"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-62 - Open Books Online2024-03-28T22:42:31Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/61-1?commentId=5170231%3AComment%3A691541&x=1&feed=yes&xn_auth=noधन्यवाद आदरणीय सौरभ सर जीtag:www.openbooksonline.com,2015-08-22:5170231:Comment:6915412015-08-22T18:29:58.403Zshree suneelhttp://www.openbooksonline.com/profile/shreesuneel
धन्यवाद आदरणीय सौरभ सर जी
धन्यवाद आदरणीय सौरभ सर जी धन्यवाद आदरणीय समर कबीर सर जी…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-22:5170231:Comment:6913542015-08-22T18:29:30.871Zshree suneelhttp://www.openbooksonline.com/profile/shreesuneel
धन्यवाद आदरणीय समर कबीर सर जी..
धन्यवाद आदरणीय समर कबीर सर जी.. ग़ज़ल को पसंद करने केलिए हार्दि…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-22:5170231:Comment:6914452015-08-22T18:28:05.422ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>ग़ज़ल को पसंद करने केलिए हार्दिक धन्यवाद, नादिर भाई साहब. </p>
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<p>ग़ज़ल को पसंद करने केलिए हार्दिक धन्यवाद, नादिर भाई साहब. </p>
<p></p> आदरणीय गिरिराज सर जी, ग़ज़ल प…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-22:5170231:Comment:6913532015-08-22T18:27:02.236Zshree suneelhttp://www.openbooksonline.com/profile/shreesuneel
आदरणीय गिरिराज सर जी, ग़ज़ल पे आपकी उपस्थिति व सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
आदरणीय गिरिराज सर जी, ग़ज़ल पे आपकी उपस्थिति व सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर. ग़ज़ल पे आने व इसकी सराहना के…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-22:5170231:Comment:6916122015-08-22T18:24:00.014Zshree suneelhttp://www.openbooksonline.com/profile/shreesuneel
ग़ज़ल पे आने व इसकी सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया. ज़ूदरसी.. यानि.. किसी बात की तह तक शीध्र पहुँच जाना, समझ जाना...
ग़ज़ल पे आने व इसकी सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया. ज़ूदरसी.. यानि.. किसी बात की तह तक शीध्र पहुँच जाना, समझ जाना... जनाब श्री सुनील जी,आदाब,इस प्…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-22:5170231:Comment:6915402015-08-22T18:23:46.417ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब श्री सुनील जी,आदाब,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
जनाब श्री सुनील जी,आदाब,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें । :-))
tag:www.openbooksonline.com,2015-08-22:5170231:Comment:6914442015-08-22T18:23:10.135ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>:-))</p>
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<p></p> जनाब मोहन बेगोवाल जी,आदाब,इस…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-22:5170231:Comment:6915392015-08-22T18:22:35.843ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब मोहन बेगोवाल जी,आदाब,इस प्रस्तुति पर दाद क़ुबूल करें ।
जनाब मोहन बेगोवाल जी,आदाब,इस प्रस्तुति पर दाद क़ुबूल करें । आदरणीय सुनील जी बढ़िया ग़ज़ल कही…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-22:5170231:Comment:6914432015-08-22T18:22:19.712Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय सुनील जी बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद हाज़िर है-</p>
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<p><span>है शाद दिल ये बहुत पास पर सुबू ही नहीं</span><br></br><span>बगै़र मय के रगों में लगे लहू ही नहीं........ बढ़िया मतला </span><br></br><br></br><span>अब इश्क़ है तो ज़माने की देख ज़ू़दरसी</span><br></br><span>वो राज़ जान गया जिसपे गुफ़्तगू ही नहीं........... ज़ू़दरसी क्या है ?</span><br></br><br></br><span>तुम्हारे शह्र में इक ऐब दिख रहा है मुझे</span><br></br><span>कि यां तो कू ए सनम सा कोई भी कू ही नहीं............ ये तो बड़ी दिक्कत की…</span></p>
<p>आदरणीय सुनील जी बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद हाज़िर है-</p>
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<p><span>है शाद दिल ये बहुत पास पर सुबू ही नहीं</span><br/><span>बगै़र मय के रगों में लगे लहू ही नहीं........ बढ़िया मतला </span><br/><br/><span>अब इश्क़ है तो ज़माने की देख ज़ू़दरसी</span><br/><span>वो राज़ जान गया जिसपे गुफ़्तगू ही नहीं........... ज़ू़दरसी क्या है ?</span><br/><br/><span>तुम्हारे शह्र में इक ऐब दिख रहा है मुझे</span><br/><span>कि यां तो कू ए सनम सा कोई भी कू ही नहीं............ ये तो बड़ी दिक्कत की बात हो गई... बहुत प्यारा शेर </span><br/><br/><span>हजा़र लफ्ज़ हैं उल्फ़त के इस फ़साने में (<strong>नस़्ब?)</strong></span><br/><span>अ़जीब ये कि कहीं लफ्ज़ 'आरज़ू' ही नहीं............... नस़्ब की जरुरत है क्या मिसरे में </span><br/><br/><span>दो चार गाम पे मंज़िल मिली है किसको यहाँ</span><br/><span>मेरे हिसाब से तुमने की जुस्तुजू ही नहीं........ वाह वाह बहुत खूब</span><br/><br/><span>तुम्हीं कहो कि ये मिस़्राअ कह रहा मुझे क्या</span><br/><span>मेरी तलाश में मिल जाए तू, तो तू ही नहीं........... गिरह के शेर से संतुष्ट नहीं हो पा रहा हूँ.</span></p>
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<p>थोड़ा समय चाह रही है ग़ज़ल मेरे विचार से. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई </p> जनाब नादिर ख़ान साहिब,आदाब,क्य…tag:www.openbooksonline.com,2015-08-22:5170231:Comment:6915382015-08-22T18:18:42.371ZSamar kabeerhttp://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब नादिर ख़ान साहिब,आदाब,क्या शानदार और मुरस्सा ग़ज़ल कही है आपने,सुनकर दिल बाग़ बाग़ हो गया,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं।
जनाब नादिर ख़ान साहिब,आदाब,क्या शानदार और मुरस्सा ग़ज़ल कही है आपने,सुनकर दिल बाग़ बाग़ हो गया,शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं।