"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-61 (विषय: प्रकृति) - Open Books Online2024-03-28T18:10:57Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/61-5?commentId=5170231%3AComment%3A1005306&xg_raw_resources=1&feed=yes&xn_auth=noआदाब। रचना पटल पर प्रथम उपस्थ…tag:www.openbooksonline.com,2020-04-30:5170231:Comment:10054692020-04-30T18:14:12.204ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>आदाब। रचना पटल पर प्रथम उपस्थिति और इस प्रोत्साहक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा।</p>
<p>आदाब। रचना पटल पर प्रथम उपस्थिति और इस प्रोत्साहक टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा।</p> देख तमाशा कुदरत का.........
…tag:www.openbooksonline.com,2020-04-30:5170231:Comment:10056072020-04-30T18:13:23.371Zbabitaguptahttp://www.openbooksonline.com/profile/babitagupta631
<p>देख तमाशा कुदरत का.........</p>
<p> टीव्ही पर कोरोना वायरस के कहर से त्रस्त जनता,प्रशासन व नेताओं के दंगल दिखाये जा रहे थे,वही लाॅकडाउन से वातावरण में शुद्धता का प्रतिशत बढ रहा था।शहरों में जहां इंसान नदारत था,गाङी-घोङो की कानफोङ आवाजें कही गुल हो गई थी तो डरकर छुपे जानवरों की चहल-पहल सङकों पर दिख रही थी जैसे वो सोच रहा हैं, कहीं मैं गलत जगह तो नहीं आ गया।पशु-पक्षियों की चहचहाट,शुद्ध हवा,चारों तरफ हरियाली सब कुछ खुशगवार बस,मनुष्य ही पिंजरे में कैद। ऐसा देखसुन कर चीकू को खिङकी से झांकते देख…</p>
<p>देख तमाशा कुदरत का.........</p>
<p> टीव्ही पर कोरोना वायरस के कहर से त्रस्त जनता,प्रशासन व नेताओं के दंगल दिखाये जा रहे थे,वही लाॅकडाउन से वातावरण में शुद्धता का प्रतिशत बढ रहा था।शहरों में जहां इंसान नदारत था,गाङी-घोङो की कानफोङ आवाजें कही गुल हो गई थी तो डरकर छुपे जानवरों की चहल-पहल सङकों पर दिख रही थी जैसे वो सोच रहा हैं, कहीं मैं गलत जगह तो नहीं आ गया।पशु-पक्षियों की चहचहाट,शुद्ध हवा,चारों तरफ हरियाली सब कुछ खुशगवार बस,मनुष्य ही पिंजरे में कैद। ऐसा देखसुन कर चीकू को खिङकी से झांकते देख दादाजी पूछा,'क्या देख रहे हो,बेटा?'</p>
<p>'कुछ नहीं दादाजी। जो टीव्ही पर दिखाया क्या वो सही हैं! '</p>
<p>'बिल्कुल सही हैं, बेटा!देखों आसमान में, आसपास देखों, सङकों पर आराम से टहलते गाय,कुत्ते को देखों.......'</p>
<p>'हां दादाजी,इससे पहले इतनी तरह के पक्षियों को नहीं देखा।गाय आराम से घास खा रही हैं, और दादाजी,जो पेङ गाड़ियों के धुएं से मुरझा जाते थे,वो सब हरे-भरे हो गये।'</p>
<p>'कितना शुकून और शांति हैं '</p>
<p>'हां दादाजी, हमे भी बाहर घूमने जाना हैं,'मिलते हुये चीकू ने कहा।</p>
<p>'पर बेटा,सोशल डिस्टेन्स बनाना होगा और फिर लाॅकडाउन के कारण घर पर ही रहना होगा,कोरोना वायरस के कारण.'</p>
<p>'हां, वो बहार घूम रहे और हम घर में बंद....'</p>
<p>'यही तो कुदरत का तमाशा हैं। </p>
<p></p>
<p></p>
<p>मौलिक व अप्रकाशित हैं </p> आदाब। सर, मेरी दृष्टि में यह…tag:www.openbooksonline.com,2020-04-30:5170231:Comment:10053062020-04-30T18:10:00.087ZSheikh Shahzad Usmanihttp://www.openbooksonline.com/profile/SheikhShahzadUsmani
<p>आदाब। सर, मेरी दृष्टि में यह एक बेहतरीन लघुकथा ही नहीं, यह बेहतरीन बालमन की लघुकथा भी है। </p>
<p>आदाब। सर, मेरी दृष्टि में यह एक बेहतरीन लघुकथा ही नहीं, यह बेहतरीन बालमन की लघुकथा भी है। </p> आपका आभार आदरणीया बबीता जी।tag:www.openbooksonline.com,2020-04-30:5170231:Comment:10053052020-04-30T17:51:46.406ZManan Kumar singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
<p>आपका आभार आदरणीया बबीता जी।</p>
<p>आपका आभार आदरणीया बबीता जी।</p> आपका आभार आदरणीय सतविंदर जी।tag:www.openbooksonline.com,2020-04-30:5170231:Comment:10054682020-04-30T17:51:05.242ZManan Kumar singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
<p>आपका आभार आदरणीय सतविंदर जी।</p>
<p>आपका आभार आदरणीय सतविंदर जी।</p> आपका आभार आदरणीय ओम जी।tag:www.openbooksonline.com,2020-04-30:5170231:Comment:10055352020-04-30T17:50:28.775ZManan Kumar singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
<p>आपका आभार आदरणीय ओम जी।</p>
<p>आपका आभार आदरणीय ओम जी।</p> मानवीकरण की बेहतरीन व्याख्या…tag:www.openbooksonline.com,2020-04-30:5170231:Comment:10053932020-04-30T17:48:14.507Zbabitaguptahttp://www.openbooksonline.com/profile/babitagupta631
<p> मानवीकरण की बेहतरीन व्याख्या! बहुत-बहुत बधाई सरजी।</p>
<p> मानवीकरण की बेहतरीन व्याख्या! बहुत-बहुत बधाई सरजी।</p> बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वी…tag:www.openbooksonline.com,2020-04-30:5170231:Comment:10055342020-04-30T17:39:48.425Zbabitaguptahttp://www.openbooksonline.com/profile/babitagupta631
<p>बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी! </p>
<p>बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी! </p> आखिर प्रकृति ने अपना डंडा चला…tag:www.openbooksonline.com,2020-04-30:5170231:Comment:10053922020-04-30T17:34:13.948Zbabitaguptahttp://www.openbooksonline.com/profile/babitagupta631
<p>आखिर प्रकृति ने अपना डंडा चला कर सकारात्मक परिणाम दिए,बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी! </p>
<p>आखिर प्रकृति ने अपना डंडा चला कर सकारात्मक परिणाम दिए,बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी! </p> बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वी…tag:www.openbooksonline.com,2020-04-30:5170231:Comment:10053042020-04-30T17:30:50.165Zbabitaguptahttp://www.openbooksonline.com/profile/babitagupta631
<p>बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी।</p>
<p>बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी।</p>