मात्रिक पदों में शब्द-संयोजन - Open Books Online2024-03-28T10:29:29Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:506564?groupUrl=chhand&commentId=5170231%3AComment%3A997456&x=1&feed=yes&xn_auth=noनमस्कार , बहुत सुंदर आलेख। मे…tag:www.openbooksonline.com,2021-06-27:5170231:Comment:10627182021-06-27T09:08:20.748ZOm Parkash Sharmahttp://www.openbooksonline.com/profile/OmParkashSharma
<p>नमस्कार , बहुत सुंदर आलेख। मेरा इस संदर्भ इतना कहना है कि मात्रिक छंदों के लिए मात्रिक गण अलग से बने थे जिनकी संख्या पाँच है - णगण, ढगण ,डगण ,ठगण और टगण । ये पाँच गण क्रमश; द्विकल, त्रिकल ,चौकल पंचकल और षटकल को ही दिए गए नाम हैं। इनके प्रस्तार विधि से क्रमश: दो, तीन, पाँच , आठ और तेरह रूप बनते है। इन गणो के लोप के पीछे हिन्दी भाषा को राजकीय प्राथमिकता न मिलना या अन्य कोई कारण हो सकता है। मेरे विचार से इन गणो को पुन: प्रचलित कर मात्रिक छंदों को आसानी से समझाया और स्मरण रखवाया जा सकता…</p>
<p>नमस्कार , बहुत सुंदर आलेख। मेरा इस संदर्भ इतना कहना है कि मात्रिक छंदों के लिए मात्रिक गण अलग से बने थे जिनकी संख्या पाँच है - णगण, ढगण ,डगण ,ठगण और टगण । ये पाँच गण क्रमश; द्विकल, त्रिकल ,चौकल पंचकल और षटकल को ही दिए गए नाम हैं। इनके प्रस्तार विधि से क्रमश: दो, तीन, पाँच , आठ और तेरह रूप बनते है। इन गणो के लोप के पीछे हिन्दी भाषा को राजकीय प्राथमिकता न मिलना या अन्य कोई कारण हो सकता है। मेरे विचार से इन गणो को पुन: प्रचलित कर मात्रिक छंदों को आसानी से समझाया और स्मरण रखवाया जा सकता है | सादर ।</p> आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम ..…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-06:5170231:Comment:9974562019-12-06T14:18:45.126ZSushil Sarnahttp://www.openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p>आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम ... सर छंदों में गेयता के आधारभूत सिद्धांतों को आपने बहुत ही सरल और सुंदर ढंग से समझाया है। इस हेतु आपका तहे दिल से शुक्रिया।</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम ... सर छंदों में गेयता के आधारभूत सिद्धांतों को आपने बहुत ही सरल और सुंदर ढंग से समझाया है। इस हेतु आपका तहे दिल से शुक्रिया।</p> बहुत बारीकी सी समझाया गया कल…tag:www.openbooksonline.com,2019-12-06:5170231:Comment:9974522019-12-06T12:26:59.052ZDr.Prachi Singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>बहुत बारीकी सी समझाया गया कल गणना और निर्वहन का मन्त्र </p>
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<p>सादर </p>
<p>बहुत बारीकी सी समझाया गया कल गणना और निर्वहन का मन्त्र </p>
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<p>सादर </p> ज्ञानवर्धक जांनकारी,,, आभार ,…tag:www.openbooksonline.com,2017-08-11:5170231:Comment:8729712017-08-11T12:51:20.803Zसुरेश अग्रवालhttp://www.openbooksonline.com/profile/19pl5rjo4blpe
ज्ञानवर्धक जांनकारी,,, आभार , मान्यवर
ज्ञानवर्धक जांनकारी,,, आभार , मान्यवर बढ़िया जानकारीtag:www.openbooksonline.com,2015-12-03:5170231:Comment:7212462015-12-03T03:07:40.365ZManan Kumar singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
बढ़िया जानकारी
बढ़िया जानकारी हार्दिक धन्यवाद आदरणीया छायाज…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-27:5170231:Comment:6462342015-04-27T08:16:13.119ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>हार्दिक धन्यवाद आदरणीया छायाजी.</p>
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<p>हार्दिक धन्यवाद आदरणीया छायाजी.</p>
<p></p> आ. सौरभ भाई अब प्रवाह का रहस्…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-27:5170231:Comment:6461092015-04-27T04:55:16.633ZChhaya Shuklahttp://www.openbooksonline.com/profile/ChhayaShukla
<p>आ. सौरभ भाई अब प्रवाह का रहस्य स्पष्टता को प्राप्त हुआ |<br/>हार्दिकधन्यवाद ! <br/>इस प्रभावी जानकारी के लिए |<br/>सादर</p>
<p>आ. सौरभ भाई अब प्रवाह का रहस्य स्पष्टता को प्राप्त हुआ |<br/>हार्दिकधन्यवाद ! <br/>इस प्रभावी जानकारी के लिए |<br/>सादर</p> आदरणीय मिथिलेश जी, शब्द-कल छन…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-26:5170231:Comment:6459612015-04-26T23:40:44.114ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय मिथिलेश जी, शब्द-कल छन्द शास्त्र का अत्यंत महत्त्वपूर्ण विन्दु है. किन्तु जाने क्यों यह छ्न्द रचनाकारों सही मान न पा सका. जबकि बिना इसे पूरी तरह आत्मसात किये मात्रिकता का निर्वहन दोषपूर्ण हो सकता है.</p>
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<p>आपको एक पाठक के तौर पर यह लेख तथ्यात्मक लगा, मेरा प्रयास सार्थक हुआ.</p>
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<p>आदरणीय मिथिलेश जी, शब्द-कल छन्द शास्त्र का अत्यंत महत्त्वपूर्ण विन्दु है. किन्तु जाने क्यों यह छ्न्द रचनाकारों सही मान न पा सका. जबकि बिना इसे पूरी तरह आत्मसात किये मात्रिकता का निर्वहन दोषपूर्ण हो सकता है.</p>
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<p>आपको एक पाठक के तौर पर यह लेख तथ्यात्मक लगा, मेरा प्रयास सार्थक हुआ.</p>
<p></p> आदरणीय सौरभ सर, शब्दों के कलो…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-26:5170231:Comment:6457712015-04-26T17:07:19.911Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय सौरभ सर, शब्दों के कलों पर ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए हार्दिक आभार </p>
<p>आदरणीय सौरभ सर, शब्दों के कलों पर ज्ञानवर्धक जानकारी के लिए हार्दिक आभार </p> अापने जिस सहजता से समझाया है…tag:www.openbooksonline.com,2014-03-24:5170231:Comment:5235432014-03-24T07:36:31.043Zराजेश 'मृदु'http://www.openbooksonline.com/profile/RajeshKumarJha
<p>अापने जिस सहजता से समझाया है उसके बाद तो निश्चय ही कल का कलकल मुझे परेशान नहीं करने वाला है । आपका हार्दिक आभार, सादर</p>
<p>अापने जिस सहजता से समझाया है उसके बाद तो निश्चय ही कल का कलकल मुझे परेशान नहीं करने वाला है । आपका हार्दिक आभार, सादर</p>