ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा १८-सभी प्रविष्टियाँ एक साथ - Open Books Online2024-03-29T14:53:56Zhttp://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:177640?commentId=5170231%3AComment%3A177808&feed=yes&xn_auth=noअब जुड़े .. जुड़े तो !!
tag:www.openbooksonline.com,2015-04-25:5170231:Comment:6456702015-04-25T18:28:01.021ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>अब जुड़े .. जुड़े तो !!</p>
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<p>अब जुड़े .. जुड़े तो !!</p>
<p></p> सीखने के लिए सब करना पड़ता है…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-25:5170231:Comment:6454062015-04-25T18:22:25.919Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>सीखने के लिए सब करना पड़ता है सर ... सीखने सिखाने की परम्परा को मुशायरे के बहाने देख रहा हूँ ....तो लग रहा है काश मैं पहले मंच से जुड़ गया होता.</p>
<p>सादर </p>
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<p>सीखने के लिए सब करना पड़ता है सर ... सीखने सिखाने की परम्परा को मुशायरे के बहाने देख रहा हूँ ....तो लग रहा है काश मैं पहले मंच से जुड़ गया होता.</p>
<p>सादर </p>
<p></p> :-)
ऐसे शेर भी तब एक अंदाज़ ह…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-25:5170231:Comment:6454042015-04-25T18:16:25.146ZSaurabh Pandeyhttp://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>:-)</p>
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<p>ऐसे शेर भी तब एक अंदाज़ हुआ करते थे.</p>
<p>देखिये सीखने के फेर में क्या-क्या हुआ करता था.. :-))</p>
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<p>ऐसे शेर भी तब एक अंदाज़ हुआ करते थे.</p>
<p>देखिये सीखने के फेर में क्या-क्या हुआ करता था.. :-))</p>
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<p></p> वाह नए अंदाज़ में संकलन
तभी…tag:www.openbooksonline.com,2015-04-24:5170231:Comment:6454352015-04-24T19:58:38.203Zमिथिलेश वामनकरhttp://www.openbooksonline.com/profile/mw
<p>वाह नए अंदाज़ में संकलन </p>
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<p>तभी दुनिया है ठेंगे पे ......वाला शेर जबरदस्त .............</p>
<p>वाह नए अंदाज़ में संकलन </p>
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<p>तभी दुनिया है ठेंगे पे ......वाला शेर जबरदस्त .............</p> आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी! …tag:www.openbooksonline.com,2012-01-12:5170231:Comment:1800562012-01-12T11:11:38.762ZEr. Ambarish Srivastavahttp://www.openbooksonline.com/profile/AmbarishSrivastava
<p>आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी! क्या करीने से आपने इस दीवान को सजाया है ! साथ-साथ बाबह्र व बेबह्र मिसरों को अगल अलग छांटना व अलग अलग रंग से इंगित करना अत्यंत कठिन व श्रमसाध्य कार्य है ! आपकी इस लगन, प्रतिभा व मेहनत को हमारा सलाम ! इस दुरूह कार्य सो सफलता पूर्वक संपादित करने के लिए कोटिशः बधाई मित्र ! जय ओ बी ओ ! :-)))))) </p>
<p>आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी! क्या करीने से आपने इस दीवान को सजाया है ! साथ-साथ बाबह्र व बेबह्र मिसरों को अगल अलग छांटना व अलग अलग रंग से इंगित करना अत्यंत कठिन व श्रमसाध्य कार्य है ! आपकी इस लगन, प्रतिभा व मेहनत को हमारा सलाम ! इस दुरूह कार्य सो सफलता पूर्वक संपादित करने के लिए कोटिशः बधाई मित्र ! जय ओ बी ओ ! :-)))))) </p> राणा जी,
धन्यवाद, नव वर्ष २०१…tag:www.openbooksonline.com,2012-01-04:5170231:Comment:1782302012-01-04T05:40:41.213ZSURINDER RATTIhttp://www.openbooksonline.com/profile/SURINDERRATTI
<p style="word-spacing: 0px; font: 14px/25px arial; text-transform: none; color: #000000; text-indent: 0px; white-space: normal; letter-spacing: normal; orphans: 2; widows: 2; -webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px;">राणा जी,…</p>
<p style="word-spacing: 0px; font: 14px/25px arial; text-transform: none; color: #000000; text-indent: 0px; white-space: normal; letter-spacing: normal; orphans: 2; widows: 2; -webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px;">राणा जी,</p>
<p style="word-spacing: 0px; font: 14px/25px arial; text-transform: none; color: #000000; text-indent: 0px; white-space: normal; letter-spacing: normal; orphans: 2; widows: 2; -webkit-text-size-adjust: auto; -webkit-text-stroke-width: 0px;">धन्यवाद, नव वर्ष २०१२ की शुभ कामनाएं, सभी ग़ज़लों को एक साथ पढने का अवसर दिया और इससे भी ज़्यादा परिश्रम करके बा-बाहर और बे-बाहर ग़ज़लों को छांटा, वरना मुझे भी पता नहीं चलता जल्दी जल्दी में कुछ गल्तियाँ हो गयी थी. - सुरिन्दर रत्ती - मुंबई </p> राणा जी इस आयोजन में मैं अनुप…tag:www.openbooksonline.com,2012-01-03:5170231:Comment:1780782012-01-03T17:31:30.606Zधर्मेन्द्र कुमार सिंहhttp://www.openbooksonline.com/profile/249pje3yd1r3m
<p>राणा जी इस आयोजन में मैं अनुपस्थित रहा, मगर कोटिशः धन्यवाद आपका सारी रचनाएँ एक जगह पढ़वाने के लिए। ये मुशायरा एक तरह से अदम गोंडवी जी के लिए श्रद्धांजलि भी था। बहुत बहुत धन्यवाद आपको इस कार्य के लिए।</p>
<p>राणा जी इस आयोजन में मैं अनुपस्थित रहा, मगर कोटिशः धन्यवाद आपका सारी रचनाएँ एक जगह पढ़वाने के लिए। ये मुशायरा एक तरह से अदम गोंडवी जी के लिए श्रद्धांजलि भी था। बहुत बहुत धन्यवाद आपको इस कार्य के लिए।</p> अहहहा! बड़े मनमोहक स्वरुप में…tag:www.openbooksonline.com,2012-01-03:5170231:Comment:1779552012-01-03T03:17:22.781ZSanjay Mishra 'Habib'http://www.openbooksonline.com/profile/SanjayMishraHabib
<p>अहहहा! बड़े मनमोहक स्वरुप में सभी ग़ज़लों को एकत्र किया है आदरणीय राणा जी, निश्चित रूप से इसे ऐसा स्वरुप देकर संकलित और प्रकाशित करने में धैर्य और श्रमबल की जो परीक्षा हुई होगी, वह पढ़ते वक़्त भी महसूस हो रही है. और रचनाकारों के लिए निहित सार्थक संकेत....... वाह! <strong>यह तो अदम साहब को सच्ची श्रद्धांजली है.....</strong> इस अद्बुत श्रमसाध्य कार्य के लिए ह्रदय से सादर बधाई स्वीकारें...</p>
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<p>साथ ही सभी सम्माननीय मित्रों को नूतन वर्षागमन की सादर बधाईयाँ. जय ओ बी…</p>
<p>अहहहा! बड़े मनमोहक स्वरुप में सभी ग़ज़लों को एकत्र किया है आदरणीय राणा जी, निश्चित रूप से इसे ऐसा स्वरुप देकर संकलित और प्रकाशित करने में धैर्य और श्रमबल की जो परीक्षा हुई होगी, वह पढ़ते वक़्त भी महसूस हो रही है. और रचनाकारों के लिए निहित सार्थक संकेत....... वाह! <strong>यह तो अदम साहब को सच्ची श्रद्धांजली है.....</strong> इस अद्बुत श्रमसाध्य कार्य के लिए ह्रदय से सादर बधाई स्वीकारें...</p>
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<p>साथ ही सभी सम्माननीय मित्रों को नूतन वर्षागमन की सादर बधाईयाँ. जय ओ बी ओ.</p>
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<p></p> यह इस मंच की एक बड़ी ही खूबी…tag:www.openbooksonline.com,2012-01-02:5170231:Comment:1775942012-01-02T06:17:41.648Zदुष्यंत सेवकhttp://www.openbooksonline.com/profile/DushyantSewak
<p><span>यह इस मंच की एक बड़ी ही खूबी और खूबसूरती है की यहाँ इतना कुछ सीखने के लिए है और नित नए प्रयोगों से सीखने का मज़ा भी दो गुना हो जाता है.. आदरणीय राणा साहब ने जिस खुबसूरत साज सज्जा के साथ और बाबह्र और बेबह्र ग़ज़लों को संकलित किया है उनके सद्प्रयास को शत बार नमन .... </span></p>
<p><span>यह इस मंच की एक बड़ी ही खूबी और खूबसूरती है की यहाँ इतना कुछ सीखने के लिए है और नित नए प्रयोगों से सीखने का मज़ा भी दो गुना हो जाता है.. आदरणीय राणा साहब ने जिस खुबसूरत साज सज्जा के साथ और बाबह्र और बेबह्र ग़ज़लों को संकलित किया है उनके सद्प्रयास को शत बार नमन .... </span></p> राणा जी आपने पोस्ट के लिए जो…tag:www.openbooksonline.com,2012-01-01:5170231:Comment:1776672012-01-01T17:28:25.779Zवीनस केसरीhttp://www.openbooksonline.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>राणा जी आपने पोस्ट के लिए जो मेहनत की है वह खुद अपनी कहानी कह रही है <br/>इस सुन्दर संकलन के लिए बधाई स्वीकारें <br/><br/>बा-बह्र अशआर को छांट कर आपने सीखने वालों के लिए महती कार्य किया है <br/>इसके लिए अलग से साधुवाद स्वीकारें</p>
<p>राणा जी आपने पोस्ट के लिए जो मेहनत की है वह खुद अपनी कहानी कह रही है <br/>इस सुन्दर संकलन के लिए बधाई स्वीकारें <br/><br/>बा-बह्र अशआर को छांट कर आपने सीखने वालों के लिए महती कार्य किया है <br/>इसके लिए अलग से साधुवाद स्वीकारें</p>