ग़ज़ल-संक्षिप्त आधार जानकारी-8 - Open Books Online2024-03-29T08:41:50Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:78259?groupUrl=kaksha&feed=yes&xn_auth=noअगर आप अग्रिम रूप से इस बॉंट…tag:www.openbooksonline.com,2011-05-14:5170231:Comment:794182011-05-14T05:22:27.980ZTilak Raj Kapoorhttp://www.openbooksonline.com/profile/TilakRajKapoor
<p>अगर आप अग्रिम रूप से इस बॉंट तराजू को समझना चाहें तो <a href="http://quran.al-shia.org/hi/tajwid/01.htm">http://quran.al-shia.org/hi/tajwid/01.htm</a> पर देखें। वहॉं तर्ज़े अदा, लहज- ए- बयान की जो बात कही गयी है वह हर भाषा पर लागू होती है लेकिन वहॉं नियम केवल अरबी के हैं।</p>
<p>अगर आप अग्रिम रूप से इस बॉंट तराजू को समझना चाहें तो <a href="http://quran.al-shia.org/hi/tajwid/01.htm">http://quran.al-shia.org/hi/tajwid/01.htm</a> पर देखें। वहॉं तर्ज़े अदा, लहज- ए- बयान की जो बात कही गयी है वह हर भाषा पर लागू होती है लेकिन वहॉं नियम केवल अरबी के हैं।</p> इस पर बात अभी लंबित रखते हैं।…tag:www.openbooksonline.com,2011-05-13:5170231:Comment:792152011-05-13T15:11:49.414ZTilak Raj Kapoorhttp://www.openbooksonline.com/profile/TilakRajKapoor
<p>इस पर बात अभी लंबित रखते हैं। हॉं इतना अवश्य है कि जुज़ (जिसकी अभी हमने बात नहीं की है, और न अभी अवश्यक है आरंभिक बातों में) ही निर्धारित करते हैं कि रुक्न क्या होगा। मुस्, तफ़्, और लुन् भी 2 का वज़्न रखते हैं और ऊ, फ़ा, ला तथा ई भी 2 का वज़्न रखते हैं लेकिन दोनों को देखें तो प्रकृति का अंतर समझ में आता है। अरकान से आगे की बात अभी बोझिल हो जायेगी। इनकी बारीकी आपको समझनी हो तो प्रतीक्षा करनी पड़ेगी लेकिन कभी किसी मस्जि़द से उठती अजान को समझने का प्रयास करें तो काफ़ी कुछ समझ आ…</p>
<p>इस पर बात अभी लंबित रखते हैं। हॉं इतना अवश्य है कि जुज़ (जिसकी अभी हमने बात नहीं की है, और न अभी अवश्यक है आरंभिक बातों में) ही निर्धारित करते हैं कि रुक्न क्या होगा। मुस्, तफ़्, और लुन् भी 2 का वज़्न रखते हैं और ऊ, फ़ा, ला तथा ई भी 2 का वज़्न रखते हैं लेकिन दोनों को देखें तो प्रकृति का अंतर समझ में आता है। अरकान से आगे की बात अभी बोझिल हो जायेगी। इनकी बारीकी आपको समझनी हो तो प्रतीक्षा करनी पड़ेगी लेकिन कभी किसी मस्जि़द से उठती अजान को समझने का प्रयास करें तो काफ़ी कुछ समझ आ जायेगा।</p>
<p>यह सही 1212; 1212 जितना सरल है नहीं। </p> तीन दिन प्रवास बाद लौटा हूँ,…tag:www.openbooksonline.com,2011-05-13:5170231:Comment:788882011-05-13T13:22:29.085ZTilak Raj Kapoorhttp://www.openbooksonline.com/profile/TilakRajKapoor
<p>तीन दिन प्रवास बाद लौटा हूँ, इसलिये विलंब हो गया।</p>
<p>बह्र का एक अन्य अर्थ है समन्दर, अब इसी से आप समझ लें कि मामला कितना गंभीर है।</p>
<p>बात अंत में जुज़ पर भी नहीं ठहरती, यह पहुँचती है उत्पन्न होने वाले स्वर के मुतहर्रिक होने अथवा साकिन होने तक और फिर उनके अदा करने के तरीके तक। मुझे लगता है कि जिस गहराई तक आप डुबकी लगाना चाहते हैं वह अभी कुछ ज्यादह हो जायेगी।</p>
<p>तीन दिन प्रवास बाद लौटा हूँ, इसलिये विलंब हो गया।</p>
<p>बह्र का एक अन्य अर्थ है समन्दर, अब इसी से आप समझ लें कि मामला कितना गंभीर है।</p>
<p>बात अंत में जुज़ पर भी नहीं ठहरती, यह पहुँचती है उत्पन्न होने वाले स्वर के मुतहर्रिक होने अथवा साकिन होने तक और फिर उनके अदा करने के तरीके तक। मुझे लगता है कि जिस गहराई तक आप डुबकी लगाना चाहते हैं वह अभी कुछ ज्यादह हो जायेगी।</p> तिलक जी, एक और बात. निम्न सभी…tag:www.openbooksonline.com,2011-05-11:5170231:Comment:789222011-05-11T07:40:31.409ZRajeev Bharolhttp://www.openbooksonline.com/profile/RajeevBharol
<p>तिलक जी, एक और बात. निम्न सभी का वज़न २ हुआ...</p>
<p>मुस् = २,</p>
<p>तफ = २</p>
<p>लुन = २</p>
<p>ऊ = २</p>
<p>ला = २</p>
<p>अब १२२ को 'फऊलुन' ही क्यों कहा जाता है? 'मफालुन' क्यों नहीं? क्या इसलिए कि 'फऊलुन' के जुज़ 'मफालुन' के जुज़ से अलग होंगे... अगर ऐसा है तो क्या हम जो १२२ की गिनती से तकती (बिना जुज़ देखे) से कर रहे हैं वो गलत है(या हो सकती है)? लेकिन अगर गलत गिनती कर भी रहे हैं तो अगर गज़ल सुनने पढ़ने में लय में है तो फिर १२२ को 'फऊलुन' कहें या 'मफालुन', क्या कोई अंतर पड़ता है? कृप्या…</p>
<p>तिलक जी, एक और बात. निम्न सभी का वज़न २ हुआ...</p>
<p>मुस् = २,</p>
<p>तफ = २</p>
<p>लुन = २</p>
<p>ऊ = २</p>
<p>ला = २</p>
<p>अब १२२ को 'फऊलुन' ही क्यों कहा जाता है? 'मफालुन' क्यों नहीं? क्या इसलिए कि 'फऊलुन' के जुज़ 'मफालुन' के जुज़ से अलग होंगे... अगर ऐसा है तो क्या हम जो १२२ की गिनती से तकती (बिना जुज़ देखे) से कर रहे हैं वो गलत है(या हो सकती है)? लेकिन अगर गलत गिनती कर भी रहे हैं तो अगर गज़ल सुनने पढ़ने में लय में है तो फिर १२२ को 'फऊलुन' कहें या 'मफालुन', क्या कोई अंतर पड़ता है? कृप्या अरकान को गहराई में समझाएं कि इनका महत्व क्या है और हमें इन्हें जानने कि ज़रूरत क्यों है. महत्त्व तो होगा ही नहीं तो पूरा अरूज़ १२१२ पर ही समाप्त हो जाए...</p> तिलक जी,
रुक्न जानने की ज़रूरत…tag:www.openbooksonline.com,2011-05-10:5170231:Comment:785462011-05-10T08:14:17.828ZRajeev Bharolhttp://www.openbooksonline.com/profile/RajeevBharol
<p>तिलक जी,</p>
<p>रुक्न जानने की ज़रूरत क्यों है? और गेय स्वरूप के लिए 'ल ला ला ला' भी तो किया जा सकता है 'मुफाईलुन' ही क्यों?</p>
<p>क्या इतना जानना काफी नहीं कि दो लघु एक साथ मिल कर एक दीर्घ हो जाते हैं और २ का वज़न ले लेते हैं. जुज़ वगेरा जानने की क्या आवश्यकता है. एक दिन सरवर आलम राज सरवर जी से बात हो रही थी. उन्होंने कहा कि १२ १२ का तरीका शुरू में ही ठीक है लेकिन अगर तकतीअ की बारीकियों में जाएँ तो यह काम नहीं आती.. मेरे दिमाग में अटक गया कि क्यों? अभी तक हम किसी भी बह्र को १२ से आसानी से…</p>
<p>तिलक जी,</p>
<p>रुक्न जानने की ज़रूरत क्यों है? और गेय स्वरूप के लिए 'ल ला ला ला' भी तो किया जा सकता है 'मुफाईलुन' ही क्यों?</p>
<p>क्या इतना जानना काफी नहीं कि दो लघु एक साथ मिल कर एक दीर्घ हो जाते हैं और २ का वज़न ले लेते हैं. जुज़ वगेरा जानने की क्या आवश्यकता है. एक दिन सरवर आलम राज सरवर जी से बात हो रही थी. उन्होंने कहा कि १२ १२ का तरीका शुरू में ही ठीक है लेकिन अगर तकतीअ की बारीकियों में जाएँ तो यह काम नहीं आती.. मेरे दिमाग में अटक गया कि क्यों? अभी तक हम किसी भी बह्र को १२ से आसानी से ठीक ठाक पहचान लेते हैं तो और क्या बारीकी हो सकती है और अगर है भी तो क्या और ज़रूरत क्या है? क्या ऐसा है की जिन बारीकियों की वो बात कर रहे थे वे उर्दू और अरबी के अलफ़ाज़ में ही लागू होती है?</p> 1 2 तो मात्रिक वज़्न हुए। इन…tag:www.openbooksonline.com,2011-05-10:5170231:Comment:783702011-05-10T07:27:40.554ZTilak Raj Kapoorhttp://www.openbooksonline.com/profile/TilakRajKapoor
<p>1 2 तो मात्रिक वज़्न हुए। इनसे पता नहीं चलता कि रुक्न क्या हैं, रुक्न पता चलने पर जुज़ मालूम होंगे और ज़़ज़ मालूम होने पर ही मालूम हो सकेगा कि जहॉं 2 का वज़्न है वहॉं दोनों मुतहर्रिक हैं या एक मुतहर्रिक और एक साकिन।</p>
<p>एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि अरकान गेय स्वरूप हैं मात्राओं के। अगर आप अरकान को गेय स्वरूप या तहत में पढ़ेंगे तो ग़ज़ल कहना आसान रहेगा।</p>
<p>1 2 तो मात्रिक वज़्न हुए। इनसे पता नहीं चलता कि रुक्न क्या हैं, रुक्न पता चलने पर जुज़ मालूम होंगे और ज़़ज़ मालूम होने पर ही मालूम हो सकेगा कि जहॉं 2 का वज़्न है वहॉं दोनों मुतहर्रिक हैं या एक मुतहर्रिक और एक साकिन।</p>
<p>एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि अरकान गेय स्वरूप हैं मात्राओं के। अगर आप अरकान को गेय स्वरूप या तहत में पढ़ेंगे तो ग़ज़ल कहना आसान रहेगा।</p> तिलक जी,
अरकान के नामों "फायल…tag:www.openbooksonline.com,2011-05-10:5170231:Comment:786202011-05-10T05:59:59.952ZRajeev Bharolhttp://www.openbooksonline.com/profile/RajeevBharol
<p>तिलक जी,</p>
<p>अरकान के नामों "फायलुन", "फऊलुन" इत्यादि का क्या महत्त्व है.. यदि बह्र को १२ कि गिनती से आराम से गिना जा सकता है?</p>
<p>इन नामों में ऐसा क्या है जो १२ कि गिनती से नहीं किया जा सकता?</p>
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<p>तिलक जी,</p>
<p>अरकान के नामों "फायलुन", "फऊलुन" इत्यादि का क्या महत्त्व है.. यदि बह्र को १२ कि गिनती से आराम से गिना जा सकता है?</p>
<p>इन नामों में ऐसा क्या है जो १२ कि गिनती से नहीं किया जा सकता?</p>
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