"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-91 (विषय: कालचक्र) - Open Books Online2024-03-29T12:03:38Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/91-2?xg_source=activity&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय बबिता जी, प्रदत्त विषय…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-31:5170231:Comment:10929262022-10-31T15:45:38.740ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>आदरणीय बबिता जी, प्रदत्त विषय पर आधारित इस लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। </p>
<p>आदरणीय बबिता जी, प्रदत्त विषय पर आधारित इस लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। </p> हार्दिक बधाई आदरणीय बबिता गुप…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-31:5170231:Comment:10928872022-10-31T14:07:12.391ZTEJ VEER SINGHhttp://www.openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय बबिता गुप्ता जी।</p>
<p>हार्दिक बधाई आदरणीय बबिता गुप्ता जी।</p> हार्दिक आभार आदरणीय मनन कुमार…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-31:5170231:Comment:10928862022-10-31T14:06:01.449ZTEJ VEER SINGHhttp://www.openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक आभार आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।</p> हार्दिक आभार आदरणीय महेन्द्र…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-31:5170231:Comment:10928852022-10-31T14:05:10.117ZTEJ VEER SINGHhttp://www.openbooksonline.com/profile/TEJVEERSINGH
<p>हार्दिक आभार आदरणीय महेन्द्र कुमार जी।</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय महेन्द्र कुमार जी।</p> लौट आया बचपन... सेवानिवृत्त ज…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-31:5170231:Comment:10925852022-10-31T13:35:37.140Zbabitaguptahttp://www.openbooksonline.com/profile/babitagupta631
<p>लौट आया बचपन...<br></br> सेवानिवृत्त जीवन गुजारते सेवकलाल रोजमर्रा की तरह कंपनी गार्डन में शाम को टहलते हुये थक गये तो निराशमन से वही जमीन पर बैठ गये।अपने आप में खोये हुये सेवकलाल वास्तव में बूढ़ी हड्डियों से नहीं थके थे बल्कि अपने एकाकीपन से थक गये थे।खोये-खोये से... सोचने लगे ,जीवन की आपाधापी से मुक्त सुखदजीवन गुजारते चंद महीने भी व्यतीत नहीं हुये होंगे कि उम्र के आखिरी पढ़ाव पर साथ देने जीवन संगिनी अचानक हुये ह्रदय पक्षाघात से हमेशा के लिए साथ छोड़कर चली गई... और विदेश प्रवासी अपने …</p>
<p>लौट आया बचपन...<br/> सेवानिवृत्त जीवन गुजारते सेवकलाल रोजमर्रा की तरह कंपनी गार्डन में शाम को टहलते हुये थक गये तो निराशमन से वही जमीन पर बैठ गये।अपने आप में खोये हुये सेवकलाल वास्तव में बूढ़ी हड्डियों से नहीं थके थे बल्कि अपने एकाकीपन से थक गये थे।खोये-खोये से... सोचने लगे ,जीवन की आपाधापी से मुक्त सुखदजीवन गुजारते चंद महीने भी व्यतीत नहीं हुये होंगे कि उम्र के आखिरी पढ़ाव पर साथ देने जीवन संगिनी अचानक हुये ह्रदय पक्षाघात से हमेशा के लिए साथ छोड़कर चली गई... और विदेश प्रवासी अपने बेटे-बहू,बेटी -दामाद ने साथ चलने को कहा पर वो अपने यादों के घरौंदे को छोड़कर नहीं जाना चाहते थे या फिर... सोचते-सोचते मन भारी हो गया.. कभी-कभार बच्चों से नाती-पोते से बात हो जाती तो बूढ़ी हड्डियों में जान आ जाती... नही तो उनसे हुई बातों को याद करके अपने आप में खुश हो जाते... तभी गार्डन में खेलते-कूदते बच्चों का देख-सुन ..सेवकलाल की धुंधली ऑखों में अपने बचपन का गलियारा घूम गया। <br/>गांव की वो कच्ची-पक्की पगडंडियाँ पर भागमभाग धमाचौकड़ी पकड़म-पकड़ाई खेला करते थे.. दुनिया जहां की चिन्ताओं से दूर अपने आप में… मस्ती भरे दिन… जवानी की दहलीज पर कदम रखते हुये कही खो गये…!<br/>तभी खिलखिलाते बच्चों को अपनी तरफ आते देख सेवकलाल का बुझा चेहरा खिल गया.. उनमें अपने नाती-पोतों की छवि देख झुर्रीदार चेहरे पर मुस्कान बिखर गई ।<br/>उन्हें हंसते देख कोई दादाजी के कंधे पर झूल गया तो कोई दादाजी के गालों को नन्हें हाथों से सहलाते हुये मस्ती करने लगा।<br/>बच्चों के साथ मस्ती करते हुये पोपले मुंह से छूंटती हंसी…जैसे.. सेवकलाल के बुढ़ापे के पतझर पर वसंत खिल गया।</p>
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<p>स्वरचित व अप्रकाशित हैं। </p>
<p>बबीता गुप्ता </p> आपका आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई।tag:www.openbooksonline.com,2022-10-31:5170231:Comment:10925832022-10-31T12:28:11.638ZManan Kumar singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
<p>आपका आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई।</p>
<p>आपका आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई।</p> आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन।…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-31:5170231:Comment:10930182022-10-31T10:15:27.743Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। प्रतीकात्मक शैली में उत्तम लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। प्रतीकात्मक शैली में उत्तम लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।</p> कल,आज और कल को समेटती लघुकथा…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-31:5170231:Comment:10929242022-10-31T07:42:09.947ZManan Kumar singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
<p>कल,आज और कल को समेटती लघुकथा अच्छी बन पड़ी है, आदरणीय तेजवीर जी।बधाई लीजिए। हां,कुछ टंकण जनित त्रुटियां हैं,जो परिमार्जित हो जाएंगी।</p>
<p>कल,आज और कल को समेटती लघुकथा अच्छी बन पड़ी है, आदरणीय तेजवीर जी।बधाई लीजिए। हां,कुछ टंकण जनित त्रुटियां हैं,जो परिमार्जित हो जाएंगी।</p> आपका हार्दिक आभार आदरणीय महें…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-31:5170231:Comment:10928792022-10-31T07:34:33.337ZManan Kumar singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
<p>आपका हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र जी।सलाह हेतु शुक्रिया।वैसे 'पन' "प्रण" के लिए इस्तेमाल में है।</p>
<p>आपका हार्दिक आभार आदरणीय महेंद्र जी।सलाह हेतु शुक्रिया।वैसे 'पन' "प्रण" के लिए इस्तेमाल में है।</p> साम्प्रदायिकता आज की ज्वलन्त…tag:www.openbooksonline.com,2022-10-31:5170231:Comment:10929232022-10-31T06:53:19.058ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>साम्प्रदायिकता आज की ज्वलन्त समस्याओं में से एक है। इसको आधार बनाकर प्रदत्त विषय पर बढ़िया लघुकथा कही है आपने आदरणीय तेजवीर सिंह जी। इस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। यह सच है कि समय धीरे ही सही बड़े-बड़े घावों को भर देता है।</p>
<p>साम्प्रदायिकता आज की ज्वलन्त समस्याओं में से एक है। इसको आधार बनाकर प्रदत्त विषय पर बढ़िया लघुकथा कही है आपने आदरणीय तेजवीर सिंह जी। इस हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। यह सच है कि समय धीरे ही सही बड़े-बड़े घावों को भर देता है।</p>