ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा-अंक 81 में शामिल सभी ग़ज़लों का संकलन (चिन्हित मिसरों के साथ) - Open Books Online2024-03-28T10:08:40Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/81-1?commentId=5170231%3AComment%3A854103&x=1&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय मंच संचालक महोदय, देरी…tag:www.openbooksonline.com,2017-05-04:5170231:Comment:8541032017-05-04T15:26:20.049ZMahendra Kumarhttp://www.openbooksonline.com/profile/Mahendra
<p>आदरणीय मंच संचालक महोदय, देरी के लिए क्षमा चाहूँगा<span>। प्रस्तुत ग़ज़ल में चिह्नित मिसरे के साथ-साथ मैंने ग़ज़ल में एक शेर (दूसरे स्थान पर) भी जोड़ दिया है<span>। इसलिए पूरी ग़ज़ल यहाँ पर पुनः पेश कर रहा हूँ<span>। </span></span> कृपया </span>इसे देख कर प्रतिस्थापित करने की कृपा करें। यदि कोई ऐब अथवा त्रुटि हो तो अवश्य सूचित करें<span>। कष्ट के लिए क्षमा सहित सादर धन्यवाद<span>।</span> </span></p>
<p></p>
<p></p>
<p>धूप से यादें तुम्हारी आसमानी हो गईं</p>
<p>और समां दिलकश हवाएँ जाफ़रानी हो…</p>
<p>आदरणीय मंच संचालक महोदय, देरी के लिए क्षमा चाहूँगा<span>। प्रस्तुत ग़ज़ल में चिह्नित मिसरे के साथ-साथ मैंने ग़ज़ल में एक शेर (दूसरे स्थान पर) भी जोड़ दिया है<span>। इसलिए पूरी ग़ज़ल यहाँ पर पुनः पेश कर रहा हूँ<span>। </span></span> कृपया </span>इसे देख कर प्रतिस्थापित करने की कृपा करें। यदि कोई ऐब अथवा त्रुटि हो तो अवश्य सूचित करें<span>। कष्ट के लिए क्षमा सहित सादर धन्यवाद<span>।</span> </span></p>
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<p>धूप से यादें तुम्हारी आसमानी हो गईं</p>
<p>और समां दिलकश हवाएँ जाफ़रानी हो गईं</p>
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<p>ख़ुशबुओं से भर उठे हैं दिन तुम्हारे ख्वाब से<br/>और तुम्हारे नाम से शामें सुहानी हो गईं</p>
<p></p>
<p>बाद मुद्दत देख कर इस शहर में फिर आपको<br/>बर्फ़ सी आँखें हमारी आज पानी हो गईं</p>
<p></p>
<p>इक मुसव्विर ने छुआ तो बन गया पत्थर ख़ुदा<br/>इश्क़ से मिलकर वफ़ाएँ जाविदानी हो गईं</p>
<p></p>
<p>देखते ही ख़ुद-ब-ख़ुद आँखों ने कलमा पढ़ दिया<br/>"जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं"</p>
<p></p>
<p>वो सदाएँ आयी थीं जो पर्वतों से लौटकर</p>
<p>कुछ ग़ज़ल में ढल गईं और कुछ कहानी हो गईं</p>
<p></p>
<p>मर गया मिसरा वफ़ा का रेज़ा रेज़ा टूट कर<br/>बेवफ़ा ग़ज़लें हमारी तर्जुमानी हो गईं</p>
<p></p>
<p>ज़िन्दगी तुम रंग चाहे जो कोई भी ढूँढ लो<br/>सारी तस्वीरें तुम्हारी अब पुरानी हो गईं</p> दूसरे शायरों के बारे में क्या…tag:www.openbooksonline.com,2017-04-12:5170231:Comment:8486452017-04-12T16:59:39.384ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
दूसरे शायरों के बारे में क्या कह सकता हूँ,हम तो यहां आपके मिसरे पर बात कर रहे हैं,यहां 'खो बैठे'पूरा वाक्य है इसलिये 'खो'शब्द यहां स्वतंत्र नहीं रहेगा,अंत में अगर फेलुन 22 होता तो आप उसे 112 कर सकते थे,लेकिन यहां अंत में फाइलुन है इसलिए बीच में अनिवार्य लघु है,इसलिये मात्रा नहीं गिराई जा सकती,उम्मीद है अब बात स्पष्ट हो गई होगी ?
दूसरे शायरों के बारे में क्या कह सकता हूँ,हम तो यहां आपके मिसरे पर बात कर रहे हैं,यहां 'खो बैठे'पूरा वाक्य है इसलिये 'खो'शब्द यहां स्वतंत्र नहीं रहेगा,अंत में अगर फेलुन 22 होता तो आप उसे 112 कर सकते थे,लेकिन यहां अंत में फाइलुन है इसलिए बीच में अनिवार्य लघु है,इसलिये मात्रा नहीं गिराई जा सकती,उम्मीद है अब बात स्पष्ट हो गई होगी ? आदरणीय, मेरे कहने का अर्थ ये…tag:www.openbooksonline.com,2017-04-12:5170231:Comment:8487322017-04-12T16:40:04.527ZDayaram Methanihttp://www.openbooksonline.com/profile/DayaramMethani
<p>आदरणीय, मेरे कहने का अर्थ ये था कि खो बैठे में खो स्वतंत्र है आैर बैठे अलग है। कई शायरों को एेसे शब्द जिसमें दोनों दीर्घ मात्रा होती है उसमें प्रथम मात्रा को लघु करते देखा है। इस लिये अपनी जानकारी के लिये जानना चाहा था। जवाब देने के लिये धन्यवाद। सादर।</p>
<p>आदरणीय, मेरे कहने का अर्थ ये था कि खो बैठे में खो स्वतंत्र है आैर बैठे अलग है। कई शायरों को एेसे शब्द जिसमें दोनों दीर्घ मात्रा होती है उसमें प्रथम मात्रा को लघु करते देखा है। इस लिये अपनी जानकारी के लिये जानना चाहा था। जवाब देने के लिये धन्यवाद। सादर।</p> सबसे पहले तो जवाब देर से देने…tag:www.openbooksonline.com,2017-04-10:5170231:Comment:8483882017-04-10T18:09:10.703ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
सबसे पहले तो जवाब देर से देने के लिये क्षमा चाहता हूँ ।<br />
आपके मिसरे का आख़री शब्द है "खो बैठे"अब चूँकि आख़री रुक्न फाइलुन है इस लिहाज़ से यहाँ 212 लेना है,और आपका आख़री शब्द है "खो बैठे"तो इस शब्द में आप बीच के शब्द 'बै' की मात्रा गिरा नहीं सकते क्योंकि वहाँ अनिवार्य लघु है, उसे आप नहीं गिरा सकते,आप खो बैठे'के स्थान पर 'खो दिये'कर देंगे तो मिसरा बह्र में हो जायेगा,उम्मीद है बात स्पष्ट हुई होगी ?
सबसे पहले तो जवाब देर से देने के लिये क्षमा चाहता हूँ ।<br />
आपके मिसरे का आख़री शब्द है "खो बैठे"अब चूँकि आख़री रुक्न फाइलुन है इस लिहाज़ से यहाँ 212 लेना है,और आपका आख़री शब्द है "खो बैठे"तो इस शब्द में आप बीच के शब्द 'बै' की मात्रा गिरा नहीं सकते क्योंकि वहाँ अनिवार्य लघु है, उसे आप नहीं गिरा सकते,आप खो बैठे'के स्थान पर 'खो दिये'कर देंगे तो मिसरा बह्र में हो जायेगा,उम्मीद है बात स्पष्ट हुई होगी ? आदरणीय समर कबीर जी,
बैठे शब्द…tag:www.openbooksonline.com,2017-04-07:5170231:Comment:8477552017-04-07T07:17:32.621ZDayaram Methanihttp://www.openbooksonline.com/profile/DayaramMethani
<p>आदरणीय समर कबीर जी,</p>
<p>बैठे शब्द में दोनों दीर्घ मात्रा है। मैने कई गजलकारों को एेसे शब्दों में प्रथम दीर्घ मात्रा को लघु करते देखा है। इसी आधार पर बैठे की बै काे मैंने लघु गिना था। मैं केवल ये समझना चाहता हूं कि जब शब्द में दोनों दीर्घ मात्रा है तो हम प्रथम दीर्घ मात्रा को लघु कर सकते है या नहीं? सादर।</p>
<p>दयाराम मेठानी</p>
<p>आदरणीय समर कबीर जी,</p>
<p>बैठे शब्द में दोनों दीर्घ मात्रा है। मैने कई गजलकारों को एेसे शब्दों में प्रथम दीर्घ मात्रा को लघु करते देखा है। इसी आधार पर बैठे की बै काे मैंने लघु गिना था। मैं केवल ये समझना चाहता हूं कि जब शब्द में दोनों दीर्घ मात्रा है तो हम प्रथम दीर्घ मात्रा को लघु कर सकते है या नहीं? सादर।</p>
<p>दयाराम मेठानी</p> 'कामयाबी के नशे में होश अपना…tag:www.openbooksonline.com,2017-04-07:5170231:Comment:8477512017-04-07T05:23:25.150ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
'कामयाबी के नशे में होश अपना खो बैठे'<br />
इस मिसरे में 'खो बैठे'222 है जबकि 212 होना चाहिए न ,आपका मिसरा यूँ किया जा सकता है :-<br />
"कामयाबी के नशे में होश अपने खो दिये"<br />
'भोली भाली आम जनता'में एक ही वचन है, बहुवचन नहीं,ग़ौर कीजियेगा ।
'कामयाबी के नशे में होश अपना खो बैठे'<br />
इस मिसरे में 'खो बैठे'222 है जबकि 212 होना चाहिए न ,आपका मिसरा यूँ किया जा सकता है :-<br />
"कामयाबी के नशे में होश अपने खो दिये"<br />
'भोली भाली आम जनता'में एक ही वचन है, बहुवचन नहीं,ग़ौर कीजियेगा । आदरणीय,
कामयाबी के नशे में हो…tag:www.openbooksonline.com,2017-04-06:5170231:Comment:8477392017-04-06T17:33:37.872ZDayaram Methanihttp://www.openbooksonline.com/profile/DayaramMethani
<p>आदरणीय,</p>
<p><span>कामयाबी के नशे में होश अपना खो बैठे 2122 2122 2122 212</span></p>
<p><span>को आपने बहर से खारिज किया है। ये कैसे खारिज हुआ। बैठे में बै को लघु किया है क्या इस कारण?</span></p>
<p><span><span>भोली भाली आम जनता अब सयानी हो गईं........में भी आपने कमी बताई है। आम जनता को तो बहु वचन ही माना जाता है। फिर कमी कहा रह गई? कृपया मार्ग दर्शन करें।</span></span></p>
<p><span><span>- दयाराम मेठानी</span></span></p>
<p>आदरणीय,</p>
<p><span>कामयाबी के नशे में होश अपना खो बैठे 2122 2122 2122 212</span></p>
<p><span>को आपने बहर से खारिज किया है। ये कैसे खारिज हुआ। बैठे में बै को लघु किया है क्या इस कारण?</span></p>
<p><span><span>भोली भाली आम जनता अब सयानी हो गईं........में भी आपने कमी बताई है। आम जनता को तो बहु वचन ही माना जाता है। फिर कमी कहा रह गई? कृपया मार्ग दर्शन करें।</span></span></p>
<p><span><span>- दयाराम मेठानी</span></span></p> धन्यवाद आदरणीय !tag:www.openbooksonline.com,2017-03-30:5170231:Comment:8455882017-03-30T15:35:48.434Zभुवन निस्तेजhttp://www.openbooksonline.com/profile/BHUWANNISTEJ
धन्यवाद आदरणीय !
धन्यवाद आदरणीय ! 'बे-मआनी'क़ाफ़िया ही गलत है,भाई…tag:www.openbooksonline.com,2017-03-30:5170231:Comment:8454052017-03-30T05:34:31.450ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
'बे-मआनी'क़ाफ़िया ही गलत है,भाई भुवन निस्तेज जी,इस पर आयोजन में हुई चर्चा नहीं पढ़ी आपने ?
'बे-मआनी'क़ाफ़िया ही गलत है,भाई भुवन निस्तेज जी,इस पर आयोजन में हुई चर्चा नहीं पढ़ी आपने ? आदरणीय राणा भाई, एक दुविधा हो…tag:www.openbooksonline.com,2017-03-29:5170231:Comment:8453022017-03-29T18:02:58.446Zभुवन निस्तेजhttp://www.openbooksonline.com/profile/BHUWANNISTEJ
आदरणीय राणा भाई, एक दुविधा हो गई है, वह ये कि 'ज़र्द पत्तों की सदाएँ बे-मआनी हो गईं' को मैंने<br />
ज़र्द पत्तों/2122/की सदाएँ/2122/बे-मआनी/2122/हो गईं/212/ लिया है पर मिसरे की लाली कन्फ्यूज कर गयी ।
आदरणीय राणा भाई, एक दुविधा हो गई है, वह ये कि 'ज़र्द पत्तों की सदाएँ बे-मआनी हो गईं' को मैंने<br />
ज़र्द पत्तों/2122/की सदाएँ/2122/बे-मआनी/2122/हो गईं/212/ लिया है पर मिसरे की लाली कन्फ्यूज कर गयी ।