर साहिब आदाब लफ़्ज़ "कुहकन" किसी बड़ेशायर के कलाम में प्रयोग हुआ है । जो कि मुझे अभी याद नहीं आ रहा,</p>
<p>वैसे कुछ लफ्ज़ हैं। जिन के सही रूप के अलावा इनके भ्रष्ट रूप भी राइज़ हैं</p>
<p>जैसे,</p>
<p>बुहतान २२१,</p>
<p>बोहतान २१२१,</p>
<p>राह २१,</p>
<p>रह २,</p>
<p>खा़मोशी २२२,</p>
<p>खा़मशी २१२,.</p>
<p>ख़मोशी १२२,</p>
<p>राहबर २१२,</p>
<p>रहबर २२,</p>
<p>उहदा २२,</p>
<p>औहदा २१२,</p>
<p>शरफ़ १२,</p>
<p>शर्फ़ २१,</p>
<p>शर्म २१,</p>
<p>शरम २१,</p>
<p>गर्म २१,</p>
<p>गरम…</p>
<p> आली जनाब समर साहिब आदाब लफ़्ज़ "कुहकन" किसी बड़ेशायर के कलाम में प्रयोग हुआ है । जो कि मुझे अभी याद नहीं आ रहा,</p>
<p>वैसे कुछ लफ्ज़ हैं। जिन के सही रूप के अलावा इनके भ्रष्ट रूप भी राइज़ हैं</p>
<p>जैसे,</p>
<p>बुहतान २२१,</p>
<p>बोहतान २१२१,</p>
<p>राह २१,</p>
<p>रह २,</p>
<p>खा़मोशी २२२,</p>
<p>खा़मशी २१२,.</p>
<p>ख़मोशी १२२,</p>
<p>राहबर २१२,</p>
<p>रहबर २२,</p>
<p>उहदा २२,</p>
<p>औहदा २१२,</p>
<p>शरफ़ १२,</p>
<p>शर्फ़ २१,</p>
<p>शर्म २१,</p>
<p>शरम २१,</p>
<p>गर्म २१,</p>
<p>गरम १२,</p>
<p>जैसे कि "अबू" १२,को बह्र बरतने के लिए "बू" २,</p>
<p>के वज़्न पर इस्तेमाल किया जाता है।</p>
<p>चूं कि इस कि़स्म के तमाम लफ़्ज़ आम फ़हम ज़बान के लफ़्ज़ होने की</p>
<p>वजह से हमारे ज़हनों में रच बस गए हैं इसलिए इनका इस्तेमाल हम बेझिझक करते हैं। बिना किसी संशय के,</p>
<p>लेकिन इसके बर अक़्स लफ़्ज़ "कोहकन" चूं कि आम फ़हम लफ़्ज़ नहीं है</p>
<p>इसका इस्तेमाल नस्र में ही यदा कदा देखने को मिलता है और नज़्म में भी इसका इस्तेमाल कभी कभार ही होता है। यही वजह है कि ऐसे लफ़्जों का</p>
<p>भ्रष्ट रूप हमारे सामने आता है तो हम उसे पचा नहीं पाते।या उसे शक की नज़रों से देखने लगते हैं।</p>
<p>अनगिनत ऐसे लफ़्ज़ हैं जिन की सही शक्ल के इतर उनकी भ्रष्ट शक्ल भी</p>
<p> राइज़ है ।और उन का इस्तेमाल भी कसरत से किया जाता है।</p>
<p>सादर,,</p>
<p></p>
<p></p> आदरनीय सुरिन्दर जी, बहुत शुक्…tag:www.openbooksonline.com,2018-04-28:5170231:Comment:9270532018-04-28T18:09:35.560Zमोहन बेगोवालhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrMohanlal
<p>आदरनीय सुरिन्दर जी, बहुत शुक्रिया जी </p>
<p>आदरनीय सुरिन्दर जी, बहुत शुक्रिया जी </p> जनाब गजेन्द्र जी आदाब,इस बार…tag:www.openbooksonline.com,2018-04-28:5170231:Comment:9269642018-04-28T18:08:52.762ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब गजेन्द्र जी आदाब,इस बार मुशायरे में आपकी ग़ज़ल की कमी शिद्दत से महसूस हुई ।</p>
<p>सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।</p>
<p>जनाब गजेन्द्र जी आदाब,इस बार मुशायरे में आपकी ग़ज़ल की कमी शिद्दत से महसूस हुई ।</p>
<p>सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।</p> आदरनीय रवि शुक्ला जी, बहुत…tag:www.openbooksonline.com,2018-04-28:5170231:Comment:9268912018-04-28T18:08:36.018Zमोहन बेगोवालhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrMohanlal
<p> आदरनीय रवि शुक्ला जी, बहुत धन्यवाद </p>
<p> आदरनीय रवि शुक्ला जी, बहुत धन्यवाद </p> आदरनीय हर्ष जी, आप जी का मेरी…tag:www.openbooksonline.com,2018-04-28:5170231:Comment:9269632018-04-28T18:06:35.657Zमोहन बेगोवालhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrMohanlal
<p>आदरनीय हर्ष जी, आप जी का मेरी रचना लई, धन्यवाद </p>
<p>आदरनीय हर्ष जी, आप जी का मेरी रचना लई, धन्यवाद </p>