क्या भारत मेँ अन्तर्माध्यमिक तक हिन्दी एक अनिवार्य विषय नही होनी चाहिए - Open Books Online2024-03-28T23:05:41Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:187970?commentId=5170231%3AComment%3A205017&feed=yes&xn_auth=noक्या जब हमारे देश मे कई आन्दो…tag:www.openbooksonline.com,2012-07-28:5170231:Comment:2533772012-07-28T03:03:45.684Zआशीष यादवhttp://www.openbooksonline.com/profile/Ashishyadav
<p>क्या जब हमारे देश मे कई आन्दोलन छिड़ रहे है इस समय हिन्दी को सम्मान दिलाने हेतु एक और आन्दोलन की आवश्यकता महसूस होती है।<br/>यदि हिन्दी के परिपेक्ष्य मे बात की जाय तो, इसे कानूनी तौर पर लागू करने के लिये क्या कदम उठाने चाहिये जो उपयुक्त हो?</p>
<p>क्या जब हमारे देश मे कई आन्दोलन छिड़ रहे है इस समय हिन्दी को सम्मान दिलाने हेतु एक और आन्दोलन की आवश्यकता महसूस होती है।<br/>यदि हिन्दी के परिपेक्ष्य मे बात की जाय तो, इसे कानूनी तौर पर लागू करने के लिये क्या कदम उठाने चाहिये जो उपयुक्त हो?</p> हिन्दी के साथ ज्यादती उनके द्…tag:www.openbooksonline.com,2012-04-11:5170231:Comment:2132582012-04-11T06:11:33.525ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>हिन्दी के साथ ज्यादती उनके द्वारा ज्यादा हुई जो हिन्दी का ओढ़ते और बिछाते हैं.</p>
<p>हिन्दी क्षेत्र से इतर क्षेत्रों में यह भी समस्या है कि उन्हें यही नहीं मालूम कि हिन्दी का प्रारूप क्या होगा. जिन प्रदेशों में हिन्दी नहीं बोली जाती उनमें प.बंगाल, तमिलनाडु, मणिपुर हिन्दी के विरुद्ध अधिक आक्रामक हैं. कारण के क्रम में तीनों प्रदेशों का राजनीतिक परिदृश्य खंगाला जाय तो बहुत सी अजीब-अजीब बातें खुल के आती हैं. उनको भी कन्सीडर करना आवश्यक है.</p>
<p>दूसरे, हिन्दी के गढ़ प्रदेशों में, विशेषकर…</p>
<p>हिन्दी के साथ ज्यादती उनके द्वारा ज्यादा हुई जो हिन्दी का ओढ़ते और बिछाते हैं.</p>
<p>हिन्दी क्षेत्र से इतर क्षेत्रों में यह भी समस्या है कि उन्हें यही नहीं मालूम कि हिन्दी का प्रारूप क्या होगा. जिन प्रदेशों में हिन्दी नहीं बोली जाती उनमें प.बंगाल, तमिलनाडु, मणिपुर हिन्दी के विरुद्ध अधिक आक्रामक हैं. कारण के क्रम में तीनों प्रदेशों का राजनीतिक परिदृश्य खंगाला जाय तो बहुत सी अजीब-अजीब बातें खुल के आती हैं. उनको भी कन्सीडर करना आवश्यक है.</p>
<p>दूसरे, हिन्दी के गढ़ प्रदेशों में, विशेषकर राजस्थान और उत्तर प्रदेश और कुछ हद तक बिहार में भी हिन्दी को नकार कर क्षेत्रीय भाषाओं की तरफ़दारी आँधी का शक्ल लेती जा रही है. इसमें कुछ भी बुरा नहीं है कि हमारी मातृभाषाएँ (यथा, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, छत्तीसगढ़ी, राजस्थानी आदि-आदि) समृद्ध हों. उनपर काम हो और उनका गरिमामय विकास हो. लेकिन इसके लिये हिन्दी को ’डायन’ का प्रारूप देना जो कि क्षेत्रीय भाषाओं के उन्मुक्त विकास का सबसे बड़ा अवरोध ही नहीं है बल्कि उनको खा रही है, मेरी समझ से परे है. मुझे तो वस्तुतः बहुत बड़े स्तर षड्यंत्र की बू भी दीखती है. </p>
<p>यानि, जो कुछ विन्दु हमसभी आज तक अंग्रेजी भाषा के तरफ़दारों के खिलाफ़ इस्तमाल करते रहे हैं. कमोबेश वही-वही विन्दु आज हिन्दी के खिलाफ़ इस्तमाल किये जा रहे हैं. यह कौन सा मातृभाषा प्रेम है ?</p>
<p></p> हिंदी को सारे देश में प्राथम…tag:www.openbooksonline.com,2012-04-11:5170231:Comment:2134332012-04-11T05:36:22.283ZGyanendra Dutt Bajpaihttp://www.openbooksonline.com/profile/GyanendraDuttBajpai
<p> हिंदी को सारे देश में प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य करने की नीति या कानून .....</p>
<p> हिंदी को सारे देश में प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य करने की नीति या कानून .....</p> aadarniya shri Gyanendra Dut…tag:www.openbooksonline.com,2012-04-10:5170231:Comment:2131212012-04-10T07:31:40.645Zआशीष यादवhttp://www.openbooksonline.com/profile/Ashishyadav
<p>aadarniya shri <span> </span><a class="fn url" href="http://www.openbooksonline.com/forum/topic/listForContributor?user=3mwa7t10ppgh7">Gyanendra Dutt Bajpai</a> ji, maine aap logo ka vichaar jaajana chaha.</p>
<p>ye baat sach hai ki kai kshetro me log hindi bilkul nhi jaante, lekin apne desh ki koi to bhasha honi chahiye. kuchh to aisa hona chahiye ki log apne hi desh me rahkar yah na mahsus kare ki wo kisi anya desh me aa gya hai.</p>
<p>mare khayaal se hindi hi hai jo bhaarat me sabse…</p>
<p>aadarniya shri <span> </span><a href="http://www.openbooksonline.com/forum/topic/listForContributor?user=3mwa7t10ppgh7" class="fn url">Gyanendra Dutt Bajpai</a> ji, maine aap logo ka vichaar jaajana chaha.</p>
<p>ye baat sach hai ki kai kshetro me log hindi bilkul nhi jaante, lekin apne desh ki koi to bhasha honi chahiye. kuchh to aisa hona chahiye ki log apne hi desh me rahkar yah na mahsus kare ki wo kisi anya desh me aa gya hai.</p>
<p>mare khayaal se hindi hi hai jo bhaarat me sabse adhik boli jaati hai, aur samjhi jaati hai. is dasha me agar hindi ko aur badhane ki aur apne desh ko, deshwaasiyo ko ek jabaan hindi dene hetu agar aisa kiya jaay to...............</p>
<p>aap kya sochte hai. sarkaar ko aur kya karna chaahiye desh ko ek apni bhaasha dene hetu.</p> हमारे देश के अनेक प्रान्तों म…tag:www.openbooksonline.com,2012-04-08:5170231:Comment:2122472012-04-08T20:09:50.650ZGyanendra Dutt Bajpaihttp://www.openbooksonline.com/profile/GyanendraDuttBajpai
<p>हमारे देश के अनेक प्रान्तों में हिंदी बोलना तो दूर लोग समझते भी नहीं है. कुछ जगहों पर लोग समझते हैं लेकिन बोलते नहीं हैं. ऐसी स्थिति में अंतर्माध्यमिक स्तर तक हिंदी विषय को अनिवार्य करने की बहस समझ से परे है. पहले हिंदी को सारे देश में प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य करने की नीति या कानून तो बन जाये...उसके बाद आगे की सोचिये. लेकिन हमारे देश की तुष्टिवादी राजनाति के चलते ऐसा कुछ भी होने वाला नहीं है. किसी भी सरकार में इस सबके लिए इक्षाशक्ति नहीं है. एक अटल जी ही थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में…</p>
<p>हमारे देश के अनेक प्रान्तों में हिंदी बोलना तो दूर लोग समझते भी नहीं है. कुछ जगहों पर लोग समझते हैं लेकिन बोलते नहीं हैं. ऐसी स्थिति में अंतर्माध्यमिक स्तर तक हिंदी विषय को अनिवार्य करने की बहस समझ से परे है. पहले हिंदी को सारे देश में प्राथमिक स्तर पर अनिवार्य करने की नीति या कानून तो बन जाये...उसके बाद आगे की सोचिये. लेकिन हमारे देश की तुष्टिवादी राजनाति के चलते ऐसा कुछ भी होने वाला नहीं है. किसी भी सरकार में इस सबके लिए इक्षाशक्ति नहीं है. एक अटल जी ही थे जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में अपना भाषण दे कर इस भाषा का गौरव बढाया था. उसके बाद क्या हुआ?</p>
<p></p> १२वी तक तो नहीं मगर ८वी तक जर…tag:www.openbooksonline.com,2012-03-25:5170231:Comment:2048882012-03-25T07:55:39.233Zवीनस केसरीhttp://www.openbooksonline.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>१२वी तक तो नहीं मगर ८वी तक जरूर कर देना चाहिए,,<br/>मगर तब, जब हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में संविधान में क़ानून बना कर स्थापित कर दिया जाये, क्योकि बिना ऐसा करे यही हिंदी को अनिवार्य करते हैं तो यह हर उस इंसान के मूल अधिकारों का हनन होगा जिसकी मातर भाषा हिन्दी नहीं है <br/><br/>विस्तृत चर्चा के लिए पुनः आता हूँ</p>
<p>१२वी तक तो नहीं मगर ८वी तक जरूर कर देना चाहिए,,<br/>मगर तब, जब हिन्दी को राष्ट्र भाषा के रूप में संविधान में क़ानून बना कर स्थापित कर दिया जाये, क्योकि बिना ऐसा करे यही हिंदी को अनिवार्य करते हैं तो यह हर उस इंसान के मूल अधिकारों का हनन होगा जिसकी मातर भाषा हिन्दी नहीं है <br/><br/>विस्तृत चर्चा के लिए पुनः आता हूँ</p> आदरणीञ सौरभ सर, अब आपकी दृष्ट…tag:www.openbooksonline.com,2012-03-24:5170231:Comment:2048702012-03-24T22:59:35.121Zआशीष यादवhttp://www.openbooksonline.com/profile/Ashishyadav
<p>आदरणीञ सौरभ सर, अब आपकी दृष्टि पड़ गयी है ना। कोई बात नही। मेरा प्रश्न खुला हुआ है। मै समझता हूँ कि बहस के काबिल भी है। क्या हिन्दी के साथ ज्यादती नही हुई है। अगर हुई है तो क्यों? इसे फिर से राष्ट्र भाषा का गौरव पाने के लिये क्या करना पड़ेगा। </p>
<p>आदरणीञ सौरभ सर, अब आपकी दृष्टि पड़ गयी है ना। कोई बात नही। मेरा प्रश्न खुला हुआ है। मै समझता हूँ कि बहस के काबिल भी है। क्या हिन्दी के साथ ज्यादती नही हुई है। अगर हुई है तो क्यों? इसे फिर से राष्ट्र भाषा का गौरव पाने के लिये क्या करना पड़ेगा। </p> वीनस भैया इतनी बढ़िया जानकारी…tag:www.openbooksonline.com,2012-03-24:5170231:Comment:2051092012-03-24T22:53:47.749Zआशीष यादवhttp://www.openbooksonline.com/profile/Ashishyadav
<p><span>वीनस भैया इतनी बढ़िया जानकारी देने के लिए धन्यवाद| उम्मीद है इससे भी अच्छी जानकारियाँ मिलेगी | </span></p>
<div><div>मैने पूछा था कि क्या हिन्दी को १२वीं तक अनिवार्य विषय नही कर देना चाहिए। </div>
<div>आप लोग कारण सहित अपनी राय रखें।</div>
</div>
<p><span>वीनस भैया इतनी बढ़िया जानकारी देने के लिए धन्यवाद| उम्मीद है इससे भी अच्छी जानकारियाँ मिलेगी | </span></p>
<div><div>मैने पूछा था कि क्या हिन्दी को १२वीं तक अनिवार्य विषय नही कर देना चाहिए। </div>
<div>आप लोग कारण सहित अपनी राय रखें।</div>
</div> संस्मरण पढ़ने से मिली जानकारी…tag:www.openbooksonline.com,2012-03-24:5170231:Comment:2050222012-03-24T19:11:20.047Zवीनस केसरीhttp://www.openbooksonline.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>संस्मरण पढ़ने से मिली जानकारी के अनुसार गाँधी जी ने भाएतीय परिवेश की 'बोली' को संविधान में प्रयोक करने के लिए एक नाम दिया - "हिन्दुस्तानी" और इसे ही 'राज भाषा' और "राष्ट्र भाषा" बनाने को इच्छुक थे परन्तु संविधान निमात्री सभा ने मानक शुद्ध हिन्दी को भारतीय राज भाषा के रूप में प्रस्तुत किया और इस तरह "प्रयोजनमूलक हिन्दी" राज भाषा बनी और साल १९५० में ही १५ साल की एक छूट निर्धारित की और तब तक संघ के कार्यों के लिए अंग्रेजी को राज भाषा माना <br></br>भारतीय संविधान में राज भाषा से सम्बंधित पर्याप्त…</p>
<p>संस्मरण पढ़ने से मिली जानकारी के अनुसार गाँधी जी ने भाएतीय परिवेश की 'बोली' को संविधान में प्रयोक करने के लिए एक नाम दिया - "हिन्दुस्तानी" और इसे ही 'राज भाषा' और "राष्ट्र भाषा" बनाने को इच्छुक थे परन्तु संविधान निमात्री सभा ने मानक शुद्ध हिन्दी को भारतीय राज भाषा के रूप में प्रस्तुत किया और इस तरह "प्रयोजनमूलक हिन्दी" राज भाषा बनी और साल १९५० में ही १५ साल की एक छूट निर्धारित की और तब तक संघ के कार्यों के लिए अंग्रेजी को राज भाषा माना <br/>भारतीय संविधान में राज भाषा से सम्बंधित पर्याप्त क़ानून हैं जिसे समय समय पर संशोधित किया गया है <br/>कालांतर में राज भाषा समिति का गठन किया गया (१९५५) जिसने राज भाषा से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए <br/><br/>दुखद है कि राष्ट्र भाषा के लिए ऐसा कोंई क़ानून नहीं बनाया गया और राज्यों को भी राज भाषा के निर्धारण में अधिकतम आजादी दी गई जिस कारण हिन्दी का विकास उन राज्यों में नहीं हो सका जहाँ मातर भाषा हिन्दी नहीं है <br/><br/></p> बहुत सही, वीनसजी. परन्तु, इं…tag:www.openbooksonline.com,2012-03-24:5170231:Comment:2049742012-03-24T18:56:23.176ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>बहुत सही, वीनसजी. परन्तु, इंगित करने की जगह थोड़ा रेफ़ेरेन्स दे कर बात को आगे बढ़ायें.. चर्चा बहुत ही ज्ञानवर्धक मोड़ ले सकती है. फिर वे सदस्य भी भाग लेंगे जिन्हें जानने की समझने की आवश्यकता है.</p>
<p>खेद है, भाई आशीष की यह चर्चा आज देखा पाया हूँ.</p>
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<p>बहुत सही, वीनसजी. परन्तु, इंगित करने की जगह थोड़ा रेफ़ेरेन्स दे कर बात को आगे बढ़ायें.. चर्चा बहुत ही ज्ञानवर्धक मोड़ ले सकती है. फिर वे सदस्य भी भाग लेंगे जिन्हें जानने की समझने की आवश्यकता है.</p>
<p>खेद है, भाई आशीष की यह चर्चा आज देखा पाया हूँ.</p>
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