कथा नही यह,सत्य है - Open Books Online2024-03-29T07:38:38Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:529614?groupUrl=sarokaar&commentId=5170231%3AComment%3A593030&xg_source=activity&groupId=5170231%3AGroup%3A13380&feed=yes&xn_auth=noआदरणीय श्रीवास्तव जी,
आपकी उद…tag:www.openbooksonline.com,2014-12-21:5170231:Comment:5970792014-12-21T13:20:15.404ZVindu Babuhttp://www.openbooksonline.com/profile/vandanatiwari
आदरणीय श्रीवास्तव जी,<br />
आपकी उदारता को प्रणाम।<br />
कई बार समाज से रूबरू होते अनेक प्रश्न मेरे दिमाग में छिदते हैं,कभी समय के साथ उनके उत्तर मिल जाते हैं कुछ मन में रेंगते रहते हैं।<br />
आपने प्रश्नों को मान दिया,हार्दिक आभार।<br />
सादर
आदरणीय श्रीवास्तव जी,<br />
आपकी उदारता को प्रणाम।<br />
कई बार समाज से रूबरू होते अनेक प्रश्न मेरे दिमाग में छिदते हैं,कभी समय के साथ उनके उत्तर मिल जाते हैं कुछ मन में रेंगते रहते हैं।<br />
आपने प्रश्नों को मान दिया,हार्दिक आभार।<br />
सादर आदरणीया अर्चना जी आपनेलिखे का…tag:www.openbooksonline.com,2014-12-17:5170231:Comment:5953652014-12-17T00:56:54.078ZVindu Babuhttp://www.openbooksonline.com/profile/vandanatiwari
<p>आदरणीया अर्चना जी आपनेलिखे का मर्म समझा,मान दियाक्ल<br/> ,इसके लिए आपका हार्दिक आभार।<br/>
सहयोग बनाए रखें।<br/>
सादर।</p>
<p>आदरणीया अर्चना जी आपनेलिखे का मर्म समझा,मान दियाक्ल<br/> ,इसके लिए आपका हार्दिक आभार।<br/>
सहयोग बनाए रखें।<br/>
सादर।</p> वंदना जी
कुंदन के स्वाभिमान क…tag:www.openbooksonline.com,2014-12-07:5170231:Comment:5930562014-12-07T08:45:32.667Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://www.openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>वंदना जी</p>
<p>कुंदन के स्वाभिमान के कारण जो प्रश्न आपने उठाये वह सब आपके संवेदन शील व्यक्तित्व के पर्याय है i पर ये प्रश्न शाश्वत है i सादर i</p>
<p>वंदना जी</p>
<p>कुंदन के स्वाभिमान के कारण जो प्रश्न आपने उठाये वह सब आपके संवेदन शील व्यक्तित्व के पर्याय है i पर ये प्रश्न शाश्वत है i सादर i</p> विंदू बाबू,इस दर्द भरे सत्य न…tag:www.openbooksonline.com,2014-12-06:5170231:Comment:5930302014-12-06T10:31:51.894ZArchana Tripathihttp://www.openbooksonline.com/profile/ArchanaTripathi
विंदू बाबू,इस दर्द भरे सत्य ने दिल को छु लिया।बधाई देने का मन नहीं है ,क्योंकि दुःख में मैं भी शरीक हूँ।<br />
दर्द जब हद से ज्यादा हो जाता है ,तो उसके होने ना होने का अहसास ही ख़त्म हो जाता है।
विंदू बाबू,इस दर्द भरे सत्य ने दिल को छु लिया।बधाई देने का मन नहीं है ,क्योंकि दुःख में मैं भी शरीक हूँ।<br />
दर्द जब हद से ज्यादा हो जाता है ,तो उसके होने ना होने का अहसास ही ख़त्म हो जाता है। आदरणीय विजय सर:
आपको सादर…tag:www.openbooksonline.com,2014-04-26:5170231:Comment:5345922014-04-26T16:58:37.198ZVindu Babuhttp://www.openbooksonline.com/profile/vandanatiwari
<p> आदरणीय विजय सर:</p>
<p>आपको सादर प्रणाम।क्षमा करें आदरणीय जो मैं भी तो 17 अप्रैल से आज26 को अप्रैल को उपस्थित हो पा रही हूँ। </p>
<p></p>
<p>मैंने भी आपकी प्रतिक्रिया देखी तो तुरंत थी परन्तु उस समय मेरा दिमाग मुझे कोई भी प्रतिक्रिया न दे सकी,इसलिए देर हो गई।</p>
<p></p>
<p>आपने जिन कुंदन को जीविका दी...आत्मविश्वास बढ़ाया...उनके बच्चों के लिए राह प्रशस्त की,उनके लिए कुछ लिखने का साहस नहीं जुटा पा रहे उथे आप, ये कैसी विसंगत सी बात है आदरणीय। कहना,…</p>
<p> आदरणीय विजय सर:</p>
<p>आपको सादर प्रणाम।क्षमा करें आदरणीय जो मैं भी तो 17 अप्रैल से आज26 को अप्रैल को उपस्थित हो पा रही हूँ। </p>
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<p>मैंने भी आपकी प्रतिक्रिया देखी तो तुरंत थी परन्तु उस समय मेरा दिमाग मुझे कोई भी प्रतिक्रिया न दे सकी,इसलिए देर हो गई।</p>
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<p>आपने जिन कुंदन को जीविका दी...आत्मविश्वास बढ़ाया...उनके बच्चों के लिए राह प्रशस्त की,उनके लिए कुछ लिखने का साहस नहीं जुटा पा रहे उथे आप, ये कैसी विसंगत सी बात है आदरणीय। कहना, लिखना <strong>करने</strong> <strong>से</strong> मुश्किल तो नहीं होता!</p>
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<p>बड़ा अच्छा लग रहा है बताते हुए कि कुंदन जी के यहाँ अभी तक अनाज संजोने को कोई पात्र या व्यवस्था नही थी,तो थोड़ा ही अनाज एकत्र करते थे। इसबार उन्होंने <strong>आपकी</strong> <strong>सहायता</strong> से अनाज रखने की व्यवस्था बना ली और परिवार भर मिलकर मेहनत से ढेर सारा आगे के लिए अनाज भी एकत्र कर लिया। कितना हलका होगा उनका आने वाला समय जब यह व्यवस्था पहले से ही हो गई है।</p>
<p></p>
<p>सोचा था इस सामाजिक मंच पर इस लेख के माध्यम से और भी समाज के आन्तरिक विन्दुओं को सुनने और कहने का सुअवसर मिलेगा...अनुभव कुछ परिपक्व होगा,लेकिन यहाँ भी मेरी आपकी व्यक्तिगत चर्चा सी ही रह गई।</p>
<p></p>
<p>मुझे इन परिस्थितियों से रूबरू होने का अवसर सच में वरदान है...ईश्वर बनाये रखे।</p>
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<p>आपने कुंदन जी की सहायता कर कुंदन जी का ही नहीं मेरा भी बहुत मान बढ़ाया है,साथ ही मानवता को गौरव प्रदान किया है आदरणीय। आपके सुविचारों और सुकर्मों की छापहम सब पर पपड़े...ऐसी कामना करती हूँ।</p>
<p></p>
<p>सहयोग बनाये रखें आदरणीय,आपको बारम्बार नमन।</p>
<p>सादर</p> आदरणीया वंदना जी:
आपके १२…tag:www.openbooksonline.com,2014-04-17:5170231:Comment:5320382014-04-17T10:59:08.174Zvijay nikorehttp://www.openbooksonline.com/profile/vijaynikore
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<p>आदरणीया वंदना जी:</p>
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<p>आपके १२ अप्रेल के लेख पर आज १७ को आ रहा हूँ। यह नहीं कि तब पढ़ा नहीं था। यह भी नहीं कि इस अच्छे लेख पर प्रतिक्रिया लिखने के लिए समयाभाव था। जीवन की जानी-पहचानी दुखद वास्तविक्ता को पढ़कर लिखने का साहस नहीं बटोर पा रहा था।</p>
<p> </p>
<p>आपने कुंदन जी को, उनके सुचरित्र को, इस आलेख से हमसे परिचित कराया, आपका कोटि-कोटि आभार। कुंदन "मानवीय कुंदन" नहीं हैं ... आत्म-विश्वास, आत्म-सम्मान और भगवान में निष्ठा का उदाहरण बने, स्वयं में परिपूर्ण आत्मा हैं।…</p>
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<p>आदरणीया वंदना जी:</p>
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<p>आपके १२ अप्रेल के लेख पर आज १७ को आ रहा हूँ। यह नहीं कि तब पढ़ा नहीं था। यह भी नहीं कि इस अच्छे लेख पर प्रतिक्रिया लिखने के लिए समयाभाव था। जीवन की जानी-पहचानी दुखद वास्तविक्ता को पढ़कर लिखने का साहस नहीं बटोर पा रहा था।</p>
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<p>आपने कुंदन जी को, उनके सुचरित्र को, इस आलेख से हमसे परिचित कराया, आपका कोटि-कोटि आभार। कुंदन "मानवीय कुंदन" नहीं हैं ... आत्म-विश्वास, आत्म-सम्मान और भगवान में निष्ठा का उदाहरण बने, स्वयं में परिपूर्ण आत्मा हैं। <strong>मेरे लिए वह भगवान हैं।</strong> कभी हरदोई आया तो उनसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त करूँगा।</p>
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<p>आपके संपर्क के माध्यम कुंदन जी हमें जागृत कर रहे हैं .. कि जीवन का असली रूप क्या है, कठिनाइओं में जीवन को कैसे जीना है, भगवान में सही विश्वास क्या है ! ऐसे में हम अपना समय/अपना जीवन कैसे बिता रहे हैं?</p>
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<p>कितने लोग प्रवचन सुनने जाते हैं, वहां से ले कर क्या आते हैं? आप कुंदन जी से मिलने पर इतने गूढ़ प्रश्न ले कर आईं, आपका हार्दिक आभार।</p>
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<p>आपको और कुंदन जी को नमन।</p>
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