कामरूप छंद // --सौरभ - Open Books Online2024-03-28T12:48:55Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:526538?groupUrl=chhand&commentId=5170231%3AComment%3A646182&x=1&feed=yes&xn_auth=noआपका हार्दिक धन्यवाद भाईजी.
tag:www.openbooksonline.com,2015-04-27:5170231:Comment:6461822015-04-27T17:19:48.310ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आपका हार्दिक धन्यवाद भाईजी.</p>
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<p>आपका हार्दिक धन्यवाद भाईजी.</p>
<p></p> आदरणीय सौरभ सर आपने सही कहा 1…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-27:5170231:Comment:6461772015-04-27T16:18:08.125Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय सौरभ सर आपने सही कहा 18 मई 2014 को सम्पन्न हुए "<a href="http://www.openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/37-1" target="_blank">ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 37</a> में कामरूप छंद में रचनाएँ संकलित है। इन रचनाओं को छंद के मूलभूत नियमों के साथ पढ़ने से छंद को समझने में और लय पकड़ने में आसानी होगी। इसलिए उस आयोजन की <a href="http://www.openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/37-1" target="_blank">लिंक यहाँ</a> भी लगा दी है। सादर </p>
<p>आदरणीय सौरभ सर आपने सही कहा 18 मई 2014 को सम्पन्न हुए "<a href="http://www.openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/37-1" target="_blank">ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 37</a> में कामरूप छंद में रचनाएँ संकलित है। इन रचनाओं को छंद के मूलभूत नियमों के साथ पढ़ने से छंद को समझने में और लय पकड़ने में आसानी होगी। इसलिए उस आयोजन की <a href="http://www.openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/37-1" target="_blank">लिंक यहाँ</a> भी लगा दी है। सादर </p> इस कामरूप छन्द को केन्द्र में…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-26:5170231:Comment:6459002015-04-26T23:09:02.627ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>इस कामरूप छन्द को केन्द्र में रख कर ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का आयोजन हो चुका है, आदरणीय..</p>
<p></p>
<p>इस कामरूप छन्द को केन्द्र में रख कर ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का आयोजन हो चुका है, आदरणीय..</p>
<p></p> सीतारामजी, राम सीता, राम सीता…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-26:5170231:Comment:6457842015-04-26T19:17:23.795Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>सीतारामजी, राम सीता, राम सीताराम </p>
<p>-----</p>
<p>आदरणीय सौरभ सर, जानकारी के लिए आभार </p>
<p></p>
<p>एक निवेदन- कुछ और उदाहरण होते तो छंद की लय पकड़ने में सहजता होती.</p>
<p>सीतारामजी, राम सीता, राम सीताराम </p>
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<p>आदरणीय सौरभ सर, जानकारी के लिए आभार </p>
<p></p>
<p>एक निवेदन- कुछ और उदाहरण होते तो छंद की लय पकड़ने में सहजता होती.</p> आदरणीय सौरभ जी
आपने गेयता का…tag:www.openbooksonline.com,2014-05-22:5170231:Comment:5431332014-05-22T05:34:01.169Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://www.openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आदरणीय सौरभ जी</p>
<p>आपने गेयता का जो क्रम दिया है वह समीचीन है i आप्यायित i धन्यवाद श्रीमन i</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी</p>
<p>आपने गेयता का जो क्रम दिया है वह समीचीन है i आप्यायित i धन्यवाद श्रीमन i</p> //पदों की यति 9,7,10 तो सही…tag:www.openbooksonline.com,2014-05-21:5170231:Comment:5428502014-05-21T12:41:41.404ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>//पदों की यति 9,7,10 तो सही है पर संगठन 9+7+7+2+1 होना भी शायद एक्षित है //</p>
<p></p>
<p>दोनों विन्यासों का अंतर समझना आवश्यक है आदरणीय गोपालजी. <br></br><br></br>9,7,10 का अर्थ है कि इस छन्द के एक पद में तीन चरण होंगे. जिनकी कुल मात्राएँ क्रमशः 9, 7 और 10 होंगी. इस विन्यास की मात्रिकता को गेयता के अनुसार ऐसे भी लिख सकते हैं -<br></br>22122, 2122, 21 22 21 <br></br>या<br></br>22122, 2122, 12 22 21<br></br>यानि, उपरोक्त मात्रिकता के अनुसार इस छन्द के तीन चरणों में शब्दों का चयन किया जा सकता है. <br></br><br></br>आपने…</p>
<p>//पदों की यति 9,7,10 तो सही है पर संगठन 9+7+7+2+1 होना भी शायद एक्षित है //</p>
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<p>दोनों विन्यासों का अंतर समझना आवश्यक है आदरणीय गोपालजी. <br/><br/>9,7,10 का अर्थ है कि इस छन्द के एक पद में तीन चरण होंगे. जिनकी कुल मात्राएँ क्रमशः 9, 7 और 10 होंगी. इस विन्यास की मात्रिकता को गेयता के अनुसार ऐसे भी लिख सकते हैं -<br/>22122, 2122, 21 22 21 <br/>या<br/>22122, 2122, 12 22 21<br/>यानि, उपरोक्त मात्रिकता के अनुसार इस छन्द के तीन चरणों में शब्दों का चयन किया जा सकता है. <br/><br/>आपने जो विन्यास दिया है, आदरणीय, उसका कोई उद्येश्य या अर्थ समझ में नहीं आ रहा है. <br/>सादर<br/><br/></p> आदरणीय सौरभ जी
एक जिज्ञासा और…tag:www.openbooksonline.com,2014-05-21:5170231:Comment:5430072014-05-21T07:31:45.117Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://www.openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आदरणीय सौरभ जी</p>
<p>एक जिज्ञासा और है i पदों की यति 9,7,10 तो सही है पर संगठन 9+7+7+2+1 होना भी शायद एक्षित है i अनुमोदन या मार्ग दर्शन चाहूँगा</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी</p>
<p>एक जिज्ञासा और है i पदों की यति 9,7,10 तो सही है पर संगठन 9+7+7+2+1 होना भी शायद एक्षित है i अनुमोदन या मार्ग दर्शन चाहूँगा</p> प्रयास को समर्थन देने के लिए…tag:www.openbooksonline.com,2014-04-04:5170231:Comment:5276992014-04-04T09:21:44.605ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>प्रयास को समर्थन देने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया </p>
<p></p>
<p></p>
<p>//प्रतिपद,पहले व दुसरे चरण में भी समतुकान्ताता निर्वहन से यह छंद बहुत सुन्दर लगता है.//</p>
<p></p>
<p>अवश्य आदरणीया. किन्तु नियमानुसार ऐसी कोई बाध्यता नहीं है. मैं चूँकि मूलभूत नियमों को साझा कर रहा हूँ. अतः प्रयास रहता है कि कोई ऐसी बात न साझा हो जो वैसे तो मुझे --कुछ औरों को भी-- अच्छी तो लगती है लेकिन मूल नियम का हिस्सा नहीं है. अन्यथा, अनावश्यक ही अपनी बातें आरोपित करने का दोष मढ़ दिया जा सकता है. वैसे भी,…</p>
<p>प्रयास को समर्थन देने के लिए हार्दिक धन्यवाद आदरणीया </p>
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<p>//प्रतिपद,पहले व दुसरे चरण में भी समतुकान्ताता निर्वहन से यह छंद बहुत सुन्दर लगता है.//</p>
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<p>अवश्य आदरणीया. किन्तु नियमानुसार ऐसी कोई बाध्यता नहीं है. मैं चूँकि मूलभूत नियमों को साझा कर रहा हूँ. अतः प्रयास रहता है कि कोई ऐसी बात न साझा हो जो वैसे तो मुझे --कुछ औरों को भी-- अच्छी तो लगती है लेकिन मूल नियम का हिस्सा नहीं है. अन्यथा, अनावश्यक ही अपनी बातें आरोपित करने का दोष मढ़ दिया जा सकता है. वैसे भी, डेकोरेशन हमेशा से बाद की प्रक्रिया हुआ करती है. पहले घर तो बने.. . :-))</p>
<p>सादर</p>
<p></p> आदरणीय सौरभ जी,
यह छंद थोड़ा ज…tag:www.openbooksonline.com,2014-04-03:5170231:Comment:5276692014-04-03T16:16:07.434ZDr.Prachi Singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आदरणीय सौरभ जी,</p>
<p>यह छंद थोड़ा जटिल अवश्य है...</p>
<p>प्रतिपद चरणों का आरम्भ किन कलों से किया जाना चाहिए...ये बहुत ही उपयोगी जानकारी है</p>
<p>प्रतिपद,पहले व दुसरे चरण में भी समतुकान्ताता निर्वहन से यह छंद बहुत सुन्दर लगता है...जैसा कि प्रस्तुत किये गए उदाहरण में लिया गया है.</p>
<p></p>
<p>कामरूप छंद के विधान को सरलतम रूप में प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.</p>
<p></p>
<p>सादर </p>
<p>आदरणीय सौरभ जी,</p>
<p>यह छंद थोड़ा जटिल अवश्य है...</p>
<p>प्रतिपद चरणों का आरम्भ किन कलों से किया जाना चाहिए...ये बहुत ही उपयोगी जानकारी है</p>
<p>प्रतिपद,पहले व दुसरे चरण में भी समतुकान्ताता निर्वहन से यह छंद बहुत सुन्दर लगता है...जैसा कि प्रस्तुत किये गए उदाहरण में लिया गया है.</p>
<p></p>
<p>कामरूप छंद के विधान को सरलतम रूप में प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.</p>
<p></p>
<p>सादर </p> आदरणीय अखिलेशजी, आप जैसे पाठक…tag:www.openbooksonline.com,2014-04-01:5170231:Comment:5270152014-04-01T07:27:56.404ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय अखिलेशजी, आप जैसे पाठकों की प्रतिक्रियाएँ और सुझाव ही किसी प्रस्तुति की परख हुआ करती है. लेख पर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद<br></br><br></br>नियम में जो लिखा है उसे आप समझ ही गये हैं तो फिर अन्यथा भ्रम में में न आयें. चारों पदों की तुकान्तता यदि आवश्यक होती यह नियम में मैं अवश्य लिख दिया गया होता. उदाहरण ’कलों’ को स्पष्ट करने के लिए हैं. देखिये वहाँ भूल तो नहीं हुई है. रचनाकारों को उसी का अनुकरण भी करना है.</p>
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<p>//एक उदाहरण और देने से <span> जिसमें दो-दो पदों की अलग- अलग…</span></p>
<p>आदरणीय अखिलेशजी, आप जैसे पाठकों की प्रतिक्रियाएँ और सुझाव ही किसी प्रस्तुति की परख हुआ करती है. लेख पर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद<br/><br/>नियम में जो लिखा है उसे आप समझ ही गये हैं तो फिर अन्यथा भ्रम में में न आयें. चारों पदों की तुकान्तता यदि आवश्यक होती यह नियम में मैं अवश्य लिख दिया गया होता. उदाहरण ’कलों’ को स्पष्ट करने के लिए हैं. देखिये वहाँ भूल तो नहीं हुई है. रचनाकारों को उसी का अनुकरण भी करना है.</p>
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<p>//एक उदाहरण और देने से <span> जिसमें दो-दो पदों की अलग- अलग तुकान्तता बनती</span> <span> हो से बात ज्यादा स्पष्ट हो पाती</span> //</p>
<p></p>
<p>बच्चन बहुत पहले ही कह गये हैं. और, कितना सटीक कहा है उन्होंने ! <br/><strong>और-और की रटन लगाता जाता हर पीनेवाला ... </strong></p>
<p></p>
<p>सादर<br/><br/></p>