'रूपमाला रूपसी है, रास करता छंद'. :मदन-छंद या रूपमाला - Open Books Online2024-03-28T10:12:38Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:250785?groupUrl=chhand&feed=yes&xn_auth=noरूपमाला छंद के विधान के साथ ह…tag:www.openbooksonline.com,2015-01-18:5170231:Comment:6078762015-01-18T12:17:26.006ZDr.Prachi Singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>रूपमाला छंद के विधान के साथ ही चर्चा के अंश से पुनः गुज़रना ..बहुत सुहाया </p>
<p></p>
<p>बहुत खूबसूरत छंद है ये... दोहा में 13-11 और रूप माला में 14-10 के पद साथ ही ला ल ला ला /ला ल ला ला/ ला ल ला ला/ ला ल ...यकीनन नव रचनाकार और शोरा भाई सब आसानी से साध सकते हैं इस छंद को </p>
<p>रूपमाला छंद के विधान के साथ ही चर्चा के अंश से पुनः गुज़रना ..बहुत सुहाया </p>
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<p>बहुत खूबसूरत छंद है ये... दोहा में 13-11 और रूप माला में 14-10 के पद साथ ही ला ल ला ला /ला ल ला ला/ ला ल ला ला/ ला ल ...यकीनन नव रचनाकार और शोरा भाई सब आसानी से साध सकते हैं इस छंद को </p> धन्यवाद भाई नीरज जी , आपका स्…tag:www.openbooksonline.com,2012-08-29:5170231:Comment:2662822012-08-29T06:43:29.417ZEr. Ambarish Srivastavahttp://www.openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>धन्यवाद भाई नीरज जी , आपका स्वागत है ......सस्नेह</p>
<p>धन्यवाद भाई नीरज जी , आपका स्वागत है ......सस्नेह</p> हा हा हा हा ..........:-)))tag:www.openbooksonline.com,2012-07-24:5170231:Comment:2522452012-07-24T18:37:05.378ZEr. Ambarish Srivastavahttp://www.openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>हा हा हा हा ..........:-)))</p>
<p>हा हा हा हा ..........:-)))</p> जय हो जय हो......आदरणीय .....…tag:www.openbooksonline.com,2012-07-24:5170231:Comment:2521462012-07-24T18:35:57.288ZEr. Ambarish Srivastavahttp://www.openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>जय हो जय हो......आदरणीय ............:-))))</p>
<p>जय हो जय हो......आदरणीय ............:-))))</p> आप नवोदित !.. त साहेब, कई-कई…tag:www.openbooksonline.com,2012-07-24:5170231:Comment:2522432012-07-24T16:58:40.284ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आप नवोदित !.. त साहेब, कई-कई, जामें हमहुँ सामिल, पइदा भये पड़े आज.. जय होऽऽऽऽ</p>
<p>खींचें में साहेब आपके अकास तलुक का कवनो उड़ि पइहें ? एक बेर फेर जय हो... . :-))))</p>
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<p>आप नवोदित !.. त साहेब, कई-कई, जामें हमहुँ सामिल, पइदा भये पड़े आज.. जय होऽऽऽऽ</p>
<p>खींचें में साहेब आपके अकास तलुक का कवनो उड़ि पइहें ? एक बेर फेर जय हो... . :-))))</p>
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//ला ल ला ला/ ला ल ला ला/…tag:www.openbooksonline.com,2012-07-24:5170231:Comment:2518902012-07-24T16:54:19.767ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>//</p>
<p><strong>//ला ल ला ला/ ला ल ला ला/ ला ल ला ला/ ला ल........... :-)))//</strong></p>
<p>वाह एक और पद्धति ....//</p>
<p>वास्तव में, आदरणीय ? .. सही?</p>
<p> </p>
<p>का हो गणेश भाई??? .. . ई का हो ? ’लाललाला’ कइलका फोन हमरहीं तलुक था का ?? .. :-)))</p>
<p>हा हा हा हा ..........</p>
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<p>वाह एक और पद्धति ....//</p>
<p>वास्तव में, आदरणीय ? .. सही?</p>
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<p>का हो गणेश भाई??? .. . ई का हो ? ’लाललाला’ कइलका फोन हमरहीं तलुक था का ?? .. :-)))</p>
<p>हा हा हा हा ..........</p>
<p></p> डॉ० प्राची जी आप सत्य कह रही…tag:www.openbooksonline.com,2012-07-24:5170231:Comment:2518882012-07-24T15:12:04.894ZEr. Ambarish Srivastavahttp://www.openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>डॉ० प्राची जी आप सत्य कह रही हैं ! अभी इस दिशा में बहुत कुछ करना शेष है .....कुछ न कुछ होता ही रहेगा .....बस आप सभी ओबीओ मित्रों का परस्पर सहयोग चाहिए! सादर</p>
<p>डॉ० प्राची जी आप सत्य कह रही हैं ! अभी इस दिशा में बहुत कुछ करना शेष है .....कुछ न कुछ होता ही रहेगा .....बस आप सभी ओबीओ मित्रों का परस्पर सहयोग चाहिए! सादर</p> आदरणीय अम्बरीश जी, जिस तरह से…tag:www.openbooksonline.com,2012-07-24:5170231:Comment:2523442012-07-24T14:45:41.361ZDr.Prachi Singhhttp://www.openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<div><span id="6_TRN_4">आदरणीय अम्बरीश जी, जिस तरह से दोहा विधान में कबीर दास जी के एक दोहे को मूल रूप में खोजने का कार्य , हाइकू विधा पर काम, कह-मुकरियों के प्रति पूरा एक review of literature, और अब रूपमाला छंद पर ये नए आयाम सामने आ रहे है, मुझे सच में लगता है की ये सब एक बड़ा शोध ही है... जिसे सिर्फ शोध की ही category में रख सकते हैं. सादर.</span></div>
<div><span id="6_TRN_4">आदरणीय अम्बरीश जी, जिस तरह से दोहा विधान में कबीर दास जी के एक दोहे को मूल रूप में खोजने का कार्य , हाइकू विधा पर काम, कह-मुकरियों के प्रति पूरा एक review of literature, और अब रूपमाला छंद पर ये नए आयाम सामने आ रहे है, मुझे सच में लगता है की ये सब एक बड़ा शोध ही है... जिसे सिर्फ शोध की ही category में रख सकते हैं. सादर.</span></div> स्वागत है आदरणीय सौरभ जी !tag:www.openbooksonline.com,2012-07-24:5170231:Comment:2523412012-07-24T14:38:36.374ZEr. Ambarish Srivastavahttp://www.openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>स्वागत है आदरणीय सौरभ जी !</p>
<p>स्वागत है आदरणीय सौरभ जी !</p> //ला ल ला ला/ ला ल ला ला/ ला…tag:www.openbooksonline.com,2012-07-24:5170231:Comment:2518862012-07-24T14:37:44.428ZEr. Ambarish Srivastavahttp://www.openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava
<p><strong>//ला ल ला ला/ ला ल ला ला/ ला ल ला ला/ ला ल........... :-)))//</strong></p>
<p>वाह एक और पद्धति ....</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी आपके निर्देशन में बहुत कुछ नया सीखने को मिल रहा है ......:-)</p>
<p>सादर</p>
<p><strong>//ला ल ला ला/ ला ल ला ला/ ला ल ला ला/ ला ल........... :-)))//</strong></p>
<p>वाह एक और पद्धति ....</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी आपके निर्देशन में बहुत कुछ नया सीखने को मिल रहा है ......:-)</p>
<p>सादर</p>